अइसन अनेत हो गइल हरियाली रेत हो गइल।
सोना के चिरईं अस देस नेता के पेट हो गइल।
पुरुब के लाल रजाई पच्छिम के भेंट हो गइल।
गाड़ी के कवन बा कसूर घरहीं में लेट हो गइल।
जिनिगी भर खटले महँगू मालिक के खेत हो गइल।
अब पटरी नीमन बइठी चोर-चोर भेंट हो गइल।
2 December 2023
अइसन अनेत हो गइल हरियाली रेत हो गइल।
सोना के चिरईं अस देस नेता के पेट हो गइल।
पुरुब के लाल रजाई पच्छिम के भेंट हो गइल।
गाड़ी के कवन बा कसूर घरहीं में लेट हो गइल।
जिनिगी भर खटले महँगू मालिक के खेत हो गइल।
अब पटरी नीमन बइठी चोर-चोर भेंट हो गइल।
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विजेन्द्र अनिल के गीतकार का रचनाकाल चौवालीस वर्ष (1960-2003) का है। इन चौवालीस वर्षों में उन्होंने सिर्फ भोजपुरी गीत लिखे, इसका कारण शायद यह रहा हो कि वे जिस आवाम से जुड़ना चाहते थे, भोजपुरी उसके लिए सहज थी। हॉलाकि बीच के कुछ वर्षों (1976 से 1994) में उन्होंने हिन्दी गजलें भी लिखीं। लेकिन चाहे वह भोजपुरी गीत हों या हिन्दी गजलें | D