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माताचन्द सिह

13 December 2023

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आप 'सहजौली' (शाहपुरपड़ी, शादाबाद) ग्राम के निवासी हैं। आपकी कई गीत पुस्तके प्रराशिन है

पूर्वी

गलिया-के-गलियारामा फिरे रंग-रसिया, हो संवरियो लाल कवन धनि गोदाना गोदाय हो संवरियो लाल ।। अपनी मह‌लिया भीमरा बोले रानी राधिका, हम् धनि गोदाना गोदाय, दतिया पर गोद मोरा कृष्ण हो बिहारी, नकिया" पर गिरिधर गोपाल, हथवा में गोद रामा मुरली मनोहर लीलरा १३ पर श्री नन्दलाल, हो संवरियो लाल हो सवरियो लाल ॥ हो संवरियो लाल हो संवरियो लाल ।। हो संवरियो लाल हो संवरियो लाल ॥ 'मोतीचन्द' कर जोरि करत मिनतियाउ, हो संवरियो लाल दरस नन्दलाल, हो संवरियो लाल ।।

श्यामविहारी तिवारी 'देहाती'

'आप 'बेमबरिया' (बेतिया, चम्पारन) ग्राम के रहनेवाले थे। आप हास्य-रस की कविताओं के लिए विख्यात थे। गम्भीर विषयों पर भी व्यापने अच्छी रचनाएँ को हैं। आपकी देहातो दुन्नी' नाम की पुस्तिका भी प्रकाशित हो चुकी है। सामयिक, राजनोतिक तथा सामाजिक विषयों पर आपकी व्यंग्यात्मक सुतियाँ अन्डी है आप दोहा छन्द में भी बहुत अच्छी भोजपुरी कविता करते थे।

सीखड

पुरुखन के भुला गइलड़, दिलेरी कहाँ से आयो ? घोडा नः दुरिये गहल, गदहो के सवारी सीखऽ ॥ केह-केह अध्यन बा, जैकरा धन-काबू अधिका बा दन बहाने के हो त बड़े के अटारी सीखः ॥ एन-धोने जय मऽ पद जबड फेरे में घर में इके के बा तः चीन्हे के दुआरी सीखः ॥

बबुआ 'पटना' से अहले, 'तुम-ताम" में हो गइल मार हम त कहते रहनी कि बने के जवारी २ बी० ए० त पास कइलऽ खेत बिका पहिलीं कहनीं कि गरे के किश्रारी नोकरियो त नइखे मीलत, बोलऽ का करबड? पाने बेंचड, काटे के सुपारी ना माले त सीख ॥ नोकरी सीखः ॥ करवड, घरे रहऽ डोरी के दाग पर चलावे के आरी आपन काम छोड़ के, खोजडता लोग तिलाक 'इड तोहरो, आने में लोहारी नया बिआह भइल सासुए महतारी भइली १० । गारी सुने के होखे तऽ रहे के ससुरारी सीख ॥ ना कुछु होई तड नाच देखे के मिली तर न् । ऐकार काहे के रहयड चलऽ कॅहारी १३ सीखः ।। अब लोग काहे ना पूड़ी? तोप के डर गइल सब अट्य४ छिपाने के होखे तऽ बनेके खदरधारी सीखः ।। तू केहु के के हडबड१७ जे केहू पूछो ? नोकरी के मन बा तऽ जोरे के नातादारों सोत्रः ।॥

लक्ष्मण शुक्ल 'मादक'

आपका जन्मस्थान नगया (सराव, देवरिया) झाम है। हिन्दी में भी आपने रचनाएँ की है। आपकी भोजपुरी रचनाएँ सरम होती हैं। निवान (सारन) के भोजपुरी-साहित्य सम्मेलन (सन् १६४६ ई०) में आपने मेरी भेंट हुई थी। वहीं पर आपने निम्नलिखिन रचना तत्काल रच कर मुने दी श्री-

आपन दसा

आपन हलिया सुनाई कुअर जी, केकरा से करी हम बयान । अरथ-पिसचवा के पलवा में परिके मन मोर भइले मसान ॥ घरवा से चलली त तिरिया २२ फुलइली २३, जात बाड़े सड्यों२४ सिवान। कुछ धन पइहें विदड्या में सइयों त फगुआ के होइहें ठिकान ॥ दूनों बिटियवन ३ के लुगवा २७ फटल बा २८, त हमरो उघरि गइली लाज । तेलवा-फुलेलवा के कवनऽ चलाये ३०, रहले न घरवा अनाज ॥ छन्हिया ३१ के घरवा के खर-पात उहले त खंडहर वा भितिया ३२ हमार । सोबिया ३३ से दिनवों दुलग्ह ३४ होइ गहले, त रतिया भइल बा पहार ।। 

कवनो उपड्या जो करतीं कुँअर जी, पवतों जो रुपया पचास । विहसत घरवा में हमहूँ पइरुती होरिया के लिहले हुलास ॥

चाँदीलाल सिंह

आप सोहरा (शाहाबाद) ग्राम के निवासी हैं। आपकी भोजपुरी कविताओं में भजन के साथ सामयिक भावों का भी समावेश है। आपकी भोजपुरी रचनाओं का संग्रह 'चांदी का जवानी' नाम से दूधनाथ प्रेस, मतकिया, हवा (कलकत्ता) में प्रकाशित है।

भजन

पिचड राम नाम-रस घोरी रे मन इहे अरज बा मोरी ॥ कोदी-कौड़ी माल बटोरल, कइलऽ लाख करोरी । दया-सभ्य हृदय में नहखे, चीकन देह नेह ना हरि से, बाँका तन लंका अस अरिहन समरथ बीत गइल चंघापन, लागी लालच वश में एक ना कहलऽ देह बहुत बढ़वलऽ घरके स्त्रीलत, कण्ठा अबसे चेत, कोलन १२ 'चानी' रघुवर सरन गहो री ॥ रे मन० ॥ गला कटाइल तोरी ॥ रे मन० ॥ भाई-बाप से चोरी । कुत्ता मांस नचोरी ॥ रे मन० ॥ तीरथ में डोरी। भइल कमजोरी ॥ रे मन० ॥ अवरी मनोरी"

ठाकुर विश्राम सिंह

आपका जन्म उत्तर-प्रदेश के आजमगढ़ नगर से पाँच मील की दूरी पर स्थित 'सियारामपुर ग्राम में हुया था। सन् १८४७ ई० में यापका देहावसान हुआ। अपनी पत्नी के देहान्त के बाद आप विक्षित हो गये थे और उमी अवस्था में आपने प्रचलित बिरहा इन्द्र में विरह गीत बनाये । भ्राजमगढ़ के ठाकुर मुखराम सिंह आपके रचे 'बिरहों' को अच्छे ढंग से गाते हैं। ठाकुर मुखराम सिंह कवि सम्मेलनों में जय आपके बिरदों को गाकर सुनाते हैं, तब जनता मुग्ध हो जाती है। आपकी कविताओं को उक्त ठाकुर साहब से सुनकर श्री बलदेव उपाध्याय (प्रो० काशी-विश्य-विद्यालय) ने सिवान (सारन) के अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन में सभापति के पद से कहा था "बिरह की ऐनी कविताएँ मुझे संस्कृत साहित्य में भी नहीं मिली"। आपको भाषा विशुद्ध पश्विमो भोजपुरी है।

(1)

नदिया किनारे एक डे चिना भुले, १३ लुतिया उदि-उबि गगनवा में जाय। जकि-लहकि चिता लकड़ी जलायें, धधकि-धधकि नदी के सनवा १५ दिखावै । आइ के बतास अगियन के लहरावं, १७ नदिया के पानी आपन देहिया हिलायें। चटकि-चटकि के चिना में जरत या सरिरिया ८ नाहीं ज्ञानी पुरुष जरे या कि जरे तिरिया" ।। चितया त बइटल एक मनई दुखारी अपने अरमनवन २१ के डारत बाटें जारी २२ । कड़े 'बिसराम' लम्पिके चितवन २३ के काम मोर मनया ई हो जाता बेकाम । अइसने चिता हो एक दिन हमई २४ जरवली वही सग फूं कि दिहली आापन अरमान ।। 

(२)

आायत बाय दिवाली जग में फइलल उजियाली, मोरे मनवा में छवले या अन्हार । जुगुर-जुगुर* दिया" बरै होति बाय अन्हरिया, में तो बइठल बाटीं अपनी सूनी रे कोनरिया" ।। अचरा के तरे लेहके फूल के थरियवा गेंड्याँ १० के नारी बारै चलति बाटी दियवा। चारो ओर दियवन के बाती लहराती, मोरे घर में पीटति बाय अन्हरिया अन्यो १२ छाती । गाँव के जवान ले मिठाई आये घर में, देखि आपन तिरिया त हसत बाटे मन में। कहे 'बिसराम' इसके दाना हो हराम, लखि के कृदति भीतरों बा जी १४ हमार । सबक त घरनी घर में दियबा जलायें, मोर रानी बिना मोर घर हो अन्हार ।।

(३)

