बंदना (चौपाई )
श्री गणेश के लागी पाँव । जगत जपत वा जिनिकर नाँव || विप्र चरन में नाऊ सीस जे वा दुनियाँ भर में बीस !! सन्त चरन में नाऊँ माथ । जिन्ह परगट कइलन रघुनाथ ॥ बासुदेव देवकी पद लागू । बार-बार अतने वर माँगें ॥ हरि गुन गावत निसि-दिन जाय । त्रोध लोभ देहू विसराय ॥ पुरुखन के चरनन सिर नाऊँ । जिनकी कृपा कृष्ण गुन गाऊँ ।। जिनकी कृपा से देस - विदेसा । गिरि कानन नहि होत कलेसा ॥ जिनकी कृपा सकल परिवारा । बिहरत बा सुरसरी किनारा ॥ जिनकी कृपा गंगाजल पाऊँ । सिर पर नित रेनुका चढ़ाऊँ ।। जिनकी कृपा राधे गुन गाऊँ । जाते अन्त अमर पद पाऊँ ।
मोहन दानी हउअन भारी । रंक के कइलन ऊँच अटारी ॥ सोइ मोहन अब दाया करिके । बसहु हृदय मम बंसी धरिके ॥ मोर मुकुट कछनी के काछे । बंसी बजावत गइयन पाछे । मम हिय कानन परबत गाछी । तेहि के मध्य चरावहु बाछी ॥
( दोहा )
यशोदा नन्दन सखि सहित, ललिता राधे बलराम । मोहि हिय ब्रज के ऐश्वर्य ले, बसहु सदा घनश्याम ॥
( एह मंगलाचरण का बाद मंच पर बइठल समाजी लोग के
सामूहिक गान )
चौपाई (बानी के साथ )
भुण्ड झुण्ड मिलि ब्रज के नागरी, सांवलिया प्यारे ।
घर-घर से चली सिर लेई गागरी, साँवलिया प्यारे । जमुना जल भरने को जाती, साँवलिया प्यारे । भूसन बसन सजे बहु भाँती, साँवलिया प्य रे ।
एही बिधि सखी जात मग माँहीं, साँवलिया प्यारे । ठाढ़े श्याम कदम की छाँहीं, साँवलिया प्यारे ।
( पाछा से गीत गावत सखियन के प्रवेश )
गीत
कब मिलिहन नन्दलाला, ए सांवर गोरिया ! मोर मुकुट माथे, मोर मुकुट माथे,
कछनी पीताम्बर, सोहत गले माला, ए साँवर गोरिया !
कारी जुलुफिया पर, कारी जुलुफिया पर
मनव लोभाइल, तिलक बीच भाला, ए साँवर गोरिया !
साँवली सुरतिया बिनु साँवली सुरतिया बिनु
कल ना परत बा, जियरा हो गइलन बेहाला, ए सांवर गोरिया !
कहत भिखारी तनी भर, कहत भिखारी तनी भर
सबद सुनावs, हउअ खुदे बंसीवाला, ए सांवर गोरिया ! ( एही बोचे वंशीधर कृष्ण आ बलराम आ जातारन )
( समाजी के चोपाई )
सखी श्याम के दरसन पाई ।
जय जय कहि कहि सीस नवाई !
(मंच पर उपस्थित सखी समाजी का साथ-साथ) - बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय ! (सखी लोग के राधेश्याम बहार के लीला गान)
( १ )
करत बहार राधेश्याम, करत बहार राधेश्याम । श्री गोकुल-मथुरा कुंजन में होत नित नित जाम करत बहार
मोर मुकुट ललाट चन्दन, जुगल अति छवि धाम । करत बहार
बंसी फू कत धरि अधर पर संग में व्रज के बाम करत बहार
कहे भिखारी हरि के भजिलs, मन, ना लागी दाम करत बहार'
( २ )
कान्हा से लागे मोरा नैना, नेन विनु सननन, सननन, सननन ।
कान्हा
नोरा पछुआरवा सारंगी वाजे, सारंगी बाजे सननन, सननन, सननन । कान्हा
मोरा पछुआरवा तवला बाजे, तबला बाजे ठननन, उननन,
ठननन । कान्हा
( सखी आ कृष्ण के युगल गान )
सखी: नैना लगाये चलि जाय हो, कदमियों के छँहियें छहियें, -हाँ कोई, हाँ कोई ।
आंखों में सुरमा जड़ीदार टोपी, -हाँ कोई, हाँ कोई,
जुलुफी देखाये चलि जाय हो, कदमियाँ के छँहियें - छँहियें ।
कृष्ण : आओ सखी, तोहे बंसी तुनाऊँ हाँ कोई, हाँ कोई जियरा जराये चलि जाय हो, कदमियाँ के छहियें - छँहियें । ( दोहा )
कृष्ण : इस तरफ मत जा ए सखिया, राहत घर के लीजिये । जमुना तीरे पुण्य क्षेत्र है, जल कुआँ के पीजिये ॥
सखी: कुआँ के जल खार बहुत है, मीठा चाहता हूँ प्यारे । ई बतिया कबहूँ ना सुनलीं, ई बतिया सुमलीं न्यारे ॥
कृष्ण : नया चाल के हाल त, सुनहु सुमुखि दे कान । जमुना तीरे दण्ड लगत है, दे जोबन के दान ।
सखी: जोबन-जोबन मत करहु, सुनहु अर्ज घनश्याम । हम सबका सोझा मत लेहू, नीच काम कर नाम ॥ (जमुना में जल भरे से कृष्ण के रोकला पर सखी लोग के निहोरा) हमरा के भरे द गगरिया ए साजन ! हट हट घाट छोड़' जसोदा के लालन !
