राज का चारू कोना में आन्दोलन होखे लागल। सूतल परजा के जगावे खातिर नेता लोग फेंकरे लगलें। ऊ लोग परजा के बतावता के फेचकुर फौक दीहल लोग कि तोहन लोगन केतना दुख बिपत में परल बाड़ऽजा। परजा का ई बुझाइल कि जब ई नेतवा राजपाट पा जाई त हमन के रामराज हो जाई। सभे राजसुख भोगे लागी। राजसुख भोगले के सपना से जइसे जइसे मन परान भरत गइल वइसे वइसे जिनगी जहर लागे लागल। परजा कहे लागल कि एह राजा का रहते बीपत नाहीं मेटी। परजा हुमाचि के उठलि आ राजा बदल हो गइल।
राजाबदल की बाद परजा के समुझावल गइल कि सब दुख दलिद्दर भागि
गइल। अब राजा किहाँ केहू कवनो अरज गरज लेके नाहीं पहुँचे। राजा मंत्री लोग
से पुछलें-'का केहु का उप्पर कवनों दुख विपत नइखे। केहू के केहू मारत डाँड़त
तऽनइखे ? केहू खइले बिना उपास त नइखे करत ? केहू दरबार में आवत काहें
नइखे ? हम कंकर दुख विपति हरन करों ? केकर नियाव करीं ?'
मंत्री लोग हाथ जोरि के कहलें 'सरकार! अपने के राज में केहू पर कवनो दुख विपति परले नइखे। सब लोग का सब कुछु मिलि जात बा। केहू केहू के सतावत नइखे। राउर परताप सूरुज महराज एइसन तपत बा।'
राजा के जीव हरियरा गइल। मंत्री लोगन के बयान बड़हन बड़हन कागद आ कपड़ा पर बड़बड़ अच्छर में छपवा के सगरे राज में टँगवा दिहल गइल। जब बाहर से केहु ओह राज में आवे आ एतना कागद कपड़ा रामराज के जैकार परचार में देखे तऽ ईहे बुझे कि एह राज में कंहू का कौनो दुख नइखे। धन्न धन्न होखे लागल।
एक जने परदेसी एह रामराज के सचाई परतियावे खातिर दू चार दिन ओही राज में रहि गइलें। साँझि का बेरा एगो बुढ़िया का दुआरी पर जाके खाड़ भइलें। कहलें- 'ए माई! आजु हमहूँ दू कवर रउरिए हाथ से पावल चाहत बानीं। कौनो हरज नइखे न ?
बूढ़ा कहली 'ए बाबू! हरज गरज के का कहीं ? जबसे ई नवका राज भइल बा, तबसे नून रोटी में एतना सवाद भरि गइल बाकि कि दालि तरकारी के सवाद केहू का मने नइखे परत। ऊ पुरनका जवाना के बाति हो गइल बा। पेट भरल छोड़िके अब केहू का कवनो जरूरते नइखे रहि गइल। बाजार में अन्न कपड़ा लत्ता, गहना गुरिया भरल परल बा। एही के न रामराज कहल जाला। रहिजाऽ, नून रोटी मुँहऊ खा लीहऽ।
परदेसी नून रोटी खा के सूति रहलें। ओहि दिन बूढ़ा पेट भरि ऊहो नाहीं पवली। एगो टिकरी पर नून लगा के खइली आ भर पेट पानी पी के सूति रहली। बूढ़ा का मड़ई में एगो गुदी चिरई के खॉता रहे। चिरइया खोंता में बइठलि टुकुर टुकुर बूढ़ा के मुँहे कोर देखति रहे। एहर कई दिन से जवन एकाध दाना धरती पर गिरे ऊहो उठा के बुढ़िया चाटि ढारे। घर दुआर में कहीं चिरई के एक्को दाना नाहीं मिलल। कई दिन के उपासल चिरई उड़त उड़त राजा का महल में पहुँचली। ओइजा ई देखली कि अन्न के भंडार भरल बा। चारू ओर एक से एक अमिरित अइसन सवाद वाला जूठ काँठ छितिराइल बा। चिरई ओही जा रहि गइली। चिरई महल के मरम बूझे लगली।
