shabd-logo

भोजपुरिया संस्कृति के कुछ बिसरत बात

22 October 2023

0 देखल गइल 0

1 भोजपुरिया संस्कृति के कड़ी में महेन्दर मिसिर, भिखारी ठाकुर, रसूल अन्सारी नियन एगो अउर कलाकार के नाम ओती घरी उमरल रहे ऊ नाम रहे- बनारस के नर्तक आ नाट्यकर्मी मुकुन्दी भांड़ के बाकिर आज ई नाम इतिहास के एगो पन्ना होके रह गइल बा बदलत दुनिया आ रूचि में अइसन बहुत कला, गीत आ नाच जेकर संबंध भोजपुरी से रहे, या त अब अलोपित हो गइल भा डूबे के कगार पर बा । जइसे 'पॅवड़िया नाच', 'नेटुआ नाच', 'बाकुम-गायकी', 'जोगी गायकी' आ मुहर्रम में तजिया के आस-पास गावल जायेवाला 'मर्सिया गीत' आदि । मुकुन्दी भांड़ पर चर्चा करे का पहिले इन्हन का बारे में संक्षेप में बतावल हम जरूरी बूझतानी, फेर मुकुन्दी भांड़ के चर्चा करब । पॅवड़िया नाच

पैंवड़िया, गरीब मुसलमान होत रहस जे सदियन से अपना पंवारा आ सोहर गायकी (बधावा) खातिर मसहूर रहस। जहाँ केहू कन बेटा भइल, ऊ बेटा वाला के दरवाजा पर पता लगा के तीन-चार के संख्या में धमक आवत रहस । हिजड़न के बधाई गीत से अलग तुतुही आ ढोलक बजाके पँवाड़न के ई टोली, मुसलमान के घर होय त बधावा आ हिन्दू के घर होय त राम आ कृष्ण के जनम से जुड़ल पौराणिक गाथा सुना के घर-भर के लोगन से नेग आ ईनाम बख्सीस लेत रहस। मुख्य कलाकार आ गायक शेरवानी पोशाक पेन्हले, कान्ह पर कवनो साड़ी (जे मोका मोका पर ओढ़ल जा सके) आ गोड़ में घुंघरू बन्हले नाच-नाच के गीत गावस, चुहल करस। इनकर खास वाद्य तुतही, एकतारा आ सारंगी के मिलल - जुलल रूप रहे आ घंटन गा के मनोरंजन कइल 'पंदारा' कहाय ई, पता लगा के लड़का के ननिहाल जल जास आ उहहूँ से ईनाम बक्सीस झटक लेस । आज बिहार में मधुवनी का लगे इनकर कवनो गाँव बसल बा, बाकि ई लोग अब दोसरा दोसरा पेशा में लाग चुकल बाड़न ।

'हे खग मृग, हे मधुकर श्रेनी, तुम देखी सीता मृगनयनी' आइल बा, कुछ हे ओही तर्ज में नाच आ गीत खतम भइला का बाद झट से दूगो बिरहिया खड़ा होके आशु कवि लेखा जजमान के घर दुआर आ सम्पन्नता के कवित्त में बरनन ( तारीफ) करत ईनाम बख्सीस जादे से जादे पावे के कोसिस करस जइसें, अगर दउरी में अनाज देवे केहू आइल त बिरहिया के कोसिस होय कि अनाज साथै दउरियो ओकर हो जाइत । ऊ गावे लागे-

नेटुआ नाव नेटुआ नाव हम धोबी जाति के बिआह में उनका गहँकी (जजमनिका) के दुआरे दुआर घूम के नाचल आ पइसा, कपड़ा, अनाज वसूलत देखले बानीं । पहिले त खास अंदाज आ सुर में 'आऽ.... आऽ...' क के गीत कढ़ावल जाए, फेर मरद नचनिया मानर (परवावज जइसन ढोलक) के थाप पर नाच-नाच के गावस । नचनिया के संख्या एगो भा दू गो होत रहे। शेष मानर बजवइया आ झाल-बजवइया होत रहस । गीत हम जवन सुनले बानी, ओकर कड़ी बा-