बेरि-बेरि करेल रगरिया ए साजन ! हमरा के
के
अइसन दुलार के हम पथल पर पटक देहब काहे तू चलावेल नजरिया ए साजन ! हमरा के
एहिजा से जाके कहीं कबडी जमाव ग पनिघट के छोड़ के डगरिया ए साजन ! हमरा के
कहत भिखारी जो ना भरे देव गगरी, नाहीं बसब नन्द का नगरिया ए साजन ! हमरा के
( दोसर सखी के कहनाम ) कवित्त
नन्द के कुमार, सुनिल अरज हमार एक, अइसन सान साहबी पर पंजरा में ना बहिहों । जसोदा के लाल गाल तनिको बजाव मत चाल से ना चलब तब नगर में ना रहिहों । चाहे जान रही चाहे जाई एही लागे कान्ह जरा सा अनीति बात सपना में ना सहिहों । कहत भिखारी हम असल के बेटी हुई एक बात कहला पर लाख बात कहिहों ।
( चोपाई )
कड़क लाख के बा तोर चोली ।
काहें ना बोलब अइसन बोली ? कहब बात रसीली पाका । 2
देखिह पाछे ना लागे धाका । ठंढे मन से होइब भारी । सुनिल पुस्तक कान पसारी ॥ कहे भिखारी छोड़ सान | ना त उठी जगत से मान ॥
कृष्ण :
( गाना )
सखी :
देखावs मति जारी, ए गिरिवरधारी !
चोलिया मसकि गइल, चोलिया मसकि गइल, अँगुरी दुखाइल, रेसमिया फाटल सारी, ए गिरिवरधारी !
अइसन अनीति पर, अइसन अनीति पर
आफत लगाइव, हम ना हई दोसर नारी, ए गिरिवरधारी !
सोझा चलि जा हमरा, मोना से चलि जा हमरा रसिक बिहारी ! तू कइल बटवारी ए गिरिवरधारी !
कहत भिखारी तोहे, कहत भिखारी तोहे
भजन सुनाइव, इजतिया भलव भारी ए गिरिवरधारी ! ( एकरा बाद सखी कृष्ण के बंसी छीन लेतारी । )
( दोहा )
कृष्ण : वंशी दे दो ऐ सखी ! क्यों करती हलकान ?
मुसुकी छोड़त, गाल बजावत, लागत नाहीं गलान । सखी: बोली बोलत ढीठ से, तनिक नहीं सरमात ।
टेढ़ी बोलव' सखियन से, त जइब घरे पछतात ॥
कृष्ण घर के हम ना जाइब, सखिया मान बचन हमार | तेरी अँखिया रस भरी, मारत जिया में वान ॥
सखी: काचा जीव है मोहन तुम्हारे, थोरही में उतरात | इहाँ ना लागी तनिक चल्हाँकी, बोल ना अटपट बात ।
कृष्ण : अटपट बातें कुछ ना बोलिहों, बंसी दे दो सखिया री । आसिरबाद कुछ हमसे लेल जीअ हो के लखिया री ॥
सखी: आसिरबाद का देबs मोहन, तू नान्हें के चोर । कतिना घर में माखन खइल, भइल जगत में सोर ||
कृष्ण : दुनियां भर में सोर भइल हम कुछ ना जनलीं तोर । पाका ठगिनी हमके ठगलू, सूरत देखा के गोर ।
सखी: ए मोहन ! तू सेखी ढिलल सूरत निहरल मोर । कहे भिखारी जसोदा से कहब, करिहें नतीजा तोर ॥ ।
कृष्ण : आगे पीछे होई नतीजा, बेसी देखइबू टिपोर कहे भिखारी तमकल जइब, गगरी देहब फोर ।
रुखी : गगरी फोरव, बात बढ़इब, हमें देखइक जोर । कहे भिखारी अब मुँह छूटी, सुनव लाख कड़ोर || ( चौराई )
ओरहन देव तुरते जाई । हाल बनइहन जसोदा माई ॥
( समाजी के चौपाई )
अस कहि चले सकल ब्रजबाला । आगे से रोके नन्दलाला । बीतल बात के मारहु गोली । अब ना कबहू करब ठिठोली ॥ ( सारी धइके सखी के रोकतारे )
कृष्ण :
( दोहा )
सखी: छोड़ सारी हे गिरवारी, बेसी लागल बा दाम | ई मति जान कमरी हउए, कहत भिखारी हजाम ॥
