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भाई बिरोध नाटक

17 October 2023

1 देखल गइल 1

समाजी: सिरि गनेस महादेव भवानी, रामा हो रामा रामा, भरत लखन रिपुसूदन रामा रामा हो रामा रामा, लघु नाटक चाहत मन करना, रामा हो रामा रामा, देहु कृपा करि, राखहु सरना, रामा हो रामा । रामा, सब सज्जन से बिनय है मोरी, रामा हो रामा । रामा, रहे भवन एक तीन गो भाई, रामा हो रामा । समा, उपदर, उपकारी ओ उजागर, रामा हो रामा । रामा, उपकारी बाड़न लरकोरा, रामा हो रामा । ( मंच पर उपकारी बहू जंतसारी गा रहल बाड़ी )

चौपाई

रामा, सीस चरन में नवावत बानी, रामा हो रामा

रामा, जानकि सिद्ध करहु सब कामा, रामा हो रामा

रामा, दास भिखारी कहत कर जोरी, रामा हो रामा ।

रामा, सुनहु कृपा करि के मन लाई, रामा हो रामा ।

रामा, सनमत रहत सदा तिनका घर, रामा हो रामा । रामा, उजागर के पन बा थोरा, रामा हो रामा ।

बेरि-बेरि कहीला गोरी, गेहुमा दे द ए गोतिन मोरी, अपने पीसब ना केहु से पिसवाइब ए सजनी । जाँतवा चलत बा हर-हर, गिरता पिसानवाँ भर-भर, गाइ गाइ गितिया सबेरे ओवाइब ए सजनी । साफ से चुहानी जाइब, रचि-रचि के रोटिया पकाइब देवरू से सामीजी के बोलवाइब ए सजनी । 

आई || चौपाई बस्ती के एक बुढ़िया बुढ़िया माई | उपकारी के अँगना बहु विधि करि छल बात बनाके । फोरत कुटनी घर कुटना के ॥

बास रे ? बुढ़िया कुटनी ए उपकारी बहू ! कवनो उपकारी बहू हूँ ए दादी, आई, बानीं आई बइठीं । कुटनी : आज हमार देह वथत बा, तनी मीस द ।

कहत भिखारी नाई, दाल - तरकारी मलाई, बेनाइ डोलाइ के मालिक के पवाइब ए सजनी ।

समाजी :

उपकारी : बबुआ बो देह मीस देत बाड़ी, हम घुनसारी अनाज भूजे जात बानीं ।

कुटनी : जा ए उपकारी बो

( उपकारी बहू घुनसारी जात बाड़ी उपदर बहू लगे आ जातारी । )

कुटनी : ( उपदर बहू से ) - आहो, तोहरा कव जाना बबुआ बाड़न ? उपदर : ( लजा के ) ना ए दादी, हमरा के अवहीं रामजी ना

बुझलन हाँ। कुटनी तोहरा गोतिनियाँ का कब जाना बबुआ लोग बा ?

उपवर चार जाना बाड़न ।

कुटनी : तोहार मरदू कहाँ बाडन ?

उपवर : हर जोते गइल बाड़न ।

कुटनी : तोहार मरदू हर जोते आ भसुरू कचहरी करे गइल बाड़न । लोगवा कहला जे बुढ़िया कुटनी है। ओकरा अतना खनिहार, तोहरा के वा जे अतना दुख सह के तू काम करत बाड़ अपने मन के बात करवू । ओकरा चार-चार गो खनिहार आ तोहरा के बा ? एगो काम कहतानी तवन कर तू अपना गोतिनियों से फरका हो जा । ? । तू अपना गोतिनियों से फरका हो जा ।

