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बेटी वियोग

18 October 2023

11 देखल गइल 11

समाजी :

( चौपाई श्री गणेश पद नाऊ माथा । तब गाऊ कुँवरी कर काथा ।। गावत बानीं लोभ के लीला । जेहि से होत जगत में गीला ॥ बेचत बेटी मन हरखाई । छोटत ज्ञान ना परत लखाई ॥ सो सब हेतु कहब करि गाना । सुनहु कृपा करि के धरि ध्याना ॥

चटक (अपना पत्नी लोभा से) ए प्रानप्यारी, बबुई के कतहूँ सादी करे के चाहीं, ई बात के हमरा मन में बहुत फिकिर भइल बा ।

लोभा : कइसे सादी होई, हाथ पर त एह घरी एको पइसा नइखे । चटक पइसा नइखे त एकर उपाय हम रचि नू दोहीले । लोमा ए रवों, कवन उपाय रचब ?

 जहाँ सदिया कइल जाई तहवीं से कुछ रोपेया ले लिआई । जह से सदियो हो जाई आऊ खेतवा बाझल वा तवनो छूट जाई ।

लोमा ए रवों अइसन काम ना करे के लोग दुनियाँ सुनी त सिकाइत करी ।

चटक ई बात केहुए ना जानी ।

( चौपाई )

सुनु प्यारी सुकुमारी बात ।

नींद परत ना दिने रात ॥

चटक :

बई के कहू सादी करब । । रुपया ले के घर में घरव ॥ सुनिल पियऊ बात हमारी । निन्दा होई जगत में भारी ।। जब बेटी के बेंचवs माँस । सुनि के जगत करी उपहास ॥ जगत केहू कइसे के जानी ? हमरे तोहरे भइल जवानी || केहू बात जाने ना पावे । करहु प्यारी जो कुछ मन भावे ॥ नाऊ ब्राह्मण केहू ना जाने । परे ना पावे केहू का काने ।। घर-बर देखि के सादी करों । मन में चिन्ता तनिक ना घरीं ॥ भाई के डर भारी बाटे । सुनला पर केहू लागी काटे ।। पाछे पूछब ब्राह्मण भाई । ना त ममिला परी लखाई ॥ ( दोहा )

लोभा:

लोभा :

लोभा :

लड़िका देखवा लीं पहिले, भेज के कहीं हजाम । पाछे ब्राह्मण लेके जाइब, बनले बा सब काम ॥ ए रखों जाई, पहिले लड़िका देख आई ।

समाजी :

चौपाई

नाऊ का घर कर के मन । रास्ता चललन बेटी बेचन ॥

चटक :

बाबू चलली चललीं कवने काम ? सुनलन नाऊ मन चित लाई ||

मिललन नाऊ, कइलन सलाम ।

सारी हालत देलन बताई |

( लइका देखे चटक जातारे देखि के घरे लवट अइले । आ के अपना मेहरारू के पुकारतारे । )

चटक क : ए गजरा के माई, सुनतारू हो ?

लोभा: ए रवों चलि अइलीं ? बड़ा जल्दी चलि अइली हाँ ? ई बताई कवना गाँव लड़िका ठीक कइली हाँ ।

चटक : ऊहे बकलोलपुर ।

सोमा : एरवों हम सुनत रहलीं हाँ जे बकलोलपुर के लोग बड़ा धन- सेठ ह । लड़िका नीमन बाड़न नू ? खेत बघार बानू ?

चटक : लड़का ? लड़िका त अइसन वा जे मड़वा में आई त देखि के लोग के दाँत लागी । आ घर दुसार के पूछतारू ? घर एकदम पाका के ह | अवरू लड़िका के मोटा-ताजा के पूछतारू त लड़िका अइसन वा जे सींक से खोद देला प भक से खून फेंक दी।

लोमा लड़िका पढ़ल-लिखल बाड्न नू ? चटक : लड़िका पढ़ि के फेंक देले वा ।

लोभा: देखव, केहू सिकाइत ना करें।

( एगो गोतिया आवतारे )

गोतिया : का हो चटक भाई, सादी कहाँ ठीक कइलड हा ?

चटक: ऊहे बकलोलपुर ।

गोतिया ई बतावs जे अकेले गइल रहल हा कि आउर केहू के लिआ गइल रहल हा । 1:

चटक हम गइल रहलीं हाँ आउर पंडीजी गइल रहली हाँ ।

गोतिया : ई तू नइखs जानत जे गाँव में दूगो, चारगो जाति भाई बा आ अकेले पंडित जी के लेके चल गइल हा ?

चटक: कवन हम बेजाइँ काम करतानीं ?

गोतिया रे मर जब से तार बाखा पाखा लिल, लद्दा चटक ई तूं बोली कवन बोलतारs ?

गोतिया । तोहरा बुझात नइखे ? लड़को पर रोपेया लेके सादी करतारः । तोहरा के केहू भाई में ना खिआई ।

चटक: हम अकेले खाइबि ।

गौतिया तोहरा से केहू छुतिहर ना आई, नरिअर- हूका तोहार बंद कर दिआई ।

चटक हम आपन बोड़िए पर काम चला लेबि ।

गोतिया : देखीला तोहरा अंगना गीत गावे के जाला । चटक ए, हम लाउड स्पीकर लगा लेबि ।

गोतिया :

( चौपाई )

बेटी बेंचि के धइलs माल । तोहरा सिर पर चढ़ल काल ।। चढ़ल बंस के पानी गइल । जब से तोहार जबाना भइल | अइसन बंस में जमलः कूर । दया धरम के कइलs दूर ॥

लोभा : ( गोतिया से ) हमरा सादी का बारे में काटाकुटी करब त हाँडी से कपार फोर देव । हमरे आगा के जामल छंबड़ा आइल बाड़s

बिआह में काटकूट करे ।

( अडोसिया-पड़ोसिया ते) आवs लोगिन, बबुई लोग दू गो गीत

गावs लोग ।

( सखिन के गीत )

- संझा पराती

राम नाम कहि कहि के गनना गनाति, गवाति हे ।

राम नाम कहि कहि के चउका पुराता, -

राम कहि के कलसा धराति है ।

राम नाम कहि कहि चवमुख बराती,

गौरी-गनेस के मनाति हे ।

राम नाम कहि के पितर पुजाता,

राम कहि के मउरी बन्हाति है ।

राम नाम कहि कहि के बर परिछाति,

राम कहि के चलत बराति है ।

राम नाम कहि कहि के नहछू निरेछन,

राम कहि सुमंगली सोहाति है ।

राम नाम कहि कहि के चुमवन भाती, राम कहि के कोहबर समाति हैं । --

राम नाम कहि नित बढ़ि एहवाती, कहत भिखारी नाई जाति है ।

( गीत )

घर-घर हलचल मचल नगरिया में भल सुभ अगहन मासु ए ।

मातु पिता-पुरुखा के होत वा उचारन

जब भोर साँझ होइ जासु ए । सीता दुलहिन राम दुलहा के नाम ध के

मिथिला में मंगल गवासु ए ।

चउका बइठलन जनक सुनयना जी

जेहि विधि पितर पुजासु ए ।

नन्दीमुख श्राद्ध करि के, जेठन के पाँव परि के

कोहबर के के हुलसासु ए । तव बरिअतिया दुआर पर लगलन

बाजावा से बात ना सुनासु ए ।

द्वार पूजा कर कर, बस्तु सव धरि कर आसन लागल वा जनवासु ए ।

लगन

कहत भिखारी नाई, कुतुबपुर दियरा के असहीं

भहरामु ए ।

( गीत )