अइले बसन्त महकि १५ फइललि" बाय दिगन्त भइया धीरे धीरे बहेलो बयारि । फूलैलें गुलाब फुलै उजरी बेलिया अमों के दरियन पर बोलेली कोइलिया । बोलेंले पपीहा मदमस्त आपन बोलिया, महकि लुटायें आप ले बडरे १९ के कोलिया ३० । उदि-उदि भवस्वाँ कलियन पै मंदराले हउवा के संग मिलि के पात लहराले २२ । बदि के लतवा ३३ पेड़वन से लपटानी २४ उड़ि-उड़ि के खंजन अपने देसवा के जाली। कहै 'बिसराम' कुदरत २५ भइद्दिल शोभाधाम चिरई २६ गावत बाटी नदिया के तीर । चलि-चलि बतास उनके २७ यदिया २० जगावे, मोरे मनवों में उरुति बाटी पीर ॥

(४)

आइ गइले जेठ के महिनवाँ ए, भइया, लुहिया २९ त अब घलेले झकझोर । तपत बार्ट सुरज, नाचति ३० बाय दुपहरिया, श्रगिया उदावै चलि चलि पछुआ-बयरिया 3"। उसरन ३२ में बाद अब बबंडल घुमरावत ३४ देखि के दुपहस्यिा पंछी नाउनि ३५ बाटी गावत । सुखि गइली ताल-तलई नदिया सिकुडली, हरियर उसरीही घास दरिय भुकुवली ३८ पेड़वन के छाँह चउवा ३९ करेले पगुरिया ४० गावे चरवहवा फेरि फेरि अपनी मउरिया ४३। अइसने समय में' स्त्ररवुज्जा हरिअइले, अउरी ४३ हरा भइल बाय बोरो धान ४४। हमरे दुसमन बनके मन हरिभइले, हमरा सुखि गइले हे गरब-गियान५ ।।

बाबा रामचन्द्र गोस्वामी

आप शाहाबाद जिले के निवासी थे। आपके शिष्य बाबा रघुनन्दन गोस्वामी बलिगांव (डा० आयर, थाना जगदीशपुर) के निवासी थे। रघुनन्दन गोस्वामी के भिखारी गोस्वामी भी उक्त जिले के 'रघुनाथपुर' (थाना ब्रह्मपुर) के निवासी थे। भोजपुरी में कविता करते थे। इन तीनों का समय ईसा के १८वीं सदी के मध्य से उक्त जिले के शिष्य बाबा ये तीनों ही २०वीं सदी के प्रथम चरण तक है। इन तीनों के परिचय और रचनाएँ 'मेला घुमना' नामक पुस्तिका में मिली है।

(4)

बधैया

भूव द्वारे बाजत बधाई रे, हाँ में बधाई रे, भये चार ललनवाँ ।। टेक ॥ राजाजी लुटावे हाँ अन धन सोनवाँ, हाँ अन धन सोनवों, कोसिला लुटाचे चेनु गाई ॥ भये चार० ॥ झाँझ मृदंग हों दुन्दभी बाजे, हाँ दुन्दभी बाजे, ढोल संत्र सहनाई ॥ भये चार० ॥ सब सखि हिल-मिल मंगल गावे, हाँ मंगल गावे नयन जल भरी आई रे ॥ भये चार० ।। 'रामचन्द्र' हाँ जलन छबि निस्खे, हों ललन छबि निरखे, जुग जुग जियें चारो भाई ॥ भये चार० ।।

--( रामचन्द्र गोस्वामी)

(२)

प्रथम पिता परमेसर का ध्यान धरि, लिखतानी सुनु चित लाय मेलाघुमना। श्रावेला सिराती मेला, बदरी, मकर श्रादि करे लागे आगे से तैयारी मेलाघुमना ॥ मेलवा में जाये खातिर दूसरा से ऋण लेले बाहर जैसे चलेले नवाव मेलाघुमना। अधी, मखमल के तो फोट वो कमोज पहने, राह में चलले अठिलात मेलाघुमना ॥ जाइ के दूकान पर पैसा के पान लेले, पैसा के थोड़ी ह तऽ लेलऽ मेला घुमना। बीड़िया धराई जैसे मुँ हवों में लूका लाई, इंजन के चु अवाँ उड़ाने मेल घुमना ॥ चार जाना आगे भइले, चार जाना पीछे भइले, मेलबा में करे गुण्डबाजी मेलाघुमना । लाजी नाहीं लागे तोरा देसवा के चाल देखि, देसवा में भइले बदनाम मेला घुमना ।। जइसन इजत तोरा घरवा के बादी सब, बोइसन इजत संसार मेलाघुमना । जइसन हाल होला धोबिया के कुकुरा के नाहीं घर-घाट के ठिकान मेला घुमना ॥ अइसने हाल होइ जाइ जब तोहर तब, तुहू रोइ करवड खयाल मेला घुमना । बार-बार वरजत बादन 'रघुनन्दन स्वामी,' उन्हकर घर बलिगॉव मेला घुमना ।।

सूनल रहली हम संया मुत्र-पंजिया १२ जब-जब मन परे १४ मैना में नीर येटी अनबोलना के मेसिया जराई से, सपना देखलि करे, थर-थर काँपेला कोई, बालू, ऐसन मुहर अजगुत ३ रे नयकवा । करेज रे नयकवा । गिनाने रे नयकवा । 

मुँहवाँ में दाँत नाहीं, बरवा पकल बाटे, बुदड के मउरि पेन्हावे रे नयकवा । महल में बेटी रोवे, बेटा बोबसारी रोवे, बाप मुँह करित्रा लगावे रे नयकवा बेटी से कमाइ धन, पंच के खिलावे ऊरे, गुप्त पाप दुनिया सतावे रे नयकवा । पंच पर गाढ़ परल, चुदवा तरसि मरल, नहके में इजत गँवावे रे नयकवा। चारों ओर देख के चण्डाल के चौकबि तऽ, मोरा पेट पनियाँ ना पचे रे नयकत्रा । ऐसन कुरीति के विवेक से सुधार ना तड, भरल सभा में जात जाई रे नयकवा। - (बाबा भिखारी गोस्वामी)

महेश्वरप्रसाद

आप भरीती (शाहपुरपट्टी, शाहाबाद) श्राम के निवासी हैं। भोजपुरी कवियों पर आपने समालोचनात्मक लेख लिखे हैं। आपके कई लेख 'भिखारी ठाकुर पर छप चुक है। आपकी भोजपुरी-कविताओं का संग्रह 'तिरंगा' नाम से प्रकाशित है।

झाँकी

हो अन्हद अइले ना खाली पानी के संग संगे पथल अकेला, के डेला । सरग के बीच-बीचे लाल-पीयर बदरी के बदरी के नीचे नीचे बिजली भइल के खेला ॥ हो अन्हद० ।। इवाहेला २ । बोरो १३ बरेला ४ ।। हो अन्हद ।। सरग में रंग-रंग के लागत दिन भर ले रात नाहीं लड़के या मेला । उजेला ।। हो अन्हद० ।।

रघुनन्दनप्रसाद शुक्ल 'अटल'

आप बनारस के रहनेवाले हैं। आपका उपनाम 'अटल' है। आप हिन्दी और भोजपुरी दोनों में रचना करते हैं। आपकी एक रचना 'कजलो-कौमुदी में प्राप्त हुई है-

कजली

अप्रेला पाई ।। हिल मा पाई। मोटाई २४ ना ।। जिउजारत । के मारत ॥ सावन अरर मचउलेस १९ सोर २० बदरिया क्रूमके आाई ना । सइयों के कुल मरल ३१ कमाई, भपल २३ मोहाल फिकिर परल घोदवा का खाई, परि जाई तो मुनिसपिलटी के मेम्बरन के चढ़ल कल तक रहने र सुराज वचारत, अय कुर्सी पउले बद-बद नया कानून उचारन, हम गरीव दुखियन देखड हो, कानून तोरव, गयल अकित बौराई ना ॥

कमलाप्रसाद मिश्र 'विप्र'

श्री कमलाप्रसाद मिश्र 'विप्र' जी का जन्म स्थान सोनबरसा (बक्सर, शाहाबाद) ग्राम है। चित्र जी मनस्त्री और निभांक रचना करनेवाले याशु कवि है। आपने काशी में अन्ययन किया था। 

आप हिन्दी के भी कवि और संस्कृत के विद्वान् हैं। आपको भोजपुरी-कविताएँ भाषा, भाव, बगान शैली, कल्पना, व्यंग्य आदि की दृष्टि से बहुत अन्छो बन पदी है।

(1)

पन्द्रह अगस्त

बरवाद भइल जव लाखनि घर, तथन। २ पर ई दिन आइल बा । पन्द्रह अगस्त का अवसर पर घर घर मंडा फहराइल था ।।

3 X X लाहीर बेचालीस संतावन, आजाद हिन्द के प्राण हरण । ७ अमर सहानि का बल पर हूँ स्वतन्त्रता लहराइल बा ।।

X चटगाँव केस, चौरा-चोरी, काकोरी जलियाँ, बारदोली-

एह सभ बलिदान का लाल खून से ई सुराज रेंगाइल था ।। X जेल-डामिल 3, जबती १४, बॅत, बृट १५, फाँसी, गोली, अपमान, लूट । चिपलब से और अहिंसा से, ' ' के बाम्ह लोलाइल बा ।।

