"भोजपुरी नाट्यरंग आ भिखारी ठाकुर" एगो महत्वपूर्ण भोजपुरी साहित्यिक रचना ह जवन भारतीय साहित्य में आपन खास पहचान बनवले बा। ई रचना भोजपुरी के चर्चित कवि आ नाटककार भिखारी ठाकुर के जीवनी आ कला के समर्पित बा। भिखारी ठाकुर अपना लेखनी के माध्यम से सामाजिक सम
पहली नजरीया हमरा घायल कर दिहले बा सपनों में भी तोहर चेहरा उतर गइल बा अब सकुन ना हमरा के तोहरा देखली प्यार हो गइल बा -२ . ना चैन दिल में हमरा के निंद भी बेवफा चल गइल बा जितना भुलाइल चाह
तोहर सुघरल जवानी हमरा भा गइल हो तु जब मुस्कुरालु दिल में छा जइली हो मन के कैसे मनाई दिल उतर गइल हो हमरा आंगन की खुशी बन के कब अइवु हो . चांद तारो से कहां मत देख हमरा के रातरानी की जैसे मन के
तोहार किरिया हम न ससुरा में जैबे ससुरा न जैबे हो ,ससुरा न जैबे तोहार किरिया हम न ससुरा में जैबे बचपन में खेलली माई आंगनमा बचपन से रहली एक ही सपनवां अपनी कर्म से गंगा नेहइवे तोहार किरिया हम न ससुरा में जैबे अंगुली पकड के चलेल सिखइले रात भर जागी
चौदह वर्ष वनवास काटी अइलन अपनी भवनमा राम अइलन भवनमां हो अइलन भवनमां देखी देखी खुश भइलन सारा जहनमां राम अइलन अमगनमां खुश भइल हमरो मनवां राम अइलन भवनमां माता कौशिल्या के सीता सुकुमारी जनक की बेटी राजदुलारी हमार खुश भइल मनवां राम अइलन भवनमां घर