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भोजपुरी खदान में दबाइल एगो हीरा रसूल

22 October 2023

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महेन्दर मिसिर आ भिखारी ठाकुर के काल, भोजपुरी - लेखन कला लेके अबले तीन मूर्तियन गुने स्वर्णकाल लेखा बा। ईहो संयोगे बा कि तीनों जना पुरनका सारने जिला के रहे लोग दूगो के त लोग खूबे जनलन बाकी तिसरका, उत्तर-मध्य रेलवे में छपरा-सोनपुर का बीचे अवतार नगर स्टेशन के नजदीक फकुली गाँव के कवि वसुनायक ओतना मसहूर ना हो सकलन। हालांकि ओही घरी उनकर दू खंड रामायण प्रकाशित हो चुकल रहे। उनका स्फुट कविता के चर्चा श्री दुर्गाशंकर सिंह 'नाथ' अपना 'भोजपुरी कवि आ काव्य' पुस्तक ( प्रकाशित बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना: १६५८ ई.) में कइले बाड़न । उनकर छपल रामायण ओटिया लेल गइल बा आ अब उनकर पूरा रामायण छपरा से छप चुकल बा।

एने 'लोकरंग सांस्कृतिक समिति, लखनऊ-कुशीनगर' का सौजन्य से श्री सुभाष चन्द्र कुशवाहा का सम्पादन में 'सहयात्राा प्रकाशन प्रा. लि., सी- ५२ / जेड-३, दिलशाद गार्डन, दिल्ली से हाले में प्रकाशित 'लोकरंग -१' पुस्तक में चर्चित एगो अउर नाम एह क्रम में जोड़ लेवे के चाहीं । ऊ नाम बा भिखारिये लेखा रचे-गावे आ लोकनाटक करेवाला 'रसूल' के नीचे के कुल विवरण एही किताब के आध तर पर हम साभार इहाँ भोजपुरी में दे रहल बानीं । 1

रसूल भिखारी ठाकुर से लगभग १४-१५ बरिस बड़ रहस आ उनकर मउअत आज से लगभग ५६-५७ बरिस पहिले १६५२ ई. में ८० के उमिर में कवनो सोमार के दिन भइल रहे । जदपि उनकर रचना कहीं लिखित रूप में उपलब्ध नइखे आ भिखारी नियर उनकर परिवार ओके सहेज के राखहूँ के कवनों उपाय ना कइलक, एह से उनका आस-पास के लोक-मानस में जवन कुछ बचल बा, ओही आधार पर उनका के प्रकाश में ले आवे के कोसिस ऊपर बतावल गइल किताब कइले बा ।

रसूल के घर, गाँव-जिगना मजार टोला, डाकखाना- जिगना मठ, थाना- मीरगंज, जिला- गोपालगंज (बिहार) में रहे ऊ कक्षा पाँच तक स्कूल में पढ़ल रहस। उनका पिता के नाम फतिंगा अंसारी रहे, जे गावे बजावे के काम करस रसूल के दादा संगीतकार रहस। चाचा मोहर्रम मियाँ आ जौहर मियाँ सारंगी वादक रहस । फूफा हूना मियाँ भी सारंगी बजावस । कहे के ना होई कि रसूल जवना परिवार में पैदा भइल रहस, उहाँ गावे बजावे के परपंरा पहिलहीं से रहे ।

रसूल के पिता २०वीं सदी के पूर्वार्द्ध में, जवना घरी भोजपुरिया क्षेत्र के लोग रोजी-रोटी कमाये बंगाल जात रहे, कलकत्ता छावनी (मार्कुस लाइन) में अंगरेजन कन बाबर्ची के काम करत रहस इहंही रसूल के भेंट जगदल के हलीम मास्टर से भइल, जे उनका के गीत, संगीत आ नाटक के तालीम देलन । कविताई के गुर ऊ अपना गाँव के बैजनाथ चौबे, गिरिवर चौबे आ बच्चा पाण्डेय से सिखले रहस ।

रसूल के दूगो शादी भइल रहे। पहिल, मतीजन खातून से जेकर नइहर, गाँव मगहा, डाकखाना बधुवाँ, जिला- गोपालगंज रहे । दोसर, मुसमात नसीबन खातून से कलकत्ता में । मतीजन खातून से एगो बेटा सत्तार पैदा भइल रहस आ दूगो बेटी रहली स । मतीजन, रसूल के मरे के छव बरिस पहिलहीं मर गइली । सत्तार २२ बरिस के होके स्वर्ग सिधरलन मुसमात नसीबन का एगो बेटो 'कल्लू' उनका पहिला पति से रहस जेकर बिआह सत्तार के निःसंतान बीबी से सत्तार के मरला पर क दिआइल । रसूल से नसीबन के पाँच गो बेटा आ दूगो बेटी भइल लोग । सबसे बड़ बेटा 'शाहजाद हुसैन' जे सेना में रहस, अब सेवा निवृत्त होके चकिया (सीवान) में सिलाई के काम करेलन । दोसरा नम्बर के बेटा अहमदजादा आ सबसे छोट मंसूर अंसारी के निधन हो चुकल बा। तिसरका रहमत अंसारी कौव्वाली आ कीर्तन गावेलन । चउथा बहदत अंसारी शादी बिआह में सजावट के काम आ ट्यूशन पढ़ा के आजीविका चलावेलन ।