'हम तोंसे पूछीला चकवा, पूछीला एकऽ बात

एही बटिये देखलो ए सिया के हरले जात....।' साफ बा कि प्रसंग राम कथा में सीता हरण के बाद के बा। बुझला राम जंगल झाड़ी आ पशु-पंछी से सीता का बारे में पूछत फिरत बाड़न । जइसे 'रामचरित मानस' में-

'एक बात रउरा से कहीं का ए मालिक ! कहतो लागत मोरा लाजऽ...। भुजवा भुँजाइला, अँगवछी में खाइला से दउरी के बड़ा दुख बाऽऽ...।' आदि ।

बाकुम गायकी

'बाकुम गायकी' में बाकुम (बतक्कर) दुआरे दुआरे हँसोड़ कविता सुना के लोग के हँसावे के कोसिस करस आ बदला में ईनाम बख्सीस पावस अक्सर ईहो मुसलमाने बेरादरी के होत रहस । उनकर चेहरा चित्ती कौड़ी आ बटन टॉकल करिया कपड़ा से ढँकाइल होत रहे जवना में आँख तर देखे खातिर छेद होय । काँख में झोरी, हाथ में डंटा जेकरा एगो छोड़ पर कंकड़-पत्थर डालल एगो छोट टीन के डिब्बा बान्हल होत रहे। इहे डिब्बा हिला के 'खन् खन्' के आवाज करत ऊ चलस कविता कुछ अइसन होय-

'बुढ़िया माई घर घुमनी, कोदो के मांड़ पिये भर ढकनी अबहीं कम्मे वा....!

बुढ़िया माई, रोटी पकाई, लड़िकन के खाँड़ा-टुका अपने अढ़ाई

अबहीं कम्मे बा....!"

ऊ भीड़े बढ़ला पर अपना काम में बाधा देत छोट-छोट लड़िकन के डेरवावतो रहस फेर कवित्त शुरू कर देस- "नवका दरबार ह, बाकुम के सवाल ह मिल जाए चट से, चल जाई पट से...!' आदि ।

जोगी गायकी

हिन्दी साहित्य के मध्यकाल में सूफी सम्प्रदाय से मिलत-जुलत 'जोगी सम्प्रदाय' भी रहे जवना में हिन्दू-मुसलमान दूनों जोगी होत रहस। ई लोग अपना के गुरू गोरखनाथ के चेला कहे । गेडुआ रंग के लुंगी आ झूल पेन्हले सारंगी बजा-बजा के ई लोग भोरहीं गाँव के फेरा लगा जास, फेर दुआरी-दुआरी भर्तृहरी (भरथरी) आ गोपीचंद के संन्यासी बन जाये के कथा सारंगी साधे सुर में कह के लोगन में करूणा उपजावस । गीत के प्रभाव में औरत लोग खास कके भावुक हो जास फेर त गुदरी ( कपड़ा), अनाज आ पइसा के दान मिले लागे ।

कबीरदास लेखा गोरखनाथ के भी कहनाम रहे-

"हिन्दू ध्यावे देहुरा, मुसलमान मसीत ।

जोगी ध्यावै परम पद ना देहुरा ना मसीत ।। ' मतलब, हिन्दू देवालयय में थेयान करेलन, मुसलमान मस्जिद में, बाकि योगी (जोगी) ओह परम पद के धेयान करेलन जहाँ ना मंदिर बा ना मस्जिद । हिन्दू जोगी गायकी के कुछ उदाहरण वा-

१. निकलऽ.... निकलऽ मैना हो माई, हिरदय के रहलू कठोर उहे एकलीता बलकवा माई, बनी के अइले जोगी । अपने हो जनमलका माई, चिन्हत नइखू दुआरे तोहरे जनमलका माई, बन के अइले जोगी ।....

