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तिसरकी आँख के अन्हार

8 January 2024

5 देखल गइल 5

एतनी बेरा रउवाँ कहानी सुनल चाहत बानीं ? आच्छा, त बताई की आपबीती सुनाई कि जगबीती ? ई तऽ रउवाँ अजगुत बाति फुरमावत बानीं कि हम एगो एइसन कहानी सुनाईं जवना में आपबीती त रहबे करे, जगबितियों रहे ! आच्छा, त सुनीं हुँकारी भरबि न ? हुँकारी भरत रहबि तब्बे न हम जानबि की रउवाँ सूति नइखीं गइल !

रोसि से मातल सेखर पंडित आपन छड़ी-छत्ता सम्हारि के घर से निकरही वाला रहलें की उनके छोटका नतिया दउरल आके उनके गोड़वे छानि लिहलसि। कहलसि 'ग्रेन' पा! मत जाइए। खाना खाइए।" लइका के देखि के बुढ़ऊ के कुल्ही किरोध गलि के बहि जाए के तझ्यार Double click to zoc करेर क लिहलें आ नाती से कहलें अपनी माई से जा के कहि द कि हम गाँवे जात बानीं। अब हम ओहो जा चहुँपि के खाइबि।'

लइका गाँवे जाए के बाति सुनलसि त ओकर जीव हरियर हो गइल। अबहिन तकले ई लइका गाँव के मुँह नाहीं देखले बा। गाँव से जब ई बाबा आवेलें, तबे ई लड़का जानि पावेला की गाँव कवनो निम्मन जगहि हउवे। अपनी मम्मोपापा से जब जब लइका कहेला की हम गाँवें जाइबि, तब तब मम्मी अइसन मुँह बनावेली, जइसे कवनो बहुत खराब चीजु खा लिहले बाड़ी। बाबा कहेलें- 'ए बाबू हम के बाबा कऽहऽ।' लइका के माई कहेली 'नहीं बाबा नहीं, उन्हें ग्रेन पा कहो। वे तुम्हारे पापा के पापा हैं।' लइका बेचारा का करो। बाकी जब जब बाबा गाँव जाए लागेलें, ओहू के मनवा छान-पगहा तुरा के भागल चाहे ला। एह समें लइका ई सूनि के चहकि उठल कि बाबा गाँवे जात बाड़ें। केतना नीक होखित ऊहो जाए पावत। ई छोट लइका बेर-बेर अकेल्ले सोचेला कि बाबा के साथे हमहूँ गावें जीइतो त केतना नीक होखित। एह समय लइका के ई खुसी भइल कि हम नइखीं जा पावत त कम से कम बाबा त जात बाड़ें। खुसी खुसी चहकत जाके अपनी मम्मी से कहलसि 'मम्मी ! ग्रैन पा गाँव जा रहे हैं।' 

लइका के जेतना खुसी बुढ़ऊ के जवाई सुनि के भइल, ओसे तनिको कम

ओकरी महतारी के ना भइल, बाकि इनकी खुसी के कारन ई रहे कि बुढ़ऊ से पिण्ड

छुटत बा। एक्के बाति के डर बा की साँझी के नरेन आफिस से लवटि के अइहें

आ ई जनिहें कि उनके बाबूजी रिसिया के गाँवें चलि गइलें त जाने ले लीहें।

पिनिकाह मरद के रीसि सम्हारल जीव पर गहू हो जाई, ईहे सोचि के दीपा मैडम

आपन सारी के अँचरा कान्हें पर उतारि के कपारे प धइली आ ससुर के आगे खाड़

होक कहली-'बाबू जी, खाना खाकर जाइए न, प्लीज।' ई रंगरेजी सुनि के सेखर

पडित के देहिंए बरि गइलि। मैडम की बाति में जवन अरथ रहे, ऊहो अगिये लगावे

वाला रहे। कहऽतिया कि खाके जाईं, ई नइखे कहति कि मति जाई। रोसि को मारे

उनका बोलहू के मन ना कइलसि। सोझे दनदनात लचि दिहलें।

मैडम दीपा के नकसा कुछ ढील भइल। दउरि के टेलीफून उठवली आ दफ्तर में मिला के अपने मरद से कहली कि बाबू जी रिसिया के चलि गइलें। उनकर जबाब सुनले से पहिलहीं टेलीफून धऽ के बिछौना पर बइठि गइली। धोरकिये देर बादि टेप बजा के सुने लगलो। लइकवा मम्मी के ई रूप देख के कुछु बूझि ना पवलसि। ओकर मन करत रहे कि बाबा के सथवें चलि जाव, बाकी माई की डरे कुछ कहि ना पवलसि।

