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जइसन कुलि गाँव तइसन हमरो

1 November 2023

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ग्राम-थरौली तप्पा बड़गों पगार परगना-महुली पच्छिम तहसील सदर जिला- बस्ती।

एक दूँ दूसरको नक्सा बाय ब्लाक-बनकटी आ अब त समग्र विकास खातिर 'चयनित' हो गइल गाँव । चकबंदी में बासठ के अव्वल रहल, अबहिन ओकर तनाजा कुलि सेटिलै नाई भइल कि दुसरका चक्बन्दी के अवाई हो गइल स्टाफ के कमी के नाते चार- पाँच साल से सिवाने में घूमति बा चकबंदी, लेकिन गाँव भीतर अवती बाय-असों नाई तो अगिले साल... बाकिर गाँव में कवनो अइसन बदली न भइल, हमरे लरिकाई से बुढ़ौती तक भइबो कइल। हमरे दुआरे पर कुआँ रहे, टोला भर ओही से पानी लेत रहे। अब ई पढ़ि कै प्रेमचंद के कहानी 'ठाकुर का कुआ' हमरे ऊपर मति फेंकीं। ऊ कुँआ वनके साहित्ये में बा। कुछ गाँव साहित्य में होलें, कुछ गाँव 'वाहित्य' में हम चौंकल रहली कहानी पढ़ि के, आ खोजले पुछले पर कहूँ प्रेमचन्दी गाँव पवलीं नाई। लेकिन 'समाज-शास्त्रीय 'अध्ययन' त ओही से होई जवन लिखल बा। कहता सुनता से लिखता पढ़ता सरिस्ट |

अब हम त कहता सुनता देखता का बाति करत बाटी, न ओतना 'ड्रामैटिक' लागे त माफी देहल जाई ।

हैं त कुआँ भटि गइल पंप लगि गइल अँगना में मरदन के फुरसत मिलल, बाल्टी- बाल्टी पानी ढोइ के अँगना में पहुँचउले से मेहरारू पानी भरि लें, चार पंप मरले पर एक लोटा पानी 'जल स्तर नीचे क ओर पताले में भागल चलि जाता न!

जल स्तर के पाछे-पाछे मनई पताले में धँसत धँसावत पहुँचत बाँटें। पहिले बोदर में से दू जने मिलि के डलरी में पानी उलिचि उलिचि सिंचाई करत रहल, ढेंकुरि चलावत रहल। बिच्चै में साइत कबो 'मध्यकाल' के अवाई भइल आ जइसन इतिहासकार लोक बतावें ले, 'मध्य एशिया' से रहट के तकनीक कै बरदान इहाँ पहुँचल हमार गाँव एह बरदान से वंचित रहल, हमरे इहाँ त रहट कब लउकल नाहीं सीधे वैदिक काल से आधुनिक काल में कुदलों हमरे लोग, ढेकुरि छूटल त ट्यूबवेलै पकरला सिंचाई बकाया भरत- भरत...। खैर ऊ कुलि छोड़ीं। अब तनी गाँव के जुगराफिया आ हिस्टरी आ सोसिआलाजी अइसन है कि तिवारी, टोला, पांड़े टोला, सुकुल टोला मिलि के गाँव है, लेकिन पंचाइत भर के पूरा नाई है, त दू गाँव अउर मिला के गाँव पंचाइत बने ले। ओबीसी आ दलित लोग गाँव में कई जगही बसल बा-थोरे में कहीं त अमरीका में मिक्स्ड नेबरहुड' (mixed neighbourhood) के जवन आइडिया है, हमरे गाँव में सौ बरस पहिलहों से लागू है।