: कृष्ण एक सारी के प्यारी बहुत, करत बाड़ू बखान । कहत भिखारी हुकुम पाइब तब, लाखन देहब आन ।
सखी : सहजे में फुसलइबs हमको । का नहीं जानत हूँ हम तुमको | इहाँ से सेखी सान हटाव । झूठे कहि कहि दिन कटाव ॥ नन्द राय के गाय सूखल बाँस के बंसी बजावS || चरावः ।
कृष्ण :
सदा तू ओढलs कमरी कारी ।
हमरे सोझा देखइबs जारी ॥ सरबर करवs मोर ? हम ना हई गोरस के चोर ॥ सरवर कुछ ना करिहों तोर । चोलिया के बनवाँ कइलs भंग । सुन० रीति अनरीति कइलऽ रीति अनरीति कइल भइली हम बे-पानी, सुन ए मोहन प्यारे, लउके लागल सगरो अलंग । सुन० गाल के बनवला हाल, गाल के बनवल हाल मोती-लर तुरल, सुन ए मोहन प्यारे, देहिया के कई दिहल तंग । सुन०" कहत भिखारी आज तू कहत भिखारी आज तू, कइल, बरिआरी, सुन ए मोहन प्यारे, आँख हुँआ चलत बा बेरंग, सुन ए मोहन प्यारे । ( कृष्ण के मनावल )
सखिया ! सुन निहोरा मोर ॥ करहु माफ, खेलहु कुछ खेला । प्रकार हमरे वा पेला ॥ ( सखी के नकारल ) सब
गाना
सुन ए मोहन प्यारे, हम ना खेलब तोहरा संग | सारी मोर दिलs फारी, सारी मोर दिहल फारी, बहियाँ झकझोरल सुन ए मोहन प्यारे,
गाना
छतीसी गुजरिया, तू घरे चलs हो ।
नखड़ा देखा के हमार जीव मोहलू, तू बाड़ भल हो । छतीसी०
मोतीहार बहार मजेदार, सोहत गले हो । हो । छतीसी०..
जारी जनावेलू झूठे के रोवऽ मत, बल-बल हो । छतीसी० कहत भिखारी तू खुदे जानत बाड़ कल-छल हो । छतीसी० ( सखी के नकारल )
गाना
हम ना सुनब तोहार बात हो नन्दलाल । जे ना बात कहे के से चट देना कह देल हो नन्दलाल !
ब्रज के ना कुछु बा बसात, हो नन्दलाल ! सारी चोली दरकल, घरो का जबाब देहब हो नन्दलाल ! एको नइखे हमरा से कहात हो नन्दलाल ! कतनो मनइव मोहन, एको ना सवाल सुनब हो नन्दलाल ! अबहीं ले बाड़s मुसुकात हो नन्दलाल ! कहत भिखारी वे विचारी ना सहात बाटे हो नन्दलाल ! आखिर हउअ जगत पितु-मात हो नन्दलाल !
( सखी के दोसर गीत )
चल के कहब जसोदा से ई बतिया ।
डगर चलत कान्हा नगर मचवलन, कइलन दुरगतिया । चलके
असल जे होखव त अब ना सहब अइसन फजिहतिया । चलके रीति छाड़ि अनरीति के धइलन; हेराइल हइन मतिया । चलके चसकल जो रहिहें त कहत भिखारी, उतरिहन इजतिया । चलके...
( सखी के प्रस्थान )
समाजी :
( चौपाई )
राह में बोलत निपटे उदासा । गई सखी जसुमति के पासा ॥
( यशोदा जी से सबी के ओरहन )
मइया जसोदा जी, कइलन बेहुरमत सखियन के कान्हा तोर ।
पानी भरे जात जब हमनी के देखेलन, रहेलन बटिया अगोर मइया जसोदा जी बान्हल केस हमनी के अभुरवलन, धइलन अंचरवा के कोर । मइया जसोदा जी... कहत भिखारी केंहू के बसे नाहीं दिहितन, तनी भर रहितन जो गोर। मइया जसोदा जी
यशोदा ।
( दोहा )
कवने कारन का भइल, तनिक बतावs भेद । बढ़-बढ़ि के तू बातें कइलू, एक के नव-नव छेद ॥ ( सखी खुलासा करतारी )
सखी:
( गाना ) गँइयाँ के ईजत ना बाँची, तोहार बेटा भइलन अमीर ।
देखि के अकेला बखेड़ा मचावेलन,
सखियन के खोलेलन चीर । जल्दी उपाय करs पाछे पछतइबू, नान्हें से भइलन बावन बीर !
