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राधेश्याम बहार

19 October 2023

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बंदना (चौपाई )

श्री गणेश के लागी पाँव । जगत जपत वा जिनिकर नाँव || विप्र चरन में नाऊ सीस जे वा दुनियाँ भर में बीस !! सन्त चरन में नाऊँ माथ । जिन्ह परगट कइलन रघुनाथ ॥ बासुदेव देवकी पद लागू । बार-बार अतने वर माँगें ॥ हरि गुन गावत निसि-दिन जाय । त्रोध लोभ देहू विसराय ॥ पुरुखन के चरनन सिर नाऊँ । जिनकी कृपा कृष्ण गुन गाऊँ ।। जिनकी कृपा से देस - विदेसा । गिरि कानन नहि होत कलेसा ॥ जिनकी कृपा सकल परिवारा । बिहरत बा सुरसरी किनारा ॥ जिनकी कृपा गंगाजल पाऊँ । सिर पर नित रेनुका चढ़ाऊँ ।। जिनकी कृपा राधे गुन गाऊँ । जाते अन्त अमर पद पाऊँ । 

मोहन दानी हउअन भारी । रंक के कइलन ऊँच अटारी ॥ सोइ मोहन अब दाया करिके । बसहु हृदय मम बंसी धरिके ॥ मोर मुकुट कछनी के काछे । बंसी बजावत गइयन पाछे । मम हिय कानन परबत गाछी । तेहि के मध्य चरावहु बाछी ॥

( दोहा )

यशोदा नन्दन सखि सहित, ललिता राधे बलराम । मोहि हिय ब्रज के ऐश्वर्य ले, बसहु सदा घनश्याम ॥

( एह मंगलाचरण का बाद मंच पर बइठल समाजी लोग के

सामूहिक गान )

चौपाई (बानी के साथ )

भुण्ड झुण्ड मिलि ब्रज के नागरी, सांवलिया प्यारे ।

घर-घर से चली सिर लेई गागरी, साँवलिया प्यारे । जमुना जल भरने को जाती, साँवलिया प्यारे । भूसन बसन सजे बहु भाँती, साँवलिया प्य रे ।

एही बिधि सखी जात मग माँहीं, साँवलिया प्यारे । ठाढ़े श्याम कदम की छाँहीं, साँवलिया प्यारे ।

( पाछा से गीत गावत सखियन के प्रवेश )

गीत

कब मिलिहन नन्दलाला, ए सांवर गोरिया ! मोर मुकुट माथे, मोर मुकुट माथे,

कछनी पीताम्बर, सोहत गले माला, ए साँवर गोरिया !

कारी जुलुफिया पर, कारी जुलुफिया पर

मनव लोभाइल, तिलक बीच भाला, ए साँवर गोरिया !

साँवली सुरतिया बिनु साँवली सुरतिया बिनु

कल ना परत बा, जियरा हो गइलन बेहाला, ए सांवर गोरिया !

कहत भिखारी तनी भर, कहत भिखारी तनी भर

सबद सुनावs, हउअ खुदे बंसीवाला, ए सांवर गोरिया ! ( एही बोचे वंशीधर कृष्ण आ बलराम आ जातारन )

( समाजी के चोपाई )

सखी श्याम के दरसन पाई ।

जय जय कहि कहि सीस नवाई !

(मंच पर उपस्थित सखी समाजी का साथ-साथ) - बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय ! (सखी लोग के राधेश्याम बहार के लीला गान)

( १ )

करत बहार राधेश्याम, करत बहार राधेश्याम । श्री गोकुल-मथुरा कुंजन में होत नित नित जाम करत बहार

मोर मुकुट ललाट चन्दन, जुगल अति छवि धाम । करत बहार

बंसी फू कत धरि अधर पर संग में व्रज के बाम करत बहार

कहे भिखारी हरि के भजिलs, मन, ना लागी दाम करत बहार'

( २ )

कान्हा से लागे मोरा नैना, नेन विनु सननन, सननन, सननन ।

कान्हा

नोरा पछुआरवा सारंगी वाजे, सारंगी बाजे सननन, सननन, सननन । कान्हा

मोरा पछुआरवा तवला बाजे, तबला बाजे ठननन, उननन,

ठननन । कान्हा

( सखी आ कृष्ण के युगल गान )

सखी: नैना लगाये चलि जाय हो, कदमियों के छँहियें छहियें, -हाँ कोई, हाँ कोई ।

आंखों में सुरमा जड़ीदार टोपी, -हाँ कोई, हाँ कोई,

जुलुफी देखाये चलि जाय हो, कदमियाँ के छँहियें - छँहियें ।

कृष्ण : आओ सखी, तोहे बंसी तुनाऊँ हाँ कोई, हाँ कोई जियरा जराये चलि जाय हो, कदमियाँ के छहियें - छँहियें । ( दोहा )

कृष्ण : इस तरफ मत जा ए सखिया, राहत घर के लीजिये । जमुना तीरे पुण्य क्षेत्र है, जल कुआँ के पीजिये ॥

सखी: कुआँ के जल खार बहुत है, मीठा चाहता हूँ प्यारे । ई बतिया कबहूँ ना सुनलीं, ई बतिया सुमलीं न्यारे ॥

कृष्ण : नया चाल के हाल त, सुनहु सुमुखि दे कान । जमुना तीरे दण्ड लगत है, दे जोबन के दान ।

सखी: जोबन-जोबन मत करहु, सुनहु अर्ज घनश्याम । हम सबका सोझा मत लेहू, नीच काम कर नाम ॥ (जमुना में जल भरे से कृष्ण के रोकला पर सखी लोग के निहोरा) हमरा के भरे द गगरिया ए साजन ! हट हट घाट छोड़' जसोदा के लालन !

