shabd-logo

राजकुमारी सखी

12 December 2023

2 देखल गइल 2

आप शाहाबाद जिले की कवयित्री थीं। आपके गीत अधिक नहीं मिल सके। फिर भी, आपकी कटि-प्रतिभा का नमुना इस एक गीत से ही मिल जाता है। आपका समय बीसवीं सदी का पूर्वाद्ध अनुमित है। निम्नलिखित गीत चम्पारन निवासी श्री गणेश चौजी से प्राप्त हुआ-

गोड़ तोडी लागले बाबा हो बढ़द्दता २० से आहो रामा धनवों-मुलुक २२ जनि व्याहऽ हो रामा । सासु मोरा मरिहें गोतिनि २३ गरिअइहे २४ से आहो रामा लहरि ३५ ननदिया २९ ताना मरिहें हो रामा। राति फुलड्यो २७ रामा दिन उसिनइहे३८ से आहो रामा धनवा चलावत धामे ३० तलफबिउ हो रामा । चार महीना बाबा एहि तरेति से आहो 

खाये के मादगिल भतवा हो रामा । 'राजकुमारी सन्त्री' कहि समझावे आहो रामा ঝিনা सहुरेर सब दुखवा हो रामा ।।

बाबू रघुवीर नारायण

आप सारन जिते के 'नयागांव' नामक ग्राम के निवासी हैं। उसो जिले के छपरा-नगर में आपका जन्म सन् १८८४ ई० में, ३० अक्टूबर को हुआ था। जिस समय आप छपरा-जिला स्कूल में पढ़ते थे, उस समय वहाँ साहित्य-महारथी प० अम्बिकादत्त व्यास अध्यापक थे। उनसे आपको कवि-प्रतिभा को बहा प्रोत्साहन मिला। बिहार के भारत प्रसिद्ध विद्वान् पण्डित रामावतार शर्मा से भी अपने उसी स्कूल में शिक्षा पाई थी। स्कूल में हो आप हिन्दी, अंगरेजी तथा भोजपुरी में कविता करने लगे थे। पटना कालेज में पढ़ते समय आप अँगरेजी में बहुत अच्छी कविता करने लगे। अँगरेज प्रोफेसरों ने आपकी अंगरेजी-कविता को बहुत सराहा था। बो० ए० पास करने के बाद आप पूर्णियाँ जिले के 'बनैली' नरेश राजा कोरर्यानन्द सिंह के प्राइवेट सेकेडरी हुए। बिहार के प्रसिद्ध महात्मा श्री सीतारामशरण भगवानप्रसाद जी 'रूपकला' की प्ररेणा से आप हिन्दी में भी कविता करने लगे। आरा-निवासो बाबू शिवनन्दन सहाय से आपने ब्रजभाषा में कविता करना सीखा था; किन्तु अंगरेजो और हिन्दों की कविताओं से अधिक आपकी भोजपुरी कविताएँ प्रसिद्ध हुई। आपका सबसे प्रसिद्ध भोजपुरी गीत 'बटोहिया' है, जो २० वीं सदी के आरंभ में दक्षिण-अभिका, मॉरिशस और ट्रिनीडाड तक के प्रवासी भारतवासियों में लोकप्रिय हो गया था। सन् १६५२-५३ ई० में बिहार-राष्ट्रभाषा-परिषद् से आपको डेढ़ हजार रुपये का बयोवृद्ध साहित्यसेत्रो सम्मान पुरस्कार मिला था। आपके सुपुत्र श्री हरेन्द्रदेव नारायण, बो० ए० ने, जो हिन्दी के भी प्रतिभाशाली कवि है, 'कु अर सिंह' नामक काव्य भोजपुरी में लिखा है। आपको मृत्यु सन् १६५५ ई० में हुई थी।

बटोहिया

सुन्दर मुभूभि भैया भारत के देसवा से मोरे प्रान बजे हिम-खोह रे बटोहिया ।। एक द्वार घेरे राम दिम-कोतवालवा से, तीन द्वार सिंधु घहरावे रे बटोहिया ।। जाहु-माहु भैया रे बटोही हिन्द देखि अाउ, जहाँ कुहंकि कोइलि बोले रे बटोहिया ।। पवन सुगन्ध मन्द अगर गगनवाँ से, कामिनी बिरह-राग गावे रे बटोहिया ।। 

बिपिन अगम घन सवन बगन बीच, चम्पक कुसुम रंग देवे रे बटोहिया ॥ मैं म बट पोपल कदम्ब निम्ब आम वृक्ष, केतकी गुलाब तोता तूती बोजे रामा बोले मॅगरजवार से, पपिहा के पी पी सुन्दर सुभूमि भैया भारत के देसवा से, मोरे प्रान बसे गंगा रे जमुना के झगमगत पनियों से, सरजू झमकि फूल फूले रे बटोहिया ॥ शिया साले रे बटोहिया ॥ गंगा धार रे बटोहिया ॥ लहरावे रे बटोहिया ॥ अह्मपुत्र पंचनद बहरत" निसि-दिन, सोनभद्र मीठे स्वर गावे रे बटोहिया ॥ अपर अनेक नदी उमड़ि-घुमदि नाचे, जुगन के अदृश्या जगावे रे बटोहिया ॥ आगरा प्रयाग काशी दिल्ली कलकतवा से, मोरे प्रान बसे सरजू तीर रे बटोहिया ॥ जाउ-जाउ भैया रे बटोही। हिन्द देखि आऊ, जहाँ ऋषि चारो बेद गावे रे बटोहिया ॥ सीता के बिमल जस राम-जस कृष्ण-जस, मोरे बाप-दादा के कहानी रे बटोहिया ॥ व्यास बाल्मीक ऋषि गौतम कपिल देव, सूतल अमर के जगावे रे बटोहिया ॥ रामानुज रामानन्द न्यारि प्यारी रूपकला, ग्रह्म-सुख बन के भंवर रे बटोहिया ॥ नानक कबीर गौर संकर श्री राम कृष्ण, अलख के गतिया बताये रे बटोहिया ॥ विद्यापति कालीदास सूर जयदेव कवि, हलसी के सरल कहानी रे बटोहिया ॥ जाउ जाउ भैश रे बटोही हिन्द देखि आऊ, जहाँ सुख फूले धान खेत रे बटोहिया ॥ बुद्धदेव पृथु बिक्रमाजुन सिवानी के, फिरिफिरि हिय सुध आवे रे बटोहिया ॥ अपर प्रदेस देस सुभग सुघर बेस, मोरे हिन्द जग के निचोद रे बटोहिया ॥ सुन्दर सुभूमि मैया भारत के भूमि जेहि, जन 'रघुबीर' सिर नावे रे बटोहिया "

महेन्द्र मिश्र

आप सारन जिले के 'मिश्रवलिया' ग्राम (नैनी, छपरा) के रहनेवाले थे। आप मामूली पढ़े- लिखे व्यक्ति थे। आप रसिक मनोवृत्ति के प्रेमी जोव थे। आपके गीतों का प्रचार छपरा और आरा की वेश्याओं ने भोजपुरी जिलों में खूब किया है। वास्तव में आपके गीत बहुत सरस, सुन्दर और प्रेममय होते थे। जाली नोट बनाने के अपराध में यापको एक बार सजा भी हो गई थी। सन् १६२० ई० के लगभग आपकी कविताएँ शाहाबाद, छपरा, पटना, मोतिहारी आदि जिलों में खूब प्रेम से गाई जाती थीं। आपने अनेक तजों के गीतों को रचना की है। आपकी कविताओं के दो-एक संग्रह भी छप चुके हैं। आपकी तीन प्रकाशित रचनाओं ('मेघनाथ-वध', 'महेन्द्र मंजरी' और कजरी-संग्रह) का पता मिला है। आपने रामायण का भोजपुरी में अनुवाद भी किया था, जो अबतक आपके बंशजों के पास है।

(1)

नेहवा लगाके दुखवा दे गइले १२ रे परदेसी सइयाँ १३ ॥ टेक ॥ अपने त गहले पापी, लिखियो ना भेजे पाती १४, अइसे १५ निठुर स्याम हो गइले रे परदेसी सहयाँ । बिरहा जलावे छाती, निंदियो ना भावे राती, कठिन कठोर जियरा हो गइले रे परदेसी सइयाँ। 

कहत 'महेन्द्र' प्यारे सुनऽहो परदेसी सइयाँ, उहि-उछि भेवरा रसवा ले गइले हो परदेसी सइयों ॥

(२)

भूमर

अवध नगरिया में महली बरिअतिया सुनु एरे सजनी, जनक नगरिया भइले सोर सुनु एरे सजनी ॥ चलु-चलु सम्बिया देखि आई बरिश्रतिया, सुनु परे सत्रनी, पहिरड न लहरा-पटोर सुनु पुरे सजनी ॥ राजा दसरथ जी के प्रान के अधरवा सुर्नु एरे सजनी, कोसिला के अधिक विचार, सुनु एरे सजनी ॥ कहत 'महेन्द्र' भरि देखिले नयनवा, सुनु परे सजनी, फेर नहीं जुटी संजोग, सुनु एरे सजनी ॥

देवी सहाय

आप शिवभक्त कवि थे और आपकी रचनाएँ बहुत मधुर हुआ करती थीं। आपको कजली का उदाहरण प्रो० बलदेव उपाध्याय (काशी विश्वविद्यालय) ने 'कजली-कौमुदी' की भूमिका में दिया है। आपको भोजपुरी रचनाएँ प्राप्त नहीं हो सकीं। एक ही उदाहरण मिला-

सोह न तोके पतलून सॉवर-गोरबा कोट, बट जाकेट, पहिनि १२ कमीज क्यों, बने बैलून साँवर-गोरवा ॥ ।

रामवचन द्विवेदी 'अरविन्द'

भाप देवघर-विद्यापीठ के साहित्यालंकार हैं। आप के पिता का नाम पं० रामध्यनन्त द्विवेदी है। आपका जन्म-स्थान दुर्बीली (नीयाजांपुर, शाहाबाद) है। आप हिन्दी की भी कविताएँ लिखने हैं। थाप अपने कई हिन्दी-गद्य-लेखों के लिए पुरस्कृत हो चुके हैं। अपनी भोजपुरी कविता के लिए भी आपको स्वर्ण पदक मिला है। हिन्दी में आपको कई पुस्तकें निकल चुकी है। आपका * गांव के और' नामक भोजपुरी कविता-संग्रह प्रकाशित है।

(1)

लड़ाई के ओर दुसमन देस के दबाने खाती १३

उरु भड्या उरुड अव लडे-भीड़े में तो प्रावत बाटे १४, देर ना लगाई जा५ ॥ हम सगरे१५ प्रसिद्ध बानी७. ई१८ बहादुरी लड़ाई में लाड़ी लोही, सोडा लीहीं, काताओ हाथ में गेंदासा लीीं आगे-आगे हमनी २३ के टोली देस्त्रि घर-धर देखाईजा १९ ॥ कुदारी लीहीं, धाईजा २२ । जग काँपे, पानी में भी आवड श्राज आग धधकाई जा २४ ॥ 

भीम अरजुन दोन हमरे इहाँ के रहन३, हमनी मी भाज महाभारत महाबीर पारथ रधाज्ञा । भीस बनी, हनुमान धीर बनीं, गंभीर बनी, परले मॅचाईजा ॥ तेगा तलवार बान किरिच बन्दूक लेड़, धम-धम-धम-धम रन ओर जाइमा ।। के गिराईजा ॥ सामने जे आवे ऊ तऽ सरग सिधावे बस, ग्रुप-छप रुण्ड-मुण्ड काटि राना परताप बीर सिवाजी वो सेरसाह, झॉसीवाली रानी के तो ध्यान जरा लाईजा ।। लवकुस लङ्कन से सोबी जा बहादुरी वो, अभिमनु जुबक से बिहु तोरि आईजा ।। घोड़ा हहह्नात बाटे, लोहा झझनात बाटे, फहरात बाटे, कट्म बढ़ाई जा ॥ मंदा इंटा मिले, संता मिले, तलवार भाला मिले, जेहि हथियार मिले से हि लेके गंगा से पचीतर सुन्दर सुभूमि वो जमुना से पर दाग ना धाई जा ॥ निरमल, लगाङ्जा ।।

(२)

गाँव के ओर

जाहाँ जाहाँ देखऽ ताहाँ-ताहाँ गाँववासी लोग, डेढ़-डेढ़ चडरा۰ के खिचड़ी एकावता । मेल-जोल के न बात कतहीं देखात बाटेर, सब कोई अपने बेसुरा राग गावला १३ ॥ एक दूसरा के न भलाई सोचतारे १४ कोई, सब कोई अलगे ही डफली बजावता । मेल वो मिलाप देख पाईले १५ जाहाँ भी कहीं, करीले" चुगुलखोरी भाई के लदाईले ॥ दूसरा भाई के जब सुनीले बिधाह-सादी, जहाँ तक बनेला बिधिन ८ पहुँचाईले । अपना कपारे अब परेल । २० विद्याह कभी, घर-घर जाके सिर सबके नवाईले २१ ॥ दूसरा में अस-तस २२ अपना में रथ-अस ३३, चक्षीले मगर नाहीं केह से झूठ के करोले साँच, साँच के तबो हम दुखिया के मुखिया चिन्हाईले २४ ॥ करीले झूठ, कहाईले ॥ 

