दोहा
सीता राम
सुरसती सदभाव भरीं, मंगल करीं गणेश । गौरी शंकर सुरुजदेव, रक्षा करीं भवेश ॥१॥
सोता राम
दोहा
गोता राम
सोता राम
गुरुदेवन के देव कपि, महाबीर हनुमान । लिखत बानीं राउर गाथा, मंगलदायक मान ॥२॥
सीता राम
दोहा
सीता राम
दाता रिद्धि-सिद्धि के, अतुलित बल के धाम । कृपाकोर से करीं पूरन, भूषण के सब काम ॥३॥
साता गम साता राम सीता राम सीता राम
सीता राम सीता राम
मुक्त-छंद
जय-जय श्री हनुमंत के । जय अतुलित बलवंत के ।।
सेवक सीताराम के । स्वामी साधु संत के ॥
पूत अंजनि माई के । लाल केसरी कपिराई के ।।
सेवक सीताराम के । अंश पवन सुखदाई के ।।
सचिव रउरा सुग्रीव के । रक्षक जग का जीव के ।।
सेवक सीताराम के । अवतार भगवान शिव के ।।
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के । लेनी अवतार विहँसिंके ।।
सेवक सीताराम के । सूर्य के लिलनीं ग्रसिके ।।
इन्द्र कइलन वज्र प्रहार । मूर्च्छित होके गिरनीं पछाड़ ।।
सेवक सीताराम के । लीला कइनीं अति विस्तार ।।
पवन देव का कोप भइल । हाहाकार सगरे मच गइल ।।
सेवक सीताराम के । रउरा वर सबकर मिल गइल ।।
सूर्यदेव के गुरू मान के। सकल शास्त्र का सीखनीं ज्ञान के ।।
सेवक सीताराम के। आगे-आगे चलनीं विमान के ।।।
जामवंत के वचन मान के। सूतल शक्ति के अपना जान के ।।
सेवक सीताराम के । लंका गइनीं सिंधु फान के ।।
गिरि मैनाक के दिहनीं मान । तब आगे कइनीं पयान ।।
सेवक सीताराम के । सुरसा से पवनीं वरदान ।।
सिंहिका के दिहनी मार। तब कइनीं सिंधु के पार ।।
सेवक सीताराम के । लंका के देखनीं विस्तार
।।
लंकिनी पर कइनी चोट । रूप के अपना कइनीं छोट ।।
सेवक सीताराम के। लेनीं विभीषण संत के ओट ।।
उनकर जुगति सुंदर पाके। सीताजी से मिलनीं जाके ।।
सेवक सीताराम के । मुंदरी दे हरसवनीं माँ के ।।
अजर-अमर वर माँ से मिलल । हर्ष में राउर रोम-रोम खिलल ।।
सेवक सीताराम के । भट के मरनीं गिनल-गिनल ।।
अक्षय के कइनीं संहार । लंका मचल हाहाकार ।।
सेवक सीताराम के । जुद्ध मचवनीं धुँआधार ।।
मेघनाद जब भइल लाचार । ब्रह्मवाण से कइलस वार ।।
सेवक सीताराम के । नाग बंध गइनीं दरबार ।।
रावण से कहनीं फरियाय । वापस कर द सीता माय ।।
सेवक सीताराम के । पूँछी आग लेनीं लगवाय ।।
उलट-पलट के जरनीं लंका। देखते रहले रावण बंका ।।
सेवक सीताराम के । विजय के घोर बजवनीं डंका ।।
चूड़ामणि माता से मंगनी । तुरते रामजी आएब कहनी ।।
सेवक सीताराम के । अइनीं जहवाँ राम जी रहनीं ।।
माँ के खबर सुनवनी टेर । रामजी कइनीं तनि ना देर ।।
सेवक सीताराम के । देनीं तब लंका के घेर ।।
लछुमन जी का शक्ति लागल । रामजी रोके भइनीं पागल ।।
सेवक सीताराम के । बुटी लेके अइनीं भागल ।।
लछुमन जी के मूर्च्छा छूटल। रामादल रावण पर टूटल ।।
सेवक सीताराम के । महाकाल बन गइनीं भूखल ।।
रावण के दिहनीं मुक्का मार । मूर्च्छित होके गिरल पछाड़ ।।
सेवक सीताराम के । दानव-दल कइनीं संहार ।।
रामजी ललित लीला कइनी। नाग बंध खुदे बंध गइनी ।।
सेवक सीताराम के । गरूड़देव के लेके अइनीं ।।
नाग पाश देनी कटवाय । रामजी उठनीं तब हर्षाय ।।
सेवक सीताराम के । रावण के अंत देनीं करवाय ।।
रोवत रहली सीता माय । देवी देवता होखीं सहाय ।।
सेवक सीताराम के । विजय के खबर सुनवनीं जाय ।।
तुरते वेश ब्राह्मण के धइनीं। मन का वेगे अवधपुर गइनी ।।
सेवक सीताराम के । भरत लाल के रक्षा कइनीं ।।
रामराज अस्थापित भइल । बानर भालू अपने घर गइल ।।
सेवक सीताराम के । राउर वास अवध में भइल ।।
रामजी लीला पूरा कइनीं । प्रजा संग साकेत गइनीं ।।
सेवक सीताराम के । धरती पर रउरा रह गइनीं ।।
भूतल के रउरे पर भार । भगन के रउरे रखवार ।।
सेवक सीताराम के । घोर संकट से करीं उबार ।।
चारो जुग परताप बा राउर । रउरा लेखा केहू ना आउर ।।
सेवक सीताराम के । बेसी हम कहीं का आउर ।।
लाल देह बा लाल लंगूर । बल विद्या में बानी पूर ।।
सेवक सीताराम के । होखब मत भगतन से दूर ।।
संकट जब भगतन पर पड़े। रउरा रहब उहवाँ खड़े ।।
सेवक सीताराम के । भूत प्रेत ना अइहें डरे ।।
संकट में बा पड़ल भारत । रउरा के बा दीन पुकारत ।।
सेवक सीताराम के । रउरा देर ना लागी टारत ।।
होखे हम से पाप ना । मिले कहीं अभिशाप ना ।।
सेवक सीताराम के । आवे देब त्रिताप ना ।।
होखे केहू से बैर ना । लागे केहू गैर ना ।।
सेवक सीताराम के । बिछले देहब पैर ना ।।
दुख से लड़े के शक्ति देब । रामचरण अनुरक्ति देब ।।
सेवक सीताराम के । हमके अविरल भक्ति देब ।।
रोज-रोज सत्संग देब । दुर्जन से असंग देब ।।
सेवक सीताराम के । काव्यकला के ढंग देब ।।
बिगड़ल बात सुधार देब । आपन दया उधार देब । सेवक सीताराम के । भव समुद्र से तार देब ।।
विषयन में विकर्षण देब । सद ग्रंथन में आकर्षण देब ।। सेवक सीताराम के । हमके आपन दर्शन देब ।।
चरण कमल में सिर झुका के। कहत बानीं बात फरिया के ।।
भूषण के गुरू हनुमान जी। विनती राम से कहब सुना के ।।
दोहा
भूषण रचले राउर गाथा, मंगलदायक मान । पाठ करी जे प्रेम से, ओकर होई कल्याण ॥४॥
दोहा
भूषण के मन देब नित, रामचरण अनुराग । जनम जनम तक छूटे ना, राम प्रेम से लाग ॥५॥
ॐॐॐ