२. 'अरे जानत रहनी हे स्वामी जोगी बनवऽ, त काहे कइनी बिआह ? आरे बोझल नइया मोर बोड़ देहनीं, अब कइसे होइहें बेड़ा पार ? चोले वचनिया राजा भरथरी, तिरिया सुनऽ हमरी बात ! तहरे करम तिरिया राज लिखल बाड़े, हमरे करम बैराग । ....'

मुसलमान जोगी मुसलमानन घरे गावस- 'हासन घरवा से निकले ले बन के जोगिया ! उनका हथवा में तूमड़ी, बगल में झोरिया ! अम्मा खड़ी दरवजवा पूछेली बतिया- बेटा ! कवनी करनववा भइल जोगिया ?... अम्मा ! हमरी करमवा लिखल बा जोगिया ।" उत्तरप्रदेश में गोरखपुर से कुशीनगर आवत फोर लेन सड़क पर फाजिल नगर लगे एगो 'जोगिया गाँव' बा जहाँ आजो गेडुआ बस्तर आ सारंगी धइल मिल जाला । अनुमान बा कि ई जोगियन के गाँव रहे। बाकी अब इहहूँ जोगी गायकी इतिहास के पन्ना में बाँचल बा । मर्सिया गीत

मुहर्रम के 'मर्सिया गीत' तजिया या इमामबाड़ा पर औरतन का मुँहे समूह में होत रहे। मदद लोग भी बाँस के फाड़ के झाड़ अइसन बना लेस आ समूह में उहे बजा-बजा के गावस साथे डंको बाजे । एके उत्तरप्रदेश में 'जारी' या 'झारी-गीत' आ बिहार में 'झरना गीत' कहल जात रहे। पुराना जमाना में चूँकि दाहा (ताजिया ) हिन्दू-मुसलमान दूनों मिल के बनावस, निकालस, एह से गीतन के बरनन में अइसन बुझाला कि 'कर्बला' के घटना हिन्दुस्ताने में भइल होखे । एकरा पीछे कारण ईहो बा कि भारत के मुसलमान प्रायः हिन्दू धरम से इस्लाम में आइल बाड़न । आजो दूनों कौम के पास-पास घर-दुआर बा। एके लेखा खान-पान आ रहन-सहन बा । एह से एह गीतन में भारतीय परिवेश आ हिन्दू-संस्कार सुभाविक रूप से आ गइल बा। ऊपर के 'जोगी-गीत' में हसन के जोगी बनल एकरे सबूत बा। आगे के कुछ गीतन में भी हुसैन के बीबी के सेनूर लगावल, विधवा भइला पर माँग धोअल, चूड़ी फोड़ल इहँही के हिन्दू-रेवाज ह 'कर्बला' के लड़ाई त इराक में भइल बाकी गीत में गंगा-यमुना भारत के नदी आ गइल बा । जइसे

१. 'बेटी मैके से आया है खबरिया सईयद तोरे लड़ि गयो

बेटी सिखा के सेनुरा उतारs, सईयद तोर मरि गयो ।'

या

'मुड़वे न बान्हे पायो तेल न लगावै पायो, आइ गई काफिर से खबरिया रे हाय । सेन्हुरो न लगावे पायो, मंगिया न भरै पायो, आई गई मरन के हवलिया रे हाय !" २. 'करम में करबला हो झलके, दाँते झलके मिसिया दुलहिन के सेनुरवा हो झलेक, अँचरन में मोतिया ।'

"ये पार गंगा, ओ पार जमुना बिचवा बलुआ रेत ओही बालू रेतवा में मालिन, बगिया लगावेले, बगिया लगावे रे मालिन, फूलवा लोढ़ावेले, हारवा बनावे रे मालिन, हासन के पहिनावेले ।'