सुतल रहली, सपन एक देखलीं

सपना बहुत अजगुत ह ।

जनु केहू ब्राह्मण पोथी लेले आवत अस मोही देत उपदेस है ।

सुन गउरा सुन गउरा हमरी वचनियाँ,

तप कर मन चित लाइ हे । नारद मुनि के सबद मत भुलिह

बर मिलिहन त्रिपुरारि हे ।

ब्रह्मा जगत उपजावत, शिव तप वल से संहार हे । तप बल

शेष धरत महि सिर पर तप हीं से,

तप हउए जगत के आधार है । आउ आउ माई ए टोला परोसिन,

सपना के करू ना विचार हे ।

आमवा महुइया तर दूनो हो समधिया,

दूनो समधी खेले जुआसार है । खेलिअ - खुलिअ जब भइलन चटक देवा

ओरिया तर बइठे मनवां मार हे ।

किया हरलs बाबा हो, गइया भइसिया ?

किया हरल पाकल पान हे ?

-

नाहीं हम हरलीं बेटी गइया भइसिया

नाहीं हरली पाकल पान हे ।

हम त जे हरली बेटी बेटी हो उपातो बेटी

चानव सुरुजवा के जोत हे । ( बेहा का दुआर पर परिछावन के गीत )

पटना सहरिया से अइलन सोनार भइया, ले अइलन सोनवाँ बनाइ हे ।

से सोनवा पहिरेलन दुलहा झंटूअ दुलहा,

गनपति गउरी मनाइ हे ।

जामा, पैजामा, जूता, रचि-रचि पहिलन पूता

पालकी में बइठे हरखाइ हे ।

परिछत आई माई, मंगल गाइ-गाइ, बा बेन सहनाइ हे । बाजत

परिछे भउजाई आई, नजर ना लागे पाई,

काजर दिहली लगाइ हे । गोबर के पिड़िया पाछा, बिगला पर लागे आछा,

लोढ़ा घुमावत बाड़ी माई हे ।

असहीं बरात जात, दुलहा के सुघर गात,

साथे नेवतहरी पाहुन भाई हे ।

बेरा सोहात कर, चन्दन लिलार पर

कहत भिखारी ठाकुर नाई है ।

( परिछावन बेटिहा का दुआर पर )

( गीत )

चलनी के चालल दुलहा, सूप के झटकारल है,

दिका के लागल बर, दुआरे बाजा बाजल हे ।

आँवा के पाकल दुलहा, झांवा के झारल है, कलछुल के दागल, के दागल, बकलोलपुर के भागल हे ।

सासु का अँखिया में अनपट बा छावल हे, आइ कर देख बर के पान चभुलावल है । आम लेखा पालल दुलहा, गाँव के निकालल है, अइसन बकलोल बर चटक देवा का भावल हे ।

मउरी लगावल दुलहा, जामा पहिरावल है, कहत भिखारी हवन राम के बनावल हे ।

( पुरोहित बाबा जी के आगमन )

पंडित जी ईहे सब होत रही रे ? लगन कम बा, पाछे भवरा चढ़ि जाई । एगो जनाना रावा घर से निकलले ना होखे । हाली हाली बिधि बेवहार

कराई ।

पंडित जी तें अच्छत ले आउ, मीठा ले आउ, दही ले आउ । अंगना में परदा करवाउ। हम पाँच मिनिट में घुलटा के बोग देतानीं ।

( गुरथी होखे वरनेति बइठता )

( गाना ) बइठल बरनेतिया ओरी तर, बान्हि बान्हि पगरिया करिया करिया देखि हो देखि के हँसत बाटे नगरिया काढ़ि द चटक हो देवा अपनी हो पुतरिया लगन महूरत बीतत बाटे घरिया बड़का भइया तानि हो दिहलन अपनी हो चदरिया धीरे-धीरे लेइ हो अइलन घर में से बहरिया गाइ के भिखारी हो ठाकुर कइलन मसखरिया काहे ना ले अइल ए भसुर अपनी हो मतरिया ? सुभ हो

अंगना में ओरी तर बइठल वरनेतिया, हाय रे जियरा, पान मसाला खात, हाय रे जियरा ।

पंखा डोलत, हंसि - हँसि बोलत, हाय रे जियरा, मुँह पर गुलाब छिरकात, हाय रे जियरा ।

माड़ो में ब्राह्मण वेद उचारत, हाय रे जियरा, सुनिसुनि के जिया हुलसात हाय रे जियरा ।

आसिरवाद दुलहा दुलहिन के, हाय रे जियरा,

घर में से बाट गवात, हाय रे जियरा ।

करत भिखारी विनय गिरधारी से, हाय रे जियरा,

बनल रहे एहवात,

हाय रे जियरा ।

( गुरहथी के गीत )

एही सुघर भसुर के कइसे देइहों गारी है, सिया जोग ले अइलन कुसुमरंग सारी हे ।

गोटा-पाटा - जड़ीदार सुभग किनारी है,

अंचरी जराकसी में गाँठ झझकारी हे । लाल चंदर, लाल लहँगा जड़ीदार बारी है,

बीचे बीचे लाल मनि नाग बइठारी हे । एही सुघर भसुरा के जाऊँ बलिहारी है,

सिया जोगे ले अइलन कुसुम रंग सारी है । नथिया, वुलाक, बेसर, भूलनी लगाई है,

माँगटीका, वननी में हीरा जड़ाई हो । कनफूल, झुमका झमाझम झमकाइ है,

बिजली छटा सम बिन्दुली सोहाई हो । सुनर सिन्होरा लाल सेन्दूर भराई हो,

मन सोहगडला तेही मध्य में धराई हो ।

( भूमर )

कलसा का ऊपर चवमुख दीहल वा वार है, पंडित जी करत बाड़न वेद के उचार है ।

गहना ले अइलन भसुर सब वजनदार हे, नथिया, गोड़ाँव, कँगना, पहुँची कलदार है ।

हीरा-काट हसुली, हलका अजवे विस्तार है,

अँचरी, मनोरी नव नागा चन्द्रहार हे ।

कमरकस, डड़ा किनलs कवना बाजार हो ? के ई बनावल अइसन रचि-रचि सोनार हो ?

