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लोकधर्मी परम्परा आ भोजपुरी नाट्यरूप

21 October 2023

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लोकधर्मी परम्परा आ भोजपुरी के नाट्य रूप

- नाटक के लिखित प्रमाण के खोज में ऋग्वेद के कुछ सूक्तन पर हमार ध्यान पहिले जाई, जेकर हामी मैक्यूलर, ओल्डनवर्ग, विण्टरनिब्ज आ प्राध्यापक लेवी जइसन विद्वानो भरले बाड़न । बाकी कन्नड़ भाषा के जानल मानल नाटककार श्री आद्य रंगाचार्य के भावना बा कि "वैदिक आ संस्कृत साहित्य पर शोध करे में जब पछिमी विद्वान के रूचि जागल तब भारतीय रंगमंच के मतलब मोटामोटी संस्कृत के नाटकन से रहे.... जबकि एकरा से अलग धर्म आ भाषा का स्पष्ट विभिन्नता के बादो शुरूआते में ना आजोकाल एगो भारतीय रंगमंच रहे आ बा । • संस्कृत नाटकन से पहिले इहे भारतीय रंगमंच भारत के लोग के रंगमंच रहे । भारतीय रंगमंच के उद्भव कब आ कइसे भइल, ई बतावल आसान नइखे, बाकी खाली भारतीय काहे, कौनो रंगमंच के उद्भव कब भइल, ई ठीक-ठीक बतावल असंभव बा । ..जे के हम उद्भव माने के कोसिस करीले साइत ऊ मंचन के शुरूआत रहे जब रंगमंच एगो सामाजिक कला के रूप में विकसित भइल । " ( भारतीय रंगमंच, ले. आद्य रंगाचार्य, अनुवादक- शुभा वर्मा, प्रकाशक- नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया, नयी दिल्ली, पृ. २)

आधुनिक परिभाषा में नाट्यकला सर्जनात्मक अभिव्यक्ति के ऊ रूप हटे, जे में मुख्यतः कवनो संवाद मूलक आलेख भा कथा के अभिनेतन के जरिये दोसर रंग शिल्पियन के मदद से कवनो मंच भा रंगमंच पर देखेवालन के सामने प्रस्तुत कइल जाला ।

आगे श्री रंगाचार्य ऋग्वेद के यम यमी संवाद के हवाला देत कहत बाड़न कि- "एह नाटकीय बातचीत के अलावे मंच पर एगो दृश्य बनल लउकता, समुद्र के किनारे एगो विशाल स्थान के एकान्त स्थल ओकरा साथ एगो भावनात्मक परिवेश विकसित भइल बा। एह तरेह के रचना नाटक के मूल ना हो सके, बलुक 1 रंगमंच के अस्तित्व के आभास एह से मिलता। एह से ई कहनाम कि भारतीय रंगमंच के आभास वैदिक मंचन से होता सही ना होई निश्चित रूप से एकर आरम्भ बहुत पहिलही हो चुकल रहे। पर्याप्त प्रमाण के अभावो में हमनी का ई सँकारे के होई कि उपरूपक किसिम के रंगमंच शुरूआतिये दिन से होई । इहे रंगमंच एगो खास समय तक आवत आवत भारत के निम्न, अश्लील आ अनुशासनहीन रंगमंच बन गइल । आ तब देवता आ ब्राह्मण लोग परिष्कृत कके एके वस्तुपरक बनावे के निर्णय लेलक ।

संस्कृत में नाटक पर सबसे पुरान कृति 'नाट्यशास्त्र' (जेकर रचना-काल ई. पू. तीसरकी शताब्दी मानल जाला) के लेखक भरतमुनि नाटक आ रंगमंच के उद्भव से अनजान लागताड़न ना त एक तरफ 'नाटक के सिरजन ब्रह्मा कइलन' कहके जहाँ ऊ नाटक के महातम बतावल चाहताड़न उहहीं ईहो विरोधाभास बा कि - 'ब्रह्मा द्वारा संरचित नाट्यशास्त्र व्यावहारिक प्रयोग खातिर अत्यधिक सैद्धान्तिक, अधिक दुःसाध्य आ एकदम अस्पष्ट रहे, एह से भरतमुनि से कहल गइल कि ऊ एह कृति के सहज, व्यावहारिक आ उपयोगी बना देस ।'

आखियान करे के बात बा कि जवन ब्रह्मा पिरथीमी बनवलन, उनकर सिरजल नाटक में खोट कइसे निकल गइल ?

