बहुत बदलि गइल बा हमार गाँव। कइसे? त देख शहीद स्मारक, शराबखाना, दू ठे प्राइमरी स्कूल, एक ठे गर्ल्स स्कूल, एक ठे मिडिल स्कूल, एक ठे इंटर कालेज, डाकखाना आ सिंचाई विभाग के नहर त पहिलहीं से रहल है। एक ठे छोटहन बाजारो पहिलहीं से रहल है। बाद में सिनेमा हाल खुलल । कुछ दिन बाद पेट्रोल पंपो खुलि गइल । जल निगम के पानी के सप्लाई चालू हो गइल आ स्टेट बैंक के एगो ब्रांचो खुलि गइल । लेकिन पढ़ाई ?
गाँव के लोग कहता- 'पढ़ाइए होइत त प्राइवेट स्कूल का खुलिते सन? अब लोग अपना लइकन के प्राइवेटे स्कूल में पढ़ावता, काहे से कि ओहिजा अंग्रेजी मीडियम में पढ़ाई होता। आ लोगन के दिमाग में ई बइठि गइल बा कि अंग्रेजी पढ़ला बिना लइकन के जीवन बेकार बा। अंग्रेजी आज नौकरी जोगाड़ भाषा हो गइल बिया' एपर एगो गाँववासी मजाक करेले 'आरे भाई, कुछ साल बाद कहीं अंग्रेजिए राष्ट्रभाषा ना नू हो जाई रे?' सुनि के लोग कहेला- 'आ दुर मरदे।"
अब रउवा कहबि कि ए भाई राउर गाँव बदलल नइखे, ओकर विकास भइल बा । शहर के नकल पर चलता ई गाँव आखिर बलिया शहर से 12 किलोमीटर दूर सिकंदरपुर, गोरखपुर जाए वाली सड़क पर बा ई गाँव हमरा मन में कबो-कबो एगो प्रश्न उठेला- 'भौतिक विकास होखला से का बहुआयामी विकास संभव बा?' हैं, एगो अउरी बाति, हमरा गाँव में टेलीफोन आ बिजुरियो बा ।
बाकिर करेंट कब आई ई बतावल मुश्किल बा। कबो-कबो पंद्रह दिन रातभर आ पंद्रह दिन दिनभर करेंट रहेला बाकिर ई क्रम पक्का भा नियमित नइखे। बीच-बीच में करेंट अइसे गायब हो जाला कि लोग भुलाइए जाला कि एह गाँव में बिजलियो के सप्लाई बा। हैं, गाँव में जगह-जगह टेलीफोन बूथ जरूर खुलि गइल बाड़न सा त गाँव में का रामराज आ गइल बा ? बिल्कुल ना एकदम ना।
राति के एक बजे रवाँ घर में केहू के तबियत खराब भइल आ रउवाँ बलिया सरकारी अस्पताल में भर्ती करावे के सोचऽतानी त राउर बस ना चली। कौनो सवारिए ना मिली रउवा अब ले ले रहाँ बैंक, पेट्रोल पंप आ फलाना ढेमाका दिन में बस स्टैंड पर सैकड़न रेक्सा, टेंपो आ जीप भा बस मिलिहें सन बाकिर 11 बजे राति के बाद रठवाँ अपना मरीज के बलिया ले जाए के चाहीं त आफति बा। गाँव में सरकारी अस्पताल वा बाकिर काम चलावे भर गंभीर रोगिन खातिर ना ।
हमरा गाँव में सब जाति के लोग वा हिंदू-मुसलमान मिलि के रहेला लोग। ईद- दीवाली में एक दोसरा का घरे खाए-पीए के रिवाज कम होखल जाता। शादी-बियाह में त खियावल जरूरी वा बाकिर तीज-त्योहार पर लोग महंगाई के कारण महटिया जाता। अब ई सुनल सपना हो गइल बा कि 'आजु हमरा घरे नाश्ता क जाइब' ना, बिल्कुल ना। ईद होखे भा होली दीवाली, महंगाई दावत-परंपरा के रीढ़ तूरि रहल बिया हमरा गाँव में।
