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सुग्गी

6 January 2024

1 देखल गइल 1

सुग्गी अइली-सुग्गी अइली' कहत गाँव के लइका दउरल आके ईया के घेरि लिहलें सं। बूढ़ा के चेहरा अँजोर हो गइल। पूछली 'कहाँ बाड़ी रे ? कइसे आवत बाड़ी ?' रेक्सा पर आवत बाड़ी, गँउवे के रेक्सा ह, 'बस पहुँचते बाड़ी' कुल्हि लड़का एक्के साथे कहे लगले सं। गाँव में रेक्सा के दुकते लइका सुग्गी के देखि के उनकी ईया की लग्गी दउरिके पहुँच गइल रहले आ उनकी अइले के खबर जना दिहलें। सुग्गी के ईया सड़की कावर तकली तबले रेक्सा पर बइठल सुग्गी लडकि गइली। लइका ईया के छोड़ि के फेर सुग्गी के रेक्सा घेरि लेहले स। सुग्गी उतरली। अपने कान्हे से लटकत झोरा में से टाफी निकारि के लइकन के देवे लगली। लइका अउरी हँउजार करे लगलें। सुग्गी पुचकारि के कहली, 'अब तहन पाच घरे जा। बिहान अइहऽ जा, तब अउर समान देबि। अब जा लोगन। लइका धीरे-धीरे अपने घरे लवटे लगलें। सुग्गी रेक्सा वाला के मजूरी देहली। ओहू के टाफी दिहली। उतरि के अपनी ईया के अँकवारी में भरि के उठा लिहली। बूढ़ा सुखसागर में बुड़की लगावत अपनी सुग्गी के डाँटे लगली-'अरे, ई का करत बाड़े। उतारु हमके।' जबले ईया एतना कहली तब ले सुग्गी उनके तीन-चारि फेरा घुमा के खटिया पर धीरे से बइठा दिहली। अपने निच्चे बइठि के दूनू बाँहि पसारि के ईया के पकड़ि के आपन मूड़ी उनकी कोरा में गाड़ि दिहली। ईया अपनी कोरा में सटल सुग्गी के कपार पर हाथ फेरे लगली। उनकी आँखिन से खुशी के आँसू उमड़े लागल। केहू कुच्छू बोलत नाहीं रहे। दूनू जने के मन अपसे में गहिर-गंभीर बतकही करे लागल। ओह समे सुग्गी आ उनकी ईया के छोड़ि के अउर केहू के रहले, नाहीं रहले के कवनो माने मतलब नाहीं रहि गइल। एक बरिस बादि दिल्ली से लौटल सुग्गी रहली आ बरिस भरि सुग्गी के राहि ताकत रहले के बादि उनके अपना कोरा में सटवले सुग्गी के ईया रहली। दूनू जने के हिरदे एक-दूसरे से सटल आपन-आपन बात कहल रहलें।  

'आरे, अम्माजी, लइकनिया के पनियो पीए के कहबि कि कोरा में सटवलही रहबि' सुग्गी के माई के ई बाति सुनि के सुग्गी आ उनके ईया आँखि खोलि के ताकत लोग। सुग्गी ईया के छोड़ि के माई के अँकवारी में भरि लिहली। उनके माई टप टप लोर चुवावे लगली। सुग्गी उनके आँसू पोंछि के कहली-'का माई ? तोरा खुसियो में रोवइए आवेला ? हँसि दे अब।' कहि के सुग्गी माई के गुदुरावे लगली। उनके माई हाँस परली। ओठे से हँसी झरत रहल आ आँखिन से लोर झरत रहल। सुग्गी ईया से पुछली, 'बाऊजी कहाँ बाड़े ?' ईया कहली, 'गइल होइहें कर-कचहरी कहीं। उनके गोड़ में सनिच्चर बा। एक जगहि बइठे देला कबो ? चलु तें, हाथ-मुँह धो के कुछ खा ले।' सुग्गी एक हाथे अपनी माई के आ एक हाथे इंया के सम्हरले घर में दुकली।

घर की भित्तर केवाड़ी के पल्ला पकड़ि के सुग्गी के भउजी खाड़ रहली। सुग्गी के अँकवारी में भरि के सुसुके लगली। सुग्गी उनके चुप करावे लगली। सुग्गी जेतने चुप करावें, उनके भउजी के रोवाई ओतने बढ़ल जा। सुग्गी हैरान हो गइली। अपनी माई से पुछली, 'काहऽ माई! भउजी कवनो दुख में परल बाड़ी का ? भइया कहाँ बाड़े ?' सुग्गी के माई बेटी-पतोहि के पारा पारी देखली। अपनी सासु के देखली आ गहिर साँस ले के रहि गइली। सुग्गी समुझि गइली, कवनो भारी दुख के बाति बा। अपनी भउजी के पकड़ि के उनकी कोठरी में ले गइली। उनकी पलँगरी पर उनके बइठा के अपने बगल में बइठि गइली आ उनके मुँह अपनी दूनू हथोरी में लेके अपनी ओर घुमा के उनकी आँखी में तकली। कहली, 'अब बतावऽ कवन एइसन दुख बा तहके ?' भउजी के आँसू कुछ थम्हल। कहली, 'पहिले रउवाँ हाथ-मुँह धो ली। कुछ खा-पी लीं। तब हम आपन दुख खुलि के बताइबि। हम त रउरे राहि देखत रहनी ह। एइजा केहू नरखे जे हमार बात सुने, हमार पीरा समुझे-बूझे।

सुग्गी कहली, 'भउजी ! रउवा पहिले आपन बाति बताईं। राउर दुख सुनले के बादिए हम कुछ खाइति-पियबि। जबले रउवा नाहीं बताइबि, तबले हम असहीं रहबि।' 'का बबुनी। राउर जिद कबो नाहीं छूटी। हम सब कुछ बताइबि। पहिले कुछ खा-पी लेई।' सुग्गी कहली, 'जब रउवा हमार जिद जानते बानीं तब काहें नाहीं समुझत बानी कि हमार जिद छूटे वाली ना ह। पहिले आपन बाति बताईं। 'आपन जिद नाहीं छोड़ब, त सुनीं। हम माई बने वाली बानीं। राउर भइया चाहत बाड़ें कि अइसन ना होखे।' कहि के सुग्गी के भउजी लजा गइली। सुग्गी उनकी बाँहि में कसिके चिकोटी कटली। 'सीऽऽ' कहि के भउजी रहि गइली। 

सुग्गी कहली, 'बड़ा जल्दी कइनी भउजी। तनी खेले खाये के चाहत रहल। बाकी होइए गइल त भइया के एमे का उजुर बा ? ऊ काहें नइखन चाहत ?' सुग्गी गम्भीर होके पूछली। भउजी कहली, 'बाति ई बा कि एक दिन राउर भइया हमके डाक्टर किहाँ ले गइनीं। उहाँ हमरे पेट पर एगो मसीन लगा के कुछ जाँच भइल। डाक्टर बतवली कि पेट में लइकनी बा। राउर भइया रस्ता में हमसे कहनी कि लइकनी के जनम नाहीं होखे देबे के बा। एके खतम करा दिहल जाई।' कहत-कहत भउजी भोंकार पारि के रोवे लगलो। सुग्गी उनके सम्हारे लगली। जब सम्हरि गइली त घिघिया के कहली, ए बहिनी, हम अपनी बेटी के मुआवल नइखों चाहत। कवनो तरे एह लड़की के जान बचा लेईं। राउर भइया एकर जान लेबे पर तूलि गइल बाड़े।' सुग्गी भउजी के अँकवारी में भरि के पुचकारे लगली। कहली, 'भउजी! रउवा बेफिकिर हो जाईं। हम आ गइल बानीं। अब रउरी बिना जनमल बेटी के जान केहू नाहीं लेबे पाई। ओकर जनम होई। बाकी एक बात बा। रउवा खूब हँसी-खेलीं। खूब खाईं-पींही। तब्बे न राउर लड़किया नीके सूखे जनम लेई आ चान अइसन सुन्नर-मुन्नर होई। चलीं अब हमके कुछ खियाई-पियाई। आवे दीं भइया के। हम उनसे फरिया लेबि।'

'ईया, जागल बाडू ? सुग्गी के बाति सुनि के बूढ़ा कहली 'का करीं बेटी? कइसे आँखि लागी हमार ? बेटा-नाती अइसन बेकहल हो गइल। आधा राति चलि गइल। अबहिन ले बाप-बेटा के पता नइखे कि कहाँ जरत-मरत बाटे लोग। तहरा बपसी त जरिए के मनबढ़ रहले। साँच कही त हमहीं उनके अइसन बनवनीं। बाकी तहरा भइया के त पढ़ा-लिखा के बुधमान बनावल चहनीं। एक्को आस नाहीं पूजल हमार।' सुग्गी का बुझाइल कि ईया कि भित्तर दुख के समुन्दर थमथम करत बा। ऊपर से ईया के देखि के केहू नाहीं समुझि सकेला कि इनके कवनो बात के कवनो दुख-तकलीफ होई। रोवत मनई के हँसा देबे वाली ईया अपनी मन में केतना गहिर गम्भीर दुख छिपवले बाड़ी ? सुग्गी सोच में परि गइली। अपने घर के तबाही देखि के उनहू के मन मुरझइले रहेला, बाकि करें त का करें ? बाप आ भाई चहतें त एतना निम्मन खेती-बारी घर-दुआर सम्हारि के चलतें। कवनो कमी नाहीं रहित। जवार-पथार में इज्जति रहबे कइल ह। खाए-कमाए के कवनो कमी नाहीं रहल। अब्बो नइखे। बाकि आपसे में अइसन फुटमति कि का कहल जाव ? ईया के मन के थाह लगावे के कई बेर कोसिस कइली सुग्गी।