लगले भरत के नाट्यशास्त्र के एगो आउर कथा पर ध्यान देवे के काम बा, आ ऊ ई कि चारों वेद बन गइला पर देवता लोग खुद ब्रह्मा कन जाके कहल कि- 'दुनिया के लोग अश्लील राह पर चल पड़ल बा । ऊ लोग लालची, डाही, झगड़ालू हो गइल बाड़न । ऊ नइखन जानत कि ऊ खुश बाड़न कि दुखी । एह से मनोरंजन खतिरा कुछ अइसन चाहीं जे हम देख सकीं, सुनियो सकीं। शुद्रन के पहुँच वेदन तक ना हो सके। एह से पंचम वेद के सिरजन करी जे सब जात खातिर सुगम होय ।' (नाट्यशास्त्र, भरतमुनि १६-१२)

साफ बा कि पहिले से तथाकथित गंदगी से भरल रंगमंच लोकनाटकने के रहे याने साधारण लोग के रंगमंच के जेके भरत शुद्र सम्बोधित कइले बाड़न आ तथाकथित ब्रह्मा के कहे से ओकरा सफाई के बीड़ा उठवले बाड़न ।

अलंकार आ नाट्यकला के एगो किताब “साहित्य दर्पण" ( १४वीं शताब्दी ईस्वी) में अइसन अट्ठारह उपरूपकन के चर्चा वा जेह में अधिका त नृत्यनाट्य वा जादेतर निम्न चरित्र आ गंदा हँसी-मजाक वाला बा। कुछ के सम्बन्ध प्रेमकथा से वा । अधिकांश के भाषा 'बोली' ह। अनेक में त भारतीय परम्परा के सरबबेयापी सूत्रधारो के पता नइखे ।

'दि इंडियन थियेटर' (१६१२ ई.) में 'ई.पी. हारविज' कहताड़न कि संस्कृत नाटक निस्संदेह प्राकृत नाटक के सम्प्रान्त लेखकन से दिशा निर्देश लेके लिखल गइल (पृ. २६) हो सकत बा लेखक सम्भ्रान्त नाहियो रहल होखस आ भषो प्राकृत ना होय बाकी ई त निश्चित बा कि भरत आ संस्कृत नाटकन से बहुत पहिले बोली में नाटकीय प्रदर्शन होत रहे। ई आज लेखा तब के लोकनाटके होइहें स जेकर संशोधित रूप संस्कृत नाटक ह ।

भरते के नाट्यशास्त्र में इन्द्र के ध्वजारोहन समारोह के अवसर पर देवासुर संग्राम नाटक खेलत खानी असुरन द्वारा उपद्रवो ( जवना में इन्द्र का ध्वजा के बेंट से असुरन के पिटाई करेला पड़ल रहे) करे के एगो कहानी लिखल बा । मंच खातिर सुरक्षा के बिचारो तबे सोचावट में आइल ।

नाटक करे आ लिखे, दूनों में आइल ई बदलाव शिष्ट आ साहित्यिक नाटक के बीज रहे, जवना में बड़ा चालाकी से नाटक के धारा कुछ मुट्ठी भर बड़ लोग का ओर मोड़ दिहल गइल । तत्काल हमरा इहाँ दरकार नाटक के पहिलके धारा से बा ।

परम्परावादी नाट्य कला के विशेषता भोजपुरी के नाट्यकला पर कुछुओ कहला से पहिल हम लोकनाट्य के सम्मिलित विशेषता का ओर ध्यान दिआवे के चाहतानीं ।

