![आचार्य शिवपूजन सहाय](/_next/image?url=https%3A%2F%2Fshabd.s3.us-east-2.amazonaws.com%2Fusers%2F%25E0%25A4%2586%25E0%25A4%259A%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25B6%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25AA%25E0%25A5%2582%25E0%25A4%259C%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25B9%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AF_659fccf38e58ba17969811db_1704972155154.jpg&w=384&q=75)
आचार्य शिवपूजन सहाय
आचार्य शिवपूजन सहाय का जन्म 9 अगस्त 1893 को ब्रिटिश भारत के बिहार के भोजपुर जिले के उनवांस गांव में हुआ था। वह एक कवि के रूप में जाने जाते थे। 21 जनवरी 1963 को 20 वर्ष की आयु में पटना, बिहार, भारत में उनका निधन हो गया. उन्होंने हिंदी कविता के साथ-साथ कथा साहित्य में भी आधुनिक रुझानों को आगे बढ़ाने में योगदान दिया। उन्हें भारत सरकार ने पद्म भूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया।
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देहाती दुनिया
रामसहर बहुत बड़ गाँव ह। बस्ती के चारो ओर आम के घना बगइचा बा। दूर से गाँव ना लउकेला। हँ, बाबू रामतहल सिंह के घर के सामने ऊँच मंदिर के कलसा दूर से देखल जा सकेला। उहे बाबू साहेब के पिता सरबजीत सिंह के बनावल पत्थर पंचमंदिर। गाँव के लोग एकरा के ‘पंचमंडिल’
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देहाती दुनिया
रामसहर बहुत बड़ गाँव ह। बस्ती के चारो ओर आम के घना बगइचा बा। दूर से गाँव ना लउकेला। हँ, बाबू रामतहल सिंह के घर के सामने ऊँच मंदिर के कलसा दूर से देखल जा सकेला। उहे बाबू साहेब के पिता सरबजीत सिंह के बनावल पत्थर पंचमंदिर। गाँव के लोग एकरा के ‘पंचमंडिल’