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डुगडुगी

9 January 2024

2 देखल गइल 2

सबेरे मुँहअन्हारे डुगडुगी बजावत खुल्लर गाँव में निकलि गइलें। जवन मरद मेहरारू पहिलही उठि के खेत बारी कावर चलि गइल रहे लोग, ओह लोगन के बहरखें से डुगडुगी सुनाइल त सोचे लगले कि ई का भईल? कवने बाति पर एह समे डुगडुगी लागत बा ? फरहरे आपन-आपन कार निपटा के सभे गाँव के राहि धइल कि पता चले का भइल। जवन बूढ़ पुरनियाँ अबहिन बिछौना नाहीं छोड़ले रहलें उनके आँखि डुगडुगिये सुनि के खुललि। लइका कुलि डुगडुगिए सुनिके जगले सों आ आँखि मीसत बहरा चलि देले सों। ओकनी का ई बुझाइल कि मदारी आ गइल भालू-बानर लेके आकि अस्सी मन के धोबिन वाला बैसकोपवा आ गइल। बैसकोप के जबाना बहुत पाछे छूटि गइल बा, अब त गाँव में पनरह-सोरह गो टीबी तबले गरजत रहेंले जबले बिजुली नाहीं चलि जाले। एहर कुछ दिन से पुरनका बैसकोप के बकसा लिहले एगो अधपगला कब्बो गाँव में आ जाला। उहो डमरू बजा के लइकन के जुटावेला। कुछ लड़का बैसकोपवे बुझि के जुटि गइलें।

बरमथान के पिप्पर तर खाड़ होके खुल्लर एकबेर जोर से डुग डुग हुग-डुग बजवलें फेरू हाथ रोकि के, मुँह उठाके बोललें सुनीं पंचो ! आजु केहू कहीं जनि जाई। आजु दुपहर में गांव के खरउर में परधान मंतिरीजी उघाटम करे आवत वानों। आप सब बूढ़ जेवान, लइका सेयान, मरद मेहरारू नहा-नहा फरछीन लुगा कपड़ा पहिरि के ओही जा जुटि जाई। पहिले चहुँपि के जगहा छेका लेई ना त देस-देसान्तर के लोग आवत बा, जगह नाहीं मिली।

डुग डुग डुग डुग करत खुल्लर आगे बढ़ि गइलें। सभे एक दूसरे से पूछे लागल-'का करिहें परधान मंतिरी जी! 'जे तनि लाल बुझक्कड़ रहल ऊ कहले- 'आरे उघाटम करिहें अउर का करिहें ।'

तबले बुलेटवा लउकल। ओके देखि के कई जने एक्के साथे फाटि परलें- 'ए बुलेट ! कथि खातिर आवऽ ताड़े परधान मतिरोजी हो।' 

बुलेटवा मोछी में मुस्काइल, ओह मोछी में जवन अबहिन जामलि नाहीं रहे। जवाब दिहले की बदले उलटि के पूछलसि 'एतना दिन से परधान मंतिरी के अइले के परचार होत बा, तहन पाच जनते नइख जा का करे आवत बानें । केहू जने खरउरियो कावर नाहीं गइलऽ ह जा ? जाके देखऽ जा उहाँ का होत बा। कल्हिएँ से उहाँ केतना गाड़ी घोड़ा जुटल बा, मार साफ सफाई होत बा, रतिए भरि में तजिया एतना ऊँच मचान ईंटा सीमिट से जोरा गइल बा, आ तहन लोगन के कुछ मालुमे नइखे !

बबलुआ के नाहीं खेपाइल ! सोझे पूछि परल' आरे ऊ त सभे देखत बा कि खरउरी में कुछु होत बा। तोहसे ई पुछात बा कि परधानतिरी जी का करे आवत बानें ?'

बुलेट कइलें 'ऊ त सुनते बाडऽ उघाटिम करे आवत बाड़ें !' बबलू पूछलें- 'कवन चीजु करे आवत बाड़े ? उघाटम का होला ?'

बुलेट सोच में परि गइलें कि का बताई, तबले उनके नजरि फुलेना मास्टर की ओर घूमि गइल। उनसे पूछलें 'ए मास्टर जी! आजु परधान मतिरी का करे

आवत बानें ?'

मास्टर जी एहर-ओहर देखि के बुझि गइलें कि एह सब भक्वोन्हरन के कुच्छू नइखे मालूम। सब केहू सुनि लेव इतना ऊँच आवाज क के फुलेना मास्टर कहलें 'अरे भाई ! अपना गाँव के खरहुरि के भागि फरिया गइल आ एकरी सथही एह जिला-जवार के भागि फरिया गइल। जवन जगह सब दिन से बेकार परल रहलि ह ओहिमें एगो बड़ा भारी बिल्डिंग बनी। ओह में देसविदेश के बड़का पढ़वइया लोग आके नवकी-नवकी बाति सिखइहें। ओही के उद्घाटन करे खातिर परधानमंत्री जी आवत बनें।'

अस्सी बरिस के पुरनिया छेदी मियाँ रिसिया के कहलें 'क हो मास्टर ! तू ई कइसे कहत बाड़ाऽ कि खुरहुरि सबदिन से बेकार परलि रहलि ह ! कई गाँव की बिच्चे कहे तो ओतना जगहि बा जहाँ गाइ गोरू चरेलें, लइका-सेयान खेललें, दिसा-मैदान होखेलें आ गरीब-गुरबा एकाध बोझा खरपताई ओही जा से काटि के ले आवेलें। कइसे ओह जगहि के तू बेकार कहत बाड़ऽ।'

फुलेना मास्टर कुछ बोलें तबले पप्पुआ के दोकान से लौडफेकर गरजल- 'ज्जा झारिकेऽ। अइहऽ अतवार के'। सब लोग बुझि गइल कि बिजुली गाँव में आ गइल। जबले बिजुली रहे ले पप्पू के बाजा चिघरत रहेला। राति के केहू बेमार केतनो हैरान परेशान होखत रहे, पप्पू के बाजा केहू बन्न नाहीं करा सकेला। ऊ तब्बे चुपाला जब बिजुली कटि जाले।

अबहिन सुरूज नाहीं उगले बाड़े। फरछीन हो गइल बा। रोज गाँव धीरे-धीरे जागेला। आजु पुरहर जगरम एक्के बेर हो गइल बा। सबके जीउ चकचियाइल बाटे। बुझात बा कुछ अजगुते होखे वाला बा। का होखी, सभे ईहे जानल चाहत बा। फुलेना मास्टर गम्हीर सुभाव के मनई हवें। जवन सुनत समुझत रहलें ऊहे बोलि दिहले के खरहुरि के जगहि बेकार परल रहलि ह अब ओहिजा बड़हन बिल्डिंग बनी। बाकिर जब छेदी मियाँ खरहुरि के महातम बखनलें त फुलेना मास्टर के आँखि खुलि गइल। सोचे लगलें कि अब त आफति हो जाई। कई गाँव के गाइ-गोरू के चरे के कवनो जगहिए नाहीं रहि जाई। मरमैदान से लेके खर पतहर ले अइले के कवनो उपाहि नाहि रहि जाई। जेकर छान्हि मड़ई पलानी ओही खरहुरी के असरे छवाले छोपाले ऊ लोग कहाँ जइहें? ईहे कुलि सोचत फुलेना मास्टर पंडीजी की दुआर के राहि धइलें उनहीं से चलि के पूछल जाय कि ई कुलि का माजरा है।

पंडीजी की दुआर पर पहुँचलें त देखलें कि उहाँ तीन चारि गो जीप आगे खाड़ होत रहली सों। शहरी लोग अबहिन उत्तरते रहल। छन भरि फुलेना मास्टर थमि गइलें, तबले पंडीजी इनके देखि लिहलें आ इशारा कके अपनी लगहीं बोला लिहलें। चुपचाप फुलेना मास्टर उनकी लग्गे चलि गइलें। पंडीजी हाथे से एगो कुर्सी देखा के कहलें 'आवऽ।' मास्टर चुपचाप ओही कुर्सी पर बइठि गइलें। ओहर गाड़ी से उतरे वाला लोग के निम्मन गद्दी वाली कुर्सी पर बइठावल गइल। चाह-चूह आवे लागल। नानुकुर के बाद सब केहू चाह पीए लागल। फुलेना मास्टर के हुरपेटि के पंडीजी चाह के गिलास पकड़वा दिहलीं। ऊहो चुसकी लेवे लगलें। सोचलें कि अपनी ओर से कुछ पुछले के गरज नइखे। एतना सबेरे लोग आइल बा, त एही लोगन के बातचीत से कुलि मामिला फरछिया जाई। चाह के गिलास हाथ में ले के फुलेना मास्टर सबके चेहरा पढ़े लगलें। दिन उगि गइल रहल। सब कुछ साफ-साफ लउकत रहल, बाकिर केहू की बाति में परधान मंत्री के नाँव नाहीं आवत रहे। सब लोग एहरे-ओहर की बाति में आ चाह-चूह में अझुराइल रहल।