सारी चढ़वल, हमार बँगलs दरबार है दही -पान के टीका दे के छुअल लिलार हे । माड़ो में अइल लिहलs गउरी निहार है,

कवना दो देस के बउराह बनिहार हे ।

देबे के करत बा गारी हमार है, माई तोहार तोहार कइली कतने इयार है । मन

प्रेम के गारी लेलs पटुका पसार है, बड़ बन के अइल छोट भाई का ससुरार हो ।

गाइ के भिखारी ठाकुर कइलन परचार है, कुतुबपुर गाँव बाटे गंगा किनार हे ।

पंडित : चटक जजमान ! जल्दी आई ।

(चटक आवतारे)

पंडित लड़की ले आउ रे ।

( लड़की अइली )

लड़िका ले आउ रे ।

(दुलहा अइले) लड़का के धोती ले आउ ।

पंडित: ( मंतर पढ़त) बबुआजी, हई घोती पहिर लोहल जाउ देखीं बेरी करे के काम नइखे । सब फुरती राखल जाउ ।

बुलहा : सब फुरती बा, पंडी जी ।

पंडित: बाछा, बहुत सादी बिआह हम करवली बाकी अइसन सुधर लड़का मड़वा में हम ना देखले रहलीं हौं ।

एक सखी : ए पंडीजी, हमहूँ नइहरे-ससुरे अतना सादी बिआह देखलीं बाकी

अइसन बोलतू लड़का से हमरा ना भेंट भइल रहल हा । पंडित: आरे तू कहाँ से जनलू ? का देखलू ? आरे ई का बाडन ? आउरो सर्वांग इनिको ले आले आले ।

सखी: ए रवों, इनिको ले बढ़िया-बढ़ियाँ ? पंडित आरे बउराहिन, ई सब सर्वांग जो चार बजे साँझि खानी कतो मुरेठा बान्हि के दुआर पर बइठि आला लोग त बुझाला जे खास-खास लंका कांड राम लीला शुरू हो रहल बा ।

( लड़िका से ) बबुआ जी, घोती पेन्हली ?

बुलहा : तनी-मनी पिछुआ खोंसे में देरी बा पंडी जी । पंडित: वबुआ जी, पिछुआ खोंसली ?

दुलहा जी।

पंडित दहिना पैर के जूता काढ़ दीं। कढ़ली ?

दुलहा : जी।

पंडित पैर के जूता काढ़ दीं। कढ़लीं ?

दुलहा जी हाँ ।

पंडित: बइठल जाउ ।

( दुलहा बहूठ गइलन )

पंडित (सखिन से ) तू लोग गीत गावs का बइठल बाड़ लोगनी ?

( सचिन के समिलात गीत )

लेहु ना चटक देवा धोतिया, हाथे पान के बीरा । करु ना समधिया से मीनती, सिर आजु नवायो । राजा नवे उमराव नइयो, हम तइयो ना नइयो । एक त उपातो बेटी कारने सिर आजु नवायो ।

जाघया बखान तार चटक दवा, जिन्हें बेटा जनमाया लटे लटे मोतिया गुहाइ के बेटी जाँघे बइठायो । जँघिया बखानों तोर खटाई देवा जिन्ह बेटा जनमायो । सोने के छत्र पेन्हाइ के बेटा बिअन आयो । (पंडित जी बिबाह करावतारे लड़िका-लड़की के गठजोरांव करावतारे ।) 1

( गाना )

खास दुलहा चनरमा समान, बंसीलाल री । रचि दिहलन रूप भगवान, बंसीलाल री । मउरी में लागल फूल, जीव देखि जात भूल, लाल री, खूब मुहव में खिलत बाटे पान, बंसीलाल री । कंठा है असल सोना केहू मत करिह टोना, लाल री, देखला पर छूटत वा परान, बंसीलाल री । कुरता चदर लाल, गरदन में मोहर माल, लाल री, होता माड़ो भीतर रसखान, बंसीलाल री । खोजलन चटक बाबू, करिके बहुत काबू, लाल री होइ गइलन नीके हलकान, बंसीलाल री । आइल बरात गाँव, दुनियाँ भइल नाँव, लाल री, बर बूढ़ कनियाँ जवान, बंसीलाल री । गहना बा भारी-भारी, कहे सब नर-नारी, लाल री, जेकर हउवेकुतुबपुर दियर में मकान, बंसीलाल री ।

खानदान, बौंसीलाल री । सादी में भइल होस, केकरा के दीहीं दोस, लाल री, मिललन कुटुम्ब

बिधि बस हो गइलन कन्यादान, बौंसीलाल री । कहत भिखारी नाई, जिला छपरा के भाई, लाल री

जेकर हउवेकुतुबपुर दियर में मकान, बंसीलाल री ।

( गाना )

सोभे, बर दुलहिन सोभे, वर- दुलहिन देखि देखि के मन मोहे, तनवों में भरल बा गहनवाँ हो लाल ।

भाई, कहत भिखारी नाई, कहत भिखारी नाई, लउवा मेरवलन माई जी के मनवाँ मगनवाँ हो लाल ।

रात कछु बीति गइले, रात कछु बीति गइले, लगने में सादी में भइले, गह गह करत बा अँगनवाँ हो लाल ।

नोह में महावर लाल, नोंह में महावर लाल, सेन्दुर भरल बा भाल, रचि चि बान्हल बा कंगनवाँ हो लाल ।

( पंडित जी बिआह करावतारे । लड़का-लड़की के गठजोराव करावतारे । )

पंडित: बबुआ जी !

बुलहा के बाप हैं पंडीजी !

पंडित: हमार सब नेग बार मिल जाउ ।

बेटा : सब सवेरे मिली ।

पंडित: सुमंगली, गवनकराई, भुइसी दछिना, गनेसपूजा, अरधा के नेग ई सब सबेरहीं मिली ?

(दुलहा से ) हेने आइल जाउ बबुआ जी !

( दुलहा आवतारे । )

पंडित: कहीं, सब ममिला हाथ में आ गइल तू ? रावा कहत रहीं कि पंडी जी कइसे नीक निहोर से विवाह पार लागी । पंडी जी का आसिरवाद से नीक निहोर से बिआह पार लागि गइल नू ?

बेहा हूँ, हॅ, सब पार लाग गइल ।

पंडित आछा त हमरा साथ में रउआ बात विचार बा तवन ? बेटा : कवन बात ?

पंडित: अइसे काहें कहतानी ? इयाद पारी, सुरुता पारी । बेटा हमरा नइखे इयाद परत, रवे कहीं ना ।

पंडित : जवन हमरा साथ में रावा करार मदार रहे दू सइ रोपेया के बेटा : ऊ रावा अबहीं ना मिलल हा ?

पति: हमरा के कब देली हाँ ? इयाद पारी

सुरुता पारौं । बेटा : ए पंडी जी, सुनीं। दूस राउर आ चउदह स उनुकर, सोरह स रोपेया के जवन बातचीत तय रहे तवन हम सोरहो स रुपया उनुका के दे देलीं । ऊ कहलन जे दों, सोरहो स रोपेया हमरा के दी, हम एह में से दू स रोपेया निकालि के पडीजी के दे देव ।

पंडित : ओह बेमान के काहें के देली ? ( चटक के चाल करत ) चटक जजमान ! चटक जजमान ! चटक : हॅ पंडी जी !

