अझुराइल अवशेष कव ले लोटा-थरिये में, पिया, चलीं चलल जाव अब रहीं जा सहरिये में।
करत-करत घर के काम, जरल देहिया के चाम, रोज जागे के परेला भिनुसरिये में।
घर में नइखे अनाज, तवो भरे के वा व्याज, लूट मचल बाटे, दिने-दुपहरिये में।
जे चलावे लाठी भाला, उहे बड़का गिनाला, जुलुम होता इहाँ, एकरा के देखल जाव कचहरिये में।
मिले पूरा ना मजूरी, करऽ तबो जी-हजूरी, जिनिगी बीति जाई इहाँ गोड़धरिये में।
भसल बरखा में घर, लागे चोरवन से डर टाँगा लागि गइल, हमनी के जरिये में।
परीं कबो जे बेमार, नइखे केहू देखनिहार लपटाइल बहुए सॉपवा लउरिये में।
नइखे बिजुली के पोल, दिया-वाती भइल गोल रोटी सेंके के बा इहाँ अब भउरिये में।
परे हरदम अकाल, धैसि गइल दुनो गाल गइल चढ़ल जवानी नकदरिये में,
छंवड़ा पढ़हूँ ना जाला, उहो बड़हन रिजाला, रोज बकरी चरावेलाऽ रहरिये में।
नेता गइलन रजधानी, काटसु बइठल चानी। सुखवा बाटे नेतागीरी के नोकरिये में।