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भोजपुरी लोक नाटक

21 October 2023

1 देखल गइल 1

अइसे नाटक के जनम त आदमी के साथ ही मानल उचित कहाई जवन पहिले ओकर मनोरंजन आ नकल के कौतुक रहे बाकी आस्ते आस्ते जब ई संदेश देवे आ सुधार करेवाला हथियार मतिन चले लागल त कुछ लोगन से एकर टकराव स्वाभाविक रहे । हमरा समुझ से भरतमुनि के 'नाट्य शास्त्र' में नाटक के जनम के कहानी आ ओह में भरत के जरिया सुधार के जवन प्रसंग आइल बा, ओके एही नजरिया से देखे के चाहीं इहेंही सुधारेवाला नाटक में जवन गंदगी आ भदेसपन के बात कहल गइल बा ऊ एने पावल गइल उपरुपकन से मेल खाले होय ना होय आदिकाल से आमजन के प्रतिनिधित्व करत चल आवत रहल लोकनाटके के तथाकथित सभ्य लोग ओतीघरी फेर-बदल कइल आ तब से लोकधर्मी आ साहित्यिक नाटक के दू गो धारा बन गइल जवना में पहिलका अपने मने डूबत-उतरात चलत रहल दोसरका में समय-समय पर हाथ लगावल गइल आ आज बदलत रूप में ई कलाकारन द्वारा मंचित होके नाटक कहाले ।

बाकी ईहाँ हम चर्चा खाली नाटक के पहिलका धारा के करब जवना के लोकधर्मी के अलावे परम्परावादी, आंचलिक आ लोकनाटक कहल जाला आ जवना खातिर अंग्रेजी में 'फोक ऐक्ट' शब्द तजवीज कइल गइल बा ।

परिभाषा आ पहचान के खयाल से लोकनाटक से मतलब अइसन नाट्य रूप से वा जवना के खेले में कवनो बनल बनावल मंच आ ताम-झाम के जरुरत ना पड़े। संगीत, नाच, बाजा आ हास्य-व्यंग्य के जवना में प्रधानता होले आ जवन आम जन जीवन के हरख-विषाद बिना कवनो रोक-टोक के व्यक्त करेले । जवना में नट, मुद्रा-वाणी, मुखाकृति आ वेश-भूषा से पात्र विशेष के शील के प्रत्यक्षीकरण क के दर्शक का साथे एक तरेह के सम्प्रेषण स्थापित कर लेला जेकर संवाद प्रायः मौखिक होले, एह से सामयिकता लेले पात्रों के व्यवहार अंग्रेजी के 'स्टाक कैरेक्टर' 

नियन वर्ग विशेष के गुण के दर्शावला । जवना के पौराणिक आ ऐतिहासिक कथानको स्थानीय रंग सहित व्यक्त होले ।

( राजा रामचन्द्र मंच पर चार चक्कर लगा के अयोध्या से लंका पहुँच जालन । शकुन्तला पतली कमर बलखाय रे' गा के नाचेली। बिदेशी टिसुना जगला पर बीड़ी पिये चल जालन फेर मंच पर हाजिर हो जालन ।)

समाजी, सूत्रधार या नट-नटिन जेकर कहानी आगे बढ़ावेलन । बैक ग्राउण्ड या सीनरी जवना में ना होय। दृश्य के कल्पना 'मौरेलिटी प्लेज' के तरेह कर लेल जाला । आ, जे सामूहिक जरूरत आ प्रेरणा से बनल होय का वजह से लोकवार्ता के कथानक, लोक विश्वास आ दोसर - दोसर लोक तत्त्वन के समेट के चलले । एह से लोग में प्रभाव पूर्ण आ चिन्हार बुझाला । लोग का बुझाला जइसे ओह में उनकर जिनगी चल रहल होय ।

लोकनाटक हमनी के जिनगी के एगो बहुते कीमती तत्त्व आ रंग परम्परा के एगो अद्भुत कड़ी हिय जे विभिन्न प्रकार से मध्यकालीन नाट्य रूपन में प्रवाहित होयवाली संस्कृत नाट्य परम्परा से मिलके संस्कृत रंगमंच से कहीं जादे विविधता लेले आजो अपना देश में जी रहल बा ।