एगो उज्जर के गाड़ी आके खाड़ भइलि। फुलेना मास्टर कब्बो एइसन मोटर नाहीं देखले रहलें। एह गाड़ी के अइले आ खाड़ भइले में तनिको आवाज नाहीं भइल। फाटक से बहरा निकलि के जवन आदिमी खाड़ भइल, ओकर कपड़ालत्ता अजबे निम्मन रहल। पहिले से बइठल सब लोग हाथे के गिलास लिहलहीं उठि पहलें। सब केहू आवे वाला बड़मनई के लेहाज में उठल, फुलेना मास्टर काहें बइठल रहतें। क किनारे रहलें, तब्बो उठि के खाड़ हो गइलें।

आवेवाला मातबर मनई सोझे पंडीजी को लग्गे जा के उनकी ठेहुना के धीरे से छुवलें। पंडीजी के चेहरा उजास से भरि गइल। धधा के कहलें- 'आवऽ साहेब ! आवऽ बइठऽ।' अपनी बगल की कुर्सी पर उनके बइठा के पंडीजी चाह खातिर बोललें। जुरन्ते चाह हाजिर हो गइल। फुलेना मास्टर की आँखि के पट्टा एकदम्मे खुलि गइल जब ऊ कुमार साहब की मुँह के देहिं कावर खूब धेयान लगाके देखलें। उनकी मुँह से सोझे निकले जात रहे- 'अरे ई त फेंकना ह।' बाकिर एक्को छनके देरी कइले बिना आपन दाँत बइठा लिहलें। आँखियों मूनि लिहलें। कहीं एइसन न होखे कि उनकी आँखए से ऊ बबिया बहरिया जा, जवने के मुँह से नाहीं बहरियाए दिहलें। फुलेना मास्टर की मुनाइल आँखि के भित्तर सगरी फिलिम चले लागल।

चौबे मास्टर कब्बो उनकी घरे आवें। राति भरि रहें। दुसरे दिने नहा खाके सथहीं इस्कूले जा लोग। एक दिन अइलें त कहलें 'फुलेना भाई! बरियार लइका उपरइतऽ हो। नेताजी अपने साथे राखल चाहत बाड़े। उनका देहिं चतववले के सौख ह। खाए-पीए के निम्मन मिली, तर तनखाह ठीके मिली। कवनो के उपरावऽ, बिआह ना भइल होखे त अउरी निम्मन रही।'

फुलेना फेकना के बोलवलें। आइल, त पुछलें कहो फुकन, नेताजी की साथे रहबऽ ? कार मधे कार. ई बा कि उनके देहि चाँते के परी आ खाए पहिरे के जनते बाड़ कि मलपुए चाँपे के बा। जे नेताजी के खियाई, तोहरो के खियइबे जाई।'

फेकन के कवन उजुर रहे। उनके रोकहू-टोकहू वाला के रहल ? लोग न लरिका-मुँहे लागल करिखा। एहर-ओहर घुमत रहलें। खाए पहिरे के मिली तनखाह नहियों मिली त का भइल ? उनके हालि ई रहे कि जहें साँझि तहें बिहान। जहाँ भहरा जाँ ओइजा दू कौर दाना मिलिए जा। फुलेना मास्टर के बात सुनिके जुरन्ते चले के तइयार हो गइलें। चौबेजी कहलें 'अब्बे नाहीं। बिहाने खा-पी के इस्कूले चले लागबि त सथहीं चलिहऽ। डकबँगला में नेता जी से भेंट करा देइबि। आगे तू जनिहऽ, तहार करम जानी।'

आगे करम के दुआर खुले लागल। नेता जी फुकन के अपने साथे ले लिहलें। एक्को छन बिना फुकन के उनका चैन ना मिले। साथे खाइल-पीयल, सूतल बइठल। दुसरही दिने नेता जी की लग्गे एक जने सेठ अइलें। नेता जी कहलें- 'हे सेठ ! हई देखऽ ई पी साहब हउवें। इनकर नाँव ह पी साहेब। इनके खातिर चारि जोड़ा पैंट बुश्शर्ट अब्बे जा के किनवा द। सेठ जी अघा गइलें। नेता जी से कहलें-' अब्बे जात बानीं। चलऽ बाबू।' फेकन उनके मोटर में बइठि के गइलें। आ सियल-सियावल कपड़ा के सबसे बड़की दोकानि में जा के जवन-जवन रंग पसन्न कइलें, ओह रंग के कपड़ा किनवा लिहलें। ओही मोटर में लवटि के अइलें त नेताजी कहलें- 'हई रूपया ल। आ सुनऽ, आजु से तहार नाँव फेकन नाहीं रहि गइल। अब तहार नाँव हो गइल पी साहेब। सब केहू तहके पी साहेब कही। हमहूँ कहबि। केहू फेकन कहे त डाँटि दीहऽ। बुझि गइलऽ ?

पी साहेब एतना ढंग से बुझि गइलें कि भुलाइए गइलें कि कब्बो उनके नाँव फेकन.... फेकना रहल। अब पुरहर पी साहब हो गइलें। नेता जी के पारस परस से फेकन कंचन हो गइलें। साल भरि में एइसन देहिं धाजा उगि अइल कि उनके महतारियो बाप देखित त चीन्हि नाहीं पाइत कि ई उनके बेटा हवें। ऊ लोग परलोक से अपने लाल के देखि के सिहात होइहें।

जब-जब नेता जी लौटें, उनकी साधे पी साहेब रहें। चौबे आ फुलेना मास्टर फेंकन के भागि-करम देखि देखि सिहात रहें। ओह लोग का ई बाति चुभुलवले में बड़ा मजा मिले कि 'देखों न जी ! भागि एके कहल जाला! कइसन रहल, कइसन हो गईल।' नेताजी कब्बो साहब से कहें कि जा गाँवे घूमि आवऽ। ऊ कहें कि के बा हमार गाँवे में ? अठर नाहीं त लोग फेकना कहि के विसरल विपति मन परा देई। जाए दीं, हम आपके छोड़िके कहीं नहीं जाइबि।'

नेताजी अपने परभाव से एक से एक बड़का लोग से पी साहेब के चिन्हा-परची करावत रहें। नेताजी के परभाव से जइसे फेकन पी साहेब हो गइलें ओही तरे का जने केकरे परभाव से कि केकरे भागि करम से नेताजी की पाटी के दिन बहुरल। नेताजी मंत्री हो गइलें। उनके कवनो अइसन महकमा मिलि गइल कि देस के सगरी सेठ लोग उनके चरनदास हो गइलें। नेताजी से मंत्री भइले पर उनके मान जेतना बाढ़ल ओसे कई गुन्ना मान फेकन के बाढ़ि गइल। तबले ऊ एतना चलबिद्धर हो गइल रहलें कि कब्बो कब्बो मंतिरियो जी के माथा घूमि जा इनके चतुराई के बाति सुनि के।

एक दिन पी साहेब नेता जी से कहलें कि एगो मकानि हमरो दिल्ली में होखे के चाहीं। मंत्रीजी उनके मुँह ताके लगलें। कुछ देर बादि पुछलें- 'ई बाति तहरा से कवन सेठ कहलें हैं ? साहेब सेठ के नाँव बता दिहलें। मंत्री जी चिहइलें। पुछलें-'उनके कवनो कार हमसे बाटे का ?'

