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जरसी गाड़ के बछरू

11 January 2024

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साहेब के गाड़ी दुआर पर आके खाड़ भइलि। डलेवर उतरि के पछिला फाटक खोलि के खाड़ हो गइलें, तब साहेब धीरे धीरे उतरलें। तबले गाँव के लइकन के झोंझ पहुँच के गाड़ी घेरि के जमकि गइल। रजमन उनहन के घुड़के लगलें 'जा रे।' अब त रोज गाँव में गाड़ी घोड़ा अवते रहेला, अब का झोंझ लगवले बाड़ऽ सों ? साहेब कहलें- 'जाएदऽ काका, डिक्की में से समान निकड़वाव ओमें बिस्कुट होखी। लइकन के दे दऽ।

रजमन एह घर के हरवाह चरवाह सिरवाह सब कुछ हवें। उनका तनी अचरज भइल कि साहेब त कब्बो गाँव की लइकन के कुच्छू नाहीं दिहले रहलें आजु ले। जब जब गावें आवेलें लइका एही तरे झोंझ लगावेलें सों, साहेब कब्बों ओकनी कोर तकबो नाहीं करे लें। सोझे अपनी बइठका में ढुकि के 'छी मानुख' 'छीमानुख' करे लागेले 'यह गन्दा है, यह साफ नहीं है यह ले आओ, वह हटाओ' रजमन चुपचाप सब इन्तजाम करत रहेलें। आजु लइकन के बिस्कुट बाँटत रहलें आ सोचत रहलें कि उनकर साहेब के मिजाज एतना नरम कइसे हो गइल ?

एहर ओहर देखि के साहेब पुछलें 'काका। माई कहाँ बा ?' रजमन के पाकल चेहरा पर मुसकी ऊगलि। कहलें 'जरसी गाइ बियाइलि बा। मालकिन बरमथाने कत्था सूनत बानीं। बस अब थोरकिए देर में संख बजबे करी। तबले चाह बना देई ?

डलेवर कहलें- 'राहे दऽ। चाह थरमस में हम ले आइल बानीं। अम्मा जी के आवे द।' 

साहेब का पुरनकी बात मन परि गइल। उनकी खुलल आँखिन की समने ऊ दिन सिनेमा की फिरकी लेखा घूमे लागल, जब ऊ आईएएस में चुनल गइले की बाद पहिले दिने गाँवे आइल रहलें। ओह समें बाऊजी जीयत रहलें। दुआर पर रजमन भगई बन्हले कुरूई में भूजा खात रहले आ उनके भइया जेंवरि बरत रहलें। ओहि दिन बाऊजी आ माई केहू के नाहीं देखलें त रजमन की भइया से पुछलें 'ए बाबा! माई बाऊजी कहाँ बा लोग ?' बिरजू बाबा हुलसि के कहलें 'जानत नाहीं बाड़ऽ का ए बाबू ? अरे आपन गड्या बाछा न बियाइलि बा। ओही खुसिहाली में मालिक मलिकाइन बरमथाने कत्था सुनत बानीं।'

जेतन बड़हन खुसियाली के खबर बाबू राम सरन शर्मा की लगो रहल, ओकरी समने गाई के बाछा बियइले के कवन बाति ? छउकल छउकल बाबू बरमथाने पहुँच के कहलें 'माई बाऊजी! राउर तपेस्सा फलि गइल। हम आईएएस हों गइनीं। अब अउरी कत्था सुने के परी।'

बाऊजी पुछलें- 'का हो गइलऽ ? एसे का होखी ?' बाबू कहलें- 'आरे, हम कलटर हो गइनों। बाऊजी उठि परलें, तले पंडी जी बाँहि पकड़ि के बइठवनी। कहनीं 'आपो लिलवती कलौती के हालि कइल चाहत बानीं का ? पहिले बइठि के कथा पुरहर सुनि लेई, तब ई जगहि छोड़बि।' पंडीजी बाबुओ से कहनी 'ए बाबू रउरहूँ बइठि जाई। बड़े भागि से सत्त नरायन स्वामी के कथा के समे आ गइल बानीं। कथा सुनि के, परसाद ले के, तब ई जगहि छोड़ों आ कवनो बाति कहीं सुनी।'