हमरा गाँव में अब देसी शराब पाउच में बिकाता। 'पाउच' कहते समझि जाई कि दारू । केहू के दुआर पर पीए के सौखीन लोग जुटि जाला त हुलसि के कहेला- 'आजु पाठच आओ।' ओह लोगन खातिर पाउच स्वर्ग के सीढ़ी ह बाकिर कुछ लोग पियते ड्रामा करे लागेले अइसन नौटंकी कि पूछों मति। शरीर तलमलाता, खड़ा नइखे हो जात, बाकिर अपना नौटंकी से बाजि ना आई लोग कुछ लोग त पाउच पी के मए खाइल पियल मुँह से बाहर निकाल देला हगि भूति के बराबर बाकिर ई के कहो कि दारू पियला से पइसा त बरबाद होखबे करेला, देहियो चउपट हो जाला आ इज्जत त पानी में मिलिए जाला । ना केहू, कुछ ना कहेला ।
तनी ठहरीं। हमरा गाँव में सब पियक्कड़े नइखे। पीए वाला कुछ लोग बाड़े। ज्यादा लोग रोजी-रोटी समाय आ नियम-धरम से रहे वाला बा इज्जतदार बा बाकिर दुख इहे बा कि पाउच पीए वाला धीरे-धीरे बढ़ि गइल बाड़े। पहिले पहलवान लोगन के अखाड़ा रहत रहल ह शौकीन नौजवान ओहिजा जाई के दंड बइठक आ नाना प्रकार के कसरत करत रहल ह लोग बाकिर अब अखाड़ा बंद हो गइल बाड़न से पहिले पहलवान लोगन के बड़ा नाँव आ इज्जत रहल है। अब पहलवानी के महत्व नइखे दियात। अब त महत्व एकर बा कि रठवा कतना धनी वानी रउवा लगे धन बा त रउवा आदमी बानी आ ना त कौड़ी के तीन पहिले ई बाति ना रहल है। अगर रउवा लगे धन नइखे, बाकिर रउवा भीतर कौन गुण वा त ओकर बड़ा कीमत रहल ह । बाकिर अब?
एगो जमाना में बेटी के बियाह में दुआरे बरात लागी आ ओकरा थोरही देर बाद बाराती लोगन के पूड़ी, तरकारी आ बुनिया बगैरह खिया दिहल जात रहल है। बाराती लोगन के एगो बड़ दउरा में संझाते मिठाई चलि जाई बाकिर अब ई कुल सपना हो गइल बा । अब त बारात दुआरे लागल त बराती लोगन के अलगा अलगा प्लेट भा पैकेट में कई गो मिठाई दीं। नमकीन दीं। कोका कोला भा पेप्सी आ ना त कौनो शरबत दीं खाना में पूड़ी तरकारी आ कई गो व्यंजन का संगे पोलाव दीं। बाराती जिद पकड़ ली त मांस- मछरी दीं। रउवा बेटी के बियाह करतानीं रउवा आपन इज्जत बचावे खातिर तबाह होखहीं के परी एही से बच्चा पैदा होखे के पहिलहीं लोग ई टेस्ट करा लेता कि लड़का है कि लड़की। अगर लड़की ह त लोग गर्भ गिरवा देता। सोचता कि लड़िकी होखी त दहेज त दहेज ले जाई, डेराइल रहे के परी कि लड़की पर कौनो आँच मति आवे। आ ई सुखपुरे के ना हर गाँव के रेवाज हो गइल बा जवान लड़िकी के बाप अइसन सकेता परता कि पूछी मति । साधारणो आमदनी करे वाला लड़का खातिर पाँच लाख रुपया दहेज के माँग होखता ।
ई हाल बा सन् 2007 में त आगे का होई? आ ई दहेज के कुप्रथा कब खतम होई? बा केहू नेता, केहू समाज सुधारक जे आंदोलन कई के एह कुप्रथा के खतम कइ दे? रउवा जानते बानी कि दहेज खातिर कई गो मासूम बहुअन के हत्या हो चुकल बा। आ बाप तड़प के रहि गइल बा। गरीब बाप के बेटी के बियाह कइसे होई?