दिल्ली में पी साहेब को नाँव से मकान किना गइल। पी साहब के एक जने सेठ गाड़ी कोनि के दे दिहलें। पी साहब की आगे पाछे दिल्ली के लइकी घूमे लगली सों- ई कुलि बाति मंत्री जी अपनिए मुँह से चौबे मास्टर आ फुलेना मास्टर के बतवले रहलें। एक बेर ई दूनू जने कवनो काम से दिल्ली पहुँच के मंत्री जी से मिललें। मंत्री जी एह लोग के खूब खातिर बात कइलें। एह लोग के काम करवा दिहलें। ऊहे पुछलें-'अरे अपने फेकन के देखलऽ ह जा ?' कहि के मंत्री जी हाँस पहलें। जब हँसी थम्हल त बतावे लगलें कि साहेब देहि धाजा आ कपड़ा लत्ता से त साहेब होई गइल बाड़े, हमरी बुधियो से आगर हो गइल बाड़ें। हमरी मंत्रालय के अपसर लोग हमसे जियादे इनही के खेयाल राखेलें।

चौबे मास्टर आ फुलेना मास्टर एक दूसरे के मुँह ताकत रहि गइलें। ओहिजा से लवटि के जवार-मथार में साहेब के धन-बल-बुद्धि के कहानी दिन राति बढ़िआए लागलि। साल भरि के भितरे मंत्रीजी की मउवत के खबरि आइल बाकिर केहू एह बाति के पता सुराग नाहीं पावल कि साहेब कहाँ गइलें। धीरे-धीरे सुनाए लागल कि उनके कोठी दिल्ली, बंबई, कलकत्ता सब जगहि बाड़ी सँ। साहब हवाई जहाज से उड़त रहेलें। गाँव-जवार का ओर कब्बो झैँकबे नाहीं करेलें। एहर के जवन लोग दिल्ली बंबई जात आवत रहेलें ऊ लोग एक-से-एक नवकी बात साहेब के बारे में बतावत रहेलें।

फुलेना मास्टर ओह दिन के बादि कब्बो इनके झाँकियो नाहीं पवले रहलें, आजु छछात समने देखि लिहलें। आँखि खोलि के देखल चहलें कि जवन देखले है ऊ सपना त नाहीं रहल ह। फुलेना मास्टर आँखि खोललें, तबले साहेब ओही गाड़ी में बईठि के बिना अवाज कइले चलि दिहले रहलें। फुलेना मास्टर उठि के पंडीजी की लग्गे जा के खाड़ भइलें। पंडीजी बुझि गइलें कि ई का कहल चाहत बाड़ें। पुछलें- 'इनके चिन्हलऽ ह ? फुलेना मास्टर चिहा गइलें कि पंडीजी हमरे मन के बाति कइसे जानि गइलें। तबले पंडीजी अपनही बोलि परलें 'अरे ईहे न तहार फेकन हवें, जिनके तू आ चौंबे मास्टर मंत्रीजी किहाँ पहुँचवले रहलऽ जा ! ई कइसे आइल रहलें हैं। अरे हम त ई पूछे आइल रहनीं कि आजु परधान मंत्री जी कवने चीज के उद्घाटन करे आवत बानीं ?

पंडीजी प्रधान मंत्री सबद सुनि के भँउह सिकोरि लिहलें बाकिर फेरू कुछ सोचि के सम्हरि गइलें। कहलें 'नइखऽ जानत ? ई सब माया तहरे फेकन आरे नाहीं हो-पी साहेब के हउवे! खरउरी में एगो बड़ा भारी बिल्डिंग बने जात बा। ओकर आधा खरचा सरकार देति बा। ओही के आजु भुँइपूजनि होई न।' फुलेना मास्टर के मुँहे बवा गइल। कहलें 'एतना बड़हन हो गइल

फेकना?'

पंडीजी मुस्कइलें। कहलें 'धीरे बोलऽ कवनो सुनि लेई आ ओसे जाके कहि देई कि फुलेना तहके अब्बो फेकना कहत बाड़े, त बूझि लीहऽ। आ सुनऽ। जा के तड़यार होखऽ। चले के बा न ?' कहि के पंडीजी घूमि गइलें। फुलेना मास्टर का उछन्नर बारि गइल। मन करे लागल कि उड़िके चौबे मास्टर की लग्गे चलि जाईं आ बता देईं कि आजु परधानमंत्री केकरी भइले एह गाँव की खरउरी में आवत बाड़ें। फरहरे घरे पहुँच के दू लोटा पानी डरलें। घर के लोग चिहाइल कि रोज दस बजे नहाए वाला मास्टर आजु अब्बे काहें नहात बाड़ें।। मस्टराइन के फिकिर भइल कि नहा के आवते खैका माँगिहें। कुछ बनावें, तबले मास्टर जल्दी-जल्दी कुर्ता धोतो पहिरि के चप्पल पहिरतें निकलि गइलें। पाछे से मस्टराइनि पुछली 'खा के नाहीं जाइबि ?' हाथे से बरजि दिहलें आ निकसि गइलें।

पप्पू के दोकान जागि गइल रहल। चाह बिस्कुट नमकीन पानमसाला के बिकाइल-खवाइल चालू हो गइल। बाजा त पहिलहीं चालू रहल। दिन पुरहर निकलि के चमके लागल रहे। सावन के महिना में एतना चटकार दिन। गरमी उसीनि के मुवा देति, बाकिर एइसन पुरुवा लहालोट होति बा कि का कहे के। जहाँ बरखा के बहारि रहे के चाहीं उहाँ धूरि उड़ावत पुरुवा के बहारि आइल बा। अधबुढ़ लोग जहाँ देखीं उहें, कपारे हाथ लगवले मुरझाइल बाड़ें। सबकी मुँहे में एक्के बाति बा कि एह तरे बरखा चटकि गइल त सोझे अकाल परि जाई। आधा बावग भइले नइखे। जेकर खेत रोपा गइल बाड़ें, ओकर जीउ झुराइल बा कि केतनो पानी चलावल जाई धान नाहीं उजही, जबले कचकचा के सावन नाहीं बरसो। एहर सावन धूरि बरसावत बा।

नवहा जेवानन के जीठ झुराइल बा एह बाति पर कि जिला जिला में जवन गन्ना ग्रामसेवक, पंचाइत सिकेटरी आ ग्राम विकास अधिकारी के परिच्छा भइल रहल ऊ सब रद्द हो गइल। एक जगहि खातिर सौ पचास जने मुँह जोहत रहेलें। कई जने अपनी-अपनी औकाति भरि घुसवो जुटवले रहलें। सुनात त ईहो रहल कि जेकर होखे के रहल ओसे पहिलहीं पुरहर माल असुला गइल रहल, बाकिर का जने का भइल कि सब करवाइए रद्द हो गइल। 

विद्याभूषन सिंह सन् अस्सी में पीएचडी के डिगरी पवलें त अखबारन में फोटो छपाइल। गाँव भरि खुसिवाली मनावल। अखंड किरतन भइल। मिठाई बँटाइल। ओही सालि एमे पास लड़की से बियाह भइल। अबले तीनि लड़का हो गइलें। आजु ले उनके कवनो पक्की नोकरी नाहीं मिलल। कुछ दिन ले बड़ा हल्ला रहल कि कलटर होखे जात बाड़ें ऊ हल्ला थम्हल त ई सुनाइल कि अनवरसीटी में पढ़इहें। कहो नाहीं भइल त एहर-ओहर इस्कूल कालेज में जोगाड़ लगावे लगलें। साल भरि छव महिन्ना खातिर कहीं पढ़ावेलें, फेरू कुछ दिन बइठि के अगोरेलें। कई बेर खेत बेचि के घूस देबे के जोगाड़ कइलें बाकि भागि के किल्ली का जने केतना जोर से बन्न बा कि कबो खुलबे नाहीं कइल। आठ दस बरिस ले अगोरि के बी.एड. के परिच्छा दिहलें। ओमें पास हो गइलें त ई सुनाइल कि अब कवनों इस्कूल में मास्टरी मिलि जाई। एहू खातिर अगोरत-अगोरत जुग बीते लागल त परसाल बीटीसी के परिच्छा दिहलें। ओमें पास हो गइलें तबसे जोहत बाड़े कि कवनो प्राइमरी पाठशाला में मास्टरइ मिलि जाई, बाकि अबहिन त ओहू के कवनो आस भरोस नाहीं लउकत बा। चालीस बरिस के हो गइलें। नोकरी के आधा समे ओके खोजते में हेरा गइल। नाँव विद्याभूषन आ कमवो ऊहे, बाकिर भागि के दुब्बर बाड़ें त का करें। सग्गर जवार मधार मानेला कि इनकी भित्तर केवनो ऐब नाहीं समाइल। न ताड़ी सराब, न गाँजा भाँगि, न पान सिगरेट-कौनो नसापानी से इनकर लगाई-छुआई नाहीं भइल। एक्के चाह पीए खातिर बिहाने पप्पू की दोकानि पर आके बइठि जालें। इनहीं कि कहले पर पप्पू डेढ़ रुपया वाला अखबार मँगावे लगलें। विद्याभूषण एकहक अच्छरि चाटि ले लें, तब्बे पप्पू के दोकानि छोड़ेलें। नवका जेवान बहुत छिछोर बाड़े बाकिर इनके अदब माने लें। कब्बो कवनो हल्लुक-पातर बाति इनके सामने नाहीं कहेलें। कवनो दरखास लिखे के होखे, कवनो फारम भरे के होखे त ईहें धरालें। सबके सब काम करत रहेलें। आपन कवनो काम बेचारू नाहीं खोजि पवलें।