एक दूसरा के खान-पान के छोड़ावे खाती', ऐबी से पसीना हम चोटी ले चढ़ाई ले । छोट-मोट गाँव बा इमार पर ओकरो में, गोल बधवाके हम सब के सुझाई ले ॥

भिखारी ठाकुर

भोजपुरी के वयोवृद्ध कवि 'भिखारी ठाकुर' पहले शाहाबाद जिले के निवासी थे; पर अब उनका गाँव गंगा के कटाव में पढ़ कर सारन जिले में चला आया है। उनके गाँव का नाम कुतुपुर है। वे महुत कम पढ़े लिखे हैं। लड़कपन में वे गायें चराया करते थे। जब सयाने हुए, तब अपना जातीय पेशा करने लगे हजामत बनाने लगे। वे खड़गपुर (कलकत्ता) जाकर अपने पेशे से जीविका उपार्जन करने लगे। वहीं पर रामलीला देखने से उनके मन में नाटक लिखने और अभिनय करने का उत्साह हुआ। उन्होंने भोजपुरी में 'बिदेसिया' नामक नाटक लिखा। उसका अभिनय इतना लोकप्रिय हुआ कि उसे देखने के लिए हजारों दर्शकों की भीड़ होने लगी। बे खड़गपुर से जगन्नाथपुरी भी गये थे। बहाँ उनके मन में तुलसीकृत रामायण पढ़ने का अनुराग उत्पन्न हुआ। 'रामचरितमानस' को वे नित्य पढ़ा करते थे। उसी ग्रन्थ के बराबर पढ़ते रहने से कविता लिखने की प्रेरखा हुई। उनकी भोजपुरी कविता में अप्रास के साथ श्रृंगार, करुण आदि रसों का अच्छा परिपाक हुआ है। उन्होंने कई नाटक समाज-सुधार-सम्बन्धी भी लिखे हैं। उन्होंने एक नाटक-मण्डलो भो संगठित की है, जिसके आकर्षक अभिनय की धूम भोजपुरी-भाषी जिलों में बहुत अधिक है। भोजपुरी के सुविस्तृत क्षेत्र की जनता पर उनके नाटकों का अद्भुत प्रभाव देखकर अंगरेजी सरकार ने उन्हें रायसाहब की उपाधि दी थी और प्रचार कार्य में भी उनसे सहायता ली थी। राष्ट्रीय सरकार से भी उनको पदक और पुरस्कार मिल चुके हैं। आकाशवाणी में भी उनके अभिनय और गीत बड़े चाव से सुने जाते हैं। भोजपुरी में प्रकाशित उनको रचनाएँ निम्नांकित है- (१) बिदेसिया, (२) भिखारी शंका समाधान, (३) भिखारी चउजुगी, (४) भिखारी जयहिन्द खबर, (५) नाई पुकार, (६) कलियुग बहार, (७) बिरहा बद्दार, (८) यशोदा-सत्री- संवाद, (६) बेटी वियोग, (१०) विधवा-विलाप, (११) हरि-कोतन, (१२) भिखारी भजनमाला, (१३) कलयुग बहार-नाटक, (१४) बारा-बहार, (१५) राधेश्याम बहार, (१६) घोचोर-बहार, (१७) पुत्रवध नाटक, (१८) धोगंग स्नान, (१६) भाई विरोध, (२०) ननद-भौजाई, (२१) नवीन बिरहा, (२३) चौवर्गा पदवी, (२३) युढ़ साला का बयान आदि ।

(१)

छछनवलः ४ जिवरा बावू" मोर, रस के यस मतवाल भइल मन, चढ़ल अधानी ओर ।। दिनो रात कबो कल ना परत बा, गुनत-गुनत होत भोर ।।

छछनवलऽ जिझरा ०॥५॥ बाल-बिरिध एक संग कई दोहल, पयल के छाती वा तोर । कहत 'भिखारी' जवानी काल बा, मदन देत झकझोर ।।

-('बेटी-वियोग' से) 

(२)

२ चलनी के चालल दुलहा सूप के झटकारल है। दिश्रका के लागल बर दुआरे आँवा के पाकल कलडुल दुलहा झाँवा के बाजा बाजल है ।। कारल है। के दागल बकलोलपुर से भागल हे ।। सासु के अखियाँ में अन्हवट १२ आइ के १४ देखऽ आम लेखा" पाकल अइसन बकलोल मठरी २३ लगावल कहत 'भिखारी' छावन है। बर के पान चभुलावल १५ है ।। दुलहा गाँव के निकालल है। वर चटक २० देवा के भावल २२ हे ।। दुलहा जामा पहिरावल है। उवन २४, राम के बनावल २५ हे ।। -('बेटी-बियोग' से)

गवना कराइ २६ 3 संया घर बइठवले से, अपने लोभइले २८ परदेस रे बिदेसिया ।। चदली जवनियाँ बैरन २५ महली ३० हमरी से, के मोरा हरिहें३१ कलेस रे बिदेसिया ।। दिनवों बितेला सड्यों बटिया ३२ जोहत तोर, रतिया बितेला जागि-जागिरे बिदेसिया ।। घरी राति गइले ३३ पहर राति गइले से, घधके करेजवा में चांग रे बिदेसिया ।। अमवाँ मोजरि गइले ३४ लगले टिकोरवा ३५ से, दिन-पर-दिन पियराय ३९ रे एक दिन बहि जइहें जुलमी बाद पात जइहें भहराय ३८ भभहि३९ के चड़ली में अपनी चारों ओर चितवों चिहाइ बिदेसिया ॥ बयरिया ३७ से ।। रे बिदेसिया ।। अॅटरिया से, रे बिदेसिया ॥ 

कतह न देखों रामा सड्यों के सुरतिया से, जियरा गहले मुरझाई (४) रे बिदेसिया ।। - ('बिदेसिया' नाटक से)

मकड्या हो ! तोर गुन गुथवर माला ।1 भ्रात से तरत भव, जावत गरीब लव, भुजा भरि कोरी झारी जहतहुँ खोरी-खारी धन हुऽ धनहरा बाडा खाले लगहर१२ नाडा, सात्-मरचाई-नून खइला७ से सूबेला दारा २० गुर२५ दही मन, कृष्ण कृष्ण कहीं-कही, भुट्टा-भगवान से विमान खास आई जात, पूरा-पूरा पानी दियाला ॥वेक ।। बात बादन बाल गोपाला ।। लॅदा धोनसारी में झोकाला" ।। खून, साधू लेखा रूप बनी जाला ।। मुँहों में मामा २२ बुझाला ३३ ।। मन बैकुण्ठे चलि जाला २४ ।। करत 'भिखारी' खेला सूरदास २५ जइहन मेला, गंगा तीरे बहुत बोझाला ।। मकड्या हो। तोर गुन गुथव माला ॥ - ('भिखारी-भजन-माला' से)

दूधनाथ उपाध्याय

ध्यापका जन्म हरिछपरा (बलिया) में हुआ था। आप 'रामबरितमानस' और बंगला 'कृतबास- रामायण' के बड़े अनुरागी थे। आपके पिता पं० शिवरतन उपाध्याय थे। श्रापने एक बार गोरक्षा क आन्दोलन उठाया था, जिसका प्रबल प्रभाव पेवल बलिया जिले में ही नहीं, अन्य भोजपुरी जिलों में भी पढ़ा था। उन्हीं दिनों आपने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'गो-विलाप छन्दावली' की रचना चार- भागों में की थी। उसकी भाषा ठेठ भोजपुरी है। देहात की जनता में आपकी रचनाएँ बड़ी प्रभाव- शालिनी सिद्ध हुई हैं। आप बड़े अच्छे वक्ता भी थे। आपने 'हरे राम पचीसी', 'हरिहर शतक', 'भरती का गोत', 'गो चिटुकी-प्रकाशिका' आदि पुस्तकों की भी रचना की है। आप सरल, बोल चाल के शब्दों में दुरुह और गहन विषयों को सुन्दरतापूर्वक व्यक्त कर देने में बने प्रवीण थे।

आजि काल्हि २५ गड्या के दसवा १७ के देखि-देखि हाइ हाइ हाइ रे फाटति बाटे छतिया। डकरि-दकरि ढकर ति बाटे राति-दिन, जीभिया निकालि के बोलति बाटे बतिया । ताहू पर हाइ निरदड्या २५ गड्या का लोह से रंगत अगवाँ ३२ के दुख-दुरदसवा ३३ कोटि जुग नियर ४ बीतति हतत ३० बाटे, था धरतिया । के सोचि-सोच्चि, बाटे रतिया ।।१।। 

हमनी का सब केह गड्या का दुखवा के, तनिको तिरिनबो नियर ना गनत बानी। रात-दिन कठिन-कठिन दुस्त देखि-देखि भागा-पाड़ा बतिया के कुछुना सोचत बानी ।। आजि-काल्हि हम खहला-पहला बिनु मूचतानी, अगवाँ त एडु से कठिन दुख देखतानी । सिरी रघुनाथ जी हरहु दुस्ख गड्या के, हमनी का दुख के समुन्दर डूबत बानो ॥२॥

माधव शुक्ल

१० माधव शुक्ल हिन्दी के प्रतिष्ठित कवि थे। आप प्रयाग के निवासी थे। आपका पूरा परिचय 'कविता-कौमुदी' के दूसरे भाग में छुपा है। आपके पिता का नाम पं० रामचन्द्र शुक्ल था। आप वीर रत के अन्ले अभिनेता थे। आपकी भोजपुरी में इलाहाबाद की बोली की झलक है। आपके 'महाभारत' नाटक (पूर्वार्द्ध) में एक भोजपुरी सोहर मिला है। वह नीचे दिया जाता है-

सोहर

जुग जुग जीवें तोरे ललना, भुलायें रानी पलना, जगत सुख पावई हो । बनै नित अनन्द बधैया, जिये पाँचौ भैया, हमन कहें मानई हो । धन धन कुन्ती तोरी कोख, सराह सब लोक, सुमन बरसावई १२ हो । दिन दिन फूलरानी फूलें, दुआरे हाथी फूलें, सगुन जग गावई हो ।

राय देवीप्रसाद 'पूर्ण'

आपका पूराणे परिचय 'कविता कौमुदर्श' (भाग द्वितीय) में प्रकाशित है। आप कानपुर के निवासी बड़े प्रसिद्ध वकील और हिन्दी के यशस्वी सुकवि थे। आप स्वनामधन्य आचार्य महावीर- प्रसाद द्विवेदी के परम मित्र थे। आपकी एक भोजपुरी रचना 'कविता कौमुदी' के दूसरे भाग से यहाँ दी जाती है। इसमें उत्तर-प्रदेश की भोजपुरी का पुट है-

बिरहा

अच्छे-अच्छे कुछवा बीन रे मलिनियाँ १५ गूँधि लाव नीको-नीको" कुलन को हरवा गोरी गरे१७ इरिहाँ १८ सेजिया माँ होय रे द्वार। बहार ॥ हरिभजना करु गौने के साज ॥ डोलत बयार । खार ।। बैत मास की सीतल चाँदनी रसे-रसे २० गोरिया डोलावे बीजना रे पिय के गरे हरिभजना - पिय के गरे बाहीं बार ।। 

बागन माँ कचनरवा फूले बन टेसुआ रहे छाय । सेजिया पे फूल करत रे जबही हॅसि-हँसि गोरी बतराय २ ॥

हरिभजना-हंसि-हंसि गोरी बतराय ।

हरिभजना-गोरिया का लावहुँ लेवाय ॥

कोड रे पहिनै मोनियन माला, फोड रे नौतगा हार ।। गोरिया सलोनी में करी रे अपने गरे का हार ॥

हार ॥ हरिभजना - अपने गरे का

आमन कृकै कोइ‌लिया सेजिया बोले गोरिया सोर । रे मोरवा करत बन रे सुनि हुलसै" जिय मोर ॥

काहे का बिलाहौ१२ रंग होरी के दिनन माँ गोरी पिचकरिया काडे घरी अविरा१७ मैगाय ॥ के तन माँ रंग रस दुगुन दिखाय ॥

हरिभजना-सुनि हुलसे जिय मोर ॥

हरिभजना-रेंग रस दुगुन दिखाय ॥

बरिया अवहीं बुलावहु कहार । अबहीं बुलाबी नौवार गोरी के गवन की साइति आई करि जाउ डोलिया तयार ॥ हरिभजना-करि लाउ डोलिमा तयार ॥

शायर मारकण्डे

मारकराटेजी ब्राह्मण थे। बनारस के सोनारपुरा मुहल्ले में शिवालाघाट के रहनेवाले थे। आपने नृत्य कला में काफने ख्याति प्राप्त की थी। आपकी कजलियाँ मशहूर थी। आपने विदूषकः मण्डली भी कायम कर ली थी। आपके अस्त्राचे की शिष्य-परंपरा अब भो है। मन्, ११:४० ई० में हुई थी। आपकी कविता की भाषा बनारसी भोजपुरी है। आपको मृत्यु

(1)

कजली

चरखा मॅगड्‌य१८ हम, सड्याँ से रिरिश्रायके, अलईपुरा २० पठायके ना । काते रॉद पड़ोसिन घर में, संझा-सुबह और दोपहर में, हमको लजवावे गान्धी की बात सुनायके, ऊँच नीच समुझायके ना ।। हमह कातब कल से चरखा एक मँगाय के, रुई घर धुनवाय के ना कात, मानव गान्धी जी की बात ।। पहिब, २३ आपन मृत स्वदेशी गोड्याँ २२ वी सून चरखा रोज बिनबाय २४ के. चलाय के ना ।। 