अब एगो अउरी बाति आजादी के लड़ाई में हमरा गाँव के महत्वपूर्ण योगदान रहे। अंग्रेजी राज खतम करे खातिर गाँव के कई लोग आपन जान दे दिहल लोग। ओह लोगन खातिर सबसे बड़ देश रहल। आज समाज में केतना लोग देश के बारे में सोचता ? त टेंपो स्टैंड के लगे सड़क के किनारे तीस के दशक में अंग्रेज सिपाही हमरा गाँव के कई गो क्रांतिकारी लोगन के गोली से भून दिहले सन ठीक ओही जगह पर बनल बा शहीद स्मारक आजो एह स्मारक के देखि के श्रद्धा से सिर झुकि जाला। अब एह स्मारक के सटले कई गो दोकान आ फोटो खीचे वाला स्टूडियो बगेरह खुलि गइल बा। शहीद स्मारक के बगल से एगो रास्ता जाता सुखपुरा इंटर कालेज खातिर । कालेजो लगिए बा । बाकिर शहीद लोगन के लेके एगो रोचक कहानियो वा जवना घरी असली क्रांतिकारी लोगन के. गिरफ्तारी होखत रहे, ठीक ओही घरी टट्टी- फरागित होखे दू-तीन आदमी जात रहे। ओहू लोगन के क्रांतिकारी समझ के ब्रिटिश पुलिस गिरफ्तार के लिहलसि । अब ऊ कतनो कहसु लोग कि हमनी का त मैदान फिरे जातानी जा, हमनी के छोड़ि दिहल जाउ सरकार...1 बाकिर के सुनेला ! बाद में एहू लोगन के स्वतंत्रता सेनानी पेंशन आ सुविधा मिलल एक- दू आदमी के बारे में त ईहो सुनाला कि ऊ चोरी-चकारी के केस में जेल गइल लो आ आजादी के बाद स्वतंत्रता सेनानी घोषित हो गइल लोग ई कहानी हम गाँव के कुछ बड़- बुजुर्ग लोगन के मुँह से सुनले बानी। खैर ई त उपकथा है। लेकिन सुखपुरा गाँव में कई गो जबर क्रांतिकारी रहल ह लोग दिन-रात ऊ लोग देश के आजादी के बारे में सोचत रहे। दुख सहल लोग, जेल गइल लोग, जान दिहल लोग ताकि देश आजाद होखो । देशवासी सुखी आ सुरक्षित रहसु बाकिर का ओह लोगन के सपना पूरा भइल ?
अब अपना परिवार के बारे में संक्षेप में बताइए दीं। हमरा बाबूजी के आजादी के लड़ाई में खुलि के शामिल होखे के बड़ा मन रहे। बहुत दिन तक गुप्त रूप से ऊ क्रांतिकारी साथी लोगन के मदद करत रहलन। एक दिन अपना महतारी से कहलन 'माई' अब हमरा के छोड़ि दे। हमरा से रहल नइखे जात हमार सब साथी जेल जा रहल बाड़न स क्रांतिकारी बारदात कर रहल बाड़न स आ तोरा डरे हम खुलि के एहमें शामिल नइखीं हो पावत।'
हमार दादी हमरा बाबूजी से कहली-'ए बबुआ, तू जेल चलि जइबs त तहरा परिवार के के देखी, हमरा के के देखी?" बाबूजी परिवार के मोह-माया में फँसि के आजादी के लड़ाई में सक्रिय हिस्सेदारी ना क पवले बाबू जी यानी मंगला प्रसाद सिंह उनका आजो एह बात के अफसोस रहेला। आजादी के बाद देश, गांधी जी के भारत ना हो पावल एहू के उनुका दुख रहेला।
हमार पूर्वज लोगन के गाँव सुखपुरा ना ह। सहतवार नाम के गाँव ह। जब हमरा बाबा (दादाजी) के शादी सुखपुरा भइल त उनुका के ससुरारी में नवरसा (जायदाद) मिलल । खेत-खलिहान, बगइचा आ घर दादाजी के सासु आपना हिस्सा के जायदाद उनुका नांवे लिखि दिहली ई नवरसा बवाल के जरि हो गइल। पट्टीदार लोग मुकदिमा लड़े लागल | छोटमोट जमींदारी रहे। बाबा तनाव में रहे लगले ओकरा बाद अंग्रेजी में एगो किताब लिखले- 'हाऊ प्रापर्टी डिस्ट्र्वाएज यू (जायदाद रउवां के कइसे बरबाद क देले) । अंग्रेजी के अच्छा जानकार रहले मुकदमा जीति त गइले बाकिर उनुकर स्वास्थ्य खराब हो गइल | असमय में मरि गइले । पूरा परिवार के जिम्मेदारी बाबूजी पर ओकरा बाद उनुकर गाँव हो गइल सुखपुरा। एही से हमार दादी उनुके रोकली कि जेल जइबs त परिवार के का होई?
