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कलियुग प्रेम

18 October 2023

8 देखल गइल 8

दुलहारिन

निसा खा के पिया मोर, निसा खा के पिया मोर दिहलन कपार फोर, (से) परल बानी तिसइन का

पालवा हो लाल

(से) परल बानी

बेंचि के चौकठ केवारी, बेंचि के चौकठ केवारी तन पर के हमरा सारी, (से) सेतिहे में विगलन

मोहरमालावा हो लाल (से) परल बानी ’

कहला पर दुख मानि के, कहला पर दुख मानि के झोटवा धरेलन फानि के, (से) मालवा बनि के भइले

जिव के कालवा हो लाल

(से) परल बानी -

कहत भिखारी ठाकुर, कहत भिखारी ठाकुर दियरा में घर कुतुबपुर, (से) भोगत बानीं चालवा के

फलवा हो लार.

(से) परल बानी

( घुन पूर्वी )

समाजी :

सिर नाइ चरन में गौरी सुत गनेसजी के गावतानी निसइल के गीत पिअऊ निसइल |

समाज में के एक आदमी एक निसइल निसा खातिर समूचा धन बेंच देलस लरिका का हाथ में एगो वेरा रहि गइल बा ।

एहू खातिर पहुंचंहीं चाहता । ( निसइल कूदत-फानन आवत्ता। लोग धरता । ) ( रो-रो के कनामधुन पूर्वी )

दुखहारिन कतना दिनन से कहत वानी तोहरा से

कइलs ना कान हमार बाल पिअऊ निसइल | बेंचि के कमाई पुरुखन के उड़ाइ कर अपने भइलs लहँगाझार पिअऊ निसइल । खेत-बारी गहना तू बेंच दल निसा खातिर घरे नइखे छीपा के ठेकान पियऊ निसइल | सूई - डोरा घर में ना, लुगरी फाटल वाटे लड़िका रहत वा उधार पिऊ नसइल | पॅडचा मिलत नइखे कवन जतन करों हफ़्ता से बीतता उपास पिअऊ निसइल | धन में रहल बाटे वेरा लड़िका का हाथे तेहि खातिर करत बाड़s मार पिअऊ निसइल | लड़का : ई वेरा इनिके ह ? ई त नानी देले बिया ।

दुखहारिन : काढ़ि के सोनार घर, वेंचिद अबहीं जा के खरची के रचि द उपाय पिअऊ निसइल | अगिया लागल वाटे अन बिनु पेटवा में चाक लेखा नाचता कपार पिअऊ निसइल | रहता चले को तनी हूव ना करत बाटे हमरा के अन में मिला द पिअऊ निसइल | चिखना- संराव छीड लड़िक के मुह दख अतना अरज मीर मानs पिअऊ निसइल |

छोड़ि द सराव तोहे, कहता खराव समै हँसता नगरिया के लोग पिअऊ निसइल | कुल परिवार के खियाल कर मन माहीं जइसन हउवऽ खानदान पियऊ निसइल | भज सीताराम हई जाति के हजाम, मोर नाम है भिखारी जिला सारन पिअऊ निसइल | पोस्ट गुलटेनगंज, कुतुबपुर मोकाम खास दिअरा में गंगा के किनार पिऊ निसइल |

(विलाप गीत - २)

दुखहारिन कइलन निरमोही डबल घात । हमरा खातिर एक दिन नइहर में साजि के ले गइलन बरात । घात

निसइल : दोस्त !

समाजी : हॅ दोस्त

निसइल एह सादी में जइसन हम ठगान ठगइली ओइसन हमार कुल

परिवार ना ठगाइल होई ।

( गीत जारी )

दुखहारिन : ऊ दिन भोर भइल पिअऊ का अब दारू-ताड़ी सोहात । घात

पी के के घर में धूम मचावत

ताबर तोर ओकात । घात'

निसइल : कहिया ओकइली हाँ हो ?

लड़का : ओकइल) हा ना ? ओही दिन नू ओकात ओकात मोरी में गिरलऽ रहs ?