कृरता लबकन के सीअड्चे, बाकी सक्ष्यों के पहिरइये । अपनी धोती पहनथ धानी रंग रंगाय के चलब फिर अठलायके ना ।। केह तरह बिताइय आज, कल से हमहू लेब मुराज । कजरी 'मारकण्डे' को गाय, पीउनी घरे बनाय के ना ॥

(২)

का सुनाई हम भूडोल के चयनवा ना। हो बयनवा ना, हो बयनदाँ ना ।। टेक ।। जबकी श्रायल तो भूडोल, गैल पृथ्वी जो डोल । होले लागत सारे सहर के मरुनवाँ ना ।। जेहिया अमावस के मान, रहलें कुम्भ के असनान । वोही रोज पापी आायल तूफनवा ना ।। करके आयल हर-हर-हर, गिरल केतनन के घर । जबकी डोल गइले घर औ अगनवाँ ना ।। सहर दरभंगा अडर मुंगेर, भइले मुजफ्फरपुर में ढेर । चौपट कइलस लेके अनगिनती मकनाँ ना ।। मिली काहे के मिजाज कहत 'मारकण्डे' महराज । अब तो आय गइले हे सत्री ! सवनवाँ १ ना ।।

रामाजी

आप सारन जिले के ग्राम सरेयों (डा० हुनेनगंज, थाना सिवान) के रहनेवाले सन्त गृहस्थ कवि थे। आप राम के बड़े भक्त थे। तमाम घूम घूम कर रामजी का कीर्त्तन किया करते थे। आपकी रचना भोजपुरी और खदोबोली दोनों में हुआ करती थी। सन् १६२६-३० ई० में आपके संकीर्तन की बढ़ी धूम थी। आपकी मृत्यु ३० श्रीर ४० ई० के बीच कभी हुई। 'कल्याण' के 'सन्त अंक' में आपका जिक्र किया गया है। आपकी कुछ रचनाओं में अवधी भोजपुरी का मिश्रण है। 'श्री रामजन्म बधैया', और 'सीताराम विवाइ-संकीर्तन' । नामक पुस्तिका से निम्नलिखित गीत उद्धृत किये जाते हैं-

(۹)

सोहर

मचिया १२ बैडल रानी कोसिला बालक मुँह निरखेली है। ललना मेरा बेटा प्रान के आधार नमन बोच राखबि१४ है ।। कोसिला का मैले श्री रामचन्द्र, केकई का भरत १५ नु हे। जलना लडुमन-सत्रुहन सुमित्रा गाई १६ के गोबर संगाइ के, का, घर-घर सोहर हे ॥ अगना लिपाइल है। 

क्षक्षना गज मोती चौका पुर'इल, कलसा धराइल हे ॥ पनवा ऐसन बबुआ पातर सुपरिय. ऐसन दुरदुर है। क्षलना फुलवा ऐसन सुकुमार, चन्दनवा ऐसन गमकेला हे ॥ 'रमा' जनन के सोहर गावेले गाई के सुनावेले हे। खलना जुगजुग बादे एहवात परम फल पावेले हे ॥

(२)

तिलक-मङ्गल-गान

भाजु अवधपुर तिलक अइले ॥ टेक ॥ पाँच बीरा १२ पान, पच्चीस सुपारी, देत दुलहकर हाथ ।। पीतरंग धोती जनक पुरोहित, पहिरावत हरषात १४। बौका चन्दन पुरि बैठे सुन्दर दुलड़ा, सबमें सुन्दर रघुनाथ ॥ साल दोसाली जड़ित कनकमनि, बसन बरनी नाहिं जात । कान में कनक के कुण्डल सोभे, कोटमुकुट सोने माथ ।। नःरयल चन्दन मंगल के मूल, देत असर्फि सुहाय । दही पान लेई जनक पुरोहित, तिलक देत मुमकात ।। देवगन देखि रुमन बरसावत हर्ष न हृदय समाय। 'राम' जन यह तिलक गावे, विधि बरनी नहीं जाय ।।

धंचरीक

'चंचरीकजी' भैंसाबाजार (गोरखपुर) के रहनेवाले हैं। सका। आपको रचो हुई 'माम गांत जलि' नामक हुस्तक का हितेषी प्रिंटिंग मर्क्स (बनारस) द्वार। सन् १६३५ ई० में छपो थी। इसमें राजनीतिक जागृति के विभिन्न विषयों के झाम गोत हैं। गाली भादि सभी तरह के गीत इस है। आपने इन गीतों को तक की अवधि में की थी। इस पुस्तक का परिचय लिखते हुए पं० आपका पूरा नाम ज्ञात नहीं हो द्वितीय संस्करया मिला है। यह यः पुस्तक २०० पृष्ठों की है। सोहर, भूमर, जैतसार, विवाह, रचना सन् १८२५ से १६३२ ई० रामनरेश त्रिपाठी ने आपकी बदी प्रशंसा की है। इस शुस्तक के सम्बन्ध में देश के महान् नेताओं ने भो प्रशंसात्मक सम्मति प्रकट की है।

चचरीक जो ने अपने गीतों के विषय में स्वयं लिखा है- 'मैंने प्रथम संस्करण के प्रकाशित होने के पहने इस 'गीत ज.ल' के दो चार गीत नमूने के तौर पर महामना पं० मदनमोहन मालवीय और श्रद्धेय डा० भगवानदास जी को सुनाय थे, जिन्हें सुनकर मालीयजी का गला करुणा के मारे भर आया। पर, श्रीभगवान दास जो तो इने सम्हाल नहीं सकें। अनेक व्यक्तियों के सामने उनको ऑलों से सावन भादो की कथी लग गई। मेरी भी आंखें डबडबा आई। श्रद्धेय भगवानदासजो ने खुले तौर पर कहा कि जो इस गु के इन गीतों में मिला, वः बड़े काष्यों में भी नहीं मिला।' 

(1)

सोहर

जेहि घर जनमे ललनवाँ त ओहि घर धनिधनि हो। रामा, धनि-धनि कुल-परिवार, त धनिधनि लोग सब हो ।। बसवा के जरिया जनमई बॉस तऽ रेबवा के रेब जनम हो । रामा, देवी कोस्त्रियः जनमें देवावा, त देखा के कम अवई हो ।। होनहर बिरवा के पतवा चीकन भल लागई हो। रामा, पुतवा के भोइस ललनवा निरखि मन देहु-देहु सस्त्रिया असीस, ललन हुँवा रामा, गोदिया में लेइ लपट वडु, भारत जननी के बनिहुँ संवकवा, त बिदसत हो ।। चूमद हो। जुबावहु हो ।। मोर पूत होइहूँ हो। रामा, अस पूत जुग जुग जीये तहरे इम असीसत हो ।।

()

साहर

कोसिना के गोदिया में राम, कन्या जसोदा के हो ॥ रामा, साँवर बरन भगान, त पिर। के भार हरले हो ।। जननी के कोखिया में मोती १२, तिलक, लाला, देसबन्धु हो । रामा, गाँधी बावा, बल्लभ, जवाहिर तऽ देसवा के भाग जगजे हो ॥ कमला, सरोजनि १८, अस देवो, तऽ घर-घर जनमइ हो । रामा, राखि लिहली देसवा के लाजि, तऽ धनिधनि जग भइने " हो ।। बहुअ.२२० के कोलिया में सतति, भोइसहि २१ जनसहि हो ।। रामा, कुल होखे अब उजियः२२२, बधड्या २३ भल बाजइ हो ।। धनि-धनि बहुअरि भगिया २४ तऽ स अनमय सतति हो । रामा, देखि देखि पुतवा के मुहवा, तऽ हियर। २५ उमड़ आइ हो ।।

मन्नन द्विवेदी 'गजपुरी'

श्रोमशन द्विवेदी का जन्म स्थान गजपुर (पो बाँसगाँन, गोरखपुर) था। आपके पिता हिन्दो के कवि पं. मातादीन द्विवेदी थे। गजपुरोजी हिन्दी के अछे कवि थे। आप भोजपुरी के मी बड़े सुन्दर कवि थे। आप भोजपुरी रचनाएँ 'मोदर नाथ' के उपनाम से लिखा करते थे। आपके जोगीका गीत भी बहुत प्रसिद्ध थे। आपको 'सरवरिया' नामक भोजपुरी क वता पुस्तक आई सो एस्. परोच्चा के पाठ्य क्रम में थी। आपका परिचय कविता श्रीमुरी के द्विशेय भाग में प्रकाशित है।

(1)

खुब्यो २३ फुलाइल बा सरसो चोदले बाटे सेमर लाल तुलाई २८ । बारी२९ में कोडलि३० बोलनिश्चा, महुच के दर देन सुनाई ।। 

के मोरा झाँझ मृदंग बजाई आ के संग मूमिकें झूमरि गाई। के पिचकारी चला-चला मारी झा के अंगना में अबीर उबाई ।।

(२)

आवडईत घर आपन या का दुधारे खड़ा हो संकोचल बाटऽ । का घर के सुध भवतिभा वा सम्हिया से लदा होके सोचत बाटऽ ।। मान जा बात हमार कन्हैया चल हमरे घर भीतर आহৎ नींद अकेले न श्रावतिभा कहनी कहिहऽ कुछ गीत सुनावऽ ।।

(३)

काटि कसइली मिलाइ के चूना तहाँ हम बैठि के पान लगाइब ।। फागुन में जो लगी गरमी तोहके अचरा से बयार दुलाइव ।। बादर जो १२ बरसे लगिहें तोहसे बहुरू १३ घरवा में बन्हाइय४। भीजि के फागुन के वरखा तोहके इस गाके मतार सुनाइव ।।

जाये के कइसे कहीं परदेसी चीटी लिखा के तुरन्त परुइड चार महीना घरे रहिहऽ२४ रहऽ भर फागुन १८ चइत में जइह९२० ।। तिलाक २१ १८२२ जो हमके भुलवहरुऽ२३ । बरसाइत २५ का पहिले चलि अइहरु ।। बानी दुपट्टा भोड़ा हमके हुँ २६ सावन में सुलुझा फुलबहरुः ।।*

(४)

सरदार हरिहर सिंह

आप चौगाई (शाहाबाद) के निवासी हैं। आपने सन् १६२१ ई० के आन्दोलन में असहयोग किया था। तब से आज तक काँगरेस के सेवक रहे। दो बार विधान सभा के सदस्य रह चुके हैं। आपकी भोजपुरी रचनाएँ सुन्दर होती है। राष्ट्रीय कविता सुन्दर लिखते हैं। आपके कई राष्ट्रीय गीत जन-आन्दोलन के समय भोजपुरी जिलों में खूब प्रचलित थे।

(1)

महात्मा गांधी के प्रति

धीरे बहु धीरे बहु पछुआा ३७येअरिया २८

घमवा २९ से बद्री ३० करहु रखवरिया ३१

जुग जुग जोहे जेहि जगत पुरातन

धरती पर उतरेला पुरुप सनातन

नाहीं बढ़ ए३९ संख-चक, नाहीं गदाधारी

नाहीं हडवे३३ दसरथ-सुत धनुधारी,

कान् ३४०८ पील नाहीं, मुरली अधर नाहीं 

साक्य रजपूत नाहीं, बनल भिखारी । अबकी अजय रूप घइले गिरधारी ॥

(२)

राष्ट्रीय गीत

चलु भैया चलु आजु समे जन हिलिमिति सूतल जे भारत के भाई के अगाईजा ।।१।। अमर के कीरति, बबाई दादा के अरसिंह के, गाइ-गाइ चलु सूतल जाति के जगाईंजा ॥२॥ देसवा के बासिन में नया जोस भरि-भरि, मुलुक में अजु नया लहर चलाईजा ॥३॥ मियाँ, सिख, हिन्दू, जैन, पारसी, कृस्ताम मिलि, खूनवा के बदला चुकाईजा सात हो समुन्दर पार टापू में फिरंगी १० रहे, उन्हका के चलु उनका घरे पहुँचाङ्जा १२ ।।५।। गोधा अइसन जोगी भैया जेहल लाजपत के में परल१४ बाटे, ॥७॥ मिलि-जुल चलु भाजु गाँधी के छोबाईजा ॥६॥ दुनिया में केकर जोर गाँधी के जेहल राखे, तीस कोटि१६ बीच चलु श्रांगया लगाइजा१७ ॥৩৷৷ ओडी अगिया जरे मैया जुलुमी फिरंगिया से, उन्हुका के जारि फिर रामराज साईजा ॥८॥ गांधी के चरनवा के मनवा में धियान धरि, असहयोग-बत चलु भाजु सफल बनाईजा ।।६।। बधवा का पंजवा में माई हो परल बाड़ो, २० चलु बाघ मारि आजु माई के छोबाईजा ॥१०॥ बिपति के मारल भई पदल जा बेहोस होके, भाई दुखते-खा तर चलु गरदन कटाईजा ।।११।। राज निहले ३२ पाट लिइत्ते धरम के नास कइले, चलु अब फिर निया से इजति बचाइजा ॥१२॥ तीस कोटि आदमी के देवता २३ जेहल राखे, उम्दुका के चलु ओकर २४ मजवा २५ वखाईजा ।।१३।।