पंडित: कहीं, रउआ घबड़ा गइल रहीं जे पंडी जी दुनियां सिकाइत करी । कहीं, जे ई बात केहू जाने पावल ? आ ई सिकाइत का बा महाराज ? ई त बदलइया बा, एक हाथ लछिमी लेना बा, एक हाथ लछिमी देना बा ।

मूल जगत में दूइ हैं, एक राम एक दाम । राम देत है मुक्ति पद, दाम सम्हारत काम ॥

आछा ई बताई, हऊ ममिला हाथ में क लेले बानी नू ? चटक हूँ हैं, पंड़ी जी ! क लेले बानीं ।

पंडित: सेही कहीं जे दुनियां भुला जाई त भुला जाई बाकी हमार चटक जजमान ना भुलइहें। ना त एही बिआह में कतना भितरिया काटाकुटी लागल रहल हा जे कइसे धनी का घर में बिआह हो जाई। पंडी जी का आसिरबाद से नीक निहोर से बिआह पार लाग गइल |

चटक ए पंडी जी ! हमरा के तनी बर-बरात के बिदाई कर लेबे दीं त राउर फरिआ नू जाला । एह घरी रउआ घरे दुआरे जाई ।

सके दूस पंडित: जइसे कि एह लड़की का ऊपर में सोरह स रोपेया के बातचीत बा जवना में हमरा के करार मदार भइल बा । चटक वो राजा के ?

। पंडित हमरा के दूस के बातचीत भइल । हम कहलीं जे माछा, पंडित जी संतोख के पहाड़ हवे । हमरा के जेही भइल सेही ठीक |

पंडित ए बबुआ, बर-बरात के बिदाई करत रहिह । जवन ममिला फरिआ जाला तवना के फरिअवले के मोल है ।

चटक बोए पंडीजी, रावा का अंगना में हाला- गदाल कइले चलतानी ? राउर दू-चार आना नेग चार जवन होई तवन बिहान सबेरे ले जाइबि ।

पंडित आ हा हा हा! दू चार आना नेग- चावर के ई ममिला नइखे ।

ई बरतावा दोसर बा, रावा जानते नइखीं । चटक वो कवन भाला बरतावा वा दोसर जवन हम जानते नइखीं ?

चटक बो। आछा त ई ममिला हम नइखीं जानत । जाके ओनहीं फरिआ लीं ।

चटक ए पंडी जी, रावा अतना काहें घबड़ाइल बानी ? तनी हमरा के

नर-नेवतहरी के बिदाई क ना लेबे दीहीं ? पंडित: हम घबड़ाइबि काहें साहेब ! ई त हम जानतानीं जे रउआ घर

में घइल बात पंडित जी का घर में सनूख में घ के ताला लगावल बा । चटक

बो ए पंडी जी, राउर ममिला हम फरिया दीं ?

पंडित: है है, कहीं; हमरा जजमानिन के कहनाम बा जे दुनियाँ के बाकी रही त रही बाकी पंडी जी के काहें रही। ई खान्दान आजुए के मेंहीं ना नू ह ? जरिए के मेहीं ह ।

कबो : ए पंडीजी, जवन हम कहब तवन मानव नू ?

पंडित जरूर मानव ।

चटक बो त रउआ अपना घरे दुआरे धूपे चाप जाई, हम एको पइसा देव ना ।

पंडित इहाँ से हटऽ । बोसर जनाना ए रवों, मउगी के देह प रावा कबड्डी खेलतानी ?

पंडित भाग ना तदू चटकन देव तहरा के । तँ एके हाली पंडी जी के पुरान गुंडे समुझ लेलिस। खबरदार, जीभ लगा के राखे खींच लेबि ।

( घटक से ) ए बबुआ, तू हमार रोपेया द ।

चटक ए पंडी जी, कुछ भोजन कलीं। हाथ जोड़ले बानीं, गोड़ परतानी ।

पंडित भोजन कदापि काल में ना होखी। पांच मन सोनो देव तबहूँ ना ।

( चटक वो गोड़ पर गिरताड़ी )

पंडित हमार देहि छू देलिस का रे ?

चटक बोना, तनी-मनी घोतिया में हाथ ठेकि गइल हा ।

पंडित हिनकर मखदूर भइल हा पंडी जी के भोजन करावे के ? एक आदमी कुत्ता के मांस आदमी का चंउड़ में क के जूता से तोप देले रहन अपना चउका में केहू के जाये ना देस दोसर आदमी पूछल जे केकरा से छुआई जेकरा डरी रावा अतना इंतजाम के के रखले बानीं । ऊ आदमी कहल कि जे आदमी लइकी बेंचेला ओकर परछाहीं पर जाई त भोजन अशुद्ध हो जाई । तेकरा इहाँ पंडित भोजन कइसे कर लेसु ?

चटक वो त जब भोजन ना होई त हुई दू स रोपेया ले के का होई ? पंडित: कहीं खेत प ध दिआई ।

चटक हो त खेतवा में अनजा-पनियों होई त पंडी जी के भोग ना लागी ?

पंडित: भोग लागी तोहरा लेखा आजुए? जहवाँ जइसन, तहाँ तइसन; इहे ना देखी से पंडित कइसन ?

एगो औरत ए बाबा, हम रावा से पूछतानी जे हमरा चटक काका के बरो खोजे रखे तू गइल रहीं संउसे पाग बान्हि के ?

पंडित का लइका के आन्हर देखतारिस कि लंगड़ ? निकहा त लड़का हेह मेस बत्ती का सामने बिजली बत्ती अस बरता ।

औरत : आम्हह्य नइखन, लंगड़ नइखन । देखों त, आँख मुहे मार कीची फेंकतारन ।

पंडित आरे त जेकरा आँखे ना रही ओकरा कीची कहाँ से गिरी रे ?

औरत: ए रषों, त कीची गिरेला कीची लेखा कि मार ढकना के ढकना कित्रिये गिरेला ?

पंडित: आहाहाहा, तोहरो अकिल के थाह पंडीजी के चल गइल । तोहरा से एक हाली जे कह देलीं कि सुखी घर के लइका ह, डबल जे पहथन घीव खइले बा से घीव के महल आँख मु हैं निकल रहल बा ।

औरत: ए बात्रा, एगो किचिये ले हइन ? इनिका मुंह में एको दाँत बहुए ?

पंडित: आरे, तोरा से के कह दोहल जे लइका के मुंह में दाँत नइखे ? औरत: आह बाबा, हमरा से के कहीं ? हमरा नइखे लउकत जे हऊ मुँह बावतारे त अकास लउकता ?

दुलहा : पंडीजी, एगो दाँत नइखे नू ? बाकी सब ममिला ठीक बा । औरत: ए बाबा, रावा सुनलीं नू ? ईहे मरद के बोली ह ? सब ममिला ठीक बा आ बोलतारे त साँसे टंगा जाता ।

दुलहा मुनीं। हमरा से तनी रावा हटि के बतिआई ना त हमरा नजरी

परावा चढ़ गइल बानीं ।

पंडित: औरत से )- अब जबाब पवलू नू ? अब हेह लड़िका से मला जबाब- सवाल में हई फरह पावसु ? ई लड़िकवा देखही में फूहर-पातर लागत बा नात नव के पहाड़ा पढ़ि के फेंक देले बा। मुनु, सब खोजला से ना मिले ।

औरत: सुनीं, हमरा देह में आग मत लगाई। रावा का खोजले बानी ? पंडित: सुनु । सगरे जब गाँव-नगर में हाला हो गइल हा जे लड़की पर रोपेया लेके सादी करत बाड़न त केहू माड़ो गाड़े ना जाई, केहू गीत गावे ना जाई, केहू पंश्चा- उधार ना दीही अतना संगठन बस्ती में हो गइल हा तब हमार दिल दयालु ठहरल, भीतरे - भीतर कील-कंटा जोरि के बिआह पार करा देलीं । भितरिया एह में डबल रोपेया गनाइल बा । तें सीधा आदमी, तें का जाने गइलिसि ?"