एगो सलाह करs घरवा में बन के के,
द जंजीर । कहत भिखारी तोहार धन बरबाद के के, के बनइहन फकीर । बाहर से भर
नन्द
( कृष्ण के हाथ व के मशोदा जी के कहनाम )
यशोदा
( चोपाई )
खान सुनहू बात सुनहू बात हमारी । छूटी बानि अबकिए बारी ॥
तू नान्हें से भइलs ढीठ । चभुकी से हम फोरब पीठ ॥ अइसन ओरन हमें न भावे । बात सुनत में मन सरमावे || सरबस खा के निरबस कइलs | तू दुलरू दुलार से गइल |
जा, तोहरा लोग का बारे में हमरा बोलला के कवन मतलब बा, तू लोग जो नीमन रहित त आज एकनी के मजाल रहल हा अंगना में
कचवा उड़ावे के ?
कृष्ण :
( गाना )
लगवले बाड़ी मइया, ललिता लहरवा । लगवले बाड़ी दामोदर सँग हम गेंदा खेलत रहलीं,
उहाँ जाके सखी सब मरली नजरवा । लगवले बाड़ी घरे आके तोरा भिरी बोलली जहरवा । लगवले बाड़ी..
मुकुट पीतामरी हमार छीन लिहली, ओह घरी सजली दिलग्गी के बजरवा । लगवले बाड़ी"
लंगा बना के हमें नाच नचवली, हँसे लगली मुँह पर धइ के अंचरवा । लगवले बाड़ी... कहत भिखारी, इहे सरदारी ह
कृष्ण :
( चौपाई )
मइया सुनहू अरजिया मोरी । तजवीज करिह बात करेरी ॥ इनिकर बात सकल बा साजल । तोरा जाने में हम हई पागल ।।
॥
सखी :
नाहक काहें गारी देहव ?
दुनिया भर से अजस लेहब ||
( चोपाई ) अजस के डर इनिका कइसन ?
देखतू करनी करेलन जइसन ॥
इनिका बा झगरे में माजा । गाल बजावत तनिक ना लाजा ॥ दुनिया भर के हवन नाल । अब ना सुवरी इनिकर चाल ॥
( कवित्त )
मोहन के चलाँकी सुनीं, नजर करके बाँकी, नित ककर चला चला के गगरी पर मारेलन ।
अइसन बेपानी कबहू देखली ना भइलीं हम,
चुन-चुन के गारी सब सखियन के पालन ।
अइसन बरिआरी केहू कइसे सही जसोदा जी, हाथा बाँही करि करि के चोली सारी फारेलन ।
कहत भिखारी इनिका छल भरल बा नारी-नारी, पुरवासाठ करे का बेरा तुरते नकारेलन ॥
( सखियन के छेड़खानी कइल नइखे छूटत । एक दिन के बात मोहन के रंग- ढंग देखि के एगो सखी के कहनाम )
सखी: मनमोहन श्याम, बेरि-बेरि करेल रंगरिया हो । पाँव परत बानी, सखियन संग के,
छोड़ि द कइल कचहरिया हो । मनमोहन
एक नगर में बास करत नित, अनत के हई ना फुहरिया हो । मनमोहन
राम करस कुछ बालत नइखा, तनी एसा फोरि द गगरिया हो । मनमोहन
पहुँची सबेरे दरबार में ओरहन, देखि भिखारी के लबरिया हो । मनमोहन
( अब का पूछे के रहे। एगो ककड़ उठा के चलाइए त देले मोहन । सखी के गगरी फूट गइल । ऊ आगे बढ़लि झूमर पारत )
सखी :
पनघट पर फोरलन गगरी हमार ॥ टेक ॥ जाइ के कहब जब, जसोदा का लउकी तब, मोहन से पुछिहन समाचार पनघट पर केहू ओहिजा रहे नाहीं, कइलन हाथाबाँहीं,
चुनरी फाटल लहरदार । पनघट पर मोहन का नइखे सरम, नरम पर भइलन गरम, रहता में करब खूब उधार । पनघट पर
झगरा भिखारी गावे, सोचि के नीके बनावे,
कटत बा नाच में बहार पनघट पर
( सखी लोग जमोदा जी का लगे पहुचल मिलिजुलि के अरज-ओरहन सुनावे लागल )
सखी: हम ना बसब तोहरा नगरी ए जसोदा जी, हम ना बसब तोहरा नगरी । मोहन जी धूरी में फाना उड़ावेलन, पनिघट पर फोरेलन गगरी। ए जसोदा जी अबहीं त घरहीं में चरचा चलत बा, जान जाई दुनिया भर सगरी ए जसोदा जी
रसिक बिहारी कपारे पड़ल बाड़न, नित दिन बेसाहेलन रगरी ए जसोदा जी
बात ? न दोसर सखी तोहरे सोझा जसोदा जी रानी ! सब दिन से हम नगर में बानीं ॥ हमरा मुँह से आवत-जात । खाल-ऊँच कबो सुनलू हँसी दिलग्गी मोरा भावे । तनिको झूठ कहे ना आवे ॥ तोहार बेटा छैल चिकनियाँ | नान्हें से भइलन किरतनियाँ | नाचि-गाइ के सखी रिझावत । लाज के बात ना मुँह से आवत ॥ नन्दजी के बड़का बा पगरी ए जसोदा जी, हम ना बसब तोहरा नगरी ।
कहत भिखारी बड़ाई होई एही में, नन्द जी के बड़का बा पगरी ए जसोदा जी...