बेरि-बेरि करेल रगरिया ए साजन ! हमरा के

के

अइसन दुलार के हम पथल पर पटक देहब काहे तू चलावेल नजरिया ए साजन ! हमरा के

एहिजा से जाके कहीं कबडी जमाव‍ ग‍ पनिघट के छोड़ के डगरिया ए साजन ! हमरा के

कहत भिखारी जो ना भरे देव गगरी, नाहीं बसब नन्द का नगरिया ए साजन ! हमरा के

( दोसर सखी के कहनाम ) कवित्त

नन्द के कुमार, सुनिल अरज हमार एक, अइसन सान साहबी पर पंजरा में ना बहिहों । जसोदा के लाल गाल तनिको बजाव मत चाल से ना चलब तब नगर में ना रहिहों । चाहे जान रही चाहे जाई एही लागे कान्ह जरा सा अनीति बात सपना में ना सहिहों । कहत भिखारी हम असल के बेटी हुई एक बात कहला पर लाख बात कहिहों ।

( चोपाई )

कड़क लाख के बा तोर चोली ।

काहें ना बोलब अइसन बोली ? कहब बात रसीली पाका । 2

देखिह पाछे ना लागे धाका । ठंढे मन से होइब भारी । सुनिल पुस्तक कान पसारी ॥ कहे भिखारी छोड़ सान | ना त उठी जगत से मान ॥

कृष्ण :

( गाना )

सखी :

देखावs मति जारी, ए गिरिवरधारी !

चोलिया मसकि गइल, चोलिया मसकि गइल, अँगुरी दुखाइल, रेसमिया फाटल सारी, ए गिरिवरधारी !

अइसन अनीति पर, अइसन अनीति पर

आफत लगाइव, हम ना हई दोसर नारी, ए गिरिवरधारी !

सोझा चलि जा हमरा, मोना से चलि जा हमरा रसिक बिहारी ! तू कइल बटवारी ए गिरिवरधारी !

कहत भिखारी तोहे, कहत भिखारी तोहे

भजन सुनाइव, इजतिया भलव भारी ए गिरिवरधारी ! ( एकरा बाद सखी कृष्ण के बंसी छीन लेतारी । )

( दोहा )

कृष्ण : वंशी दे दो ऐ सखी ! क्यों करती हलकान ?

मुसुकी छोड़त, गाल बजावत, लागत नाहीं गलान । सखी: बोली बोलत ढीठ से, तनिक नहीं सरमात ।

टेढ़ी बोलव' सखियन से, त जइब घरे पछतात ॥

कृष्ण घर के हम ना जाइब, सखिया मान बचन हमार | तेरी अँखिया रस भरी, मारत जिया में वान ॥

सखी: काचा जीव है मोहन तुम्हारे, थोरही में उतरात | इहाँ ना लागी तनिक चल्हाँकी, बोल ना अटपट बात ।

कृष्ण : अटपट बातें कुछ ना बोलिहों, बंसी दे दो सखिया री । आसिरबाद कुछ हमसे लेल जीअ हो के लखिया री ॥

सखी: आसिरबाद का देबs मोहन, तू नान्हें के चोर । कतिना घर में माखन खइल, भइल जगत में सोर ||

कृष्ण : दुनियां भर में सोर भइल हम कुछ ना जनलीं तोर । पाका ठगिनी हमके ठगलू, सूरत देखा के गोर ।

सखी: ए मोहन ! तू सेखी ढिलल सूरत निहरल मोर । कहे भिखारी जसोदा से कहब, करिहें नतीजा तोर ॥ ।

कृष्ण : आगे पीछे होई नतीजा, बेसी देखइबू टिपोर कहे भिखारी तमकल जइब, गगरी देहब फोर ।

रुखी : गगरी फोरव, बात बढ़इब, हमें देखइक जोर । कहे भिखारी अब मुँह छूटी, सुनव लाख कड़ोर || ( चौराई )

ओरहन देव तुरते जाई । हाल बनइहन जसोदा माई ॥

( समाजी के चौपाई )

अस कहि चले सकल ब्रजबाला । आगे से रोके नन्दलाला । बीतल बात के मारहु गोली । अब ना कबहू करब ठिठोली ॥ ( सारी धइके सखी के रोकतारे )

कृष्ण :

( दोहा )