भारतीय नाट्य सिद्धान्त में नाटक के उद्देश्य ह-अभिनय क्रम में व्यंजना का माध्यम से रस के अनुभूति देल । व्यंजना खातिर अनुभाव संचारी आदि के

जरूरत पड़ेला ।

लोकनाटकन में नट, मुद्रा, वाणी, मुखाकृति आ वेश-भूषा से पात्र विशेष के शील के प्रत्यक्षीकरण करेला आ एह तरेह से दर्शक का साथ एक प्रकार के सम्प्रेषण स्थापित हो जाले ।

अइसन नाटकन में रूढ़ पात्र के होखतो विविधता एह से आ जाले कि एक पात्र अधिक रस के वाहक हो सकेला । विविधता के आधार रस बा ना कि यथार्थ जिनगी के अनुभूति ।

दोसर बात ई बा कि एह नाटकन में संवाद मौखिक भइला का वजह से ई अनिवार्य हो जाले कि पात्र के व्ययवहार वर्ग विशेष के गुण के अभिव्यक्ति करे । एकरे के अंग्रेजी में 'स्टाक कैरेक्टर' कहाला एह तरह के नटन में रूढ़ी खाली रूपरेखा के काम करेला आ ओह रूपरेखा का दायरा में नट अपन मौलिक प्रतिभा से पात्र के चित्र पूरा कर लेला ।

लोकनाटकन के पात्र अपना विशेषता से विभूषित होलन । ऊ प्रायः जान-पहचान आ प्रचलित समाजगत प्रवृत्ति के वाहक होलन । खूसट बुढ्ढा, झगड़ालू सीत, दुर्गुनी पति, ढोंगी साधु, कर्कसा सास आदि अइसने पात्र होलन । पौराणिक आ ऐतिहासिक कथानकों में पात्र के प्रवृत्ति स्थानीय रंग सहित व्यक्त होले जे में काल आ स्थान के भेद ना रखल जाय। राजा रामचन्द्र अयोध्या से लंका जाय खातिर मंचे पर चार चक्कर लगा लेवेलन आ लोग उनका के लंका पहुँच गएल बूझ लेला ।

बिदेसियया शैली के मण्डली के पात्र अभिनय करत-करत अपन काम खतम कके मंचे पर बइठ के साज बजावे लागेला, चाहे बीड़ी पीये लागेला फेर दोसर वादक साज छोड़के अपना भूमिका में खड़ा हो जाले ।

नौटंकी आ स्वांग के नट एक तरह के संकेत के व्यवहार बराबर करत रहेला । संवाद बोलत खानी एक- दोसरा के विपरीत मंच के एह कोना से ओह कोना जात आवत रहेला ।

रूप सज्जा (मेकअप) में गेरू, भट्ठा, कालिख, मुर्दाशंख आ पावडर आदि से काम चला लेल जाला । मुखौटो के काम पड़ेला पात्र अपन अपन परिचय खुद खोलेला ना त समाजी आ सूत्रधार कह देवेला ।

साज-सज्जा में दइत के कपड़ा काला, कमर मोट आ राजा आ देवता के कत्थई, कमर पातर के ध्यान राखल जाला ।

संगीत लोकनाटकन के शक्ति बा। ऊँच आवाज आ सामूहिक जोरदार ध्वनि दर्शक आ नटकिया दूनोंके प्रभावित करेला । संवाद के बोल बिना वाद्य के सहायता के खुलबे ना करे। कबो-कबो 'ए-हाँ' आदि सामूहिक बोली से ताल देवे के काम कइल जाला ।

हास्य परम्पराववादी नाटक के प्राण होले। हँसोर पात्र ( जोकर या लबार) के कवनो दृश्य में आके हँसा जाये के आजादी रहेला ओकर गद्यो लच्छेदार होले आ ओकर रोअलो लोग के हँसा हँसा के पेट फुला देला 1