तीसरी सखी :
( मैथिली बोली में ) जेखनी से साँझ भेल, दिया बत्ती बर गेल, उजर चदर झाशि खाट पर बिछलखिन । केना कहूँ मैं कहत लजाई छी, बड़ अजगूत कान्हा हमरा कान्हा हमरा से कलखिन । नवॅग सुपारी वो तो कहाँ से दो ललखिन, कोकचि - कोकचि मोरा मुँह में ठुसलखिन । नन्द जी के बड़का बा पगरी ए जसोदा जी,
गमक से प्रान गेल नूगा मोरा खूल गेल, विधुनि बिधुनि के सब गत कलखिन । -
हम ना बसब तोहरा नगरी ।
: उठ सखी देह से हम
घर के
बानी ।
रदूल पानी ॥
झगरे
बानी कमजोर ।
नाहीं त
पूरा होइत झकझोर ॥
के मरद
ना
पतिजास |
एही से अइली जसोदा का पास ॥
एहिजो के बा अटपट
अइला
के ना
तर के भूभुर, ऊपर के घाम ।
में भुरवत वा चाम ||
नगर में बसब ना कहत भिखारी ।
ईजत के खिल्लत उड़वलन बिहारी ||
नन्द जी के बड़का बा पगरी ए जसोदा जी,
हम ना बसब तोहरा नगरी ।
पांचवीं सखी: जसोदा जी से टूट गइल आजुए से नाता ।
हँसी का बहाना से सारी झटक देलन, अब ना ई फजिहत सहाता । जसोदा जी से
घर-आँगन आपन चाहे अनकर,
तनिको ना हमरा सोहाता । जसोदा जी से
एही इरिखा से कवनो मुलुक में चलि जाइब,
जाके पीसब केहु के जाता । जसोदा जी से."
कहत भिखारी मुरारी आफत कइलन,
तू ही सह हऊ उनुकर माता । जसोदा जी से...
छठवीं सखी :
( चौपाई )
मोहन मोहन भइल
मोहन मचवलन उपदर
सोर ।
जोर ॥
सेखी ॥ मोहन भइलन नान्हें से रगरी । । अब ना बसब नन्द का नगरी ॥ सब कर ईजत बरोबर देखी । तेकरे रही जगत में अबलन से कइलन तकरार । मोहन के नइखन डाँटनहार ॥ टूट गइल अजुए से नाता जसोदा जी से..
सातवीं सखी : नटनागर मोर सब गत कइलन । नटनागर पानी भरे जात रहीं जमुना किनार पर, गइया चरावत चलि अइलन । नटनागर साँच बात कहला से तू ना पतिअइबू, लप कि झपक के वह धइलन । नटनागर " अइसन अबाटी जगत में ना झट दे झटकि के परा गइलन । नटनागर कहत भिखारी सदा कमरी से दिन गइल, कछनी पहिर के अमीर भइलन । नटनागर देखली,
आठवीं सखी :
(दोहा)
नागर गागर फोर के, कइ दिहलन सकचून । ई सब कसर सधाइ लेब हम, असल जो होखब बून ॥ जइसे चूरी लालजी, कइ दिहलन चकनाचूर । ओसहीं मुकुट, कुडल, बंसी, कछनी छीनब जरूर ॥
नवीं (चौपाई)
मोहन के गइल लाज मरजादा ।
अपने मन से बनत सहजादा ।
केहू का मन में तनिक ना भावस । कतनो करिया मुंह चमकावस || कतनो लइहन देह में ईतर । चाहे मनइहन देवता पीतर ॥ - कतनो लावस तेल - फुलेल । अब ना होई मोहन से मेल ।। मोर मुकुट कतनो चमकइन । हमनी का मन में तनिक ना भइहन || ईजत खातिर नगर में बानी । सुनिलs मइया जसोदा जी रानी ॥ सहल जात नइखे बरिआरी । मोहन फरलन तन के सारी ॥ फाट गइल कपड़ा के धारी । कसिके खींच दिहलन गिरधारी ॥ जो कुछ कहलों कडुआ भारी । छमव देबि अपराध हमारी ॥ कहे भिखारी जसोदा जी रानी । खीस में लउकत वा आग ना पानी |
टोली ।
एक सखी :
हम ना बसब अब जसोदा का जसोदा के बेटा मोहन रंग रंग रसिया, पनघट पर सखियन से कइलन ठिठोली । हम ना झूठो के बबुआ पर थपरा उठावेली,
ऊपर से बोलेली लोपल बोली ।
हम ना