सखी: छोड़ सारी हे गिरवारी, बेसी लागल बा दाम | ई मति जान कमरी हउए, कहत भिखारी हजाम ॥

: कृष्ण एक सारी के प्यारी बहुत, करत बाड़ू बखान । कहत भिखारी हुकुम पाइब तब, लाखन देहब आन ।

सखी : सहजे में फुसलइबs हमको । का नहीं जानत हूँ हम तुमको | इहाँ से सेखी सान हटाव । झूठे कहि कहि दिन कटाव ॥ नन्द राय के गाय सूखल बाँस के बंसी बजावS || चरावः ।

कृष्ण :

सदा तू ओढलs कमरी कारी ।

हमरे सोझा देखइबs जारी ॥ सरबर करवs मोर ? हम ना हई गोरस के चोर ॥ सरवर कुछ ना करिहों तोर । चोलिया के बनवाँ कइलs भंग । सुन० रीति अनरीति कइलऽ रीति अनरीति कइल भइली हम बे-पानी, सुन ए मोहन प्यारे, लउके लागल सगरो अलंग । सुन० गाल के बनवला हाल, गाल के बनवल हाल मोती-लर तुरल, सुन ए मोहन प्यारे, देहिया के कई दिहल तंग । सुन०" कहत भिखारी आज तू कहत भिखारी आज तू, कइल, बरिआरी, सुन ए मोहन प्यारे, आँख हुँआ चलत बा बेरंग, सुन ए मोहन प्यारे । ( कृष्ण के मनावल )

सखिया ! सुन निहोरा मोर ॥ करहु माफ, खेलहु कुछ खेला । प्रकार हमरे वा पेला ॥ ( सखी के नकारल ) सब

गाना

सुन ए मोहन प्यारे, हम ना खेलब तोहरा संग | सारी मोर दिलs फारी, सारी मोर दिहल फारी, बहियाँ झकझोरल सुन ए मोहन प्यारे,

गाना

छतीसी गुजरिया, तू घरे चलs हो ।

नखड़ा देखा के हमार जीव मोहलू, तू बाड़ भल हो । छतीसी०

मोतीहार बहार मजेदार, सोहत गले हो । हो । छतीसी०..

जारी जनावेलू झूठे के रोवऽ मत, बल-बल हो । छतीसी० कहत भिखारी तू खुदे जानत बाड़ कल-छल हो । छतीसी० ( सखी के नकारल )

गाना

हम ना सुनब तोहार बात हो नन्दलाल । जे ना बात कहे के से चट देना कह देल हो नन्दलाल !

ब्रज के ना कुछु बा बसात, हो नन्दलाल ! सारी चोली दरकल, घरो का जबाब देहब हो नन्दलाल ! एको नइखे हमरा से कहात हो नन्दलाल ! कतनो मनइव मोहन, एको ना सवाल सुनब हो नन्दलाल ! अबहीं ले बाड़s मुसुकात हो नन्दलाल ! कहत भिखारी वे विचारी ना सहात बाटे हो नन्दलाल ! आखिर हउअ जगत पितु-मात हो नन्दलाल !

( सखी के दोसर गीत )

चल के कहब जसोदा से ई बतिया ।

डगर चलत कान्हा नगर मचवलन, कइलन दुरगतिया । चलके

असल जे होखव त अब ना सहब अइसन फजिहतिया । चलके रीति छाड़ि अनरीति के धइलन; हेराइल हइन मतिया । चलके चसकल जो रहिहें त कहत भिखारी, उतरिहन इजतिया । चलके...

( सखी के प्रस्थान )

समाजी :

( चौपाई )

राह में बोलत निपटे उदासा । गई सखी जसुमति के पासा ॥

( यशोदा जी से सबी के ओरहन )

मइया जसोदा जी, कइलन बेहुरमत सखियन के कान्हा तोर ।

पानी भरे जात जब हमनी के देखेलन, रहेलन बटिया अगोर मइया जसोदा जी बान्हल केस हमनी के अभुरवलन, धइलन अंचरवा के कोर । मइया जसोदा जी... कहत भिखारी केंहू के बसे नाहीं दिहितन, तनी भर रहितन जो गोर। मइया जसोदा जी

यशोदा ।

( दोहा )

कवने कारन का भइल, तनिक बतावs भेद । बढ़-बढ़ि के तू बातें कइलू, एक के नव-नव छेद ॥ ( सखी खुलासा करतारी )

सखी:

( गाना ) गँइयाँ के ईजत ना बाँची, तोहार बेटा भइलन अमीर ।

देखि के अकेला बखेड़ा मचावेलन,

सखियन के खोलेलन चीर । जल्दी उपाय करs पाछे पछतइबू, नान्हें से भइलन बावन बीर !