( गीत जारी )

बुखहारिन :

रात दिन गारी चाहे फजित

भारत जूता लात । घात'

आध पाव खरची नइखे घर में लड़का भूखे मरि जात। घात" ई दुख आइ के पहुँचल सिर पर हमरा से नइखे सहात । घात" अव का कहीं वस्तर नइखे तन पर सगरो गतर लखात । घात कतनो कहीले वरजल ना मानसु हमरे पर खिसिआत । घात' होत नतीजा पिउ का हाथ से नइखे भिखारी से कहात । घात

समाजी अतना बचनियाँ कहली जब धनियाँ त बेटा रोके कहत रिसाइ के हो बाबूजी । (निसइल दुखहारिन का कपार पर लाठी चला देतारे)

(पूर्वी)

लड़का :हा पिता, तुम क्या किया, नशा में होकर चूर । सोंटा से तुमने दिया, मइया के माथा थूर ॥ रो रही अछुधाह होकर, खास पति के हजूर । कहे भिखारी इज्जत के आज खिल्लत हो गइल धूर ॥

सिद्दल : चुगलखोर वदमास, अरे तू सोझा से हट जाव । चार दिना के जामल बच्चा, हमें सिखावत दाव ॥ अरे बदमास, लुच्चा ! तू बोलने वाला कौन ?

लड़का: बेटा ।

सिद्दल किसका ?

लड़का खास आपही का

निसइल : कैसे ?

लड़का : जनमाया जइसे ।

मिसाइल : मैं नहीं जनमाया तेरी महतारी ने जनमाया है जिसका तू पक्ष करता है ।

लड़का : हम क्या पक्ष करेंगे ? नाहक में नशा खाकर नारपोट करते हैं।

निसइल : बढ़-चढ़ करबs बेसी जबाब । सोझा बने के खासा नवाब || दूर होख अबहीं बेइमान | झट झट बोलत चोर समान ॥ करवड खूब मातु के पाला । कहियो काटव छूरी से गाला ॥ अकेला में भेंटा जइबs त तोहरा लाद में छूड़ी पेस देवि ।

( चोपाई )

( चौपाई )

लड़का :

बाबू

कइली कवन

मन कइलs

बेटा से कसूर ? दूर । बाबू खेलल अइसन खेल | दारू में सब धन देलs ढकेल || बाबू देह भइल बा सून । भर पेट मिलत ना एको जुन ॥ सहल जात नइखे दुख भारी । छोड़ द बाबू दारू - ताड़ी ॥ हिन्दू - मुसलमान

गाँव के लोग देत सब गारी ।

नर नारी ॥ 

बाबू छोड़ नीच के काम । बेड़ा पार लगइहन राम || से जो चेतबs घर । तनिक ना लागी काल से डर ।। - हम लड़िका कतना समुझाई। अवहीं सूझत ना दहिना बाई ॥ दुख से जीव भइल दुसमन का घर बाजत बाबू सुनs बात अनमोल । कहे भिखारी परदा बकलोल । ढोल ॥ खोल ।।

( छन्द )

निसइल : रे बेहूदा हट सोझा से ना तो मारव जान से । करत खल माई के पछ, बोलत बहुत अभिमान से । हम जो शिक्षा देत निसिदिन सुनत नाहीं कुछ ध्यान से । कहें भिखारी जीव दुखित बा एह बेटा सैतान से | इस बदमास का मुँह देखने से दोष होगा, क्योंकि बाप को ज्ञान सिखाता है। इसको कुछ मालूम नहीं, नशा की निन्दा करने में खास पंडित बन जाता है। अरे नशा वही चीज है जिसको खाकर देवों में महादेव हुए।

लड़का : तो क्या आप वही हैं ?

निसइल हाँ-हाँ, तुम्हारे लिए ।

लड़का हमारे लिए तो वही हैं लेकिन आपकी हालत वही होगी जो

हिरण्यकश्यप की थी।

निसइल 1 तो क्या तुम प्रहलाद हो ? लड़का : आपके लिए जरूर हूँ ।

सिद्दल : सोझा से हट कुकर्मी, मेरा नाश करने के लिए प्रहलाद बनता है ।

लड़का नाश तो हो चुका फिर दूसरा नाश है कौन ? बोलने का कुछ काम नहीं, रहो पिता हो मौन ॥

निसइल हम क्या मौन रहेंगे, मोन बेलूरा तूम । खरचदार खन्दान में हुआ नालायक सूम ॥ में बड़का टूम ॥ करब घर बड़का धूम | माई बेटा के भूली

टूम त भूलल ओही दिन | भइलs निसा के अधीन ॥

लड़का :