अब एगो तीसर बाति । सिंचाई विभाग के नहर के किनारे एक जमाना में बड़ा जबर एगो बर के पेड़ रहे। ओह पेड़ के इर्द-गिर्द का जाने केतना कहानी लपिटाइल रहली सन जेकरा मुंह से सुनों इहे कहत रहल ह कि ओह बर के नीचे एगो बड़ा भारी प्रेत रहेला। बाकिर प्रेत के आकार-प्रकार आ रंग-रूप सब अलग-अलग बतावे केहू ओके आधा राति खा देखे त केहू किरिन डुबला के बाद। केहू केहू त ओके भोर में भी देखे जब हम सेयान भइली त एह रहस्य के जाने खातिर आधा राति खान एह बर के पेड़ के नीचे गइन। कुछ दिन हमरा नीन ना आवे के बेमारी हो गइल रहे। ई बर के पेड़ हमरा घर के लगिए रहे। एगो साधु हमरा घरे भीख माँगे आइल आ बिना मँगले हमरा हाथ में एक पत्थर दे दिहलस - 'ल बच्चा, ई अपना पाकिट में रखि के कहीं जइबs त तहरा लगे भूत- प्रेत कुछ ना आई।' जब नींद ना आइल त ऊहे पत्थर पाकिट में रखनी आ पहुँचि गइनों ओह बर के पेड़ के नीचे बाकिर हमरा के कबो कौनो भूत-प्रेत, ना लडकल हम ना जाने कतना बार, कबो आधा राति के, कबो सांझि के, कबो भोर में भूत के देखे चहनों बाकिर भूत होखो तब नू लउके! तब से जीवन भर खातिर हमरा मन में एगो बाति बइठ गइल- 'ई भूत-प्रेत आ चुड़ैल फुल कमजोर मन के पैदावार ह।' ऊहे पत्थर लेके एक- दू-बार हम श्मशानों में गइलीं। बाकिर भूत-प्रेत ना देखलों बाद में पता चलल कि जवन साधु हमरा के पत्थर देते रहे, ऊ पक्का चोर है। साधु का भेष में घर के माल असबाब देखे जाला त जब एक बार ओकर दीहल पत्थर हम एगो रत्न के जानकार के देखवल त ऊ कहले कि ई कौनो प्लास्टिक के टुकड़ा है, पत्थर ना ह। एकरा के फेंकि दीं। ओही घरी ओहके हम नाली में फेंकि दिहलों तब हमरा लागल कि-'मन के हारे हार है, के जीते जीत' एह भूत प्रेत आ रत्न ताबीज के चक्कर में ना परे के चाहीं ।
बाद में जेकरा जमीन में ऊ बर के पेड़ रहे, ऊ ओकरा कटवा दिहलस । पेड़ के लकड़ी से ओकरा अच्छा आमदनी भइल। एह घरी ओह जगह से कुछ दूरी पर अचानक एगो ऊँच जगह बना दीहल बा। ओहिजा झुंड के झुंड मेहरारू आवेली आ भूत खेलेली | आपन मूड़ी नचा-नचा के, बार खाता नियर क के तरह-तरह के आवाज निकालि के, नाचि के कूदि कूदि के रउवाँ देखे के बा त खड़ा हो के देखीं ना त चलता बनीं।
हमरा गाँव में ग्राम प्रधानी के चुनाव होला त कई-कई आदमी खड़ा हो जाला। एके जाति के छह-सात आदमी। नतीजा ई कि ओह लोगन के वोट बँटा जाला। ई लोग आपस में राजनीति खेलते रहि जाला, आ ओने दोसर केहू जीति जाला। लड़ीं चुनाव पहिले से रणनीति ना तय कइके जइसे तइसे चुनाव लड़ला पर ईहे होला। चुनाव का दू दिन पहिले से पाउच बँटाए लगेला । जे जीतेला ओकरा बारे में कहाला 'काहें न जीती भाई, बड़ा खरचा कइले बा ।' बहुत दिन तक एह गाँव में 'महंथ जी' प्रधान रहले उनुका बेर धन के खेल ना रहे। पंचायती राज के कानून त बाद में आइल है। ओकरा बाद जे प्रधान भइल क गाँव के खूब विकास कइले । ई प्रधान दक्षिण भारत के बाला जी के भक्त ठहरले। बाद के चुनाव में अउरी खेल होखे लागल। अब त पुछहीं के नइखे। अब केहू के दोष दिहल बेकार बा। अगर हम केहू के दोष देबि त हमरो अपना भीतर झाँके के परी आ कहे के परी 'मो सम कौन कुटिल खल कामी' ।
