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जीवनी संस्मरण Books

PHER NA BHENTAAI U PACHARUKHIYA

'कुल्हि सोरह अध्याय में बँटाइल डॉ. रंजन विकास के आत्म-संस्मरण 'फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया' के लेखक आखिर में परिशिष्ट के तहत अपना बाबूजी के रचना-संसार पर रोशनी डलले बाड़न, जेकरा से उन्हुका साहित्यिक संस्कार विरासत में सहजे भेंटाइल रहे। मानव चुँकि स्मृति

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23 March 2023
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तोहार किरिया हम न ससुरा में जैबे

तोहार किरिया हम न ससुरा में जैबे ससुरा न जैबे हो ,ससुरा न जैबे तोहार किरिया हम न ससुरा में जैबे बचपन में खेलली माई आंगनमा बचपन से रहली एक ही सपनवां अपनी कर्म से गंगा नेहइवे तोहार किरिया हम न ससुरा में जैबे अंगुली पकड के चलेल सिखइले रात भर जागी

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अइलन भगवन अंगनमा

चौदह वर्ष वनवास काटी अइलन अपनी भवनमा राम अइलन भवनमां हो अइलन भवनमां देखी देखी खुश भइलन सारा जहनमां राम अइलन अमगनमां खुश भइल हमरो मनवां राम अइलन भवनमां माता कौशिल्या के सीता सुकुमारी जनक की बेटी राजदुलारी हमार खुश भइल मनवां राम अइलन भवनमां घर

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भिखारी ठाकुर ग्रंथावली

भिखारी ठाकुर (1887-1971) एक भारतीय भोजपुरी भाषा के कवि, नाटककार, गीतकार, अभिनेता, लोक नर्तक, लोक गायक और सामाजिक कार्यकर्ता थे. उन्हें भोजपुरी भाषा के सबसे महान लेखकों में से एक और पूर्वांचल और बिहार के सबसे लोकप्रिय लोक लेखक के रूप में माना जाता है.

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