हर बेरि कवनो न कवनो हँसी वाली बाति कहि के ईया उनके बहका देली। आजु आधी राति के आजी-नातिन जागल बाड़ी। सुग्गी ईहो जानति बाड़ी कि उनके माइयो भित्तर जगले बाड़ी आ उनके भउजियो जगते बाड़ी। जेकर बेटा-भतार दूनो आधी राति ले घरे नाहीं लवटल, ओकरा आँखि कइसे लागी? आ भउजी ! ओह बेचारी का कइसे कल परी ? पेट में एगो जीव लिहले, जवने के जनमले से पहिलहीं मुवा दिहले के तइयारी हो रहल बा। ऊ बेचारी पहिलोँठी के महतारी बनल चाहति बाड़ी। अपनी लइकनी के जनम दिहल चाहति बाड़ी। ओके खेलावल, पालल-पोसल चाहति बा, आ ओही के मरद अपनी बेटी के जनमले से पहिलहीं मारि देवे के तइयारी क रहल बा। सुग्गी के मन अपनी माई के दुख समुझले के कोसिस करे लागल। माई जनम से गाइ हई, ईहे सब केहू कहेला। कब्बो केहू के न मारे, न गरियावे, न जोर से बोले। सबके सब बात सुनत रहेले। ईया ओकर सासु हई। उनके बाति टारहीं के नाहीं। मरद के बाति टरले के कवनो सवाले नइखे। आ अब बेटा जवान भइल बा। ओकर हालि ई बा कि अपने बापो के बाप बनल चाहत बा। केहू से सोझे मुँह बात नाहीं करेला। कवनो काम ढंग से नाहीं करेला। पढ़ाई के नाव पर एम.ए. पास, अकिल की मामला में अनपढ़ो से बढ़ि के। बाप पहलवानी में मस्त। न खेत के फिकिर न घर-दुआर के। घर-दुआर, खेत खरिहान, नातहीन सबके फिकिर ईया के कपारे। अब धीरे-धीरे कुल्हि माई क कपार पर सरकत जात बा।

सुग्गी का बुझाइल कि फिकिर के मारे उनके कपार त‌क जाई। उठि के ईया के खटिया पर चलि गइली। एक बेर फेरू आजी-नातिन एक-दूसरे के कोरा में समा के अपने-अपने मन के बरत आगि सेरवावे के कोसिस करे लगली।

तोनि पीढ़ी के चारि गो मेहरारू आ दू पीढ़ी के दूगो मरद। दूनू मरद घर से बाहर। कुछ पता नइखे कि कहाँ बा लोग! चारि गो मेहरारू आँखिन में राति काटत। दूगो घर की भित्तर, दूगो घर से बहरा दलानी में। सुग्गी अपनी जिनगी के बाति सोचे लगली। बाऊजी आ भइया के बाति चलल रहित त अबले उनके बियाह हो गइल रहित। ऊ कब्बे लरकोरि बनि के लइकन के गड़ितरा धोवत-फिंचत रहती। बाकी पढ़ले में तेज रहली। एक पर एक दरजा अव्वल नम्बर से पास होत गइली। बीए के बाद दिल्ली के जेएनयू से एमए में नाव लिखावे खातिर परीक्षा भइल। बाप-भाई के मरजी नाहीं रहे बाकी ईया के आ माई के मना के इम्तहान दिहली। देस भरि के चौदह लइका लइकनिन में एगो उनहू के नाव निकरि गइल। कवनो तरे जा के नाव लिखवा लिहली। पढ़ाई शुरू होते स्कालरसिप मिले लागल। जिनगी के राहि बदलि गइल। एक से एक सपना मन में उपजे लागल। अउर जोर से पढ़ाई करे लगली। अउवल दर्जा से पास भइली। रिसर्च करे खातिर अउरी ढेर पइसा मिले लागल। अपनी माई, भउजी आ ईया के जिनगी देखले रहली, गाँव के अउर मेहरारुन के बिलखत जिनगी देखले सुनले रहली। दिल्ली में देस भरि से आइल लड़का-लइकनिन के जिनगी देखली। दूनू में धरती-असमान के अंतर रहल। सोचे-विचारे लगली। अखबारन में लेख लिखे लगली। जिनगी के अरथ परत-परत उघरि के सामने आवे लागल। सुग्गी के मन के पाँखि खुलल। बुझाए लागल कि आपन जिनगी सुधारल सुअरियो के सपना हो सकेला, अदिमी के जनम धइले पर जिनगी तब सुधरी जब दस-पाँच के अउर सुधरे के मौका दिहल जाव। अपने मन के अकास में उड़त सुग्गी का बुझाइल कि ईया के नाक बाजल है। ऊ मन के अकास से उतरली त पवली कि ईया के कोरा में लुकाइल बाड़ी। उनके आँखि छुअली त भोजल रहे। बाकी ईया के नाक बाजत रहे धीरे-धीरे। सुग्गी के बड़ा नीक लागल ई जानि के कि ईया के आँखि लागि गइलि बा। ओकरी बाद कब उनहूँ के आँखि लागि गइल, जानि नाहीं पवली। बिहाने बाबूजी सोझही लडकि गइलें। मैदान होके लौटत रहलें। सुग्गी धधा के गोड़ धइली। बाबूजी लजइले आँखी उनकी ओर ताकि के असीस दिहलें। पूछलें 'कब अइलू बेटी ?' सुग्गी ओरहन दिहले के भाव से कहली 'जब आप घरही नाहीं रहल जाई, त कइसे जानल जाई कि के कब आइल, कब गइल ? कहाँ रहनीं राति के ? कब लवटनीं ? हमन के राहि देखत-देखत थकि गइनी जा।' बेटी के सवालन से बचे खातिर बाबू जी हाथ मटियावे नले पर चलि गइलें। सुग्गी माई के खोजे लगली। जब माई लउकली त पूछली- 'कब अइलें बाबूजी ? आ भइया अइलें कि नाहीं ? लउकत त नइखन।' माई कुछ जबाब नाहीं दिहली। सुग्गी भित्तर गइली। भउजी रसोई में चाह बनावत रहली। पूछली, 'भइया रतिया लवटलें कि नाहीं भउजी ?' भउजी मूड़ी हिला के बतवली कि लवटलें। तब पूछली, कहाँ बाड़े ? भउजी कोठरी ओर इसारा क के बता दिहली कि सुत्तल बाड़े। बहरा निकरली त गाइ के बछरू कूदत रहल। काल्हि वाला लड़का सुग्गी दीदी के खोजत दुआरे पर जुटे लागल रहलें। ईया खेते में मजूरन से कवनो काम करावत रहली। अबहिन सात बजल रहे, बाकी जून के महीना के घाम कपार फारे लागल रहे। सुग्गी खेत में ईया की लग्गे चलि गइली। ईया कहली, 'तें कहाँ घमवा में आवति बाड़े ? जो चाह-चूह पिठ। 'सुग्गी कहली, 'तू एतनी घरी खेते में का करत बाडू ? चलऽ तुहऊँ चाह पियऽ। 'ईया कहली, 'देखु हई मकई तुरवावत बानीं। तोर बाप-भाई लायक रहितें त ई कार उहे लोग देखित। बाकी आपन-आपन भागि। जबले जाँगर चलत बा, ठेठावत बानी। आँखि मुना जाई तब के जाने का होखी ? चलु-चलु तें घरे चलु। लूह लागि जाई।' सुग्गी कहलो-दिल्ली के घाम एहू से चोख होला। ओइजा लूह-नाहीं लागल त एइजा का लागी ? तुहउ

चलऽ तब हम चाह- चूह पियवि।' हारि मानि के ईया सुग्गी की साधे घरे अइली।

सबसे जवान मनई सुतल रहलें। उनके बाप कुल्ला गलाली क के चाह अगोरत

रहलें। सुग्गी गिलास में चाह ले जाके बाऊजी के दिहली आ भीतर आके ईया के

साथे अपने चाह पिए बइठली। उनके माई रसोई में कुछ खटर-पटर करत रहली।

सुग्गी ओहिजा से पूछली तें चाह नाहीं पियबे ? माई कहली, कबो देखले बाडू

हमके चाह पियत ? अब बुढ़ौती में नया सवख का करीं ? सुग्गी कहली, 'नाहीं

चाह पियबे त कुछ खा के खरमॅटाव कऽले।' ईया कहली, 'हम त कहि-कहि के

हारि गइनों इनके। एक्के बेर जब सबके खिया-पिया लीहें तब इनके जूनि होई।

इनका खर-खराई नाहीं होला। सुग्गी पुछली 'भउजी चाह पियली ? कि उनहू के

अपनिए लेखा बना लिहले बा माई?' ईया कहली, 'ऊ बेचारी पी ले ले। खइले

में ऊहो कचाहे ह। अब पेट से बा त ओकरा ठीक से खाए-पिए के चाहीं। अपने

त अपने, एगो अउरी जीव के भूख-पियास के ध्यान राखे के परेला।' सुग्गी

कहली- 'ईया तू जानत बाडू कि भइया नइखन चाहत कि लइका होखो ?' ईया

कहली, 'काहे नइखे चाहत ? ओह मरकिनवना के चहले ना चहले से लइका होखी

का रे ?' सुग्गी कहली, 'चलऽ खेत में बतावत बानीं। चाह पी के सुग्गी ईया कि

साधे फेरू खेत में चलि गइली। जाना मकई के पाकल बालि तूरि-तूरि के बोरा में

भरत रहले स। मकई कि बिच्चे बिच्चे लौकी, नेनुआ, कॉहड़ा, करइली फरत रहे।

एक ओर चौराई के साग लहसत रहे। सुग्गी ईया के पौरुख के बखान करत कहली,

'तू जब नाहीं रहबू तब ई कुल के सम्हारी ?' 'जेकरा मन करी से सम्हारी। ना त

बहि बिला जाई। हम कौनो देखे आइबि ? हूँ तें ई बताउ कि अपनी भउजी के कवन

बाति बतावत रहले ह। सुग्गी जवन सुनले रहली तवन सब बात बता दिहली। ईया

पूछली- 'अइसन कवन मसीन बा कि पेटवे में लइका लइकी चीन्हि लेत बा ?'