रोज रोज चिरई नवका सवाद वाला चारा चुग्गा पावे लगली। राजा रानी के महल में एक से एक बढ़ि के अजगुत देखे लगली। एक दिन उड़त उड़त चिरई राजा का रंगमहल का भित्तर चलि गइली। ओहिजा एतना नीक लागल कि एकहक तिरिन जुटा के आपन खोंता बना लिहली। राति के राजा सुत्ते अइलें। देखलें कि उनकी पलंगरी का समने मोका में एगो चिरई के खाँता लागल बा। राजा लौड़िन पर बिगड़ले। कहलें- 'एकर ई मजाल कइसे भइल कि हमरा रंगमहल में खोंता लगा दिहलसि ? उजारऽ एकर खोंता। ओही राति के लँउड़ी खोंता उजारे चललि। तबले रानी राजा के बाँहि धइ
के समुझवली- 'सरकार ! ई चिरई बड़ा सगुनी हऽ। एकरा रहले से राउर अन्न धन
लछिमी में रोज रोज बढ़न्ती होई। एकर खोता जनि उजरवाईं। राजा मानि गइलें। चिरईं
के खोंता बाँचि गइल। चिरई के जीव बाँचि गइल।
दूसरे दिने चिरई एगो कानी कउड़ी देखली त ओह पर मोहा गइली। ठोर में कवनों तरे दाबि के खोंता में ले अइली। उनका बुझाइल की राजा का खजाना के घमण्ड तूरे खातिर हमार कानी कउड़ी बहुत बा। लगली गावे-
'रजवा के थोर धन। हमरा बहुत धन। रजवा के थोर धन। हमरा बहुत धन। रजवा के....।'
दिन भरि गवली। केहू धेयाने नाहीं दीहल। राती के जब राजा सूते गइलें तब
फेरू गावे लगली-रजवा के थोर धन। हमरा बहुत धन। रजवा के थोर धन....।' राजा अकनलें कि राति के चिरई का कहतिबा ? ओकर अरथ बुझले त रीसि से अधिका अचरज में परि गइलें। सोचे लगलें कवन अइसन धन एकरी लगे बा कि हमार सगरी खजाना एकरा कम लउकत बा। कवनो तरे राति कटलि। बिहान भइल। राजा के हुकुम भइल चिरई के खोंता के तलासी लीहल जाव।'
सीढ़ी आइल। नौकर चाकर जूटि के खोंता के तलासी लीहल लोग। कानी कठड़ी राजा को गदोरी पर धइ के कहल लोग "ईहे एकर धन हवे सरकार।' राजा मुसुकिया के कानी कउड़ी पलंग की पाटी पर घइ दिहले। चिरई फेरू गावति रहे। कान लगा के सुनलें कि अब का गावति बा, त समुझलें। अब चिरई गावति रहे- कंगाल भइलें राजा । हमार कउड़ी चोरवलें ।
कंगाल भइलें राजा। हमार कउड़ी चोरवलें । कंगाल.... राजा चिरई की खोंता में कानी कउड़ी धरवा दिहलें आ अकने लगलें कि अब ईका गावति बा। चिरई मगन होके गावे लगली-
रजवा डेरा गड़ल । हमार कउड़ी लौटवलसि ।
रजवा डेरा गइल। हमार कउड़ी लवटवलसि । रजवा
अब राजा का रीसि बरे लागल। हुकुम दिहलें कि एह चिरई के पकड़ि के ले आवऽजा। नोकर लोग कवनो जतन से चिरई के पकड़ि के राजा के लग्गे ले अइलें। राजा कहलें 'एह चिरई के पाँखि नोचि दिहल जाव।' नोकर पाँखि नोचे लगलें। तब्बो चिरई गावे लागलि-
राजा के नोकर हमार सेवा करत बा।
राजा के नोकर हमार सेवा करत बा। राजा के....