एगो सलाह करs घरवा में बन के के,

द जंजीर । कहत भिखारी तोहार धन बरबाद के के, के बनइहन फकीर । बाहर से भर

नन्द

( कृष्ण के हाथ व के मशोदा जी के कहनाम )

यशोदा

( चोपाई )

खान सुनहू बात सुनहू बात हमारी । छूटी बानि अबकिए बारी ॥

तू नान्हें से भइलs ढीठ । चभुकी से हम फोरब पीठ ॥ अइसन ओरन हमें न भावे । बात सुनत में मन सरमावे || सरबस खा के निरबस कइलs | तू दुलरू दुलार से गइल |

जा, तोहरा लोग का बारे में हमरा बोलला के कवन मतलब बा, तू लोग जो नीमन रहित त आज एकनी के मजाल रहल हा अंगना में

कचवा उड़ावे के ?

कृष्ण :

( गाना )

लगवले बाड़ी मइया, ललिता लहरवा । लगवले बाड़ी दामोदर सँग हम गेंदा खेलत रहलीं,

उहाँ जाके सखी सब मरली नजरवा । लगवले बाड़ी घरे आके तोरा भिरी बोलली जहरवा । लगवले बाड़ी..

मुकुट पीतामरी हमार छीन लिहली, ओह घरी सजली दिलग्गी के बजरवा । लगवले बाड़ी"

लंगा बना के हमें नाच नचवली, हँसे लगली मुँह पर धइ के अंचरवा । लगवले बाड़ी... कहत भिखारी, इहे सरदारी ह

कृष्ण :

( चौपाई )

मइया सुनहू अरजिया मोरी । तजवीज करिह बात करेरी ॥ इनिकर बात सकल बा साजल । तोरा जाने में हम हई पागल ।।

सखी :

नाहक काहें गारी देहव ?

दुनिया भर से अजस लेहब ||

( चोपाई ) अजस के डर इनिका कइसन ?

देखतू करनी करेलन जइसन ॥

इनिका बा झगरे में माजा । गाल बजावत तनिक ना लाजा ॥ दुनिया भर के हवन नाल । अब ना सुवरी इनिकर चाल ॥

( कवित्त )

मोहन के चलाँकी सुनीं, नजर करके बाँकी, नित ककर चला चला के गगरी पर मारेलन ।

अइसन बेपानी कबहू देखली ना भइलीं हम,

चुन-चुन के गारी सब सखियन के पालन ।

अइसन बरिआरी केहू कइसे सही जसोदा जी, हाथा बाँही करि करि के चोली सारी फारेलन ।

कहत भिखारी इनिका छल भरल बा नारी-नारी, पुरवासाठ करे का बेरा तुरते नकारेलन ॥

( सखियन के छेड़खानी कइल नइखे छूटत । एक दिन के बात मोहन के रंग- ढंग देखि के एगो सखी के कहनाम )

सखी: मनमोहन श्याम, बेरि-बेरि करेल रंगरिया हो । पाँव परत बानी, सखियन संग के,

छोड़ि द कइल कचहरिया हो । मनमोहन

एक नगर में बास करत नित, अनत के हई ना फुहरिया हो । मनमोहन

राम करस कुछ बालत नइखा, तनी एसा फोरि द गगरिया हो । मनमोहन

पहुँची सबेरे दरबार में ओरहन, देखि भिखारी के लबरिया हो । मनमोहन

( अब का पूछे के रहे। एगो ककड़ उठा के चलाइए त देले मोहन । सखी के गगरी फूट गइल । ऊ आगे बढ़लि झूमर पारत )

सखी :

पनघट पर फोरलन गगरी हमार ॥ टेक ॥ जाइ के कहब जब, जसोदा का लउकी तब, मोहन से पुछिहन समाचार पनघट पर केहू ओहिजा रहे नाहीं, कइलन हाथाबाँहीं,

चुनरी फाटल लहरदार । पनघट पर मोहन का नइखे सरम, नरम पर भइलन गरम, रहता में करब खूब उधार । पनघट पर

झगरा भिखारी गावे, सोचि के नीके बनावे,

कटत बा नाच में बहार पनघट पर

( सखी लोग जमोदा जी का लगे पहुचल मिलिजुलि के अरज-ओरहन सुनावे लागल )

सखी: हम ना बसब तोहरा नगरी ए जसोदा जी, हम ना बसब तोहरा नगरी । मोहन जी धूरी में फाना उड़ावेलन, पनिघट पर फोरेलन गगरी। ए जसोदा जी अबहीं त घरहीं में चरचा चलत बा, जान जाई दुनिया भर सगरी ए जसोदा जी

रसिक बिहारी कपारे पड़ल बाड़न, नित दिन बेसाहेलन रगरी ए जसोदा जी

बात ? न दोसर सखी तोहरे सोझा जसोदा जी रानी ! सब दिन से हम नगर में बानीं ॥ हमरा मुँह से आवत-जात । खाल-ऊँच कबो सुनलू हँसी दिलग्गी मोरा भावे । तनिको झूठ कहे ना आवे ॥ तोहार बेटा छैल चिकनियाँ | नान्हें से भइलन किरतनियाँ | नाचि-गाइ के सखी रिझावत । लाज के बात ना मुँह से आवत ॥ नन्दजी के बड़का बा पगरी ए जसोदा जी, हम ना बसब तोहरा नगरी ।

कहत भिखारी बड़ाई होई एही में, नन्द जी के बड़का बा पगरी ए जसोदा जी...