विद्याभूषण सिंह पप्पू की दोकान पर आके खाड़ भइलें। पप्पू चाह के गिलास उनके हाथे में थम्हवते रहले कि तबले चिल्लर पत्रकार जुटि गइलें। चिल्लर के नाँव उनके आजा रामसुभग धइलें, बाकि उनके दुब्बर पातर देखि के सभे उनके चिल्लर कहे लागल। आजु चलीसा लागे जात बा तब्बो चिल्लरे कहालें। पहिले समने केहु चिल्लर कहे त रिसियाँ, झगरा करें, अब कुछ नाहीं कहेलें। एगो दू पन्ना के अखबार महिन्ना में एक बेर छपवावलें, ओही के लिहले लिहले घूमत रहेलें, सब पुलिस दरोगा, नेता-परेता, हाकिम हुकाम उनके चीन्हेला कि ईहें चिल्लर पत्रकार हउवें। देस दुनिया के जवन बाति केहू नाहीं जाने बूझेला ओके चिल्लर पत्रकार से पुछाला। उनकी खातिर कुछऊ अइसन नइखे जवने के ई नाहीं जानत होखें। बतावत-बतावत कई बेर फेचकर फंकि देलें बाकि पूछेवाला के अक्किल के ताला नाहीं खुलेला त कहेलें 'ज्जा ! तहके के समुझा सकेला ! जब बुधिए नाहीं बा तहरी लग्गे त हम कइसे समुझा सकौलें। लोग अपने चुपा जाला।

चिल्लर पत्रकार की जानकारी आ बुद्धि गेयान पर लोग चाहे जेतना हँसत होखे, पुलिस-दरोगा से छोट-बड़ काम-काज खातिर उनहीं के धरेला। चिल्लर पत्रकार कचहरी थाना के कुलि बाति जानेलें। केहू के कार होखे भरिसक देउरेलें। उनके देखते विद्याभूषन सिंह पप्पू से कहलें 'द हो पप्पू, इनहूँ के चाह द।'

चिल्लर चाह सुरुके लगले। दोकान पर जवन रेखिया उठान मंडली रहल ओमें से एक जने आगे बढ़ि के पुछलें 'ए पत्रकार साहेब ! आजु अपनी गाँवे परध ान मतिरी आवत बानें ?'

'ऊ हो खरउरी में आवत बाड़ें ?' कहि के दुसरका हँसल। 'खरउरी में चिरउरी में हो सम्पादक जी ? सब देस त एह लोगन के चरउरी होइ गइल बा, जहाँ चाहें तहाँ चरें।' विद्याभूषण सिंह चिल्लर पत्रकार के कब्बो कवनो अउर नाँव से नाहीं बोलावेलें। सम्पादक जी कहले पर चिल्लर के चेहरा उजियार हो जाला। कहलें-'सुनत त हमहूँ बानी कि परधान मंत्री आवत बाड़े, बाकिर ओइसन कवनो तइयारी नइखे लउकत। परधान मंत्री आवत रहतें त अबहिन ले कलट्टर कमिश्नर लोग कई दिन से एहर ढेला ढोवत रहतें। खरउरी में कुछ भीरभार काल्हि से लउकत बा, बाकिर एइसन नइखे कि परधानमंत्री चाहे कवनो मंत्री आवत होखें।'

'ईहे त हमरो बुझात बा, बाकि कई दिन से गौगा बा कि परधान मंत्री अइहें आ आजहु खुल्लर डुगडुगी लगाके ईहे बात कहले हैं।' विद्याभूाण सिंह कहलें। सम्पादक हँसलें। कहलें 'आरे, खुल्लर के कौन बाति बा ? जवन कहे केहू ओही के डुगडुगी बजा के दोहरा तिहरा दीहैं।'

अबहिन इनके बाति पुरहरो नाहीं भइल रहल कि भरभर आठ नौ गो चमकत कार कस्बा की ओर से आ के बरम थान की लग्गे सड़‌किए पर खाड़ हो गइली सों। फटाफट फाटक खुले लागल आ एक से एक फिलिमवालन की लेखा लड़का लड़कनी उतरि के खाड़ होखे लगलें। गाँव भरि के लोग धीरे-धीरे ओहो जा डुगुरल चलि आइल। पप्पू के दोकान पर जवन लोग जुटल रहे, ऊहो लोग ओहरे डगरि चलल। 

चिल्लर पत्रकार आ विद्याभूषन सिंह जब उहाँ पहुँचलें त सबसे निमनकी गाड़ी में से हिरोइन अइसन एगो लइकनी उतरि के खाड़ होति रहे। ओके देखि के एह लोगन के आँखिए चोन्हरिया गइलि। सबकी मन में एक्के गो सवाल रहल कि ई के हई ? कइसे आइल बाड़ी ? के-के खोजत बाड़ी सब आँखिए-अँखिए आपन बात पुछत-जाँचत रहे, मुँहें से लेकार केहू के नाहीं फूटल। तबले पंडीजी के बड़की पतोहि आ गइली। उनके देखि के ऊ हिरोइन आपन चसमा उतारि के हाथे में ले लिहलसि आ लपकि के उनके गोड़ छू के परनाम कइलसि। अब त का पूछेके ? गाँव के मेहरारू बिना कुछु जनले समुझले ओके सराहे लगली सों। लइकन के जोउ हरियरा गइल। ओकनी का बुझाए लागल कि कुछ मजिगर होखे वाला बा।

पंडी जी के जेठका बाबू शहर में रहेलें। ओही जा से जीप से आके कबो-कबो आपन खेती-बारी घर-दुआर देखत रहेलें। उनके मलिकाइन के गाँव के आधा लोग काकी कहेला, आधा लोग भाभी। चिल्लर पत्रकारों उनके भाभिए कहेलें। ऊ कुछ पूछल चहलें, तबले भाभी उनके लग्गे बोला लिहली। मगन चोला चिल्लर जब पहुँचलें त भाभी कहली 'का देवर जी, इनके चीन्हत नइखीं ?' देवर जी भकुवा गइनों-कबो देखले होखें तब न चीन्हें। का जाने कि ई परी के हई ?

इनके चुप देखि के भाभी कहलों-' आरे रउवाँ देस-दुनिया के खबर राखे वाला सम्पादक हई। इनके नइखीं जानत ? ईहे न श्री पी साहेब के मैडम हई ? दिल्ली से आपे लोग से भेंट करे आइल बाड़ी।'

पो, साहेब के नाँव त गाँव भरि में का जवार भरि में आपन डंका बजवते रहल। सब लोग बूझि गइल कि उनही के मेहरारू हई। मेहरारून की झुंड में कनफुसकी होखे लागल का कहली ह ? के हई ? तनि हमनो के बताई न ? भाभी के मन में आइल कि कहि दे कि फेकन बो' हई, एतना कहते सब केहू समुझि जाइत, बाकि पी सहेब के रोबदाब से ऊ एतना चंताइल रहली कि मन के बाति मनहीं में रोकि के अच्छर जोरे लगली कि कइसे बतावें। कहली-' आरे बहिनी ! अपने गाँव के साहेब के नाहीं जानेलू जे मंत्री जी के साथे दिल्ली चलि गइल रहलें लरिकाई उमिरिए में ? उनही के न ई घरवाली हई....।'

कई मेहरारू एकसथहीं पूछि परली 'फेकन के? ई फेकन बहू हई ?' भाभी मूड़ी हिला दिहली बाकिर मन में लजाए लगली। ओहर ओह हिरोइन पर कवनो परभाव नाहीं परल। ई देखि के भाभी तनि ऊँच अवाज में गाँव के मेहरारू लोग से कहली 'तहन पाच एही जा जुटान करऽ जा, इनके चाहपानी पिया के हम अब्बे ले आवत बानीं। ई तहनिए लोगन से बतियावे आइल बाड़ी।' 

फेकन बो- फेंकना बो इहे ह ?'