भारत जइसन कृषि प्रधान देश में ई त जरुरीये बा कि हमनी के सृजनात्मक गतिविधि के बहुत-सा अंग के सूत्र लोक-जीवन में होय आ एकर प्रभाव जाने-अनजाने हमनी के चिन्तन, संस्कृति आ काम पर पड़त होय फेर अपना सांस्कृतिक परम्परा के का कहे के बात बा ? ई त लोक-संस्कृति में सनायेल बा जेकर प्रभाव ना खाली अनगिनत रीत-रेवाज, आचार-व्यवहार, पर्व-त्योहार आ समारोह आदि में पावल जाले, बलुक संगीत, नृत्य, चित्र आ साहित्यो एह से अछूता नइखे । अइसन में जो हमनी के नाटक आ रंगमंच एह से प्रभावित बा त एह में अचरजे का बा ?

कुछ फेर-बदल, ह्रास विकास के बादो भारत भर में जात्रा, नौटंकी, भगत, स्वांग, नकल, ख्याल, माच, भवई, तमासा, दशावतार, कूचिपुड़ी, यशगान, कीर्तनिया, अंकियानाट, रामलीलाला, रासलीला, बिदेशिया जइसन विभिन्न स्तर के प्रमुख लोक नाटक आजो मौजूद बा ।

जहाँ तक भोजपुरी लोकनाटकन के सवाल बा त एह सीमा में भोजपुरी क्षेत्र में पावल जायेवाला लोकनाटकन के चर्चा हमर अभीष्ट रही । अखियान करे के बात वा कि भोजपुरी प्रदेश में कुछ लोकनाटक त नाटक के रूप में पावल जालन । जइसे रासलीला, रामलीला, नीटंकी बिदेशिया आदि आ कुछ लोक व्यवहार से बड़ा आसानी से नाटक में छाँटल जा सकेला जइसे स्वांग सहित रामायाण- गायन, गोबी, गोंड या नेटुआ के ननाच, जोगीड़ा या पानी ना बरसला पर कइल जायेवाला टोटका (हरफरीरी) डोमकच या जट-जटिन आदि ।

आगे हम एह में से एक-एक पर संक्षेप में कुछ अलग-अलग कहे के कोसिस करब ।

रासलीला

रासलीला प्रचलित अर्थ कृष्ण चरित्र से संबंधित नाच, बाजा, आ तरह-तरह के अभिनयात्मक लीला के लोक नाट्य बा एह में नाच के साधे थोड़ा बातो-चीत के बाकी जायेतर गीत गवनई के प्रसार बा ।

रासलीला के उत्पति के विषय में श्रीमद्भागवत के साथ राधा आ दोसर - दोसर गोपी के अहंकार से कृष्ण के 'बिला जाये के आ फेर' गोपी लोग द्वारा उनकर स्मरण आ लीला कके प्रसन्न कइला से प्रकट के कहानी कहल जाला ।

एगो किंवदन्ती का मोताबिक एकर मेल मणिपुरी नृत्य परम्परा से बा । कालिया नाग - नाथन के बाद कृष्ण वृन्दावन के लोगन साधे नाच कइले रहस । ऊ असल में लोके नृत्य रहे जे के बाद में रास के नाम देहल गइल होई ।

बात चाहे जे होय रासलीला के नायक कृष्ण आ नायिका राधा होली । खलनायक कंस नायक-नायिका आ सखी लोग पद्य में बातचीत करेला जबकि कंस से गद्य में बोलवावला के परिपाटी बा। बातचीत मुँह जबानिये चलेला आ कहीं-कहीं मंगलाचरण से लेके आशीर्वचन तक के तत्त्व ओ में मिलेला रासलीला के हँसोर 1 पात्र 'मनसूखा' कहाले ।

मंच सादा होले। पीछे एगो पर्दा टांग दिआला जेकरा के 'पिछवई' कहल जाले । गवैया बजवइया के बइठे के इन्तजाम मंच पर रहेले ई लीला हास्य मिश्रित शृंगारिक होले जवना के शुरु आ आखिर में आरतीयो एगो विधी है। एगो संवाद के उदाहरण ली-

"कृष्ण चलिये सघन बन की ओर श्रीमम प्राण पियारी । बोले चातक, मोर फूली अति फुलवारी । राधा मैं न चलू बन की ओर तू नटवर गिरधारी । तुम प्रीतम चितचोर उल्टी रीत तुम्हारी ।

दर्शक भगवान कृष्ण की जय !"