तीसरी सखी :

( मैथिली बोली में ) जेखनी से साँझ भेल, दिया बत्ती बर गेल, उजर चदर झाशि खाट पर बिछलखिन । केना कहूँ मैं कहत लजाई छी, बड़ अजगूत कान्हा हमरा कान्हा हमरा से कलखिन । नवॅग सुपारी वो तो कहाँ से दो ललखिन, कोकचि - कोकचि मोरा मुँह में ठुसलखिन । नन्द जी के बड़का बा पगरी ए जसोदा जी,

गमक से प्रान गेल नूगा मोरा खूल गेल, विधुनि बिधुनि के सब गत कलखिन । -

हम ना बसब तोहरा नगरी ।

: उठ सखी देह से हम

घर के

बानी ।

रदूल पानी ॥

झगरे

बानी कमजोर ।

नाहीं त

पूरा होइत झकझोर ॥

के मरद

ना

पतिजास |

एही से अइली जसोदा का पास ॥

एहिजो के बा अटपट

अइला

के ना

तर के भूभुर, ऊपर के घाम ।

में भुरवत वा चाम ||

नगर में बसब ना कहत भिखारी ।

ईजत के खिल्लत उड़वलन बिहारी ||

नन्द जी के बड़का बा पगरी ए जसोदा जी,

हम ना बसब तोहरा नगरी ।

पांचवीं सखी: जसोदा जी से टूट गइल आजुए से नाता ।

हँसी का बहाना से सारी झटक देलन, अब ना ई फजिहत सहाता । जसोदा जी से

घर-आँगन आपन चाहे अनकर,

तनिको ना हमरा सोहाता । जसोदा जी से

एही इरिखा से कवनो मुलुक में चलि जाइब,

जाके पीसब केहु के जाता । जसोदा जी से."

कहत भिखारी मुरारी आफत कइलन,

तू ही सह हऊ उनुकर माता । जसोदा जी से...

छठवीं सखी :

( चौपाई )

मोहन मोहन भइल

मोहन मचवलन उपदर

सोर ।

जोर ॥

सेखी ॥ मोहन भइलन नान्हें से रगरी । । अब ना बसब नन्द का नगरी ॥ सब कर ईजत बरोबर देखी । तेकरे रही जगत में अबलन से कइलन तकरार । मोहन के नइखन डाँटनहार ॥ टूट गइल अजुए से नाता जसोदा जी से..

सातवीं सखी : नटनागर मोर सब गत कइलन । नटनागर पानी भरे जात रहीं जमुना किनार पर, गइया चरावत चलि अइलन । नटनागर साँच बात कहला से तू ना पतिअइबू, लप कि झपक के वह धइलन । नटनागर " अइसन अबाटी जगत में ना झट दे झटकि के परा गइलन । नटनागर कहत भिखारी सदा कमरी से दिन गइल, कछनी पहिर के अमीर भइलन । नटनागर देखली,

आठवीं सखी :

(दोहा)

नागर गागर फोर के, कइ दिहलन सकचून । ई सब कसर सधाइ लेब हम, असल जो होखब बून ॥ जइसे चूरी लालजी, कइ दिहलन चकनाचूर । ओसहीं मुकुट, कुडल, बंसी, कछनी छीनब जरूर ॥

नवीं (चौपाई)

मोहन के गइल लाज मरजादा ।

अपने मन से बनत सहजादा ।

केहू का मन में तनिक ना भावस । कतनो करिया मुंह चमकावस || कतनो लइहन देह में ईतर । चाहे मनइहन देवता पीतर ॥ - कतनो लावस तेल - फुलेल । अब ना होई मोहन से मेल ।। मोर मुकुट कतनो चमकइन । हमनी का मन में तनिक ना भइहन || ईजत खातिर नगर में बानी । सुनिलs मइया जसोदा जी रानी ॥ सहल जात नइखे बरिआरी । मोहन फरलन तन के सारी ॥ फाट गइल कपड़ा के धारी । कसिके खींच दिहलन गिरधारी ॥ जो कुछ कहलों कडुआ भारी । छमव देबि अपराध हमारी ॥ कहे भिखारी जसोदा जी रानी । खीस में लउकत वा आग ना पानी |

टोली ।

एक सखी :

हम ना बसब अब जसोदा का जसोदा के बेटा मोहन रंग रंग रसिया, पनघट पर सखियन से कइलन ठिठोली । हम ना झूठो के बबुआ पर थपरा उठावेली,

ऊपर से बोलेली लोपल बोली ।

हम ना

मोहन का मने मने माघ-फागुन लउकत बा हमनी पर सब दिन बितावेलन होती ! हम ना

कहत भिखारी सहात नइखे फार दिहलन नयका कटाव काटल चोली । हम ना.. हमरा से ( एही बीचे एगो बाउर सखी गावत आवतारी )