हैं, एगो बाति कहे के भुला गइलीं हैं। गाँव के दक्षिणी आ पूर्वी दिशा में एगो काली जी के प्रसिद्ध मंदिर बा। ओहिजे प्रथम पंचवर्षीय योजना के तहत ट्यूबवेल लागल। ओकर पातर नहर उत्तर दिशा में दूर तक रहल है। सरकार का ओर से ओहिजा बाकायदा ट्यूबवेल आपरेटर के तैनाती होत रहल है। बाकिर बाद के राज्य सरकार ओने से आँख मूंदि लिहलसि आ ट्यूबवेल बिगड़ गइल, ओकर टंकी भसि गइल आ ओकर नहर भरि के आम रास्ता हो गइल। गाँव के लोग कहेला-'हमनी का बस पहिले पंचवर्षीय योजना के लाभ ले पवन जा। बाद के पंचवर्षीय योजनन के का भइल रे भइया?"
गांव में दू गो अउरी प्रमुख मंदिर बाड़न स एगो बा जटी बाबा के मंदिर आ दुसरका बा भगवती जी के मंदिर । एगो जटी बाबा के मंदिर हम उड़ीसा प्रांत के पुरी में भी देखले बानी छोट मोट मंदिर त कई गो बानऽ स गाँव के मिडिल स्कूल के इमारत बहुत मजबूत अ बढ़िया बनल रहल है। समय का थपेड़ा से आ ठीक से देख-रेख ना भइला से अब कहो पुरनाह लागे लागल बा । जवन शुरू में प्राइमरी स्कूल नंबर एक रहे ऊहे बाद में गर्ल्स स्कूल हो गइल आ प्राइमरी पाठशाला नंबर एक स्कूल मिडिल स्कूल का सामने बनि
गइल। प्राइमरी पाठशाला नंबर दू 'चट्टी पर' यानी सड़क पर बा, स्टेट बैंक का लगे। 'चट्टी पर' यानी ऊहे सड़क जवन बलिया से चलल बिया आ हमरा गाँव हो के सिकंदरपुर-गोरखपुर चलि गइल बिया चट्टी पर चाय आ पान के पचासन गो दोकानि बाड़ी सन चाये पान के ना, कपड़ा, दवाई, जूता-चप्पल, मिठाई, फोटो स्टूडियो, कापी- किताब, फल, दर्जी, सैलून, आटा चक्की, चिउरा आ धान कूटे वाली मिल, सिनेमा हाल, टेलीफोन एक्सचेंज नियर दूर संचार विभाग के एगो कमरा, खादि के दोकान, डाक्टर, जनरल स्टोर, तनी आड़ में शराबखाना आ अउरी का जाने कौन-कौन चीज के दोकानि बा। एहिजा सुखपुरे के ना आसपास के कई गो गाँव के लोगन के आवाजाही लागल रहेला। एह लोकसभा क्षेत्र के सांसद पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर हउवन हमरा गाँव में जेकर मन उबियाला ऊ सांझि का घरो एहिजे आ के बइठेला चाय पियेला, गप्प हांकेला आ चाहे कहीं कि बतियावेला । राति भइला पर घरे लवटि जाला। एही सड़क पर पुलिस थाना बा आ पेट्रोल पंपो बा। एही सड़क पर जल निगम के दफ्तर आ टंकी बा। बिजली के करेंट रहला पर सुबह-शाम बड़ा साफ पानी मिलेला एहिजा के पानी शहर नियर फिल्टर से छाने के जरूरत नइखे। बलिया शहर से आ के जब सुखपुरा गाँव में दुकबि त सबसे पहिले महंथ जी के फुलवारी आ जल निगम के टंकिए परी ।
गाँव के उत्तरी दिशा में एगो सिंचाई विभाग के नहर बा एह में समय-समय पर सिंचाई विभाग पानी छोड़ेला। खेत के पटवन खातिर। आसपास जेकर खेत बा ऊ एही नहर के पानी से पटवन करेला हमरो खेत एही से सिंचाला बाकिर कई बार जरूरत पड़ला पर नहर में पानी गायबो रहेला फसल के रक्षा करे खातिर अब धनी किसान लोग आपन- आपन ट्यूबवेल लगा लेले बा ।