माता (२)

रेट

दादा ! आइल नहरिया के रेट २० जेट-अमाद बीच आइल अदरा २१ बरिसल मेध गरजि पनबदरा २२ । खेतवा में डलली २०धुर-पात खदस २४ दिन भरि अन्न से ना भहल भेंट, २५ ।।

दादा आइल नहरिया के रेट ॥

रोपनी२ बाद जब चटकल बरखा २८, भइल चोस्त्र तब नहर के चरखा २५ । बन्दकी३० घइली धोतिया-अगरखा ३१, चटकि गइल मोर चेट ३३ ।।

दादा आइल नहरिया के रेट ।। मुश्रबधान नत्र पाटलिकिरी, तावनो पर लागलि हा चोरकारी ३७ । वेनिया मरइलो ३८, इजतिया भारी ३५, खेदले ४० फिरत बाटे सेठ ॥

दादा आाइल नहरिया के रेट ॥ हाकिम चाहन या चाउर धनवाँ, अन ४२ बिनु एने४३ नाचत परनवाँ। हकडे करज पोत४० परोजनों४८, पिठिया में सटि गइल पेट ।। दादा आइल नहरिया के रेट ।। 

रामेश्वर सिंह काश्यप

आपका जन्म सन् १८१६ ई० में, १६ अगस्त को, सासाराम के नजदीक 'नेमरा' (शाहाबाद) ग्राम में हुआ था। अपने मैट्रिक की परीक्षा सन् १६४४ ई० में, मुंगेर जिला-स्कूल से पास की थी। सन् १६४ ई० में पटना विश्वविद्यालय ने बी० ए० तथा सन् १६५० में एम० ए० पास किया। इन नीनां परीक्षाओं में आपने प्रथम श्रेणी प्राप्त की थी।

यापका साहित्यिक जीवन सन् १६४२ ई० से आरम्भ हुआ था। आपको प्रथम हिन्दी-रचना हिन्दी मासिक 'किशोर' (पटना) में सन् १६८० ई० में हो छपी थी। सन् १८४३ ई० से आपने साहित्य-चं न में प्रसिद्धि प्राप्त कर लो और आपकी कविताएँ तथा अन्य रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं में लगातार छपने लगीं। आप एक विख्यात नाटककार भी है। श्रापका लिखा भोजपुरी-भाषा का नाटक 'लोड़ा मित्र' प्रकाशित हो चुका है और जिसको प्रसिद्धि आकाशवाणी के द्वारा देश-व्यापी हुई है। आपका हिन्दी में लिखा किशोरोपयोगी उपन्यास 'स्वर्णरेखा,' हिन्दुस्तानी प्रेस, पटना से प्रकाशित हुआ है। आप हिन्दी के भी य-ले नाटककार तथा अभिनेता हैं। आपके लिखे हिन्दी- नाटकी में ये मुख्य हैं-बलियाँ जला दो. बुलबुले, पंबर, आखिरी रात और रोबट । इनमें कई श्राकाशवाणी द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर अभिनोत एवं पुरस्कृत हो चुके हैं। इन नाटकों की

विशेषता यह है कि ये रंगमंच के पूर्ण उपयुक्त है। आप अखिलभारतीय भोजपुरी कवि सम्मेलन सिवान (सारन) के सभापति भो हुए थे। आपकी लिखी भोजपुरी कविताएँ बढ़ो प्रसिद्ध हैं। भोजपुरी में मुक्त छन्द का प्रयोग जिस सफलता से आपने किया है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। भोजपुरी में कविताओं के अलावा आप ने निब्ध, कहानी, उपन्यास आदि भी लिखे हैं। आजकल आप बी० एन्० कॉलेज (पटना) में हिन्दी के प्राध्यापक हैं।

भोर

(1)

गोरकी बिटियबारे टिकुली लगा के पुरुब किनारे तलैया नहा चितवन से अपना जादू चला के ललकी चुनरिया के अचरा उड़ा के तनिका जत्रा, तब बिहस, खिलखिला के के

नूपुर बजावत किरिनियों के निकलल, अपना अटारी के खोललस" खिरिकिया", फैलल फजिर १३ के

(२)

करियक्की १४ बुढ़िया के डेंटलस १५, चिरवलस बुदिया के मोटरी

सहम

उटवलस७ 

तारा के गहना समेटलम बेचारी चिमगादुर ३, उरुआ³, अन्हरिया के संगे भागल ऊ स्वदहर के ओर ।

(३)

अस उतपाती हूं बंचल बिटियवा १० भारी कुलच्छन सइल ई चियवा १२ आफत के पुड़िया, बहंगवा के टाटी १४ मारे सड़क के हो गइल ई माटी विरइन के खोता में जा के उबवलस सुतल ३० मुरुगवन २१ के कसके २२ डेरवलस २३ कुकर के बद्दलन बेचारे चिहा २४ के, पराह। २५ तुड़वलन २५ सुन के, डेरा के२७-

ललकी गुलाबी बदरियन २८ के भगले असमनवों के बदर ११ ओर ।

()

सूतन कमल के लागल जगावे भेवरा के दल के रिझावे, चंपा चमेली के बोलावे घूंघट हटा बे पतइन ३२, फुनुगियन 33 के सुलुआ ३४ मुलावे तलैया के दरपन में निरखेले मुखदा बानी ३९ हम गोং ৩৬। कि केतना ३५ (4)

सीनल पवन के कस के सम्बेदलस ३८ झाड़ी में, सुरमुट में, सगरो ३९ बेचारी सरसों टूचल सपनवा चहेटलस ४० जवानी में मातल में रतिया के थाकल ओकर पियरकी ४२ चुनरिया ऊ चिंचलस ४३

बरजोरी लागल बहुत गुदगुदावे, सरसों बेचारी के अखिया से दरकल४५ ओसवन ४६ के, मोती के लोर ४७ । 

(4)

परबत के चोटी के सोना बनवलस समुन्दर के इल्फा पर गोटा चढ़वलस बगियन-बगड्चन में हल्ला मचवलस गर्वेई, नगरिया के निंदिया नसवलस फिरिनियों के डोरा के बीनल चैचरया, फूले लागल (0) ओर ।

छप्पर पर आइल, ओसारा में चमकन चुपके से गोरी तब अंगना में उत्तरल लागल स्त्रिरिकियन से हंस हंस के झोंके जह वा ना ताके १२ के, ओहिजो १२ ई ताके में सूतल बटुरिया चिहुँ क के कोहबर लाजे अपना हंगोरा १४ भइल, फिर चुपके सजनवाँ से बहियों छोड़ा के ससुआ ननदिया के अखिया बधा के कमरिया पर घर के ऊ भागल जल्दी से पनघट के ओर ।

२६ र

रामनाथ पाठक 'प्रणयी'

आपका जन्म शाहाबाद जिले के 'धनलूहाँ' ग्राम में सन् १६२१ ई० में हुआ था। आप संस्कृत- भाषा के साहित्याचार्य और ब्याकरणाचार्य को परीक्षा में उत्तीर्ण हो चुके है। आप सन् १८३३ ई० से हो भोजपुरी में रचनाएँ करते हैं। आप काशी से निकलनेवाली 'भारत-श्री' और 'भारा' से प्रकाशित होनेवाली 'ग्राम पंचायत-पत्रिका' के सम्पादक भी रह चुके हैं। आप संस्कृत और हिन्दी के भी अन्छे गया-पय-लेखक के रूप में प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त आपको भोजपुरी भाषा को कविता- पुस्तकें भी संग्रह के रूप में प्रकाशित हैं, जिनमें 'कोइलिया,' 'सितार', 'पुरइन के फूल' आदि हैं। आजकल आप एक सरकारी बुनियादी शिक्षण संस्था में अध्यापक है।

पूस

जाड़ा-पाला के मुसुकात पहरा आइल पूस महोना, अगहन लवटि गइल चर-धर काँपत हाथ पैर निकल चलन पर से बनिहारिन ले हंसुधा भिनसहरा १८ घरत धान के थान १५ अंगुरिया ठिठुरि-ठिठुरि बल खात आइल पूस महीना, अगहन लवधि गइल मुस्कात दोवत बोझा हिलत बाल के बाज रहल पंजनियाँ खेतन के लड़िमी खेतन से उठि चलली वरिहनियाँ 

पड़ल पधारी पर लुगरी में तरिका आइल पूस महीना, अगहन लवटि राह-बार में निहुरि निहुरि नित हाय ! पेट के आग चुरा ले भागल सुख के निनियाँ पदाक गिरत उड़ियात फूस दिन हिम-पहाव आइल पूस महीना, अगहन लवटि गइल मुसकात सहस उठल जब गहम-बूट रे, लहसत १२ मटर-मसुरिया 'उ बाज रहल तीसी-तोरी पर छवि के मीठ बंसुरिया पहिरि खेसारी के सारी १४ साँवर गोरिया अॅडिलात १५ आाइल पूस महीना, अगहन लबटि गइल मुसुकार