बाबू बइठि गइलें। कथा पुरहर सुनि के, परसाद पाके तब अपनी माई के समुझावे लगलें कि ऊ अब केतना पावर वाला अफसर बनि गइल बाड़े। ओह गाँव जवार में केहू पटवारियो नाहीं भइल रहे, जब रामसरन कलट्टर हो गइलें। धिरे धिरे जवार मथार में सोर हो गइल। अब केहू उनके नाँव नाहीं धरे। सबकेहू साहेब कहे लागल। इहाँ तकले कि उनके बाऊ जी उनकर नाँव नाहीं धरें। ऊहो साहेब कहे लगलें। उनके माई तब्बों उनके बाबू कहें आ अब्बो बाबुए कहेली।

ऊहे दिन मन परल, ऊहे कुलि बाति चभुलावत रहलें, तले माई बरमथाने से कथा सुनि के लवटि अइली। एकहक डेग धरत कवनो तरे रहता चलें। साहेब रहतवे में जाके माई के गोड़ धइलें आ कहलें 'अब तोरा कहीं जाए के नाहीं चाहीं। एही जा कथा सुनि लेतू। कहीं ढिमिला जइबू त हाथ गोड़ टुटि जाई।'

अस्सी बरिस के बूढ़ा हुलसि के कहली'- 'जाएदऽ बाबू। देवता पित्तर के नाव पर जवन कुछ हो जा, कऽ लेवे दऽ। अब त चला चली लगलेबा।'

साहेब हुलसि के कहलें 'जरूर तोर गाइ बाछा बियाइलि बा, तब्बे बरमथाने कथा कहववले हऽ ?' तबले रजमन मचिया ले आके धइदिहलें। बूढ़ा मचिया पर बइठि के साँस अत्थिल कइली। बेटा के परसाद दिहली। अउर सबके परसाद बाँटे खातिर, रजमन के हुकुम दिहली। तब कहली- 'ए बाबू! ऊ जबाना गइल जब बाछा बियइले पर कथा सुनल जात रहे। अब त जरसी गाइ के जबाना बा। जरसी के बाछा बनरे की गुह एइसन कवनो काम काज के नाहीं होलें। आपन जरसी गाइ बाछी बियाइलि बा, एह खुसी में कथा सुननी हँऽ। ई बाछी तइयार होखी त दसबारे हजार में बिकाई आ बाछा के भाव जानत बाड़ऽ ?'

कहि के बूढ़ा साहेब की मुँहें कावर निहारे लगली। साहेब सोचलें

कि जब बाछी दसबारे हजार के होखी, तब बाछा कंतनो कम होई त दू चारि

हजार के त होइबे करी। बूढ़ा उनकी मन के बात बुझि गइली। कहली-जब

देसी गाइ के बाछा बियइले पर कथा सुनल जात रहे त निम्मन बाछा दू

अढ़ाई सौ रूपेया में बिकात रहलें आ ओह दू अढ़ाई सौ रूपया के मोल

केतना रहे, एही से बूझऽ कि जवन सोना आजुकाल पाँच हज्जार रूपया भरी

बिकात बा, तवन चालीस रूपेया भरी बिकात रहे। साहेब का मन परि गइल

कि ओही सालि उनके बियाह भइल रहे त सोना चालीस रूपेया भरी की

भाव से किनाइल रहे। केहू कहल कि सोना एतना, महँगा गइल त बाऊजी

कहलें- 'जाए दऽ कवन गाँहू बेचि के कीने के परत बा ?'

माई कहली- 'आजु काल देसी गाइ के निम्मन बाछा के दाम दुइयो हजार नइखे लागत आ जरसी के त का कहल जाव ? एकरे पहिले आपन गाइ जरसी बाछा बियाइल रहे, ओके दुआरे पर से हटावल गर्दू हो गइल। कवनो पुछबे नाहीं करे सों। एगो नेटुआ आइल त कहलसि कि एक सौ रूपेया देइबि।' हम कहनीं 'का करबऽ ? त कहलसि के कुछ दिन खिया पिया के बेपारी कि हाथे बेचि देईबि।' बाद में रजमन कहलें कि कसाई कि हाथे बेचे खातिर नेटुवा ले जाले सों।' हम बिना एक्को पइसा लिहले मँगरी के दे दिहनीं। ऊ कहलसि कि जूठ काँठ खियाइबि। गोहरा चिपरी पाथे के गोवर त मिली।'

ई त हालि बा जरसी के बाछा के, न हर चलें, न हेंगा, न गाड़ी खीचें। कवनो काम काज के नाहीं होले सों।' जायेदऽ हम कवने बाति में अझुरा गइनीं, पहिले लइकन के हालचालि बतावऽ। दुलहिन कइसे बाड़ी ? बड़की कहाँ बा ? हमार नाती कहाँ बा ? ओकनी के काहें नाहीं ले अइल हऽ ?'