'आहि है, ई त परी बा।'

'आरे हई देखऽ ए दादा' एह तरह के आवाज सुनत भाभी ओह मैडम के बाहिं धऽ के अपने घर की ओर चलि देहली। उनके साथ जेतना लोग आइल रहे, सब पाछे-पाछे ओहरे चलल।

जात-जात भाभी चिल्लर पत्रकार से कहली 'देवर जी, रउवाँ आ मास्टर जी मिलि के तनि गाँव-गाँव के मरद लोग के जुटा लेईं। सबका खरउरी में चलही के बा। ओसे पहिले ई तनि सबसे जान-पहचान कइल चाहत बाड़ी। त हम जाईं न ? हँसिकं भाभी पुछली त चिल्लर पत्रकार बिना सोचलहीं बोलि परलें हैं-हँ

रउवाँ चलीं। हम अब्बे सबके जुटा देत बानीं।'

भाभी आगे बढ़ि गइली। उनकी साथे शहर से आइल सब जमात चलि गइल। पाछे-पाछे लइका चललें। मेहरारू अब खुलि के आपन-आपन बाति फरियावे लगली स।

'कऽ बहिनी ! आजु ले त कब्बो ई मेमिनि गाँव में गोड़े नाहीं डरले रहलि ह। अब का भइल ?' एक जनी कहली।

दुसरकी घोंटवली- 'आरे फेकना के जनम धरती ईहे न ह। केतनो बड़मनई हो जाव, अपनी धरतिया पर त अवही के परेला।'

तिसरकी कहली 'बाकी ए बहिनी ! फेकन काहे नाहीं अइलें हैं ?' तले एगो इसकुलही लइकनी कहलसि- 'ऊहो आइल बाड़ें। बिहनही

पडित बाबा की दुआर पर आइल रहुवें।'

ओह लड़की के बाति सुनि के विद्याभूषण सिंह सम्पादक जी से पुछलें- 'का हो ? ऊ हो आइल बाड़ें ?'

चिल्लर कहलें' अइलहीं होइहें। जब ई आइल बाड़ी, त ऊ काहें नाहीं अइहें ! बाकी एक बाति नइखे बुझात हो....!' विद्याभूषण सिंह पुछलें 'कवन बाति नइखे बुझात ?

चिल्लर पत्रकार मुँह गम्हीर क के कहलें 'ई हे नइखे बुझात कि ई कुलि मामला का ह ? ई सब जुटान काहे, खातिर होत बा ?'

'हमरा त कुछ बुझात बा, बाकी अबहिन नाहीं कहबि। तू त पत्रकार हउवऽ, सम्पादक हठवऽ। तहके त ई कुलि मामला पहिलहीं जानि जाए के चाहीं।' कहिके विद्याभूषण मुसकइलें।  

चिल्लर पत्रकार बोले खातिर मुँह खोललें, बाकी उनके मुँह बवइले रहि गइल। ज्ञानू लाल के उठा के लइकन के एगो झोंझ नारा लगावत आ जमकल। नारा जवन सुनाइल तवने से एह दूनू जने के जीठ सनसना गइल।"

एगो कहलसि 'खरउरि के नास'

कुल्ही चिल्ला के जवाब दिहलें सनि 'नाहीं होई, नाहीं हुई।'

तीन बेर एक नारा के दोहरवले की बादि दुसरका लागल 'ई अन्हेर !'

जवाब आइल- 'नहीं चलेगा, नहीं चलेगा।'

कुछ देर ई हो चलल। तिसरका नारा आइल- 'इनकलाब !'

जबाब गरजल- 'जिन्दाबाद जिन्दाबाद।'

ज्ञानू तबले उठि के खाड़ हो गइल रहलें। बिहनहीं उनके आँखि लाल-लाल हो गइल रहली सँ।

ज्ञानू लाल उर्फ ज्ञान प्रकाश श्रीवास्तव के बाप हरीलाल लेखपाल रहलें। उनके बाप सिधारी लाल पुरनका जबाना के पटवारी रहलें। कलमि की कमाई से खेतबारी मकान बढ़त चलि गइल। चरन सिंह पटवारी लोग के घोटि के लेखपाल उगिलि दिहलें त सिधारी लाल माफी माँग के नवका लेखपाल हो के बहाल भइलें। थोरे दिन बादि साहेबसुबा से कहि-सुनि के अपने बेटा हरीलालो के लेखपाल बनवा दिहलें। विकास जोजना में झारि के नोट कमाइल लोग। आ जब चकबन्दी आइल त भादो की नदी की तरे एह लोगन के धन बढ़िआए लागल। हरी लाल के आठ बेटी पर एक जने बेटा भइलें। नाँव धराइल ज्ञान प्रकाश। अच्छरि सिखले से पहिलहीं उनके बुद्धि के बड़ाई होखे लागल। प्राइमरी पाठशाला में पढ़ा के लइका के खराब कइले से साफ नटि गइलें हरीलाल। कस्बा में कराया के मकान लियाइल।

ओही जा रहि के ज्ञानप्रकाश के अँगरेजी आ सैंस के पढ़ाई के हल्ला हो गइल। ओहर सिधारी लाल आँखि मुनलें, आ हरीलाल लेखपाली से पिसिनि पवलें। आठ बेटी के पढ़ावत लिखावत आ बियाह खोजत करत में हीरालाल के धन के थाह लागि गइल। उप्पर से जीभि चटकारे रहल, कैथे के खानपान-सौख सिंगार रहबे कइल। एक्के गो असरा रहल कि ज्ञानू कवनो बड़हन ओहदा पा जइहें त गइल लछिमी फेरू घर में लवटि अइहें। ज्ञानू के ओहदा अगोरत-अगोरत हरियो लालो चलि दिहलें। अबहिन दू लइकनी बियहे के रहिए गइली। उमिरि तीस से उप्पर हो गइल। 

ज्ञानू की पढ़ाई के आ नोकरी के का भइल, ई त गाँव वालन के नाहीं पता चलल, बाकि साल भरि से ज्ञानू गँउवें में रहत बाड़े। दू बिगहा खेत बैनामा क भइलें। अपने चाल-चलन बात-बेहवार में कब्बो कवनो गड़बड़ नाहीं करेलें। सभे सराहेला कि ज्ञानू बाबू सुभाव के बहुत नींक हउवें। एहर साँझी के कसबा की ओर से लवटत में कब्बो-कबो उनहू के गोड़ लटपटाला, बाकिर कंहू के कुछ कहे सुनेलें नाहीं।

ज्ञानू लाल विद्याभूषण सिंह आ चिल्लर पत्रकार के देखिके लजा गइलें। चिल्लर सोझे पुछि परलें 'का हो ज्ञानू ! कइसन नारा लगवावत बाड़ऽ, का भइल ?'

ज्ञानू लाल लजा के किरपलवा कोर देखलें। किरपलवा हाथी छाप नेतन में बड़ा कड़क निकलल बा आजुकाल। चिल्लर ओसे पुछलें। ऊ सोझे मुँह उठा के भाखन देवे लागल 'जानल जाव बच्चा कि देस के सगरे दलाल मिलि के सब कुछ त खा डरलें सों। अपने गाँव के खरउरि बाचल रहल ह। अब ओहू पर दाँत गड़ा दिहले बाड़े सों। दिल्ली के कुछ दलालन के मिलाजुला के पंडीजिउवा ओह पर कवनो बिल्डिंग बनवावल चाहत बा। आ मज्जा ई कि ओकरी खातिर रूपेयवो सरकारे से खरच करावत बा। अब हम खरउरि के बरबादी त नाहीं होखे देबि। 'इंकलाब !' ओहर से लइकन के जवाब चालू हो गइल 'जिन्दाबाद-जिन्दाबाद !'

एही बिच्चे पप्पू के दोकान वाला डेढ़रूपइया अखबार लेके ओकर लइका लउकल। चिल्लर छउकि के अखबार माँगि लिहलें आ विद्याभूषण सिंह की लग्गे ले जाके खोलि के बाँचे लगलें। छन भरि देखले कि बादि कहलें 'परधान मंत्री के त कवनो समाचार एइसन नइखे छपल जवने से एहर उनके कौने परोगराम होखे।'

कुछ देर चुप्पे पढ़त रहले कि बादि चिहा के बोलतें 'हई देखऽ। लोकल पत्रा पर अपने गाँव के खबर छपल त बा। एसे त ई बुझात बा कि आजु एइजा कौनो नई पार्टी के अध्यक्ष आवत बाड़ें। मजिगर बाति इहो बा कि नवकी पार्टी के नाव आ कामकाज के सज्जी भेद एही सभा में खुलासा कइल जाई। एहू से मजिगर बाति ई बा कि अपने गाँव के पंडीजी आ दिल्ली के पी साहेब के नाव से एह सभा खातिर पुरहर एक पत्रा के विज्ञापन छपल बा। हई देखऽ।' कहि के उनकी आगे पन्ना पसारि दिहलें।

अखबार देखि के विद्याभूषण सिंह मुसकइलें। पुछलें 'अब्बो आजु की सभा के मतलब नाहीं बुझलऽ ?' 