संखर पडित पैदले बसटेसन की ओर चलि दिहलें। उनके मन में एगो बाति आइल कि पतांहिया नरेन्दर के फोन से बतवले जरूर होई। अब्बे हमार बाबू अइहें आ कहिहें कि बावू जी रउवाँ रिसिया के मति जाईं। बुढ़ऊ सोचलें कि जब ऊ एइसन कहिहें, तब हम कहबि 'जा जा, हम तोहरी बाढ़ि एइसन बढ़त धनसम्पति के भेद जानि गइल बानीं। तोहरा कमाई पाप के कमाई ह। हमरा ई पाप के कमाई पचबे ना करी। तू लवटि जा।'

बुढ़ऊ ईहे सोचत टीसन चहुँपि गइलें। बसे के टिकस कटवलें। बसे पर बइठि गइलें। बस घुरघुरा के चलि परलि, बाकिर उनके नरेन्दर बाबू अपने बाबूजी के मनावे खातिर नाहिंए अइले। जबले बस सहर से बहरा नाहीं निकसि गइल तबले बुढ़ऊ के औखया अपना अपसर बेटा के गड़िये खोजत रहे खातिर खुलल रहल। अजगुत ई कि बस सहर की बाहर निकसि के सड़की पर गाँव की ओर दउरें लागल तब्बो सेखर पडित के आँखि ओही तरे खुलल रहल। केहू मन के भित्तर बूड़ि के देखे वाला रहित त ओह बूढ़ आँखिन मे सेखर पंडित की जिनगी के कुलि इतिहास भूगोल आ जोड़ घटाना बाँचि लेइत। सेखर पंडित के ई बुढ़ापा के जिनगी जेतने दुखाले ओतने धधाइ के ऊ पुरनकी जिनिगी में लवटि जाले। एहू समें ईहे भइल। 

ऊ अपनहू नाहिं जानि पवलें की कब उनके मनपंक्षी पाँखि पसारि के अपने बाबूजी की कोरा में चहुँपि गइलें।

सेखर पडित की जिनगी में सबसे ढेर जगहि उनके बापे के रहे, जेके सेखर अउरी पढ़वइयन के देखादेखी पंडीजी कहें। पंडोजी के सब कंहू पडिए जी कहे। इहां तक ले कि सेखर के महतारियो आपुस में बतियावें तब्बो कहें- 'ए पंडी जी ! पंडीजी ललकी घोड़ी के असवारी करें। जब छोट रहलें तब सेखर पंडीजी के आगे घोड़िये पर बइति के पढ़े जाँ। जब बड़ हो गइले तब पंडीजी उनके ले जाके अउरी लइकन की साधे पठसलवे में राखि दिहलीं। माई गुजरि गइली तबसे सेखर घरे जइलो नाहीं चाहें। पंडीजी खेतीबारी घर दुआर के ककहरा कब्बो ना जनलीं। जबले सेखर के माई रहली तबले ऊहे एह सब के सिरजवले सम्हरले रहली। पंडीजी राती के घर आईं। जबसे ऊ चलि गइली रतियो के घरे आइल छुटि गइल। खेतबारी घर दुआर ओही तरे परल रहे। अपनी बिदारथी मंडली के पंडीजी परान अइसन मानें। चउका में रहें आ कवनो बिदारथी कुछ पूछे पढ़े खातिर आ जा, त पंडी जी चउका से बहरा निकसि के बइठि के ओके तबले समुझाई जबले ओकरा पुरहर परबोध ना हो जाय। जब लवटि के चउका में जाई त दालि जरि के खैकार हो गइल रहे। भात-नून खा के उठि जाई। जब सेखर खैका बनावे लायक हो गइलें तब चउका अपनी हाथे में ले लिहलें आ पंडीजी के कुल्हि धेयान बिदारथिन में

लागे लागल।

सेखर ऊ बाति कब्बो ना भुलालें जब पंडीजी गाँव की लगहीं दुसरे गाँव में गइल रहनीं। घरे कवनो बहुते जरूरी कारन परि गइल। एक जने पंडीजी के बोलावे गइलें। उहाँका कहलीं- 'चलऽ आवऽ तानों। ओह गाँव से पंडीजी चलि दिहलीं। घरे चहुँपले में जब बहुत देरी होखे लागल त एक जने फेरू पंडीजी के जोहे खातिर चललें। रहता में ऊ देखलें कि पंडीजी के घोड़िया एक जगहि खाड़ बिया। पंडी जी ओही जा जमिनिये पर बइठि के एगो बिदारथी के के कुछ पढ़ावत रहनीं। सनेसिया जब टोकलें कि उहाँ सभ केहु राउर राहि देखत बा, तब पंडीजी मूड़ी उठवलीं आ कहलीं 'तनीएसा रूकि जा, अब्बे ई लड़का समुझि जात बा त चलते हईं।' पंडीजी लइका के पूरने परबोध कइएके के उठनीं।