मंच व्यवस्था में बैकग्राउण्ड आ सीनरी त होखने ना करे। ग्रीन रूम खातिर एगो अलग तम्बू मिल गइल त ठीक ना त तथाकथित मंचे पर मेकअप आ परिधान परिवर्तन हो जाले दृश्य चलत खानी पात्र दर्शक के आ दर्शक पात्र के टोक सकेला । केहू के कुछ अटपट ना लागे ।

दृश्य के कल्पना 'मौरेलिटी प्लेज' के तरह कर लेल जाला । सब पात्र अपना जिम्मेदारी से परिचित होते आ सबके सब तरेह के कामकरे के पड़ेला ।

लोकधर्मी नाटक के अव्यवस्थो व्यवस्थे कहाले ।

परम्परा में भोजपुरी के नाट्य रूप लोकधर्मी, परम्परागत मा लोकनाटकन के एह धारा में बंगाल के जात्रा,

उत्तर प्रदेश के रासलीला, बिहार आ उत्तर प्रदेश के रामलीला अउर एही दुनो प्रान्तन

के स्वांग, भगत भा नौटंकी अपन अलग-अलग विशेषता का साथे भोजपुरी क्षेत्र में

प्रदर्शित होत आइल बाड़न स एह से ई ना खाली भोजपुरी खातिर परिचित आ

लोकप्रिय बाड़न सs बलुक इन्हन के अगर भोजपुरी के लोकनाटकन में गिनल जाय

त कवनो अत्युक्ति ना होई ।

धोबी नृत्य, गोंड़-नृत्य, नेटुआ नृत्य, जोगीरा आ हरपरौली (पानी ना भइला पर गावल जायेवाला गीत आ टोटका ) बड़ा आसानी से नाटक के व्यापकता में भोजपुरी के परम्परावादी नाटक कहाई ।

जट-जटिन, डोमकच आ बिदेसिया के त बिना शक भोजपुरी नाटक के

एह श्रेणी में स्थान बा । एह सब नाटकन में मिलल जुलल आ अलग-अलग पावल जाये वाला विशेषता हम पहिलही लोकनाटकन के विशेषता में बता आइल बानी ।

एकरा अलावे रामायण गावत खानी दू दल आ व्यक्ति में गेय संवाद आ एह क्रम में फरसा, तीर-धनुष, बाँसुरी आदि देखा के क्रमशः परशुराम, राम-लक्ष्मण आ कृष्ण आदि के तनिक अभिनय ( हावय भाव) से आभास करावल एह रामायण गायन के नाटक के नजदीक ले आवेला ।

आगे चलके किरतनिया भाई लोग भक्ति में वशीभूत 'सरूप' बनके एके आउर स्पष्टता प्रदान कके रास आ रामलीला के लगे ले आवेला ।

जो मंच के बात छोड़ दीं त राम विवाह, शिव विवाह आ राधेश्याम लीला आदि नाम से लिखल संवादयुक्त कीर्तन एह धारा के नाट्य पुस्तक का रूप में मेला बाजार आ शहर के फुटपाथ पर विकात मिल जइहन स ।

छपरा-सोनपुर का बीचे अवतार नगर स्टेशन के सटले फकुली गाँव में जनमल बसुनायक के लिखल रामायण एही शैली के किताब ऐने देखे में आइल ह । महाभारत आ रामायण के नाटकीयता से इन्कार ना कइल जा सके। एक मत के अनुसार त 'लव कुश' राम के बेटा ना, दुगो नटकिया रहे लोग जे राम के सामने समूचा राम कथा के अभिनय कके सीता के करुणा दरसवलक लोग आ राम प्रभावित भइला बिना ना रह सकले ।

- सुने में आवेला कि भिखारी के समकालीन सीवान जिला के रसूल अपना नाच पार्टी में ढोलके पर नगाड़ा बजाके कवनो तमाशा नौटंकी शैली में करस ।

तनी-मनी एने औने कके, भिखारियो ठाकुर अपना मंच से एह शैली में 'राम-विवाह' आ 'राधेश्याम बहार' प्रस्तुत करत रहस ।