छीपा बेचि के खइल पान । भरसक भइल बा अतना सान ॥ सानी बबुआ जनवे कब ? मुँह में थापर बाजी तव ।। तनिको बाँह जो पकड़े पाइव । तोहरे नाम के ढोल छत्राइब ॥

निसइल :

लड़का :

(सवइया)

खाइ निसा के किस्सा बहु भाखत लाज ना लागत एको रती । हाय पिता धिवकार तुझे, कलपावत नाहक व्याही सती । बेटा के चाम के ढोल छवावे के कवन गुरू सिखलाई मती । कहे भिखारी ओढ़ा दे सिर पर माई बेटा के महा बिपती ।

निसइल :

( सवइया)

बिपती अबहीं नहि मीलत बा, हमरे सँग में तुम खेलहु खेला । साँच बतावहु कूर कपूत भये कवना गुरू से कब चेला ।

1 लड़का : शास्त्र में ॥ अकेला राम लखन को घेरा खर दूसन ने चौदह हजार सुभट, तुमको गते ॥ मार के निपात किया पल- मात्र में । देखो समझ के गवात

माई बेटा के सिखा कर पोढ़ किया थोरही दिन में अलबेला । कहे भिखारी भखोटी उतारव पाइव मैं कहियो जो अकेला । अकेला भेंटा जइबs त तोहार चमड़ी ओदार देव ।

निसद्दल : चौदह करोड़ के ऊपर मैं पिता तेरा हूँ । अभिमानी अधर्मी सूम साँच मैं कहूँ । शास्त्र के पँवारा न मुझको सुनाव | आया निकट काल तेरा आरबल गोहराव ॥ अरवल के बाप मेरा प्राण के आधार ।

श्री राम-राम नाम जो है जग के करतार ॥

वही मेरा माता-पिता सुत दारा भइया ।

वही भवसागर

के

नाव खेवइया ।

निसइल

: वही राम बेड़ा तेरा लगावेगा पार सीता को कलंक ला के दिया जो निकार ॥ राम कह के दशरथ जी का अंत हुआ प्रान । उन्हीं पर किया है तू अतिना गुमान ? दिल में विचार कहन का मेरा ।

लड़का :

लड़का |

सनमुख निन्दा करत बाटे सब केहू तनिको ना मन में सरम बा तेरा । दिल० । दिन-रात झगरत बहु-बेटा से

लोग नगर के हँसत चहुँ फेरा। दिल० ।

1

चानी ना हाथ में, काल परल वाटे एही खातिर मइया पर चलल असेरा दिल कहत भिखारी आखिरी वीतत वाटे

जल्दी निकालs जुझावत वा बेरा दिल |

निसइल : आरे दुष्ट, लोग हँसत वा कि तोहनी का मतारी-बेटा रात-दिन हमरा निशा के निन्दा करत रहतार से |

( चौपाई )

समाजी पिता पुत्र के मारन धाई । तुरते मइया गोद लगाई ॥ तब दुखहारिन जोड़ के हाथ । करे विनय सुनिये मोर नाथ ॥

( गीत )

दुखहारिन :

कर अवगुन माफ, बबुआ के नाथ ।

पुत्र पानी एक दिन थकला पर दीही इहे वा स्वार्थं । नाथ करs

तुम खोजत बुद्धी अपने अस

कहाँ चरन कहाँ माथ ! नाथ करS -

चाहे दुलार मार चाहे गारी,

सब कुछ तोहरे हाथ | नाथ करs -

कहत भिखारी जिअब कतहू लेके,

राखब अपने साथ । नाथ कर

(घुन पूर्वी )