विद्या के महातम सेखर पंडित के एही तरे घुट्टी में पिया दौहल रहे। पंडीजी जब-तब कहीं 'विद्या मनई के तिसरकी आखि हवे। विद्या पढ़े वाला दू की जगही तोनिगो आँखिवाला हो जाला। ओकरा बहुत कुछ आगापाछा, उजियार-अन्हार लउके लागेला। बाकी जे ई तिसरकी आँखि पा जाला ओकर जिमवारी दू आँख वालन से कई गुना बढ़ जाले। एह के उतरले के एक्के उपाइ हउवे, जेतना लोग के हो सके विद्या के दान करत रहीं।

जब जब पंडीजी ई बाति कहीं, तब तब सेखर एही सपना में हेरा जाँ कि ऊ मास्टर हो गइल बाँड़ें आ पंडीजी लेखा विद्या दान करत बाड़ें। एक दिन सेखर के सपनवाँ साँच हो गइल। उनुके मास्टर के नोकरी मिलि गइल। फरक ईहे रहे कि पंडीजी संसकिरित पठसाला के पंडीजी रहनों आ उहाँ के बेटा मिडिल स्कूल के मास्टर जी बनि गइनीं। सेखर पडित सब कुछ बचपने से सिखले रहलें। अपने बाप के तरे इनहूँ के इज्जति बढ़े लागल। छल-कपट, लोभ लालच से अलगे सेखर पंडित पंडीजी के रहता प जिनगी के गाड़ी चलावे लगलें। भरपूर सुख-सन्तोख से भरल उनकी जिनगी मे घरइतिनियो ओइसने गुनगरि भेंटा गइली। एक के बादि एक चारिगो सुत्रर-सुन्नर बेटवा उनके घर-आँगना के सुख से भरि दिहलें। सेखर पडित खूब धेयान से चारू बेटवन के पढ़ावे-लिखवे लगलें। फरक एतने रहे कि चारू बेटा अपनी अपनी रोटी पानी के जोगाड़ अपना अपना पसन्न से करे खातिर नवकी पढ़ाई पढ़ लगलें। सेखर पंडित का नीक लागल आ ऊ ई सपना देखे लगलें कि जइसे हमार बाप पाठसाला के गुरू जी रहलें, हम मिडिल के मास्टर हो गइनीं ओही तरे हमार लइकवा अँगरेजोवाली नवकी विद्या पढ़ि लोहें स त बड़का हाकिम, जज, कलट्टर डगडर, इजिनियर कुछ हो जइहें स। सेखर पडित के ईहो सपनावाँ पुरहर हो गइल। चारू लइका अपना अपना पसन्न के नोकरी पा गइलें स। चारू के बियाह गवन क धऽ के पूरा गिरहत्त बना दिहलें तब अपना नोकरी से रिटैर भइलें। उनका बुझाइल कि दुनिया जहान में सुखे-सुख भरल बा।

'ई बस कहाँ जाई ?' सड़की पर खाड़ एक मनई सेखर पडित से पूछि बइठलें। एह अवाज के धक्का से पंडीजी अपना पुरनकी जिनिगी में चलि अइलें। तब उनका होस भइल कि अब ऊ कँहवा बाड़ें। बस में बइठि के गाँवे जात बाड़ें। जेठका लइका के बड़का बंगला में से रिसिया के निकसि आइल बाड़ें। ई बाति मन परलि त जिभिए करूवा गइलि। थूकि दिहलें। थूकलें तब मन परल कि उनका भुखियो लागलि बा आउर पियसियो लागलि बा। जबले सड़‌किया पर खाड़ अदिमिया के बतावें कि बसवा कहाँ जाई तबले बसवा घुरघुरा के चलि परलि। पछताए लगलें कि ओह अदिमिया के बताऊ नाहीं पवले कि बस कहवाँ जाई। भूखि मन परलि त सोचलें कि खाके आइल चाहत रहल ह। तब्बे उनका मन में बेइमानी से कमाइल नरेन्दर के धन दउलति उजागिर हो गइल। सोचलें कि ओह पापजिमवारी दू आँख वालन से कई गुना बढ़ जाले। एह के उतरले के एक्के उपाइ हउवे, जेतना लोग के हो सके विद्या के दान करत रहीं।

