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हिन्दी भुला जानी

30 October 2023

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पर किस तरह मिलूँ कि बस मैं ही मिलूँ,

 और दिल्ली न आए बीच में क्या है कोई उपाय !

                                               -'गाँव आने पर

जहाँ गंगा आ सरजू ई दूनो नदी के संगम बा, ओसे हमरे गाँव के दूरी लगभग आठ किलोमीटर होई। दूनो नदी के बीच में पड़ला के वजह से एह इलाका के 'दोआब' कहल जाला। एक तरह से ई इलाका उत्तर प्रदेश आ बिहार के सीमा रेखा पर बा, बाकिर सांस्कृतिक दृष्टि से ए इलाका के संबंध बिहार से अधिका बा खाली नाता-रिश्ता ना, बल्कि खान-पान आ बोलियो बानी बिहारे से अधिक मिलेले एह क्षेत्र के भोजपुरी गाजीपुर आ बनारस के भोजपुरी के अधिका निकट पड़ेले जवन अपने बनावट में आरा जिला के भोजपुरी के अधिका निकट है। हमरा गाँव से चार किलोमीटर दक्खिन गंगा बाड़ी आ करीब-करीब ओतने उत्तर सरजू कहल जा सकेला कि ई दूनो नदी के माटी-पानी से ई इलाका बनल बा पहिले जब बाँध ना बनल रहे त जुलाई-अगस्त के महीना में ई दूनो नदी मिल के एक हो जात रहल हमरा इयाद में ऊ छोटकी नदी बहुत गहराई में कहीं आजो मौजूद बा जवन हमरा चबूतरा के सामने बहेले आ एक ओर जहाँ ओकर एक छोर गंगा से मिलेले त दूसर सरजू से। शायद एही वजह से नदी के साथ हमार मन के बहुत गहरा जुड़ाव बा।

जवना गाँव में हम पैदा भइल रहनी ओकर नाम ह चकिया। एकर ठीक-ठीक इतिहास त हमरा पता ना बा, बाकिर ए सम्बंध में कई तरह के कहानी सुनल जाले जवने के सार इहे ह कि एह गाँव के मूल निवासी कहीं बाहर से आइल रहें आ नदी के किनारा देखके इहें बस गइलें । पहिले जब आवागमन के साधन कम रहे त एह नदी के उपयोग व्यापारिक काम खातिर होत रहे। धीरे-धीरे एकर उपयोग कम होत गइल आ हालत ई बा कि नदी अब नाममात्र के नदी रह गइल बा । कभी केहू के एह विषय पर खोज करे के चाहीं कि देश के दूरवर्ती भाग में बड़े वाली अइसन असंख्य नदियन के आज का हालत वा सभ्यता के विकास के साथ-साथ नदी काहें सूखत जात बाड़ी स? ई हमनी के समय के एगो बड़ सवाल वा जवना के उत्तर हमनी के खोजे के चाहीं ।

लगभग पचास साल पहिले चकिया छोड़ले रहली, हालांकि चकिया से सम्बंध अभिनो छूटल नइखे, बीच-बीच में जात रहीलें, बाकिर अब गइला पर बुझाला जइसे कवनो परदेसी लेखा भा जादे से जादे कवनो मेहमान लेखा । ई स्थिति बहुत तकलीफदेह होले आ एकरा दंश से बचल मुश्किल होला। सब गाँवन के तरह हमारो गाँव ऊ नइखे रह गइल जवन हम छोड़ले रहल हवा-पानी से लेके विचार-व्यवहार तक बहुत बड़े बदलाव देखल जा सकेला। एगो बहुत प्रत्यक्ष बदलाव त ईहे बा कि गाँव के आबादी बढ़ गइल बा, साक्षरता बढ़ गइल बा, लेकिन सबसे बड़ विडम्बना ई वा कि गाँव के जवन तथाकथित शिक्षित वर्ग वा शायद उहे सबसे अशिक्षितो बा। असल में जवना तरह से ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा के विकास हो रहल बा, ई बुनियादी दोष ओकरे में निहित बा, बाकिर इहाँ ओ प्रसंग के विस्तार में गइले के जरूरत नइखे।