साहेब कहलें- 'केहू एह देस में होखे तब न तहरी लागे ले आई। बड़की आ उनके दुलहा अभिरिका में बसि गइल बा लोग। छोटकू ओही जा पढ़त बाड़ें आ ओह लोगन के महतारियो ओही जा गइल बाड़ी। ऊ लोग त हमहू के ओहीजा बोलावत बा लोग। बाकि हम तहके छोड़ि के कइसे जाई?' 'उदास जानि होखऽ। छव महिना साल भरि में हमार देहि छूटि जाई त तुहँऊ चलि जइहऽ।'

कहि के बूढ़ा धरती पर हथोरी टेकि के उठे लगली। साहेब आगे बढ़ि के सहारा दिहलें आ घर की भित्तर की ओर चलत चलत कहलें- 'अब हम तहरी लगहीं रहे खातिर आइल बानीं।'

बूढ़ा खुसी की मारे चिहा गइली। करिहाँव सोझकऽ के ठाढ़ हो गइली। सोझे अपने बाबू की आँखिन में ताकि के पुछली 'सच्चो कहत बाड़ऽ ?'

साहेब कहलें- 'हँ रे माई। सच्चो कहत बानीं। बिसवास न होखे त डराइवर से पूछिले, हम एहिजा रहे खातिर आइल बानीं।'

रजमन साहेब के बाति सुनि के जेतना चिहइलें ओतने खुस भइलें। उनके जिनगी एही दुआर पर बीति गइल रहे। अब उमिरि साठि से अधिक हो गइल। उनके बपसी मरे लगलें त बुढ़वा बाबा से कहि गइले कि रजमन के रच्छा कइल जाई। बुढ़वा बाबा रजमन के अपनिए लगे राखि लिहलें। दुआर पर के टहल टिकोरा करें आ पढ़बो करें। साहेब कलट्टर हो गइलें। उनका घर दुआर से कवनो मतलबे नाहीं रहि गइल। जब बुढ़वा मालिक के देहि छूटि गइल, तब साहेब अइलें आ कामकिरिया की बादि अपनी माई से कहलें-'अब तेहूँ हमन की साथे चलि के सहरिए में रहु।' माई साफे नटि गइली। कहली-'नाहीं ए बाबू हमार गुजर सहर में नाहीं होखी। रजमन हमरी लागे बाड़ें। इनकी साधे हम घर दुआर सम्हारि लेबि। तहार बाऊजी इनके गाँव की नाता से भाई लागत रहलें बाकि बेटा एइसन मानें। हमहूँ उनके दुसरका बेटे मानीलें। तहरा जब समे मिली त आके देखि सुनि जइहऽ। हमके गँउवे में रहे दऽ।

साहेब तब से आजु ले रजमन काका के कब्बो हलुक पातर कुछु नाहीं कहलें। साल दूसाल में आवेलें, एक दू दिन रहेलें। एक बेर मेम साहब आइल रहली त दुसरही दिने लवटि गइली। अब सुनत बाने कि ऊ अमिरिका चलि गइली। रजमन सोचलें 'साहेब गाँव में रहिहें त ठीके बा। एतना दूध दही होत बा, कुछ सुकारथ होई। खेतियोबारी ढंग से होखी।'