बालक अबुझ पर बुझ कर के माफ कर निपट नदान अनजान पियऊ निसइल

अबुध जानत नाहीं, एही से मानत नाही

बड़ छोट नइखे विचार पिअऊ निस इल दुख से मरत

बानीं पंइयाँ परत बानीं

हमरा पर करहु खेयाल पिअऊ निसइल ।

अंचरा पसारि भीख माँगत बानीं स्वामीजी से बबुआ के छोड़ा जीवदान पिअऊ निसइल |

घर-घर भीख

माँगब, बबुआ के संगे राखब

देखि देखि मन के वुझाइब पिअऊ निसइल | करहु विचार मन, आवत वा चउथपन

हँसिहन गाँव के गँवार पिअऊ निसइल ।

आगे के निसानी पर होखहु दयाल दानी

बबुआ दी पितर के पानी पिअऊ निसइल |

बबुआ से बढ़कर, दोसर कवन जर

हमनी का वाटे से बता द पिअऊ निसइल | हमनी का मनि फनि, बबुआ ह नागमनि

मन में करोध जनि राखs पिअऊ निसइल |

करवs करोध, नइखे मन में तनिक बोध

काँच वा उमिर अकुलाई पिअऊ निसइल ।

भाग के पराई कवनो मुलुक में जाई तब

कहत भिखारी कइसन होई पिअऊ निसइल | , जिला

कुतुबपुर ग्राम होके, जात के हजाम छपरा में परत मोकाम पिअऊ निसइल |

पोस्ट गुलटेन गंज, पिया मति होख रंज बेटा लेके करहु बहार पिअऊ निसइल |

समाजी :

( चौपाई )

कहल - सुनल मन में ना लागे । उठ कर निसइल तुरते भागे ॥

अँइठत निसइल गइलन तहँवाँ । रंडी रहे भवन में जहवाँ ॥

दुखहारिन :

(विलाप गीत )

कहवाँ लगवलs अतना देरी, ए दायानिधि ! कहाँ लगवलs अतना देरी !

एह दरिद्र के दाग दूर कर5, काटs करम के फेरी, ए दायानिधि !

हम मतिहीन विनय करों कइसे ?

चाल चलन के छेरी, ए दायानिधि !

बड़ दुख दाह साहस वा कमती, परवा पर चढ़ल पसेरी, ए दायानिधि !

औरत हो के परत बानी पग पर, तोहरा चरन के चेरी, ए दायानिधि !

कहत भिखारी दायानिधि दाया कर विपति चहूँ दिसि घेरी, ए दायानिधि !

( चौपाई )

नइखे मीलत भरि पेट अन ।

पिअऊ निसा में बेंचलन धन ॥

बड़का बेटा कहाँ दो गइल ।

एही से बेसी नतीजा भइल |

पिअऊ का मारे छोड़लस घर । हम सब विधि से भइलीं सर ।। आइ के ई दुख देखिते शंकर । भाई-माई भइल भयंकर || छोटका के वा बच्चापन । अब हम करों कवन जतन ? कवना जर से खरची आई ? कइसे लड़िका पालल जाई ? कब के छिपल पाप प्रगटाइल । जेहि से पति के मति बउराइल | मति के सुद्ध करs जगबंदन । जय जय पारवती के नंदन ॥ जय राधाबर कुंजबिहारी । पति के मति भल कर गिरधारी ।। जय सीतापति सुख के सागर । पति का मति के कर5 उजागर ॥ जय जय जय जय शिव के सती । निमन बना द पिअऊ के मती ।। जय जगदीस ओड़ीसाबासी । शेअत बाड़ी चरन के दासी ॥ तोहरे पर बा पाका आसा । कब लवटी पापिन के पासा ।। कहे भिखारी होत बा देरी । अवघट परल चरन के चेरी ॥

समाजी

( चोपाई )

आइल निसइल रंडी साथा । रिस बस सोंटा गहिकर हाथा ॥ मारन चले लोग बहु धाई । धर कर बाँह निकट बइठाई ॥

एक आदमी (निसइल से) भाई, तनी छड़ी दे द निसइल : हम छड़ी ना देव ।

पंच : (रंडी से) ए माई, तूहीं तनी कहि के डंटा दिवा द ।

रंडी (निसइल से अच्छा छड़ी दे दीं।

(निसइल छड़ी दे तारे)

निसइल :

एह जून चढ़ल बा नया कमान | जानी मिलली कबूतर समान ॥ जानी ना हई हई परान । इनके खातिर बानीं हरान ।।

कतना गाई इनिकर सपूती । इनके ही बाटे सकल बिभूती ॥

कउचित होइहन कतना जीव । हम ना बोलीं लगा के घीव ॥

हमरा सोझा केहुए बोली । फगुआ लेखा खेलाइब होली ॥

दुलहारिन (रडी से रोकर ) तनी तू समुझाइ द बहिनी, तोहर गोड़ परत बानी । हमनी का दूनों मतारी बेटा का बहुत तकलीफ बा । अब सहात नइखे |

रंडी : ए. बहिन किस नाते से कहती हो, बताओ तो भला ।

दुखहारिन सवतिन का नाता से ।

रंडी :

फूटी किसमत वाली ।

फटी लुगरी वालो || मैं दूंगी गाली ।

क्यों बकती खाली ?