पीसत बाड़ ू हमरा नइखे - कुटनी : अकेले रानी । तोहरे खातिर कहत वानीं ॥ ऊदम से भइलिस कमजोर । चीकनढठ गोतिनियाँ तोर ॥ देखल जात । तब हूँ तें बाड़िस मुसकात ॥ ए बछिया तोर अइसन रूप । देखि देखि के हम बानी चूप ॥ लउकत बाटे हाथ में ठेला । पीसत कूटत बाड़ अकेला ॥ सूख गइल मुँह के चाम । देखल नइखे जात हो राम ॥ उमिर कुछऊ नखऊ गइल । कव गो लड़िका हवहू भइल ? ओकरा कव गो धीया-पूता । जेकर ढोवत बाड़ जूता ॥ एक बाप के तीन गो भइया । पोसली, पलली एके मइया ॥ अव मुँह देखल होखे लागल । भतरा तोर बा निपटे पागल | कहत भिखारी मान कहल । छोड़s ढहनी जवरे रहल ॥ फरका हो के करबू सुख, सुन निहोरा मोर । कहे भिखारी देखल नइखे जात नतीजा तोर ॥

उपकारी ए दादी, तू बूढ़ भइलू तोहार ईहे काम ह

?

आ हम फरके

होखे के कहीं आ हमार मरदे मारे लागे तब ?

उपदर बहू दादी सुन कथा इतिहास ।

बड़की गोतिनी हुई सास || भसुर बाड़न ससुर समान । जाउत अवहीं निपट नदान ॥ बेटा बरोबर छोटका देवर | बदलल दादी तोहार कलेवर ॥ काहे बोललू अइसन बोली ? हमरा लागल करेजा गोली ॥ दादी फोरत बाड़ू घर | दीन-दुनियाँ के नखव डर ॥ दादी काम धइलू डाइन के फरका दिल करबू भाइन के अलगा हो के रहब हम ना । तोहरा से बूधी बा कम ना ॥ सुनिल दादी मोर सिखावल । अब मत चलs तूं घर-घर धावल ॥ घर फोरला के का मतलब ? बूढ़ भइलू अब चेतबू कब ? कहूँ रहिह बोलिहऽ असल । कहे भिखारी छोड़ दू भसल ॥ अतना सुनि के खीस बरत वा, सुन निहोरा मोर । अबहीं कवना लायक बानों, ना भइली लरकोर ।। कुटनी ए बबुआ बो. तू' अलगा हो जइबू त सेर भर बनइबू, दूनो बेकत खइबू | चोकन दस रोपेया के आदमी हो जइबू ।

उपदर बहू रउरा पुरनियाँ सरदार हो के अइसन बात ना नू कहे के ह। हमार भसुर ससुर समान, बड़ गोतिनी सासु बरोबर, चार-चार गो जाउत, सब बड़ले बा हमरा कवन दुख बाजे अलग होखीं ?

कुटनी : बबुआ बहू, तू भुलात बाड़ । असुरा गोतिनियाँ आज जानत- मानत बा, जेह दिन जउतवन के सादी होई करजा में बोथा जइबू | चारो के चार गो जनाना होई । बूझ जे कतना खरचा में परवू ? ऊ आप अपना के हो जइहन स आखिरी में तोहरा के अलगा करिहन स । तूं अलगा होखवू कब ? सिर पर करजा चढ़ी तब हम तोहरे खातिर कहत बानीं ना त हमरा कवन काम बा । हम कहली से बेजायें कइलीं । ई बात कतहूँ

कहिह मत ।

उपदर बहू (बुढ़िया के हाथ घ के ) - ए दादी, हमरा अब तोहार कहल कुछ बुझात बा। हम त अलगा हो जइतीं बाकी ऊ अलगा के नाँव सुनि के जर मुइहन ।

कुटनी : घर में बठान कठान डाल ले । मेहरारू कइसन होई जे मरद के अखतियार में ना राखी । बे बात के बात बतिआवs | बे झगड़ा के झगड़ा कर, तब देखs जे अलगा कइसे ना होइन । अलगा में तोहरा फायदा बुझाई त दादी के जिनिगी भर गुन गइबू | हम जात बानीं ।

( बुढ़िया खुस होत अपना घरे जातीमा )

समाजी :

( चौपाई )

बहु बिधि खुसी होत घर जाना । तेहि कर रचत भिखारी गाना ॥

( गाना )

बुढ़िया लगवलसि लहरा महलिया भीतर भारी । जे घर में सनमत रहे सब दिन

लागल चले पटिदारी । महलिया भीतर भारी

भाई भाई, गोतिनी गोतिनी पर

कइलस बिधिन सवारी । महलिया भीतर भारी..