चटको है, डबल रोपेया गनाइल बा त का एह में होसा चाहीं ? पंडित मति घबड़ा दुनियाँ में ढोल पिटाई । :

घटक बो त ढोल पिटा के हमार का होई ?

पंडित: तोहार का होखे के बा! मुहली माथ प पानी पड़ल, डगर

गइल |

( पंडित जी जातारे 1 )

( औरत लोग झूमर गावता )

( झूमर १ )

काँचे नींद दिहलन जगाइ हो, ननद तोहार भइया । आँख भरमत रहे भवन में सेज पर,

झटकि के देवर मोर धइलन कलइया ।

नइहर जाइव त जल्दी ना आइब, सधा लेहव दइया ।

चोरी के बात हम तोहरा से कहली, लगइहs मति लइया ।

कहत भिखारी भगवान के भरोसा वा से पार कर द नइया । भव ( झूमर २ )

जवानी पहरा, पिया मोर गइलन बहरा, पिया मोर गइलन बहरा, चढ़ल बा जवानी

एको ना भेजवलन पतिया हो लाल । पढ़ल पंडित मोर, पढ़ल पंडित मोर, कइलन भोर, हमरा के

कइसे हेराइल हइन मतिया हो लाल ।

ताकत बीतत बा दिन, ताकत बीतत बा दिन, अइहन फिन ? पिया कब आठो घरी लहकत बा छतिया हो लाल ।

कहत भिखारी नाई, कहत भिखारी नाई, एको ना लउके उपाई, गंगा मइया काटि द बिपतिया हो लाल ।

( झमर ३ )

जियरा ललचावेला रे मोर देवरवा, जियरा ललचावेला मोर देवरवा ।

देवरा के जुलुफी बा करिया भँवरवा, बा करिया भँवरवा, सचमुच जल में के सेवरवा । जियरा०

घूमि के नगरिया में ठीक दुपहरिया में झूठों के खारेला पछुआरवा । जियरा०

देवरा से कर जोरि अरज करीले हम तेकरा के देहब गलेहारवा । जियरा० ...

कहत भिखारी मोर, बीती जो जवानी जोर पाछे पछतइबे रे हतेयारवा । जियरा०

( झूमर ४ )

ननद अपना भइया से बनवा द हो, हमरा नाक के भुलनियाँ ।

तीन पाढ़ के सारी मँगा द, रँगल झूला बंगनियाँ | ननद० छोटे 'झूला 'के छव अंगुर तोई, लागल पीठ पर कमनियाँ । ननद० चन्द्रहार, हलका, बननी, झूमक, पाँव में के पंजनियाँ । ननद० बाजू, बहरबूटा, जोसन, कंगना पर पछुआ के घतियाँ । ननद०--- कहत भिखारी बिआह भइल खुसी से, चढ़ल सोना-चनियाँ । ननद०

सवेरे जान, वबुई जइहन ससुरिया |

ए सखी आज के रात सोहात बा, लगन महरत घरिया । सवेरे लागी भवन भेयावन ओही घरी लगिहन छछने मतरिया । सवेरे

मोर अभाग जे साथ छूटत वा मिल लेंहू भरि अकवरिया। सवेरे बर- दुलहिन के बिलोकिं लोग सब धन-धन अवध नगरिया । सवेरे ..

बर भगवान जानकी दुलहिन, चरन कमल बलिहरिया । सवेरे 1

कबि जन माफ करहु अक्षर के, कइलन भिखारी लबरिया । सवेरे

गाना

जब सीता चढ़ी सवारी है, तब बिलखत सब नर-नारी है ।

रानी सुनयना आगे होकर

रामचन्द्र से कहती रोकर नइखीं हम कुछ देबे लायक

तुम हो तीन लोक के नायक

केवल प्राण - पियारी सिया मेरी पुत्री शरण तिहारी है

भरत, लखन, रिपुन से माता

बार-बार कह गद-गद बाता अवधपुरी रघुकुल मनि ऊ

अतिशय कोमल शील सुभाऊ

कुछ भूल होय तो करव माफ तव चरण ककल बलिहारी है ।

अवध जाइ सिया करिहें बसेरी

भवन सून लागी अब मेरी

राखव छोह सिया पर नीके

पोसत भानु जिमि कमल - कली के

हम कैहूँ का अतना जल्दी में, अब चलने की तयारी है ।

जय श्री सगुन रूप अवतारी शोभा-शील- शोभा - शील- सिन्धु वर चारी जय करुणानिधान भगवाना धरत रूप के शंकर ध्याना नित देहु दया करि के दर्शन, बर माँगत दास भिखारी है । ( बेटी के बिदाई होता ) दोड़ा

हित चित में रहत सब्रा कहत भिखारी नीत पुरुष जनाना प्र म से झूम-झूम गावत गीत ( महतारी का आगा बेटी के बिलाप )

जमते मइया माहुर दे के, काहे ना दिहलू मारी ? हमरा के नाहक पालन करे में सासत सहलू भारी || आठ मास नव उदर का भीतर, बाहर गोद मँझारी । दूध पिया के, तेल लगा के, काया के दिहलू संवारी ॥ बानी बालक बयस के थोरी, नइखे बुद्धि-विचारी । जो कुछ चूक होत अनजानत, माफ करहु महतारी ॥ ना कुछ चूक होई अब हम से, परतानी पाँव तिहारी । कहे भिखारी मति द मइया घर से हमें निकारी ॥ ( महतारी के तोख-बोध भरल गीत )

( पूर्वी )

( महतारी समुझावतारी )

चूप होखड प्रान के आधारी सुकुमारी प्यारी, बिधि लिखि दिकूलन लिलार में दुलरुई । देस परदेस, घर-बाहर भोगे के परी, दिन-रात मोर बात मानि ल दुलरुई । -

अनल बेटी परवस अँखिया के रुई ।

पथलवा सेहु बिछुरत नाहीं छूटत परान मोर, छतिया ना हउए दुलई ।

आदि के जमाना चाहें, आज के जमाना चाहे अन्त के जमाना से चलाना वा दुलई ।

जनमाइ पोसि पालि के भेजाइ देत,

बिना तोहरा के मोरा भवन उदास लागी निसदिन अँखिया के पुतरी दुलरुई ।

नव मास डोड़ कर, लेटर बाकस मही, सब दुख गावल फुसार वा दुलरुई । खाटा-मीठा-तींता तेजि देनी बबुई के हेतु

सउरी में सधि कर

रहनी दुलहई |

-सोचला पर दुख मोरा लागत बा पहाड़ लेखा कहनो ना जात वा भिखारी से दुलरुई ।

( बेटी के बिलाप )

( चौपाई ) हाय पिता, हाय मइया मेसे । भइया तोहरा गोड़ के चेरी ॥ हाय भउजी, सब सखी सयानी | हम से काइ भइल नुकसानी ? टोला-परोसा के नर-नारी । एह कौतुक के बिलोकनहारी ॥ पत्नी बालक पति बूढ़ा जवरे । होखत सुमंगली उठावत कवरे ॥

हाय गाँव के खरिका करत ढेंकारत खानी 1 चाचा-चाची मन में मुसुकाती ॥ जइसे कचरत पान - कसइली । बबुई जनम-लोक से गइली ॥ गाँव के कुलपरिवास | । हमें धसोरत बीच ही धारा ।। अनहित होत काम नहि आवत । केहू ना बाबू के समुझावत ॥ एह घरी पर केहू होखहु सहाई । विदा करे पावे मति माई ॥ कहे भिखारी भिक्षा दीजै । अतना विनय मोर सुनि लीजै ॥ ( विदाई का बेरा दुलहा दहेज मांगतारे)

दुलहा परनाम माई जो !