मोहन का मने मने माघ-फागुन लउकत बा हमनी पर सब दिन बितावेलन होती ! हम ना
कहत भिखारी सहात नइखे फार दिहलन नयका कटाव काटल चोली । हम ना.. हमरा से ( एही बीचे एगो बाउर सखी गावत आवतारी )
- चुनि चुनि के पारत गारी,
बलराम पीताम्बरधारी, सब रोवत ब्रज के नारी,
झकझूमर में फाटि गइल सारिया ।
देखलीं ना अइसन मसखरिया ।
केहि हेतु होत तकरारा ? एक वारहि बारमवारा, -
सुनि- समुझि के करहु बिचारा,
रहे नाथ पर भरल गगरिया |
मत करहु रीस बहुतेरा, इहाँ बसत बजाज घनेरा,
जब खुली दूकान सबेरा,
एगो कीन द दोसर पाढ़वरिया ।
गीत गावत भिखारी नाई,
दरबार पहुँचली जाई, हउवे कुतुबपुर दियरा नगरिया ।
जहाँ खुदे जसोदा जी माई,
( तवले फेर केहू सुनावत आइल ) पनिघट पर गगरी फोरलन मोर ।
जसोदा के बेटा मोहन मीठ बोलिया,
भइलन नगर में चोर । मोर पनिघट पर
अइसन कइलन केहू ना पतिआई,
हाथ बाँहि झकझोर । मोर पनिघट पर
गगरी फूटल त दोसर किनाई, लागल ईजत के ओर । मोर पनिघट पर
कहत भिखारी सनीचर के दिन होई,
संउसे गाँव के बटोर । मोर पनिघट पर
( सखिन के समिलात बिरहा)
एह अरजी पर मरजी करों बाबू भइया,
बड़े छोटे नीके देखीं एह झगरा के बूझ । नीके देखी एह झगरा के बूझ ब्रजबासी । नाहीं त जाके बसब अजोध्या चाहे कासी । चाहें बसब ठाकुरदुअरा, चाहे बसब झाँसी । हमरा देह से जसोदा के सहात नइखे गाँसी । घरवा छोड़िके बन में चाहे बनि जाइब उदासी । कहे भिखारी चाहे मरब गला में लाके फांसी । बड़े छोटे नीके देखीं एह झगरा के बूझ ।
एगो बूढ़ सखी :
(कवित्त)
अहो पंच परमेश्वर एह पंचाइत के न्याय करों, जानि गइल जगत जे नन्दरानी जी कहावेली ।
मोहन के ओरहन जो देत केहू कवनो बिधि, सुनि के मीठ बोली में अनगावल गीत गावेली ।
अइसन अनरीति कवना मुलुक में चलन बाटे,
बेटा के पछ
कके हमनी के सिखावेली ।
2 समाजी के चौपाई सुनिसुनि ओरहन जसोदा माई । मोहन से बोली रिसिआई ||
कहत भिखारी सबका देखे में चीकन बाड़ी, झगरा करसु ना ई झगरा करावेली । [ बूढ़ सखी ओरहन देके चल जात बाड़ी ]
यशोदा (मोहन से ) हम ना छोड़ब तोहार जान,
मोहन करवलs फजिहतिया ।
आधा जबान केहू कबहूँ ना बोलल, सहत बानीं सखियन के स न । मोहन
राति दिन ओरहन सोगिया लगवनिन के सुनत सुनत बहिर भइल कान । मोहन एगो ना बात मानऽ कतिना सिखाई,
अब ना छूटी तोहार बान । मोहन कहत भिखारी तू सखियन के संग छोड़s मनव में करिलऽ गलान । मोहन
कृष्ण : ( कृष्ण के सफाई )
मइया बतिया हमार सुनऽ साफा । लबजी का बात के तू साँचे पतिअइलू सहजे में हो गइलू खाफा । मइया
लरिका समुझि हमें खूब दिक कइली, सहि गइलीं कइ कइ दाफा । मइया
मुरली माँगत रहीं सारी में हाथ लागल, फारला में का बाटे नाफा ? मइया
कहत भिखारी ई झूठे लगावत बाड़ी,
एके हाली गाफा
के गाफा । मइया'
यशोदा (एगो सखी से) : गुजरिया तू नाहके अपत कइलू हो । फुसुर-फुतुर का का दोनी घरे बतिआ के
हमरा मोहन के बोला ले गइलू हो । गुजरिया.. छोटे बदन में तू मोटे गुमान कइलू हमरा मोहनजी के नांव धइलू हो । गुजरिया कहत भिखारी बिहारी के दोस देके, लबजो कहिया से कुलवंती भइलू हो ? गुजरिया- (ई सुनि के सखी लोग समिलात दुखड़ा सुनावे लागल)