फूलवा लोढ़ावे रे मालिन, हारवा बनावेले,

मुकुन्दी भांड़

जइसन कि आलेख के शुरूए में वादा रहे, अब हम मुकुन्दी भांड़ के वृत्तांत लिख रहल बानीं । मुकुन्दी भांड़ बनारस के मलदइहा (लोहा मंडी, नीलकंठ महादेव मंदिर के पास, विवेकानंद कॉलोनी) के रहेवाला रहस भिखारी, रसूल आ महेन्दर मिसिर लेखा उनका मँड़ैती के लगभग ओही काल (१६४०-१६६५) में नाचे गावे आ औरतन नियन नखड़ा करे खातिर बहुते नाम रहे। लइकाई में हम सुनीं कि वेश्यन के गीत आ नाच में जतना औरतपन ना रहे, ओह से बेसी मुकुन्दी भांड़ में पावल जाय। कइक बेर, कड़क जगहा दूनों के कार्यक्रम साये रखाये आ मुकुन्दी भांड़ बाजी मार लेत रहस । भिखारी ठाकुर आ रसूल के नाचो पार्टी से उनका नौटंकी पार्टी के हाड़ा-होड़ी के बात लोग बतावे आ कहे कि झुमका गिरे के बात जादे कलाकार त गीते में गा के रह जास बाकी मुकुन्दी भांड़ गावत गावत अपना अभिनय में ओके गिरा के देखा देस ।

ऊ नौटंकी के नर्तक रहस आ उनकर नौटंकी पार्टी ऐतिहासिक आ सामाजिक नाटक करे । जइसे राणा प्रताप, सुल्ताना डाकू, चन्द्रगुप्त मौर्य आदि । मुकुंदी के नौटंकी में संगीत के जुगलबंदी आ नगाड़ा के बजावल कुछ अलग हट के मानल जाय। 'अलगोझा' नाम से उनका नौटंकी में एगो खास किसिम के साज भी रहे। उनको कार्यक्रम में पाँच-छव हजार दर्शक जुटस ।

भाँड़-संस्कृति राजा-महाराजा के दरबार में मनोरंजन करे के संस्कृति रहल बा। मुकुंदी भी बनारस के राजा सुमेर सिंह के दरबार में गावस आ बदला में राजा उनकर आर्थिक मदत करस। उनका मंडली में उनका अलावे मशहूर नर्तक रहस- लक्सरपुर (बनारस) के रामनाथ, सिकंदर आदि ।

मोजरा के बाद दिन में आ मोजरा के पहिले रात में शादी-बिआह के महफिल में भांड के कार्यक्रम होय। उनका आस-पास बनारस के जगतगंज, चेतगंज में भौंड़न के एगो बस्तिये बसल रहे। बाकी अपना प्रदर्शन से पूरा पूर्वी भारत में डंका बजा देवेवाला मुकुन्दी भांड़ अपना जिनगीए में अंदाज लगा लेले रहस कि आवेवाला दिनन में भांड़ संस्कृति जिन्दा ना रह पाई। मरे का बेरा अपना बेटन 'मेवालाल' आ 'मिठाई लाल' के अपना शुभचिन्तकन के हवाले करत ऊ सलाह देलन कि हमरा बाद हमरा परिवार के लोग ई पेशा ना करी । आ उनका बाद उनकर आवेवाला खानदान एह काम से दूर हो गइलन परिवार में फिलहाल एगो पोता बँचल बाड़न, जेकर नाम 'संजू' बा। मुकुन्दी के अनुमान साँच निकलल । अब त ना ऊ सामंती दरबार बा ना अपमान जनक मँड़ैती के पेशा सब अब इतिहास के विषयय बनल जाता, जेके भविष्य खातिर पढ़ल जरूरी बा....!

संदर्भ सोत :

किताब 'लोकरंग' (सं.- सुभाषचन्द्र कुशवाहा, प्रकाशन -ललोकरंग सांस्कृतिक समिति, लखनऊ 1)