सामु जीहीं । दुलहा : दहेज हमरा के दीहीं ।

( सासु मुट्ठी में वान्हि के पइसा देतारी )

बुलहा ई हम ना लेवि हमरा के एगो गाय दीं, दूध पिये के । सासु : गाय होई त रावा के ना देवि त केकरा के देव ? अवहीं ईहे.

वा ले जाई ।

दुलहा ! सलाम बाबू जी !

ससुर जीहीं ।

दुलहा: दहेज हमरा के दीहीं ।

(ससुर पइसा देतारे )

दुलहा ई ना लेबि । घोड़ा दीं दोगांवा चढ़े के ।

ससुर अबकी ईहे ले जाई । घोड़ा होई त रावा के ना देहब त ककेरा के देव ?

सखी ( पइसा देत ) ए बबुआ, हुई ले ले जा ।

दुलहा परनाम ।

( चल जा तारे )

समाजी :

( चौपाई )

एहि विधि होत वरात विदाई | दुलहा के मन अति हरखाई ॥

दुअरा पर बा धइल मेयाना' ।

एहि बिधि करत बरात पेयाना ॥

चढ़ी मेवान सेयान उपाती । पति के घर में गई बिलखाती ॥

बीते ना

दुलहिन रूस के नइहर आई ॥

बेटा गिरे पिता पग जाई । तुरते दुलहा धाई ॥

माता रोवे-धुनि-धुनि

नार-नारी के

लागल

भीर ॥

( उपातो रूस के नइहर मा गइली । तब ले दुलहा लाठी लेके घावल पहुंचातार ई कहत )

दुलहा : ना फिरवू ? ना फिरबू ?

( पहुंचला पर एक आदमी लाठी घ लेता हूँ हूँ कहत)

दुहहा ना, छोड़ी सभे । वे मरले जान ना छोड़ब एको बात के सवाल ना सुने, साहेब ! एक लोटा पानी मंगला से ना देवे ।

अंगना में एगो सखी के प्रवेश )

सखी : ए चटक बो काकी, उपातो बबी नू अइली हा ?

कछू दिवस

पाई ।

सिर ।

मतारी : ( उपातो से ) काहे रूस के अइलू ए हमार करेज ?

सखी का करेज, करेज कइले बाड हो ? दुआर पर झांदल तू आके खाड़ा बाडे ।

दुलहा : सलाम माई जी । सासु सलाम ना जे कथी दो ।

दुलहा सलाम बाबूजी ।

ससुर : जीहीं। कहीं साहेब, ना लड़को दुइए महीना गइला भइल, ना चारे महोता, तब तक ले लड़की रूस के हमरा घरे भाग आइल । अबहीं त उहाँ से हमरा मर-मिठाई नू आवे के ह

सखी : आइ हो बाबा, हमनिओं के भूमर गावत गावत गला फंस गइल जे चटक काका का समधियान से आम, कटहर, आहुर-पुरिया, मिठाई आई त हमनी का मिली। आई कवना दो मुलुक में सादी कइलन कि करिखाहा हाँडी लेखा मुँह कइले आवता ।

दुलहा : साहेब, से कहीं जे आम, बड़हर, केरा, मर-मिठाई सभ गाड़ी पर लादल महजूद, बाकी घर में अनपटरी हो गइल त हम का करी साहेब ?

एगो पंच: हैं, हॅ, रावा का घटले वा साहेब !

चटक कहीं साहेब, हमरा अइसन नालायक कुटुम से सादी भइल जे दुनिया भर में हँसवा के घ दीहल ।

दुलहा कहीं साहेब, अइसन भकोल कुटुम से कामे परल कि हमरा के चउहही भर में हँसवा के घ देलन ।

चटक कहीं साहेब, हमरा खान्दान के इनिका पेसाब ना मिले के चाहीं ।

दुलहा : हमरा खान्दान के तोहरा टट्टी ना मिले के चाहीं । सोरह स रोपेया गना के लामा-लामा बात बतिआवतारे ।

चटक लेबs रोपेया के नाँव तू ?

( ससुर दामाद के हाथा चाँही धारा-धरी )

सासु : ( पंच से ) ए रवों सुनीं। इनिका के हमरा दुआर प से खदेर दीं । नात, इंडिया उठा के इनिकर कपारे फोरव । कहीं त, जइसन हमरा बेटी का गोड़ में रूपवा ओइसन एह करिखाहा का मुँह में रूप हइस ?

पंच अइसे ना कहे के ।

बुलहा हमरे रूप में तहार बेटी लगिहूँ ? सोरह स रोपेया गना के कंठा- हंसुली पेन्हले चलतारू ?

( हल्ला-गुल्ला होता पंच केशान करे के परता )

- दुलहा : ना. संगे संगे विदाई करवा दीं। पंच: कहीं संगे संगे विदाई होला ?

पंच ( दुलहा से ) एही में ईजति वा? वटीं दस दिन, दस दिन के दिन धरवा दिआता ।

दुलहा एक लोटा पानी के देनिहार के नइखे | सखी है, पानी के देनिहार तोहरा के नइखे, बाको अव ले तोहरा के पानी के देत रहल हा ?

दुलहा : अब ले राम जी रहलो हाँ ।

सखी हैं, ए मुँहवाँ प तोहरा के रामजो पानी देवे आवतारन ।

दुलहा तो हम को क्या समझती है ?