सुग्गी बतवली कि बा अइसन मसीन। ओह मसीन से जाँच कइले पर जेल जाए

के परि जाई। लोग चोरी-चोरी जाँच करवावेला आ लइकी रहले पर गरभ गिरवा

देला। भउजी नइखी चाहति कि उनके पेट के लइकी मुआवल जाव। भइया नइखन

चाहत कि ओके जनमे दिहल जाव। ईया, तू कहऽ त हम भइया के समुझाईं कि

अइसन पाप न करें। 'ईया के चेहरा दुख से भरि गइल। कहली 'कवन जबाना आ

गइल बा बहिनी! एह दहिजरन के न डर बा न लाज बा। जवन मन करत बा ऊहे

कइले पर फाँड़ बान्हि लेत बाड़ें सन।' सुग्गी कहली 'ईया, तू देखत रहऽ। हम

अइसन कुकरम उनके नाहीं करे देवि।' 


आजी-नातिन खेत में रमि गइल लोग। ओह लोगन के न घाम लागत रहे, न भूख-पियास के फिकिर रहे। माई एगो लइका के भेजि के कहववलसि कि घरे आके खाना-पीना क के तब जा लोग। सुग्गी ईया के लेके घरे अइली त देखली कि भइया मोटर साइकिल धकधकावत कहीं जात रहलें। सुग्गी चहली कि भइया के रोकि के बतियाईं। ईया कहली, 'जाए द पाछे से टोकल ठीक नाहीं है। लौटिहें त बतिया लीहऽ। भइया सुग्गी ओर तकबो नाहीं कइलें। आगे बढ़ि गइलें।

राति के सूते गइली त सुग्गी कहली-'ए ईया, आजु हमके बाबा के कुछ

बात बतावऽ। कई बेर कहेलू। बतवलू कब्बो नाहीं। आजु हम बिना सुनले नाहीं

मानबि। न अपने सूतबि, न तहके सूते देबि।' ईया चिन्ता में बूड़ि गइली। बहुत देर

ले चुपाइल रहली। सुग्गी बेर-बेर टोकली त कहली, 'का करबू जानि के ? ऊ

कुलि पुरान बाति ह। आजु काल ओइसन भइले के कवन कहीं, कहले पर केहू

पतियइबो नाहीं करी। एतने जानि ल बेटी कि मेहरारू के जनम लिहले पर विपति

के गिनती नाहीं कइल जाला। जवन न भोगे के परे थोरे बूझे के चाहीं। तहन पाच

नवका जबाना के बाडू। पढ़ल-लिखल बाडू। देस-दुनिया देखत बाडू। तब्बो वियाहि

के गइले पर रोटी-पानी में अझुराहों के परी। ओह से मुकुती नाहीं मिली।' सुग्गी

कहली- 'का ईया, पहिली बाति त ई कि बियाह कौनो जरूरी चीज नाहीं बा। आ

दुसरकी बाति ई कि बियाह करबो करबि त खाना बनावे के नोकर दाई राखि लेबि।

कवनो अइसन काम नइखे जौन मरद करें आ हम ओके नाहीं क पाईं। त मरद से

दबि के काहे रहीं ? चलऽ तहके दिल्ली में देखाई कि कइसन कइसन लइकनी

एक से एक मरद लोग के उठक-बइठक करावत बाड़ीसन ?' बाकी ई कुल अब्बे

नाहीं। अब्बे त तू हमके बाबा के बाति बतावऽ। जब से तहार बियाह भइल तब से

अबले कुलि बाति बतावऽ। नाहीं बतइबू त न हम सुतबि, न तह के सुते देबि ।' ईया हँसली। उनकी आँखि में एक ओर उजास लउकल आ दुसरी ओर जइसे अन्हरिया घेरे लागल। सुग्गी एह मौका के हाथ से निकरे दिहल नाहीं चाहत रहली। मनुहारि करत कहली 'बतावऽ न ईया। तू बाबा के सबसे पहिले कब देखलू?' ईया हसि परली। सुग्गी उनके गुदुरा के अउरी हँसा दिहली। जब ईया हँसत-हसत थकि गइली तब सुग्गी उनके गुदुरावल छोड़ली आ कहली- 'ईया, अब कवनो बहाना नाहीं चली। अब सबकुछ बता द।'

ईया हँसते-हँसत कहली 'अच्छा बताउ, तिवरिया के बनावल कविताई त सुनलहीं होखबे।' सुग्गी कहली, 'कौन तिवरिया ईया ? आ कविता बनावे वाला एह गाँव में के बा ?' ईया कहली, 'आरे, हऊ पच्छिम टोला के कोहिंया के नइखे जानत? जवन लकवा मरले के बादि दलानी में परल-परल सरि रहल बा ? एह गाँव

के सबसे पापी मनई ऊहे ह। क जेतने पापी रहल, तोर आजा ओतने सोझबक

रहलें। ऊहे तिवरिया तोरी आजा के आ हमरी जिनगी में आगि लगवलसि। ओही

के कारन तोर आजा घर छोड़ि के का जने कँहवा निकरि गइलें। आजु लै उनकर

कुछ पता-ठेकाना नाहीं लागल। ईहो नाहीं जानि पवनीं कि तहार आजा जियत बाड़ें

कि नाहीं। कई बेर कई जने कहलें कि साधू हो गइल बाड़े, फलाने तीर्थ में लउकल

रहलें ह। केहू कहेला कि जोगी बनि गइले। हमार मन गवाही नाहीं देला कि ऊ

मरल होइहें, एही से हम रॉड़ि नाहीं मानीलें अपना के। एहवाती के कौनो सुख नाहीं

मिलल जिनगी भरि, बाकी अपना के विधवा नाहीं मननीं। ऊपर से ई तिवरिया हमरी

साथे कवन-कवन घात नाहीं लगवलसि। ऊहे तोरी आजा के गाँव छोड़ले के बादि

कविताई बनाके गाँव-जवार में परचार करवलसि। हम जानीं कि तेहूँ सुनले होखबे।'

कहि के ईया हसि परली। सुग्गी कहली, 'हमरा त मन नइखे परत कि कवनो

कविता गाँव में सुनले होखीं।' ईया कहली 'जरूर सुनले होखबे, एह समे मन

नइखे परत। जब तिवरिया घात लगा के तोरे आजा के घर छोड़वा दिहलसि त ऊ

गाँव भरि घूमि के गावे दादा हो हम होखबि साधू।' सुग्गी चिहा गइली। कहली-

'हँ ईया, ई कविता त हम छोट रहनीं त सुनलही रहनी। बाकी एसे हमरा बाबा के

कवन नाता बा ? का ई कविता तिवरिया के बनावल ह कि बाबा के बनावल ह ?

बतावऽ न ईया।' सुग्गी ईया के कोरा में धइके हिलावे लगली। ईया कहली तोर

आजा एतना सोझबक रहलें कि जे जवन कहि दे, ओही पर बिसवास कलें। जब

हमार बियाह भइल त हमार उमिरि नौ-दस बरिस के रहे आ तोरी आजा के रहल

होई सात-आठ बरिस। बियाह की सात बरिस बादि गवना भइल। गौना में ससुर नाहीं

जालें, एसे तोर परपाजा नाहीं गइलें। तोर आजा गइलें। ऊ सोझबक रहलें, एसे तोर

परपाजा तिवरिया के हुसियार बुझि के उनके साथे लगा दिहले रहले। हम डोली में

अइनों आ समान लदवा के तोर आजा बैलगाड़ी पर अइलें। रस्ता में डोली कई

जगहि धऽ के कहार कुल्हि एक-से-एक लंठई बतियावें कुल्हि। हमार मन बेकला

गइल रहे। एक बेर तिवरिया डोली कि लग्गे आके बोलल, 'भउजी' पाय लागी।

हम राउर देवर हई। हमसे का लजात बानीं ? ओहार उठाई। हम रउवा के पानी

पियावे आइल बानीं। हम डोली के ओहार उठा के देखनीं त एगो छैला खाड़ रहल।

पानी के लोटा हमरे हाथे में धरावत ऊ हमार कानी अँगुरी दाबि दिहलसि। हमरे हाथ

से लोटा छूटि गइल। जल्दी से ओहार गिरा के हम त काँपे लगनीं। पियसियो बुता

गइल। ओकरी बादि कई बेर ऊ आइल ऊ डोली के ओहार उठावे के कहलसि, बाकी हम ओहार नाहिंए उठवनों। घरे अइनीं। तहार परपाजी रहली। ऊहे हमके

पानी पियवली। तब हमार परान लवटल।' ईया तनी थम्हि गइली त सुग्गी टोकली-

'तब का भइल ? सोहागराति कइसे मनवलू ईया ?' ईया के आँखि मुलमुलाइल।

उनकी चेहरा के लकीरि हँसे लगली स। कहलीं- 'आजु-कालि की लेखा साँझि

होते बर-कनिया कोहबर में नाहीं दुकि जाँ ओह जबाना में। हमार सोहागराति तीन महीना बादि आइल। आ ओके सोहागराति कहीं कि उजार राति कहीं, तुहई बतावऽ' सुग्गी के परान झुरा गइल ई बात सुनि के आ ईया के अन्हार चेहरा देखिके। उनके कुलि खुशी बिला गइल। ऊ पछताए लगली कि कहाँ से कहाँ ईया की साथे बरियाई क के ई कहानी सुनल चहली ह। ईया की आँखिन ओर देखले के हिम्मत सुग्गो को भीतर नाहीं रहि गइल। ईया कुछ देर ओइसहीं सुत्र होके बइठल रहली। ओकरे बादि कहली, 'ले तोके सब कुछ बता देत बानीं कि बेर-बेर हमार जीव नाहीं उदबेगबे।' सुग्गी कहली, 'रहे द ईया। जवन बाति तहार मन एतना दुखा देत बा, ओके मति कहऽ। हम कब्बो तहके तंग नाहीं करबि। जाए द।'

ईया कहली, 'नाहीं बहिनी। आजु ले अपने मन के नरक मनही में ढोअत-ढोअत हमहूँ थाकि गइल बानीं। तहसे कहि के हमरो जीउ हल्लुक हो जाई। तू एतना पढ़ल-लिखल बाडू, एतना दुनिया देखले बाडू। तहसे आजु आपन हिरदे खोलि के देखा दिहल चाहत बानीं। सुनऽ।'