रगर से झगर, झगर से गारी,

तेकरा पाछे मारामारी । महलिया भीतर भारी

एहि बिधि बिगड़त बा घर सबकर गाइ गाइ कहत भिखारी । महलिया भीतर भारी

( परदा का भीतर से उपदर मा उजागर आवतारे )

उपवर : बबुआ उजागर, हम हरवाही जात बानीं तू खेत में पानी ले के अइह

( ई बात उपदर वो सुनि के सोचतारी जे हमहीं हरवाही में चल जाई । ओहिजे पसन से बतिलाइब उजागर से पहिले ऊ चल देतारी । )

समाजी

( चौपाई )

। हर जोतन के गयउ किसाना । तब घर में मन सोचत जनाना ।। पानी ले के खेत में जाऊँ । ठन-गन कर के क्रोध बढाऊँ ॥ जब लागी बातन के हरका । तब होइन खिसिआइ के फरका ।। चली कुभाव कुभेस बनाई । ले जल हरवाही में आई ॥ बार-बार पूछत मृदु बानी । कवन हेतु तुम गई रिसानी || बोलत नहीं जहर के पुरिया । जइसे चुपकारिन देवकुरिया ॥ ||

उपवर प्रानप्यारी, तू उदास काहे बाड़ ?

औरत: एह से रउरा कवन काम वा रावा सुख वा भाई- भउजाई

से । हमरा तकला पर केहू रहित त ई नतीजा ना नू होइत ।

उपवर तोहार कवन नतीजा होखत बा ?

औरत: हमार नतीजा होखत वा जे जवना का देह से अतना खनिहार लड़का तवन काम ना करी पटिदार हो के मलकीनी कहाई । हम देह तूर तूर के ऊदम करब । दोसर पटिदार रहित त

झोंटा घ के काम करवाइत । ई दाह हमरा से देखल ना जाई । हम ओह भछनी के मुँह ना देखब। चोटही से अलगा हो के रहव । ना त नइहर में दिन काटब ।

उपवर : सुन, बड़ भाई पिता, बड़ गोतिनी सास बरोबर ह । अइसन ना बोले के काहे कि आपन दियानत खराब होई । केहू भला ना कही । थपरी के पिटनिहार दुनियां बा अलगा होखब तब परला हरला केहू कामे ना आई ।

औरत दुनियां के हम करब आ दुनियां से करवाइव | बाकी ओह भछनी के हम मुँह ना देखब। एह खीस में आज हम लूगा खोल लेतीं, डांड़ मसका देतीं। आज ईजत चाहs त अलगा हो जा । नात आपन जान हम अपने हत देव हमरा के गेयान मत सिखावs |

उपवर

( दोहा )

हम ना मानब स्वामी कतनों कहबs लाखन बार । कुसल चाहऽ त अलगा हो जा कहत भिखारी पुकार ॥

( दोहा )

भइया से ना अलगा होखब, कतनो घुन कपार । पूरब से पच्छिम चलि जइहन, चाहे गंगाजी के धार ॥

( चौपाई )

प्रान प्रिया केहि हेतु रिसानी । से हालत कुछु हम ना जानी ।। माफ करहु जे कछु नगहानी । राखि लेहु पगरी कर पानी ॥ पति से पत्नी करी लड़ाई । तेकर कइसे होई बड़ाई ॥ दिन-रात बातन के रंगरा । करबू बड़ गोतिन से झगरा ॥

प्यारी पइबू मालिक का घर उघरी पतरा । सरग नरक लउकत ना तोरा । दंड कठोरा ॥ मोर बचन हिरदय में धरहू । पतिव्रत धर्म के पालन करहू ।। जेहि से सिद्ध होई सब काम । कहत भिखारी जात हजाम ॥

बात बना के ठगलू भतरा ॥

औरत :

(घुन पूर्वी )

जहिया से अइली पिया तोहरी महलिया में

सब दिन रहली टहलिया में पियावा । घर में के सब काम, काम करत सुखल चाम सुखवा सपनवाँ भइल हमरा पियावा ।

हरवा जोतत संइयाँ, तोहरो पिराला पंइयाँ रोपेया के मुँह हम ना देखली हो पियावा । बड़की गोतिनियाँ भइलि मलकिनियाँ से

छला चिकनियाँ भसुरवा हो पियावा । नइहर में जाइ कर तोहरे इरिखा पर

भउजी के लइका खेलाइव हम हो पियावा । कहत भिखारी नाई, दुख देखि के मोर माई, सुर पुर जाई प्रान तेजि के हो पियावा ।

उपवर : ( गाना )

प्यारी, का अँखिया देखलावत बाड़ दूर से ?