चैत

थाइत चैत महीना, फागुन गह-गह रात भइल कुछ रहके रंग उड़ा के भागल१६ रह-रह उगल अजोरिया १८, के भागल बगिया २५, कुनुगिया, सुन-सुन के गुनगुन भँवरा के मातल साँवर गोरिया, कसमस चोली कसल, चुनरिया राँगल, झमकल छागल २० आइल चैत महोना, फागुन रंग उदा खिलल रात के रानी चेलो, चम्पा, बिहसल भरल फूल से मूल रहल महुआ के लाल भिनसहरा के पहरा पी-पी रटे पपिहरा आइल चैत महीना, फागुन रंग उड़ा के घर के भीतर चिता सेज के सजा रहल आँगन में गिर परल २२ पियामे २३ श्रान्हर ३४ भद्दल हरिनियाँ, पादुचा ३५ के ललकार पिहली २५ बसवारी में लागल भागल बिरहिनियाँ, जागल आइल चैत महोना, फागुन रंग उड़ा के भागल सिडर-सिहर रोओं २८ रह जाता हहर-हहर के हियरा, हाय! लहर पर लहर उठत बा जरल जवानी-दियरा २५, गली-गली में बैत। ३० लोग भइल बा पागल रंग उदा के भागन गावत आइल चैत महाना, फागुन

मुरलीधर श्रीवास्तव 'शेखर'

आप चौसा (शाहाबाद) के निवासी है। श्राजकल छपरा के राजेन्द्र कालेज में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष है। आपक्का उपनाम 'शेखर' है। आप हिन्दी के भी कवि, निबन्धकार, आलोचक तथा वफा है। हिन्दी में आपको कई अन्ड़ी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। आपकी भोजपुरी कविताओं की भाषा

पूर्ण परिष्कृत है। 

(1)

भोर के पेरा । छिटकलि किरन, फटल पौ नभ पर खिलति अरुह्न के लाली, खेलत चपल सरस सतद्दल पर अलिदल छटा निराली । दिलर के छोर डुवेला कंचन, किरन बाद मधु-धारा, रोम-रोम तन पुलक भइल रे काँपल लुबि के भारा । नया सिंगार साज सज आइति श्राज उसा सुकुमारी, किरन तार से रचल चित्र या मानो जरो किनारी । भोर बिभोर करत मन श्रानंद गइल थाकि कवि बानी, छबि के जाल मीन मन बाझल भइल उसा रसखानी । तार किरन के के बा" बजावत सुर भर के नभ-बीना, ताल रहे करताल बजावत जल में लहर प्रबोना। उमड़ल कवि के हृदय देखि के सुन्दर सोन सबेरा, भइल गगन से कंचन बरखा ई परभात के बेरा।

(२)

हम नया दुनिया बसाड्य हम नया सुर में नया जुग के नया कुछ गीत गाइब (1)

बद रहल जग प्रगति पथ हम उहे संदेस घर-घर पर गढ़ रहल नव रूप सुन्दर कंठ निज भर के सुनाइब"

(२)

भेद के दीवार तोदय प्रीत के सम्बन्ध जोडब भावना संकीर्ण छोड़व खुद उठय, सत्रके उठाइब

(2)

आज समता भाव जागल अब बिसमता दूर भागल स्नेह ममता नीक लागल हम जगब १२, जगके जगाइय

विश्वनाथ प्रसाद 'शैदा'

श्यापका जन्म-स्थान डुमराँव (शाहाबाद) है। आपको बचपन से ही लोगों ने 'शैदा' कहना शुरू

किया। १५ वर्ष की अवस्था में ऐण्ट्र स परीक्षा पास करके आपने सरकारी नौकरी शुरू की। आपने

टेलीग्राफी सीखी, एकाउण्टी सीखी, टाइप करना सीखा। अन्त में आप आजकल डुमरांव के ट्रे' निग

स्थूल में शिक्षक हैं। आपको पुरानी कविताएँ बहुत कण्ठस्थ हैं। आपकी भोजपुरी की रचनाएँ

सुन्दर और सरस होती हैं। आप एक अच्छे गायक भी हैं। 

कजली

रहलीं करत वृध के कुल्ला, छिल के खात रहीं रसगुल्ला, सस्त्री हम त खुल्लम-खुल्ला, फूला मूलत रहीं दुनिया फुहार में, सावन के बहार में ना। कृला कूजत रहीं ०।।

हम त रहीं रह-रह गोर, फरत रहली इम अजोर, मोरा अखिया के कोर, धार काहाँ अड्सन तेग ब। कटार में, चाहे तलवार में ना। फूला मूलत रहीं ॥

हँसलींद चमकल मोरा दाँत, कइलस बिजुली के मात, रहे अइसन जनात १०, दाना काहाँ अइसन काचुली अनार में, सुधर कतार में ना। कूला-फूलत रहीं० ।।

जब से आइल सबतिया १२ मोर, सुखवा लेलसि हम से छोर, करे अस्त्रियों से लोर १४, भड्या मोर परल बा१५ 'शैदा' माहाधार में, सुखवा जरल भार १६ में ना। मूला-फूलत रहीं० ।।

(२)

बागे बिहने १७ चले के सखी, जड्हड मति मूल । कइसन सुधर लगेला १८, जब करि के गिरेला, सत्री, फॉर में बिने २० के मवलेसरी २१ के फूल। बागे बिहने चले के० ॥

कुर-कुर३२, बहेला बेयार, कइसन परेला ३३ फुहार, सस्त्री, घरे ना चले के मन करेला २४ कबूल । बागे बिहने चले के० ।।

(३)

जोन्हरी २५ भुजावै घोनसरिया चीं जा सखी । जोन्हरी के लावा जइसे मुहिया के फुलवा, भूजन करेले ३७ फुलझरिया । चलीं जा सत्री० ।। कान्डु २८ से ना कल मोरा तनिको परत था, देखला २९ हाँ एको ना नजरिया। चीं जा सखी० ।। हाली-हाली चलु नाल ननदी जे देखि लीही ३२, बोली 33 बोले लागी ऊ जहरिया ३४। चीं जा सखी०।। झन-कन बखरी करत बा तू देख ना, भइल बाट ठीक दुपहरिया ३७ । चीं जा सखी० ॥ चुनरी महल होले सखी घोनसरिया में, उही-उदी गिरेला कजरिया ३८। चीं जा सखी० ।। 

चुनरी में दाग कहीं माम्जी देवी तऽ, मूठ कह दोहन कचहरिया में। चलींजा सम्त्री० ।।

(२)

किसान

भइया ! दुनिया कायम बाउ किसान से। हो भया तुलसी बबा के रमायन में बाँचऽ, जाहिर बा सास्तर-पुरान से। भारत से पूछड, बेलायत से पूछड, पूड ना जर्मन जापान से । साँचे किसान हवन, तपसी-तिय। गी, मेहनत करेलें जिव जान से ।

हो भइया ! दुनिया बा कायम किसान मे ।। जेठो में जेकरा के खेते में पइयड, जब बरमेले आगि असमान से ।

हो भयाणा झमकेला भादो जब चमको बिजुलिया, हटिरें ना तनिको मचान से । भइया, पूलो में माधो में खेते ऊ सुतिहें, बरिहें ना सरदी तूफान से । हो भया०॥

दुनिया के दाता किसाने हवन जा" पूछऽ नः पंडित महान से।

हो भड्या०।।

गरीब किसान आज भूखे मरत बा. करजा गुलामी लगान से । हो भया०॥

होई सुराज तऽ किसान सुत्र पहहें, असरा १८ रहे ई भारत के 'शैदा' किसान सुख पावसु बिनवत बानी जुगान से भगवान से। हो भया००।

मूसा कलीम

आप छपरा शहर के हिन्दी, उर्दू और भोजपुरी के यशस्वी कवि हैं। आपकी कविता बड़ी सुन्दर होती है। आप अपनी भोजपुरी कविताओं को अच्छे ढंग से गाने भी हैं। बहुत प्रयत्न के बाद भी आपकी विशिष्ट रचनाएँ नहीं मिल सकी। बिहार राज्य के प्रचार बिभाग में आाई रचनाओं में ने कुछ पंक्तियाँ दी जाती हैं-

दुसमन भागि गइल, देस अजाद भइल आवड मिलि करों ई काम हो

गीत

कायम राम-राज हो । देस खातिर जिष्ठीं मरी२२, संकट से आवड लड़ीं बट्ठी से रो के रही, इबि जइहें देश के लाज हो

कायम राम-राज हो ।। ध्दऽ बढ़ऽ बढ़ऽ आगे, मरद ना पाले भागे केतने हैं घाटा लागे, गिरे मत दऽ देसवा के ताज हो कायम राम राज हो ।। 

शिवनन्दन कवि

याप मौजमपुर (बदहा, शाहाबाद) ग्राम के निवासी थे। आप राष्ट्रीय विचार के आशु- कवि थे। आपकी बर्णन शैली बहुत मुन्दर, सरल तथा जन प्रिय होती थी। आप सन् १६४२ ई० के राष्ट्रीय आन्दोलन तथा उसके पूर्व के विश्व युद्ध के समय अपनी रचनाओं के लिए विल्यात हो गये थे। आपकी कविताओं पर सामयिक पत्र पत्रिकाओं में कई लेख निकल चुके हैं। आप "भिखारी ठाकुर को कोटि के कवि माने जाते हैं।