सुग्गी के कुलि देहि कान बनि गइल। ईया कहे लगली, 'गवने अइले के बादि रोज राति के अगोरीं कि हमार दुलहा आवत होइहें। अब अइहें अब अइहें। हो सकेला माई-बाप से लजात होखें। अधिरतिया अइहें, पछिलहरे अइहें, भिनसहरे अइहें। बाकी कहाँ ? उ त साँझे अपनी माई के हाथे खैका खाए खातिर घर में दूकें। आँखि नीचे कइले खालें आ अँचवे खातिर दुआरे भागें त फेरु दुसरही दिने खाए के बेर घर में दूकें। हम पल्ला की झंझरी से उनके देखि देखि के रहि जाई। ओह समें हम सोरह-सतरहे बरिस के रहल होखबि। देहि भादो की नदी अस बढ़ियाइल रहे आ दुलहा के ई हालि। बइसाख में गवना भइल रहल। बइसाख बीतल। जेठ बीतल। असाढ़ बीते लागल। असाढ़ बीते वाला रहल कि एक दिन तहार आजा, ओह समे के हमार दुलहा, हमरी कोठरी के केवाड़ी खोलि के भीतर ढुकलें। केवाड़ी हम रोज खुलले राखीं। ओहि दिन ऊ अइलें। हमार जीव फुला गइल बाकी उनके हाथे में रोटी देखि के बूझि नाहीं पवनीं कि का चाहत बाड़ें। खटिया पर से उठि के खाड़ हो गइनीं। उहो खाड़ रहलें। लाज की मारे उनके मुँहें कावर ताकि नाहीं जा। कनखी से देखनी त हमार दुलहा काँपत रहलें। उनके बाँहि ध के खटिया पर बइठवनीं। हाथे में चारि-पाँच गो रोटी लपेटि के लिहले रहलें। हम पूछनी- 'काहें काँपत बानीं जी ?' ऊ कुछ बोल बे नाही करें। धीरे-धीरे उनके हाथ-गोड़ सुहुरावे लगनी। तनल देहिं तनी नरम होखे लागल। कपार के पसेना पोंछि के उनकी आँखिन में सांझे देखि के पूछनीं- 'हई रोटी काहे खातिर ले आइल बानी' ऊ चुप। कई बेर पुछनीं। बोलवे नाही करें। जब बहुत दिकदिका दिहनी त लजात-लजात कहलें- 'खाए खातिर ले आइल बानीं।' हम पूछनीं के के खाए खातिए ?' कहलें अपना के खाए खातिर।' पूछनों 'आजु चउका में नाहीं खड़नी हूँ का ?' लजा गइलें। उनके लजाइल देखि के हमरा अउरी अजगुत भइल। पूछनीं सब कुछ सोझ-सोझ बताई कि रोटी खाए खातिर हमरी कोठरी में अइनी ह कि कवनो अउरी बाति बा।' ऊ हमार मुँह ताके लगलें। उनकी देहि में मरदवाला कवनो लच्छने नाहीं लउकत रहल। उनके देहि झकझोरि के पूछनी 'ई रोटी खाए के बाति के का मतलब भइल साफ-साफ बतावऽ।' हमार दुलहा कहलें एकर मतलब त हमहूँ नइखों जानत। तिवारी भइया कई दिन से कहत रहले हँड कि जेकर गौना हो जाला ऊ रोटी दालि तरकारी में बोरि के नाहीं खाला। हम पूछनीं कि कइसे खाला ? त बतवलें कि राति के अपनी दुलहिन की लग्गे रोटी ले के जइहs त ऊहे बतइहें कि कड़से बोरि के खाइल जाला। समुझऽ सुग्गी कि उनके ई बाति सुनि के हमार देहि झनझना गइल। रोटी छोरि के फॉक दिहनों आ उनके दूनू कान्ह धऽके उनकी आँखिन में घुइरि के पूछनीं- 'ई बतावऽ तू गवना के मतलब ईहे बूझत बाड़ऽ ?' हमार दुलहा फेरु थरथर काँपे लगलें। ओकरी बादि उनके खटिया पर पटकि दिहनी' आ ढंग से उनके बतवनीं कि गौना के मतलब का होला। बस बहिनी, ऊहे हमार पहिली राति रहल, ऊहे आखिरी।'

ईया पुक्का फारि के रोवे लगली। सुग्गी के देहिए सुन्न हो गइल। अइसन आदिमी हो सकेला ? सोझबक से सोझबक मरद मेहरारू के देखि के चतुर हो जालें। उनके आँखि लड़कनिन के एकएक आँग छेदे-फारे लागेला। सुग्गी के मन अउरी चटोर हो गइल आगे के बाति सुने खातिर। पुछली, 'तब का भइल ईया। उहे आखिरी राति काहें गइल ? कइसे हो गइल ? बाबा का भइलें ?

सुग्गी के सवाल फुलझरी अइसन छूटे लगलें। ईया रोअत आँखि से हँसे लगली। कहली- 'ओकरे बादि होखे के का रहल ? भिनसहरे हमार 'आँखि लागलि। अइसन ओंघाई ओकरे बाद कब्बो नाहीं लागलि। पहर भरि दिन ले हम सुतल रहनों। जब सासु आ के जगवली तब उठनीं। सासु हमार दासा देखि के धधा गइली। कोरा में भरि के हमके चूमे चाटे लगली। कहली 'राति बाबू आइल रहल ह ? अब तहार भागि खुलि गइल। दुलहिन, हमार लड़का बहुत सोझबक ह। ओके कुछ ढंग-लूरि सिखावत रहिहऽ।' हम लाज की मारे काठ हो गइनीं। तहार आजा दिन भरि कहीं नाहीं लउकलें। राति भइल त सोचनीं कि अइहें जरूर। नाहीं अइलें। सासु कई बेर पूछली, 'बाबू आइल बा ?' नाहीं सुनि के कहली- 'हो सकेला लाज के मारे ममहर भागि गइल होखे। दू चारि दिन में लवटि आई। सासु हमरी गाले पर चिकोटी काटि के कहली 'अइसन सवाद छोड़ि के कवनो मरद बच्चा केतना दिन बहरे रही ?' हम लजा गइनीं। चार-पाँच दिन बीति गइल ऊ नाहीं लवटलें। ससुर जी उनके ममहरे आदिमी भेजलें। आदिमी लवटि के कहलसि कि ओइजा त नाहीं गइल बाड़े। सुनते सबके चौन्हा आ गइल। ओझा सोखा के लग्गे हमार सासु-ससुर दउरे लगलें। जे जवन जुगुति बतावे तौने करे लागल लोग। महीना बौति गइल। एक दिन तिवरिया दुआर पर आइल। ओह समे सासु-ससुर कहीं गइल रहे लोग। हमसे कहलसि-'आरे भउजी का हाल-चालि बा ? भइया के कहाँ लुकवा दिहले बाड्? हम का जबाब देतीं ? केवाड़ी के पल्ला ध के भितरे से आंकरी ओर टुकुर-टुकुर ताकत रहनीं कि ई उनके मीत ह, जरूर कुछ न कुछ जानत होखी। थोड़के देर बाद तिवरिया खटिया के पाटी पर अँगुरी बजा-बजा के कुछ गावे लागल। हम कान पारि के सुने लगनीं। ऊ गावत रहे-

दादा हो हम होखबि साधू

घर मेहरी मोर मिललि खुनिया

दादा हो हम होखबि साधू।

भीतर हमसे बोले नाहीं,

बहरा ओकर सगरी दुनिया

तिवरिया आँखि मटका-मटका के गावत रहे। ओकर सँउसे देहि झूमत रहे। ओके देखि के बुझात रहे कि सरग के राज पा गइल बा। हम जोर से केवाड़ी के पल्ला भड़का के आपन रोसि जनवनीं। ऊ दहिजरा खटिया पर से उठि के दुआरी पर आइल। दाँत चियारि के कहलसि 'भउजी! भइया अब नाहीं अइहें। ऊ साधू हो गइलें। अब तू आपन सोना अइसन देहि माटी में मति मिलावऽ। तहरा जवानी

के मोल हम राखबि।' हम ओकरी मुँह पर केवाड़ी बन क दिहनीं। तिवरिया चलि गइल। सासु अइली त हम सब बात उनसे बतवनीं। ऊ जाके तिवरिया से पुछली कि साधू होखे वाली बाति ऊ कइसे जनलसि ह ? बहुत-बहुत पुछाइल बाकी तिवरिया कुछ ना बोलल। साँझे बिहाने हमार घर घुरियावे लागल। तहरी आजा के कुछ पता नाहीं चलल। हमार माई-बाप दमाद के खोजे खातिर वैखरा हो गइल। ओतना विपत्ति में एक्के गो हरियरी लउकल तहार बाप हमरी

कोखि में आ गइल रहलें। हमरे सासु-ससुर के जिनगी नाती को असरा में लटकल

रहे। समय पुरहर भइल। तहार बाप जनम लिहलें। हम सब दुख भुलवा के उनहीं

के पांसे लगनीं। भँइसि मँगवनीं। ओकर दूध पिया के बेटा के पोसे लगनी आ

मने-मने ओके पहलवान बनावे के सपना देखे लगनीं। सोचीं कि इहे लइका

पहलवान बनि के तिवरिया से हमार रच्छा करो। लइका हमार सचहूँ फोफिया के

बढ़े लागल। जेही देखे ऊहे कहे कि बेटा होखे त अइसने होखे। बाकी तिवरिया

से हमार रच्छा कइले के नौबति बेटा का नाहीं आइल। ऊ कार हमरा अपनहीं करे

के परल। लइका भइले कि बाद हमार देहिं एइसन बढ़ियाइल कि जेही देखे ऊहे

छाती पोटे। तिवरिया त पगला गइल। एक दिन भोरहरे हम खेते गइल रहनीं। आँखी

के खेत में बइठनीं। ऊ ना जाने कबसे घात लगवले रहे। आके पाछे से अँकवारी

में ध लिहलसि। इहे रट लगावत रहे 'आजु तहके नाहीं छोड़बि, आजु तहके नाहीं

छोड़बि।' हमहूँ सोचि लिहनीं कि आजु निपटारा क लेबे के बा। बस दुर्गा माई के

सुमरिन क के तिवरिया के बाँहि छोड़वनी। ऊ बुझलसि की हम तइयार हो गइनीं।

तनी एक ढील परल कि पटकि के ओकरे छाती पर बइठि गइनों आ टटका गुह

हाथे में ले के ओकरी मुँह नाके आँखी में लभेरि दिहनीं। छन भरि में ई कार हो

गइल। कहनों कि 'ले भउजी के मति छोडु।' घरे आके सासु से कुलि बाति बता

दिहनीं। सुनि के ऊ बहुत डेरइली। का जने ऊ अब कवन झंझट करी। बाकी

तविरिया ओहिजा से कहीं भागि गइल। कई बरिस कि बादि उपराइल। भागि गइल,

बाकि ओकरी पहिलहीं गाँव जवार में 'दादा हो हम होखबि साधू-घर मेहरी मोर

मिलल खुनिया' के कविताई लइका से ले के सेयान तक ले सबके कंठ में बइठा

दिहले रहल। सभ कंहू इहे बूझे कि हमरी मारि से डेरा के तोर बाबा ईहे गीति गावत

घर छोड़ि दिहलें। एगो मरद कुचाली होखे त केतना माहुर घोरि सकेला कवनो

मेहरारू को जिनगी में, एकर कवनो गनती बा सुग्गी ?'