कर बाते सहूर कइलू रंगर-झगर भउजी से, खेत में पानी ले अइलू खीस से कुछ-कुझ बूझत बानीं मनवा का गरूर से कर बाते "" । सेना ।

कइलू रंगर-झगर भउजी से, खेत में पानी ले अइलू खीस से कुछ-कुझ बूझत बानीं मनवा का गरूर से । कर बाते ।

तोहार किसिम-किसिम के बोली, हमरा लागल करेजा में गोली

गारी देत बाडू भउजी के एक सूर से । कर बातें.. करब जोरू के बात के काना, हम ना हुई दोसर मरदाना, जवन कहीला से करीला जरूर से । कर5 बाते कहत भिखारी नाई, हम ना छोड़व सहोदर भाई, घर में रहबू चाहे जइबू तीनों पूर से । कर बाते...

औरत:

( गाना सोरठी )

हमरा त मिललन राम मरद मुँह झउमा, करब दोसरा के आसरा हो, ( गाना )

रामs मरद मुँह उसा हो, काइ बिधना लिखि दिहलन लिलार नू हो राम । सब धन लुटलसि, हम भइलीं भिखइनियाँ, हम भइली भिखइनियाँ हो,

डाकू मिलल वा पटिदार तू हो राम । नइहर में जाइ करब दोसरा के आसरा,

परल गोतिनियाँ के सुतार नू हो राम । केकरा से कहीं दुखवा, केहू नइखे लउकत हमरा,

केहू नइखे लउकत हो, कइलसि 'भिखारी' के भिखार नू हो राम ।

मरद

हमरा त मिलली रामा नारी हो करकसा, रामा नारी हो करकसा हो, छुटलन भतीजा, भउजी, भाई नू' हो राम ।

मेहर के छोड़ला से ना होई फेरु बिआहवा हमार

होई ना बिआहवा हो, करों हम कवन अब उपाइ नू हो राम । औरत खिसिआई कवनो जाति से नसाई, कवनो जाति से नसाई हो सगरो से पगरी डूबि जाई नू हो राम ।

चुप होखs प्रानप्यारी, भइल अलगा के तैयारी, भइल अलगा के तैयारी हो,

कहत भिखारी ठाकुर नाई नू हो राम ।

चुप होखs, घरे चल के हम फरिया लेब, ओह लोग के मालिक - मल किनी बनल निकाल देव हमरा कवन ? दू परानी बानी जा, मजे से अलगा होके रहब जा ऊधो के न लेना ना माघो के देना ।

(परदा का पाछा से बढ़ भाई के आगमन ) उपदर भइया, हम तोहरा साथ में ना रहब हमार जे कुछ धन, नीमन जवून बा, से सब बाँट द ।

उपकारी बबुआ, तू अइसन बात काहे कहत बाड़s ? उपदर : हमारा मन । अब ले चलल, अब ना चली ।

समाजी

( चौपाई ) एक साँच, झूठ दस गो जोरी। कुटनी कइ दिहलसि घरफोरी ॥

( उपदर रगड़-झगड़ के अलग हो गइलन छोट भाई उजागर आपन हिस्सा घन ले के उपदर में रहि गइलन ।)

उजागर :

( गाना )

1 कहत भिखारी ठाकुर नाई रे । हाँ, दिल.. ( भउजाई से) भउजी, जात बानीं बकरी चरावे ।

दिल लागल देवर से, बाड़ी चतुर भउजाई रे हाँ । आस बिसवास ना करब हम दोसरा के

नइखे फिकिर एको पाई रे । हाँ, दिल लागल

बड़की के छोड़ि देली, छोटकी में रहि गइलीं, बाटे बाप-दादा के कमाई रे । हाँ, दिल

हम ना रहब बड़का भाई में,

चाहे बोलिन चिकनाई रे । हाँ, दिल बयस के थोर मोर अबहीं पन,

भउजाई जा ।

( बुढ़िया कुटनी के आगमन )

कुटनी: उपदर बहू, बाड़ स रे ? उपदरवहू : बानी, आई ।

(पैर पर गिर के गोड़ लागतारी )

कुटनी : अब अच्छी तरह बाड़ न बबुई ?