पहिले हमरा परिवार में खेती-बारी होत रहे, अब ऊ बन्द हो गइल बा। खेती जादे ना रहे, बाकिर खाए पीए लायक हो जाए-ओमें से कुछ खेती आजो बाँचल बा ओकरा के हम बचा के रखले बानी एह पवित्र मोह खातिर कि कभी-कभी एही बहाने गाँवे जात रहीं।

अब गाँव गइले पर सबसे बड़ समस्या ई होला कि बतियाई केकरा से हमरा अपना उमिर के जतना संगी-साथी बाड़े ऊ अपना-अपना काम में व्यस्त रहेलें, आ ओमॅसे कई लोग बाहर चल गइलें। बहुत लोग त ए दुनिए में अब नइखे। एह समस्या के समाधान हम एह तरह से खोजले बानी कि गाँव में जेतना दिन हम रहेली-हिंदी भुला जानी। कभी केहू पढ़ल - लिखल हिन्दी बोलवो करेला त हम धन्यभाग से भोजपुरिए बोले के कोशिश करेलीं। ।। एकर दू गो फायदा वा जहाँ भोजपुरी के अभ्यास ताजा हो जाला उहें एक बार हिन्दी के एक तरफ रख देला के बाद गाँव के छोट-से-छोट आदमी से बतियइले में कवनो बाधा व्यवधान ना रह जाला । भोजपुरी के सहज आत्मीयता हमरा ए अहसासों के तार- तार कर देले कि हम परदेसी हो गइल बानीं तबो गाँव के चीज आ अपना सम्बन्ध के बीच जवन एगो अन्तराल आ गइल बा ऊ कई बार साफ दिखाई पड़ेला । ए सम्बन्ध में एगो छोट घटना के जिक्र करव। एगो हमार बचपन के साथी, जेकर एही साल निधन हो गइल है, हमरा रास्ता में मिल गइल त ए अनचीन्हारपन के अउर तोखा बोध भइल। ओकर नाम जगरनाथ रहे आ आज के भाषा में ओके दलित कहल जाई त काफी लमहर अन्तराल के बाद मिलला पर हम जगरनाथ से कहनी कि साँझ के तोहसे भेट होखे के चाहीं । साँझ के जगरनाथ अइले, आवते सवाल कइले 'बताई कौन काम बा?' हम जगरनाथ के कौनो काम खातिर ना बोलइलें रहीं, असहीं मिले खातिर बोलइलें रहीं । बाकिर उनका सवालके लेकिन गाँव के एगो अठरी लय वा जवना के ग्रामीण प्रकृति के लय कहल जा सकेला ऊहाँ के नदी, नाला, खेत, खरिहान, टोला, कछार, पेड़-पौधा इहाँ तक कि कीड़ो- मकोड़ा में, ईहो लय अब गाँव में ओही लेखा नाहीं रह गइल जवना के हम पहिला दफे गाँव में छोड़ के आइल रहीं। सबसे जादे तकलीफ आज ओ गाँव के नदी के देख के होला जवन हमरा घर के ठीक सामने बहेले। बहेले-ई खाली एगो मुहावरा के रूप में कहल जाला असल में अब ओकर बहाव खतम हो गइल बा। अपना देश के बहुते नदियन लेखा हमरो गाँव के नदी भरा रहल बिया । ऊ अब नदी से एगो जबदल पानी वाला पोखरा बन गइल बिया जवना में थोड़के भर गति खाली बरसात में आवेले। लेकिन सबसे दुखद बात तई बा कि आज गाँव के लोगन के स्मृतियो से धीरे-धीरे ऊ नदी हट रहल बिया । अगर हमरा से पूछल जाई कि पिछला पचास साल में हमरा गाँव के सबसे बड़ दुखद घटना भा त्रासदी का रहल बा, त हम कहब हमरा नदी क मृत्यु ! -