सखी : तोहरा के बुढ़वा बानर समझती है ।

दुलहा हम तोहरा के बुढ़िया वनरों समझतानीं । पंच: ए जी, चटक जी, ई सभ झंझट छोड़ीं। आखिर घर-दुआर छूटहीं

के नइखे, बिदाई कर दोहीं।

चटक (जनाना से ) ए गजरा के माई, सुन। आखिर घर-दुआर छूटे

के नइखे। बिदाई के के झझट हटाव । ( बेटी के मतारी रो-रो के कहातारी )

मतारी :

चौपाई

अपने मन से भइल भूषा बेटी काटि के डलल कूपा ॥

बूढ़ा बर से सादी कइलs |

गाँव-घर का चीत से गइलs ||

अइसन जग में कइल ना कोई ।

जिनिगी भर मोर बबुई रोई ॥

दिल से दया दूर कइ दिहल । अजस पातक सिर पर लिहलs || सरप हो के दिहलऽ डंस । अब ना बेटी के बढ़ी बस ॥ बाप ना हउअ हउन भूत । अब ना बेटी खेलइहन पूत । वाप ना हउअ हउअ जीन । वुई के बा नाया सीन || तोहरा आँख में परल बूर। कइलs वुड़वा वर मंजूर ।। कहे भिखारी लालच कइलs | लोक-वेद के इज्जत खइलऽ ।।

सखी: चुप रहए चटक वो काकी ! इनिकर जिनिगी आबाद रहो त साले भर में मोहन नाती खेला लोहा ।

( दुलहा से हँसी करत ) ए बबुआ सुनs एगो काम करिह जे

बजार से एक वोतल सालसा मँगा के दूनो टाइम साँझ सबेरे पिमले जइहs ई पिअव त मोटा के लाल तगड़ा हो जइबs | तब लागी खट-खट लड़िका हो । आना निवडत कवन ठोक वा जे अगिला पुरनवाँसो ले रहा कि रामजी प जइबs |

दुलहा मुनीं, रवो के एगो हम कहतानीं तवन रावा करें। रवो एक बोतल सालसा मँगा के पीहीं त रवो भरल-भरल लड़िका होई । पंच: विदाई कर ।

( बेटी बाप का आगा रो-रो के विलाप करतारी )

(पूर्वी)

बेटी गिरिजा कुमार कर दुखवा हमार पार, दर-दर दरकत वा लोर मोर हो बाबू जी ।

पहल-गुनल भूलि गइल समदल भेंडा भइल सउदा बेसाहे में ठगइलs हो बाबू जी |

के अइसन जादू कइल, पागल, तोहार मति भइल, नेटी काटि के बेटी भसिअवलऽ हो वाव जी । रोपेया गिनाइ लिहलs, पगहा धराड़ दिहल चेरिया के छेरिया बनवला हो बाबू जी ।

( बाप का गोड़ लगे बइठतारी )

( बीच में पंच के टोकारी )

यंत्र लड़की रोअतारी जोड़ी खातिर जवना जोड़ी के हमनी का मरदाना हो के बखान करीला जे फलाना के दुआर कइसन सोमता एक जोड़ी बैल बा, चाहे एक जोड़ी घोड़ा वा अथवा कुत्ता कबूतर के जोड़ी के बखान करतानीं । आ आदमी के जोड़ी नइखे लागत, जे हमनी के अपना से खोजि के लगाने के बा, सेकर जोड़ी नइखे लागत जे आदमी के सब कुछ के जोड़ो लाग जाय आ अपना बेटी दमाद के जोड़ों ना लागे त जाने के चाहीं कि हमार सभ दिन के जोड़ी लगावल आज अनेर हो गइल |

( बेटी-बिलाप आगे बढ़ता )

साफ क के आँगन गली के छीपा लोटा जूठ मलिके बनि के रहली माई के टहलनी हो बाबूजी । गोबर - करसी कइला से, पियहा-छुतिहर घइला से कवना करनियाँ में चुकलीं हो बाबू जी बाबजी वर खोजे चलि गइलs, माल लेके घर में धइलs दादा लेखा खोजल दुलहवा हो बाबजी । अइसन देखवल दुख, सपना भइल सुख सोनवां में डलल सोहागावा हो बाबू जी ।

पर से बुढ़ऊ से सादी भइल सुख वो सोहाग गइल घर हर चलववलऽ हो बाबजी । अवहूँ से करs चेत, देखि के पुरान सेत डोला का, मोलवा मोलइह मत हो बाबू जी ।

पंच घूठी पर धोती तोर, आस कइल नास मोर पगली पर बगली भरवल हो बाबू जी । हँसत वा लोग गइयों के सूरत देखि के सँइयाँ के खाइके जहर मरि जाइव हम हो बाबूजी । अंडा सिलावत बच्चा बोल ।

बेटी बाप के कहत भकोल ||

आज हमनो का आना, चार आना से सदा कोने बजार में जातानी त समुझाने के परता जे भातु चतुर आदमी से सउदा किनवइहs ना त तू ठगा जइबः । त बताई, दू आना, चार आना के सउदा ठगइला के हमनी का अतना फिकिर रहता। बाकी जेह लड़की के पति खरिद ये जातारन ओह लड़की से ना कहाय कि बाबूजो हमार बर नोमन खोजिहड़, घर नीमन खोजि । एह अनबोलता के हइसन जवून सउदा खरिदाजातारन । काहे ? आज-काल्ह इज्जत बड़का हो गइल बाड़न. धरम छोटका हो गइल बाड़न । धरम के बड़का समुझल हा के ?

शिवि दधीचि हरिचंद नरेसू । धर्म हेतु सह कोटि कलेसू ||

धरम के बड़का ऊहे लोग समुझल हा । लड़की के सुख देल जो धरम बुझाय त जोर से बोले के- बोलिये राजा रामचन्द्र की जय ।

( लड़की के विलाप जारी रहता )

खुसी से होता विदाई, पथल छाती कइलस माई दूधवा पिआइ विसराइ देली हो बाबजी ।

अभागा अगुआ मुलागा अगुआन होके पूड़ी खाके छूडी पेसि दिहलसि हो बाबूजी ।

लाज सभ छोड़ि कर, दूनो हाथ जोड़ कर चित में के गीत हम गावत वानी हो बाबजी ।

प्राणनाथ धइलन हाथ, कइसे के निवही अब साथ,

इहे गुन-गुनि सिर धूनत वानी हो बाबूजी । वृद्ध बाड़न पति मोर, चढल वा जवानी जोर जरिया के अरिया से कटलर हो बाबूजी ।

रोवत बानी सिर धुनि इहे छछनल सुनि बेटी मति बेंचे दीह केहू के हो बाबूजी । आपन होखे तेकरो के पूछे आवे सेकरों के दीह मति पति दुलहिन जोग हो बाबूजी । आँखि से सूझत कम, हरदम खींचत दम, माथवा के बारवा चँवरवा हो बाबूजी ।

हूकुर हूकुर छाती, करत बाटे दिन-राती, अधजीव दुलहा पसन कइलs हो बाबूजी । -

घरी घरी होता झरी, साक से भरल नरी, नरक बीगत दिन बीती मोर हो बाबू जी ।

पंच : आजु हमनी का पूछतानोजा जे कवन लड़िका भइल हा त कहे के परता कि लछिमी भइली हा । ओह लछिमी से कतना सुख परापत बा। गया जी में गइला प पहिले नने-नानी के पिंडा दिआला । नाती हवन से बेटिये के जर से जवना गया जी में राब देस के लोग आवेला पिंडा पारे खातिर, जवना पिंडा में घीव परता, मधु परता, मखाना परता, आ ऊ पिंडा पहिले नाना-नानी के दिभाता त जवना लड़की से अतना लाभ का

ओह लड़की के डोल। नइखीं काढ़ देत, चाना उगाह के नइखीं सादी के देत त आजु बाच देतानीं । एह ले अधरम एको नइखे । 

बेटी :