- चुनि चुनि के पारत गारी,

बलराम पीताम्बरधारी, सब रोवत ब्रज के नारी,

झकझूमर में फाटि गइल सारिया ।

देखलीं ना अइसन मसखरिया ।

केहि हेतु होत तकरारा ? एक वारहि बारमवारा, -

सुनि- समुझि के करहु बिचारा,

रहे नाथ पर भरल गगरिया |

मत करहु रीस बहुतेरा, इहाँ बसत बजाज घनेरा,

जब खुली दूकान सबेरा,

एगो कीन द दोसर पाढ़वरिया ।

गीत गावत भिखारी नाई,

दरबार पहुँचली जाई, हउवे कुतुबपुर दियरा नगरिया ।

जहाँ खुदे जसोदा जी माई,

( तवले फेर केहू सुनावत आइल ) पनिघट पर गगरी फोरलन मोर ।

जसोदा के बेटा मोहन मीठ बोलिया,

भइलन नगर में चोर । मोर पनिघट पर

अइसन कइलन केहू ना पतिआई,

हाथ बाँहि झकझोर । मोर पनिघट पर

गगरी फूटल त दोसर किनाई, लागल ईजत के ओर । मोर पनिघट पर

कहत भिखारी सनीचर के दिन होई,

संउसे गाँव के बटोर । मोर पनिघट पर

( सखिन के समिलात बिरहा)

एह अरजी पर मरजी करों बाबू भइया,

बड़े छोटे नीके देखीं एह झगरा के बूझ । नीके देखी एह झगरा के बूझ ब्रजबासी । नाहीं त जाके बसब अजोध्या चाहे कासी । चाहें बसब ठाकुरदुअरा, चाहे बसब झाँसी । हमरा देह से जसोदा के सहात नइखे गाँसी । घरवा छोड़िके बन में चाहे बनि जाइब उदासी । कहे भिखारी चाहे मरब गला में लाके फांसी । बड़े छोटे नीके देखीं एह झगरा के बूझ ।

एगो बूढ़ सखी :

(कवित्त)

अहो पंच परमेश्वर एह पंचाइत के न्याय करों, जानि गइल जगत जे नन्दरानी जी कहावेली ।

मोहन के ओरहन जो देत केहू कवनो बिधि, सुनि के मीठ बोली में अनगावल गीत गावेली ।

अइसन अनरीति कवना मुलुक में चलन बाटे,

बेटा के पछ

कके हमनी के सिखावेली ।

2 समाजी के चौपाई सुनिसुनि ओरहन जसोदा माई । मोहन से बोली रिसिआई ||

कहत भिखारी सबका देखे में चीकन बाड़ी, झगरा करसु ना ई झगरा करावेली । [ बूढ़ सखी ओरहन देके चल जात बाड़ी ]

यशोदा (मोहन से ) हम ना छोड़ब तोहार जान,

मोहन करवलs फजिहतिया ।

आधा जबान केहू कबहूँ ना बोलल, सहत बानीं सखियन के स न । मोहन

राति दिन ओरहन सोगिया लगवनिन के सुनत सुनत बहिर भइल कान । मोहन एगो ना बात मानऽ कतिना सिखाई,

अब ना छूटी तोहार बान । मोहन कहत भिखारी तू सखियन के संग छोड़s मनव में करिलऽ गलान । मोहन

कृष्ण : ( कृष्ण के सफाई )

मइया बतिया हमार सुनऽ साफा । लबजी का बात के तू साँचे पतिअइलू सहजे में हो गइलू खाफा । मइया

लरिका समुझि हमें खूब दिक कइली, सहि गइलीं कइ कइ दाफा । मइया

मुरली माँगत रहीं सारी में हाथ लागल, फारला में का बाटे नाफा ? मइया

कहत भिखारी ई झूठे लगावत बाड़ी,

एके हाली गाफा

के गाफा । मइया'

यशोदा (एगो सखी से) : गुजरिया तू नाहके अपत कइलू हो । फुसुर-फुतुर का का दोनी घरे बतिआ के

हमरा मोहन के बोला ले गइलू हो । गुजरिया.. छोटे बदन में तू मोटे गुमान कइलू हमरा मोहनजी के नांव धइलू हो । गुजरिया कहत भिखारी बिहारी के दोस देके, लबजो कहिया से कुलवंती भइलू हो ? गुजरिया- (ई सुनि के सखी लोग समिलात दुखड़ा सुनावे लागल)

सखी :

(पूर्वी)

हमनी का कहत बानी, सुनs ए जसोदा रानी ! कइलन नगहानी अवहीं खानी हो बिहारी जी । घर में बालक लाल, बाहर में होके माल, गाल से देवाल के उड़ावेलन बिहारी जी । हमनी के कइलन उदवास हो बिहारी जी । ( यशोदा जी कृष्ण के समुझावे लगली ) ।

जइसन बलराम, तइसन घनश्याम, ओइसन नाम ग्राम करिहन बिहारी जी ।

रहता में जनीजात, देखि के करेलन बात मन में ना तनी सरमात हो बिहारी जी ।

गोकुला नगरिया के, नन्द- कचहरिया के बड़का बनइहन पगरिया बिहारी जी । कहत भिखारीदास, कुतुबपुर ह ग्राम खास

यशोदा :

( पूर्वी )

बबुआ सुनहु बात, डगर आवत जात केकरो से बोले के गरज का दुलरुआ ? 