साँझि भइल त साहेब कहलें 'रजमन काका तनि जाके चोन्हर भाई के बोला ले आवऽ। चोन्हर के नाँव उनके बाप राजीव लोचन धइले रहलें, बाकि जब ऊ लइका रहलें तब्बे से आँखि मूनि मूनि दुसरे के रिगावें। अइसन बानि परि गइल कि कब्बो पुरहर आँखि खोलबे नाहीं करें। प्राइमरी के मुंसी जी एक दिन कहलें का चोन्हर अइसन ताके लऽ ?' तब से उनके नाँव चोन्हर परि गइल। पहिले उनका रीसि वरे बाकि अब त सभे चोन्हरे बाबा कहेला। नाँव चाहे भलहों चोन्हर हवे, अकिलि के आगर हवें। साहेब के सम्हउरिया हवें। साहेब जब आवेलें तब दूनू जने के बइठकी जमेले। रजमन बोला ले अइलें। रामरहारी कि बादि चोन्हर पुछलें- 'का हो साहेब! कवनो नुनगर खबरि सुनावऽ ? 'नुनगर खबर ई बा कि हम एम्पी के चुनाव लड़े जात बानीं। एही छेत्तर से टिकट मिलि गइल बा। गाँव में रहि के आजुए से परचार सुरू कऽ देवे के बा। एहमें तहार मदत चाहीं। कहि के साहेब चोन्हर कोर देखलें। चोन्हर के आँखि कई बेर चकचोन्हिआइलि। मुसकी मारि के पुछलें 'एहमें बेथाह रूपेया खरच होला। कहीं से मीलल बा ?'

'अरे मिली कहाँ से ? जवन पार्टी टिकट दिहले बा ऊ रूपेया ले के टिकट देले। हमरे लागे रूपेया पइसा के कमी नइखे। बस तू अइसन जोगाड़ लगावऽ कि एह बेर हम एम्पी हो जाई। कहि के साहेब चोन्हर के बता दिहलें कि जेतना चाहीं ओतना रूपेया पइसा ऊ खरच करिहें, काम हो जाए के चाहीं। चोन्हर मन में सांचलें कि चलऽ बड़ा धन कमइले बाड़ऽ अब कुछ गलऽ। उप्पर से जोर से हुंकारी भरलें-'हँहोऽ, चलऽ।'

दुसरही दिन से परचार जमि के होखे लागल। पाँच ठो गाड़ी आ गइली। कस्वा में परचार दफतर खुलि गइल। गँउवों में रोज चाह पकउड़ी खाना बने लागल। लोग जुटि के खाए खरचे लागल। जइसे जइसे चुनाव निगिचाए लागल, खरचा बढ़े लागल। बकसा बकसा नोट सहर से आवे आ चारि दिन में ओरा जा।

रजमन देखत रहें। कुछ कहल चाहें बाकि बहुत कुछ सोचि के चुपा जाँ। एक से एक बनोर आके चाभत बाड़े सो आ बंडल के बंडल लोट ले जात बाड़ें सों। नाहीं देखि गइल त एक दिन पुछि परलें 'साहेब एतना रूपेया खरच कऽ के जवन नोकरी रउवाँ पाइवि ओमें केतना तनखाह मिली? का कलट्टर से ढेर मिली ?' साहेब हँसि परले। ५.०ले 'नाहीं हो काका। तनखाह तऽ कलटर से अधिक नाहीं मिली बाकि ईहे बूझिलऽ कि कलट्टर की लगे चाहे जेतना पावर होखे, एम्पी चाहे जेतना फटीचर रहल होखे एक बेर एम्पी हो जाला तऽ कलट्टरो के बाप हो जाला। कई जने कलट्टर लोग एम्पी के जुत्ता पर पालिस लगावेला लोग। बुझलऽ काका ?'

रजमन बउरा गइलें। सोचे लगलें कि एम्पी का होला ? का कुलि देसके मालिक एम्पिए होलें ? रजमन के चेहरा देखि के साहेब हाँस परलें। पुछलें- 'अच्छा काका ! सुदेसी जी मन परत बाने तहरा ?'

'काहें ऊ नाहीं मन परिहें साहेब ? बाऊजी रहनी त ऊ हकासल पियासल आवें, कई दिन से अन्नपानी से भेंट नाहीं भइल रहे। बाऊजी कहीं कि नहा लेई तब खाई बाकिर सुदेसी जी जवने पावें, तवने भकोसे लागें। दू चारि दिन रहि के खापी के हरियरा जाँ तब बाऊजी से धोती गमछा, रूपेया पइसा ले के जाँ।' उनके केहु कइसे बिसारि देई ?' रजमन कहलें।

साहब समुझवलें- 'देखऽ ऊ मुवले से पहिले एकवेर एम्पी भइल रहलें। जनम जनम के दुख दलिद्दर भाजि गइल। उनके बेटा एम्पी भइलें त कवनो सहर अइसन नइखे, जहाँ उनके कोठी कार न होखे ?'