राजा कहलें-'एके मुवा के हमरा रसोई में भेजि दऽ। हम एकर मासु खाइबि।' हुकुम के के टारो ? चिरई के मासु रसोई में रिन्हाइल। राजा चिरई के मासु खइले। राजा का अइसन ढेकार आइल जइसन केतनो राजभोग खइले पर नाहीं आइल रहे।
मुसुकी मारि के राजा रानी से कहले 'अब हमरा राज में हमसे टक्कर लेबे वाला कौनो आवाज नाहीं रहि गइल बा। असली रामराज ईहे हऽ जवना में केहू के हिम्मति नाहीं परे कि क राजा के जैकार छोड़ि के अउर किछु बोले।' कहि के राजा मगन हो गइले।
अद्धी राति के राजा के नीनि टूटि गइल। उनका बुझाइल कि उनका पेट में जहाज उड़त बा। दरद बढ़े लागल। रानी जगली। दवाई बीरो भइल। राजा के दरद बढ़े लागल। राजबैद बोलावल गइलें। राजा के नारीनटिका धइलें, पेटे से कान लगा के सुनलें आ कहलें 'सरकार रउवाँ के हम एगो एइसन दवाई देत बानी कि पेट में
से सब कुछ बहरा हो जाई। राउर दरद मेटा जाई।'
राजा दवाई खा के पानी पी लिहलें। बैद जी कहलें 'थोरिके देर में मैदान लागी आ सब कुछ ठीक हो जाई।'
राजा बुझि गइले कि मैदान हो गइले से पेट साफ हो जाई त दरद भागि जाई। फेरू ऊ ई सोचि के अर्दोक गइलें कि का जने ऊ चिरइया सोगहगे निकड़ि के उड़िजा, तब त हमार कुलि इज्जति खराब हो जाई। आपन डर ऊ रानी से कहलें। रानी मंत्री के बोलववली। मंत्री जी बड़का मुंड हिला के सोचलें आ कहले 'महराज् अपने फिकिर जनि करीं। हमरी लग्गे अइसन अइसन जोधा तरूवारि चलावे वाला बाड़न सँ कि चिरई का माछी ले बचि के नाहीं जा पाई। हम ओकर जोगाड़ ठीक करत बानीं।' कहि के मंत्री जी बाहर गइले। राजा का पेट में जहाज अउरी जोर से उड़े लागल। मैदान बुझाए लागल बाकि कवनो तरे दबले रहलें। मंत्री जी अइले त उनके पाछे एकगो जोधा रहलें। ऊ राजा के जोहार कऽ के कहलें 'सरकार! अपने के मैदान करे बइठल जाव। हम पाछे तरवार लेके खाड़ रहबि। जीयत मूवत कइसहूँ निकरिहें त उनके जाए नाहीं देबि। राजा के बेचैनी बढ़ते रहे। सबके हटा के राजा मैदान करे बइठलें। पाछे
तरवार लिहले सिपाही खाड़ हो गइलें।
आहि दादा ! ई का भइल ! ई त बज्जर गिरि गइल। राजा का बइठते का जनी का भइल कि जोर के अवाज भइल। जोधा बुझले कि चिरई उड़ल चाहति बा। दूनू हाथे थामि के पुरहर जोर लगा के तरूवारि चलवलें। राजा के पछाड़ कटि के अलगे हो गइल। राजा बेहोस हो गइलें। चिरई के कहीं पता ठेकाना नाहीं रहे।
जोधा के पकड़ि के जेहल में डारि दीहल गइल। राजबैद अइलें। राजा के उठा के पलंग पर सुता दीहल गइल। लागल दवाई होखे। कई दिन बीति गइल राजा के होस नाहीं लवटल। बैद जी के परान काँपे लागल। तबले राजा के आँखि के पपनी फरफराइल। बैद जी चहकि के रानी से कहलें- 'देखों अब इहाँ का होस आवत बा।' रानी के चेहरा पर जिनगी लवटे लागल। ओहर राजा का बुझाइल कि आँखि के पपनी भारी हो गइल बा। खोलल चाहत बाड़े बाकि खूलत नाहीं बा। जोर लगा के आँखि खोले के कोसिस करे लगलें तबले बुझाइल कि चिरइया अपना खोतवा में बइठि के गावति बा-राजा के कटा गइलि। राजा के कटा गइलि।....
डर का मारे राजा फेरू बेहोस हो गइले।
राज भरि का सड़क पर लमहर लमहर कागद आ कपड़ा पर लीखल रहे-'एह राजा का राज में केहू का कवनो दुख दरद नइखे।'