परमहंस राय

आप 'हरप्रसादास जैन-कॉलेज' (आरा) के बाणिज्य विभाग के अध्यक्ष हैं। आप शाहाबाद

जिले के बलबांध ग्राम (सेमराँव, पोरो) के निवासी हैं। आपकी रचनाएँ बबी सुन्दर होती है। 

आप संस्कृत और हिन्दों के छन्दों में भोजपुरी कविता लिखने के अभ्यस्त है। आपके कविता पाठ का ढंग इतना सुन्दर, मधुर और सरस है कि सुनकर श्रोता मुग्ध हो जाते हैं। आप शाहाबाद जिला-भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष हो चुके हैं। आप विदेश यात्रा भी कर चुके हैं।

गाँव के ओर

चीं जा आाज गाँव के किनार में किछार में। खेरारी बॅट मटर से भरल-पूरत बधार में ॥

पहिनजे बाटे तोरिया बसतो रंग चुनरिया । गुलाबी रंग सटर फूल सोभेला उचकि-उचकिर के तासां रंग चोलिया सटल खेसारी नील रंग लहगवा किनरिया" ।। लजात बा। सोहात था ।। संग में। था ।। बइठ । ई गोर-गोर गडुमवा सत्ररका बँट उत्तान डोके हिलन देखि नयनवा जुड़ त कुमः रु यस पेड़ के उपरको २० डाल पर

ई लालकंठ दूर से न तनिक २२ हूँ चिन्हात २७ वः ॥ इहाँ उहाँ बबूल अदि पेंद के अलोत में। ऊ लीन्न गाइ चौंकि भागि खेत ओर जाति था ।।

जहाँ-तहाँ सियार घूमि कनस्त्री से निहारि के। न जाने कहाँ पलक मारते में ही परात २५ था।

ई कान्ह २७ पर टिकास ३८ भर के गोल-गोल बाँस रात्रि । फाग में बसत छःदि चैत राग छेबजे बा ॥ ऊ काम-धाम छोदि बांनि-बीनि श्राम के एक सुर से कूकू काह कोइ‌लिया के बहार फगुन ६८३० के बा लुटाति था इ धन्य बा देहात रे अगाध प्रेम टिधेर ३९ । चिढ़वजे वा ॥ जवानिया। नैहरा ॥

महेन्द्र शास्त्री

चाप छपरा जिने के रहनेवाले संस्कृत के विद्वान् हैं। सारन जिला-हिन्दी साहित्य सम्मेलन के आप प्रमुख कार्य्य कर्ता है। आप भोजपुरी के नये प्रेमी और कवि है। आपकी एक काव्य पुस्तिका 'आज की आवाज' नाम से प्रकाशित हुई है। इसमें आपकी भोजपुरी और हिन्दी रचनाओं का संग्रह है। 'आज की आवाज में कुछ भोजपुरी रचनाएँ उद्धृत की जाती हैं- 

इहे बाबू भैया

कमैया हमार चाट जाता, इहे बासू-मैया३ ।। जेकरा आगा ओंको फीका, ऐसन ई कलैया तूहल जाता खुनो जेकर ऐसन इसनी गैया ॥ झंडा-बच्चा, मरद-मेहर दिन-दिन भर खटेया", तेहू" पर ना पेट भरे चूस लेना चैया १२ ॥ एकरा बाटे गद्दा-गद्दी इमनी का चटैया, एकरा बाटे कोठा-कोठी, हमनी का मबैग ।। जाबो 'उ ऊनी, एकरा साहूँ के१४ मलैया, हमनी का रात भर खेलाइले ५ जबैया ॥

रामविचार पाण्डेय

आप बलिया के भोजपुरी कनिरत्न है। आपकी भोजपुरी जिलों में बढ़ो ख्याति है। बलिया में आप डॉक्टर हैं। आपने के अरर्तिद' नामक नाटक भोजपुरी में लिखा है। यः नाटक बहुत सुन्दर और रंगमंच के लायक है। आपको भाषा ठेठ भोजपुरी और मुहावरेदार है। आधुनिक भोजपुरी कवियों में आपका स्थान बहुत ऊँचा है। कविता पाठ से आप श्रेताओं को मंत्र मुग्ध कर देते हैं।

अॅजोरिया

टिसुना जागलि सिरा किसुना १८ के देखे के तड भाधा रनिये राधा उठि अइली गुरिया ॥ निश्वर २० मुँह चमकेला राधका जी के चम चम चमकेले जरी के चुनरिया ।। चकमक प्रक्रम क लहरि उठावे श्रोमें२१ चान मधुरे मधुर डोले कान के सुनन्यिा ३२ ।। चिहइले २५ कि अंजोरिया २५ ॥१॥ कन्हैया जी गोखुला २७ के लोग एहि २४ देखि के राति में अमावसा के उगली फूल के सेजरिया पर सूतल ३७ सपना देखेले कि जरत २८ दुपहरिया । ओकरे ३९ में हमरा के राधिका खोजत बादी पेड़ नइखे रुख३१ नइखे जरत बा कगरिया ३२ ।। कहतादी अधावा कृष्णा ! धावा कृष्ण ! आजा-भाजा हमके देखा दऽ तनो गोजुला नगरिया ॥ 

अइली राधे । अइर्शी राधे ।' कहि जे उठले तऽ एने फूलल कमल, भोनेर चढ़ल अॅजोरिया ॥२॥ हमके बोलाजीतू तँ अइलू हा कइसे हो बदी राधा । सावनि चदलि बा अन्हरिया ।। कंसवा के राकस गोतुला में कये-कबे घूमत बदवार যাই होति बादे चोरिया ।: भोराव जनि गोबधरिया १२ ॥ बसल बाड़ऽ १४ सभ के ठगे लऽ७ कृष्णा | हमके हाथ इम जोरीले करीले हृदया में जेकरा 3 सऽ तूं ही ओकरा १५ खातिर ई१५ अन्हरिया का अंजोरिया ॥३॥

प्रसिद्धनारायण सिह

आप चितबबा गाँव (बलिया) के निवासी हैं। आपका जन्म वि० सं० १६६० में हुआ था। आपके पिता का नाम बाबू जगमोहन सिंह था। आप इस समय बलिया के एक प्रतिष्ठित मुख्तार और विनम्र जन-सेवक है। विद्यार्थि जीवन से हो आपको कविता से अनुराग है। देश के स्वतन्त्रता संग्राम में आपको दो बार कठोर कारावास का दंड मिला। सन् ४२ की कान्ति के महान् बलिदानों का वर्णन करते हुए आप ने 'बलिया बलिहार' नामक काव्य ग्रन्थ की रचना की है। यह भोजपुरी काव्य का अनूठा अन्ध है। आपको भोजपुरी कवित. एँ बड़ी ओजस्विनी और भक्तिपूर्ण है। इस प्रन्थ को भूमिका कवि को श्रद्धाजलि के रूप में इस प्रकार है-

श्रद्धांजलि

लुटा दिहल परान १९ जे, २० मिटा दिहल निसान ३१ जे । घड़ा के सीस देस के, बना दिहल महान जे ॥५॥ जने-जने जगा गइल २२, नया नसा पिला गइल। जला-जला सरीर के, स्वदेस जगमगा गद्दल ॥२॥ पहाद तोदि तोकि के, नदी के धारि मोबि के। सुधर डहरि २३ यना गइल, जे कॉट-कुस २४ कोदि २५ के ।।३।। कराल क्रान्ति ला गइल, २६ ब्रिटेन के हिला गइल। बिहसि के देस के धजा गगन में जे खिला गइल ।।४।। अमर समर में सो गइल, कलकफ-पंक धो गइल। लह के बंद-बंद में, विजय के बोज बा२८ गइल ॥५॥ ऊ बीज मुस्करा उडल, पनवि के गहगद्दा उठल । बिनास का विकास में, वसंत लहलहा उठल ।।६।। 

कलो-कक्षी फुला गइलि, गली-गली सुहा गहति । सहीद का समाधि पर, स्वतंत्रता लुभा गइलि ॥७॥ चुनल ३ सुमन संवारि के, सनेह-दीप बारि के। चीं, उतारे आरती, सहीद का मज्ञारि के ॥८॥

(२)

विद्रोह

भइ‌ति । भइ‌ति ॥१॥ चलल । चलल ॥२॥ भइल । जब सन्तावनि के रारि भइ‌ति, बीरन के बीर पुकार बलिया का 'मंगल पां३७ के, बलिबेदी मे ललकार 'मंगल' मस्ती में चूर चलल, पहिला बागी मराहूर गोरन का पल-नि का आगे, बलिया के बाँका शूर गोली के तुरत निसान महल, जनन। के मेंट परान आजादी का बलिोदो पर, 'मंगल पांडे' बलिदान भद्दल ॥३॥ जब चिता-राख चिनगारी से, भुभुकत" तनिकी १२ अंगारी मे। सोला 13 नकलल, धधकल, फइलल, बलिया का कान्ति पुजारी ये ॥शा घर-घर में ऐसन आगि लगति, भारत के सूतल भागि जगलि । अगरेजन के पलटनि सगरी, १६ चैरक वैरक में भागि चलि ॥५॥ बिगड़लि बागी पलटनि काली, १८ जब चललि ठोकि आगे तालो १९ । मचि गइल रारि, पदि गइलि३० स्याह, गोरन के गालन के लाली ।।६।। भोजपुर के तप्दा २१ जाग चत्तल, मस्तो में गावत राग चलल । बांका सेनानी कुंवर सिंह, आगे फहरावत पाग२३ चलल ॥७॥ टोली चदि चलल जवानन के, मद में मातल मरदानन २३ के । भरि गहल बहादुर बागिन से, कोना-कोना मयदानन २४ के ।।८।। ऐसन सेना सैलानी ले, दीवानी मस्त तूफानी ले । आइल रन २५ में रिपु का आगे, जब कुंवर सिंह सेनानी से २५ ॥६॥ लच-वच खंजर तरुवारि चललि. सगोन, कृरान, कटारि चललि । बर्दी, बड़ों का बरखा मे, बहि हुरत लहू के धारि चललि ।।१०।। बन्दूक दगलि दन्दनन्दनन्, गोली दउरलि २८ सन्-सनन् सनन् । भाला, बब्लम, २५ तेगा, तब्बर, ३० बजि उरुल उहाँ ३१ खन्-खनन् खनन् ।।११।। खउलल ३२ तब खून किसानन के जागल जब जोश जवानन के। शुक्का छूटल अंगरेजनि के, गोरे-गोरे कपतानन के ॥१२॥ बागी सेना ललकार चललि, पटना-दिल्ली ले ३३ झारि ३४ चलति । श्रागे जे आइल राह रोके, रन में उनके सहारि चलति ।।१३।। बैरी के धीरज छूटि गइल, जनु३ बड़ा पाप के फुटि गइल। रन से सब सेना भागि चललि, हर ओर मोरवा टूटि गहल १४।।।। 

तनिकी-सा दूर किनार रहल, भारत के बेड़ा पार रहल। लउकत खूनी दरियाव पार, मंजलि के छोर हमार रहल ।।१५।।

(2)

बापू के अन्तिम दर्शन

दुखियन के तन-मन-प्रान चलल । अब तीस जनवरी जाति रहलि, सुक" के संझा सुसुकाति रहलि । दिल्ली में मंगी बस्ती के, धरती मन में अगराति जन-जन पूजा-मयदान रहलि ॥

तनिकी बापू के देरि१० भइलि, पूजा में अधिक अवेरि१२ भइलि । शक्लाइति भों खि हजारनि गोउबिछि राह बीच बहुयेरिङ्गइलि ।। तब भक्तन के भगवान चलल ॥२॥

तबले पग पहिला सोदी पार चलल, पापी का नीत्र नमस्ते पर, हरिपद में लागल ध्यान चलल ॥५॥ नाथ २० हतिभार ११ चलल । बापू के प्यार दुलार चलल ॥

बजि पाँच सुई कुछ घूमि चललि, १५ बदरी जब लाली चूमि चललि । तब छितिज छोर से विपति-नटी, जग-रंगमंच पर कूमि चललि ।। साधु तहाँ सइतान" चलल । ३।।

बनि चुप चरन मंच का ओर चलल, नंगा फकीर चितचोर चलल। पूजा का सान्ति सरोवर में, छन में आनन्द हिलोर चलत ॥ अनमोल मधुर मुसुकान चलल ॥४॥

नतिनिन १७ पर दनों हाथ रहल, चप्पल में दूनों लात रहल । धपधप धोती, चमचम चसमा, चहर में लिपटल गात रहल ।।

बनि लाल नील असमान चलल ॥६॥ उठि माथ गइल अहलादन में । जमवृत बदल आगे छन में ॥ पिस्टल के साधि निसान बलल ॥७॥ जुटि हाथ गइल अभिवादन में, अपना छाती के बजर बना

तन सीदी पर आसीन रहल। बलि-बकरा बधिक अधीन रहल ॥ मन राम नाम में लीन रहल, मनु-मंदिर में बलिवेदी पर,

कड़ि राम, सरग२२ में प्रान चलन ॥८॥ दुखियन के दीन दयाल चलल । भारत-भीतर मुंइचाल३३ बलल ॥ जननी के जीवन लाल चलल, थर-थर-थर धरती कॉपि उठलि,

