काहे होखत वाडू अतना अधीर धनिया, लड़िके बदलीं जा आपन तकदीर धनिया।
सहर कसबा भा गाँव, सगरे जुलुमिन के पाँव केहू हरी नाहीं हमनीं के पीर धनिया।
सगरे होता लूट-मार, नइखे कतहीं सरकार ठाढ़ होखऽ पोंछ अँखिया के नीर धनिया।
जेकरा दउलत बेसुमार, ओकरे सहर ह सिंगार, दीन-दुखियन के सहर, गंगा-तीर धनिया।
घिरल घाटा घनघोर, नइखे लउकत अँजोर, अब त करे के बा, कवनो तदबीर धनिया ।
छोड़ऽ सपना के बात, धरऽ धरती प लात, मिलि-जुलि तूरे के बा अपने जंजीर धनिया।