युद्ध-काल में कवि कलकत्ता-प्रवासी था। जिस समय कलकत्ता पर जापानियों ने बमबाजी को थी, उसी समय का एक वर्णन नीचे दिया जाता है-

अब ना बाँची कलकाता, विधाता सुनलः ।। टेक ।। धनि जरमनी-जपान, तुरलसि बृटिश के शान हिटलर के नाम सुनि जीव घबढ़ाता विधाता सुनतः ।। सिंगापुर जीतकर बरमा रंगून जीतकर, आई के पहुँचल कलकाता, बिधःता सुनलऽ ।। कलकाता में गुजारा नइखे, पइसा कौड़ी भारा नइखे, सताइस टन के बम पटकाता", बिधाता सुनलः ।। नगर के नर-नारी रोवतारे पुका फारी, छूटि गइले बैंगला के हाता, विधाता सुनलः ।। जाति के बँगाली भाई छोद नगर बाप र साई संग में लुगाई ले पराता, विधाता सुनलः ।। बड़े बड़े म रवादी, छोदिके दोकान बादी अपना मुलुक भागल जाता, विधाता सुनलः ।। 'चटकल' छोड़े कृली, आगा १२ अवरू काबुली छोबि के भागेले बही-खाता, विधाता सुनलऽ ।। कतने हिन्दुस्तानी १३, लोक्षिके भागे दरवानी, कतनो १४ समुझावे हित नाता १५, विधाता सुनक्षः ।। उड़िया वो नैपाली छोड़िके भागे भुजाली", धोवी छोड़े गदद्दा, डोम छोड़े काता १७, बिधाता सुनलऽ ।। लागल बाट हुदे गम १८, कहिया ले" गिरी बम ? इहे गीत ३० सगरो २१ गवाता २२, विधाता सुनलः ।। टिकट कटावे बेरी२३, बाव्‌बाबू करो टेरी २४ नबहुँ २५ ना बाचुष के सुनाता, विधाता सुनलड आफिस, घर अवरू बाड़ी, मोटर अवरू घोड़ा गाड़ी सब काला रंग में रंगाता, विधाता रोशनी हो गइल कम, शहर चोर-डाकू करे उनपात। ३०, सुनक्षः ॥ भर में भहत तम बिधाता सुनलऽ ।। 

बम गिरे धमाधम जीतिए के घरी दम खइक्षा बिनु लोग मरि जाता, विधाता सुनलऽ ।। कलकाता पर परल दुख, फेडू के ना बाटे सुख, 'शिवनन्दन' कवि भागे में शरमाता, विधाता सुनलः ॥

गंगाप्रसाद चौबे 'हुरदं ग'

आपका जन्म स्थान सिकरिया (रघुनाथपुर, शाहाबाद) है। लिखने है। राजनोतिक चुनाव के अवसर पर आप जन भाषा में करते हैं, जिसका असर जनता पर अच्छा पड़ता है। आप अधिकतर प्रचार-साहित्य भोजपुरी कविता करके प्रोपगेंडा

बुढ़ऊ बाबा के चिआइ

लालच में परी बाप बुद बर खोजेला, जेकर उमर दादा के समान है। करिया कलूट बर कोतह-गरदनिया हो, नाक त चिपरिया के साँच" हे ।। मुँह बभुलावे" बनभाकुर १२ समान हो, ओठ तऽ भलुयाउके जानु मोषछ ऐंटवावे बर बने चौदहवा के ताके जहसे भड़कल सियार है ।। केस के सिंगार देखि बिलाई मुसकात बाड़ी, हांदियोले बदल या कपार है। चसमा लगावे दुलहा लागे भटकोंवा मुंह, चले ऊँट डउकत बाल हे ।। कत बरनन करूँ बह्मा उरेहे रूप, बनलो जतरा बिगबाई रहे। आाज ले तऽ बरवा के हाड़ न हरदिया हो, ओहू जनम २४ भइन ना बिआइ हे ।।

अजुनकुमार सिंह 'अशान्त'

आप सारन जिले के (पुराण-प्रसिद्ध दक्षप्रजापति के गंगा तटस्थ प्राचीन गढ़, अम्बिकास्थान) आमी ग्राम के रहनेवाले हैं। इन दिनों आप पुलिस विभाग में हैं।

आपने खदोबोली एवं भोजपुरी में समान रूप से रचनाएँ को है। किन्तु, आपकी लोकप्रियता भोजपुरी रचनाओं के कारण ही है। आपके भोजपुरी गोत सामयिक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित और आकाशवाणी-केन्द्रों से प्रसारित होते रहे हैं। बड़े-बड़े कवि सम्मेलनों में आप सम्मानित तथा पुरस्कृत हो चुके हैं। कविवर पंत ने एक बार आपकी भोजपुरी कविताओं के सम्बन्ध में लिखा था- "अशान्त जी ने भोजपुरी के ललित, मधुर मर्मस्पशी शब्दों को बाँधकर गीतों में जो चमत्कार उत्पन्न किया है, उसे सुनकर जनता मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रहती।" आपकी भोजपुरी कविताओं का संघड़ 'अमरलत्ती' नाम से प्रकाशित हो चुका है। आप परिष्कृत भोजपुरी में 'बुद्धायन' नामक एक ललित और सरस काव्य-प्रन्थ लिख रहे हैं।

(1)

ऋतु-गीत

कुटुकि-कुहुकि पतझड आइल, कुहुकावे २५ को इलिया, कुहुकि-कुहुकि कुटुकावे । उजबल बगिया मधु ऋतु में दुसिचाइत २५ फुनुगिया २७ 

इन हरियर हरियर पलइन में, सुतल सनेहिया जगावे कोइ लिया ॥ टेक ॥ श्रिमिक मधु ऋनु उरल बजरिया चुवल कॉच, कर राइल मौजरिया पड़िया करकि चले तलफ भुभुरिया देहिया में अगिया लगावे कोइलिया ।। टेक ।। मुसि गइल दिन, अटेंसी के रतिया बरसे फुहार रिमझिम बरसतिया १२ फश्यिा बत्रया के सजल करेजवा में, चमकि बिजुरिया बेरावे कोइलिया ।। टेक ।। उपर्पाट १३ गइल भरि छिड़ली पोखरिया, बिड़ली १४ भइल किंच-किंचर इगरिया सूनी बसवरिया में धोबिनी चिरइयों घुघुआ। १८ पहरुथा जगावे कोइलिया ।। टेक ।। आहिल शरद् अनु उगल में जोरिया २०, दुधवा में लड़के २१ नहाइल नगरिया । सिहरी गाल सखि छतिया निरस्त्रि चाँद, पुरवा फटकि२२ सिहरावे फोइलिया ।। टेक ।। दिदुरि शरद ऋतु बोदले दोलया २३ फेकुरी२४ कुहरिया २५ में कटेला समड्या भींगन उमिरिया, जया के जगरम २३८ अइसन सरदिया २५ मुआवे ३० कोइ‌लिया ।। टेक । सरयो, फेरड्या ३१, सनड्या ३२ फुलाइल फिर-फिर-झिहिर शिशिर भानु फाइल सलिया ३३ गुजरि गइल, तबहूँ ना हलिया ३४, पुरुब मुलुकबा से आबे कोइलिया ।। क ।

(२)

बिरहा ( विधवा-विलाप )

जिये के जियल बानी ३५, चाहीं ना जिए के हम (१) रतिया के इलकल धौनी के गगरिया कि यह अमरितवा ३९ के फजिरे के ललकी टिकुलिया४२ में लहरल पहाड़ । धार, सुतल सनेहिया ४३ हमार ।। टेक ।। (२) हमर करमवाँ ४४ में नाहीं अमरित ४५ बारे नाहीं वाटे टिकुली-सिंगार अहिया४९ से दुबलऽ नयनचों के जोतिया ४७ कि हमरो सरगवः४८ अन्हार ४९ ॥ टेक ॥ (३)

बारे जिगल ३५

सुन्नर*० भवनवाँ सुहगवा के रतिया भूतवा के भरल या रहले करमवाँ के फेर ।। टेक ।। माँगत्रा के ललकी लकिरिया ५२ मिटाइल 

बिरहा के अगिया, करेजवा के दगिया बगिया २ के भइल 4.३ सिगार ॥टेक।। फुलवा के अखिया खलल नाही श्रव्रत क नदिया के घटल जुधार, मन के रेंगीनियों जोगनियाँ भाल बारे टूटल संरगिया के तार ॥टेका।

(५)

बिधना तोहरे हाथ बारे फुलवरिया कि दिने राते बहुत बयार, नाहीं एहि पार बानी नाहीं ओहि पर हम फाटत करेजवा हमार ॥ टेक ॥