शाहजादा जब १४-१५ बरिस के रहस, तबे रसूल चल बसल रहस । नसीबन उनका मरला के चार साल बाद लगभग १६५६ ई. में सिधरली ।

६६ वर्षीय शाहजादा अपना पिता साधे लइकाइएं से दूर-दूर तक जात रहस। उनका अनुसार रसूल के नाच शादी-बिआह में त होते रहे, ओह घरी के जमीन्दार, राजा-रजवाड़ा कन आ अवसर विशेषो पर आयोजित होखे। जइसे हथुआ में हर साल नवरात्रि में नौ दिन तक, माझा राज, तमकुही राज, बेतिया, कुरसेल, दरभंगा, कइलगढ़ के राजघराना में, चैनपुर के बहुरिया कन, गौरा, कोसिला, बरई पट्टी, पतार, दहिभता, शिकारपुर से लेके कलकत्ता, बनारस, मऊ, बलिया, बक्सर,सीवान के राजा इस्माइल खाँ कन, धनौती मठ में, खाकी बाबा के पीपर तर जन्माष्टमी में आदि ।

गोपालगंज के बूढ़-पुरनिया लोग बतावेला कि एक बेर एह जिला के एस. डी.ओ. के बिदाई समारोह में रसूल आ भिखारी ठाकुर दूनों मंडली जुटल रहे। ईनाम रहे सात गो मेडल, जेह में पाँच मेडल रसूल के मिलल मात्र दूगो भिखारी ठाकुर के । अइसहीं तब बनारस के नामी मुकुंदी माँड़ आ सुभेर सिंह से मीरगंज में रसूल के नाच के मुकाबला भइल रहे ।

रसूल के नाच के मुख्य नर्तक के नाम रहे राजकुमार जे रसूले के गाँव के रहस आ मसहूर जोकर के नाम रहे रमजान मियाँ जे रसूल के बगल के गाँव

के रहस ।

शादी में उनका नाच के मांग एहू से होत रहे कि ऊ बरियात में 'सेहरा' बनाके गावे के कामो के देत रहस-

'गमकता जगमगाता है अनोखा राम का सेहरा जो देखा है वो कहता है रमेती राम का सेहरा कलम धो-धो के अमृत से लिखा है मास्टर ने ये सुनाया है रसूल ने जो ये ईनाम का सेहरा ।"

इहाँ सेहरा में आइल 'मास्टर' शब्द साइत उनका ओस्ताद हलीम मास्टर खातिर आइल बा । रसूल आशु कवि रहस आ अपना नाच-नाटक के कलाकार, निदेशक आ लेखको रहस अपना 'शान्ती' नाटक में रसूल मुनीम बनस, 'सेठ-सेठानी' में सेठ, 'आजादी' नाटक में जमीन्दार, 'गंगानहान' में बुढ़िया, 'सती बसंती - सूरदास' में सूरदास, 'गरीब की दुनिया साढ़े बावन लाख' में शराबी, 'बुढ़वा बुढ़िया' में बुढ़वा आ 'धोबिया-धोबिन' में धोबी बनस एगो अउर उनकर प्रसिद्ध तमासा रहे 'चंदा कुदरत' ।

कुछ उनका से जुड़ल प्रसंगो मार्मिक आ गौर करे लायक बा । कहल जाला, कि हथुआ राज में एक बेर रसूल के नाच होत रहे। 'बुढ़वा बुढ़िया' नाटक करत में ऊ एगो गीत गवलन ।

'ई बुढ़िया, जहर के पुड़िया, ना माने मोर बतिया रे अपना पिया से भौज उड़ावे, यार से करे बतिया रे ।' कवनो चमचा हथुआ के रानी के उल्टा सीधा सिखा देलक कि ई गीत

रसूल उनके पर गावत बाड़न। फेर त रानी के लठइत मार के उनकर दाँत तूड़ देलन | पाछे जब रसूल सफाई देलन त रानी के भूल महसूस भइल आ ऊ डेढ़ बिगहा जमीन आ रहे के जगह रसूल के देके एकर प्रायश्चित कइली ।