जन-जन पर बिस के ग्रान चलन ॥६॥ जग जेकर प्रेम-समाज रहल, चिन ताम सदा सिरताज रहल। सुट्टी-भर हड्डी में जेकर २४, कोटिन के लिपटल २५ लाज रहल ॥ सब के मन के अरमान चलल ॥१०॥ 

ऊ एक अकेल अनन्त रहल, ऊ आदि रहल, उ अन्त रहल । सिख, हिन्दू, मुसलिम, ईसाई, अवज्ञा, ईसा भगवा रहल ।। सब के संगम असयान चलल ॥११

शिवप्रसाद मिश्र 'रुद्र' या 'गुरु बनारसी'

आप काशी के रहनेवाने हैं। आप ए५० ए० पास है और दैनिक 'सन्मार्ग' के सम्पादक रह चुके हैं। इसके पूर्व आप कई पत्रों का सम्पादन कर चुके हैं। आजकल हरिश्चन्द्र कालेज (काशी) में हिन्दी के प्रोफेसर हैं। आप हिन्दी और भोजपुरी में कविता बहुत सुन्दर करते हैं। आपकी भोजपुरी रचनाएँ 'तरंग' आदि पत्रिकाओं में काफी प्रकाशित है। आप उदू के अन्दों में भी भोजपुरी रचना करते हैं। आप हास्य रस की रचना भी बहुत सुन्दर करते हैं। आपकी भोजपुरी कविता को सबसे बड़ी खूबी यह है कि उसकी भाषा, या शैली पर हिन्दा का प्रभाव नहीं दिखाई पकता। वह अपना प्रकृत रूप आयोपान्त बनाये रहती है-

(१)

तांडव नृत्य

सुरुज करोर गुन तेज पाय फूल २ गैल चमक प्रिसूल गैल सैल पर चम-चम । उद्दल जटाक जाल, गजखालऊ पुओं अस कृों अस धरती धसक गड्त धम्म-धम्म ॥ टुटल अकास, अउर जुटल समुन्द्र सात फुटल पहाड़ हाद चुरचुर धम्म धम्म । उम्म-डग्म दमरु दमक गैल चारों ओर सोर भैल घोर हर हर-हर

X X लगलिन झाँ के सत्र देवी देउता के संग भंग के तरंग रंग आज कुछ चोखा बाय। लाखन बरिस के बाद देखख तमासा हूं, झासा ई लगाय यरछे किनेर १० पुकार कीने दूर-दूर देखे, पास झाँकत झरोखा बाय । के ई बतावल हौ जाये जिन धोखा बाय । ताकतर सुरेख बाट, भागत गनेस बांट, नाचत महेस बाटे भेस ई अनोखा बाय ॥२॥

(२) लाचारी

न रखियं रमउली४, न अखिये 'गुरु' जिनगी कऽ मजा कुछ न कों१८ रामकऽ नाँव लेहली २० न रामा२१ क सूरत स्थली२२ लड़उली १५ । पडली७ ।। न मन में ॥ नयन में ।॥ 

भवन में म रही, बिहरीन बन में। न मेले में अमलीं, न रमीं हो रम में ।॥ हमेसा बात 'गुरु' जिनगीकड मार के मन बितउलीं ।॥ मजा न पडलों ॥ सबेला २ रहल न. तबेले में रहली । मिलल चार जब जौन तब तौन बहीं । न सुनीं केहू कऽ केहू केहू के सतउती, केहके न के न कहलीं । सहली ॥ न टीकै लगीं, न टीकै गढ़उल्ली । 'गुरु' जिनगीक मजा न पडी ।।

डा० शिवदत्त श्रीवास्तव 'सुमित्र'

आपका जन्म संवत् वि० १६६३ में हुआ। आप बलिया जिले के 'शेर' ग्राम के रहनेवाले हैं। आपके जोवन का अधिक समय बिहार में ही व्यतीत हुआ है। आप इस समय बांसडीद्ध तहसील (बलिया) में डाक्टरां कर रहे हैं। आप खड़ी और भोजपुरी दोनों ही बोलियों में कविता करते हैं। आपको कविताएं अधिकतर हास्यरस और स्वतंत्र विचार की होती हैं कवि सब के अस इमति भारी, बेला ढोवत फिरसु उधारी ।

परम स्वतंत्र न पढ़ले पिंगल, झण्डी लाल तो डाउन सिंगल । अस सुराज इ लिहलसि चखां, घूसखोरी के कइलसि बर्सा कृषि विभाग अस मिलते दानी, सरगो के दिहले १२ एक तो लिहले सावा, बोवते कालिज में जब गहले बच्चा, अटके ले-बित ने पानी धान तो कूटल लावा १४ बाहर गोल्डेन घड़ो कलाई, देला १८ फोरसु घर पर भाई । लागत घर के सतुआ चाहनु आवे सहरी लेके घूमी बहरी-बहरी । एक के तानि बढ़ाई, कीनसु२१ सीजर २२ कालिज के जे अइली दासी २३, दोहली सासु के लजि चोकर भो अबरा२४ रोटी, घसकल २५ अवरा करमु उपाय नर्स बनेको, जादि मरद बहु, और सलाई । पहिले फाँसी । लटकल ३५ चोटी । पूत न एको । डाक्टर फर के२७ देसु दबाई, दिन दिन भइलो नित मूई ले सूत घामा २८, असरा २२ में की होबि जस-जब सूई काखसि धावा, तासु दुगिन ३२ चदि रोग दवावा । अब रंग-रूप बदलता बीबी, मुंह से खून गिरवलसि३३ टी० बी० । खटाई । गामा ३१ । 

परत-परल अब ताकम् खिहीं, मुसर से पचि, भड्क्षी सिकौं । आखिर बकरी अइक्ष दुआरी, फरल सि पतलुन सिंघ घुसारी' ।

वसुनायक सिह

भाप 'आामी' (सारन) के निवासी थे। पुलिस में नौकरी करके आपने पेनशन पाई थी। अपने अन्तिम दिनों में आपने कविता करना प्रारम्भ किया। आप ब्रज भाषा में भी रचना करते थे । बालकाण्ड रामायण का आपने भोजपुरी में पद्यानुवाद किया था जो हवदा (कलकत्ता) के किसी प्रेस से प्रकाशित हुआ था।

कवित्त पुलिस के नोकरी करत से करत नाहीं, मानों महराज के बेटा हवे" लाट के। पहिर पोसाक चपरास के लगाय लेलें १२, निपट गरीवन के बोलत बाटे डॉट के ॥ पैसा अउर कौड़ी खातिर गली-गली धावत फिरे, जइसे धोबी कुकुर नाहीं घाट के न बाट के भने 'बसुनायक' हरामी के जे पड्सा लेत, नौकरी छूटे पर फेडू पूछे नाहीं झाँट के ॥

रामप्रसाद सिंह 'पु'डरीक'

आपका जन्मस्थान गोपालपुर (सैदापुर, पटना) है। आप पुराने ग्राम-गीतों के तर्ज पर आधुनिक समाज सुधार सम्बन्धी कविताए रचते हैं। आपका स्वर भी मधुर है। आप हिन्दी के भी कवि और लेखक हैं। आपकी रची कई छोटो छोटी पुस्तिकाएँ भोजपुरी में छपी हैं। आप मगही के भी कवि है। मगही बोली में भगवद्‌गीता का पद्यानुवाद किया है। देशाटन करके अपनी लोक-भाषा की रचनाएँ आप गा-गाकर सुनाते हैं। दूर-दूर तक

सोहर

बिनय करों कर जोरि अरज सुनि बहिनो । सुनि लेड अरज हमार परन' कलह करब नहिं भूलि, कलह बहिनो ! कलह तुरत घर फोरि बिपति लेहु न है । करि लेहु न हे ॥ दुख कारण है। गुहरावत ४ है ।। करय सबहिं सन प्रीति लक्ष्य सुख सम्पति है। बहिनो । मिलि-जुलि बिपति भगाइ त मिलिजुलि गाइब हे ।। न डोमिन चमइनि देखि धिनाड्य है। बहिनो । सबरिहि राम समाज इनहि अपना इस हे ।। कबहुँ न चिलिम ८ चढ़ाइब रोग बुलाक्ष्य है। बहिनो ! तन-मन धन-जन नास नसा करि बारत है। 

रस्तच सर्वाई कन्दु साफ नितहि-नित घोइब है। बहिनो ! नितद्दि करण असनान नितहि प्रभु-पूजन हे ॥ सबहि हुनर हम सीखि करब गृह कारज है। बहिनो ! कबहु त इम विधिआइ अबर मुह जोहब हे ॥ कबहु न असकत लाइ बइठि दिन काटय है। बहिनो ! जब न रहहिं कछु काम त चरखा चला व हे ।। अधिक करब नहिं लाज घुघुट अब खोलब है। बहिनो ! अब न रहब हम बन्द हमहुँ जग देवब हे ॥ रहत इमहिं जरा बन्द बहुत दिन बीतल है। बहिनो ! पियर भइल सब अंग बुधिहु-बल थाकल ४ ॥ पढ़ब गुनव अरु घूमि सकल जग देखब है। बहिनों । हम हई' सिय-सन्तान करब अब साबित है ॥ जिन करि नजर खराब इमहिं पर ताकहिं है। बहिनो ! जिन रस बचन कढ़ाह करिहिं छुटुमापन हे ॥ नयन जिह्व हम कादि पिचुटि बहिनो ! लड्च लिहब हम जीभ न पॅखुरी खबग खपद अब लेइ दद्दत हम बहिनो ! लव-कुस सुत जनमाइ हरब सुई कर फकब है। कमारब नासय है। भार तु हे ॥

बनारसीप्रसाद 'भोजपुरी'

आपका जन्म-स्थान बबहरा (शाहाबाद) है। आप हिन्दी के पुराने गद्य पद्य लेखक और पत्रकार हैं। कई पत्री का संचालन आपने किया है। आप राष्ट्रीय विचार के देशसेवक हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती नन्दरानो देवी जी भी धाम गीतों की रचना करती है। आप शाहाबाद जिला-हिन्दी साहित्य- सम्मेलन के उत्साही कार्यकत्र्ता हैं।

आपन परिचय

नाम भोजपुरीजी हुड हाय हम लमहर सोटवा लगाईला । करीला इंकार सुनि पास में जे आवेक्षन कोदि कदाई* इस जड़ से भगाईला ।। बर ना सकोच हम तनिको २१ करोला कभी राइन ३३ के साथ पचलतिया३३ लगाईला । मडगो मजारब २४ के कुब में रखोला हम भेदिय। २५ बनाके देस-बाहर कराईल । २५ ।। 

साँच में न आँच कभी सुतलो में आावे दीला मूडवो के हरदम दुसमन बताईला । बात उहे कहिला जे ठीक से बुझाला खूब

सजन महाशय के मघवा नवाईला ।। जाली व फरेबी केहू ऑन्त्र से देखाला कहीं पीडिया प कसि-कसि सुकवा चलाईला । के गंदवा हराकर जे हम सट से अमाईला ।। तनिको नर्तीजवा के करी परवाह नाहीं सममेला अपना सॉटवा सभारि आँख मूँद काम सब फट कान घड़के उडकी-बड टिकी १४ फरके १५ रहिला सपराईल।"। करेला विरोध उहे उजुबुक १२ बहए १३ जे कराडेला ।। हम लगट लबारन से भूलियो के तनिको ना हम अकुराइला । मनवा लगाई हम कमवाँ करीला खूब नामों कमाक खूब जस फैलाईला ॥ बाटे बढ़ाईला । जे छतिया क्षगाईला ।। आपस में गुद्दिया २२ के जड़िया २३ जमल कोदि-कादि ओकरा के मेलबा बा जे नरक जाति से गिरल कन्हवाँ २४ पढ़ा के हम इहे त धरम बाटे ईहे परल बा त करम बाटे रात-दिन सोटा लेले दउद लगाईला । जुलम के जहाँ-कहीं दिलवा २५ लडकिय जाला

स्वाल ऊँच मारि दीला कोट कुस चुनि ली ला चले के सुगम हम रहिया बनाईला । ऑख सुं दि अम्हरो निगम २० होके चले जे रहिया के विपत्ति से सभ के से २१ बँचाईला ।।

ताल ठोकि ओकरा के जलदी दहाईला ।।

इहो नाहीं चाहीं जे लोग घबढ़ाये

बतिया २७ सरस बीच-बीच में

लागे

अगिया वो पनिया के बीच से चलाई हस नचाईला ।। कहिला जे एकरा २९ से दिल के जतन रतिया में एहिसे ३० हिंडोलवा जाला लगाईला । 

धीरे से जुटाई लीला गोरिया प्रेम के बजरिया में एकरे में भूति के ना समय रसिकवन र के रंगचा उबाईला ।। बितइहड बेसी रेडु में या जाल भाई कह के रसवा के बस होके बात जे बिसारि धाइ के नुरत हम सौटवा बराईला । देला । जमाईला ।।

सिद्धनाथ सहाय 'विनयी'