भँड वे की साली । खान्दान के कुचाली ॥

मुझसे सरवर करने वाली ।

बाह जी सौतिन बननेवाली ॥

बेसी सान हो तो पानी में मुंह देख अपने मन में विचार कर कि मैं किसके सौतिन योग्य हूँ ।

निसइल : वाह वा, बाह वा, ई नू बोलो है। बोलतारी त इनकरा बोलो में मधु चूवता ।

दुखहारिन :

( रो-रो के गावतारी )

राख सरन के पानी, ए बहिनी !

अन्न वस्तर विनु माई-छोटा का बीतता बहुत हलकानी, ए बहिनी !

एह पागल के अवगुन माफ कर दासी अपनी जानी, ए बहिनी !...

प्राननाथ के तूहीं समुझा द

हो जा तू अटल भवानी ए बहिनी !...

कहत भिखारी जियब हम जबले

तोहरे चरन लपटानी, ए बहिनी !...

रंडी

( गाना )

तू का बने अइलू हमार दासी, ए चोटहो ?

सोझा से दूर होख, चोटही बेसरमी, नाहीं त छोड़ाइव बदमासी, ए चोटहो ।

पूरा-पूरा रोवे के हाल जानत बाड़

नान्हें के बनल हऊ खासी, ए चोटहो ।

हाथ में ना गोड़ में, टकहा लिलार में

मने-मने मारता गाँसी, ए चोटहो ।

जीव लेके भाग कहूँ कहत भिखारी, 2

चाहे मक्का चाहे कासी, ए चोटहो ।

दुखहारिन (बेटा से ) बबुआ, तोहार माई हुई, इनका गोड़ पर गिरकर कह । तोहार कहल सुनिन ।

लड़का : ए माई हमरा दूगो माई आ एगो बाबू, हम कइसे कइसे भइलीं ए माई ।

(गाना)

बहुत करब सेवकाई ए माई !

रात दिन तोहरे अवन में

हरदम रहब लव लाई, ए माई !

मार-पीट गारी चाहे फजित

करब तू कतनो सजाई, ए माई ! 2

बाब के कह करके समुझा द,

तोहरे बा सभ प्रभुताई, ए माई !

कहत भिखारी कसूर माफ कर

गिरली चरन में आई, ए माई !

रंडी

( गाना )

तें का हमार करने सेवकाई रे फुहरा ? हमरा के जहाँ-तहाँ पाछा में रात-दिन

कहेले रखेलिन तोर माई, रे फुहरा । लड़का : ना-ना तोहरा के आज से हमार माई काली जी कही ।

रंडी

(गाना)

खुदे तोर बाप अपमान कइ दिहलसि, भाग मुँह में करिखा पोताई, रे फुहरा । कुरता धोती नीमन मिली, माई के निहोरा कर,

करो कहीं दोसर सगाई, रे फुहरा । कहत भिखारी तोरा हाथ के जो पानी पीअब,

तुरते उपात होई जाई, रे फुहरा । ( चोपाई )

समाजी :

अति उतंग मन चले निसखोरा । रंडी साथ में घर के ओरा ॥

लड़का : ( रोकर )

(चौपाई)

त्राहि-त्राहि जगदम्बा त्राह ।

बाबू धइलन नरक के राह ॥

त्राहि-त्राहि बउरहऊ भोला ।

बाबू के लागल बिख के गोला |

त्राहि काली कलकत्ते वाली । मइया ! एह जून परनी खाली ।

बालक अबुध ज्ञान कुछ नाहीं । गिरली भवसागर के मांही ॥

त्राहि धार में परल बा जीव । खींच के सुखला कर द शिव ॥ अबकी बेरा लगा द पार | हरिहर नाथ जी सुनहु पुकार ॥ गोहाटी परबत के बासी । काटs कमच्छा गला के फांसी ॥ सिर पर पहुचल वीपत भारी । खप्पर खरग ले करहु तेयारी ॥ देवी अबहीं दरसन दे दs । दूख दलीदर पल में खेदऽ ।। गीरत बानी चरन में आज । मइया राखs भिखारी के लाज ॥ ( चौपाई )