उपवरबहू : हाँ रउरा असीस से अच्छा तरे बानीं । सेर भर बनाईले, तीनों बेकत खाईले ।

कुटनी : भला रामजी बूझलन। हमार आसिरबाद फरल | कवन लड़िका है नन्हका कि नन्हकी ?

उपदरबहू ना ए दादी, हमरा के रामजी अबहीं ना देलनहां ।

कुटनी कहत बाड़ ू जे तीन बेकत बानीं; से तीन गो के ह ? उपदरबहू : छोटकू देवर के अपने में रखले बानीं ।

कुटनी आहो, जवन बेल का कांट से हम तोहरा के फरका करवलीं, से तू अपना पर पटिदार रखलही रहलू ? कुछे दिन के बाद उहो देवरा सेयान होई। बिआह भइला पर उड़ाकू को जाई ।

हमार कहल ना करबू त घोखा में पर जइबू तू कवनो हालत से अपना देवर के अछरंग लगा के भतरा से मरवा द ।

उपवरबहू दादी तोहार गोड़ परतानी तू हमरा अंगना से चल जा । हमरा के बंसघास करे के गेयान सिखावे आइल बाड़ ?

कुटनी : बबुआ बो, खिसिआ मत, हम तोहरे खातिर कहतानीं । हमार कहल करवू त तोहरे सुख होई। आगे दिन में फायदा बुझाई तब दादी के गुन गइबू ।

उपवरबो : अच्छा दादी, जाईं। ई बात केहू से कहब मत । हम राउर जबान कहिया टरलीं हा ? अब ना टारब ।

( बुढ़िया कुटनी परदा का पाछा जातारी )

समाजी :

( चोबोला )

कुटनी आ के, लहरा लगा के, कइली डबल कमाई । झगरा होखत वा गोतिनी में, भाई में होखत लड़ाई ॥ बालक छछनत बा बिरोध से, मातु न दूध पिआई । भँइस-बकरिया खूटा खूंटा पर भोंकरत बछरू-गाई ॥ हँडिया भरवत बा चूल्हा पर बिनु अदहन रहि जाई । सूगा 'चित्रकूट' कहि बोलत, तबहूँ दाना ना पाई ॥ क्रोध भूत देह देह में लागल, गुनत ना आपु पराई । केहू जहर, केहू फाँसी लगावत, केहू इनार गिरि जाई ॥ जे बिसवासघात नर करिहन, घर में आग लगाई । झगरा लगावल पाप बरोबर, समुझs भारत के भाई ! ऊपर से चीकन बतिआवत, भीतर करत कलाई । कुटना - कुटनी घोर के एक में बेंचत जहर मिलाई ।। हे काली जी ! एह कलह के कइसे होखी दवाई । एक पटिदार बहुत परहेजत, तबहूँ बढ़त सवाई ॥ एह विरोध नाटक तन मन से विधिपूर्वक जे गाई । भर लछुमन रिपुसूदन करिहन तेकर भलाई ॥

खल के चाहे बरिआरा केहू कसहूँ सजाय करी, सुभाव कबो छूटत ना डेंडला से ।

एक भाई कइसन जानत बा, एक सिर चढ़ल बलाई । छोटका भाई मारल जइहन, कहत भिखारी नाई ।

कवित्त

होत ना देवाल कहूँ बालू के जहान बीच पानी के फुहेरा चाहे सौ दफे कँडला से ।

भोथर दिमाग होत बड़का बुधागर के कलही ना छोड़े जिद मार चाहे भेंड़ला से ।

कहत भिखारी मन समुझि बिचार करों कुकुर के पोंछि सोझ होत नाहीं मँडला से

( उपदर का उपदर वो के मंच पर आगमन ) उपदर प्रानप्यारी, पाँच गो रोपेया द, मालगुजारी देवे के बा ।

औरत: हमरा देह में आग मत लगावऽ । उपवर : खेत लिलाम हो जाई तब नीमन होई ?