रजमन कुछ बोलें ओसे पहिलहीं साहेब के माई पुछि परली- 'ए बाबू! आखिर कहवाँ से एतना रूपेया आवेला एम्पो लोगन की लग्गे ?' 

साहेब कहलें- 'कहाँ से आई ? जेतना धन बा देस में, ओह सब पर एम्पिए लोगन के कबजा बा न ? अब देखऽ कि हर साल पाँच कड़ोर रूपेया एक एम्पी के मीलेला अपने छेत्तर में विकास करावे खातिर। विकास केतना होला आ ऊ रूपेयवा कहाँ चलि जाला, ई सब केहु जानेला। एम्पी लोग के न रेल में कराया लागे, न जहाज में लागे, न दिल्ली में मकान के केराया देबे के बा, न कवनो चिन्ता फिकिर बा। तनीएसा नटई दुखाइल त सोझे विलाइत जाके सरकारी खरचा पर दवाई होखेला। एम्पी लोगन के लड़का लड़की केतनो गदहा होखे लोग, सब से बड़का इस्कूल में पढ़ेला लोग। पढ़ि के इंजीयर, डाकटर अफसर होला लोग आ नाहीं त फेरू एम्पी भइले की राहि पर त लागिए जाला लोग। अब ईहे बूझऽ कि बाघ के बच्चा बाघे न होखी, बकरी नाहीं न होखी।'

साहेब जानिए नाहीं पवलें कि कब चोन्हर आके उनकी पाछे खाड़ हो गइल रहलें। जब चोन्हर खैखरलें तब साहेब मूड़ी फेरि के तकलें। चोन्हर के देखि के उठि गइलें। कहलें 'बतावऽ का हालि बा ? परचार का कहत बा ? वोटर लोग के का मन बा ?'

चोन्हर उनके बाँहि धाऽ के चारि डेग फरके ले गइलें आ धिरे धिरे कहे लगलें- 'देखऽ हालित कवनो ठीक नइखे। वोटर के मन आ तिरियाचलित्तर केहू बूझि नाहीं पाई। बाकि एक बात बा कि जवने कंडेट से तहरा सबसे ढेर खतरा बा, ऊ त टरक भरि भरि पाउच बँटवावत बा।'

'पाउच ? कथिके पाउच ?' साहेब चिहुँकलें। 'ज्जा मरदे। एतना बड़हन साहेब हो के पाउचे नाहीं जनलऽ ? आरे अब देसी सराब बोतल में नइखे न बिकात। अब पाउच में बिकाला। ठेका पर से लिहलें, दाँते से कटलें आ सोझे मुँह में....'

चोन्हर आपन मुँह उप्पर उठा के ओमें कुछ गिरवले के इसारा कइलें। तबलें कई जने परचारक लोग आ गइलें। सबके चेहरा चमकत रहल। सबके मुँह से एक्के बाति निकड़त रहल 'साहेब! आप जीतत बानीं। सबके हालत खराब हो गइल बा।'

साहेब की आँखि में नसा झलके लागल। चोन्हर चुपा गइलें। मन में सोचे लगलें कि एह नसा के उतार कवनो नइखे । चलऽ अब त ऊहे हालि बा कि एक जने बार बनवावे गइलें त हजाम से पुछलें 'हमरे कपार पर केतना बार बा ?' हजमा कहलसि 'अब त हम बनवते बानीं। अपनही गनिलीहऽ तहरी कपार पर केतना बार बा ?'

चोन्हर घरे लवटत में सोचे लगलें कि सहेबवा की लागे केतना रूपेया बा, एकर थाहे नइखे लागत। लगलें हिसाब जोरे कि केतना रूपेया अवहिन ले खरच हो गइल बा, त अथाह समुन्दर में पँवरले जइसन बुझाइल। तिसरे चउथे एक दू बक्सा सौ सौ आ पाँच पाँच सौ के नोट से भरल आवेला आ ओरात देरी नाहीं लागेला। कहाँ धइल होई एतना रूपेया? गिनती पहाड़ा उनका खूब आवत रहल, बाकि सहेबवा के एह खरचा के अन्दाज लगावल चोन्हर की दिमाग से बहरा हो गइल।