'पी साहब त ईहे फेकना हवे न ? त एकर मतलब ई भइल कि फंकना आ पंडीजी मिलि के कवनो नई पार्टी बनावत बाड़ें सों।'

चिल्लर के बाति सुनि के विद्याभूषण सिंह कहलें 'एही में एक जने होइहें

अध्यक्ष, दूसर जने होइहें महामंत्री। चुनाव अवही वाला बा। बस का पूछे के बा ?' किरपलवा एह लोग के बाति सुनत रहल। कहलसि 'ए बच्चा ! एतने नइखे। हई जौन मिलिया के मलिकवा बा, जवने के उप्पर एह इलाका कि किसान लोग के कई करोड़ रूपया बाकी बा, ऊहो एह पार्टी में बा। आजु देखिहऽ न, कहो आई। सब ठग-दलाल जुटि के, देखऽ, कौन कौन तमासा करत बाड़ें सों ! बाकी हमहूँ देखते बानीं।'

चिल्लर पत्रकार के उछन्नर बरल रहल कि अउर कवनो चटक समाचार मिलो, फेकन साहेब भेटा जाँय चाहे उनके मैडमे लडकि जाँय त बाति कुछ आगे बढ़े। तबले देखत का बाड़ें कि परधान जी चारि-पाँच गो मनइन के पोल्हावत पुचुकारत पप्पू की दोकानि पर आके खाड़ हो गइलें। बेर-बेर ऊ आदिमिया एक्के बाति कहें 'नाहीं परधान जी हमन के एह हालत में काम नाहीं क पावल जाई।' आ हर बेर परधान एक्के बाति समुझावें 'भाई ! तहनो पाच गँवहीं जवार के रहवड्या हवऽजा। आगे के करवाई हम करे जाते बानीं। तहन लोग चाह पीयऽ जा,

आ कार आगे बढ़ावऽ जा। द हो पप्पू एह लोग के चाह बिसकुट द।' 'का बाति ह हो परधान, ई लोग के हवें ? का कहत बा लोग ?' पूछत चिल्लर पत्रकार आ गइलें। ओहमें से एगो मनई आगे बढ़ि के कहलसि- 'हमन के टेलीफोन डिपाट के करमचारी हईं। आडर भइल बा कि आजु बाति होखे लागे। एहर ई हालि बा कि आधा केबिलवे कवनो काटि के उठा ले गइल बा। केबिल जहाँ गाड़ल रहल ह ऊ जगहि गृहे से भरि दिहले बाड़ें सों। परधान जी कहत बाड़ें कि कार करऽ। आपे बताई हमन के कवन कार करों जा ?'

दुसरका कहलसि-'आरे साहेब। केबिल चोरावे खातिर लमहरा के चोर नाहीं न अइहें। गँउवे में केहू धइले होई। परधान जी केबुलवा खोजवा दें आ जगहिया साफ करा दें त हमन के आजुए टन्-टन् बाति करवा दीहल जाई। केबुल नाहीं मिली त जा के जेई साहेब से रपोट क दोहल जाई। ओकरे बाद ऊजानें आ परधान जानें।'

चिल्लर पत्रकार टेलीफोन के नाँव से चकचियइलें। गाँव में ई सुविधा हो जाई त कुछ बात घर बइठल होखे लागी। थाना पुलिस कचहरी से बतियावे के जोगाड़ हो जाई। कहलें 'परधान जी, पता लगावऽ केबुल के कटले बा ? रपोट हो जाई त गाँव भरि के तलासी हो जाई।'

पप्पू सोचले रहलें कि गाँवे में. फून करे के सुविधा हो जाई त बंबई दादा लग्गे बतियावे खातिर कसबा में नाहीं जाएके परी। एही जा से बाति हो जाई। एगो पीसीओ लगवावे खातिर हरचना पइसो जमा क दिहले बा। चिल्लर के बाति सुनि के पप्पू गरमइलें- 'जे केबुल चोरवले बा ओकर तलासी होखी कि सगरे गाँव के होखी ?' परधान समुझवलें 'अरे बउरहा। जब चोर के पतासुराग नाहीं लागी त सगरे गाँव के इज्जति जइबे करी। बाबू तनि पता चलावऽ लोग।'

पुलिस के जोप आ के धचाक दे ओही जा रूकि गइल। ओमें बइठलें बइठले दरोगा पुछलें- 'यहाँ कोई फेकन है ? 'फेकन' कई जने की मुँहें से एकट्टे निकलि गइल। चिल्लर पत्रकार तनि फरके रहलें। जीप की नियरे आ के खाड़ भइलें, त दरोगा जी के देखि के धीरे से पुछलें 'किसको खोज रहे हैं ?' 'दरोगा कहले- 'आपके गाँव के कोई फेकन हैं जो दिल्ली में रहते हैं ?'

चिल्लर पत्रकार चकचियइलें 'क्या बात है दरोगा जी ? आप जानते नहीं हैं ? फेंकन अब फेंकन नहीं रह गये। वे अब पी साहेब हो गये हैं। आज का सारा मजमा वे ही तो लगवा रहे हैं। आप उनको जानते ही नहीं हैं ? करोड़पति पार्टी है भाई।'

दरोगा कहलें- 'अरे एक ठो जनाना एसपी साहब किहाँ आई है। कह रही है कि मंत्री जी की औरत है। फेकन मंत्री की सारी कमाई हजम कर गये हैं।' 'हईल्लऽ। मंतरी जी के त सुनल जाला कि बियहवे नाहीं भइल रहे। लोग-लइका उनके केहू रहबे नाहीं कइल। अब ई कहाँ से मुवले मंत्री जी के जीयत मेहरारू उपरा गइलि ?'

चिल्लर क बाति पर आँखि मारि के दरोगा कहलें 'अरे इन सब नेताओं की एक दो ठो औरत रहती है ? एक दिल्ली में, एक ठो लखनऊ में, एक ठो गाँव में-उन्हीं में से होगी कोई !' चिल्लर दरोगा की नदानी पर झंखत कहलें- 'बुझते ही नहीं है आप दरोगा जी! आरे भाई, मंत्रीजिउवा की ऊ लइनिए नाहीं रही। औरत वाली लाइन रहती तो यहाँ से फेकन को क्यों ले जाता भाई ?'

दरोगवा के आँखि चमकलि। कहलें 'यह बात है ? लेकिन कप्तान साहब ने हमको औरत का केस दे दिया है। पी. एतना बड़ा आदमी है, तो हम क्या कहें उससे ? अच्छा ठीक है, चलके कप्तान साहेब से यही बता दे रहे हैं कि जो आज के जलसा के दुलहा हैं पी. साहेब, ऊ असल में इसी गाँव के फेकन हैं।' 

दरोगा जीप घुमवा के लवटि गइलें। एतने देर में गाँव के लइकन जेवानन में एगो फुलझड़ी छूटे लागल। जेही के देखों ऊहे डुगरत चलि आवत बा। सभी एक्के सवाल पूछत बा'का हो ? मंत्री जी के कवनो मेहरारू उपटलि बा ? फेकना के पकड़े आइल बाड़े, अइसन बतियावत बाड़ऽ जइसे फेकन कवनो हरवाह चरवाह हठवें कि उनके दरोगा ध लीहें। आरे उनकी आगे दरोगा दरोगी के के पुछत बा ? एसपी कलक्टर के चरावेलें ऊ। उनकर ठाट-बाट देखे के होखे त चलऽ खरडरिया में चलहो के बा।'

तले मेलही कुल्हिनि के एगो गोल लउकल। केहू पुछल 'कवन मेला आजु ह रे ?' जवाब मिलल 'भकभेल्लरे हवऽ। खरउरिया में मेलवे न लागल बा। ओही जा जात बाड़ी सों।'

ओहर मेलही आगे बढ़ि गइली सों, एहर संकरवा अपनी मेहरारू के झोंटा नोचत, लाते मुक्के ओके कूटत घर में से बहरा ले आइल। 'सबेरही ई का होखे लागल ?' सब केहू ओहरे लपकल। संकरबो गाई एइसन डेकरति रहलि। ओकर लइका अँगरेजी इस्कूल के डरेस पहिरले पीठी पर बड़का बस्ता वाला बैग लिहले अलगे चिघरत रहल। चिल्लर, विद्याभूषण, पप्पू सब जने मिलि के कवनों तरे संकर के हाथ बाँहि ध पकड़ि के ओकरी मेहरारू के जान बचावल लोग। एह लोगन की कबजा में अइले कि बादियो संकर के रोसि कम नाहीं भइल, बढ़ते जात रहे। एक से एक अजगुत गारी अपनी मेहरारू के देबे लगलें। चिल्लर डॅटलें- 'पगलाइल बाड़ऽ ? कवन कसूर कइले बा कि ओकर जान लेवे पर लागल बाड़ऽ ? कुछ नाहीं त थाना पुलिस से त डेरा।'

संकर रोसि की मारे फेचकुर फेकत रहलें। दाँत पीसि के अपनी मउगी के एगो अउर निघरघट गारी दिहलें आ कहलें 'का डेराई आ का लजाई ? ई हमार मेहरारू ह कि काल ह ? लइका के जिनगी बरबाद क दीहल चाहति बा।'

विद्याभूषन पुछलें- 'काहें ? का भइल ह ?'