ओरहन आइल तोर, दुखित भइल मन मोर काहे भइलऽ अइसन मुँहजोर हो दुलरुआ ?

केहू के तू देलऽ गारी, रोवत घरे अइली नारी

सारी फारि दिहलs गरीब के दुलरुआ !

करि के रगरिया गगरिया केहू - केहू के फोरिकर फेंकलs गेरिया दुबरुआ !

भइल बाड़s बावन बीर, दुअरा पर लागल भीर

काहे जालs जमुना का तीर हो दुबरुआ ? माखन मलाई खाल, बछरू चरावे जा

करे खातिर गिधवामिसान हो दुलरुआ !

छोड़ि द ढिठाई काम कृष्णचन्द्र बलराम करत बा लोग बदनाम हो दुलरुआ !

अबहू से कर ज्ञान, छोड़ि द अइसन बान

नाहीं त छोड़व हम ना जान हो दुलरुआ !

धइले बाड़s नीमन साथ, रसरी में बान्हब हाथ काहे जाल बछ बछर चरावे हो दुलरुआ ?

नोकर बहुत मोरा, कवन फिकिर बाटे तोरा घेरले बा लोग चारू ओर से दुलरुआ !

देखि के लागत बा लाज, रहितन जो घरे आज मालिक होइतन अनराज हो दुलरुआ !

हिरदय बसहु आई, पितु कृष्ण राधे माई कहत भिखारी नाई गाइ के दुलरुआ ! (तब कृष्णो आपन बयान सुनावे लगले)

कृष्ण :

(पूर्वी)

कहत बानी बात खोलि के, सब सखी मिलिजुलि के

पक्षिय भरत महली जमुना में हो मया !

मोरवा मुकुट

हम गइली घाट पर साथ-साथ हलधर

बछरू चराई के पिआवे जल हो मइया !

एक सखी बंसी लेली, हाथ झकझोरि देली

एक सखी छिनली

पीताम्बरी हो मइया !

जनली जे हँसी कइली, राह घके चलि भइली,

आगे जाके मंगलीं पीताम्बरी हो मइया !

केहू बोले लागल सेखी, बालक नादान देखि,

केहू कहे छीनब हम कुछनियाँ हो मइया !

तनी ना चलत सक, होइ गइलीं हम भक

झक झक चारू ओर से घेरली हो मइया !

केहू, बाँचल

रहल सेहू

ढीठे हाथे सिर से उतरली हो मइया !

केहू नासामनी लेहल, केहू-केहू गारी देहल

केहू खोलि लेहल पैजनियाँ हो मइया !

केहू हाथ धइल कसि के, केहू बोलल हँसि हँसि के

उटुकी खुटुकिया चलावल केहू हो मइया !

नाहीं हम जनलीं माई, झगरा दीहें लगाइ

पहुँची दरबार में हो इहे हउवे समाचार, हमरा के बारम्बार थपरी बजा के लजववली हो

मइया !

अब हमरा सूझि गइल, हीत दुसमन भइल

खुलि गइल आँखि के पनियाँ हो मइया !

कहत भिखारी नाई, पनिघट के गीत गाइ

कुतुबपुर दियरा में

घर बा हो मइया !

( यशोदाजी बेटा का कहला में आ गइली आ

लगली सखी लोग के सुनावे )

- कइसे हेराइल बूध, बोलत नइखू बोली सूच नखऊ विचार बड़ छोट के हो गोरिया !

झूठहू के लहरा लगवलू बबुआ नादान बाटे, लगलू कसीदा काटे हो गोरिया !

- झगरे के हऊ मन, कतिना बा तोरा धन हन-हन झन झन छोड़ि द हो गोरिया !

द लगन हमार लखि, जरत-मरत वाडू सखी, अनभल छोड़ि मनावल हो गोरिया !

यशोदा :

(पूर्वी)

सुनिल हमार कहल, मन बा तोहार दहल उमिर मोहन के नादान बा हो गोरिया !

नाहीं त जुलुम होई, राजा जी से कही कोई तब नाहीं बसबू नगर में हो हो गोरिया !

परल बाड़ू हाथवा में, चलऽ हमरा साथवा में

कहब तोहरा भाई -- भउजाई से हो गोरिया ! चल बबुआ दूनों भइया, जहवाँ इनिकर हवहिन मइया नीक पुरवासाठ करिके छोड़ब हम हम हो गोरिया ! मुँहवाँ के राख, लाली, काली कलकत्ता वाली कहत भिखारी नाई गाइ के हो मोरिया !