भिखारी के पहिले बक्सर निवासी रामसकल पाठक 'द्विजराम' के 'सुन्दरी- विलाप' आ ओकरो पहिले मीरगंज (गोपालगंज) के नजदीक बसल सुन्दरी आ दुनिया बाई के गिरोह में बिदेसिया, ननद-भउजाई आ राधा-कृष्ण से सम्बन्धित भइल नाटक लोकतत्त्व में अइसन नाटकन के लमहर आ पुरान परम्परा का ओर संकेत करता । कवनो गुद्दर राय के नामो लिहल जाला ।

आज के बदलल स्थिति में एकर प्रभाव ई बा कि 'अँजोर जी' के एगो गीति नाट्य आ श्री अविनाशचन्द्र विद्यार्थी के 'लीला ई श्री राम श्याम के एकरे दर्रा पर लिखाइल हमरा जानकारी के कृति बाड़ी सऽ ।

एह धारा में बढ़त गोड़ का रूप में 'इप्टा' (पटना) के प्रस्तुति का रूप में भिखारी के 'गबरघिचोर', 'विशाल' (पटना) के प्रस्तुती का रूप में भिखारी के 'बिदेसिया' के पढ़ल - लिखल कलाकार द्वारा अपना ढंग से पेश कइला से परम्परावादी नाटक के विकृत बाकी नया रूप उजागर होता ।

एही क्रम में हृषिकेश 'सुलभ' रचित आ कला संगम (पटना) द्वारा मंचित विदेसिया शैली कहके प्रस्तुत 'अमली' आ 'माटी गाड़ी' पुरान शिल्प में नया थीम का दिसाई हिन्दी के 'बकरी', 'आगरा बाजार' आदि के समानान्तर भोजपुरियो में समसामयिक प्रयोग कहाई । संभावना

भोजपुरी नाटक के साहित्यिक पक्ष हम छोड़ आइल बानी एह से संभावना के ई कहनामो एकपक्षीय कहाई तबो यदि हम सामान्य नाटकन के सफर पर एक नजर डाल लीं त पायेव कि ई अपना जगह से चलके परम्परावादी, संस्कृत नाटक, हिन्दी के फ्लैट नाटक, इव्सन के समस्या के बाद अब एब्सर्ड भा नुक्कड़ जइसन बिन्दुअन पर पहुँच गइल बा। मंच के दृष्टि से बाँस, बल्ला के घेरा फान के, होल के चहारदीवारी से बाहर खुलल छत के नीचे घास जामल मैदान (Open theatre) में विश्राम लेता ।

एने के समाचार में बिना कवनो पूर्व योजना के दर्शक में से केहू से अनायास संवाद बोलवा लेल आ ओकरा के नाटक में सामिल कर लेल मंच आ दर्शक के दूरी खतम करे का और एगो प्रयोग चल रहल बा ।

अइसन प्रयोग के उद्देश्य भ्रमवादी रंगमंच के अलगापन के समाप्ति ह । अभिनेता के चमत्कारिक प्राणी माने से इन्कार कइल बा स्थान के अइसन इस्तेमाल कइल ह जेह में दर्शक आ पात्र एक इकाई बन जास आ रंगमंच पर मंचित नाटक के जिनगी के एक हिस्सा समझ लेल जाय ।

ई कवनो नया बात नइखे बलुक नाटक में दर्शक के हिस्सेदारी ओतने पुरान बा जेतना पुरान रंगमंच के इतिहास । आ इतिहास अपना के प्रकारान्तर से दोहरावेला । बाकी अइसन बुझाता कि १६वीं सदी में पश्चिमी रंगमंच के प्रभाव के अन्तर्गत हमनी जे शहरी रूप विधान अपनवलीं ओमें अपना प्राचीन स्वरूप के भुला देलीं । काहे कि नाटक में हमनी के सोचे के प्रक्रिया भावात्मक ना हो सकल बा। हमनी कवनो समस्या के मोट ढंग से पकड़ले बानी आ ओकर सतही इलाज खोजले बानी । एब्सर्ड नाटकन के एह दौर में सिर पर मड़रात आर्थिक आ शस्त्रीय युद्ध से बेखबर हमनी नाटकन में आजो निखालिस मनोरंजन खोजिले। एके जिनगी से अलगा के तमासा बुझीले । लड़िकन के त बहुधा बड़लोग के जूठने पर पले के पड़ेला जवन भोजपुरी नाटकन के क्षेत्र में दिवालियापन के निसानी बा ।