रामलीला

रामलीला के शुरूआत तुलसीदास से मानल जाला बाकी श्री जगदीशचन्द्र माथुर तुलसी रामचरित मानस के नाटकीय वर्णन कहले बाड़न एह अर्थ में रामलीला के परम्परा तुलसी के पहिले से माने के पड़ी रामलीला ना खाली उत्तर भारत में बलुक थोड़का- मोड़का हेर-फेर का साथै पूरा भारत वर्ष में राम भगत लोग के धार्मिक मनोरंजन करेला ।

बिहार में रामलीला करेवाली मण्डली अक्सर गाँवन में नाटक के रूप में उसे रामलीला करत देखल जाली जेकर कमीनी पूर्णाहुती के दिन गँवई लोग के चढ़ावा से होला ।

उत्तरप्रदेश में केतना जगह रामलीला प्रदर्शन कवनो एक मंच पर ना होके पार्ट-पार्ट अलग-अलग जगहा मंच बना के खेलल जाले । जइसे बनवास के लीला बइगचा में, समुद्र पार के प्रसंग कवनो नदी या पोखरा तर आ राजतिलक के घर आदि में

एक तरह से आउर एकरा मंच के व्यवस्था होले जे में बड़का मैदान के एक छोर पर लंका, दोसरका पर अयोध्या, बीच के मंच पर अभिनय के स्थान राखल जाला । पाठक आ धारक मंचे पर एक तरह बइठेला लोग । खेल शुरु भइला पर लंका से चल के रावण आ अयोध्या से चलके राम बिचला मंच पर आवेलन आ तब नाच, गाना आ जबानी पद्य में बातचीत से नाटक के कथा आगे बढ़ेला । ग्रामीण अलंकरण आ रंगलेपन एह नाटक के खूबी है। राक्षस मात्र मुखौटा से आपन काम चलावेलन ।

नौटंकी, स्वांग भा भगत

नीटंकी के जन्म के कहानी में मत-मतान्तर बा शुक्लजी एके रीति काल ( संवत् १७०० ) से मनले बानीं, डॉ. रामबाबू सक्सेना उर्दू लोकगीत से आ श्री कालिका प्रसाद दीक्षित पंजाबी के 'हीरराँझा' के कहानी से ।

संक्षेप में ११वीं - १२वीं शताब्दी में एकर जन्मकाल माने के चाहीं । जन्मदाता मल्ल (जाट), रावत (राजपूत) आ रंगा (जुलाहा ) बतावल जालन जे लोग ढोलक पर अभिनय करत चले। १३वीं शताब्दी में ई अमीर खुसरों के कोसिस से विकसित भइल आ १८वीं शताब्दी तक पूरा उत्तर भारत में फइल गइल । एके 'स्वांग' आ "भगत' नामो से जानल जाला। वइसे कुछ के मोताबिक स्वांग आ भगत अलग चीज है। सचहूँ तीनों में तनिक अन्तर हटे। उर्दू के एगो छन्द 'बहरे तबील' (वहर = छन्द, तवील = लम्बा ) आ नगाड़ा नौटंकी के खास विशेषता है। नौटंकी चौकी के मंच पर पीछे एगो परदा टांग के होले। मंच के एक कोना में लोग के देखात नागाड़ा वाला बइठेला मंच पर रखल कुर्सी सिंहासन के काम देला जे पर राजा आ देवता बइठेलन । बाकी पात्र खड़े-खड़े काम चला लेलन । डायलाग बोलत खानी पात्र एक तरफ से दोसरा तरफ आवत-जात रहेला हँसोर 'पात्र' 'जोकर' कहाला । पुरनका नौटंकी में अमानत के 'इन्दर सभा' बहुते प्रसिद्ध भइल । नया में लैला मजनू, शीरी-फरहाद, जहाँगीर के न्याय आदि लोकप्रिय ह । आजकाल ई सिनेमा से प्रभाव लेके बिकृत होत जात बिया । एकरा संवाद के एगो उदाहरण देखल जाय ।