बाद हमरा पहिला दफे ई महसूस भइल कि एतना दिन गाँव से बाहर रहला के बाद खुद गाँव के लोगन से हमार सम्बन्ध चुपचाप बदल गइल बा। ई ए गो आघात नियन रहल लेकिन एकरा बावजूद हम लगातार ई कोशिश करत रहली आ आजुओ करीलें कि गाँव जाईं त ओकरा चौहद्दी में ओसहीं प्रवेश करीं जइसे आज से पचास साल पहिले करत रहीं। लेकिन ई पचास बरस के टाइम के नकारल ना जा सकेला, अब त कई बार गइला पर ईहो सोचे के पड़ेला - जइसन अपना एगो हिन्दी कविता में हम लिखले बान-

आ तो गया हूँ

पर क्या करू मैं?

- गाँव आने पर

ए अनुभव से बचल ना जा सकेला, काहे से कि गाँव के जिन्दगी के एगो जवन आपन लय बा ओकरा साथ शहराती जिन्दगी के लय क संगत बइठावे में कई बार दिक्कत होले। एसे कई दफे ओ अनचीन्हारपन के बोध अवरू तीखा हो जाला जवना के हम पहिले जिन कइले रहनीं।

जइसे माई के गोदी में बच्चा पलेला, हम आ हमार बहुते समउरी लोग ओ नदी के गोदी में ओहीं लेखे पलेला सँउसे वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद ई केतना तकलीफदेह बाकि गाँव के नदी मर रहल बाड़ी स आ ओकुल के बचावे खातिर कवनो उपाय केहू के पास ना बा

लेकिन गाँव में सबकुछ एही लेखिन नाही बा बहुत कुछ टूट बिखर गइल बा, बहुते गीत जवना के हम लरिकाई में सुनले रहली उहाँ केहू के याद ना बा, शायद बहुत सा कीड़ो-मकोड़ा अब बहुत कम दिखाई पड़ेलन स, लेकिन ए सबकुछ के साथ-साथ गाँव के जिन्दगी के बाँधे वाली एगो चीज हम अवहियों पावेली ओकरा के ठीक-ठीक नाम देहल हमरा खातिर मुश्किल बा बाकिर ई बात अवहियो बाँचल बा कि एक आदमी दूसरा आदमी के इहाँ बिना कामो के जा सकेला, कुछ देर हँस-बोल सकेला आ सारी पंचाइती राजनीति के बावजूद एगो अपना गाँव खातिर चिन्तित भा परेशान होइ सकेला ई बात हमरा के एगो खास ढंग से प्रभावित करेले आ शायद हम बार-बार गाँव जाईलें त ओही के खोजे खातिर जाईलें। कई बार ई डर जरूर लागेला कि ऊहो कहीं नदी लेखा धीरे-धीरे खतम न हो जाये। ऊ कइसे बचल रही, ई हम ना जानेनी कबो-कबो ईहो डर लागेला कि अगर नदी ना रही त गाँव के अस्मितो के ना बचावल जा सकेला । एकाध बेर गाँव के कुछ उत्साही युवक लोग नदी के बचावे खातिर उत्सुक दिखाई पड़ेला त भीतर थोड़ा ढाँट्स होला कि शायद गाँव के अस्मिता चाहे जतना जर्जर हो गइल होखे, बचावल जा सकेला फिर ईहो बुझाला कि खाली एगो गाँव के बचावे के सवाल ना ह एह देश के सगरो गाँव धीरे-दीरे आपन अस्मिता खो रहल बाने स आ एकरा ओर प्रायः सोच-विचार क प्रक्रिया बन्द हो गइल बा ई सब परिस्थिति परेशान करेला, लेकिन गाँव अबहियो बार- बार खींचेला त उहाँ कुछ त होई जवन ओ परिवेश में न मिले, जवना में अब रहे खातिर हम आ हमरा जइसन लोग अभिशप्त बा। 