'का नाहीं भइल पूछीं। हजार रूपेया लागि गइल लइका के अँगरेजी इस्कूल में नाव लिखववले, कापी किताब किनले आ डरेस बनववले में। अब्बे इस्कूले के गाड़ी अवते होखी। ई बा कि लइका के तइयारे नाहीं करति बा ?' संकर किरोध की मारे आगे बोलि नाहीं पवलें।

बिचही में रोवाई रोकि के संकर बो कहली 'ए मास्टर जी! एही पापी से पूछीं। हम रोज बबुनवा के सबेरवे से हुरकावे लागीलें कि ऊठु इस्कूले जायेके बा। ओकर कपड़ा लत्ता सझुरा के पहिराई लें। ऊ रोवे लागेला। एक्के बाति के रोज जिद करेला। कहेला कि हम इंगरेजी इस्कूल में नाहीं जाइबि। हमके पुरनके इस्कूल में जाये द। महतारी के करेज्जा, हम ओके केतना मारी, गरियाई ? ई विपतलवना त विहान होते एक पाउच पी के टुन्न हो जाला। कुलि बाति के दवाई एकरी हाथे एक्के गो बा-हमार देहि धूनल।' कहि के संकरबो फेरू रोवे लगली।

चिल्लर पत्रकार एही रमझल्ला में भाभी के बतिए भुला गइलें कि गाँव के मरद-मेहरारू के बरमथाने जुटावे के बा। मन परल त लइकन के भेजि-भेजि सबके कहवावे बोलवावे लगलें। अकबार उनके हथवे में रहे। पप्पू के दोकान के बेंच पर चढ़ि गइलें आ अकबार के भोंपू बनाके ओही में सबके गोहरावे लगलें। कुछ लोग ईहे देखे खातिर जुटे अउर लोग के बोलवावे लगलें। जुटान होत गइल। गाँव में बाति फइलि गइल कि पप्पू के दोकान से लेके बरमथान ले सब केहू के जुटान होत बा। बरखा चटकले से कवनो खेतीबारी के, सोहनी रोपनी अइसन कार होते नाहीं रहल, लोग खलिहरे रहल। जुटे लागल।

चिल्लर पत्रकार चिहुँकि के बेंचे पर से उत्तरि अइलें। उनके निगाह पहिलहीं लइकी कुल्हिनी कोर परि गइल। बाँहि जोटा के कजरी गावत जात रहली सँ। सबकी कान में कजरी के रसगर सबद परल-परेला झीनीझीन बुनियाँ, हो परेला झीनीझीनी बुनियाँ।

एक गोल कढ़वलसि-

आरे कहवाँ से आवेलें रामहिं लछुमन परेले झीनीझीन बुनियाँ आरे कहवाँ से नान्हें के मिलनुवाँ परेले झीनीझीन बुनियाँऽऽ

दुसरका गोल घोटवलसि-

आरे पुरुब से आवेलें रामहि लछुमन परेले झीनीझीन बुनियाँ आरे पछिमे से नान्हें के मिलनुवाँ परेले झीनीझीन बुनियाँऽऽ

पहिला गोल से उठल-

आरे कहवाँ बइठाऊँ हो रामहिं लछुमन परेले झीनीझीन बुनियाँऽऽ आरे कहवाँहि नान्हें के मिलनुवाँ परेले झीनीझीन बुनियाँऽऽ 

दूसरा गोल से जवाब उठल-आरे दुअरा बइठऊँ हो रामहिं लछुमन परेला झीनीझीन बुनियाँऽऽ आरे अंगना में नान्हें के मिलनुवाँ परेले झीनीझीन बुनियाँऽऽऽ

पुरुवा की लहालोट के साथ गीति के हिलोर लइको कुलि के सथवे बहि गइल। ईहो गोल खरउरिए कोर जात रहल। तबले चिल्लर का होस परल। कहलें- 'आरे पहिले बरमथान तट जुटि के भाभीजी आ मैडम के भाखन सुनिलऽ सों, तब ओहर जइहऽ सों।' बाकिर उनके बाति ओह गोल तकले पहुँचबे नाहीं कइलसि।

पप्पू के बाजा चिल्लर कुछु देर खातिर बन्न करा दिहले रहलें। जब ई बेंच पर से उतरि गइलें त पप्पू एम्मे नवका कैसट चालू क दिहलें। अब उनके बाजा अँगरेजी गावे लागल-

असिए से क के बीए पास कम्पटीसन देलें बबुवा हमार हर साल कम्पटीसन देलेंऽऽ असिए से क के बी.ए. पास कम्पटीसन देलेंऽऽ

डारि के कचहरी में पेटीसन, कम्पटीसन देलें भड्या मनोज का बा भारी ससपीसन कम्पटीसन देलें । बबुवा हमार हर सालि कम्पटीसन देलें । बबुआ हमार....

तउलहवा मैदान होखत रहल, जब ओकरे कान में ई गाना परल। कई दिन से सोचत रहल कि पप्पुआ के कइसे पिटवाईं। सरऊ उधार चाह पियवले से इनकार क दिहलें ओहि दिन। तउलाह का खइलही पियले से मतलब। माई बाप के दोहल सुन्नर मुन्नर नाँव केहु का मने नाहीं परेला। लइकइए से एतना खाला कि तउला एइसन पेट देखि के हँसी-हँसी में तउलाह कहाए लागल त, अब अधबुढ़ हो गइल, बाकि सगरो गाँव तउलहवे कहेला। एही पेट की चलते घर में सबके नकदम कइले रहेला। मेहरी एकर तउला भरति-भरति जान दे दिहलसि। एहर-ओहर मुँह मारत रहेला। जहें चाह-पकौड़ी मिलि जा, ओही जा गुरे की चिउंटा अइसन लसिया जाला। तउलवे भरे खातिर कब्बो साधुन की जमात में चलि जाला। जबले बहरा रहेला, गाँव के लोग निफिकिर रहेला कि सबसे कुचराई क के झगरा लगावे वाला उधियाइल बा। जब लौटेला त देखते गाँव के मेहरारू कहि परेली सँ- 'ल्ल आ गइल तउलहवा। अब गाँव में जवन न हो जा, थोरे बूझऽ।'

पप्पू किहाँ चाह पीए जाए वालन में सबसे पहिले तउलहवे ह, बाकिर ई जोगाड़ देखत रहेला कि केहू एइसन लउकि जा जे इनहू की चाह के पइसा दे • देव। जहिया केहू नाहीं लउकेला तहिया चाह पियले के बाद पप्पू से कहेला 'लोखि लीहऽ हमरे नाँव से उधार।' पप्पू जानेलें कि उधार ले के नाहीं लौटावल तउलाह के खनदानी धरम ह। एक दिन कहि परलें 'अब चाह उधार नहीं पियाइबि।'

बस ओहि दिने से खोजत रहल। आजु ई अँगरेजी गाना सुनि के मैदान अध ही में छोड़ि के पोछिटा खोंसत भागल आ रामबहादुर तिवारी के दुआरे पर आके खाड़ भइल। तिवारी खरहरा ले के दुआर बहारत रहलें। तउलाह के देखि के हँसलें। कहलें-'का हो साधू, कहँवा से हकासल पियासल आवत बाड़ऽ।' तउलाह कुछ बोललें नाहीं, तिवारी की हाथे से खरहरा छोरि के फेॉक दिहले आ उनके बाँहि ध के कहलें 'छन भरि खातिर हमरे साधे आईं।' तिवारी के खोचिके ले जा के पप्पू के दोकान से तनि फरकहीं खड़ा हो गइलें। कहलसि 'सुनों, कवन गाना पप्पुआ

बजावत बा ?'

तिवारी गाना अकने लगलें बाकिर उनका कुछु बुझाइल नाहीं। पुछलें-'का सुने के कहत बाड़ऽ, हमरा त कुच्छू नइखे फरियात।' तउलाह कहलें 'चलीं, हम बतावत बानीं।' जब तिवारी के दुआर पर लवटि आइल लोग, तब तउलाह कहलें 'राउर बाबू आजु काल का करत बाड़ें ?'

रामबहादुर तिवारी के बेटा महतारी बाप के उमेद ईहें कहि के हरियर रखले बाड़े के डिपटीकलटर के इंतहान देत बानीं। जब पास हो जाइबि त सब दुख दलिद्दर भागि जाई। तिवारी अनाज-पानी बेचि के सहर के खरचा भेजत रहेलें। आ मने मने देवतापितर मनावत रहलें कि कवनो तरे लइका के कलटर बना देईं। तउलाह के बात सुनि के उनकी ओर तकलें। कहलें 'सब गाँव जवार जानत बा, तूहीं एगो नइखऽ जानत कि हमार बाबू का करेलें ?'