औरत: ईजत लीलाम होई तब नीमन होई ?

उपवर के कहता ईजत लोलाम होखे के ?

औरत: तोहर हमार ईजत भरष्ट होखे चाहत बा। तब हमरा तोहरा नगर में मुँह देखावे के ह ?

उपदर के ईजत भरष्ट करे के चाहत बा ?

औरत: जेकरा के साथ में रखले बाड़s से ही, छोटका भाई ।

उपवर : बबुआ कवना लायक बा ? तू पोसले बाड़ एही लाड़ से मतारी लेखा लंगो-चंगो करत होई । एह बात के मन में वे बिचार ना समुझे के।

औरत: जे सेयान के करनी करी तेकरा साथ लड़िका के भाव कइसे केहू राखी ? हम बेसी भुकवावल नइखीं चाहत । उनुकर जान मार द तब घर में कुसल बा, ना त हमार मुँह तू ना देखबs, तोहार मुँह हम ना देखब।

उपर अच्छा. ई बतावs जे ऊ कहाँ गइल बाड़न ?

औरत: बकरी चरावे ।

उपवर : अइहन त खिआ के सुता दोह। हम जात बानीं नीमन हथियार

ले आवे ।

( उपदर परदा में जातारे उजागर चरवाही से आ गइले ।)

अजागर : भउजी, खाये के द ।

भउजी बबुआ सूत रह, खायेक बनावत बानी तब जगा के खिलाइब । (उजागर सूत जातारे उपदर नकली हथियार ले के आवतारे आ जान मारे के नकल करतारे । बाद में लास उठाके परदा का भीतर ले जातारे आ फेरु घूर के मंच प आ जातारे । )

उपदर ( अपना मेहरारू से ) ( गीत )

आजा, प्यारी, लगालीं गला से गला ।

तोर मोर तकदीर बनल अब झंझट छूटल पटिदारी

वाला । आजा

जान मारत केहू ना जानल,

फेंक देलों ले जाके गहिड़ा नाला। आजा देवता- पितर हमार तूहों सुमिरनी, तूहीं पुरान- बेद तूहीं माला । आजा कहत भिखारी अइसन अधिकारी बा,

पेट में घुसल कलिजुग के काला। आजा

औरत: ( उपदर से )

( गीत )

मरलस रे बेदरदा भाई के ।

कइले हतेयारी घोर, मुँह ना देखब तोर करब खिदमत नइहर जा के भाई के मरलस

चीकन बोलत बात, काटि के सहोदर भ्रात कइसे होखवs तू दोसरा के जनमाई के | मरलस"

दुनियाँ से धो के लाज, करबड तू अकेले राज मरत बानी हम सरमाइ के । मरलस"

कहत भिखारी नाई, रोअब जमपुर जाई

गुनि-गुनि अपना कमाई के मरलस" बाप रे बाप! तू अपना एकलाद के भाई के ना भइल तब तू हमार का होखबs | जा तू अपना के चेतs | तोहरा किहाँ ना रहव । ना त कहियो हमरे जान मार देबः ।

उपदर : ना, हम तोहरा साथ में घात ना करब हमरा से तू अंगुठा के छाप ले लऽ ।

औरत : जवन बूढ़ गोतिनी भइल, तवना के भतार गहना से देह भर देले बा । हमरा देह पर बिअहुती खिपटी भूलत बा ।

उपवर एकर फिकिर मत कर। हम चोरी करके गहना से तोहार देह भर देव ।

(परदा का भीतर से उपकारी आवतारे या उजागर के खोजतारे । )

उपवर (अपने आप ) भारी कसूर हो गइल ।

उपकारी : कवन कसूर ?

उपवर : हम बबुआ के जान मार देलीं । उपकारी : एकदम से ?