समाजी :

(चौपाई) जसोदा सखी संग ले जाई साथै कृष्ण जात मुसुकाई जो यह कही सुनी नर-नारी तेहि के पद- मँह परत भिखारी

( ओरहन सुनवला से सखिन के मन नइखे भरत । मोहन के करनी फेरू गवाये लागल )

- करीं हमका जसोदा ! चसकल मोहनवाँ । बरजि रही बरजल ना मानत नित उठि आवे कान्हा हमरा अङनव । गगरी फोरत इनिका संका ना लागत कहेनू जे बढ़ सुधा हउअन जलनवाँ । देखतू तनिक तू ढिठाई बिहारी के कइसे दो त सोझा तोहरा रहेलन भवनवाँ । कहत भिखारी गजब बरिआरी बा कब कब देबे हम आइब आइब ओरहनव । ।

एक सखी :

(गाना)

दोसर सखी :

(गाना) पनिघट पर कइसे केहू जाई । सुनि लेहु, सुनि लेहु, आरे मातावा जसोदाजी हो,

अपना लालन जी के हालत कइलन बरिआई । गरिया से तर कइलन, आरे नकिया के बेसर धइलन देखतू तू त तू ही जइतू सरमाई ।

केहू के कहल ना माने, आरे हमनी के ना त आदमी में जाने देखतानी तोहरो दनाई ! कहत भिखारी, अब ना, आरे बसे दीहें मुरारी केहू के एको ना लउकत बा उपाई ।

तीसर सस्ती :

(गाना) जइसन करत बाइन करनी बिहारी जी नू हो बतिआ कहब निरुबारी । संकर चना के गगरी फोरलन

धइलेलन भर मॅकवारी ।

हाथ गला बीच डारी ।

रगर झगर कइ बाँह ममोरलन फारि देलन तन पर के सारी । लाज के बात बताई हम कइसे असले कहत भिखारी । धइके कसर लेहब सब दिन के, चाहे हमें देबू तू उजारी ।

एह बस्ती में केहू कइसे बसिहन जहवाँ होत बटवारी |

देखि लेलन लगिट उधारी । ई अनरीत सहात नइखे हम से

चउठी सखी :

(गाना)

ए जसोदा मइया, चसकल बा ललना तोहार ।

रोकि के डगरिया मोसे कइलन मसखरिया,

ए जसोदा मइया, जब जाई जमुना किनार ।

रीति अनरीति कइलन, बाँह का घइलन, ए जसोदा मइया, अपने मने हउवन होसियार ।

असल हम हई जनि जनि कम असल, ए जसोदा मइया, टिकल नइखे बेसवा बजार ।

कहत भिखारी कहू मोती लर टूटल, ए जसोदा मइया, लागि जाई कतिना हजार । ।

पांचवीं सखी ।

(गाना)

जमुना में जात रहीं जल भरे हो,

कान्हा हम से कइलन तकरार ।

कुछ दूर डगर में गइलीं हम हो, विचही में मिललन मुरार । बाते - बाते रगर बढ़वलन हो,

गारी हमें दिहलन हजार ।

नीमन काम करत बाड़न बबुआजी हो, कइले जइहs असहीं दुलार ।

बछरू चरावे का बहाना नित हो, लेलन ईजत हमार |

अरज करत बानीं आरे मइया हो, एही में बा मरजी तोहार ।

आपन बिराना मति सोचिह तू हो, पंचित निरधार । - कर 5

कुतुबपुर गइयाँ भिखारी ठाकुर हो, बसल बाड़न गंगा का किनार ।

उहे त ई प्रेम के झगरा गवलन हो,

गाइ - गाइ कइलन बहार ।




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लेख
भिखारी ठाकुर ग्रंथावली
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भिखारी ठाकुर (1887-1971) एक भारतीय भोजपुरी भाषा के कवि, नाटककार, गीतकार, अभिनेता, लोक नर्तक, लोक गायक और सामाजिक कार्यकर्ता थे. उन्हें भोजपुरी भाषा के सबसे महान लेखकों में से एक और पूर्वांचल और बिहार के सबसे लोकप्रिय लोक लेखक के रूप में माना जाता है. भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर 1887 को बिहार के सारण (छपरा) जिले के कुतुबपुर (दियारा) में हुआ था. उनके पिता का नाम दल सिंगार ठाकुर और माता का नाम शिवकली देवी था. उनके पिता लोगों की हजामत बनाते थे. भिखारी ठाकुर ने सामाजिक समस्याओं और मुद्दों पर बोल-चाल की भाषा में गीतों की रचना की. उन्होंने भोजपुरी गीतों और नाटकों की रचना की. 1930 से 1970 के बीच भिखारी ठाकुर की नाच मंडली असम, बंगाल, नेपाल आदि कई शहरों में जा कर टिकट पर नाच दिखाती थी. भिखारी ठाकुर को "भोजपुरी का शेक्सपियर" भी कहा जाता है. महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें "भोजपुरी का शेक्सपीयर" की उपाधी दी. अंग्रेज़ों ने उन्हें "राय बहादुर" की उपाधि दी. हिंदी के साहित्यकारों ने उन्हें "अनगढ़ हीरा" जैसे उपनाम से विभूषित किया.
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