आपका जन्मस्थान 'कल्याणपुर' (शाहायाद) है। आाप रामायणी भी बहुत सुन्दर हैं। आप हिन्दी और भोजपुरी दोनों में कविता लिखन है। आपकी दो प्रकाशित रचनाएँ 'केवट अनुराग' और 'द्रोपदी-रक्षा' है। दोनों पुस्तिकाएँ भोजपुरी और हिन्दी गद्य-पद्य मिश्रित रचनाएं हैं। केवल निषाद और द्रौपदी की वार्ता भोजपुरी पदा-गद्य में है। तुलसीदास की कविताओं के उद्धरण देकर उनके प्रसगानुकुल भोजपुरी उफियों भी कहो गई है। आपकी रचनाएँ पड़ने पर भक्ति और करुणा जाग उठती है। हिन्दी की कविताओं से कहीं अधिक सुन्दर, सरस और प्रौढ आपकी भोजपुरी रचनाएँ हैं। आप अपनी पुस्तकों के स्वयं प्रकाशक हैं। आपकी पुस्तकों का प्राप्तिस्थान है- 'अम्बिका भमन', मनसा पाण्डे बाग, भारा। इन दो पुस्तकों के अतिरिक्त आपने भोजपुरी में और भी पुस्तकें लिखी है। यथा- 'श्री कृष्णजन्म-मंगल पवांररा', 'सीता जी को सुनयना का उपदेश' आदि ।

छुवत में डर लागे सुन्दर चरनियाँ कोमल कमल अति सूरति मोहनियाँ ।। चरण के पुरि एक अजब जोगिनियाँ ।। काठ के ठेकान कौन का होई जीवनियाँ । बिहसी बिहंसी कहे मधुरी बचनियाँ ।। भारी तो फिकिर एक घनुही धरनियाँ नैया ना होखे कहीं गौतम-धरनियाँ"। बारे-बारे कारे रज पद लपटनियाँ १७ दुचे ना चरण बारे उपरे से पनियाँ ।। अटपट बात सुनि प्रेम रस-सनियाँ १२ । जानकी-लखन देखि नाथ मुसकनियाँ ३।।

- ('केवट अनुराग' से)

वसिष्ठनारायण सिंह

आपका जन्म स्थान 'दिवार' (सारन) है। आप हरिकीर्त्तन किया करते हैं। आपने कीर्तन-

मण्डली बना ली है, जो स्थान-स्थान पर जाया करती है। आपकी प्रकाशित रचनाओं में एक का नाम 'संकीर्तन सरोज' है।

जरा मुनी सरकार, भिया हुलमे हमार । दिल लागि गइले प्रभु के भजनिया में ॥ 

माथे मकुट रसाल, काने कुण्डल बा बिसाल, सोहे मोतिया के माल गरदनिया में ॥ जामा सोहे बूटीदार श्रोमे लागलय. किनार, झड़-झक झलकेला प्रभु के बदनिया में ॥ कहे 'बसिष्ठ' पुकार, सुनीं अचरज हमार, प्रभु राखि लिहीं अपना सरनिया में ॥१॥

भुवनेश्वरप्रसाद 'भानु'

'भानु' जी का जन्म १८११ ई० में शाहाबाद जिले के 'बन्दा अखीरी' नामक ग्राम में हुआ था। प्रारम्भ से ही कविता की ओर आपकी विशेष रुचि थी। श्राप हास्य रस को कविता सुन्दर लिखते हैं। हिन्दी कयि होने के अलावा याप लेखक और उपन्यासकार भी है। आप भोजपुरी भाषा के बड़े हिमायती है तथा भोजपुरी में बहुत-सी रचनाएँ भी की हैं। आजकल आप 'शाहाबाद' नामक साप्ताहिक पत्र के सम्पादक हैं।

(4)

बसन्ती वा

जियरा में सबके हिलोरवा उठावे लागल, फूलवा खिलाके वोह प० मॅवरा भुलावेला । रहियन १० के दिलवा में अगिया लगावे लागल, झोरि के वियोगिनिन के मनवा डोलावेला" । हवा इऽबसन्त के कि काम के ईवान हउवे१४, जियतारे कामदेव गते से १५ बोलावेला ।

बरछी के नोक अइसन लागेला करे जया में, जोगियन के दिलवा में बासना जगावेला । लागते १७ वियोगिनिन के देहिया कुलसि देला, इहे बड़ए १८ काम एकर सबके सतावेला । आवेला पहाड़ होके बिसधर ले बीस लेके, दुवते सरोरवा के पागल बनावेला । बिरहा से तन जेकर भीतरा से जरे खुद, ऊपरा २० से ओकरा के अवरू२१ जरावेला । दिलवा में सूतल दारुह्न वेदनवर के, बरबस उदावेला २२ । झोरि-झोरि देहिया के

(२)

घर के न घाट के

बानयं२७ में बैल बेचलीं, गाय बेचती २४ ग्यारह में, बाईस में भईस२५ बेचली, कहला से लाट२ए के । 

सूद पऽ सबा सौ से जीं दाखिल जमानत कइलीं । चीज सब बॅच देर्ली, भायन से बॉट के साते सब में सात पाई जमीन्दारी बेच्चि देली, सीसो सात पेड़ बेचीं सैतीस में काट के। मेम्बरो ना भइलीं, भद्दल जब्ती जमानत के, पब्ती के मारे भड़कीं घर के न घाट के ।।

विमला देवी 'रमा'

आपका निवास स्थान डुमराँव (शाहाबाद) है। आप वहीं के मुन्तजिम घराने की शिक्षित महिला हैं। आप हिन्दी में भी कविता करती है और हिन्दी की लेखिका भी है। आपके पिता मुं'शी भागवतप्रसाद आरा नगर के प्रतिष्ठित वकील, रईस और सुविख्यात संगीतज्ञ थे।

(1)

मंद मंद धीरे-धीरे पार नह्या लावेला गंगा के तरंग धार भँवर बचावेला बिधिन अनेक नासि घाट पर लगावेला आदर सहित लोकनाथ के उतारेला चरण-कमख धবি माथ के नवावेला १२ टप-टप लोर 18 जुबे बोली नाहीं आवेला

(२)

बॉ टेला १४ चरण-जल अॅजुरी-अँजुरिया" । पीवेला" सुदित मन बहुरी बहुरिया जनम के रोगी जनु पावे असरीतिया १८ कहा बाटे आचमनी सोने के कटोरिया तुलसी के दल कहाँ, कहाँ बा पुलरिया १९ नेकु २० मा अघाय पीने भरी-भरी धरिया २१ सुधि ना रहल तन-मन मस्तनिय। २२ राम अस गाइ गाइ लोटेला २३ चरनिया २४ कबहुँ सम्हारि उठे कड़‌निय। २६ घुमी-घुमी नाचे जैसे नाचेला नचनिया २७ नाय कुसुम गात्त देखि, देखी भक्त गतिया २८ सिया-लथुमन कहे हँसि-हँसि बतिया ॥ 

मनोरंजनप्रसाद सिह

आपका जन्म १० अक्टूबर को, सन् १६०० ई० में, सूपेपुरा (शाहाबाद) में हुआ था। आपके पित्ता श्रीराजेश्वरप्रसाद सदर-आला (सब जज) थे। आपका परिवार बाद को डुमरांव (शाहाबाद) जाकर बस गया। आपकी भोजपुरी रचना 'फिरंगिया' को ब्याति असह‌योग-युग में बहुत हुई थी। आप पहले हिन्दू-विश्वविद्यालय (काशी) में अंगरेजी के प्रोफेसर थे। अब आप राजेन्द्र कॉलेज (छपरा) के प्रिन्सिपल हैं। आप बिहार प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन के मोतीहारोवाले अधिवेशन के सभापति हो चुके हैं। आप हिन्दी के भी प्रसिद्ध कवि और विद्वान् लेखक है। आपको कितनों ही भोजपुरी कविताएँ अत्यन्त सरस और भावरर्ण हैं।

(9)

फिरंगिया

सुन्दर सुधर भूमि भारत के रहे रामा, आज इहेर महलऽ३ मसान है फिरंगिया अन्न धन जन बल बुद्धि सब नास भइल, कौनो के ना रहल निसान रे फिरंगिया जहबों थोड़े ही दिन पहिले हो होत रहे, लाखो मन गल्ला और धान रे फिरंगिया उहें आज हाय रामा! मथवा पर हाथ घरि विजति के रोवेत्ता किसान रे फिरंगिया हाय देव ! हाय ! हाय !! कौना पापे भइल बाटे, हमनी के आज अइसन हाल रे फिरंगिया सात सौ लाख लोग दृ-दू साँझ भूखे रहे, हरदम पड़ेला अकाक्ष रे फिरंगिया जेड कुछ बाँचेला त ओकरो' के लादि-लादि, ले जाला समुन्दर के पार है फिरंगिया घरे लोग भूखे मरे, गेहुँआ बिदेस जाय, कइसन बाटे जग के व्यवहार रे फिरंगिया जहाँ के लोग सब खात ना अधात रहे, रुपया से रहे मालामाल रे फिरंगिया उहें आज जेने जेने अॅखिया घुमाके देख, तेने तेने १२ देखने कंगाल हे फिरंगिया बनिज-बेपार १३ सब एक रहल नाहीं, सब कर होइ गइल नास रे फिरंगिया तनि-तनि बात लागि हमनी का हाय रामा, जोहिले १५ बिदेसिया के आस रे फिरंगिया कपड़ो जो आवेला बिदेश से तो हमनी का, पेन्ह के रखिला निज लाज रे फिरंगिया आज जो बिदेसवा से आवेना कपड़वा तड़, लंगटे करब जा निवास रे फिरंगिया हमनी से ससता७ में रुई लेके ओकरे से, कपड़ा बना-बना के बेचे रे फिरंगिया अइसहाँ अइसहीं दीन भारत के धनवों के, लुटि लुटि ले जाला बिदेसे रे फिरंगिया रुपया चालिस कोट १८ भारत के साजे-साल, चल जाता दूसरा के पास रे फिरंगिया अइसन जो हाल आउर २० कुछ दिन रही रामा, होइ जाइ भारत के नास रे फिरंगिया स्वाभिमान लोगन में नार्मो के रहल नाहीं, ठकुरसुहाती बोले बात रे फिरंगिया दिन रात करे ले खुसामद सहेबबा ३३ के, चाटेले बिदेसिया के लात २३ रे फिरंगिया जहाँ भइल रहे राजा परताप सिंह, और सुरत न २४ अइसन वीर रे फिरंगिया जिनकर टेक रहे जान चाहे चलि जाय, तवह नवाइब २५ ना सिर है फिरंगिया 

उहने के लोग श्राज अइसन अधम भइले, वाटेले बिदेसिया के लात रे फिरंगिया सहेवा के खुसी लागी करेलन सबद्दीन, अपनो भद्धवा के घास रे फिरंगिया जहाँ भइल रहे अरजुन, भीम, द्रोण, भीषम, करन सम सूर रे फिरंगिया उहें आज मुंड-मुंड फायर के बास बाटे, साहस बीरस्य भइल दूर रे फिरंगिया केकरा करनिया कारन हाय भइल बाटे हमनी के अइसन हवाल रे फिरंगिया धन गहन, वल गइल, बुद्धि गइल, विद्या गइल, हो गइलीं जा निपटे कंगाल रे फिरंगिया सब बिधि भइल कंगाल देस तेह पर, टीकस के भार तें बढीले रे फिरंगिया नून पर टिकसवा, कृली पर टीकसवा, सब पर टिकसवा लगौले रे फिरंगिया स्वाधीनता हमनी के नामों के रहल नाहीं, अइसन कानून के बरे जाल रे फिरंगिया प्रेस ऐक्ट, श्राग्स ऐक्ट, इंडिया डिफेंस ऐक्ट, सब मिलि कइलस १२ ई हाल रे फिरंगिया प्रेस ऐक्ट लिग्वे के स्वाधीनता के छीनलस, आग्सं ऐक्ट लेलस इथिश्रार रे फिरंगिया इंडिया डिफेंस ऐक्ट रच्छक के नाम लेके, भङ्गक के भइल अवतार रे फिरंगिया हाय ! हाय ! केतना जुबक भइले भारत के, ए जाल में फेसि नजरबंद रे फिरंगिया केतना सपूत पूत एकरे करनवा १३ से पबले पुलिसवा के फंद्र रे फिरंगिया अजो१४ पंजयवा के करिके सुरतिया से फाटेला करेजवा हमार रे फिरंगिया भारते के छाती पर भारते के बचवन के, बहल रकतवा के धार रे फिरंगिया छोटे-छोटे बाल सब बालक मदन सब, जान रे फिरंगिया छटपट करि करि बूढ़ सब मरि गहले, मरि गइले सुघर जवान रे फिरंगिया बुढ़िया महतारी के लकुटिया १८ छिनाइ गइल, जे रहे बुढ़ापा के सहारा रे फिरंगिया जुवती सती से प्राणपति हा बिलग भइल रहे जे जीवन के अधार हे फिरंगिया साधुओ के देहवा पर चुनवा के पोति-पोति, रंडि आगे लगटा २० करीले रे. फिरंगिया हमनी के पसु से भी हालत खराब कइले, पेटवा के बल रंगवले २१ रे फिरंगिया हाय! हाय । स्त्राय सबे रोवत बिकल होके, पीटि-पीटि आपन कपार रे फिरंगिया जिनकर हाल देखि फाटेला करेजवा से, अॅसुआ बहेला चहुँ धार २२ रे फिरंगिया भारत बेहाल भद्दल लोग के ई हाल भइल, चारों ओर मचल हाय-हाय रे फिरंगिया तेह पर २३ अपना कसाई अफसरवा के, देले नाहीं कवनो सजाय रे फिरंगिया चेति जाउ चेति जाउ भैया रे फिरंगियर से, छोदि दे अधरम के पंथ रे फिरंगिया श्रोदि दे कुनीतिया सुनीतिया के बांह गहु, भला तोर करी भगवन्त रे फिरंगिया दुन्विया के आह तोर देहिआ भसम करी२४, जरि-भूनि २५ होइ जड्ये छार हे फिरंगिया पेट्रोव२५ त कहनानी २७ भैया रे फिरंगी तोहे, धरम से करु तें बिचार रे फिरंगिया जुलुमी कानून श्रो टिब्सवा के रद क दे, भारत के दे दे तें स्वराज रे फिरंगिया नाहीं तऽ ई सांचे-सांचे तोरा से कहत बानी, चौपट हो जाइ तोर राज रे फिरंगिया ततिस करोड़ लोग अमुआ बहाई ओमें२८ बहि जाई तोर समराज २५ रे फिरंगिया अन्न-धन-जन-बन सकत बिलाय जाई, दूब जाई राष्ट्र के जहाज रे फिरंगिया 