जब जब पंडीजी ई बाति कहीं, तब तब सेखर एही सपना में हेरा जाँ कि ऊ मास्टर हो गइल बाँड़ें आ पंडीजी लेखा विद्या दान करत बाड़ें। एक दिन सेखर के सपनवाँ साँच हो गइल। उनुके मास्टर के नोकरी मिलि गइल। फरक ईहे रहे कि पंडीजी संसकिरित पठसाला के पंडीजी रहनों आ उहाँ के बेटा मिडिल स्कूल के मास्टर जी बनि गइनीं। सेखर पडित सब कुछ बचपने से सिखले रहलें। अपने बाप के तरे इनहूँ के इज्जति बढ़े लागल। छल-कपट, लोभ लालच से अलगे सेखर पंडित पंडीजी के रहता प जिनगी के गाड़ी चलावे लगलें। भरपूर सुख-सन्तोख से भरल उनकी जिनगी मे घरइतिनियो ओइसने गुनगरि भेंटा गइली। एक के बादि एक चारिगो सुत्रर-सुन्नर बेटवा उनके घर-आँगना के सुख से भरि दिहलें। सेखर पडित खूब धेयान से चारू बेटवन के पढ़ावे-लिखवे लगलें। फरक एतने रहे कि चारू बेटा अपनी अपनी रोटी पानी के जोगाड़ अपना अपना पसन्न से करे खातिर नवकी पढ़ाई पढ़ लगलें। सेखर पंडित का नीक लागल आ ऊ ई सपना देखे लगलें कि जइसे हमार बाप पाठसाला के गुरू जी रहलें, हम मिडिल के मास्टर हो गइनीं ओही तरे हमार लइकवा अँगरेजोवाली नवकी विद्या पढ़ि लोहें स त बड़का हाकिम, जज, कलट्टर डगडर, इजिनियर कुछ हो जइहें स। सेखर पडित के ईहो सपनावाँ पुरहर हो गइल। चारू लइका अपना अपना पसन्न के नोकरी पा गइलें स। चारू के बियाह गवन क धऽ के पूरा गिरहत्त बना दिहलें तब अपना नोकरी से रिटैर भइलें। उनका बुझाइल कि दुनिया जहान में सुखे-सुख भरल बा।

'ई बस कहाँ जाई ?' सड़की पर खाड़ एक मनई सेखर पडित से पूछि बइठलें। एह अवाज के धक्का से पंडीजी अपना पुरनकी जिनिगी में चलि अइलें। तब उनका होस भइल कि अब ऊ कँहवा बाड़ें। बस में बइठि के गाँवे जात बाड़ें। जेठका लइका के बड़का बंगला में से रिसिया के निकसि आइल बाड़ें। ई बाति मन परलि त जिभिए करूवा गइलि। थूकि दिहलें। थूकलें तब मन परल कि उनका भुखियो लागलि बा आउर पियसियो लागलि बा। जबले सड़‌किया पर खाड़ अदिमिया के बतावें कि बसवा कहाँ जाई तबले बसवा घुरघुरा के चलि परलि। पछताए लगलें कि ओह अदिमिया के बताऊ नाहीं पवले कि बस कहवाँ जाई। भूखि मन परलि त सोचलें कि खाके आइल चाहत रहल ह। तब्बे उनका मन में बेइमानी से कमाइल नरेन्दर के धन दउलति उजागिर हो गइल। सोचलें कि ओह पाप के अन्न ना खइनी हैं त नीके भइल ह। भूखि से मरि त जात नइखीं। नरेन के चोरकटई पर एतना किरोध आइल कि भुखिए भुला गइलि।

ऊहे बाति मन परलि। नरेन की बइठका में से निकसि के एगो अदिमी एहतरे बहरा जाए लागल जइसे आपन कुल्ही जमापूँजी जूआ में हारि गइल होखे। सेखर पंडित फूलन के कियारी के लगे कुरसी धरवा के बइठल रहलें। ओह थकल-हारल अदिमी के बोला के अपनी लगवें बड्ढा लिहलें। पुछलें-'कहें एतना उदास बानीं ?' ऊ चुप्पे रहे। बहुत पुछले पर कहलसि कि साहेब के पता नहीं चलेके चाही। रउवाँ एह बाति के भरोस दिआईं त बताईं। सेखर पंडित कहलें- 'रउवाँ बताई। ऊ कुच्छू नाहीं जनिहें।' तब ऊ अदिमिया बतवलसि की ओकर कवनो बहुते जरूरी काम बा, जवन साहेब की कलमि से होखे वाला बा। साहेब ओकरा खातिर पचास हजार रूपया माँगत बाड़ें। हम दस अजार से अधिका कवनहू तरे जुटाई नइखों पावत। बताई हम का करीं ? हमार काम नाहीं होई त हमार लोग लइका बिला जइहें।' कहि के ऊ सुसेके लागल।

सेखर पंडित के कपार पर बज्जर गिरल रहित तब्बो उनका एतना नाहीं अखरित जेतना अपना बेटा के चोरी घुसखोरी के ई बाति सुनि के अखरल। अब उनका बुझाइल कि एतना लमहर बेफजूल के खरचा कइसे करेली हमार पतोहि ! नरेन के डरैवर आइल। गाड़ी निकरलसि। ऊ आपिस चल गइलें। इनके आँखि की आगे अन्हार हो गइल। तब्बे सोचि डरलें कि एह पाप के कमाई के एक्को दाना अब अपना मुँह में नाहीं डरिहें। बस उठि के अपनी कोठरी में जाके लउरि छत्ता सरियवलें आ चलि भइलें। अब केतनो भूखि पियासि लागो, गउवे जाके कुछ खइहें-पीहें।