सखी :
(पूर्वी)
हमनी का कहत बानी, सुनs ए जसोदा रानी ! कइलन नगहानी अवहीं खानी हो बिहारी जी । घर में बालक लाल, बाहर में होके माल, गाल से देवाल के उड़ावेलन बिहारी जी । हमनी के कइलन उदवास हो बिहारी जी । ( यशोदा जी कृष्ण के समुझावे लगली ) ।
जइसन बलराम, तइसन घनश्याम, ओइसन नाम ग्राम करिहन बिहारी जी ।
रहता में जनीजात, देखि के करेलन बात मन में ना तनी सरमात हो बिहारी जी ।
गोकुला नगरिया के, नन्द- कचहरिया के बड़का बनइहन पगरिया बिहारी जी । कहत भिखारीदास, कुतुबपुर ह ग्राम खास
यशोदा :
( पूर्वी )
बबुआ सुनहु बात, डगर आवत जात केकरो से बोले के गरज का दुलरुआ ?
ओरहन आइल तोर, दुखित भइल मन मोर काहे भइलऽ अइसन मुँहजोर हो दुलरुआ ?
केहू के तू देलऽ गारी, रोवत घरे अइली नारी
सारी फारि दिहलs गरीब के दुलरुआ !
करि के रगरिया गगरिया केहू - केहू के फोरिकर फेंकलs गेरिया दुबरुआ !
भइल बाड़s बावन बीर, दुअरा पर लागल भीर
काहे जालs जमुना का तीर हो दुबरुआ ? माखन मलाई खाल, बछरू चरावे जा
करे खातिर गिधवामिसान हो दुलरुआ !
छोड़ि द ढिठाई काम कृष्णचन्द्र बलराम करत बा लोग बदनाम हो दुलरुआ !
अबहू से कर ज्ञान, छोड़ि द अइसन बान
नाहीं त छोड़व हम ना जान हो दुलरुआ !
धइले बाड़s नीमन साथ, रसरी में बान्हब हाथ काहे जाल बछ बछर चरावे हो दुलरुआ ?
नोकर बहुत मोरा, कवन फिकिर बाटे तोरा घेरले बा लोग चारू ओर से दुलरुआ !
देखि के लागत बा लाज, रहितन जो घरे आज मालिक होइतन अनराज हो दुलरुआ !
हिरदय बसहु आई, पितु कृष्ण राधे माई कहत भिखारी नाई गाइ के दुलरुआ ! (तब कृष्णो आपन बयान सुनावे लगले)
कृष्ण :
(पूर्वी)
कहत बानी बात खोलि के, सब सखी मिलिजुलि के
पक्षिय भरत महली जमुना में हो मया !
मोरवा मुकुट
हम गइली घाट पर साथ-साथ हलधर
बछरू चराई के पिआवे जल हो मइया !
एक सखी बंसी लेली, हाथ झकझोरि देली
एक सखी छिनली
पीताम्बरी हो मइया !
जनली जे हँसी कइली, राह घके चलि भइली,
आगे जाके मंगलीं पीताम्बरी हो मइया !
केहू बोले लागल सेखी, बालक नादान देखि,
केहू कहे छीनब हम कुछनियाँ हो मइया !
तनी ना चलत सक, होइ गइलीं हम भक
झक झक चारू ओर से घेरली हो मइया !
केहू, बाँचल
रहल सेहू
ढीठे हाथे सिर से उतरली हो मइया !
केहू नासामनी लेहल, केहू-केहू गारी देहल
केहू खोलि लेहल पैजनियाँ हो मइया !
केहू हाथ धइल कसि के, केहू बोलल हँसि हँसि के
उटुकी खुटुकिया चलावल केहू हो मइया !
नाहीं हम जनलीं माई, झगरा दीहें लगाइ
पहुँची दरबार में हो इहे हउवे समाचार, हमरा के बारम्बार थपरी बजा के लजववली हो
मइया !
अब हमरा सूझि गइल, हीत दुसमन भइल
खुलि गइल आँखि के पनियाँ हो मइया !
कहत भिखारी नाई, पनिघट के गीत गाइ
कुतुबपुर दियरा में
घर बा हो मइया !
( यशोदाजी बेटा का कहला में आ गइली आ
लगली सखी लोग के सुनावे )
- कइसे हेराइल बूध, बोलत नइखू बोली सूच नखऊ विचार बड़ छोट के हो गोरिया !