(२)

तबके जवान अब भइले पुरनिआ

अबहूँ कुहकिए के बोलेले कोइलिश्र, नाचेला मगन होके मोर । अबहूँ चमेली चेली फूले अधिरतिश्रा, हियरा में उडेला हिलोर ।। अबहें अगनवों में खेलेला बलकवा, कौआ मामा चीव्हिआ-चिल्होर २ । अवहूँ चमकिएके चलेले तिरिश्रवा, ताकेले भइअवे के ओर ।। चोरी चोरी अबो गोरी करेली कुलेलवा, चोरी चोरी भ्रात्रे चितचोर । भूलि जाला सुधबुध कामकाज लोकलाज, करेले जवानी जब जोर ।। दुनिआ के रंग ढंग सब कुछ ऊहे बाटे, ओइसने बा ओर अउरी सोर । कुछओ ना बदलल, इमहीं बदल गइली बदलल तोर अउरी मोर ।। तबके जवान अब भहले पुरनिश्रा, देहिआ भइल कमजोर । याद जब आवेला पुरनका जमनवा, मनवा में होम्वेखा ममोर" ।। कुछ दिन अउरी धीरज धरु मनवा, जिनगी १२ के दिन बाटे थोर । पाकल पाकल केसिश्रा में लागेना करिखवा, रामजी से करु ईनिहोर ५ ।।

(३)

मातृभासा और राष्ट्रभासा

दोहा

जय भारत जय भारती, जय हिंदी, जय हिंद। जय हमार भासा बिमल, जय गुरु, जय गोबिंद ।।

चौपाई

जनि करे ठठोली ।। उत्तरि कलम पर आवे ।। माधा के बिंदी ।। ई हमार हऽ आपन बोली। सुनि केहु जे जे भाव हृदय के भावे। ऊहे कबो संसकृत, कबहुँ हिंदी। भोजपुरी भोजपुरी हमार हुड मासा। जहसे हो जोवन के स्वांसा ।। जब हम ए दुनिआ में अइलीं। जब हमई मानुस तनु पइलों ।। तबसे जमल रहल जे टोली से बोले भोजपुरिक्षा बोली ।। हमहू ओही में तोतरइली। रोअर्ती हँसलों बात बनइलों ।। खेले लगीं घुघुआमाना । उपजन धाना २२, पवली २० लाना ।। चंदा मामा आरे २४ अइले । चंदा मामा पारे २५ अइले ।। ले से अइले सोन कटोरी। दूध भाव ओकरा मैं२६ बोरी२७ ।।

दोहा

बबुआ के मुँह में घुटुक२८, गइल दूध ओ भात । ओकरा पहिले कान में पबल मधुर मृदु बात ।। 

पढ़आ-लिखुआ' करिहें हमरा ना केंडू से हम तः सबके करब हिंदी इऽ भारत के हम ओकरो भंडार तयो न छोड़ब आपन जे मगही तिरहुतिआ ऊहो बोलसु थापन साफ। हम त बात कहीले साफ ॥ बैर। ना खींचवर केहू के पैर ।। भलाई। जेतना हमरा से बन पाई ।। भासा। कहे एक राष्ट्र के आसा ।। बदाइन। ओडू में बोलब श्रो गाइब ।। बोली। चाहे केहू मारे गोली ।। भाई। उनहू से हम कहह्य बुझाई ।। बोजी। भरे निरंतर उनको झोली ।।

चौपाई

दोहा

हम चाहीं सबके भला, जन-जन के कल्यान । जनमें बने जनारदन, भगवा में भगवान ॥

(४)

कौआ-गोत

कौआ भोरे-भोरे बोलेला से मोरे अंगना ॥ टेक ॥ ए कौश्रा के बात न सुनिहऽ ई हऽ राजा इन्द्र आइल ठगना" ।। कौआ० ए कौया के दूरे भगावऽ ई तड जयंत हऽ कुटिल-मना ।। कौआ७ चिहुँकल चारों ओर गरदन घुमावेला एके आँखे देखेला हजार नयना ।। कौधा० ना हम इंद्र, ना इंद्र के बेटा हम खग अधम उड़ीले गगना ।। कौआ० हम तऽ खाईले राजा राउरे जूठन, साफ करे आईले राउरे अंगना ।। कौआ० हम तऽ संईले राजा दोसरे के अंडा, जीचतीना कोइलरि हमारा बिना ।। कौआ० लोग कहता हमरा जीर्सी में अमरित १४, हम नाहीं कपटी-कुटिल-बधना ।। औआ० बह जी के कहला से अंगना में उचरीले १५, उचरीले कब अइहें प्रिय पहुना ।। कौग्रा० हमरा के भेजले हऽ बावा भुसुडो काँव-काँव राम बाड़े कौन। अंगना ।। कौआ०

विन्ध्यवासिनी देवी

श्रीमती विन्ध्यत्रासिनी देवी बिहार की लोक संगीत गायिका हैं। इनका जन्म सन् १६१७ ई० में मुजफ्फरपुर में हुआ। बचपन से हो संगीत में इनकी अभिरुचि थी। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा मुजफ्फरपुर के चैपमैन गर्ल्स स्कूल में हुई। घर पर ही पढ़कर इन्होंने साहित्य सम्मेलन की परीक्षाएँ पास की। पहले श्रार्यकन्या विद्यालय (पटना) में हिन्दी अध्यापिका थी। आजकल ॉल इंडिया रेडियो (पटना) में लोकगीत गायिका हैं। इनके संगीत के रेकार्ड भारत के हर रेडियो- स्टेशन से प्रसारित हुआ करते हैं। ये भोजपुरी के अतिरिक्त हिन्दी, मगही, मैथिली में भी रचना

करती हैं। 

(1)

बरसाती

भावे ना मोहि अंगनवों,२ बिनु मोहनवाँ । बादल गरजेला चमके बिजुरिया तापर बहेला पवनवाँ जै ने सावन में फहरत यूँ दिया, बड्से करेला मोर नयनों। कुयजा सवत साजन बिलमावल, जाइ बसल मधुबनवाँ । अवले सखि ! मोर पिया ना श्रायल बीतल मास सवनवाँ 'विन्ध्य' कड़े जिया धड़केला सजनी, करावा बोलत वा अगनवाँ।

(२)

धनकटनी

धन कटनी ११ के बहार अगहनों में। बोझा बाँधल बाटे धान, मन गाजतऽ१२ किसान, देखि भरल खरिहान १३, देखऽ गंगा के श्रोहवार, जेकरा जहवाँ खेतिहर होनिहार७ अगहनवाँ में ।। कहत दिआर'", अगहनवों में ।। गोइंठ। जोरि गोलाकार, लिटियाल के आकार । ततले २० खिचड़ी मजेदार, अगहनों में ।। अन्दर सूचे बिहार 'विन्ध्य' कहत पुकार । नयका २१ चिउरा के बहार अगहह्नवों में ।।

हरीशदत्त उपाध्याय

आप आजमगढ़ शहर के निवासी हैं। आपने भोजपुरी में महाकवि कालिदास के 'रघुवंश' काव्य का स्वतंत्र अनुवाद किया है। यह बाईस सगों में समाप्त है। इसका चीथा तथा पाँचवाँ सर्ग 'विश्वमित्र' और 'आज' नामक पत्रों में प्रकाशित हो चुका है। यह मौलिक रचना है। आपने राष्ट्रीय आन्दोलनों पर भी कविताएँ रची हैं। आपकी भोजपुरी में आजमगढ़ी बोली का पुट है। रघुवंश से कुछ उदाहरण नीचे उद्धृत किये जाते हैं-

(9)

कथा-प्रवेश (प्रथम सर्ग)

श्रोता में दिलीप एक डे२३ रहले त महीप भाई, ज२४ मना में सोचें दिन-रात । तोनों पना २५ बीति रौलें, ऐलें विस्थापनवा २५, नाहीं श्रोनेके ३७ ऐको भैले जब त सनतनवा, 

(1)

बरसाती

भावे ना मोहि अंगनवों,२ बिनु मोहनवाँ । बादल गरजेला चमके बिजुरिया तापर बहेला पवनवाँ जै ने सावन में फहरत यूँ दिया, बड्से करेला मोर नयनों। कुयजा सवत साजन बिलमावल, जाइ बसल मधुबनवाँ । अवले सखि ! मोर पिया ना श्रायल बीतल मास सवनवाँ 'विन्ध्य' कड़े जिया धड़केला सजनी, करावा बोलत वा अगनवाँ।

(२)

धनकटनी

धन कटनी ११ के बहार अगहनों में। बोझा बाँधल बाटे धान, मन गाजतऽ१२ किसान, देखि भरल खरिहान १३, देखऽ गंगा के श्रोहवार, जेकरा जहवाँ खेतिहर होनिहार७ अगहनवाँ में ।। कहत दिआर'", अगहनवों में ।। गोइंठ। जोरि गोलाकार, लिटियाल के आकार । ततले २० खिचड़ी मजेदार, अगहनों में ।। अन्दर सूचे बिहार 'विन्ध्य' कहत पुकार । नयका २१ चिउरा के बहार अगहह्नवों में ।।

हरीशदत्त उपाध्याय

आप आजमगढ़ शहर के निवासी हैं। आपने भोजपुरी में महाकवि कालिदास के 'रघुवंश' काव्य का स्वतंत्र अनुवाद किया है। यह बाईस सगों में समाप्त है। इसका चीथा तथा पाँचवाँ सर्ग 'विश्वमित्र' और 'आज' नामक पत्रों में प्रकाशित हो चुका है। यह मौलिक रचना है। आपने राष्ट्रीय आन्दोलनों पर भी कविताएँ रची हैं। आपकी भोजपुरी में आजमगढ़ी बोली का पुट है। रघुवंश से कुछ उदाहरण नीचे उद्धृत किये जाते हैं-

(9)

कथा-प्रवेश (प्रथम सर्ग)

श्रोता में दिलीप एक डे२३ रहले त महीप भाई, ज२४ मना में सोचें दिन-रात । तोनों पना २५ बीति रौलें, ऐलें विस्थापनवा २५, नाहीं श्रोनेके ३७ ऐको भैले जब त सनतनवा, 

एगो बलकार रहिते गोदिया में म्प्रेलइर्ती ननदी ।। टेक ।। देश-भगति के पाठ पदइतों, देस-दसा समुझइर्ती, जे केहु देस के खातिर मरलें, उनकर याद दिलइता ।। हो खेल० ।। होम-गाह में भरती करहती, परेड उनका सिखद्दती, काम्ह प लेके बनुकिया चलितें, छाती देखि जुबइतीं ।। हो खेल० ।। परेड कसरत से देह बनइतें, सोभा आपन बदद्दतीं, गाँव-नगर के रद्देआ करितें, बीर सपूत बनहीं ।। हो खेल० ॥ अःफल-बिपति जय देस प अहतें, आगे उनके बदली, मारि भगइतें देस-दुसमन के, बीर मतारी कहहतों ।। हो बेल० ॥ गाँधी-नेहरू-बलभ भाई के, कीरति-गीत सुनहतीं, हाथ में देके तिरंगा फंडा, बिजयी बोर बनइतीं ।। हो खेल० ।।

महादेवप्रसाद सिंह 'घनश्याम'

२४९

आप ग्राम 'नचाप' ( हरदिया, शाहाबाद) के निवासी हैं। आप भोजपुरी के अच्छे कवि है। भोजपुरी के प्राचीन 'सती सोरठी योगी बृजाभार', 'फु' अर विजयमल्ल', 'लोरिकायन,' 'शोभानायक यनजारा' आदि प्रबन्ध-काव्यों के अच्छे गायक तथा लेखक है। आपकी लिखो 'सतो सोरठी योगी बृजाभार' पुस्तक १६ भागों में है। इसका मूल्य ८) है। यह पुस्तक स्वतन्त्र रूप से लिखी गई है; परन्तु कहानी पुरानी है। कवि में कवित्व-शक्ति अच्छी है। आपको 'पवारा कैसेरे-हिन्द' की उपाधि भी मिली है, जो पुस्तक पर छपी है। 'कुअर विजयमल्ल बत्तीस भागों में समाप्त हुआ है। इसकी कीमत ३) है। आपने 'भाई-विरोध' और 'जालिम सिंह' नाटक भी लिखे हैं। इनमें भोजपुरी गद्य और पद्य दोनों का प्रयोग हुआ है। भोजपुरी के प्रसिद्ध कवि भिखारी ठाकुर की रचनाओं की तरह आपकी पुस्तकें भी बहुत लोकप्रिय हैं। भोजपुरी भाषा की आपने काफी सेवा की है। आपके नाटकों के कथानक समाज सुधार की दृष्टि से लोकोपयोगी है।