7
लेख
भोजपुरी नाट्यरंग आ भिखारी ठाकुर
0.0
"भोजपुरी नाट्यरंग आ भिखारी ठाकुर" एगो महत्वपूर्ण भोजपुरी साहित्यिक रचना ह जवन भारतीय साहित्य में आपन खास पहचान बनवले बा। ई रचना भोजपुरी के चर्चित कवि आ नाटककार भिखारी ठाकुर के जीवनी आ कला के समर्पित बा। भिखारी ठाकुर अपना लेखनी के माध्यम से सामाजिक समस्या, सांस्कृतिक द्वंद्व आ लोकप्रिय विषय प लगातार ध्यान देत रहले। एह रचना में उनकर भाषा सादगी आ लोकप्रियता के साथे साहित्यिक उत्कृष्टता के प्रतिबिंब बा।
1

लोकधर्मी परम्परा आ भोजपुरी नाट्यरूप

21 October 2023
1
0
0

लोकधर्मी परम्परा आ भोजपुरी के नाट्य रूप - नाटक के लिखित प्रमाण के खोज में ऋग्वेद के कुछ सूक्तन पर हमार ध्यान पहिले जाई, जेकर हामी मैक्यूलर, ओल्डनवर्ग, विण्टरनिब्ज आ प्राध्यापक लेवी जइसन विद्वानो भरले

2

भोजपुरी लोक नाटक

21 October 2023
0
0
0

अइसे नाटक के जनम त आदमी के साथ ही मानल उचित कहाई जवन पहिले ओकर मनोरंजन आ नकल के कौतुक रहे बाकी आस्ते आस्ते जब ई संदेश देवे आ सुधार करेवाला हथियार मतिन चले लागल त कुछ लोगन से एकर टकराव स्वाभाविक रहे ।

3

डोमकछ ( टीका सहित नाटक )

21 October 2023
0
0
0

'जट जटिन' आ 'डोमकछ' मा 'डोमकच' मुख्य रूप से नारी कौतुक हिय जे बेटा के गइल बरियात के रात मरद ना रहला पर सुनसान पड़ल घर में गाँव के औरतन द्वारा रात भर धमा चौकड़ी, मनोरंजन आ आपन आजादी के एहसास का रूप में

4

नाटक के एगो सबल शैली: नौटंकी

22 October 2023
0
0
0

नौटंकी सर्वसाधारण में नाट्य विधा के एगो जानल- पहिचानल नाम ह, जेकर प्रदेशन काल्ह ले गाँव के धनियन के बरियात में दहेज के रूप में मोट रकम लेवेवालन का ओर से अपना बड़प्पन के धाक जमावे, पूजा भा पर्व त्योवहा

5

भोजपुरिया संस्कृति के कुछ बिसरत बात

22 October 2023
0
0
0

1 भोजपुरिया संस्कृति के कड़ी में महेन्दर मिसिर, भिखारी ठाकुर, रसूल अन्सारी नियन एगो अउर कलाकार के नाम ओती घरी उमरल रहे ऊ नाम रहे- बनारस के नर्तक आ नाट्यकर्मी मुकुन्दी भांड़ के बाकिर आज ई नाम इतिहास के

6

भोजपुरी खदान में दबाइल एगो हीरा रसूल

22 October 2023
0
0
0

महेन्दर मिसिर आ भिखारी ठाकुर के काल, भोजपुरी - लेखन कला लेके अबले तीन मूर्तियन गुने स्वर्णकाल लेखा बा। ईहो संयोगे बा कि तीनों जना पुरनका सारने जिला के रहे लोग दूगो के त लोग खूबे जनलन बाकी तिसरका, उत्त

7

नाटक- सड़क पर सरमेर सफर

22 October 2023
0
0
0

कला के क्षेत्र में आदमी सबसे पहिले नाचे के, फेर बजावे के आ तब गावे के सिखले होई । काहें कि गतिमान होके नाच में आ नाच थिर होके कथा में बदल जाले । कथा के मौन भइले नाटक के शुरूआत है। संवाद वाला नाटक त बा

---

एगो किताब पढ़ल जाला

अन्य भाषा के बारे में बतावल गइल बा

english| hindi| assamese| bangla| bhojpuri| bodo| dogri| gujarati| kannada| konkani| maithili| malayalam| marathi| nepali| odia| punjabi| sanskrit| sindhi| tamil| telugu| urdu|