माजी

अब आगे कर सुनिये बाता 1 शंकर छोड़ दिहलन कलकत्ता ॥ आवत मन-मन सोचत बाता । देखत कलपत माँ लघु भ्राता ॥ पाँच बरस में घर पर आइल | बाप के डर से रहे पराइल | दुखहारिन के दुख भुलाइल | बहुत सा रुपया रहल कमाइल ॥ बेटा परत मातु के पाँव । दुखहारिन के लवटन दाँव । कहे भिखारी सोच मत कीजै । अमृत नाम राम को पोजै ॥


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लेख
भिखारी ठाकुर ग्रंथावली
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भिखारी ठाकुर (1887-1971) एक भारतीय भोजपुरी भाषा के कवि, नाटककार, गीतकार, अभिनेता, लोक नर्तक, लोक गायक और सामाजिक कार्यकर्ता थे. उन्हें भोजपुरी भाषा के सबसे महान लेखकों में से एक और पूर्वांचल और बिहार के सबसे लोकप्रिय लोक लेखक के रूप में माना जाता है. भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर 1887 को बिहार के सारण (छपरा) जिले के कुतुबपुर (दियारा) में हुआ था. उनके पिता का नाम दल सिंगार ठाकुर और माता का नाम शिवकली देवी था. उनके पिता लोगों की हजामत बनाते थे. भिखारी ठाकुर ने सामाजिक समस्याओं और मुद्दों पर बोल-चाल की भाषा में गीतों की रचना की. उन्होंने भोजपुरी गीतों और नाटकों की रचना की. 1930 से 1970 के बीच भिखारी ठाकुर की नाच मंडली असम, बंगाल, नेपाल आदि कई शहरों में जा कर टिकट पर नाच दिखाती थी. भिखारी ठाकुर को "भोजपुरी का शेक्सपियर" भी कहा जाता है. महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें "भोजपुरी का शेक्सपीयर" की उपाधी दी. अंग्रेज़ों ने उन्हें "राय बहादुर" की उपाधि दी. हिंदी के साहित्यकारों ने उन्हें "अनगढ़ हीरा" जैसे उपनाम से विभूषित किया.
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बिदेसिया

14 October 2023
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 बिदेसिया  ( सुधार मंच पर आके मंगलाचरण सुनावतारे )  श्लोक  वामां के च विभातिभूधरसुता देवापगा मस्तके भाले बालविधुर्गलेच गरलंयस्वोरसि व्यालराट् सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवर: सर्वाधिपः सर्वदा शर्वः सर्वगतः

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बिदेसिया - 2

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 आवेलाआसाढ़ मास, लागेला अधिकआस, बरखा में पियाघरे रहितन बटोहिया ।  पियाअइतन बुनियाँ में, राखि लिहतनदुनियाँ में अखड़ेला अधिकासावनवाँ बटोहिया ।  आई जब मास भादों, सभे खेली दही- कादो, कृस्न के जनम बीतीअ

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भाई बिरोध नाटक

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समाजी: सिरि गनेस महादेव भवानी, रामा हो रामा रामा, भरत लखन रिपुसूदन रामा रामा हो रामा रामा, लघु नाटक चाहत मन करना, रामा हो रामा रामा, देहु कृपा करि, राखहु सरना, रामा हो रामा । रामा, सब सज्जन से बिनय है

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बेटी वियोग

18 October 2023
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समाजी : ( चौपाई श्री गणेश पद नाऊ माथा । तब गाऊ कुँवरी कर काथा ।। गावत बानीं लोभ के लीला । जेहि से होत जगत में गीला ॥ बेचत बेटी मन हरखाई । छोटत ज्ञान ना परत लखाई ॥ सो सब हेतु कहब करि गाना । सुनहु कृपा

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कलियुग प्रेम

18 October 2023
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दुलहारिन निसा खा के पिया मोर, निसा खा के पिया मोर दिहलन कपार फोर, (से) परल बानी तिसइन का पालवा हो लाल (से) परल बानी बेंचि के चौकठ केवारी, बेंचि के चौकठ केवारी तन पर के हमरा सारी, (से) सेतिहे में व

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राधेश्याम बहार

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बंदना (चौपाई ) श्री गणेश के लागी पाँव । जगत जपत वा जिनिकर नाँव || विप्र चरन में नाऊ सीस जे वा दुनियाँ भर में बीस !! सन्त चरन में नाऊँ माथ । जिन्ह परगट कइलन रघुनाथ ॥ बासुदेव देवकी पद लागू । बार-बार अत

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एगो किताब पढ़ल जाला

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