उपदर | साफ एकदम से ।

उपकारी 1 कवना कसूर से ? उपदर : तीसरा के बूधी में परके ।

उपकारी के अइसन बूधि दे दीहल जे बंसघात क देले रे कुकर्मी पापी ? हमरा सोझा से हट जो मुँह मत देखाव | जल्दी बबुआ के लास बताव । :

उपदर लास ना मिली । ( गोड़ पर गिरिके ) भइया, कसूर हो गइल, केहू से नांव मतिल । ना त ऊ गइबे कइल, अब हमहूँ चल जाइब त तू बिना भाई के हो जइबs (ई कहिके चल देतारे । )

(ई बात सुनि के उपकारी बहू रोवे लागतारी ।)

विलाप गीत - ( घुन पूर्वी ) उपकारी बहू : पद में गउरी के लाल, गिरत बा हमार भाल दया कर, दुनियाँ से उठलs देवरऊ |

हमरा के छोड़ि गइल, काल के कलेवा भइलs भउजी के प्रान के आधार हो देवरऊ |

चुप चाप राही भइल, कुछुओ ना कहि गइलs मुदई के मनसा पुरवलs देवरऊ ।

छोटकी गोतिनियाँ ह भारी झपसिनियाँ ठगिनियाँ बोतवलस दियवा देवरऊ |

जनतीं जे अइसन करी, बबुआ का लागी जरी ओकरा में रहे हम ना देतीं हो देवरऊ ।

केहू नाहीं कइल अइसन, भाई हो के कइलस जइसन मरलस जान खानदान के देवरऊ | अजस कपार चढ़ल, कुल में परेत बढ़ल पढ़ल पंडित कहवाँ गइलs देवरऊ ।

मनव के नरम से, भउजी का सरम से

चढ़ि - बढ़ि कबहू ना बोललs देवरऊ | चम चम चम चाल, आँख, नाक, ओठ, गाल बिसरत नइखे सुरतिया देवरऊ |

धोती, कुरता, टोपी साफ, केइ बन्हिहन लाफ काफ केइ 'भउजी' कहि के पुकरिहन देवरऊ ?

कहत भिखारी दास, आसरा भइल नास लास ना मिलत बा तलास से देवरऊ |

विलाप गीत २

कइलs ना कहना हमार, होसियार सँइयाँ । बबुआ के छोड़ि देलs छोटकी गोतिनियाँ में कइलस बंस के उजार। होसियार संइयाँ

अपने तू सुधा भइलs, ओकर परतीत कइलs भाई ना, हउए हतेयार । होसियार सँइया

रो के हम करब काइ, सब लोग जानि जाइ हँसिह्न गाँव के गँवार । होसियार सँइयाँ-

कहत भिखारी नाई, सुनिह भारत के भाई घर में समाइल अतेयाचार । होसियार सइया

विलाप गीत ३

देवरू- देवरू रटते रटते, बीतत बा आठ पहरिया हो । बाबड़ी में ला के तेल, रहले सबसे कइके मेल धोतिया ना सादा, पाढ़धरिया हो। देवरू साँवली सुरतिया बोली, लागल बा करेज में गोली बिसरत नइखे एको घरिया हो । देवरू कइसे मेटाई दाग, मुँह में ना पवलs आग रहि- रहि उठत बा लहरिया हो । देवरू

तेजि दिहिती प्रान आज, कहि कहि राज-राज, रहिती जो आपन मतरिया हो । देवरू

भाई होके मरलस जान, ऊपर कइलस आपन सान बंस के डुबवलस पगरिया हो । देवरू

कहत भिखारी दास, जिला छपरा के खास

जेकर हटे कुतुबपुर नगरिया हो । देवरू

विलाप गीत ४

हो मोर दंवर दुलरू, ना तू परलs चारो दिन बेराम । भउजी से कुछ ना कहलs, चोटही में रहि गइल,

हो मोर देवर दुलरू,

देखहीं में हवहिस गोर चाम। हो मोर देवर दुलरू । गरदन पर चलल छूरी, मुअल धँसि घँसि खूरी हो मोर देवर दुलरू, कइलस हतेयारवा घतइल काम हो मोर देवर दुलरू ।

पूका फारि रोवत बानों हम अबहीं खानी, हो मोर देवर दुलरू बिसरत नइखे भूरत स्याम हो मोर देवर दुलरू ।

कहत भिखारीदास कइलs ना कुछ दिन बास हो मोर देवर दुलरु बचपन में गइलs सुरधाम । हो मोर देवर दुलरू ।

(परदा का भीतर से उपदर गहना लेले आवतारे पाछा से आके 'चोर-चोर'