ईया के सवाल सुग्गी के अइसन तीर बनि के लागल कि उनके रॉआ रॉआ पिराए लागल। कुछ सोचि समुझि नाहीं पवली कि ईया के का जवाब दें। आजी-नातिन की बतकहीं में राति आधा बीति गइल रहल। ईया कहली 'अच्छा बेटी, अब सुति रहऽ।' सुग्गी 'हँ ईया' कहि के सुतली, बाकी आजी-नातिन दूनो जनीं अपनी-अपनी मन में बढ़ियाइल दुख के दरियाव में बूड़त उतिरात भिनुसहरे ले जागत रहली। 


भउजी के आँखि फूलि के लाल अड़‌हुल भइल रहल। सुग्गी देखि के अर्दीक गइली। पुछली 'का भउजी, आँखि अइसन काहें भइल बा ? उठलि बा का?' भउजी अँचरा उठाके आँखि से लगा लिहली आ धीरे से कहली 'नाहीं, आँखि नइखे उठल।' 'तब राति भरि रोवल बाडू का ? का भइल बतावऽ।' सुग्गी उनके हाथ से अँचरा छोड़ा के कहली। भउजी उदास रहने कइली अउर उदास हो गइली। सुग्गी बेर-बेर पुछली त अतने कहली 'राउर भइया, राति भरि हड़कावत रहलें ह कि गरभ के आ ओके गिरावे के बाति सुग्गी से जनि बतइहऽ। जो बता देबू त मारत-मारत हाड़ तूरि देबि ।' कहि के भउजी चुपा गइली। थोरको देर बादि कहली- 'ए बहिनी, राउर गोड़ लागत बानी, अपने भइया से जनि बताइबि कि हम सब बात बता दिहले बानीं। अपने त रउवा दस-पाँच दिन रहि के दिल्ली चलि जाइबि। हमरी जान के साँसति हो जाई।' सुग्गी सोचे लगली, भउजी के आ उनके गरभ में पलत-बढ़त लइकनी के बारे में। भउजी के माई-बाप लड़का के घर दुआर आ जर-जजाति देखि के अपनी बेटी के बियाह भइया से क दिहल। भइया पढ़ले के नाव पर एमए पास हवें बाकी एक पन्ना लिखे के होखे त बीसन गो गलती करिहें। हर दर्जा में कागज-किताब साथे ले के नकल करत पास भइलें। बाप के कमाई से सफारी सूट पहिरि के बिन्ध्याचल के चुनरी कान्हें पर धइले एहर-ओहर मटकत रहेलें। बियाह नाहीं भइल रहित त इनके उनके बहिन-बेटी का पाछे कतिकहा कुक्कुर अइसन दउरत रहतें। अब भउजी अइसन गऊ मेहरारू पा गइल बाड़ें त ओकरे जीव के लागि गइल बाड़ें। सुग्गी के देहि खोसि के मारे झनझनाए लागल। अपने बाऊजी के बाति सोचली त अउर रीसि बरल। क अइसन नाहीं रहतें त भइया कुछ लायक त बनल रहिते। राति-दिन पहलवानी क नशा में घर-बार सबसे बेगाना होत चलि गइलें। माई के गाइ गोरू अइसन जानि के कब्बो ओकर बाति नहीं सुनलें। ओकर ई हालि कि बाऊजी के नाँव सुनते सब देहि ढाँपि के बइठि जाले। ऊहो तनि कड़क रहति त भइया अइसन मनबढ़वा नाहीं भइल रहतें। ओहू के दोष बा। लइका के कवनो बाति टरे के ना चाहीं। बाबू दुलरुवा बनावल गइलें। बनत-बनत अइसन बनि गइलें कि कवनो काम-काज के नाहीं रहि गइलें। माई, बाऊजी, सबकी ऊपर रिसियात सुग्गी का राति के ईया के एगो बाति मन परि गइल। ईया कहली कि मरद त उधिया गइलें बाकी बेटा पा के ओके पोसि के पहलवान बनावे लगनीं। ईया सोचली कि बेटा पहलवान होई त तिवरिया अइसन पापिन से बदला लेई। आजु ईया बाऊजी के पहलवान बनवले के जगही अदिमी बनवले रहिती, कुछु पढ़वले -लिखवले रहिती, त भइया अइसन कपूत त नाहीं होइत। सज्जी दोस ईया के बा। 


गनगना गइल सुग्गी के सगरी देहि, जइसे चलत-चलत मइला पर गोड़ परि गइल होखे। उनका होस भइल त लगली पछताए कि ईया को कपारे बाऊजी आ भइया की बिगड़ले के दोष लगावत बाड़ी। ईया अइसन रहल कि ओह बिपति में अपने के बचवली आ अपने लइका के जियवली पोसली। कवनो दोसर मेहरारू रहति त अफना के मरि गइलि रहित। चाहे तिवरिया के जाल में फौस के बेसवा बनि गइल रहति। जवन ईया एतना हिम्मति से आजु ले जूझि रहल बाड़ी उनहीं के दोस देबे वाली सुग्गी के हई ? पढ़ले में ठीक निकलि गइली। दिल्ली पहुँचि गइली त अतना लेयाकत हो गइल कि माई, बाऊजी, ईया सबके गलती निकाले लगली? ईया साथ नाहीं दिहले रहिती त सुग्गी दिल्ली त का, देउरिया ले नाहीं देखि पवती। अइसन ईया के दोस दिहले के ख्याल से सुग्गी मने-मने बहुत पछताए लगली। मन अतना उमड़ल कि अब्बे ईया के गोड़ ध के माफी माँगी। बाकी ईया त कतहीं लउकते नइखी। हारि-पाछि के सुग्गो ईया के खोजे खातिर खेत कावर निकलि गइली। ईया मकई के खेत में चुपचाप एगो लडकी के लत्ती निहारत बइठल रहली। सुग्गी पाछे से जाके उनके आँखि मूनि लिहली। ईया हाथ पाछे क के सुग्गी के कपार सुहुरवली। कहली, 'हम अपनी सुग्गो के देहि नाहीं चीन्हबि ? कुछ खइले ह कि नाहीं ?' सुग्गी ईया के आँखि उघारि दिहली आ उनके बगले आके बइठि गइली। ईया सुग्गी की ओर तकली त चिहा गइली। पूछली तोर मुँहवा काहें झुराइल बा रे ? कुछु भइल ह का ? कुछ खइले पियले ह ? चलु-चलु घरे चलु। तोर महतारी आ भउजाई तोके खियवले- पियवले के खेयाल कइसे राखें सों ? ओह दूनू के त अपने अपने मरद के फिकिर से फुरसत नइखे। का करे स बेचारी ? अपने-अपने करम के फल भोगत बाड़ी स।' सुग्गी ईया के मुँह अपनी हथोरी से बन क दिहली। उनकी आँखि में ताकि

के पृछली 'ईया तहरी अइसन बहादुर की मुँह से करम आ भोग के बाति नीक

नइखे लागत। तुहईं बतावऽ, आपन बलबुद्धि नाहीं लगवले रहतू त हमार आजा आ

तिवरिया त तहार जिनगी नरक बनवले में कवनो कसरि नाहीं छोड़ले रहले। एक बाति अलबत्ता हमरा नइखे बुझात कि हमार माई अइसन मुँहदुब्बर कइसे हो गइलि? तू अपनी अइसन हमरी माई के काहे न बनवलू ? अब भउजियो माइए वाली राहि धइले बाड़ी। का होई हमरी घर के हालि, जब तू नाहीं रहबू ?'

ईया जोर से साँस लिहली। सुग्गी के हाथ अपनी हथेली में ले के दबवली। ओकरी आँखि में झाँकि के कहली 'एहू में हमरे दोस बा। जब तोर आजा भागि गइलें आ तिवरिया हमार बदनामी करे खातिर कविताई करे लागल त हमार जियल मोहाल हो गइल। जब तोर बाप जनमले त उनके पहलवान बनावे लगनों। जब बियाह करे लाएक भइलें त हम अइसन लड़की खोजनीं जवन हमरे बेटा को ओर आँखि उठा के देख के हिम्मति न करें। हमरे मन में एगो चोर पइसि गइल रहे कि कहीं हमार पतोहियो हमरिए लंखा चढ़बाँक मिलि जा, आ हमार लइकवां अपने बाप लेखा घर छोड़ि के भागि जा, तब का होखी ? एही से लामे के नाता में एगो बिना माई-बाप के टुअर लइकी पसन कके ओही से बेटा के बियाह कइनीं। अगहूँ एह बाति के धेयान रखनीं कि पतोहि कच्चो बेटा के मुँहे ना लागे पावे। हरदम हम तोरी माई के दबवले रहनीं। एकर नतीजा ई भइल कि तोर माई एइसन गऊ हो गइलि। अइसन नाहीं भइल रहत त हमार पहलवान ओके कहिए घोटि घलले रहतें।

सुग्गी भड़‌क गइली। 'मेहरारू के गऊ बनवले के जरूरत मरद लोगन के काहे परल जानेलू ?' सुग्गी के सवाल सुनि के ईया आँखि फारि के उनके देखली। कहली- 'पढ़ले हम बानीं कि तू? तुहई बतावऽ कि गऊ बनवले के जरूरत काहे परल।' सुग्गी हौस परली। कहली, 'जवन हम कहे जात बानीं ऊ सुनि के तू बिसवास नाहीं करबू। जनम से लेके, आजु ले जवन सिखावल गइल बा ओके छोड़ल, ओसे हटि के कवनो नया बाति सुनल, असानी से नाहीं होला।' सुग्गी अचक्के में आपन बाति रोकि के ईया की माँगि में भरल सेनुर निहारे लगली। ईया कहली, 'का देखत बाड़े ? सुग्गी कहली, 'तहरी माँगि में चमकत सेनुर देखत बानीं। जानत बाडू ई का ह ? ईया कहली, 'एमें जनले के कवन बाति बा रे बउरही ? ई सोहाग के निसानी ह। लोग केतनो कहल कि जब तहार मरद एतना दिन हो गइल, नाहीं लवटलें त मरि खपि गइल होइहें। माँगि धो द आ चूरी फोरि द। हम कहि दिहनीं कि हमार मन कहत बा कि ऊ जियत बाड़े। जहाँ होइहें जइसे होइहें, बाकी जियत बाड़े। हम उनके सोहाग के निसानी काहे छोड़ों ?' सुग्गी हौंस परली। पुछलीं 'ईया, जवने के तू सोहाग कहत बाडू ऊ तहके का दिहलसि? सँउसे जिनगी में एक राति के सुख, उहो तब मिलल जब तू बरियाई से ओह सुख के उनसे छोरि लिहलू। संजोग कहऽ कि ओसे तहरी कोखि में बेटा आ गइल। ओकरे बाद सोहाग के नाँव पर तहके का मिलल ?' ईया मुँह बा के सुग्गी कावर देखत रहि गइली। सुग्गी पुछली- 'बतावऽ'। ईया कहली का बताई रे ? हम कुछ बुझिए नाहीं पावत बानीं कि तें का कहत बाड़े।' सुग्गी हारल नाहीं चाहत रहली। कहली 'ईया, बताई त बिसवास करबू कि सेनुर गुलामी के निसानी ह ?' ईया बिगड़ि गइली 'तें पढ़ि-लिखि के बउरा गइल बाड़े। आरे, ई भगवान के बनावल सोहाग के निसानी ह। एके गुलामी के निसानी काहे कहल जाव ? आ मानि ले गुलामिए के निसानी 

ह. त पति साच्छात परमंसर हवें। उनके गुलाम भइले में कवन उजुर हो सकेला ?'