अउरी कॉमिक्स-मीम किताब

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लेख
हमार गाँव
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भोजपुरी के नयकी पीढ़ी के रतन 'मयंक' आ 'मयूर' के जे अमेरिको में भोजपुरी के मशाल जरवले आ अपने गाँव के बचवले बा
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इमली के बीया

30 October 2023
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लइकाई के एक ठे बात मन परेला त एक ओर हँसी आवेला आ दूसरे ओर मन उदास हो जाला। अब त शायद ई बात कवनो सपना लेखा बुझाय कि गाँवन में जजमानी के अइसन पक्का व्यवस्था रहे कि एक जाति के दूसर जाति से सम्बंध ऊँच-न

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शिवप्रसाद सिंह माने शिवप्रसाद सिंह के गाँव

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हमरा त आपन गँठए एगो चरित्र मतिन लागेला जमानिया स्टेशन पर गाड़ी के पहुँचते लागेला कि गाँव-घर के लोग चारो ओर से स्टेशनिए पर पहुँच गइल बा हमरा साथे एक बेर उमेश गइले त उनुका लागल कि स्टेशनिए प जलालपुर के

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घर से घर के बतकही

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राप्ती आ गोरी नदी की बीच की कछार में बसल एगो गाँव डुमरी-हमार गाँव। अब यातायात के कुछ-कुछ सुविधा हो गइल बा, कुछ साल पहिले ले कई मील पैदल चल के गाँवे जाय के पड़े। चउरी चउरा चाहे सरदार नगर से चलला पर दक्

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हिन्दी भुला जानी

30 October 2023
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पर किस तरह मिलूँ कि बस मैं ही मिलूँ,  और दिल्ली न आए बीच में क्या है कोई उपाय !                                                -'गाँव आने पर जहाँ गंगा आ सरजू ई दूनो नदी के संगम बा, ओसे हमरे गाँव के

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का हो गइल गाँव के !

30 October 2023
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गाजीपुर जिला के पूर्वी सीमान्त के एगो गाँव ह सोनावानी ई तीन तरफ से नदी- नालन से आ बाढ़ बरसात के दिन में चारो ओर से पानी से घिरल बा। एह गाँव के सगरो देवी देवता दक्खिन ओर बाड़न नाथ बाबा आ काली माई आमने-स

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कब हरि मिलिहें हो राम !

31 October 2023
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गाँव के नाँव सुनते माई मन परि जाले आ माई के मन परते मन रोआइन पराइन हो जाला। गाँव के सपना माइए पर टिकल रहे। ओकरा मुअते नेह नाता मउरा गइल। ई. साँच बात बा, गाँव के माटी आ हवा पानी से बनल मन में गाँवे समा

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भागल जात बा गाँव

31 October 2023
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भारत के कवनो गाँव अइसन हमरो गाँव बा। तनिएसा फरक ई वा कि हिन्दी प्रदेश के गाँव है। आजकाल्ह पत्रकार लोग हिन्दी पट्टी कहत बाने एगो अउर फरक बा। हमार गाँव बिहार की पच्छिमी चौहद्दी आ नेपाल देश की दक्खिनी

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जेहि सुमिरत सिधि होय

31 October 2023
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साकिन जीवपुर, पोस्ट देउरिया, जिला गाजीपुर। देवल के बाबा कीनाराम के परजा हुई। गाँव में राज कॉलिन साहेब के जरूर रहे, उनकर नील गोदाम के त पता नाहीं चलल, लेकिन हउदा आजो टूटल फूटल हालत में मिल जाई बिना सिव

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इयादि के धुनकी के तुक्क-ताँय