"ऐ रावण तू धमकी दिखाता किसे मुझे मरने का खौफो खतर ही नहीं । प्यारी तेरे इश्क में हुआ हाल-बेहाल " साथही नागाड़ा के 'कर-कर करे धम्म- धम्म ।'

या

बिदेशिया

'बिदेशिया' संगीत, नाच आ नाटक के मिलल जुलल लोकप्रिय मनोरंजन ह जेके अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिष्ठित करे के श्रेय भिखारी ठाकुर के सिर जाई । अइसे त बिदेशिया के तत्त्व पहिलहूँ से लोक गीतन में चल आवत रहे आ एकर स्रोत १८५७ ई. तक मिलेले बाकी भिखारी के नाटक 'विदेशिया' के लोकप्रियता से अइसन शैली के सब नाटक, प्रदर्शन आ मण्डली अब 'बिदेशिया' कहाले ।

सामयाना में चौकी के मंच पर चाहे लोगन के बीच गोल में खाली जगह

बना के बिदेशिया के मण्डली बइठ जाले । पहिले त नाच-गाना चलले फेर नाटक

शुरु हो जाले । नाटक के शुरुआत ठीक पुरनका ढंग पर यानी पहिले समाजी द्वारा

समूह में स्तुती गायन (मंगलाचरण), फेर सूत्रधारीय के जगह दल के प्रधान के

प्रवचन आ बाद में तमासा । नाटक सामयिक, पारिवारिक आ समाज सुधार पर

आधारित होले ।

पात्र नाच नाच के पद्य आ गीत में संवाद बोलेला । कुछ गद्य बात-चीतो

से काम लेल जाला । औरत के नकल मरदे करेला । कथोपथन जबानी इयाद रहेला। बीच-बीच में हँसावे आ दर्शक से जोड़े के काम या त नाटक के पात्रन से लेल जाला भा लबार (विदूषक) से । इहाँ भिखारी के प्रसिद्ध नाटक 'बिदेशिया' से उदाहरण प्रस्तुत बा-

"बिदेशी- हम जाइब परदेश के, घर में करऽ बहार । बरस दिनन पर आइब, सुनिलऽ छैल-छबीली नार ।

प्यारी चल जइबs परदेश के, घर में रहब अकेल ।

कहे भिखारी कइसे चलिहें, बिन इंजन के रेल ।

समाजी एक बटोही तेहि अवसर आये ।

जेहि से प्यारी दुःख सुनाये । बटोही- बबुआ ई के ह ?

बिदेशी- रण्डी ।

बटोही केकर ?

विदेशी नीज के ।

बटोही धइलऽ राह गलीज के ।"

धोबी, गोंड़, नेटुआ, जोगीरा, हर फरौरी आ जट जटिन भोजपुरी लोकनाटकन के एह चर्चा में जो स्वांग सहित गावल जायेवाला

रामायण, धोबी, गोड़, नेटुआ के नाच, फगुआ के अवसर पर निकालल जायेवाला हास्य-व्यंगय के मनोरंजक जुलूस (जोगीरा ) सुखार के समय पानी बरसे खातिर कहल गइल टोटका ( हरफरीरी) आ शादी के रात औरतन के कौतुक, डोमकच या जट-जटिन) के बात ना आई त बात अधूरा रही। कइल गइल नाचन के बीच में हँसोर पात्र के बात बनावल लतीफाबाजी आ अश्लील शब्दन के व्यवहार से लोक मनोरंजन करे के ढंग एकनी के नाटक के नजदीक ले आवेला ।

धोबी के नाच में बिरहा के जरिय सवाल-जबाव एगो अलगे समा बाँध देला ।

"एगो दल कहेला केकरा तलइया में झिकमिक पनिया से केइये करेला असनान रे जोड़ी......