लूजुर-लूजुर पिया, देखs मुँह लेके दिया,

कहीं कइसे कहे नइखे आवत हो बाबूजी । मुहवा में दात नाहीं, भात चुवेला गाल माहीं, भीतरी सलंदर हो बाबजी ।

बावलाप जीभ दाँत ओठ गाल, पान से भइल बा लाल, काल लेखा लागत वा सुरतिया हो बाबू जी ।

रतिया के छतिया में बतिया जरेला मोरा, बीच डललस विचवान मोर हो बाबूजी ।

हम कहि के जात बानी, होई अबकी जीव के हानी,

नाहीं देखव नइहर नगरिया हो बाबू जी ।

रोइ रोइ गवला के अइसन पद मिलवला के, नाम ग्राम कहिके सुनावत बानी हो बाब जी ।

हई हम नाई जात, खोलि दिलों मुख बात, लछिमी के लछन उतरला हो बाब ूजी ।

पूरब के कोना घर, गंगा के किनार पर छपरा से तीन कोस दिअरा में बाबूजी ।

कहत भिखारी तू खरारी के इयाद करें, फेरु मति करिह अइसन काम तू हो बाबूजी ।

हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे । हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे ॥

( बेटी विलाप )

बाब मोर छछनक्ल जियरा ।

रस से बस, मलवाल भइल मत, चढ़ल जवानी बा जोर । मोर दिने राति कबो कलना परत वा, गुनत-गुनत होत भोर मोर बाल-वृद्ध एक संग कइ दिहल, पथल के छाती बा तोर | मोर०। कहत भिखारी जवानी काल बा, मदन देत झकझोर | मोर० ।

( बेटी के विलाप बाप से )

करिल कान, करिलऽ कान, करिल कान, करिल कान ।

वहदीं बाबू से सब लोग, अवहीं नइखीं स्वामी जोग,

बयस बहुते बा नादान । करिल कान दुलहा नब्बे बरिस से कम, बानी नवके दूना हम, नाहक भइल सेन्दुर-दान | करिल‍ कान

जब हम होखव मस्त जवान, बालम सुतिह्न चादर तान, खटिया पहुँची घाट मसान । करिल कान

करत भिखारी गान, हमरा खातिर सूरज चान, काहे भइलन अंतर्धान । करिल कान

( मतारी से )

माता सुन, माता सुन, माता सुन, माता सुन । बढ़ा-बालक में मेल, तेह से भलहीं वा अकेल, वाटे पंचगून । उमर माता

काठ, पथल समान एगो जीव का ठेकान ? देह में तनिको नइखे खून | माता

दुलहा दुलहिन चाहीं जोग, जइसे लावेला सभ लोग, तरकारी दाल में नून । माता जोरिके कहत भिखारी कर, नगर भर के नारी नर । लोगवा कहत बा जब न । माता

(सवइया )

असली यह नाच भिखारी हजाम के, ग्राम के नाम कुतुबपुर है । देखिये सुनिये वार्ता मरजाद से, आदि से अंत नहीं दूर है । कबहूँ-कबहूँ अबहू निजहूँ कुछ ब्यान सुनावत जो लूर है । देखन के जलसा ललसा कर मातृभासा घर के गूर है ।

( बेटी वियोग समाप्त )


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लेख
भिखारी ठाकुर ग्रंथावली
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भिखारी ठाकुर (1887-1971) एक भारतीय भोजपुरी भाषा के कवि, नाटककार, गीतकार, अभिनेता, लोक नर्तक, लोक गायक और सामाजिक कार्यकर्ता थे. उन्हें भोजपुरी भाषा के सबसे महान लेखकों में से एक और पूर्वांचल और बिहार के सबसे लोकप्रिय लोक लेखक के रूप में माना जाता है. भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर 1887 को बिहार के सारण (छपरा) जिले के कुतुबपुर (दियारा) में हुआ था. उनके पिता का नाम दल सिंगार ठाकुर और माता का नाम शिवकली देवी था. उनके पिता लोगों की हजामत बनाते थे. भिखारी ठाकुर ने सामाजिक समस्याओं और मुद्दों पर बोल-चाल की भाषा में गीतों की रचना की. उन्होंने भोजपुरी गीतों और नाटकों की रचना की. 1930 से 1970 के बीच भिखारी ठाकुर की नाच मंडली असम, बंगाल, नेपाल आदि कई शहरों में जा कर टिकट पर नाच दिखाती थी. भिखारी ठाकुर को "भोजपुरी का शेक्सपियर" भी कहा जाता है. महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें "भोजपुरी का शेक्सपीयर" की उपाधी दी. अंग्रेज़ों ने उन्हें "राय बहादुर" की उपाधि दी. हिंदी के साहित्यकारों ने उन्हें "अनगढ़ हीरा" जैसे उपनाम से विभूषित किया.
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बिदेसिया

14 October 2023
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 बिदेसिया  ( सुधार मंच पर आके मंगलाचरण सुनावतारे )  श्लोक  वामां के च विभातिभूधरसुता देवापगा मस्तके भाले बालविधुर्गलेच गरलंयस्वोरसि व्यालराट् सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवर: सर्वाधिपः सर्वदा शर्वः सर्वगतः

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बिदेसिया - 2

15 October 2023
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 आवेलाआसाढ़ मास, लागेला अधिकआस, बरखा में पियाघरे रहितन बटोहिया ।  पियाअइतन बुनियाँ में, राखि लिहतनदुनियाँ में अखड़ेला अधिकासावनवाँ बटोहिया ।  आई जब मास भादों, सभे खेली दही- कादो, कृस्न के जनम बीतीअ

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भाई बिरोध नाटक

17 October 2023
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समाजी: सिरि गनेस महादेव भवानी, रामा हो रामा रामा, भरत लखन रिपुसूदन रामा रामा हो रामा रामा, लघु नाटक चाहत मन करना, रामा हो रामा रामा, देहु कृपा करि, राखहु सरना, रामा हो रामा । रामा, सब सज्जन से बिनय है

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बेटी वियोग

18 October 2023
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समाजी : ( चौपाई श्री गणेश पद नाऊ माथा । तब गाऊ कुँवरी कर काथा ।। गावत बानीं लोभ के लीला । जेहि से होत जगत में गीला ॥ बेचत बेटी मन हरखाई । छोटत ज्ञान ना परत लखाई ॥ सो सब हेतु कहब करि गाना । सुनहु कृपा

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कलियुग प्रेम

18 October 2023
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दुलहारिन निसा खा के पिया मोर, निसा खा के पिया मोर दिहलन कपार फोर, (से) परल बानी तिसइन का पालवा हो लाल (से) परल बानी बेंचि के चौकठ केवारी, बेंचि के चौकठ केवारी तन पर के हमरा सारी, (से) सेतिहे में व

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राधेश्याम बहार

19 October 2023
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बंदना (चौपाई ) श्री गणेश के लागी पाँव । जगत जपत वा जिनिकर नाँव || विप्र चरन में नाऊ सीस जे वा दुनियाँ भर में बीस !! सन्त चरन में नाऊँ माथ । जिन्ह परगट कइलन रघुनाथ ॥ बासुदेव देवकी पद लागू । बार-बार अत

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एगो किताब पढ़ल जाला

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