साँझि होते रजमन हाजिर हो गइले। चोन्हर पुछले- 'का हो रजमन! का बाति हऽ ? कइसे उपराइल बाड़ऽ ?' रजमन कहलें 'अब्बे चलीं। साहेब बोलवनी है।'

चोन्हर के मन त नाहीं करत रहल बाकि रजमन को साथे चलि गइलें। साहब फिकिरि की मारे एहर से ओहर मेल्हत रहलें। चोन्हर के देखलें त इनके साथे ले के कोठरी में चलि गइलें। गम्हीर चेहरा देखि के चोन्हर पुछलें- 'का

हो ? कवनो नई बाति हो गइल का ? काहें एतना गम्हीर लागत बाड़ ? साहेब कुछ देर ले चोन्हर की आँखिन में ताकत रहलें। उनके दूनू हाथ अपनी हाथे में थाम्हि के कहलें 'चोन्हर भाई! हम कवनो तरे ई चुनाव जीतल चाहत बानीं। रूपेया पइसा के कवनो फिकिरि मति करऽ, बताव अउर का कइल जाव ? जबसे पाउच वाली बात बतवलऽ हऽ तब से कुछ डर लागे लागल बा। अब का करे के चाहीं, ईहे बतावऽ।' चोन्हर साहेब के फिकिरि के मने मने मजा लेबे लगलें। कहलें 'त का तुहँऊ पाउच बँटवावे के सोचत बाड़ ?' साहब हसि परलें। कहलें 'सोचत त नइखीं बाकिर तू सोचि के बतावऽ कि ऊहो कइल जरूरी बा का ?' चोन्हर चिहा गइलें। मन में कहलें- 'त बाति इहाँ ले पहुँचि गइलि बा' परगट कहलें-'देखऽ पाउच त नाहीं, बाकि हमरी मगज में एक ठो बाति आवति बा। पाउच जवने लोगन में बँटात बा, ऊ भेड़ि हऽ लोग। ओह लोगनि के हाँके वाला जवन चरवाह बाँड़े सों, ओह कुल्हिनि के खूब खिया पिया के आ कुछ लेदे के अपनी ओर फोरि लीहल जाव, त कार फरिया जाई।' 

कुछ देर दूनू जने में खुसुर फुसुर भइल। ओकरी आधा घंटा बादि साहेब की कोठरी में गाँव के सबसे बड़का लुहेड़ा जुटि गइलें। साहेब विलइती दारू के बोतल खोलि दिहलें। चिखना मँगा लीहल गइल। साहेब आ चोन्हर त नाहीं पियत रहल लोग, बाकि पाँच गो नवहा चहकि चहकि विलइती आ चिखना के मजा लेवे लगले सऽ। जइसे जइसे नसा चढ़त गइल ओकनी के बतकही रंगदार होत गइल। एगो कहलसि 'साहेब ! आपै जीतबि अउर केहू जीती नाहीं सकेला।'

देइबि। चउथका कहलसि- 'अरे भाई। कुल्हि ठप्पवा हमहीं मारि

दुसरका कहलसि 'दूसर केहू जीती त उनके सोझे दागि देबि ।' तिसरका कहलसि 'दूसर केहू जितबे कइसे करी ?'

पँचवाँ सबके दरेरि दिहलसि 'ज्जा स्सारे। तहनी के कइल कुछु होई ? आरे हम आक्केल्ले सब देखि लेबि।'

साहेब का बुझाइल कि ई काम नाहीं कइल चाहत रहल हऽ। एह लखेरन से चुनाव जीतल अउर मुस्किल हो जाई। बाकि चुप्पे रहि गइलें। दारू पी के चुनाव में जितावेवालन की चलि गइले पर साहब पछताए लगलें। कहलें- 'चोन्हर भाई। एह सारन के बोलावल ठीक नइखे, बाकि अब आ गइलें सँ त भगवलों ठीक नइखे। अब का कइल जाव ?'