इयादि आइल कि एही तरे दुसर को बेटा किहाँ से एक दिन लवटि आइल रहलें। ऊ बेटा हाइकोरट के बड़का वोकील हउवें। लोग हाइकोरट से लवटि के जब वोकील सोहब की बुद्धि के बखान करे त सेखर पडित सोचें केतना नीक होखित कि एतना बुधिआगर बेटा कहीं मास्टर होके पंडीजी के विद्यादान वाला जग्गि करत रहित। सेखर पडित कबो कबो ईहो सोचें कि ठीके बा, लड़का अपना पसन्न के काम करत बाड़ें। सुखी रहें, अधरम से बचल रहें तब्बो ठीके बा।

सेखर पंडित वोकील बेटा किहाँ गइल रहलें। उनके ठाट-बाट अउर बढ़ि-चढ़ि के रहे। कब्बो कब्बो हाईकोरट से लवटि के शिवेन अपने बाबूजी से कवनो मोकदिमा में जितले के खबरि दें आ बतावें कि केतना अकिल से ई मोकदिमा जितलें। एही तरे एक दिन आके बतवलें कि आजु अपना जवार के फलाना मोलजिम के फाँसी से बचा लिहलें। सभे कहत रहे कि एके फाँसी जरूर हो जाई। हम दू लाख रूपया में ओके छोड़ा लिहलीं। सूनि के सेखर पडित कुछ बोललें नाहीं त वोकील साहेब बाप की ओर देखलें। ओहर देखलें त सेखर पंडित के आँखि रीसि से लाल हो गइल रहली। पुछलें 'का भइल ? रउवाँ ई खबर सुनि के अनराज काहें होते बानीं ?' सेखर पडित कहलें 'जेकरा के तू फाँसी से बचवलऽ ह ओके त बहुत पहिलहीं फाँसी हो जाइल, चाहत रहे। इलाका में सब लोग जानेला कि ऊ राच्छसो से बढ़ि के ह। ओही के बचाके तू एतना खुस बाड़ऽ ? ओकरी खून में सनाइल कमाई में से दू लाख पा के तू चहकत बाड़ऽ।'

वोकील साहेब बहुत समुझवलें कि वोकील के ईमानदारी एही बाति में देखल जाले कि ऊ अपने मोवक्किल के फैदा देखो, ओकरा से पवले पइसा के पुरहर फैदा ओके दे ? ऊहे हम कइनीं हैं।'

सेखर पडित एतने कहलें 'जेके फैदा करावे खातिर रूपेया लेत बाड़ऽ ऊ अदिमी ह कि राच्छस ई जानल जरूरी नाहीं ह का ?'

वोकील कहलें 'हमार रोजी त एही तरे के लोग से चलेला। कंहू महतमा त मोकदिमा लड़े खातिर हमरी लगे आई नहीं तब हम...

'चुप्पे रहऽ' कहि के सेखर पंडित उनके मुँह बन्द करा दिहलें। मन में सोचि लिहलें कि एह तरह से कमाई करे वाला के पंडीजी के विद्या से उल्टा नाता बा। एह घर से अब हमार नाता सोझ कइसे हो सकेला ?

पंडीजी के इयादि आइल त उहाँ के विद्या वाली बाति मन परलि। उहाँ के कहीं कि विद्या अदिमी के तिसरको आँखि ह। वोकील विद्या पढ़ले बाड़ें। इनके जवनि आँखि मोललि बा, ऊ विद्या के आँखि कइसे हो सकेले? तबसे आजुले सेखर पंडित उनहू किहाँ नाही गइलें। आजु बड़को बेटा के घर छुटि गइल।

तिसरका जने किहाँ जाए के सोचते रहलें ओही समे एक दिन ऊहे आ गइलें। सेखर पंडित चउका के कुलि कामकाज पूरा क के पीढ़ा पर बइठे जात रहलें कि बहरा एगो चमकति मोटरगाड़ी हारन बजावे लागलि। झाँकि के देखलें त ओमें से एक जने सूटबूट वाला निकसत रहलें। सोचले केहू अफसर होई, परधान-ओरधान के पूछत होई। तबले ऊ एहरे आवे लगलें। सेखर पंडित उठि के आगे बढ़लें तऽ अपना तिसरका बेटा के चीन्हि के खुसी के भरि गइलें। ऊ चरन छुए खातिर झुकलें तबले पंडित उठाके उनके छाती से सटा लिहलें। कुछु देर ओही तरे खाड़ रहलें ओकरी बादि उनके बइठे के कहि के खटिया पर से किताब उतारे लगलें। ओह कोठरी में एक्के गो खटिया रहे। ऊहो एहर ओहर फइलल किताबन से भरलि रहे। कुछ किताब एहर-ओहर सरका के कहलें- 'बइठऽ ! चलऽ कुछ खा लऽ ।'

बाबू कहलें- 'खाना हम खइले बानीं। रउवाँ खा लेई आ हमरा साथ चलीं। अब रउवाँ के अकेल इहाँ नाहीं रहे देबि।'

'चलबि, तोहरी किहाँ चलबि, बाकि आजु नाहीं। फेरू कहियो।'

'आपको आज ही चलना है और अभी।'

अपना बात के खूब गहू गंभीर बना के कहलें। सेखर पंडित हँस परलें। बेटा पुछलें कि काहें हँसत बानीं ?