उमाकान्त वर्मा

आपका जन्म स्थान छपरा नगर है। आपकी शिक्षा काशी विश्वविद्यालय में हुई। उसी समय हिन्दी के प्रसिद्ध कवि श्री शिवमंगल सिंह 'सुमन' और सुपरिचित आलोचक श्री त्रिलोचन शास्त्री के सम्पर्क से आपमें साहित्य-साधना की भापना जगो। आप रिम्दी और भोजपुरी में अन्डी कविता करते और गाते हैं। दोनों भाषाओं ने कहानी-लेखक भी हैं। आपको दो पुस्तकें 'मकड़ी के जाला' (भोजपुरी कहानी-संग्रह) और 'दु बिन्दू' (भोजपुरी उपन्यास) नैयार हैं। इस समय आप हाजीपुर (मुजफ्फरपुर) कॉलेज में हिन्दी के प्राध्यापक है।

गीत

रे खुलिया संसार ।

भरल हलाहल मनु के पिअलिया ले आाइल उपहार, सकुचि लजाइल, उडि उडि भाइल जान" गइल जब श्रात्रु के रोवल पल-पल लहर जुझार ०। रे छलिया संसार ॥ काल्हुर के गावल गीत, हार भइले यह आजु के पहले, रहले करमों के गीत । मिलल सनेहिया चिनिनिया १४ लगावे भइल जिनिगिया के भार। रे इलिया संसार ॥

बरमेश्वर ओझा 'विकल'

आाप हिन्दी और भोजपुरी दोनों में कविता लिन्नने हैं। आप वंशनर (पुर, शाहाबाद) ग्राम के निवासी है। यप कुवर मिंद की जीपनी भोजपुरी में निम्त्र हैं। प्रस्तुत पुस्तक को पाण्डुलिपि मैयार करने में आपने मेरी महायता की है। 

' कइसन र जुग आइल बा !

छवने बीया कारी बदरिया, सूरुज जोति लुकाइल बा।

ई कक्ष्सन जुग आहत था ?

(1)

बहरुस्त सोना के डेरी पर, ऐगो ऐगो भीख माँगि के घर-घर, करहूँ बाप और बेटा के अब तक, नाते आपन हुकुम चलावत । । पन समय कटावत ।। ना फरिआइल बा । ई कइसन जुग आइल बा ?

(२)

लुटि पाटिके मारत काटत, जहाँ पावत जे जेकरा के। आपन अब तऽ राज भइल बा, इहवाँ पूछत के केकरा के ।। 11 अपने भाई के खूनवा से, सभ कर हाथ ई कइसन जुग आइल बा ? रंगाइल था।

(३)

करिया १४ एक बजार चलल बा, करिया चोर घुमत जवना" में। हिरदय में का ओकरा बए, दया धरम तनिको सपना में ।। सभकर पपवा के गठरी में, टेंगरी अब अकुराइल वा । ई कइसन जुग आइल बा ?

गोस्वामी चन्द्र श्वर भारती

आपका घर कोबारी (दरीदा, सारन) है। आप अधिकतर प्रचार गीत हो लिखते हैं। गये- नये तजों में टेंठ भोजपुरी के गोत सामयिक विषयों पर आप बहुत अच्छा लिखते हैं। आप गायकों को टोली बनाकर, दोलक, फाल और हरमोनियम के साथ गा-गाकर अपनी रची पुस्तकें बेचते हैं। गाने का नया आकर्षक तर्ज और भाव प्रकाश का नया ढंग होने से लोग चाव से गाना सुनते और आपकी पुस्तकें खरीदते हैं। आपकी एक किताब 'रामजी पर नोटिस' मुझे मिली है।

(1)

पानी बिना सुम्ब गहल देस भरके धान, ई का कहीं भगवान ! करजा काड़ के खेती कों, मर मर रोपीर धान । स्वेत के पैदा दहन सूखन, रोवतः। किसान ॥ ई का० ।। कहीं गहल दह३३, कहीं धार्मीक से ओहु मे२४ जे बाँचल बा, बलेक३५ लेहले टान २५ ॥ ई का ॥ 

(२)

हम राज-किसान बनइती हो । धनी-गरीब-अमीर सभी के एक राह चलती हो। हक-भर भोजन सबके दीती, दुखी न कहवहती हो। जेकरा घर में नडग्वे भोजन, चाउर में भरवहती हो ।। हो । जेकरा बाटे टुटही मबड्या, खपदा से बनवतों हो। कोटा के जो बात जे होइत, भापन नीति चलइतों हो । बलेक लीडर के बॉाँधि पकदि के, फाँसी पर लटकती हो । बहमानों के जब भर पहर्ती, कारीख मुँह में लगती गदहा पर बइठाइ उन्हें फिर चुना से टीकवइती हो। बाल वृद्ध श्रीयाह अंत कर, जोड़ा ब्याह १२ रवर्ती हो । उनहीं से अब भारत में फिर अरजुन-भीम बोलती हो। खादर के जोगाड़ जो करतीं भोरहीं में उपजती हो ।। गडमाता के चरनेवाली परती ना जोतवद्दतीं हो। छुवाछूत के भूत भगइती, सरिता-प्रेम बहइलों हो ।। हिन्दू-मुसलिम भाई के हम, एके मंत्र पढ़हतों हो। बाँग" अधिक खेत में बोइतीं, चरखा बहुत बनहतों हो । भारत में बीधान बना के, घर घर सूत कतइती हो। अमर शहीदों के नामीले सुमिरन में लिखबइती हो ।। सूली पर हँस चड़े बहादुर, उनके सुची" बनहती हो। मातृ-भूमि के बलिबेटी पर, 'चन्देश्वर' सीस चदइर्ती हो ।। जब-जब जनस जीती भारत में, बलिवेदी पर जहती हो ।

सूर्यपाल सिंह

आप चातर, (बयुरा, बदहा, शाहाबाद) के रहनेवाले हैं। आपको भाषा हिन्दी मिधित भोजपुरी है। आपके द्वारा रचित तीन पुस्तिकाएँ प्रकाशित हैं, जिनके नाम हैं-याजादी का तूफान; निगु'गा भजन पंचरत्न और लम्पट लुटेरा । आपके शिष्य जवाहर हलुवाई छपरा जिने के हैं। बे भी भोजपुरी के कवि है।

पूर्वी

भारत आजाद भइले, हुलमेला ३० मनवाँ, में झण्ड सोहे ना। बिजय देबी के समनवों २१ से झण्डा सोहे ना ॥ भंडा तिरंगा, बीच में चक्कर निसनवों २२, उड़ावल गइले ना ।

दिल्ली किला के उपरवा, से उड़ावल० ॥ 

उनइस सो सैंतालिस रहले, शुक्रवार दिनवों, से जयहिंद ना । भहले चारो ओर सोरवा, मे अय० ॥ जुग जुग जियसु बाबा गाँधी, जवाहर से, बन्धन तोडले ना। माता कष्ट के हटवले, से बन्धन तोडले ना ॥

पाण्डेय कपिलदेवनारायण सिंह

यापका जन्म स्थान शीतलपुर (बरेजा, सारन) है। अपने साहित्यिक परिवार में ही आपको साहित्य मेवा की प्रेरणा मिली। आप हिन्दी और भोजपुरी दोनों के कवि तथा लेखक है। अभिनय- कला में भी आपको रुचि है। ऋग्वेद के बहुत से सूक्तों, संस्कृत के श्लोकों और अँगरेजो की कविताओं का आपने हिन्दी और भोजपुरी में पद्यबद्ध अनुवाद किया है। आपके पूज्य पितामह स्वगांय श्रीदामोदर सहाय सिंह 'कविकिंकर' द्विवेदी युग के लब्धप्रतिष्ठ कवि थे। आपके पूज्य पिता पाण्डेय जगन्नाथप्रसाद सिंह हिन्दी के पुराने माने खाने लेखक है। आजकल आप बिहार-सरकार के अनुवाद विभाग में हैं।

जिनगी के अधार जियरा में उठेला दरदिया, नयेनवाँ से नोर ढरे हो। अकिया में रतिया बीतवनी, सनेह के जोगवनी । से मन के भोरवनी नु हो ।।

आहे सखिया, पियवा बड़ा रे निरमोहिया, ना जीया के कलेस हरे हो। छितरल धरती के कोरवा से अँखिया के तोरवा । जे ओस बनी भोरबा नु हो ।

आहे सखिया, हुतिया के सुनगल" अगिया किरिनियों के रूप घरे हो । झनबेला हीया के सितार, मधुर झनकार । दरदिया के भार नु हो ।

आहे सस्त्रिया, जिनगी के इहे बा अधार जे जिनगी में जान भरे हो । जियरा में उडेला दरदिया नयेनवों से नीर बरे हो ।

इन्द्र-सूक्त के अनुवाद यो जात एव प्रथमो मनस्वा, म्देवो देवान्कनुना पर्यभूषत् । यस्प शुप्मादोदसी अभ्यसेतो, नृम्णस्य मद्रास जनास इन्द्रः ॥१॥ जनसे लेत आदमी, सब में तुरते जे अगुआ हो गइल अना वृता १२ से देवन के भी अपना कब्जा 3 में कइल, जेकरा साँसे भर लेला से, सरग ओ धरती अलगा भइल, जे बलबाला बहुत बड़ा बारे उहेन्द्र भगवान ए लोगे ॥१