सुग्गी मुस्कान में बदलि गइली। ईया का बुझाइल कि सुग्गो के ओठवे नाहीं, ओकर आँखि, नाक, लिलार कुलि देहिंए मुसुका रहल बा। सुग्गी के ई रूप ईया के बहुत नीक लागल। पट्टे कहि दिहली, 'अब तोहरो के हम गुलाम बनवही वाली बानी, एगो तोरी जोड़ जुगुति के लइकवो हमरी नजरि में बा। बियाह हो जाई, तब समुझवे कि पति के गुलामी केतना नीक लागेला।'

सुग्गी ईया की बाति पर कुछ ना कहली। पुछली 'अच्छा ईया। तू ई बाति जानेलू कि सगरी दुनिया में खाली अपनिए देस में आ ओहू में खाली हिन्दू लोग में सेनुर सोहाग के निसानी मानल जाला ?' ईया कहली 'काहे, गाँव के मियाइनो त सेनुर लगावेली स।' सुग्गी कहली 'देहात में हिन्दू की देखा देखी लगावेली। शहर में रहेवाली मियाइन कब्बो सेनुर नाहीं लगावेला! दुनिया एतना बड़हन बा, एतना लोग एमें रहेला, परमेसर खाली एक देस के एक्के धरम के माने वाला लोग के सेनुर दे के भेजलें, अउर केहू के नाहीं दिहलें ? ईया तुहई सोचऽ जो तहार परमेसर सोहाग के ई निसानी आदिमी के दिहले रहतें, त सभ के न दिहले रहतें। आखिर सभे त तहरी परमेसरे के उपजावल न हउवे।'

ईया फिकिर में परि गइली। गुनानि करे लगली कि एतना पढ़ल-लिखल होके जवन बाति कहत बिया ओमें कुछ गुद्दा त होखबे करी। बाकी हमरी अकिल में त कुछु अमाते नइखे। ईया के चुप देखि के सुग्गी कहली 'का सोचे लगलू ईया ! हम बताई ?' ईया कहली 'तेहीं बताउ, हमरा कुछ नइखे बुझात।' सुग्गी कहली-'अच्छा ईया, गाइ भैइसि के नाथल काहे जाला ?' ईया हँसि परली। कहली- 'हरे बउरही नाथल ना जाव, त पगहा तुरा के भागि नाहीं जाई ?' सुग्गी ईया को आँखि में आँखि डारि के कहली-'एही लेखा मरदो लोग जवने मेहरारू के खाली अपनिए खूँटा में बन्हले रहल चहलें, उनके नाक छेदि के नथिया पहिरा दिहलें। आ कहि दिहलें देखिऽल ई नथिया तहरी सोहाग के निसानी ह, एके कब्बो नाके से उतरिहऽ जनि। पहिले जब अदिमी लोग जंगल में उघारे घूमत रहे, तब केहू न केहू के भतार रहे, न केहू केहू के मेहरी रहे। जेकरा जेकरे साथे जब मन करे, तब चलि जा। जब ई बाति कुछ लोगन के नीक नाहीं लागल त आपस में मिलि बइठि के विधान बनावल लोग कि एक मरद की साथे एके मेहरारू हरदम खातिर रहि जा। एही के बियाह परथा कहल गइल। एसे आगे चलि के बहुत फैदा भइल। अदिमी लोग जनावर से आगे बढ़ि के बहुत उन्नति कइलें। दुनिया के जवने-जवने हिस्सा में लोग रहल, तवने-तवने हिस्सा में अलगे-अलगे बोली-बानी फइलल। बियाह के अलगे-अलगे ढंग फइलल। मरद के खूँटा से मेहरारू बन्हल रहें जिनगी भरि, एकरे खातिर अलगे-अलगे सोहाग के निसानी चलि गइल। कहीं सेनुर, कहीं बिछुवा, कहीं मुनरी आ कहीं मंगलसूत्र। जीने देस में जवन चलन चलि गइल कहे अबले चलत बा।'

ईया मुँह बवले आँखि मुलुकावत सुनत रहली। सुग्गी हौंस के कहली- 'ईया, एकर उल्टो भइल। जवने आदिवासी कवीलन में मरद की जगहि मेहरारू मालिक रहली ओमें मरदे लोग के नाक, भा कान में छेद क के कवनो सोहाग के निसानी पहिरा दिहल गइल। तू गोदना गोदवले बाडू न? गोदनवो एही लेखा सोहाग के निसानी मानल जाला। हमन पाच किहाँ मेहरारू गोदना गोदवावेली। कई समाज अइसनो बा, जहाँ मरद गोदना गोदवावेलें। अब त कई जने फैसन समुझि के गोदना गोदवावे लें। एही लेखा...

एगो लइका दउरल आइल। हाँफत हाँफत कहलसि 'ईया घरे चलऽ, जल्दी चलऽ।' ईया पूछली 'का ह रे ? हाँफत काहें बाड़े ? के बोलावत हऽ ? लइकवा कहलसि 'पहलवान बाबा बोलावत बानें' कहि के भागि गइल। ईया कहलो 'चलऽ ए सुग्गी, देखल जाव पहलवान का कहत बाड़े ?'

आजी-नातिन दुआर पर आइल लोग। उहाँ के नजारा ई रहल कि आठ नौ जने पहलवान खटिया चउकी पर बइठल रहलें। बाल्टी में रस घोरात रहे। एक जने सिलवट पर भाँगि पीसत रहलें। माई के देखि के सुग्गी के बाप उनके लग्गे आ के कहलें 'माई, एह सबके खैका बनवा दे। खा के मेला में जाई लोग। ओइजा दंगल होखे वाला बा।' माई कहली, 'देखऽ तानीं।' सुग्गी के हाथ धइले ईया भीतर ढुकली। सुग्गी के भउजी आ माई थथमल खाड़ रहल लोग। ईया पूछली- 'का ह रे ? काहें एह तरे ठाढ़ बाडू स ?' सुग्गी के माई कहली 'देखीं न, घर के लोग के खैका बनि गइल बा। अब ई एतना लोग के लिया आइल बाड़े। चाहत बाड़े कि घिवही पूरी आ जाउरि बनो। घर में न एतना घीव बा, न एतना दूधे बा कि पूरी जाउरि बनो। रउरहीं बताई हम का करीं ?' ईया कुछ देर सोचली। सुग्गी से पूछली- 'का कइल जाव ?' सुग्गी कहली- 'हम का बताई ईया ? घीव दूध नइखे त कुछु अउर बनि जा। खियावे के त परबे करी। ईया कहलो, दालि-भात-तरकारी चाहे लिट्टी-चोखा बनि जाइत, बाकी तोर बाप माने तब न ?' माई आ भउजी भीजल बिलारि अइसन कपसल रहली। सुग्गी कहली 'हम जाके बाऊजी से बतियावत बानीं। ईया जबले कुछ कहें, तबले सुग्गी दुआर पर निकरि अइली। पहलवान लोग के सुना के बाउजी से कहली 'बाऊ जी, एह बेरा पूरी जाउरि बनावे भरि के घीव आ दूध घर में नइखे। लिट्टी चोखा काहे न बनि जा ? बाऊजी को आँखिन में रीसि के लाली दउरल। कुछ बोलें तबले एक जने पहलवान बोलि परलें 'का हरज बा ? लिट्टी-चोखा बनि जा। ओमें त अउर मजा आई।' सुग्गी देखली, एक दू जने पहलवान के मुँह उतरि गइल। ओह लोगन के आ बाऊजी के मुँहे कावर बिना देखले भीतर गइली। ईया से कहि दिहली 'पिसान आ आलू बहरा भेजि दऽ। उहे लोग लिट्टी चोखा बनाई आ खाई।'

पहलवान लोग के खिया-पिया के बाऊजी ओह लोग के सथवें निकलि गइलें। जात बेर बिना केहू ओर तकले कहत गइलें, 'हम राति के नाहीं लवटब। बिहने आइबि।' सुग्गी के माई सुग्गी के कोरा में भरि लिहली। कहलीं- 'बेटी आजु तें नाहीं रहते, त अबहिन ले हम सासु पतोहि घीव दूध के इन्तजाम कके ओह धमधुसरन के पूरी जाउरि बनवले में नधाइल रहतों जा। तू कहि दिहलू अपने बाऊजी से कि घीव दूध नइखे त लिट्टी चोखा बनि जाव। हम कहले रहतीं त हमार जिभिए खीचिं लिहले रहतें। आजु पहिली बेर अइसन भइल ह कि तहरे बाऊजी के फुरमाइस पूरा नाहीं हो पावल।

ईया के आँखि-मुँह अजबे उजास से भरल रहे। ऊ सुग्गी के देखि देखि के आ उनके बाति सोचि सोचि के हुलसत रहली। पतोहि के बाति सुनि के कहली, 'तोहार बेटी हीरा बा होरा। केतना निम्मन होइत जो तोहार बेटवो कुछु लाएक भइल रहित।' सुग्गी एह बात पर ध्यान दिहली कि ईया की चेहरा के उजास भइया के जिकिर अवते बिला गइल। सभे भड़भड़ आवाज सुनि के रस्ता की ओर ताके लागल। भइया आ उनके केहु सँघतिया मोटर साइकिल पर आवत रहलें। माई घर के भीतर चलि गइली। भउजी पल्ला पकड़ि के दुआरी पर खाड़ रहली, ऊहो नपत्ता हो गइली। ईया आ सुग्गी खाड़ रहि के आवे वाला लोग के देखे लगली। भइया मोटर साइकिल से उतरि के बिना कवनो ओर तकले घर में ढुकि गइलें। उनके संघतिया एगो खटिया पर बइठि गइलें। ईया सुग्गी से कहली 'इनके पानी पिया दे।' सुग्गी कुछ कहें ओस पहिलहीं भइया घर में से कुछ रुपया गनत निकलले। उनके देखते सँघतिया उठि परलें। दूनू मोटर साइकिल भड़भड़ात उड़ि गइले।

सुग्गी पूछली 'भइया कहाँ जालें ? कौनो नोकरी-चकरी करेलें ? ईया कपारे हाथ लगा लिहली। कहली नोकरिए खातिर त मारल-मारल फिरत बा बेचारा। एगो कौनो दलाल पचास हजार रूपया घूस लिहले बा कि बस के कंडेक्टर बनवा देई। साल भरि हो गइल। न रुपेयवे देता, न नोकरिए लगवावत बा। लइका बैखरा होके घूमत बा। एही फिकिर से कई राति हम आ तोर माई जगले रहि जाई लें जा।' सुग्गी भइया के मन के थाह लिहले के, उनकी ओर से समुझले के जंतने कोशिश करें, ओतने अझुरात जा। ईया कहत बाड़ी कि पचास हजार रुपया घूस दियाइल बा, ऊहो कंडेक्टर बने खातिर। एतना आराम से जिए खाए पहिरे वाला भइया ! बस में कंडक्टरी क पइहें ? ई सोचते सुग्गी हौंस परली। कहली- 'ईया, मानि ल भइया के नोकरी मिलि जा, त ऊ कंडक्टरी करिहें ? ओतना रुपया लगा के कवनो रोजगार कइले रहतें त अबले कुछ फरिया गइल रहित।'

ईया कहली- 'ईहो बाति चलल रहे। सुनि के तहार भइया कहलें 'हम कौनो बनिया हई कि दोकानि करे बइठीं ?' सुग्गी सोचे लगली एह पीढ़ी के गाँव के लइकन के इहे सबसे बड़हन बेमारी बा। पढ़ले के नाँव पर खेत में गोड़ डरिहें नाहीं। नोकरी मिली नाहीं। रोजगार करिहें नाहीं। सिनेमा आ टीवी देखि-देखि के फैसन आ सवख-सिंगार के जरूरत बहुते बढ़ि गइल बा। माई-बाप करेजा काटि के कमाई आ एह लोगन के फुरमाइस पूरा करी। अपने घर के हालत पर दुखी होके सुग्गी कहि परलि, 'हमन के कम दोस नइखे। अपने घर के विपति कम बा कि बियाह क के एगो लड़की के जिनगी और बरबाद क दिहल गइल!