'एसे हँसत बानीं कि जब हम लइका रहनी तब्बो, आ जब सेयान हो गइनों तब्बो कुलि बाति ऊहे होखे, जवन पंडीजी कहीं। उहाँ के आगे हमार कवनो इच्छा रहबे नाहीं करे। तोहन लोगन जब छोट रहलऽ त हम तोहन लोगन के कुलि बाति मानीं आ सोचीं कि सेयान हो जाई लोग तब हमार बाति मानी लोग। लइका बा लोग तबले कुछु खेलि खा ले लोग। जब बड़ हो गइलऽ लोगन तब हम सोचनीं कि लइका हुसियार हो गइलें अब अपना मरजी से रहें कुलि। हम अपना बुढ़ौती में अपना मरजी से रहीं। आजु देखत बानीं कि बुढ़उतियों में तोहने लोगन के हुकुम माने के परो।'

बबुआ कुछ बोललें नाहीं। सेखर पंडित कहलें 'हम कहीं नाही जाइबि। एही जा रहबि। तोहन सभे आपन-आपन कामकाज देखऽ सुख से रहऽ।'

'कहाँ सुख से रह पाते हैं ? सब जगह बदनामी हो रही है कि चार बेटों के होते हुए भी बूढ़ा बाप अपने हाथ से चूल्हा जला रहा है।' बेटा के बाति सुनि के हँसलें सेखर पंडित। कहलें 'तू कवन काम करेला ? कौने नोकरी में एहतरे धन बढ़ियाला ? कार खरीदे के औकाति तोहरा कइसे भइल ? ई कुलि बतावऽ त हम तोहरी साथे चलीं। बाकिर हम जानत बानीं कि तू नाहीं बतइबऽ। बतावे लायक काम तू नाहीं करेलऽ, ई हम जानत बानीं। तब हम काहें जाई तोहरे साथे ? रहि गइल ई बाति कि चारि कमासुत बेटा के आछत हम अपने हाथे चूल्हा जरावत बानीं, एसे तोहन पचन के बदनामी होत बा त जे बदनामी करे ओसे कहि द कि बुढ़वा सठिया गइल बा। तोहार बदनामी बचि जाई।'

कुछ देर चुप रहि के बुढ़ऊ पुछलें 'एह बाति पर कबो धेयान जाला कि पंडीजी के कुल में जनमि के, हमार बेटा होके, पढ़ि लिखि के तू सहरिया में जवन करत बाड़ऽ ओसे एह कुल खनदान के केतना जगहँसाई होत बा ? जा बचवा, सहर में अपनी घर-गिरहत्ती, मोटर कोठी में मगन रहऽ हमार पाछा छोड़ऽ। जा।'

संखर पडित परोसल थरिया के खैका एगो अदिमी के बोला के दे दिहलें। भूखि-पियासि भाग गइल रहे।

ओह भूखि के बात मन परि गइल त ईहो खेयाल भइल कि बस चहुँपि गइल बा। सभे ओमें से उतरि गइल बा। ऊ अकेले बइठल बाड़ें आ जोर से भूखि-पियासि लागल बा। बस में से उतरि के नले पर हाथमुँह धोवलें। कई अँजुरी पानी पियलें। केरा बिकात रहे। चारि छिम्मी कोनि के खइलें आ धीरे धीरे गाँव की ओर चललें। रहता में लोग मिले, पैलग्गी करें, केहू गोड़ धरे। झोरा एक जने ले लिहलें। उनके हाथें में छत्ता रहि गइल। उनका बुझाइल कि ई लोग सहरी पढ़ल लिखल धुरतन से बहुत नीक बा। घरे चहुँपलें त अउरी लोग जुटि आइल। केहू उनसे कुंजी माँगि के केवाड़ी जोलल, केहु सफाई करे लागल। एक जने पानी भरि के ले अइलें। एक जने खटिया झारि के बिछा दिहलें। एक जने चाह पूछे लगलें।

सेखर पंडित के बुझाइल कि एतना लोग उनका आगेपाछे आछरगुजर भइल बा, कवन सवारथ बा एह लोगन के ? ई लोग पढ़ले-लिखले नइखे, आपन सग नाहीं ह लोग, कुलि ऐब एहू लोगन में भरल बा, बाकिर एतना त बा न कि देखि लिहले पर बिना कवनो सवारथ के एतना-सेवा टहल करत बा लोग।