लोककला लरिकाई में देखले बार्टी। हुड़का आ फरुआही होत रहे (ई 'जातीय नृत्य' कहावला नाहीं, 'हिन्दी जातीय', 'उर्दू जातीय' नाहीं, खाँटी देसी 'जातीय') आ 'कठघोड़वा' जवने में जिआवन मिर्जा जी बनि के अपने बिरादरी के लोगन के जुतिआवें। मिर्जा जी नाई बुझली? अरे जइसे कामरान मिर्जा आ मिर्जा राजा जयसिंह आ इस्कन्दर मिर्जा 'मध्यकाल' कै पहिचान हमरे गाँव में ए तरह से कइल जा सकेला बाकी हिस्टरी त कवनो 'एक्साइटिंग' नाई है। सुनाला कि गाँव पहिले थारू लोगन के रहल, जवने नाते थरौली नाँव अबहिन चलि आवडता, आ सुर्जवंसी राजा लोगन के जिमिदारी में चलल चलि आवत रहे। राजा माने कुलक्रमागत, अंगरेज लाट के बनावल रजवाड़ा ई नाई रहलें कुलि । सुर्जबंसी माने नाई बुझली? अरे उहे जे के भारतेन्दु जी लिखले रहलै कि बस्ती के सुर्जवंसी राजा लोगन के छाता नाई लगेला कि सूर्य देवता के बंस में जनमि के सूर्य देवता से कौन आड़? बस्ती माने नाई बुझली? भारतेन्दु जी लिखलें कि 'बस्ती को वस्ती कहाँ त काको कहाँ उजाड़?' त अब हिन्दी के नवजागरण के अग्रदूत के बाति के काटे! तबसे बस्ती जिला से कमिस्नरी में पर्मेट हो गइल लेकिन न डेवलप्ड (developed) में न डेवलपिंग (developing) में दू-तीन दूँ चीनी मीलि रहली तवनो बनै बूझों। लेकिन गाँव एकदम से पिछड़लो नाई बा । दू-तीन ठो दुकानि एह बीच खुलि गइल, गुटखा आ चाह-बिसकुल मिल सका। एक दूँ प्राइमरी इस्कूलि खुलि गइल बनरहिया के जमीनी में बीचे में जागल एक जने अध्यापक के कर्मठता से, फिर ओन के चोट-चपेट लागि गइल, तबादला हो गइल, केहू - केहू कहला कि स्कुलवा 'जिंक्स्ट' ह।

'जिंक्स्ट' नाई बुझली? अरे 'jinxed' जवने पर चित्रात कै असर हो जा आ बनरहिया माने नाई बुझलीं? त सुनीं ई 'रिसेंट हिस्टरी' ह कई दूँ ताल रहलैं एही छोटे के गाँव में, जवने खातिर 'ग्राम' शब्द बहुत बड़हन है। संस्कृत में 'पल्ली' अंगरेजी में 'हैमलेट' कहब ठीक है । भरिया ताल, हरदा ताल, बनरही ताल... अब कहूँ ताले के जमीनी में मकान, कहूँ ताले के जमीनी में खेत, कहूँ ताले के जमीनी में इस्कूल अब 'वाटर हार्वेस्टिंग (water harvesting) क फोकस बड़ा बड़ा शहर में हो गइल न, गाँव में ताल तलैया गड़ही- गुड़ही के कवन जरूरत? इंडिया मारका पंप...। मछरी खाए के सौख होए त नकसा नापि के गड़हा कटा लीं, ग्रांट ले लीं, जियाई आ मारी मछरी 'एनीमल' गइलन, 'एनीमल फार्म' के समय आइल। जार्ज आवेल पढ़ीं आ बूझीं।

बरच, हर हंगा? कृषि शब्दकोष में देखीं हैं, हर आ हेंगा बिआहे काजे माँड़ो में लठकेला । केतनो ह त ट्रेडीसन नाई न छोड़ल जाई विडिओ बना लों, लरिके पुछिहैं त का बताइब आ 'इंडियन एग्रीकल्चरल इम्प्लीमेंट्स' (Inidan Agricultural Implements) के नुमाइस में का धराई?

दिल्ली में एक दूँ बड़का सेठ आर्ट लवर (Art Lover) के ड्राइंग रूप में देखलों लढ़िया आ चउखट-किवाड़ी, जइसन हमरे पुरनका घर में रहल। जो नवा मकान गाँव पर बनवा पवले होतीं त इहे समझती कि हमरे कोठरिया के पल्ला कइसो उड़ि के दिल्ली में पहुँच गइल। ऊ त कहीं कि एतना जुरबे नाई कइल कि खपड़ा के लिंटर करा पाई गाँव पर आ चाहे इहे कहीं कि कहाँ तू गाँव में जा के अब महीना दस दिन रुकतै बाट ? जे बा गाँव पर, ते लढ़िया, केवाड़ी आ लकड़ी के खम्हा छोड़ि देहलस, जो छोड़ि पवलस।