सुग्गी के बाति ईया का नीक लागल। ऊहो नतिनपतोहि के दुर्गति से फिकिर में परल रहेली। कहली, 'सुग्गी, हमन से त गलती हो गइल, बाकी जबसे तूं आइल बाडू, तबसे हमार जीव हरियरा गइल बा। हमरा बुझात बा कि अब एह घर के बूड़त नाइ के तुहईं पार लगइबू। एतना पढ़ल-लिखल बाडू, एतना सोचि-समुझि रहल बाडू। कुछु अइसन करऽ कि तहरी भइया भउजी के जिनगी सुधरि जा।' सुग्गी कहली, 'ईया, हमरो ए लोग के बहुत फिकिर बा। बाको भइया के हम कइसे का समुझाई ? हमसे न बोलत बाड़े, न बोले बतियावे के कौनो मौका देत बाड़ें। बतावऽ, हम का करीं ? हूँ भउजी के कहऽ त हम अपने साथे दिल्ली ले जाईं। अगला महीना हमार नोकरी शुरू हो जाई हॉस्टल छोड़ि के अलग मकान लेवही के बा। ओहिजा भउजी रहिहें त इनके पढ़ले-लिखले के कवनो इन्तजाम कइल जाई।

बोलत-बोलत सुग्गी चुपा गइली, जइसे गाड़ी के आगे काठ परि गइल होखे। ईया पूछली- 'का भइल ? काहे चुपा गइलू ?' सुग्गी कहली- 'भउजी के लइका होखे के नाहीं रहित त हम इनके सथवें लियवले जइतीं। इनके कवनो कोर्स करवा देतीं। साल भर बादि ई तीन चारि हजार रुपया महीना कमाए लगती। एह हाल में इनके कइसे ले जाईं ? आछा, दुसरकी बात ई बा कि भइया इनके हमरी साथे जाए दीहें ?' घर की भीतर केवाड़ी के पल्ला पकड़ि के बहरा के बाति सुनत रहली भउजी। धीरे से बोलि परली- 'हम के ले चलीं दोदो। 'सुग्गी का ओह आवाज में एतना दरद सुनाइल जइसे कवनो गाइ कसाई कि हाथ से छूटे खातिर डकरति होखे।

सुग्गी के मन उमड़े लागल। का करीं कि एह घर के दसा सुधरो। भउजी के सगरी जिनगी परल वा। ढंग से बियाहे के उमिरियो नाहीं भइल बा। लरिकोर होखे वाली बाड़ी। भइया के समुझवले के कवनो जुगती लउकते नइखे। अचक्के सुग्गी के एगो राहि लडकि गइल। कहली 'एक काम हो सकेला। हम नोकरी सुरू कऽलीं आ मकान ले लीं त भइया भउजी दूनू जने के ले जाईं। भइयो के कवनो काम सिखवा के उनहू के नोकरी दियवाईं। बाकी ऊ मानें तब न ?'

'आरे जनम भरि एही घर के ले के ढोवत रहबू कि आपनो घर बनइबू ? अब पढ़ाई पूरा क लिहलू, नोकरी करे जात बाडू, त बियाह क के आपन घर बसावऽ'। सुग्गी चिहा के देखली कि अबहिन ले चुपचाप रहल उनके माई उनहीं से कहत बाड़ी। सुग्गी हौंस दिहली कहली 'बियाह कइले के सवाल हमरी जिनगी में अबहिन नइखे आइल। आ एक बात अउर, तहन पाच हमरे बियाह के फिकिर जनि करऽ जा। सब जने मिलि के पहिले भइया भउजी के जिनगी बनावे के सोचल

जाव।'

सबेरे उठली सुग्गी त सबसे पहिले भीतर भउजी कि कोठरी की दुआरि प खाड़ हो के भउजी के हाँक लगवली। भउजी हड़बड़ात निकलि के पूछली- 'का भइल बहिनी!' सुग्गी कहली 'भइल कुच्छू नाहीं। भइया राति अइलें ?' भउजी मूड़ी हिला के बतवली कि अइलें।

सुग्गी कहली 'आजु ऊ बहरा जाए लागे त हमके बता दीहऽ। उनसे बात करे के बा।' भउजी मुसुका के कहलो 'अच्छा।'

सुग्गी अगोरते रहली। भइया दतुवन क के चाह पिए बइठलें त सुग्गी आपन चाह लिहले उनकी लगहीं चलि गइली। देखते भइया गरमइलें 'का ह ?' सुग्गी कहली- 'ह त कुछ नाहीं। एतना दिन से आइल बानी। तहरा बहिन से बतियावे के फुर्सते नइखे मिलत। हम सोचनी हैं, हमहीं बतियाईं।' सुग्गी के बात सुनि के भइया अउर तरना गइलें 'का बाति करबे ? बोल !'

सुग्गी कुछ कहे ओसे पहिलहीं गम्भीर आवाज में कहलें 'अब तोर पढ़ाई पूरा हो गइल न ? अब तें हमार बात सुन। अब दिल्ली फिल्ली नइखे जाएके तोरा। एही लगन में तोर बियाह होई। बाऊजी आ हम एही चिन्ता में परल बानीं जा। दू तीनि गो घर-बर देखलहू बानीं जा। जल्दिए कवनो फाइनल क के दिन बार पक्का हो जाई। बियाह हो जा त कपारे पर के बोझा उतरे। जो आपन कार करु। हट इहाँ से।'

भइया आपन आखिरी फैसला सुना के सुग्गी के झारि दिहलें। भइया के तेवर देखि के सुग्गी हँसि परली। उनके हँसत देखि के भइया के देहि जरि गइल। जोर से चिघरलें- 'तोर एतना मन बढ़ि गइल बा ? हाथी अइसन देहि लेके माई-बाप कि सामने एह तरे हँसबे ?' सुग्गी भाई के ई रूप कब्बो नाहीं देखले रहली। भइया के रीसि बढ़ते चलि गइल। चाह के गिलास फेर्पोक के उठलें आ सुग्गी की कपार पर अइसन हाथ चलवलें कि जो परि गइल रहित न आँखि बहरा निकलि परल रहित, बाकी ई का भइल ? चारि हाथ फरके जा के मुँहे कि भरे ढहि गइलें। ईया आ सुग्गी के माई दउरली' आहि दादा, लइकवा के का हो गइल ? बेना ले आउ, पानी ले आउ...

सुग्गी ईया की लग्गे आके कहली 'कुछ नाहीं भइल। अब्बे उठि जइहें। चिन्ता मति कर। ईया चिहा गइली का कहत बाड़े ? लइका एहतरे भहरा के गिरल बा। आ तें कहत बाड़े कि कुछ भइले नइखे ? बताउ ऊ गिरल कइसे ? सुग्गी कहली- 'ऊ अपने से नाहीं गिरले ह। हमके मारे चलले हैं त हम अपना के बचावे खातिर एक हाथ चला दिहलीं ह। बस भहरा गइलें ह। अब्बे उठि जइहें।' ईया छाती पीटे लगली। सुग्गी के माई बेटा के मुँह पर पानी के छींटा मारे लगली। छन भरि में उनके बेटा उठि गइलें। पहिले धरतिए पर बइठलें। एहर-ओहर तकलें। कुछ समुझि नाहीं पवलें कि भइल का। तबले सुग्गी उनके हाथ पकड़ि के उठा दिहलो। सुग्गी के चेहरा पर तनिको तनाव खिंचाव नाहीं रहल। भइया की आँखि कावर तकली। कहली 'देखऽ भइया, मारि के हमके कवनो बात नाहीं समुझा पइबऽ, एकर अन्दाज त तहरा हो गइल होई। जेठ भाई हवऽ। बइठि के ढंग से बात कइल जाव, तब्बे कुछ फरियाई। तू आ बाऊजी हमरे बियाह आ हमरी जिनगी के फिकिर छोड़ि द जा। सबसे पहिले अपनी आ भउजी की जिनगी के सोचऽ। ओहू से पहिले भउजी की पेट में आइल परान के भविष्य के बारे में सोचऽ। रीसि छोड़ऽ। बइठऽ।

ईया सुग्गी पर बहुत बिगड़ली। बेर-बेर इहे कहे 'ते जेठ भाई पर हाथ कइसे उठवले ह ? अइसने मेहरारू के मर्दमार कहल जाला। हमार नातिन हो के तें अइसन कइसे हो गइले। बताउ ? तें एतना पढ़ल लिखल बाड़े, एतना गुन के आगर बाड़े। एतनो नइखे जानत कि मेहरारू के लच्छन कुलच्छन का ह ?' 