यः यो यो पृथिवीं व्यथमाना मद्द हद् पर्वतान्प्र कृपिताँ अरम्णात् । अन्तरिक्षं विममे बरीयो थामस्तभ्नात् स जनास इन्द्रः ॥२॥+ बहुत पसोजल धरती के थक्का पा ठोस बना दीडल जे, उड़त चलत परबत टीव्ह। के एक जगह बडा दहिलो, आसमान जे बदहन कइल, आसमान के नाप लोहल जे, जे आधार सरग के दीहल, उहे इन्द्र भगवान, ए लोगे ॥२॥

भूपनारायण शर्मा 'व्यास'

आाप रायपुर (मानपुर, दिघवारा, सारन) ग्राम के निवासी हैं। आप कथावाचक हैं। आप मण्डली बनाकर कथा कहा करते हैं। आप भोजपुरी में सुन्दर रचना करते है। आपकी अयतक छह रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी है। जिनमें अन्य कवियों को भी रचनाएँ हैं।

प्रकाशित पुस्तकें - (१) राम-जन्म बधैया, (३) मिथिला बहार संकीर्तन, (३) श्री सीताराम बिवाह संकीर्णन, (४) सोता-बिदाई, (५) कोर्णन मंजुमाला और (६) श्री गौरीशङ्कर-विवाह कोनन। इनमें प्रथम चार का प्रकाशक- भार्गव पुस्तकालय, गायघाट, बनारस है।

कीर्त्तन

तो पर बारी संवलिया ए दुलहा ।। टेक ।। सिर पर चारा १२, कमर पर पीला, भोदे गुलाबी चद‌रिया । गले बोचे होरा, चवावे मुख बीरा बिहॅसत करे फहरिया १४ ॥ छैल, छबोला, रंगीला, नोकोला पहिरे जामा १९ केसरिया । भाँहे कमान तानि नयन-बान मारे, भरिके काजर जहरिय। १८ ।। मिथिला की डोमिन सलोनी सुकुमारी, तोहरे सरहज वो सरिया २० सुध-बुध हार भई प्रोम-मतवाली, पड़ते ही बाँके नजरिया । हम तोहरो विद्धवार नहीं छोड़ो जैहों साधे अवध नगरिया ।। सरपत २२ के क्रिया बनाई हम रहयो, तोदगे महल पिलुवरिया २७ । सरयू सरित तरि-तीरे बहारव२४ साँझ-सधेरे-दुपहरिया । ताही ठौर मिलब नहाये जब जैबऽ२५, मान जीवन तोरा लागि माँगब दृकाने-दृकाने कौड़ी बीच नेह लगा और कहीं न जाइब, अइसे बितद्दद्दों धनुधरिया २६ । बजरिया २७ । उमरिया ३८ ॥ 

सिपाही सिंह 'पागल'

आप सारन जिले के बैकुण्ठपुर थाने के निवासी है। सन् १६४४ ई० में छपरा के 'राजेन्द्र कॉलेज' से आपने बी० ए० पास किया था। सन् १८५१ ई० में आपने पढना के ट्रेनिंग कॉलेज से 'तिप्- इन-एड्० को परीक्षा विशेषता के साथ पास की। काशी के साप्ताहिक 'समाज' में आपके भोजपुरी सम्बन्धी कई लेस्त्र प्रकाशित हुए थे। आपने अंगरेजी के कवि 'शेली', 'वड्सवर्थ' आदि की कविताओं का अनुवाद भोजपुरी में किया है।

जिनगी के गीत

सीखड आई जिनगी में हँसे-मुसुकाए के, इचिको २ ना कर पीर तीर के खिश्रतवा सिहरऽ ना सनमुख देख मुसकिलवा नदी-नाला परच फाने के हियाव राखड हारऽ ना हिया में, सीखऽ मस्ती में गावे के ॥

आँधी बड़े, पानी पड़े तबहूँ ना जिनगी से मुँह सातो समुन्दर चाहे बढ़का तबहूँ ना पीड़ा मुहें बेग जहर पी के सीखऽ नीलकण्ठ सीखऽ भाई० ॥ पथर से धुरइहड बिजकहरु ९९ पहाद मिले घुसकहरु ३११ कहलावे के। सीखऽ भाई० ॥

शालिग्राम गुप्त 'राही'

आपका घर 'दरोइटिया' (परसा, सारन) गाँव में है। आपका जन्म-काल सन् १६२६ ई० है। आपका पेशा वर्त्तमान समस्या-सम्बन्धी गीत, भजन आादि भोजपुरी में बनाना और छोटी छोटी पुस्तिकाओं में छपवा कर ट्रेन पर गा-गाकर बेचना है। आप की रची हुई दो पुस्तिकाएँ मुझे देखने को मिलों - 'झगह पुराण' उर्फ 'टोमल बतकही' तथा 'देहात के इलचल' । पहली पुस्तिका मोइन प्रेस (छपरा) में सन् १६४१ ई० में छपी है और दूसरो पुस्तिका कृषि प्रेस (छपरा) में सन् १६५१ ई० में छपी है। पहलो पुस्तिका में बोट-सम्बन्धी झगड-टोमल वार्ता दोहा और अन्य छन्दों में है। वात्र्ता समाजवाद के पक्ष में है। दूसरी पुस्तिका आपके आठ गोतों का संग्रह है।

(१)

इयाद रख

भहत ।। अन्हार १२ ना छिपा सकल, अॅजॉर होके का भइल १४ जो थरथरी बनल रहल, तऽ घाम होके का हजार डींग हॉकले स्वराज हो गइल मरल गरीब भूख से, इ राज होके का मगर । 

(२)

अइसन' परलर अकाल बाप रे ।

अबको लोग जरूरे मरी, चाहे कोटि घरीड़न करी । घट गइलक एकबाल बाप रे । अइसन० ॥

जाति-पाँति के बाँध नर टूटल, सबे लोग सबकाम में जूटल। पण्डित भद्दल कलाल बाप रे ! अइसन० ॥ फटकल, देख के हमर दिमागे चटकल १३। सेर-भर के खुद्दी कइतक कउन हलाल बाप रे! अइसन० ।।

दूध-दही घीव अमृत भइल, पाँचो मेवा पत्ताले उपजल टी० बी० काल बाप रे! अइसन० ।।

घर-दुआर सय दहिए गइल, तीन साल से फसल न भइल । हम सब भइलों बेहाल बाप रे! अइसन० ।। बाहर से गल्ला ना आई, तब हमनी १८ का १९ खायब भाई। इदे अजय सवाल बाप रे! अइसन० ।।

रामवचन लाल

आपका जन्म विक्रम संवत् १६७७ में भाद्र पूर्णिमा को हुआ था। आप शाहाबाद जिले के बगाड़ी गाँव के निवासी है। आप सन् १६४३ ई० में इलाहाबाद-बोर्ड से आई० ए० को परीक्षा पास कर माष्टरी करने लगे थे। सन् १६५२ ई० में आपने कार्श। विश्वविद्यालय से बी० ए० को परीक्षा पास की है। आप एक होनहार भोजपुरी कवि हैं। आपकी भोजपुरी की मुख्य रचनाओं में 'कुणाल', 'गीतांजलि', 'दिली दोस्त' (शेक्सपीयर के मर्वेण्ट आफ वेनिस के आधार पर) तथा 'रामराज' है।

राज-वाटिका-चरनन

रहे गह-गह३०, मह-मह २१ फुलवरिया, मधुरे-मधुर बोले मधुई बयरिया २२ । रंगे रंगे फर २३ फूल बिरिङ्ग २४-चैवरिया २५, रस ले भँवरवा भरेला गुजरिया ३५ ।। बन मन झारै, कहीं कुहुँके कोइलिया, हियरा में साले ले पपिहरा के बोलिया । बिहरें सगरवा में रंगलि मरिया, छूटेला फुहारा रंग-रंग झरझरिया ।। पत्तवा २८ में तोतवा३१ लुकाके कहीं कतरेला ३१, रसे-रसे ३२, रस लेइ-लेइ ३३ । जोदिया मयनवां के बदिया बहसि ३५ भले, हियरा हुलास कहि देइ ।।

नथुनी लाल

आाप मोरंगा (बेगूसराय, मुंगेर) गाँव के रहनेवाले हैं। आपको विशेषता यह है कि मुंगेर की अंगिका (छीका छोको) भाषा के बोलनेवाले होकर भी आपने भोजपुरी में रचना की है आपकी रचनाएँ समाज सुधार की होती हैं। आपको एक पुस्तिका है 'ताबोवेश्चनी', जो दूधनाथ प्रेस सतकिया, हवका) से प्रकाशित है। पुस्तकालय, ५१२/१, हरिसन रोड, लोक साहित्य की है। दूसरी में राष्ट्रीय गीत नये-नये तजों में है।