(1)

सोहर

मनाइले हो । प्रथम गनेस पद बंदन चरन

मंगलदायक हो ।। फरियाइल" हो। ललना बिधिनहरन गननायक चदि गइले पहिला महिना मो मन

रतिया डेर। वन हो ।। ललना नाहीं भावे सुखके सेजरिया १३ सो

नृसरहीं चढ़ले महिनवों, ना अन्न नोक लागेला हो ।

ललना देहियों में आवेला घुमरिया १४ सो, आलस सतावेला हो ।। लागेला हो ।

चढ़ी गइले तीसरे महिनवों ना दिल करें १५ ललना रही रही आवेला ओकड्या सो कुछ नाहीं भावेला हो ।।

बउया ही चढ़ले महिनवाँ जम्हाई आवे लागेला हो ।

ललना नहीं भाचे घर से अगनवाँ सो मन घबदाएला हो ।।

१. एक मी। २. बाज १. मर गये (शहीद हो गये। ४. दिवा ५. कन्धा १. बन्दूक।०. एका ।

८. माता । ६. बनाती। इन पुस्तकों का पकाशक-ठाकुर प्रसाद मुकतेकर, राणादংবাঝা, দলাংত্ত। १०. ममाता या सुमिरता हूँ। ११. मन करने की प्रवृति। १२. त्या। १३. अथवा १५. चक्कर, पूर्मि। १५. कहीं भी। १६. খলল। ২৫. অজ্জা জালা। 

पाँच-खुब बीति गइले मासवा सो देहियों पहाद भइली हो । ललना नाहीं तन होखेला सम्हार, सो दुखवा सतावेला हो ।। सातवाँ सो वितले महिनवाँ सो आठवाँ पुरन भइले हो । ललना नाहीं आवे अंखिया निनरिया सो जियरा बेहाल भइले हो ।। 'महादेव' यह सुख गावत, गाइ सुनावत हो । खलना रानी दुखे भइली बेभाकुल पीर ना सहल जाये हो ।

(२)

मेला-घुमनी

परमपिता परमेसर के ध्यान घरी, लिखतानी सुनु चित बाय मेला-घुमनी" आवेला सिराठी मेला, ददरी, मकर आदि, करे झागे आगे से सलाह मेला घुमनी ।। महुअरि, ठेकुथा, गुलउरा र पकाइ लेली १३, सातू-नून मरीचा-अॅचार मेला घुमनी ॥ चाउर, पिसान, दाल, चिउरा के मोटरी से, सकल समान" लेइ लेली मेला-घुमनी ।। तिसी-तोरी३० बेचीं कर पइसा जुटावेली २२ से, मेलाबा में लायेके मिठाई मेला घुमनी ।। गहना ना घरे रहे, मगनी ३३ ले आवे मोंगि, करे लागे रूप के सिंगार मेला-घुमनी ।। बाहे२३४ बाजू २५, जोसन, २३ बंगुरिया २७, पहुँचिपेन्हें, गरवार में हलका ३० फुलावे मेला घुमनी ॥ सारी लाल-पीली पेन्हि ओदलो चदरिया से, कर लिहली ३१ सोरहो सिंगार मेला-घुमनी ।। काने कनफूल पेन्हें, सीकरी ३२, कुमक पेग्हें, टिकुलो चमकेले लिलार ३३ मेला-घुमनो ।। मेलवा में जाये खातिर घरवा में झगरले, राह में चलेली चमकत मेला घुमनी ।। चारि जानी आगे भहीं, चारी जानी पीछे सहलीं, बेदिया मूमर गावे लागे मेला घुमनी ।। मरद के इस भीड़, मडगी के ठेला-ठेली, मेलवा में मारेली नजारा ३५ मेला-घुमनी ।। ऑधरा में गुब-चिउरा भसर-मसर ३६ उबे, राप-गप गटकेली ३७ लीटी ३८ मेला घुमनी ॥ मैहर-ससुरा के लोग से जो भेंट होते, बीचे राहे रोदन पसारे ३९ मेला घुमनी ।। डेरा डाले बान-पहिचान कीहाँ ४० जाइकर, बैडेली होई सलतन्त मेला-घुमनां ।। आगी सुलगाये लागे, चिलम चढ़ावे लागे, पुद-पुब हुक्का पुबपुबावे मेला घुमनी ॥ लुगा ४२ मृता ४३ लेड़कर चलेली नहाय लागी४४, कितना लड़ावे तोसे ऑली मेला-घुमनी ॥ करी असमान जल चलेनी चढ़ावे लागी, पण्डवा गहेले तोर बाँह मेला-घुमनी ।। जलवा चदाई जब चलली मन्दिर में से, भीबिया में गुण्डा दरकचे मेला-घुमनी ।। चोर-बटमार तोरा पीछे-पीछे लागि गइले, तजवीज करे जागे दाष ४५ मेक्षा-घुमनी ।। भांदिया४० में घिरि गइली नाक-कान चौथो लेले ४८, भैया दैया करि सिर धुने मेक्षा-घुमनी ॥ 

हाला-गरगद' सुनि लोग बटुराइ २ गइले, सब केहु तुहे धिरकारे मेला घुमनी ।। मेलवा के फल इहे नाक-कान दोनों गइले, गहना लगल तोरा दाँव मेला-घुमनी ।।

युगलकिशोर

आपका पूरा नाम युगलकिशोर लाल है। आप आरा (शाहाबाद) के निकट एक ग्राम वे निवासी हैं। आप सामयिक विषयों पर सुन्दर रचनाएँ करते हैं। आपको कविताओं को बिहार सरकार के प्रचार विभाग ने छपवाकर बटवाया है।

कुछ ना बुझात वा

कइसे लोग कहत बा कि कुछ ना बुझात बा ।

जब से सुराज आइल, आापन सब काज भइल सासन बिदेसी गद्दल राजपाट देसी भइल, आपन बेवहार चलल, देसी प्रचार बदल, रोब, सूट-बूट उठल, कुर्ता के मान बदल, आपन सुधार होत दिन-दिन देखात बा। कइसे० ।।१।।

सदियन के गड्ल राज हाथ में बा आइल आम, समय कुछु लागी तब, बनी सब बिगदल काज, सबके सहयोग चाहीं, बुद्धि के जोग चाहीं, धीरज से काम लीहीं, लालच सब छोदि दोहीं, बड़े-बड़े कामन के रचना अब रचात बा। कइसे० ॥२॥

कालेज स्कूल के तादात बदल जात बा, बेसिक स्कूल जगह-जगह पर खोलात बा, सार्वजनिक शिक्षा के नेंव १२ भी दिक्षात बा, गाँव में मोकदिमा के पंचाइत भइल जात या, धीरे-धीरे कामन में उन्नति दिखात बा। कइसे० ॥३॥

अन्न उपजावे के रास्ता सोचाये लागल, कोसी वो गंडक के घाटी बन्हाये लागल, गंगा सोनभद्र से नहर फटाये लागल, जगह-जगह आहर वो पोखर खोदाये लागल, अवरू उपजावे के रास्ता खोज्ञात था। कइसे० ॥४॥ 

जगे-जगे तह मुदिर के बिजली का पंप से पोखरा यो नदी में बेत दृश्यों खोदात बा, पाटत जात बা, खेतो में सबके भी हिस्सा दिधात का, पंप लागे जात बा, दुम्पिन के चढ्ये गोहार कइल जात बा। कइये ॥५॥

7
लेख
भोजपुरी के कवि और काव्य
0.0
लेखक आ शोधकर्ता के रूप में काम कइले बानी : एह किताब के तइयारी शोधकर्ता श्री दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह कइले बाड़न. किताब के सामग्री : १. एह किताब में भोजपुरी के कवि आ कविता के चर्चा कइल गइल बा, जवना में भारतीय साहित्य में ओह लोग के योगदान पर जोर दिहल गइल बा. एह में उल्लेख बा कि भारत के भाषाई सर्वेक्षण में जार्ज ग्रियर्सन रोचक पहलु के चर्चा कइले बाड़न, भारतीय पुनर्जागरण के श्रेय मुख्य रूप से बंगाली आ भोजपुरियन के दिहल। एह में नोट कइल गइल बा कि भोजपुरिया लोग अपना साहित्यिक रचना के माध्यम से बंगाली के रूप में अइसने करतब हासिल कइले बा, जवना में ‘बोली-बानी’ (बोलल भाषा आ बोली) शब्द के संदर्भ दिहल गइल बा। भोजपुरी साहित्य के इतिहास : १. एह किताब में एह बात के रेखांकित कइल गइल बा कि भोजपुरी साहित्य के लिखित प्रमाण 18वीं सदी के शुरुआत से मिल सकेला. भोजपुरी में मौखिक आ लिखित साहित्यिक परम्परा 18वीं सदी से लेके वर्तमान में लगातार बहत रहल बा। एह में शामिल प्रयास आ काम: 1.1. प्रस्तावना में एह किताब के संकलन में शोधकर्ता श्री दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह जी के कइल महत्वपूर्ण प्रयास, धैर्य, आ मेहनत के जिक्र बा। एहमें वर्तमान समय में अइसन समर्पित शोध प्रयासन के कमी पर एगो विलाप व्यक्त कइल गइल बा. प्रकाशन के विवरण बा: "भोजपुरी कवि और काव्य" किताब के एगो उल्लेखनीय रचना मानल जाला आ बिहार-राष्ट्रभाषा परिषद के शुरुआती प्रकाशन के हिस्सा हवे। पहिला संस्करण 1958 में छपल, आ दुसरा संस्करण के जिकिर पाठ में भइल बा।
1

आठवीं सदी से ग्यारहवीं सदी तक प्रारम्भिक काल

7 December 2023
0
0
0

प्रस्तुत पुस्तक की भूमिका में भोजपुरी के इतिहास का वर्णन करते समय बताया गया है कि आठवीं सदी से केवल भोजपुरी ही नहीं; बल्कि अन्य वर्तमान भाषाओं ने भी प्राकृत भाषा से अपना-अपना अलग रूप निर्धारित करना शु

2

घाघ

8 December 2023
0
0
0

बाघ के जन्म-स्थान के सम्बन्ध में बहुत विद्वानों ने अधिकांश बातें अटकल और अनुमान के आधार पर कही है। किसी-किसी ने डाक के जन्म की गाया को लेकर घाष के साथ जोड़ दिया है। परन्तु इस क्षेत्र में रामनरेश त्रिप

3

सुवचन दासी

9 December 2023
0
0
0

अपकी गणना संत-कांर्यात्रयों में है। आप बलिया जिलान्तर्गत डेइना-निवासी मुंशी दलसिगार काल को पुत्री थी और संवत् १६२८ में पैदा हुई थी। इतनी भोली-भाली यी कि बचपन में आपको लोग 'बउर्रानिया' कदते थे। १४ वर्ष

4

अम्बिकाप्रसाद

11 December 2023
0
0
0

बाबू अम्बिकाप्रनाद 'आारा' की कलक्टरी में मुख्तारी करते थे। जब सर जार्ज क्रियर्सन साहब श्रारा में भोजपुरी, का अध्ययन और भोजपुरी कविताओं का संग्रह कर रहे थे, तब आप काफी कविताएँ लिख चुके थे। आपके बहन-से

5

राजकुमारी सखी

12 December 2023
1
0
0

आप शाहाबाद जिले की कवयित्री थीं। आपके गीत अधिक नहीं मिल सके। फिर भी, आपकी कटि-प्रतिभा का नमुना इस एक गीत से ही मिल जाता है। आपका समय बीसवीं सदी का पूर्वाद्ध अनुमित है। निम्नलिखित गीत चम्पारन निवासी श्

6

माताचन्द सिह

13 December 2023
0
0
0

आप 'सहजौली' (शाहपुरपड़ी, शादाबाद) ग्राम के निवासी हैं। आपकी कई गीत पुस्तके प्रराशिन है पूर्वी गलिया-के-गलियारामा फिरे रंग-रसिया, हो संवरियो लाल कवन धनि गोदाना गोदाय हो संवरियो लाल ।। अपनी मह‌लिया भी

7

रामेश्वर सिंह काश्यप

14 December 2023
0
0
0

आपका जन्म सन् १८१६ ई० में, १६ अगस्त को, सामाराम ( शाहायाद) ग्राम में हुआ था। पास की थी। सन् १३४ ई० में पान किया। इन तीनों परोक्षाओं के नजदीक 'सेमरा' आपने मैट्रिक की परीक्षा सन् १८४४ ई० में, मुंगेर जिल

---

एगो किताब पढ़ल जाला

अन्य भाषा के बारे में बतावल गइल बा

english| hindi| assamese| bangla| bhojpuri| bodo| dogri| gujarati| kannada| konkani| maithili| malayalam| marathi| nepali| odia| punjabi| sanskrit| sindhi| tamil| telugu| urdu|