सुग्गी कुछ नाहीं बोलली। ईया के बाँहि पकड़ि के ओहर ले गइली जहाँ पक्का ईंटा के छल्ली लागल रहे। एगो ईंटा उठा के हवा में फेकली आ दुसरका हाथ की हथारी से का जने कइसे ओके मरली कि दू टुक्का होके गिरि गइल। ईया खि फारि के सुग्गी के मुँह ताके लगली।

सुग्गी कहली- 'ए देहिया के हम इसपात बना दिहले बानीं। सच्चो कहऽ तानी। भइया के हम कुछ नाहीं कइनी ह। जब ऊ हमके मारे चलले हऽ त हम आपन इहे हथवा उठाके उनके रोकि दिहलीं हैं, आ ऊ ढिमिला गइले हैं।' कुछ ठहरि के सुग्गी कहली आ ईया तू ई काहें भुला जात बाडू कि हमरो देहि तहरिए खून से सिरिजल गइल बा।'

ईया लाज से लाल हो गइली। सुग्गी कहली 'जब हम पढ़े गइली त दिल्ली में पहिले ई बुझाइल कि आधा लोग के दीठि हमरी देहिया के जगह-जगह से छेदि रहल बा। कुछ दिन में भोथर होके सहे लगनीं। हमके पढ़ावेवाला सर लोगन में एक जने अइसन रहलें कि उनके मेहरारू गाँव में चिपरी पाथति उनके नाँव पर नरक भोगति रहे। सर एन्त्रे ओत्रे मुँह मारत साँड़ अइसन हँकड़त रहें। हमसे पहिले कलास वाली एग्गो लइकी बतवलसि कि सर बिना जुठरले कवनो लइकी के ठीक से पास नाहीं होखे देलें।

'ई सर का होलें रे ?' ईया पूछली। सुग्गी बतवली- 'जइसे एहर मास्टर लोग के गुरुजी भा मुंशी जी, पंडी जी, भा मौली साहब कहल जाला ओसहीं ओहिजा 'सर' कहल जाला। सर नाहीं कहऽ त ऊ लोग भुच्च गँवार बूझेलें। ईया, जब हमके ओह सर के ई भेद मालूम भइल त हमहूँ मने-मने ओकर उपाई सोचि लिहनीं। सबेरे कराटे सिखावे वाला किलास में नाव लिखा लिहनों।'

ईया टोकली 'करइत साँप सिखले ?' सुग्गी हँसली 'नाहीं ईया, चीन देस में लड़ाई के एगो तरीका होला। ओह में ईहे सिखावल जाला कि कवने तरे केतना फुर्ती से झपटि के अपने दुसमन के मारल जा सकेला। हमार ट्रेनिंग केतना पक्का बा, ई त देखबे कइलू है। छव महोना में हम एतना सीखि लिहनीं कि कंहू मरद बच्चा हमरी देही पर हाथ धरे चली, त उनके भहरा के ढहिए जाए के परी। ऊ सर एक दिन अपने घरे बोलवलें, आ जइसहीं आपन सँड़ई सुरू कइल चहलें कि एक हाथ दिहनीं। मुँहे कि भरे ढहि के गों-गों करे लगलें। उठा के सोझ कइनीं आ कहि दिहनी- 'सर हमार कवनो नोकसान होखी, त ईहें हाथ हम कलासे में भा यूनिवर्सिटिए में कहीं देखा देवि।' 


कहि के चलि अइनीं। उनके हिम्मति नाहीं भइल तब से कि हमार कंवनों नोकसान करें। अब हमरी ओर तकतो में डेरालें।'

ईया मुँह बा के टुकुर-टुकुर ताकत रहि गइली। सुग्गी कहली, 'जइसन आपन देस आ समाज हो गइल बा ईया, ओमें औरत जात का जनमही के नाहीं चाहीं, जो जनम ले ले, त ओके ऊहे होखे के परी जवने के तू मर्दमार कहत बाडू।'

सुग्गी अचकचा के चुपा गइली। कहली ईया एक बात बतावऽ ? रोज-रोज जवन निखट्टू मरद लोग अपनी महरारू के, बहिन-बेटी के मारत पिटत रहेलें ओह लोग के 'औरतमार' कहि के काहे नाहीं गरियावल जाला? ई त जनते बाडू कि जवन मरद कुच्छ लाएक नाहीं होलें, समाज में जगह-जगह अपने ऐब के चलते मारि खाते रहेले, गारी सुनत रहेलें, ऊहे घरे आ के मेहरी के मरले में सबसे आगे रहेलें। तहनपाच ओह कुल्हिनि के 'औरतमार' कहि के काहें नाहीं गरियावे लू जा ?' कहि के सुग्गी उदास हो गइली। बुझाइल कि रो दिहें।

ईया के काठ मारि दिहलस। सुग्गी के बात अच्छर अच्छर साँच बा। एकरे पहिले एतना उमिरि ले उनका काहे नाहीं बुझाइल रहल ह ? भक् से अँजोर हो गइल ईया के हियरा। अपनही कहि परली 'ई कुलि विद्या के परताप ह। अपनी जगहि से उठि के सुग्गी के लग्गे गइली। उनके अँकवारी में भरि के कहली- 'काहें ते रोवति बाड़े ? रोवे तोर दुसमन लोग। तें त देस दुनिया में हमन के नाव उजियार क देबे।'

सुग्गी देखली कि भइया कपड़ा पहिरि के कहीं निकलत बाड़ें आ भउजी केवाड़ी पकड़ि के ठकुआइल खाड़ बाड़ी। माई त पथरे के मूरति बनलि बा। झपटि के सुग्गी उठली। भइया के लग्गे पहुँच के कहली 'तू कहीं गइले से पहिले हमार बात सुनि ल। तब जहाँ मन करी तहाँ जइह 5।

सुग्गी के भउजी, भाई आ ईया सब देखल कि भइया चुपचाप खटिया पर बइ‌ठ गइलें। धीरे से सुग्गी के ओर ताकि के कहलें 'कहु, का कहत बाड़े ?'

सुग्गी के मुह हँसलोन हो गइल। कहली 'पहिलकी बात त ई बा कि हम अपने साथे भउजियो के दिल्ली ले जात बानीं। उनहू के कराटे सिखाइबि जवने के एगो हल्लुक हाथ तू देखलऽ ह।' सुग्गी के बात खतम भइले कि पहिलहीं भीतर से भउजी के हँसी खनकलि, ईया हसि परली, माई मुँहें से अँचरा लगा के हँसे लागलि। अउर त अउर भइयो खुलि के हँसि परलें। ओह समे सभे हँसी की हिलोर में ऊभचूभ होखे लागल। 

सुग्गी कहली-'जबसे सेयान भइनों, तबसे भइया के रिसियइले मुँह देखे के मिलत रहल। आजु भइया खुलि के हँसत बाड़ें त केतना सुन्नर लागऽताड़े ?' एक बेर फेरू सभे होस परल। सुग्गी कहली 'दुसरकी बाति ई बा कि जवने भकचोन्हर से हमार बियाह कइल चाहत बाड़ऽ, ऊ हमार एक्को हाथ सहि पाई ?' एक बेर फेरू सब केहू हँसी के लहरि बनि के बरे लागल। सबके जीउ हल्लुक हो गइल।

अब तिसरकी बात सुनऽ, सुग्गी कहली त सभे उनके मुँहे का ओर देखे लागल। सब सोचे लागल, का जने अब का कही। 'तहरा नोकरी करे के सवख होखे त हमरा साथे चलऽ। हम तहके दिल्ली में पहिले छव महीना कवनो काम सिखवा के नोकरी दियवा देबि । भउजियो के कवनो टरेनिंग दियवाइबि। ई तहरा से ढेर रुपया कमाए लगिहें। आखिरी बतिया कहति में सुग्गी अइसन आँखि नचा दिहलो कि एक बेर फेर सब केहू हँसि परल। सुग्गी कहली 'आ गाँव नाहीं छोड़ल चाहत होखऽ, त नोकरी के विचार छोड़ि के जमि के खेती करावऽ। ट्रैक्टर ले आवऽ। खेती के बैपार समुझि के करड़।' सुग्गी के बात पर भइया पहिली बेर एतना धेयान देत बाड़े, अइसन देखि के उनके माई आ ईया के जियरा फुला गइल। हुलसि के ईया पूछली 'सुग्गी तें ई त बतइबे नाहीं कइले कि तोके नोकरिया कवन मिललि बा ?' सुग्गी आँखि नचा के कहली- 'हम सोचले त रहनी कि अबहिन नाहीं बताई, बाकी बता देत बानीं हम दिल्ली पुलिस में अधिकारी हो गइल बानीं।' 'का ? तें दरोगा हो गइले ?' ईया चिहा गइली। सुग्गी हौंस के कहली 'नाहीं, दरोगा लोग से ऊपर, ओह लोग के अफसर।'

पहिली बेर भइया की आँखि में खुशी के आँसू छलकल।

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सबेरे मुँहअन्हारे डुगडुगी बजावत खुल्लर गाँव में निकलि गइलें। जवन मरद मेहरारू पहिलही उठि के खेत बारी कावर चलि गइल रहे लोग, ओह लोगन के बहरखें से डुगडुगी सुनाइल त सोचे लगले कि ई का भईल? कवने बाति पर एह स

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रजाई

10 January 2024
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आजु कंगाली के दुआरे पर गाँव के लोग टूटि परल बा। एइसन तमासा कब्बो नाहीं भइल रहल ह। बाति ई बा कि आजु कंगाली के सराध हउवे। बड़मनई लोगन क घरे कवनो जगि परोजन में गाँव-जवार के लोग आवेला, नात-हीत आवेलें, पौन

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राजा आ चिरई

10 January 2024
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राज का चारू कोना में आन्दोलन होखे लागल। सूतल परजा के जगावे खातिर नेता लोग फेंकरे लगलें। ऊ लोग परजा के बतावता के फेचकुर फौक दीहल लोग कि तोहन लोगन केतना दुख बिपत में परल बाड़ऽजा। परजा का ई बुझाइल कि जब

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कतिकहा विदवान

10 January 2024
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आईं, मास्टर जी बइठीं। कहीं, आप डाक बंगला में कइसे चलि अइनीं।' कहि के लुटावन मनबोध मास्टर के बइठवले। मास्टर बइठि के पुछलें, 'का हो लुटावन, दिल्ली से कुछ लोग आवे वाला रहलन। ओह लोग के कुछ अता पता बा।' लु

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सुनरी मुनरी, चन्नन-मन्नन

10 January 2024
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'देखऽ एक बाति तू समुझि लऽ कि आगे से गाँव के एक्को पइसा हम तहरे हाथ में नाहीं जाए देबि ।' कहि के मुनरी उठि परलि। सवेरे उठते रमधन ओके समुझावे लागल रहलें कि चेक पर दसखत कऽ के उनके दे देव, ऊ बलाके पर जाके

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जरसी गाड़ के बछरू

11 January 2024
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साहेब के गाड़ी दुआर पर आके खाड़ भइलि। डलेवर उतरि के पछिला फाटक खोलि के खाड़ हो गइलें, तब साहेब धीरे धीरे उतरलें। तबले गाँव के लइकन के झोंझ पहुँच के गाड़ी घेरि के जमकि गइल। रजमन उनहन के घुड़के लगलें 'ज

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नवका चुनाव

11 January 2024
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गाँव के सगरी पढ़वड्या लइका एकवटि के मीटिंग कइलें सन। मीटिंग में एह बात पर विचार भइल कि परधान आ पंच लोगन के जवन चुनाव होखे जात बा, ओमे परचा भरे वाला लोग के योग्यता के परख कइसे होखे। आजु ले ता जे जे परध

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एगो किताब पढ़ल जाला

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