चउथका लड़का के बियाह के थोरके दिन बाद घरइतिन के चोला छुटि गइल। तब से सेखर पंडित अपनिए हाथे दू टिक्कर सेंकि के खालें आ गाँव के लोग के पढ़वले के कोसिस करेलें। नोकरी से रिटैर भइले के बादि बइठक होके आन के भरोसे रहे वालन में ऊ नाहीं हउवें। महिन्ना आध महिन्ना में सहर जा के कमासुत लइकन के साथे रहि के मनफेराव कइ के आवत रहलें। मन लागेला उनके गठवें में। उनका बुझा की उनका विद्या के कवनो जरूरति सहर में नइखे बाकी गंडवा में ओकर जरूरति अबहिन बा। गाँव के सोझबक लोग गंडवे में रहि के सहरी नेता आ दलालन के फेर में परिके मोकदिमावाजी में घर-दुआर बेचि के कंगाल होत जा बा। कई घर उजरि गइल। सेखर पंडित सराब, जूआ आ मोकदिमा के गाँवन के विपति के जरि मानेलें। एकहक अदिमी के इहे बाति समुझावत रहे लें। बइठा बइठा के पढ़े-लिखे के सिखावत रहेलें। एक दिन एगो अदिमी आ के कहलसि कि परधान जी राठर सिकाइति करत रहलें। सेखर पंडित पुछलें-'का कहत रहलें हैं ?' 

कहत रहलें हैं कि बुढ़वा सब के पढ़-लिखा देई आ सराब-जूआ छोड़ा देई, तब हमार बाति के मानी ?'

सुनि के हँसि दिहलें। कहलें 'जाये द ऊ आपन कार करत बाड़ें हमनपाँच आपन कार करों । आवऽ पढ़ऽ।'

सेखर पडित गाँववालन के क ख ग घ सिखावे लगले आ धीरे-धीरे वोट के बारे में बतावे लगलें कि ओकर केतना महातम वा। अपना देस के गुलामी कइसे आइल, आ कइसे, केतना मेहनत से ओह नरक से छुटकारा मिलल। एकरे खातिर देस के केतना जवान आपन परान तेयागि के जनता के जगवलें। जब सेखर पंडित ई कुलि बात बतावें त लइका सेयान, बूढ़-जेवान के आँखिन से लोरि बहे लागे। ओकरी बादि ऊ बतावें कि तोहरी वोट में केतना ताकतिबा ओकर दाम तुहन लोगन ठीक से समुझऽ केतना फरक परि जाई।

ई सब जाने-समुझे के चाहीं, अउर कुलि बाति बूझि समुझि के वोट डारे के चाहीं। एक बोतल सराब, एगो धोती-मरदानी चाहे कमरा रजाई पर बिकाये वाली चीजु वोट नाहीं हऽ। तोहरी वोट पर डकइती कइले के घात में कुलि चोर-चाई उज्जर-उज्जर कपड़ा पहिरि के लागल बाड़े स। ओकर कीमति समुझि के सही आदिमी के देबऽ लोगन, त देस के तकदीरि बदलि जाई। ओहि साथे तोहनो पाचन के सूतल भागि जागि जाई। वोट अनमोल ह। ओकर सउदा जनि करिहऽ।

सेखर पंडित के ई कुलि बाति सुनि समुझि के जब गाँववालन के किच्चर भरलि आँखिया चमके लागे, त इनके उमिरि बढ़ि जाय। एही बिच्चे इनके छोटका बेटा बिलाइत चलि गइल। सुनि के सभे खुस भइल कि एह गाँव-जवार के लइका एतना तरक्की कइलसि की बिलाइत के सरकार हवाई जहाजि से ओके अपनी इहाँ बोला के बड़हन नोकरी दिहलसि। सेखरो पडित खुस भइलें। एगो डर उनका मनवा में रेंगे लागल कि बिलाइति के सुख-सम्पत्ति से लोभा के छोटका लवटबे नाहीं करे, तब का होई। एगो चोर बाति मनवा में ई हो ऊठलि कि कहीं कवनो मेम की फेरे में परि जाई त अउरि नास हो जाई। बाकी मन के ई चोर बाति ऊ केहू के बतवलें नाहीं। दुइए साल बादि ई खबरि उनके मिलि गइल कि अपना लोग-लइका के लगे ऊ कवनो चिठियो पतरी नइखे भेजत। सेखर पडित का बुझाइल कि उनका मन में उपजल चोर बाति साँच होखे जाति बा। सोचलें, चलऽ चारू बेटन से मोह के रसरी टूटि गइल। पंडीजी गइनीं, माई गइलही रहली, घरइतिन गइली, अब अपनहू चलही के बा। चलती बेरिया जवन मोहमाया के रसरी लइकन बचवन के ओर से कसि के बान्हि के घींचेले, ऊ रसरी चारू बेटन की बेवहार से पहिलहीं टूटि गइल। बड़ा नोक भइल। अब त जबले सँसरी बा, गाँव के लोग बा, जहिया डोरी कटल कि हाथ झारि के चलि देवे के बा।