अभिनय के प्रसंग में अपना इहाँ के निदेशक-अभिनेता 'कत्थकली' से प्रभावित ना होय जबकि १६७४ में न्यूयार्क (अमेरिका) के लोग उहाँ एकर लगावल गइल शिविर से प्रभावित होके मनलक कि विवेक आ सर्जनात्मक संवेदन के साथ नृत्य विद्या से अभिनेता खातिर 'शिक्षण' तत्व के चुनाव कइल जा सकेला ।

हम ऊपर के परिप्रेक्ष्य में एक बेर फेर बिदेशिया शैली के उपयोगिता का ओर ले चले के चाहतानी जहाँ अद्यतन (ओपेन थियेटर) के कल्पना पहिलहीं से मौजूद बा। पात्र तथाकथित मंचे पर सब परिधान परिवर्तन आ मेकअप के तामझाम पूरा कर लेला । बलुक तामझाम त हइये नइखे आ दर्शक से जुड़े के बात त इहाँ तक बा कि दर्शक पात्र के टोकत रहेला आ पात्रो अभिनय आ कथा के दौरान बातचीत में दर्शक लोग के समेटत चलेला ।

दृश्य-विधान का साथे दर्शक के मनोवैज्ञानिक खिंचाव त उहाँ रंग ले आवेला जब भिखारी के भाई बिरोध' नाटक में नायक भरल महफिल के बीच एगो छोट लाठी के • मदद से कबो हर चलावे के नकल करेला त दर्शक ओके किसान रूप में देखे लागेला आ कबो ओही लाठी के बनूक लेखा घिरावेला त दर्शक के आगे घनघोर जंगल उपिज जाला । 'बेटी बेचवा' में एगो पातर भा मइल चद्दर तान के एक तरफ कोहबर 'घर' बन जाला, दोसरा और बारात लागत 'घर' के मुख्य दरवाजा ।

अख्यिान करे के बात बा कि ३०% साक्षरन के अस्सी प्रतिशत गाँवन के एह देश में अपन पुरान परम्परा आ पहचान लेले एकर जड़ लोग में गहिरा पइसल बा त दोसरा ओर पढ़ल लिखल 'शहरी' कलाकारन खातिर एह शैली में समसामयिक समस्या लेके आधुनिक प्रयोग के काफी गुंजायश अबहीं शेष बा ।

भुलाई गत कि नाटक ऊ दुधारी तेरुआर ह जेकर एगो थार के इस्तेमाल शासक आपन कुर्सी बचावे खातिर जनता के चेतना के गुमराह करे के दिसाई कर सकेला । वेद पढ़े के जिज्ञासा दबावे खातिर नाटक अनार्यन के 'पंचम वेद' कहके थावल गइल आ १८५७ के गदर के विफलता के बाद भारतीय फेर संघर्षशील ना होखस एह खातिर अश्लील स्वांग दस-दस हजार में अंग्रेजन द्वारा लिखवावल आ खेलवावल गइल आ दोसर धार के इस्तेमाल ठीक एकरा उल्टा आम जनता के चेतना जगावे आ दुश्मन के विरुद्ध संघर्ष में कुदावे खतिरा हो सकेला ।

हथियार राउर प्रतीक्षा करता बाकी, उठवला के पहिले सही समझ आ विवेकगत सावधानी जरूरी बा । तबे आम के आम आ गुठली के दाम वाली कहावत चरितार्थ होई ।

इयाद राखी जनता के दुख-सुख से कट के ना कवनो भाषा जीवित रहेला, ना कवनो लेखन भा कला-विधा । भोजपुरी के उल्लिखित नाट्य रूप एकर अपवाद