गाँव में चकबंदी हो गइल बा अउरी गाँवन में जइसे ईर्ष्या, द्वेष, लड़ाई-झगड़ा आ मुकदमाबाजी होला, ठीक ओही तरे हमरो गाँव में बा । बाकिर प्रेम-व्यवहार आ भाईचारा भी बा । हैं, ई बाति जरूर बा कि अब पहिले अइसन प्रेम-व्यवहार नइखे सब अपने में परेशान बा। गाँव में पूरब टोला, पच्छिम टोला, उत्तर टोला आ दक्खिन टोला त बड़ले बा, एगो टोला बा पूरा पर' त दूसरका बा 'भगवती जी तर', तीसरका वा 'बरगइयां के 'बारी' त चउथका बा 'काली जी तर एगो अउरी टोला वा 'चट्टी पर
गाँव में भागवत पाठ, रामायण पाठ आ कीर्तन के अक्सर आयोजन होला । अइसन कुल आयोजन में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल जरूर होला। अब दुर्गापूजा के घरी मुहल्ला- मुहल्ला में छोट मोट मूर्तियो रखाताटी सन एकर खर्चा निकाले खातिर चंदा मंगाता। ई चलन पहिले हमरा गाँव में ना रहल हा ई चलन त बंगाल में बा एकर नकल हमरो गाँव में हो रहल बा। जानकार लोग कहेला कि माँ दुर्गा शक्ति के प्रतीक हई आ शक्ति पूजा गुह्य तरीका से करेके विधान है ताकि ध्यान आ पूजा के विधि-विधान में खलल ना पड़े। बाकिर ई सुने वाला के बा? हर पूजा अब देखावटी होखल जाता। कई गो पंडाल में त ईहो होला कि देवी के मूर्ति के लगे लाउडस्पीकर लगा के फिल्मी गाना बजा दिहल जाला। पूजा होता दुर्गा माता के आ गाना बाजता- 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा...।' ओने केहू के ध्यानो ना जाला कि का बाजे के चाहीं । बस कौनो गाना बाजउता ईहे काफी बा हैं, मूर्ति के रखाए का घरी एगो पंडित आ के पूजा क देले। बस हो गइल ।
गाँव में बेरोजगार नौजवान बढ़त जा तारे पिछला साल यानी 2005 में गाँव के कुछु मेधावी लइका सीपीएमटी (कंबाइंड प्री मेडिकल टेस्ट) के परीक्षा देबे बनारस गइले सन त पता चलल कि पेपरे लीक हो गइल बा ऊहो तब पता चलल जब लड़का परीक्षा केंद्र पर पहुँचले सन अब यात्रा के खर्चा बेकार। कुछ दिन बाद फेर परीक्षा के तारीख के ऐलान भइल परीक्षा देबे वाला लइकन के अखबार से पता चलल । आजकाल कहीं गइला-अइला में कम खर्चा बा? हमरा गाँव के लइकन के बनारस जाइ के एक दिन होटल में भा जहां-तहां रुके के परेला। तब अगिला दिने परीक्षा देबे लायक मनःस्थिति बनेला । अपराध कइले सन पर्चा लीक करे वाला आ भुगतले सन मेधावी लइका आ ओकर गार्जियन ।