'एडुकेशन'? जबाब बड़ा मुसकिल है। लरिकाई में हमरे लघुकौमुदी आ सिद्धान्त कौमुदी के कई जनकार गाँव में रहलें, कई ठो किताब कई ठो घर में मिलि जात रहलि । डिगरीधारी त ढेर नाई रहलें। अब बीए, एमए त साइत कवनो कम नाई बाटै लेकिन किताब कहूं नाहीं लउकति आ दू पत्रा अँगरेजी चाहे हिंदी लिखब सबके आसान नाई बाय जे कुछ के पावडता ते कस्वा में, शहर में महानगर में कुछ करता 'देशान्तर' भी थरौली कै जनमल काँड़ि अइलें, यूरोप, अमरीका में भी b. Tharauli, Basti, UP कै दाखिल biodata टहरल। लेकिन थरौली में?

काहे हो? खेती कवनो काम नाई ह? दूध डेयरी पर पहुँचा देव काम नाई ह?

ह, भाई है। लेकिन per acre yield? आ दूध जइसे टेलीविजनवा पर शबाना जी पहुँचावे ली बिग्यापन देत कै, अइसे का तोहरहूँ गाँव में बेचि पावडता सब? बा कवनो कोअपरेटिव?

कोअपरेटिव न सही, एलेक्सन त बा न सब 'पा', सपा, भजपा, बसपा, कांपा कै नेता गाँव में बाटें। छोट मोट फौजदारी दिवानी भी चलवे करडला, अब कवनो बड़हन जगह त ह नाई कि बड़हन हेडलाइन वाला काम होय।

ई 'नोस्टाल्जिया' (nostalgia) छोड़ऽ। सच्चै सच्चै बतावs गाँव में अटन्ती बढ़ल बाय कि नाई ? गोवरी केहू खाता ?

अब जब वरध से दवाई होत नाई बाय त गोवरी के कवन सवाल? खरिहान बाय कहूँ? खरिहाने में त पक्का मकान बनि गइल एक जने के आ ताल उनके पिछवारे में। नाहीं, दबंगई से नाहीं गाँव सभा में आबादी लिखवा के देखीं अटन्ती त बढ़ल बाय। लेकिन अटन्ती घटलो बाय।

पढ़ाई नाई होता लेकिन ट्यूसन चलता। खेत विकतो बाय, खेत खरिदातो बाय, खेत बँटाई पर भी बाय, खेत में घरो बनत बाय। चकरोड बनल, चकरोड कटल। नाली बनल, खड़ंजा लगल। नाली भठाइल, खड़ंजा उखड़ाइल।

कइसे कहीं कि अटन्ती बढ़ल नाई कोस भरि पर बजारि ह, पैदल त बतियै छोड़ीं, साइकिली से केहू जाइल नाईं चाहत, बस पर जाब नीक लागऽला। लेकिन न पैदल बन्न बाय न सइकिलि के चढ़ल के उतरल-ई कुल बदलल करडला। सबके लगे बस के केराया नाई जुटि पावत।

धरम-करम? बहुत है । पहिले सिवाने तक रहल। कई हूँ शिवाला आन गाँवन में

बाटैं वहीं पूजा-अरिचा कथा बारता चलत रहल। गाँव में काली माई के थान पर कथा कै रिवाज रहल, अबहिनो बाय। लेकिन थान जइसन फैलहर पहिले रहल वइसन अब नाई बाय, कुछ जमीन घटि गइल बा सतचण्डी, सहस्रचण्डी गाँव-जवार के सहजोग से हमरे गाँव में कई दूँ भइल। मंगल के दिने हनुमान चालीसा के पाठ। लेकिन कुँआ पर शंकर जी के पानी देहल बन्न ह। जब कुँआ नाहीं त पानी कहाँ से? हैंडपंप घर के भीतर है।