तउलाह हँसलें। कहलें 'हमहूँ जानत बानीं बाकिर जवन सुनावे खातिर रउवाँ के लिया गइल रहनी हूँ ऊ त रउवाँ सुनिके नाहीं सुननी है। जवन गाना पपुआ बजावत रहल उ रउरी बबुए पर बा।' तिवारी चिहइलें 'हमरी बाबू पर बनल बा ? के बनवले बा ? ई त निम्मन बाति बा कि हमरी बाबू पर गाना बनल बा। गाना त गान्ही जी भगत सिंह पर बनत रहे। अब हमरी बाबू पर के बनावत बा ?' 

तउलाह अपनी माहिल मामा वाली हँसी की साथे कहलें- 'अरे तिवारी जो ! रउवाँ सोझवा मनई। आरे पप्पुआ रउरी बाबू के चिढ़ावें खातिर न गाना बनववले बा। ओह गाना में ई बखान कइल गइल बा कि हमार बाबू सन अस्सी में बीए पास कइलें, तब से कम्पटीसन देलें।'

'ई कम्पटीसन का होला ! हमार बाबू कहाँ पावेलें आ केकरा के देलें ?' तिवारी पुछलें।

तउलाह कहलें-'ज्जाई तिवारी जी ! आरे जवन डिप्टीकलट्टरी के इंतहनवाँ देलें न राउर बाबू, ओही के कंपटीसन दीहल कहल जाला। ओही के मजाक उड़ावत बा। गाँव भरि सुनि के हँसत बा आ पपुआ मजा मारत बा।' रामबहादुर तिवारी उदास हो गइलें। कहलें 'जाए द जब बाबू डिपटी दरोगा हो जइहें, तब नाहीं न केहू कुछ कही।'

तउलाह के जीउ उदास हो गइल। कहलें 'जाए दीं महराज, जो हमरे लइका के केहु एइसन कहित त हम ओकर कपार फोरि देतीं। तिवारी कहलें- 'हमहूँ ओकर कपार फोरि देबि, तनि पातर दिन आइल बा, एके बोति जाए द।'

तउलाह तब्बो हारि नाहीं मनलें। कहलें 'राउर दिन पातर बा त एह तरे बेइज्जती सहबि ? बभनो के नाँव हँसावत बानीं।'

तिवारी तनी सा तरनइलें। कहलें 'अच्छा जीठ थोर मति करऽ। पप्पू के बाजा आ कपार दूनू हमहीं फोरबि, तनी मौका देखि लेबे द ।' तउलाह का कहें। उनकी मन में त ई रहल कि तिवरिया अब्बे उठावत लाठी आ दे तड़ातड़ दे तड़ातड़। पपुओ बुझि जइतें कि उधार नाहीं दिहले के का नतीजा होला, बाकिर ई बाभन त जागत हइए नइखे। जाये द हे मन !'

मनही में बतियावत तउलाह चललें कवनो दूसरे सिकार की खोज में । किरपाल एगो गोल के साथे कसबा के हालचाल लेबे गइल रहलें। पी साहेब आ पंडीजी के परोगराम आ चमचा लोगन के पता लगावत लगावत डकबँगला से थाना ले कई फेरा घुमले कि बादि गाँवें से लवटल दरोगा भेंटा गइलें। लहकि के दरोगा जी के सलाम ठोंकि के किरपाल हालचाल पुछलें त मौज में आके दरोगा बता दिहलें कि मुवल मंत्री जी के जीयत मेहरारू उपराइल बाड़ी। एतना सुनते किरपलवा के बिच्छी मारि दिहलसि। पनपनात भागल आ नेताजी की बैठके में जाके दम लिहलसि। नेता त ओइसे यह जिला जवार में जगहि जगहि पर मिलि जाला लोग, बाकिर एह इलाका में नेताजी के नाँव से जानल जाइलें पांड़ेजी, जे हर चुनाव में खड़ा होईलें आ जीतत-जीतत हारि जाईलें। जेतना धरना, परदर्शन आ घेराव बन्द होला मे नेता जी सबसे आगे रहीलें। विरोध पच्छ के कवनो कार होखे, नेता जी चलि देईलें। किरपाल के देखि के पांड्जी पुछलें 'का चेला ? कहाँ से आवत बाड़ऽ ? का बाति ह, बतावऽ।'

किरपाल पी. साहेब, परधानमंत्री आ अब मूवल मंत्री जी के जीयत जनाना ले सगरी बाति बता दिहलें। पांड़ेजी कहलें 'हमहूँ सुनत बानीं हो। परधान मंत्री के परोगराम नइखे। ऊ त झूठ ह। ओह समे कहि दीहें सों कि परधानमंत्री जी नाहीं आ पावली। बाकिर तोहरे एक बात में दम बा। मुवल मंत्री जी के जीयत मेहरारू से चलि के भेंट कइल जाव। पी साहेब की सभा के समनहीं इनहूँ के एकठो सभा करवा दोहल जाव। ओही में घोसड़ा कइल जाई कि मंत्री जी के जनाना एह छेत्र से चुनाव लड़िहें। 'चलऽ' कहि के नेता जी कुर्ता उठा के कपारे के उप्पर से पहिरि लिहलें आ एक हाथे बटाम लगावत दुसरका हाथे पोछिटा सुझरावत एसपी साहेब की बंगला कोरि चलि दिहलें। पाछे पाछे किरपाल चललें। उनकी पाछे उनके लुहँड़ा चललें जवन उनके पाछे लागल एहिजा ले जमकि आइल रहलें।

एस.पी. साहेब कहीं जाए खातिर गाड़ी में बइठते रहलें, तले नेता जी पहुँचि गइलें। एक गोड़ गाड़ी में ध के एसपी साहेब खाड़ हो गइलें। पुछलें- 'कहिए नेता जी, कैसे आना हुआ ?'

नेताजी धधा के कहलें' आरे कपतान साहेब ! सुनले में आवत बा कि सरगवासी मंत्री जी के कवनो जनाना उपराइल बाड़ी।'

एसपी कहलें- 'ठीक सुना है आपने ! मिलियेगा ?' आपन मूड़ी हिला के नेताजी मिले के इच्छा जना दिहलें। एसपी साहेब बंगला की गेट पर खाड़ सिपाही के इसारा से बोला के कुछ कहलें आ फेरू नेता जी से कहलें कि सिपाही की साथे जाईं त उनसे भेंट हो जाई। अपने गाड़ी में बइठि के चलि गइलें।

सिपाही के साथे नेता जी मुवल मंत्री जी की जीयत जनाना की लग्गे पहुँचि गइलें। इनके देखि के ऊ बूझि नाहीं पवली कि का कहें। नेता जी अपनहीं कहलें-'रठवाँ के हई, ई कुलि बाद में जानल जाई। अबहिन त जहाँ फेकना आपन सभा करत बा ओही जगहि की समने ओही समे पर हमन के सभा होई। बाकिर रऊवाँ तनी विधवा के भेख त बना लेईं। गान्हीं आसरम के खद्दर के उज्जर सारी अब्बे हम मँगावत बानीं। अपने के तइयार होखीं। बारह बजे से हमहन के सभा सुरू हो जाई....।

नेता जी किरपाल आ उनके सँघतिया लोगन के लग्गे बोला के कहलें.. चारि गो रेक्सा ले आवऽजा। एक एक रेक्सा पर माइक लेके एकहक जने परचार पर जुरन्ते निकलि जा लोगन। खाली एक्के बात कहे के बा-'भाइयो और बहनों ! हमारे सरगवासी मंत्री जी की विधवा पधारी हैं। बारह बजे से सामपुर खरउरि के सामने विसाल सभा में जरूर से आइए।'

किरपाल पुछलें-'नेता जी रुपया बा ? जुरन्ते कुछु चाहीं।' नेताजी कहलें-'ज्जा मरदे। अब रुपेया के केवने कम्मी होई। हमन के खेला चालू होखे द, रुपेया के त बरखा होई।'

कहि के नेता जी कुरता की थइली में से निकालि के सौ रूपया के पत्ता किरपाल के थमा दिहलें। कहलें 'ज्जा, जल्दी करऽ।'

सामपुर गाँव के लोग खरउरी कोर जाए के तइयारी करते रहे कि गाँव में रेक्सा पर माइक लगा के एक जने परचार करे पहुँौंच गइले 'भाइयों और बहनो, सरगबासी मंत्री जी के विधवा जी....'

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