गाँव में मदारी वाला, आइस्क्रीम बेचे वाला आ टिकुली साड़ी बेचे वाला आजुओ पहिले अइसन आवेले सन बाकिर हींग बेचे वाला अब ना आवेले सन पहिले बइसाख के चार-पाँच महीना पहले हींग बेचे वाला आवड सन आ उधारी में हींग दे जा स। फेर बइसाख महीना में आ के ओकर पइसा ले जा स ओकनी के रेघा के गावल 'ले होंग के उधारी, बइसाख के करारी' बड़ा अच्छा लागे। अब ज्यादातर लोग दाल में हींग डालि के खाइल छोड़ि देले बा । बाकिर हींग बड़ा उपकारी चीज है। समय बदलि गइल । पहिले गाँव में जी, बाजरा (वजड़ा) आ सांवा खूब बोआत रहल है। अब ई कुल अनाज दुर्लभ हो गइल बा। सांवा के खीर पेट खातिर भारी त ह बाकिर ओकर सवाद दिव्य होला एहीतरे अब साठी के धान केहू नइखे बोअत साठी के चाउर के भात अतना मीठ होत रहल ह कि पूछी मति । खइला का बाद मन अघा जात रहल है। अब साठी कहां मिली? दुर्लभ बा बजड़ा के रोटियो बड़ा स्वादिष्ट होला, हालांकि बहुत गरिष्ठ है। कबहिएं कबहीं खाए के चाहीं बाकिर अब कहो दुर्लभ वा पहिले घर-घर गोबर के खाद रखाई। ऊहे खेत में डालि के फसल उपजाऊ बनावल जात रहल है। अब त गोबर के खाद भुला गइल बा। सब रासायनिक खाद डालता। एसे पैदावार बढ़ि गइल बा बाकिर खेत के माटी यूरिया आ तरह-तरह के रसायन के आदी हो गइल बिया सबसे ज्यादा खेत के माटी आदी हो गइल बिया कीटनाशक के एगो वैज्ञानिक शोध ईहो बा कि ई कीटनाशक अनाजो में चलि जाता आ फेर हमनी के पेट में भी जाता ओहसे हमनी के शरीर में तरह-तरह के रोग पैदा होता। अब ई सरकार आ वैज्ञानिक लोगन के जिम्मेदारी बा कि एकरा से बने खातिर कौन नया उपाय निकाल जाठ।
गाँव के बीचोबीच से एगो ईंटा के सड़क गइल बिया। टैंपो स्टैंड पर यानी मुख्य सड़क पर बनल बा बाबा यतीनाथ द्वारा जटी बाबा के केहू-केहू बाबा यतीनाथ भी कहेला, उनुकरे नाम पर ई द्वार बा एही द्वार से ईंटा के सड़क, गाँव के अंतिम छोर तक चलि गइल बिया यतीनाथ द्वार से थोरकिए दूरी पर बा डाकखाना एगो रहले महंथ जी जिनकर चर्चा पहिलहीं कइल जा चुकल बा। उनके घर के सामने रोज तरकारी, मछरी आ मांस वगैरह के बाजार लागेला एगो तरकारी के बाजार रोज 'चट्टी पर भी लागेला महंथ जी वाला घर के सामने जवन बाजार बा ओकरा लगे कई गो स्थायी दोकान बाड़ी सन जवन जरूरत वा खरीद लीं।
अभी हाल में हमरा गाँव के एगो सम्मानित बुजुर्ग, जवन हमार चाचा लगिहें, कहले कि जुग-जबाना बड़ा खराब होखल जाता सुन5, एगो घटना बतावs तानी ई घटना तहरा गाँव के त ना ह, ओह गाँव के ह जहाँ हमार एगो रिश्तेदारी बा एगो विधवा अपना दू- दू गो लइकन के दुख से पढ़ाई-लिखाई के आदमी बनवले रहलि ह। दूनो लइका अफसर हो गइल बाड़े सन। ओकनी के बियाह भइल। लइका फइका भइले सन पतोहिन के अइला का बाद ओह विधवा के हाल कुकुरो ले गइल हो गइल। अइसन पतोहि भगवान केहू के मति दें। दूनो के दूनो दुष्ट विधवा सास के भर पेट खाना त दिहल दूर, जब-तब कुबोली बोले लगली सन पिछला साल दशहरा के नवरात्रि का बेर विधवा महतारी अपना बड़का लड़का से कहलसि कि ए बबुआ, हमरा के गंगाजी नहवा द, तोहरा के पैंट-कमीज बनवावे के पइसा देव पैंट-कमीज के नांव सुनते लड़का तैयार हो गइल। अपना महतारी के ले के पहुँचल गंगाजी के किनारे आपन साड़ी अपना लड़का के जिम्मे राखि के ऊ बूढ़ि गंगा जी में नहाए गइल त आगा बढ़ते गइल, बढ़ते गइल आ अंत में गंगा जी में समा गइलि।'
