डॉ॰ रामदेव शुक्ल
प्रो. रामदेव शुक्ल को ¨हदी गौरव सम्मान कथाकार के रूप में प्रतिष्ठित प्रो. रामदेव शुक्ल आलोचना और नाट्य लेखन के क्षेत्र के सशक्त हस्ताक्षर हैं। गोरखपुर विश्वविद्यालय के ¨हदी विभाग के अध्यक्ष पद से 1998 में सेवानिवृत्त प्रो. रामदेव मूलत: कुशीनगर के शाहपुर कुरमौटा गांव के रहने वाले हैं। 11 उपन्यास, छह कहानी संग्रह, आठ आलोचना ग्रंथ, दो दर्जन से अधिक संपादित ग्रंथ, साठ से अधिक पुस्तकों में सहलेखन करने वाले प्रो. रामदेव शुक्ल पूर्व में विद्याभूषण, कथाश्री, भारतेंदु सम्मान, सेतु शिखर सम्मान, श्रुतिकीर्ति शिखर सम्मान, भारत-भारती, शताब्दी सम्मान आदि से नवाजे जा चुके हैं। उन्हें 'ग्राम देवता' कहानी से ख्याति मिली, बाद में उन्होंने इसे उपन्यास का रूप दिया और उसे भोजपुरी में भी प्रस्तुति किया। 'मनदर्पण', 'विकल्प', 'संकल्पा', 'अगला कदम', 'चौखट के बाहर', 'गिद्ध लोक', 'अगला कदम', 'बेघर बादशाह', 'उजली हंसी की वापसी' नाम के उनके रचे उपन्यास खासे चर्चित रहे। हाल ही में 'अनाम छात्रा की डायरी शीर्षक' से उनका नया उपन्यास प्रकाशित हुआ है। प्रो. रामदेव कथा-साहित्य के अलावा अलोचना और नाटक जैसी विधाओं में वरदहस्त हैं। 'घनानंद का श्रृंगार काव्य' और 'सामंती परिवेश की जनाकांक्षा और बिहारी', 'निराला के उपन्यास', 'निराला के कथा-गद्य का आस्वादन' आदि उनकी महत्वपूर्ण आलोचना पुस्तकें हैं। ¨हदी साहित्य जगत में रीतिकालीन साहित्य के मर्मज्ञ के रूप में उनकी विशिष्ट पहचान है। वर्तमान में भी उनकी साहित्य साधना जारी है।