सेखर पंडित का मन में अब्बो एगो रसरो कसि के आपन फँसरी लगवले बा, ई बाति ऊ बादि में जानि पवलें। अपना पढ़ावल लइकन में कईगो अइसन रहलें जेकर पढ़‌गित जेतना नीमन रहल ओतने नीमन ओह कुलि के बेवहरवो रहे। सेखर पडित को मन में अइसन कई गो बिदारथिन की जिनिगी से मोह-माया के रसरी कसलि रहे।

एक दिन अइसन भइल की कहो रसरिया टुटि गइलि। एगो बिदारथी के नांव नेतागिरी की धन्धा में बड़ा चटकल रहे। जब ऊ पहिलकी बेर एमेले भइल रहे त उनुके गोड़ धरे आइल रहे। सेखर पंडित ओकर बकुला की पाँखि अइसन उज्जर पोसाक देख के, ओकरे आगे पाछे के लोग देखिके, ओकर गाड़ी देखि के अघा गइलें। सोचलें ई कुछु अइसन करी, जेसे देस दुनिया में हमरी पढ़वले के -पंडीजी के ग्यान-जग्गि के बात उजियार होई। ऊ जब गोड़ छुवलसि त सेखर पंडित के जीठ जुड़ा गइल। ओकरी बादि से सेखर पडित अपनी बेटन से अधिका ओके माने लगलें। ओकरी लरिकई के गरीबी जब मन परे त सोचें की चलऽ एतना दुख काटि के पढ़लसि, एमेले भइल त कहीं एगो छोट के घर बना के रही। अब ओतना गरीब नाहीं रहि जाई।

एक दिन सुनाइल की ऊ एमेलवा बान्हि के जेहल चलि गइल। ई काहें? जब पुछलें त लोग बतावल कि ओकरा घर में से कई करोड़ रूपेया आ ओहू से अधिका सोना-चानी गहना पकड़ाइल बा। कई सहरन में ओकर बड़हन बड़हन कोठी बनलि बा। ओकरे उप्पर कई जने के जान से मरवा दिहले के मोकदिमा बा।

गहू साँस खीचि के कहलें 'चल ईहो रसरी गटई से छूटि गइलि।' गाँव में जेके-जेके पढ़े, लिखे सिखवले रहले, ओह लोगन के बाति बेवहार में कवनो फरक नाहीं मिले तऽ ऊ सोचें कि कवनो गड़बड़ हो गइल बा का ? सोचें कि हो सकेला कुछ अउर समें लागे।

आजु अपना जिनगी के खाताबही लेके अनसोहातो बइठि गइलें। सोचत-सोचत गड़बड़ा गइलें जब ई बाति समुझि पवलें कि पढ़वइया लोग जेतना चोर बइमान भरस्ट बा, ओकरा पसंगवों में अनपढ़ लोग नइखे। मनही मन में गने लगलें त चिहुँकि गइलें ई सोचि के कि एक्को पढ़ल-लिखल अदिमी एइसन मन नाहीं परल जेकरी तिसरकी आँखी से विद्या के ऊ जोति निकरति होखे, जवने के गुन गावत-गावत पंडी जी कब्बो नाहीं अघाई। तब? तब का अइसन हो गइल कि तिसरकी आँखि अब अन्हारे उगिलति बा ? जिनगी में पहिलेपहिल सेखर पडित की मन में पंडीजी की कवनों बाति पर सुबहा भइल। आजु जवन आँखि से देखत बाड़ें, जवन कान से सुनत बाड़ें, ऊ सब पंडीजी की बाति बेवहार से निछाने अलगे बा। पंडीजी झूठ नाहीं बोलत रहनीं। तब ?

सोचत-सोचत अद्भुरा गइलें त आँखि मूनि के ओठगि गइलें। तनीएसा आँखि भरमि गइल त बुझाइल कि पंडीजी घोड़ी पर से उतरि के उनकी आगे ठाढ़ होके कहत बानीं 'सेखर ! तू आपन करम करऽ। पंडी जी तनी बताई कि आजु काल्हि विद्या के तिसरकी आँखि अन्हारे काहें उगिलति बा?' अपनिये आवाज से सेखर पंडित के आँखि खुलि गइल। ओइजा केहू ना रहे। साँझि उत्तरति रहे। सेखर पंडित खटिया पर से उठि के टहरे लगलें। सोचलें कि हम त आपन काम करबे करवि, आगे जवन होई, तवन होई।

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