हम पुछली 'आत्महत्या के लिहली का?" चाचा कहले 'हं हो।'
हमरा त थोरे देर खातिर कठया मारि दिहलसि ।
बार-बार महंथ जी के चर्चा आइल बा त रउवा पूछबि कि ई महंथ जी रहले के? त हमरा गाँव में महंथ के एगो पीठ बा। महंथ लोग अपना चेला लोगन के महंथ बनावे के परंपरा रखले रहल ह ओह लोगन के मठिया बड़ा आलीशान बा ऊँचाई पर सीढ़ी चढ़ि के जाए के परेला त आखिरी महंत भइले लक्ष्मीनारायण गिरी। ऊ अपना गुरु से आज्ञा ले के बियाह क लिहले। लक्ष्मीनारायण गिरी काफी दिन तक ग्राम प्रधानो रहले आ सुखपुरा इंटर कालेज के अध्यक्ष भी ऊ बहुत पहुँचल वैद्य रहले ह स्वभाव से शालीन आ विनम्र एही से उनकर बड़ा इज्जत रहल है। अब उनुकर लइका बाड़न बाकिर अब महंथ जी कहाए वाला परंपरा खतम हो गइल बा त एही महंथ जी के मठिया से आजादी के लड़ाई लड़े वाला क्रांतिकारी कार्यकर्ता लोग कुछ दिन आपन गुप्त गतिविधि चलावल लोग। लेकिन ब्रिटिश पुलिस के एकर भनक मिलि गइल। एक बार एगो गुप्त मीटिंग होखत रहे तबे ब्रिटिश पुलिस छापा मरलसि । ओह मीटिंग में हमार बाबूजी भी रहले आधा आदमी त गुप्त रास्ता से भागि गइले, बाकिर आधा आदमी गिरफ्तार हो गइले हमार बाबूजी गिरफ्तार ना हो पवले हमार ईया (दादी) ओह दिन मिठाई मँगा के भगवान के प्रसादी चढ़वली ।
हमरा गाँव में ज्यादातर पढल लिखल लोग रोज साँझ खा रेडियो पर बीबीसी लंदन के हिंदी सेवा के कार्यक्रम आ खबर जरूर सुनेला रास्ता चलत ओह बेरा रखवा खड़ा हो जाइब त रउवा कान में अपने आप खबर चलि जाई अपना गाँव के लोगन के ई सौख बचपन में हमरा पर बड़ा अच्छा असर डललसि। हमहू बीबीसी के समाचार सुने लगलीं । हमरा गाँव के कई लोगन का घरे अखबार आवेला जेकरा घरे ना आवे, ऊ चट्टी पर जाके चाय-पान का दोकान पर पढ़ि आवेला। लोग जगह-जगह अपना-अपना ग्रुप में राजनीतिक गतिविधियन पर खूब चर्चा करेला एगो जमाना में हमरा गाँव में टाइम्स ऑफ इंडिया के हिंदी साप्ताहिक पत्रिका 'दिनमान' खूब पढ़ल जात रहे। ई बौद्धिक लोगन के पत्रिका कहात रहे। बाद में एही पत्रिका में दिल्ली में हमरो काम करे के मौका मिलला एक बेरि हमरा 'दिनमान' के कवर स्टोरी भी लिखे के सौभाग्य मिलल ओह अंक के ओतना पन्ना आजुओ हमरा लगे सुरक्षित बाड़न स । ओही दौरान कथा पत्रिका 'सारिका' में हमार दू गो कहानी छपली सन ईहो टाइम्स ऑफ इंडिया के चर्चित पत्रिका रहे। बाद में 'दिनमान' आ 'सारिका' के प्रकाशन बंद हो गइल।
एह निबंध में अगर हम 'हमार गाँव' के फार्मेट छोड़ि के बहकि गइल होखबि त हमरा के माफ करब सभे कौनो आत्मीय विषय पर लिखे का बेर, बहकि गइल स्वाभाविक बा उमेद बा, ई बहकल रउवा सब के ढेर ना खटकी।
तवो कुछ गलती हो गइल होखे त माफ करब सबसे अंत में एगो अउरी बाति । पहिले हमरा गाँव में रामलीला मंडली आवत रहली सन महीना दिन, पंद्रह दिन रहि के खूब रामलीला करिहन स अद्भुत आनंद आई अब पंद्रहियन साल से कौनो रामलीला- मंडली भा नाटक मंडली आवते नइखी सन आधुनिकता के ई कइसन रूप ह!