अइसहीं जेह दिन महात्मा गाँधी के हत्या भइल ओही दिन रसूल के नाटक कलकत्ता के कवनो चटकल कारखाना में होयवाला रहे। फैक्ट्री के मालिक कार्यक्रम रोक देवेला कहलन बाकी रसूल समुझवलन कि ऊ नाटक गाँधी जी के हत्ये पर खेलीन आ उनकर नाटक बापू के प्रति श्रद्धांजलि - मतिन होई । मालिक मान गइलन आ रसूल आनन-फानन में गाँधी से संबंधित कुछ गीत-कवित आ नाटक रच के प्रदर्शित करे के कोसिस से बाज ना अइलन । जइसे

१. 'समधी बनले गाँधी बाबा, हाय रे जियरा ! कहत रसूल नेता सब बराती सज-धज के चलले गाँधी बाबा हाय रे जियरा'

२. 'के मारल हमरा गाँधी जी के गोली हो, धमाधम तीन गो कल्हीये आजादी मिलल, आज चलल गोली गाँधी बाबा मारल गइले देहली के गली हो, धमाधम तीन गो । पूजा में जात रहले बिरला भवन में दुश्मनवा बइठ्ठल रहल पाप लिये मन में गोलिया चला के बनल बली हो, धमाधम तीन गो । कहत रसूल, सूल सबका के देके कहाँ गइले मोर अनार के कली हो, धमाधम तीन गो ।'

उनका गाँव-जवार के लोग के कहनाम बा कि फिल्मी संगीतकार चित्रगुप्त, जेकर घर उनका आसे पास रहे, उनकर 'गंगा नहान' नाटक बम्बई ले गइलन आ ओकरा आधार पर 'गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो' सिनेमा बनल । उनका नाटक 'चंदा कुदरत' के कहानी लेके फिल्म 'लैला-मजनू' बनल, 'वफादार हैवान बच्चा उर्फ सेठ-सेठानी' के आधार पर फिल्म 'इन्सानियत' बनल बा । बाकी ई सब अतिशयोक्ति ह, एह में कवनो तथ्यगत साँच नइखे लउकत ।

हैं, भिखारी नियर रसूलो शंकर के स्तुति, धोबी धोबिन संवाद में आध्यात्मिक बात, राम आ कृष्ण पर भक्ति गीत रचले बाड़न, जेह में 'गंगा नहान' के कथानक भिखारी ठाकुर के 'गंगा स्नान' से मिलता। एही तरेह रसूलो के एगो नाटक 'भाई- विरोध' बतावल जाला । के जाने दूनों के कथानक में केतना साम्य वा ? काहे कि रसूल के कवनो कृति लिखित मा प्रकाशित रूप में कतहूँ मिलल ह ना । रसूल कन आखियान करे लायक बात ई बा कि उनकर नाटक आ गीत ना खाली भोजपुरी में बलुक हिन्दी आ उर्दू के शब्द आ क्रिया पदों में बा । जहाँ 'बसुनायक रामायण' व्यक्तिगत भक्ति-रचना होखे आ भाषा खाँटी भोजपुरी ना होखे का चलते समाज में लोकप्रिय ना हो सकल, भिखारी ठाकुर आजादी के पहिले आ बाद ले होइयो के कहीं सीधे आजादी के बात ना कर सकलन, महेन्दर मिसिर के देश भक्ति के बात संदेह के निगाह से देखल जाला, उहाँ रसूल अपना गीत आ नाटक में ना खाली आजादी से संबंधित बात गहिराई से उठवले बाड़न बलुक अपना प्रदर्शन में ऊ अंगरेजन के बिरूद्ध लोग के आन्दोलितो करे से बाज ना अइलन आ एक दिन खुदे ओह जुर्म में उनका जेहल के हवा खाये के पड़ल ।

हाथ कंगन के आरसी का ? उनका गीत आ कारनामा के कुछ उदाहरण इहाँ देखल जा सकेला । देश के बँटवारा के भाँप के उफ हिन्दू-मुस्लिम एकता बदे लिखलन-

"सर पर चढ़ल आजाद गगरिया, संभल के चलऽ डगरिया ना । एक कुईया पर दू पनिहारिन, एक ही लागल डोर कोई खींचे हिन्दुस्तान, कोई पाकिस्तान की ओर ना डूबे, ना फूटे, ई मिल्लत के गगरिया, सम्हल के चलऽ डगरिया ना । हिन्दू दौड़े पुराण लेके, मुसलमान कुरान आपस में दूनों मिल-जुल लिहड, एकें रखऽ ईमान सब मिलजुल के मंगल गावें भारत के दुअरिया, संभल के चलs डगरिया ना कहे रसूल भारतवासी से ईहे बात समुझाई भारत के कोने-कोने में तिरंगा लहराई बांध के मिल्लत के पगड़िया, संभल के चलऽ डगरिया ना ।' उनका 'आजादी' नाटक में आइल ई गीत अंगरेजन के तड़वा चाटेवाला

