बाबू जी (स्व० फुलेना सिंह) का कीर्तन भजन के छाप हमरा बालक-मन पर खूब पड़ल। लड़िकाइएँ से कविता, गीत-गवनई आ कथा-कहानी में मन रमे लागल। विद्यालय में सांस्कृतिक कार्यक्रम होखे त, खुलके भाग लीं। विद्यार्थिये जीवन से कुछ-कुछ लिखके दोस्तन के सुनाई । आगे चलके केतना कविता लिखाइल, बाकिर संग्रह ना हो सकल । कोरोना काल में बइठल-बइठल कुछ कविता लिखनीं । एक दिन भोजपुरी के सजग सेवक भाई जौहर शफियाबादी से बात भइल । उहाँका कहनीं कि हिन्दी के भण्डार भरल बा। भोजपुरी भाषा में रचना होखो । सलाह नीक लागल। लिखे के काम जारी रहल । देखते-देखते सैकड़न भजन लिखा गइल। एक दिन जौहर जी डायरी देखलन । कहलन कि अविलम्ब छपवावे के काम होखो ।
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