दोसर दल राम के तलइया में झिकमिक पनिया से सियाजी करेली असनान रे जोड़ी..... ।”

गोड़ के नाच में धुथकी (एक तरह के बाजा) बजा-बजा के उछिलत-कूदत आ गंदा गंदा बातन से लोग के मनोरंजन कइल जाला ।

नेटुआ के नाच में पखावज लेखा एक-एक ठो ढोलक दुगो बजवइया डाँड़

में बान्ह के दू तरफ खड़ा हो जाले। एगो या दूगो झालो बजावे वाला होला । एगो दूगो औरत के भेष में नाचेवाला नाचेला । गीत सामूहिक रुप में गावल जाला । इनका गीतन में एगो अलगा अलाप (आऽऽ आऽऽ...) इनकर अलग

पहचान करावेला ।

जइसे "हम तोसे पूछिला चकवा, पूछिला एक बात एही बटिए देखलो ए सिया के हरले जात । 

(आSS.....)

 जोगीरा के कबीरो के नाम से जानेला लोग एह में पद्यात्मक जवाब सवाल आ अन्त में जोगीरा सा रा रा रा आ 'कहो बाह-बाह' आ एह घरी ढोलक के बोल विशेष एकर विशेषता कहाई ।

हरफरौरी बरखा ना भइला पर गाँव के औरतन द्वारा इन्द्र आ मेघ देवता से पानी बरसावे खातिर अनुनय-विवनय में गावल जायेवाले सामूहिक गीत के कहल जाला । ई नाटक के रूप तब ले लेला जब ईहे औरत सब कवनो रात खुद हर बैल लेके खेतन में पहुँच जाली आ हर चलावत गीत गावत गाँव के नामी गिरामी मरद के नाम रेकार में पुकारत पानी के मांग करेली ।

अइसहीं रामायण गावत बेरा बइठल गोल में दू दलल बनके जब धनुष, बाण आ फरसा से अभिनयात्मक हाव-भाव लेले राम-परशुराम संवाद चलावे लोग त ऊ स्थिति लोकनाटक के हो जाला ।

'जट जटिन' साँच पूछी त लोकगीत आ आँचलिक नाट्य के बीच के अवस्था के नमूना रहे। जवन शादी के रात मरद के गैरहाजरी में रतजग्गा के नीयत से औरतन द्वारा बिना कवनो योजना आ दबाव के कइल मनोरजन ह एह में नाटक का रूप में शादी के खुशहाली से लेके ननद-भउजाई तक मजाक आ बेटी बिदाई सहित लइका होखे तक के स्वाँगो होला । औरते मर्द के भेष घरेली। एह तरेह से भोजपुरी लोकनाटक भोजपुरिया जनजीवन के दस्तावेज ह जवना में भोजपुरी आमजन के भूत, वर्तमान त बड़ले वा, विभिन्न नाट्याभिनय में

शिल्प के रूप में व्यवहृत होके ई आज भविष्य के दुखद सुखद संभावनो के परत

खोले लागल बा ।

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लेख
भोजपुरी नाट्यरंग आ भिखारी ठाकुर
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"भोजपुरी नाट्यरंग आ भिखारी ठाकुर" एगो महत्वपूर्ण भोजपुरी साहित्यिक रचना ह जवन भारतीय साहित्य में आपन खास पहचान बनवले बा। ई रचना भोजपुरी के चर्चित कवि आ नाटककार भिखारी ठाकुर के जीवनी आ कला के समर्पित बा। भिखारी ठाकुर अपना लेखनी के माध्यम से सामाजिक समस्या, सांस्कृतिक द्वंद्व आ लोकप्रिय विषय प लगातार ध्यान देत रहले। एह रचना में उनकर भाषा सादगी आ लोकप्रियता के साथे साहित्यिक उत्कृष्टता के प्रतिबिंब बा।
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