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विजेन्द्र अनिल के बारे में

विजेन्द्र अनिल के गीतकार का रचनाकाल चौवालीस वर्ष (1960-2003) का है। इन चौवालीस वर्षों में उन्होंने सिर्फ भोजपुरी गीत लिखे, इसका कारण शायद यह रहा हो कि वे जिस आवाम से जुड़ना चाहते थे, भोजपुरी उसके लिए सहज थी। हॉलाकि बीच के कुछ वर्षों (1976 से 1994) में उन्होंने हिन्दी गजलें भी लिखीं। लेकिन चाहे वह भोजपुरी गीत हों या हिन्दी गजलें |

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विजेन्द्र अनिल के किताब

हम कबीर के बानी

हम कबीर के बानी

"हम कबीर के बानी" (Ham Kabir Ke Baani) एक उत्कृष्ट भोजपुरी गीत संग्रह है जिसके संगीतकार और गीतकार विजेन्द्र अनिल को अपना कार्य के माध्यम से समर्पित किया गया है। इस संग्रह के माध्यम से, विजेन्द्र अनिल ने भोजपुरी साहित्य और संगीत के क्षेत्र में अपनी मह

3 रीडर्स
58 लेख

मुफ्त

हम कबीर के बानी

हम कबीर के बानी

"हम कबीर के बानी" (Ham Kabir Ke Baani) एक उत्कृष्ट भोजपुरी गीत संग्रह है जिसके संगीतकार और गीतकार विजेन्द्र अनिल को अपना कार्य के माध्यम से समर्पित किया गया है। इस संग्रह के माध्यम से, विजेन्द्र अनिल ने भोजपुरी साहित्य और संगीत के क्षेत्र में अपनी मह

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विजेन्द्र अनिल के लेख

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4 December 2023
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देसवा में अगिया लगवलस हो, ई अमेरिकी दलाल कुर्सी केसरिया बनवलस हो, ई अमेरिकी दलाल हमनीं के मिले ना रोजी आ रोटी सगरे बिछवले बा शतरंजी गोटी, भोट खातिर दंगा करवलस हो, ई अमेरिकी दलाल गजरा के मोल कारखाना बि

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4 December 2023
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तोहरा गठरी में लागल बडुए चोर बबुआ हो जा अवहूं से, तूहूं अंखफोर बबुआ मुंह से बोलत बा श्रीराम करत रावन के बा काम कुर्सी खातिर देखऽ लगवले बहुए जोर बबुआ भेख बनवले बा केसरिया भीतर बडुए बहुते करिया गहुंमन ख

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4 December 2023
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हम त हई खेत मजूर, हमरा आपन हिस्सा चाहीं नेता भइलन दगाबाज उनुका तनिको नइखे लाज केकरा पर हम करीं गरूर, हमरा आपन हिस्सा चाहीं केहू बांटत बा तिरसूल केहू लाठी में मसगूल आखि में झोंकत बा सब धूर, हमरा आपन हि

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4 December 2023
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काहे होखत वाडू अतना अधीर धनिया, लड़िके बदलीं जा आपन तकदीर धनिया। सहर कसबा भा गाँव, सगरे जुलुमिन के पाँव केहू हरी नाहीं हमनीं के पीर धनिया। सगरे होता लूट-मार, नइखे कतहीं सरकार ठाढ़ होखऽ पोंछ अँखिया क

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4 December 2023
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हम कवीर के वानी, हमरा पानी कहां मिली ? टापू में बइठल वानीं, रजधानी कहां मिली? सांप अउर सीढ़ी के खेला, होखत बा इहवां देस भइल माटी, अब सोना-चानी कहां मिली? भइल अन्हरिया अउर सघन, जोन्हिन से का होई प्रे

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4 December 2023
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काहे भइल बाड़ऽ अतना उतान बबुआ 'भारत' बनी नाहीं कबो 'हिन्दुस्तान' बबुआ। हिन्दू-मुस्लिम के लड़वलऽ सगरे दंगा फैलवलऽ गद्दी खातिर कइलऽ सभके हलकान बबुआ । जेकरा चिहिटी मोहाल, ओकरा खातिर बिनलऽ जाल, राज लेबे

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4 December 2023
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जाई जरूरे अन्हरिया हो, जनि होखऽ उदास । देस अउर दुनिया में मचल बा हलचल टूटि गइल बान्ह, भइल एके बा जल-थल तेज बहुत बडुए लहरिया हो, जनि होखऽ उदास । पच्छिम से चलल बवंडर बा भारी ढहि रहल गढ़, मठ मंदिर पुजार

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4 December 2023
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अझुराइल अवशेष कव ले लोटा-थरिये में, पिया, चलीं चलल जाव अब रहीं जा सहरिये में। करत-करत घर के काम, जरल देहिया के चाम, रोज जागे के परेला भिनुसरिये में। घर में नइखे अनाज, तवो भरे के वा व्याज, लूट मचल बा

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2 December 2023
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अइसन अनेत हो गइल हरियाली रेत हो गइल। सोना के चिरईं अस देस नेता के पेट हो गइल। पुरुब के लाल रजाई पच्छिम के भेंट हो गइल। गाड़ी के कवन बा कसूर घरहीं में लेट हो गइल। जिनिगी भर खटले महँगू मालिक के खेत

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2 December 2023
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॥ गजल ॥ जिनिगी व्यापार हो गइल मौसम के मार हो गइल चढ़नीं जवने जहाज पर ऊहे मंझधार हो गइल गीत गजल कबले लिखीं चुप्पी बरियार हो गइल केकर-केकर करीं हिसाब तरकुल अनार हो गइल खुरपी के बेंट भुलाइल हंसुआ तर

एगो किताब पढ़ल जाला

अन्य भाषा के बारे में बतावल गइल बा

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