कहत उनका के पकड़ लेतारे स । )

उपवर बहू ए राव, छोड़ि दीही लोगनी, अइसन सूघा आदमी के साथ अइसन ना करे के चाहीं ।

बोसर आदमी ( उपदर बहू से ) दू चार रोपेया खरच बइला से छूट

जइहन ।

उपवर बहू हमरा पास में रोपेया नइखे ।

बोसर आदमी

: आछा, गहना घ दे ।

उपवर बहू कवना गरजे हम गहना घरीं ? हमरा बेटा-बेटी के बिआह लागल बा ? करनी करिहन ई, हमरा देह पर टूम टाम बा सेहू फँसा दिहीं।

(उपकारी आवतारे । )

उपदर ए सिपाहीजी, भइया का गइलन, हमरा लाज लागत वा ।

उपकारी का बात है ?

सिपाही: गहना चोरवले बाड़न ।

उपकारी : ई हमार छोट भाई हवन हम इनकरा के बहुत जनले- मनले बानीं । हमार दण्ड सजाय करीं । चाहे घ के ले चलीं चाहे कृपा कर के छोड़ दीहीं ।

सिपाही: अतना दयालु बाड़s त तू ही चलऽ ।

(सिपाही उपकारी के हाथ पकड़ता रे । )

उपदर (फरका हटिके) घन हव हे मालिक ! 'दूध के दूध, पानी के पानी' बिचार तू हीं करेल । जतना हमरा से बेइमानी चललन तवन भोगसु, आप से आप कपारे चढ़ि गइल । जा, अब जेलह खटः ।

बोसर सिपाही (उपदर से) ए भाई, तोहार के हवन ?

उपदर : अलगिहा भाई ह बेइमानवाँ ।

सिपाही: कइसन चाल-चलन के हवन ?

उपदर बस रउआँ हाथ में परले बाड़न, समुझ लीहीं । (बात होते होत नगीचा जा के सिपाही उपकारी के छोड़ि के उपदर के

चलान करतारे । )

उपदर (रोवत जात बाडन)

( गीत )

हमार कवना हेत से बिगड़ गइल मतिया । हमार लोक-लाज सब खोके, भाई से अलग होके सहत बानी बहुत विपतिया । हमार कइली बहुत पाप, भाई मारि देली आप घेरलसि भइल हमार आइ के

कुमतिया । हमार पूका फारि रोवत बानीं, सुनऽ भगवान दानी केहू ना संघतिया ।

कहत भिखारी दास, नरक में भइल बास धोखा दिहलसि औरतिया । हमार



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लेख
भिखारी ठाकुर ग्रंथावली
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भिखारी ठाकुर (1887-1971) एक भारतीय भोजपुरी भाषा के कवि, नाटककार, गीतकार, अभिनेता, लोक नर्तक, लोक गायक और सामाजिक कार्यकर्ता थे. उन्हें भोजपुरी भाषा के सबसे महान लेखकों में से एक और पूर्वांचल और बिहार के सबसे लोकप्रिय लोक लेखक के रूप में माना जाता है. भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर 1887 को बिहार के सारण (छपरा) जिले के कुतुबपुर (दियारा) में हुआ था. उनके पिता का नाम दल सिंगार ठाकुर और माता का नाम शिवकली देवी था. उनके पिता लोगों की हजामत बनाते थे. भिखारी ठाकुर ने सामाजिक समस्याओं और मुद्दों पर बोल-चाल की भाषा में गीतों की रचना की. उन्होंने भोजपुरी गीतों और नाटकों की रचना की. 1930 से 1970 के बीच भिखारी ठाकुर की नाच मंडली असम, बंगाल, नेपाल आदि कई शहरों में जा कर टिकट पर नाच दिखाती थी. भिखारी ठाकुर को "भोजपुरी का शेक्सपियर" भी कहा जाता है. महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें "भोजपुरी का शेक्सपीयर" की उपाधी दी. अंग्रेज़ों ने उन्हें "राय बहादुर" की उपाधि दी. हिंदी के साहित्यकारों ने उन्हें "अनगढ़ हीरा" जैसे उपनाम से विभूषित किया.
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एगो किताब पढ़ल जाला

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