चोन्हर कहलें- 'देख भाई ! तू एतना दिन ले कलट्टरी कइलऽ, एक से एक ओहदा पर रहि के देस दुनिया के चरवलऽ, अब हम तहके समुझावे लायक नइखीं, बाकि एकबात कहबि कि जब तू राजनीति की कोठा पर चढ़े जात बाड़ऽ त रंडी भडुवन से कबले बाँचल रहबऽ ? वोट बटोरे के बा तऽ एही कुल्हिनि के मदद लेबे के परी।'

इनके बाति पुरहरो नाहीं भइल रहे कि ऊ कुल्हि लवटि के आ गइलें सों। नसा अउर तेजिया गइल रहे। अवते एगो साहेब के बाँहिं पकड़ि के कहलसि 'ए साहेब ! आप जीति जाइल जाई त हमके नोकरिया मिलि जाई न ?' ओकरे मुँह से शराब भभकत रहल। साहेब सोचियो नाहीं पवलें कि का करें। तबले दुसरका छउकि के दुसरी बाँहि धऽ लिहलसि आ कहलसि 'ए साहेब ! चुनउवा त आपे जीतबि, बाकि हमार मोकदिमवा फसिला करा देबि न ?' 

रोसि कि मारे साहेब के देंहि जरे लागल। मन में आइल कि एकुल्हिनि के जुत्ता से पिटवाई बाकि लालच के लगाम लगि गइल। कवनो तरं ओह दूनू से आपन बाँहि छोड़ा के साहब फरका भइलें आ चोन्हर के इसारा कइलें कि जल्दी से जल्दी ए कुल्हिन के आँखि के समने से हटाव। चांन्हर ओकनी के समुझा बुझा के फरके ले चललें।

चलत चलत एगो कहलसि 'हमार काम नाही होखी तऽ बुझिलीहऽ।' दुसरका कहलसि- 'चलुसारे, आजु ले ई केहू के कवनो काम कइले बाड़ें कि हमन के करिहें ?'

तिसरका जोर से हँसल आ कहलसि 'अरे ई जरसी गाइ के बछरू हवें।' कहि के एतना जोर से हँसल कि रहतवे में ढहि परल। कुल्ही ओके घेरि के बइठि गइले सों आ 'बछरू हो बछरू' कहि के रोवे लगले सों।

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आजु कंगाली के दुआरे पर गाँव के लोग टूटि परल बा। एइसन तमासा कब्बो नाहीं भइल रहल ह। बाति ई बा कि आजु कंगाली के सराध हउवे। बड़मनई लोगन क घरे कवनो जगि परोजन में गाँव-जवार के लोग आवेला, नात-हीत आवेलें, पौन

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राजा आ चिरई

10 January 2024
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राज का चारू कोना में आन्दोलन होखे लागल। सूतल परजा के जगावे खातिर नेता लोग फेंकरे लगलें। ऊ लोग परजा के बतावता के फेचकुर फौक दीहल लोग कि तोहन लोगन केतना दुख बिपत में परल बाड़ऽजा। परजा का ई बुझाइल कि जब

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कतिकहा विदवान

10 January 2024
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आईं, मास्टर जी बइठीं। कहीं, आप डाक बंगला में कइसे चलि अइनीं।' कहि के लुटावन मनबोध मास्टर के बइठवले। मास्टर बइठि के पुछलें, 'का हो लुटावन, दिल्ली से कुछ लोग आवे वाला रहलन। ओह लोग के कुछ अता पता बा।' लु

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सुनरी मुनरी, चन्नन-मन्नन

10 January 2024
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'देखऽ एक बाति तू समुझि लऽ कि आगे से गाँव के एक्को पइसा हम तहरे हाथ में नाहीं जाए देबि ।' कहि के मुनरी उठि परलि। सवेरे उठते रमधन ओके समुझावे लागल रहलें कि चेक पर दसखत कऽ के उनके दे देव, ऊ बलाके पर जाके

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जरसी गाड़ के बछरू

11 January 2024
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साहेब के गाड़ी दुआर पर आके खाड़ भइलि। डलेवर उतरि के पछिला फाटक खोलि के खाड़ हो गइलें, तब साहेब धीरे धीरे उतरलें। तबले गाँव के लइकन के झोंझ पहुँच के गाड़ी घेरि के जमकि गइल। रजमन उनहन के घुड़के लगलें 'ज

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नवका चुनाव

11 January 2024
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गाँव के सगरी पढ़वड्या लइका एकवटि के मीटिंग कइलें सन। मीटिंग में एह बात पर विचार भइल कि परधान आ पंच लोगन के जवन चुनाव होखे जात बा, ओमे परचा भरे वाला लोग के योग्यता के परख कइसे होखे। आजु ले ता जे जे परध

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एगो किताब पढ़ल जाला

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