झूठहू के लहरा लगवलू बबुआ नादान बाटे, लगलू कसीदा काटे हो गोरिया !
- झगरे के हऊ मन, कतिना बा तोरा धन हन-हन झन झन छोड़ि द हो गोरिया !
द लगन हमार लखि, जरत-मरत वाडू सखी, अनभल छोड़ि मनावल हो गोरिया !
यशोदा :
(पूर्वी)
सुनिल हमार कहल, मन बा तोहार दहल उमिर मोहन के नादान बा हो गोरिया !
नाहीं त जुलुम होई, राजा जी से कही कोई तब नाहीं बसबू नगर में हो हो गोरिया !
परल बाड़ू हाथवा में, चलऽ हमरा साथवा में
कहब तोहरा भाई -- भउजाई से हो गोरिया ! चल बबुआ दूनों भइया, जहवाँ इनिकर हवहिन मइया नीक पुरवासाठ करिके छोड़ब हम हम हो गोरिया ! मुँहवाँ के राख, लाली, काली कलकत्ता वाली कहत भिखारी नाई गाइ के हो मोरिया !
समाजी :
(चौपाई) जसोदा सखी संग ले जाई साथै कृष्ण जात मुसुकाई जो यह कही सुनी नर-नारी तेहि के पद- मँह परत भिखारी
( ओरहन सुनवला से सखिन के मन नइखे भरत । मोहन के करनी फेरू गवाये लागल )
- करीं हमका जसोदा ! चसकल मोहनवाँ । बरजि रही बरजल ना मानत नित उठि आवे कान्हा हमरा अङनव । गगरी फोरत इनिका संका ना लागत कहेनू जे बढ़ सुधा हउअन जलनवाँ । देखतू तनिक तू ढिठाई बिहारी के कइसे दो त सोझा तोहरा रहेलन भवनवाँ । कहत भिखारी गजब बरिआरी बा कब कब देबे हम आइब आइब ओरहनव । ।
एक सखी :
(गाना)
दोसर सखी :
(गाना) पनिघट पर कइसे केहू जाई । सुनि लेहु, सुनि लेहु, आरे मातावा जसोदाजी हो,
अपना लालन जी के हालत कइलन बरिआई । गरिया से तर कइलन, आरे नकिया के बेसर धइलन देखतू तू त तू ही जइतू सरमाई ।
केहू के कहल ना माने, आरे हमनी के ना त आदमी में जाने देखतानी तोहरो दनाई ! कहत भिखारी, अब ना, आरे बसे दीहें मुरारी केहू के एको ना लउकत बा उपाई ।
तीसर सस्ती :
(गाना) जइसन करत बाइन करनी बिहारी जी नू हो बतिआ कहब निरुबारी । संकर चना के गगरी फोरलन
धइलेलन भर मॅकवारी ।
हाथ गला बीच डारी ।
रगर झगर कइ बाँह ममोरलन फारि देलन तन पर के सारी । लाज के बात बताई हम कइसे असले कहत भिखारी । धइके कसर लेहब सब दिन के, चाहे हमें देबू तू उजारी ।
एह बस्ती में केहू कइसे बसिहन जहवाँ होत बटवारी |
देखि लेलन लगिट उधारी । ई अनरीत सहात नइखे हम से
चउठी सखी :
(गाना)
ए जसोदा मइया, चसकल बा ललना तोहार ।
रोकि के डगरिया मोसे कइलन मसखरिया,
ए जसोदा मइया, जब जाई जमुना किनार ।
रीति अनरीति कइलन, बाँह का घइलन, ए जसोदा मइया, अपने मने हउवन होसियार ।
असल हम हई जनि जनि कम असल, ए जसोदा मइया, टिकल नइखे बेसवा बजार ।
कहत भिखारी कहू मोती लर टूटल, ए जसोदा मइया, लागि जाई कतिना हजार । ।
पांचवीं सखी ।
(गाना)
जमुना में जात रहीं जल भरे हो,
कान्हा हम से कइलन तकरार ।
कुछ दूर डगर में गइलीं हम हो, विचही में मिललन मुरार । बाते - बाते रगर बढ़वलन हो,
गारी हमें दिहलन हजार ।
नीमन काम करत बाड़न बबुआजी हो, कइले जइहs असहीं दुलार ।
बछरू चरावे का बहाना नित हो, लेलन ईजत हमार |
अरज करत बानीं आरे मइया हो, एही में बा मरजी तोहार ।
आपन बिराना मति सोचिह तू हो, पंचित निरधार । - कर 5
कुतुबपुर गइयाँ भिखारी ठाकुर हो, बसल बाड़न गंगा का किनार ।
उहे त ई प्रेम के झगरा गवलन हो,
गाइ - गाइ कइलन बहार ।