जमीन्दारन के जमीन्दारी छोड़ के स्वदेशी आन्दोलन में लागे के सलाह देता- सइयाँ बोअऽ ना कपास, हम चलाइब चरखा । हम कातेब सूत, तू चलइहऽ करचा । हम नारा नुरी भरब, तू चलइहऽ करघा कहत रमूल, सइयाँ जइह मत भूल हम खादिए पहिन के रहब बड़का ।'.. एही नाटक में आजादी मिलला पर दूगो सोहर नियर गीत हवे-

"छोड़ द बलमुआ, जमीन्दारी परथा ।

' पन्द्रह अगस्त सन् सैंतालिस के सुराज मिलल

बड़ा कठिन से ताज मिलल । सुन ल हिन्दू-मुसलमान भाई

अपना देशवा के कर ल भलाई

तोहरे हथवा में हिन्द माता के लाज मिलल ।.....

अपना देश से दुश्मन भागल

हम भारतीय के भगिया जागल

कहे रसूल गा-गा के, अब हमनी के राज मिलल

बड़ा कठिन से ताज मिलल ।'

'मिल जुल गावs सब भारत के सखिया, आजादी मिलले । डालs जवाहर गले हार आजादी मिलले । कोई सखी गावे, कोई ताल बजावे कोई झूम-झूम गूंथेली हार, आजादी मिलले ।.....' आखिर में उनका जेल जाये के मार्मिक प्रसंग से हम आपन बात लोगन के विमर्श आ खोज खातिर तत्काल छोड़ रहल बानीं कि कलकत्ता के लाल बाजार पुलिस लाइन में १९४७ के पहिले १६४५-४६ ई. के लगभग रसूल के कार्यक्रम चलत रहे । नाच देखेवालन में जादेतर भोजपुरी भाषा-भाषी सैनिक रहस । रसूल उनका

के लक्ष्य कके एगो गीत गवलन-

'छोड़ द गोरकी के अब तू खुशामी बालमा एकर कहिया ले करबऽ गुलामी बालमा । देसवा हमार बनल ई आके रानी करे ले हमनी पर ई हुक्मरानी एकर छोड़ द5 अब दीहल सलामी बालमा एकर कहिया ले करब गुलामी बालमा ।' रसूल के एह गीत के प्रभाव में कुछ बिहारी सिपाही नोकरी छोड़ देलन । बकियो लोग छोड़े के मन बनावे लागल | जब अधिकारियन के ई पता चलल त

अंग्रेजी सरकार हरकत में आ गइल। रसूल के मार्कुस लाइन के उनका बाप के डेरा से गिरफ्तार कर लेल गइल । मार्कुल लाइन के बगले में तवायफन के चकुरिया गली

से डॉर में रस्सा बान्ह के उनका के थाना ले जाएल जात रहे। आगे-पीछे पुलिस,

गावेवाली देखवइया, बीच में रसूल गावत जात रहस-

'अगिया हमार बिगरल, अइनीं कलकतवा, बड़ा मन के लागल । नाहक में जात बान जेल, बड़ा मन के लागल । भुखिया लागल गइनी हलुवइया दुकनिया, बड़ा मन के लागल । देला नरियलवा के तेल, कहे घीउवे के छानल नाहक में जात बानी जेल, बड़ा मन के लागल ।"

बाद में त कहल जाला कि उनकर जमानत बेशवे सs आपन जेवर बेंच के लेलीसऽ । रसूल के शोहरत अइसन भइल कि पास के नवाब के बेटी उनका खातिर थाना गइली । भोजपुरी खदान के एह दबाइल हीरा के हमार बारम्बार सलाम ! खोदे आ खोदावेवाला डॉ. सुभाषचन्द्र कुशवाहा के कोटिशः धन्यवाद ।


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लेख
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"भोजपुरी नाट्यरंग आ भिखारी ठाकुर" एगो महत्वपूर्ण भोजपुरी साहित्यिक रचना ह जवन भारतीय साहित्य में आपन खास पहचान बनवले बा। ई रचना भोजपुरी के चर्चित कवि आ नाटककार भिखारी ठाकुर के जीवनी आ कला के समर्पित बा। भिखारी ठाकुर अपना लेखनी के माध्यम से सामाजिक समस्या, सांस्कृतिक द्वंद्व आ लोकप्रिय विषय प लगातार ध्यान देत रहले। एह रचना में उनकर भाषा सादगी आ लोकप्रियता के साथे साहित्यिक उत्कृष्टता के प्रतिबिंब बा।
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