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हमारे गाँव के पच्छिम और एक ठो पकड़ी के पेड़ बा। अब ऊ बुढ़ा गइल बा । ओकर कुछ डारि ठूंठ हो गइल बा, कुछ कटि गइल बा आ ओकर ऊपर के छाल सूखि के दरकि गइल बा। लेकिन आजु से चालीस बरिस पहिले कहो जवान रहल। बड़ा भा

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जइसन कुलि गाँव तइसन हमरो

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ग्राम-थरौली तप्पा बड़गों पगार परगना-महुली पच्छिम तहसील सदर जिला- बस्ती। एक दूँ दूसरको नक्सा बाय ब्लाक-बनकटी आ अब त समग्र विकास खातिर 'चयनित' हो गइल गाँव । चकबंदी में बासठ के अव्वल रहल, अबहिन ओकर तनाजा

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बरसात के दिन में गाँवे पहुँचे में भारी कवाहट रहे दू-तीन गो नदी पड़त रही स जे बरसात में उफनि पड़त रही स, कझिया नदी जेकर पाट चौड़ा है, में त आँख के आगे पानिए पानी, अउर नदियन में धार बहुत तेज कि पाँव टिक

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गहमेर : एगो बोढ़ी के पेड़

2 November 2023
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केहू -केहू कहेला, गहमर एतना बड़हन गाँव एशिया में ना मिली केहू -केहू एके खारिज कर देता आ कहेला दै मर्दवा, एशिया का है? एतना बड़ा गाँव वर्ल्ड में ना मिली, वर्ल्ड में बड़ गाँव में रहला क आनन्द ओइसहीं महस

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शंभुपुर शुभ ग्राम है, ठेकमा निकट पवित्र ।  परम रम्य पावन कुटी, जाकर विमल चरित्र ।।  आजमगढ़ कहते जिला, लालगंज तहसील |  पोस्ट ऑफिस ठेकमा अहे, पूरब दिसि दो मील ।।  इहै हौ 'हमार गाँव', जवने क परिचय एह

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सभे लोगिन अइसन आज कई दिन से हमरा अपना गाँव के बारे में कुछु लिखे आ बतावे के मन करता । बाकी कवना गाँव के आपन कहीं, इहे नइखे बुझात। मन में बहुते विचार आवडता एह विचारन के उठते ओह पर पाला पड़ जाता। सोचऽता

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बाबा- फुलवारी

2 November 2023
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ई बाति 1971 के है रेडियो पर एगो गीति अक्सर बजल करे-'मैं गोरी गाँव की तेरे हाथ ना आऊँगी।' तनी सा फेर- -बदल कके एगो अउरी स्वर हमरी आगे पीछे घूमल करे- 'मैं गौरी गाँव की, तेरे हाथ ना आऊँगी।' बाति टटका दाम

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हींग के उधारी से नगदी के पाउच ले

3 November 2023
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बहुत बदलि गइल बा हमार गाँव। कइसे? त देख शहीद स्मारक, शराबखाना, दू ठे प्राइमरी स्कूल, एक ठे गर्ल्स स्कूल, एक ठे मिडिल स्कूल, एक ठे इंटर कालेज, डाकखाना आ सिंचाई विभाग के नहर त पहिलहीं से रहल है। एक ठे छ

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शहर में गाँव

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देवारण्य देवपुरी। देवरिया। बुजुर्ग लोग बतावे कि देवरिया पहिले देवारण्य रहे। अइसन अरण्य, जेमें देवता लोग वास करें। सदानीरा यानी बड़ी गण्डक के ओह पार चम्पारण्य, एह पार देवारण्य उत्तर प्रदेश आ बिहार के

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जइसे रे घिव गागर प्रकाश उदय

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जे गाँव के गँवार हम दू गाँव के, हम डबल गँवार।  कि दो ओहू से बढ़ के पढ़े के नाँव प गाँवे से चल के जवना शहर कहाय वाला आरा में अइलीं तवन गाँवो से बढ़ के एगो गाँव। अगले बगल के गाँवा गाँई के लोग- बाग से ब

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एगो किताब पढ़ल जाला

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