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लेख
भोजपुरी नाट्यरंग आ भिखारी ठाकुर
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"भोजपुरी नाट्यरंग आ भिखारी ठाकुर" एगो महत्वपूर्ण भोजपुरी साहित्यिक रचना ह जवन भारतीय साहित्य में आपन खास पहचान बनवले बा। ई रचना भोजपुरी के चर्चित कवि आ नाटककार भिखारी ठाकुर के जीवनी आ कला के समर्पित बा। भिखारी ठाकुर अपना लेखनी के माध्यम से सामाजिक समस्या, सांस्कृतिक द्वंद्व आ लोकप्रिय विषय प लगातार ध्यान देत रहले। एह रचना में उनकर भाषा सादगी आ लोकप्रियता के साथे साहित्यिक उत्कृष्टता के प्रतिबिंब बा।
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लोकधर्मी परम्परा आ भोजपुरी नाट्यरूप

21 October 2023
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लोकधर्मी परम्परा आ भोजपुरी के नाट्य रूप - नाटक के लिखित प्रमाण के खोज में ऋग्वेद के कुछ सूक्तन पर हमार ध्यान पहिले जाई, जेकर हामी मैक्यूलर, ओल्डनवर्ग, विण्टरनिब्ज आ प्राध्यापक लेवी जइसन विद्वानो भरले

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भोजपुरी लोक नाटक

21 October 2023
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अइसे नाटक के जनम त आदमी के साथ ही मानल उचित कहाई जवन पहिले ओकर मनोरंजन आ नकल के कौतुक रहे बाकी आस्ते आस्ते जब ई संदेश देवे आ सुधार करेवाला हथियार मतिन चले लागल त कुछ लोगन से एकर टकराव स्वाभाविक रहे ।

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डोमकछ ( टीका सहित नाटक )

21 October 2023
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'जट जटिन' आ 'डोमकछ' मा 'डोमकच' मुख्य रूप से नारी कौतुक हिय जे बेटा के गइल बरियात के रात मरद ना रहला पर सुनसान पड़ल घर में गाँव के औरतन द्वारा रात भर धमा चौकड़ी, मनोरंजन आ आपन आजादी के एहसास का रूप में

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नाटक के एगो सबल शैली: नौटंकी

22 October 2023
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नौटंकी सर्वसाधारण में नाट्य विधा के एगो जानल- पहिचानल नाम ह, जेकर प्रदेशन काल्ह ले गाँव के धनियन के बरियात में दहेज के रूप में मोट रकम लेवेवालन का ओर से अपना बड़प्पन के धाक जमावे, पूजा भा पर्व त्योवहा

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भोजपुरिया संस्कृति के कुछ बिसरत बात

22 October 2023
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1 भोजपुरिया संस्कृति के कड़ी में महेन्दर मिसिर, भिखारी ठाकुर, रसूल अन्सारी नियन एगो अउर कलाकार के नाम ओती घरी उमरल रहे ऊ नाम रहे- बनारस के नर्तक आ नाट्यकर्मी मुकुन्दी भांड़ के बाकिर आज ई नाम इतिहास के

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भोजपुरी खदान में दबाइल एगो हीरा रसूल

22 October 2023
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महेन्दर मिसिर आ भिखारी ठाकुर के काल, भोजपुरी - लेखन कला लेके अबले तीन मूर्तियन गुने स्वर्णकाल लेखा बा। ईहो संयोगे बा कि तीनों जना पुरनका सारने जिला के रहे लोग दूगो के त लोग खूबे जनलन बाकी तिसरका, उत्त

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नाटक- सड़क पर सरमेर सफर

22 October 2023
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कला के क्षेत्र में आदमी सबसे पहिले नाचे के, फेर बजावे के आ तब गावे के सिखले होई । काहें कि गतिमान होके नाच में आ नाच थिर होके कथा में बदल जाले । कथा के मौन भइले नाटक के शुरूआत है। संवाद वाला नाटक त बा

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