॥ गजल ॥
जिनिगी व्यापार हो गइल मौसम के मार हो गइल
चढ़नीं जवने जहाज पर ऊहे मंझधार हो गइल
गीत गजल कबले लिखीं चुप्पी बरियार हो गइल
केकर-केकर करीं हिसाब तरकुल अनार हो गइल
खुरपी के बेंट भुलाइल हंसुआ तरूआर हो गइल
ओड़हुल के फूल झरि रहल महुआ बाजार हो गइल
प्रेम करीं केकरा से हम कनखी पर वार हो गइल।