धुन पूर्वी

तोहर बयान सब लोग से कहत बानी, कनवाँ लगाइ तनी सुनः तादीबेचनी ॥ गाल गुलनार, डॉ सिकिया समान बाटे, जोबना था काशी के अनार तादीचेचनी । नित तू सवुनवाँ लगावेलू बदनवाँ में, पोखरा में करड असनान ताबीचनी ।। नित तू सबेरे-शाम साबुन से असनान कर, तेलवा लगावे बासदार चिरनी लगाई कर, माथा के बँधाई लेले, सेन्दुरा से भरेले लिलार सदिया रंगीन पेन्ह, चोलो लवलीनबा से टिकुली के अजब बहार बन्द्र के समान मुँह, गाल मलपुचा जड़ये, रोरी बुन्द" करेला लिलार कादा १२ छादा बिया १४, पहुँची, हाच बालिया से हसुली पहिरे सवामेर ताड़ी बेचनी । सोलहो सिंगार करि, करें अभरन प्यरी, बड्मेली ताड़ी के दूकान तादीवेचनी ।। सादीवेचनी । तादीचेचनी ।। ताबीचेचनी । तादी ग्रेचनी ।।

वसन्तकुमार

आपका जन्म-काल विक्म संवत् १६-६ है। आपका जन्म स्थान खजुहट्टी ( सारन) गांव है। आपका घरेलू नाम अयोध्याप्रसाद सिद्ध है और साहित्य क्षेत्र में वसंतकुमार। छात्रावस्था में आप 'रामचरित मानस' का नियमित पाठ करते थे। हिन्दी-संसार के प्रसिद्ध साहित्यसेवो श्री राहुल स कृत्यायन की प्रेरणा से आप भोजपुरी कविता की ओर प्रवृत्त हुए। आपने भोजपुरी की अनेक कविताएँ लिखों, जिनमें अधिकांश रेडियों में प्रसारित हो चुकी है।

बदरवा

[ धरती श्रीष्म में गर्म लोहे सी तप रही है। खेतों को फसल चिलचिलाती धूप में मुलस पड़ी है। ठोक इसी समय श्रीष्म को हांफनो हुई एक नौरव दुपहरी में एक किसान सुदूर परितप्त आकाश में बादल के एक सूखे टुकने को देखकर, उसे सम्बोधित करके आशा-भरे लय में गा पड़ता है-] हितिज से फुटुकत आउ रे बरवा, अरु पनियाँ से मोर खेत दया नहीं लागे तोके महया बदरवा, खेतवा भइल मोर रेत । संपवा समान अप-लप करि लुकिया ३० चलत, चंवरवा ३१ उदास खेत के फसलिया भुलसी मुरझइली, आगे के न बाट किछु बास इनर ३२ बाबा के घर-घर होत गीत, पर बाबा नाहीं डरल बुझासरे जाऊ तनी २४ उहाँ के२५ मनाई देऊ भया, चदि के पवन उनचास ससकत, बरसत, हँसत-खेलत करू धरती के सरस-सचेत खतवा भइल मोर रेत । दिगमिग २६ करि उडे स्वेतवा भदया, देखिकर जिया हुलुखाय २७ हरियर पतिया में सिमटि मकड्या कस-मस करि अक्षिय २८ पर्षेया, हरि चले, मिटे पुरवड्‌या धानवाँ उमेकि लहराय रबिया के समय भी भूलु नाहीं भया, चक्र-मक फसल फुलाय गहुँआ का गोदिया में लिपटि केरउवा हुसे, नाहीं तोहरा समेत

खेतवा भइल मोर रेत ।

ओर बोर, चिरई समान फुदुक्त कहु भक्ष्या, सरपट जात कित तुहूँ तर हिमाचल के सेज पर बिहरत हमनी के तुरकत जदी ना तू अइबड अकाल पदि जइहें, मचि जहहें भूखवा के शोर अन बिनु मोर देस भइल तबाह भइया, तिकवत तहरे" हो ओर सोना-चौनो बरसतु दाता रे बढ़ावा, सुसहाल होय मोर देस

खेतवा महल मोर रेत ।

नाजु तुहूँ उमदि-घुमदि के अकसिया १२ बिजुरी के ले मुसुकान चेंबर दोलावे तोके शीतल बेयरिया, मिट जाय आन्हीं वो तूफान छिनकु सुरस-धार रिमझिम रिमझिम, छाइ जासु सकल जहान बिरहा के तान केंबि रोपनी १५ में लागे सब तुहू गाउ गरजन-गान दुरक पद्म तू सब ओर रे बदवा, मनदों के करु ना सकेत १७

खेतवा भइल मोर रेत ।

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लेख
भोजपुरी के कवि और काव्य
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लेखक आ शोधकर्ता के रूप में काम कइले बानी : एह किताब के तइयारी शोधकर्ता श्री दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह कइले बाड़न. किताब के सामग्री : १. एह किताब में भोजपुरी के कवि आ कविता के चर्चा कइल गइल बा, जवना में भारतीय साहित्य में ओह लोग के योगदान पर जोर दिहल गइल बा. एह में उल्लेख बा कि भारत के भाषाई सर्वेक्षण में जार्ज ग्रियर्सन रोचक पहलु के चर्चा कइले बाड़न, भारतीय पुनर्जागरण के श्रेय मुख्य रूप से बंगाली आ भोजपुरियन के दिहल। एह में नोट कइल गइल बा कि भोजपुरिया लोग अपना साहित्यिक रचना के माध्यम से बंगाली के रूप में अइसने करतब हासिल कइले बा, जवना में ‘बोली-बानी’ (बोलल भाषा आ बोली) शब्द के संदर्भ दिहल गइल बा। भोजपुरी साहित्य के इतिहास : १. एह किताब में एह बात के रेखांकित कइल गइल बा कि भोजपुरी साहित्य के लिखित प्रमाण 18वीं सदी के शुरुआत से मिल सकेला. भोजपुरी में मौखिक आ लिखित साहित्यिक परम्परा 18वीं सदी से लेके वर्तमान में लगातार बहत रहल बा। एह में शामिल प्रयास आ काम: 1.1. प्रस्तावना में एह किताब के संकलन में शोधकर्ता श्री दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह जी के कइल महत्वपूर्ण प्रयास, धैर्य, आ मेहनत के जिक्र बा। एहमें वर्तमान समय में अइसन समर्पित शोध प्रयासन के कमी पर एगो विलाप व्यक्त कइल गइल बा. प्रकाशन के विवरण बा: "भोजपुरी कवि और काव्य" किताब के एगो उल्लेखनीय रचना मानल जाला आ बिहार-राष्ट्रभाषा परिषद के शुरुआती प्रकाशन के हिस्सा हवे। पहिला संस्करण 1958 में छपल, आ दुसरा संस्करण के जिकिर पाठ में भइल बा।
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आठवीं सदी से ग्यारहवीं सदी तक प्रारम्भिक काल

7 December 2023
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प्रस्तुत पुस्तक की भूमिका में भोजपुरी के इतिहास का वर्णन करते समय बताया गया है कि आठवीं सदी से केवल भोजपुरी ही नहीं; बल्कि अन्य वर्तमान भाषाओं ने भी प्राकृत भाषा से अपना-अपना अलग रूप निर्धारित करना शु

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घाघ

8 December 2023
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बाघ के जन्म-स्थान के सम्बन्ध में बहुत विद्वानों ने अधिकांश बातें अटकल और अनुमान के आधार पर कही है। किसी-किसी ने डाक के जन्म की गाया को लेकर घाष के साथ जोड़ दिया है। परन्तु इस क्षेत्र में रामनरेश त्रिप

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सुवचन दासी

9 December 2023
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अपकी गणना संत-कांर्यात्रयों में है। आप बलिया जिलान्तर्गत डेइना-निवासी मुंशी दलसिगार काल को पुत्री थी और संवत् १६२८ में पैदा हुई थी। इतनी भोली-भाली यी कि बचपन में आपको लोग 'बउर्रानिया' कदते थे। १४ वर्ष

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अम्बिकाप्रसाद

11 December 2023
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बाबू अम्बिकाप्रनाद 'आारा' की कलक्टरी में मुख्तारी करते थे। जब सर जार्ज क्रियर्सन साहब श्रारा में भोजपुरी, का अध्ययन और भोजपुरी कविताओं का संग्रह कर रहे थे, तब आप काफी कविताएँ लिख चुके थे। आपके बहन-से

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राजकुमारी सखी

12 December 2023
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आप शाहाबाद जिले की कवयित्री थीं। आपके गीत अधिक नहीं मिल सके। फिर भी, आपकी कटि-प्रतिभा का नमुना इस एक गीत से ही मिल जाता है। आपका समय बीसवीं सदी का पूर्वाद्ध अनुमित है। निम्नलिखित गीत चम्पारन निवासी श्

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माताचन्द सिह

13 December 2023
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आप 'सहजौली' (शाहपुरपड़ी, शादाबाद) ग्राम के निवासी हैं। आपकी कई गीत पुस्तके प्रराशिन है पूर्वी गलिया-के-गलियारामा फिरे रंग-रसिया, हो संवरियो लाल कवन धनि गोदाना गोदाय हो संवरियो लाल ।। अपनी मह‌लिया भी

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रामेश्वर सिंह काश्यप

14 December 2023
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आपका जन्म सन् १८१६ ई० में, १६ अगस्त को, सामाराम ( शाहायाद) ग्राम में हुआ था। पास की थी। सन् १३४ ई० में पान किया। इन तीनों परोक्षाओं के नजदीक 'सेमरा' आपने मैट्रिक की परीक्षा सन् १८४४ ई० में, मुंगेर जिल

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एगो किताब पढ़ल जाला

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