हैं एक बाति कहब जरूर अबहिन कुछ-कुछ बचल बा जवने के लिहाज' कहल जाला लिहाज माने नाई बुझली? 'सरम' माने? भोजपुरी में ई बड़ी दिक्कत है। लरिकाई में कई शब्द हम खाँटी भोजपुरी बूझत रहली कब सोचलों नाहीं कि ई 'बाहरी' हो सकला । 'नहारी' खेते पर पहुँचावे के रहे सबेरे नौ बजे के करीब 'कलिआ' खाये के कहूँ कब्बों बने। 'मुदामी' राखे के हमरे इहाँ त हैसियत नाई रहल बाकिर रिस्तेदारन में केहू -केहू किहाँ रहल। एकाध रईस रिस्तेदार 'मीमस्तीन' पहिरें। बाद में ई मालूम भइल, जब फारसी तनी मनी सिखलों, कि ई कुलि फारसी शब्द हवें।

मध्यकाल? मिली-जुली गंगाजमुनी संस्कृति? का जनी! गाँव त हमें लगडला कि 'आदि काल' से 'आधुनिक काल तक के कब्बो कवनो लेबिल मनबै नाई कइल । बिदवान लोग बतकही बढ़ावे खार्तिन लेबिल बनावल चपकावल करडला 'रेटारेट' कौन भाषा के शब्द ह भला?

मोटे-मोटे बड़हन-बड़हन रोटी अरहरी के दाली में टिकोरा डारि के खात रहलीं। भुजिया के भात बनत रहल। अब साइदै कहूँ केहू खाला त का ई 'परिवर्तन' मान लेई ? हैं, ई जरूर है कि लरिकाई में 'पहिती' ढेर सुनाय, 'दालि' कब्बो कब्बो केहू कहै । भारतेंदु जी लिखले बाटै न कि सरजूपारी बाभन कुलि माँसु मछली खाइल करिहैं, लेकिन 'दालि' कहले चौका असुद्ध हो जाला त दू दिन के जात्रा में भारतेंदु जी जेतना गाँव के चिन्हां दिहले ओतना हमरे बतउले से कइसी चौन्हि मिली? गाँव त ऊ होला जवन भारतेंदु जी के यात्रा वृत्तान्त में, प्रेमचन्द जी के कहानी में आ प्रोफेसर दुबे के 'द इंडियन विलेज' में होला ।

'हमार गाँव' ए किताबिन से छापि उठल वा कइसे कहीं कि हमरे गाँव-घर के भौजी झगरू-बहू रहलिन-दस बरस के देवरे से साठि बरस के भउजाई के वार्तालाप कै ऑडियो अगर बनल होत त एसमेसो (SMS) करै लायक नाई रहत, आज क पहुआ कुलि बूझी न पइहैं कि झगरू-बहू के 'चाइल्ड अब्यूजर (child abusor) कहीं कि ए प्रिकाशस (precocious) लवंडा के 'जेरांटाफील' (gerontophile)?

कई चीज तब स्वस्थ रहलिन अब सोशल बेरामी में शामिल बाटिन 'दहेज प्रथा' कै एक दूँ खिस्सा सुनी। हमरे गाँव में एक जने पंडीजी के बेटी के बियाह तै भइल, बीस रुपया तिलक ठहरल। जे तिलक ले के चलल ते चार रुपया है लेहलस आ उहाँ सोरहै रुपया पेश कइलस रिस्तेदारी में आप जनबै करोले कि दमाद माने 'ताकन', समधी माने 'तड़क्कन' सार माने 'चूल्हि चिक्कन' आ भैने माने 'अँगन भवनवाँ त तड़क्कन तड़कलैं आ तिलक फेरि देहलें। हमरे बाबा के पता लगल त तड़क्कन जी से कहले कि 'कहो, गरीब बाभन ह, नाहीं चार रुपया जुटि पवले होई त तूं बियाह नाई करबऽ? " तड़क्कन जी

के तड़कल भुला गइल। चुपचाप दुसरे साइत पर तिलक घइलैं, आ येह पचासन बरस

मेंत फिर कुछ सुनाइल नाई।

सोचत हई कि आज जो केहू तिलक फेरि दै त लालगंज के दरोगा जी के छोड़ि के कहूँ केहू बटले नाई बाय जेकरे लगे बिटिया के बाप पहुँचै अ जेकर बाति बेटवा कै बाप मानें। 'दहेज प्रथा अभिशाप है' आ 'दुल्हन ही दहेज है' के विज्ञापन चमकावत- चमकावत गौरमिंट आ समाज सुधारक लोग के एड़ी के पसीना मूड़े तक पहुँचत बाय। मुहावरा उलटा कइले के माफी देई। लेकिन 'प्रथा' लिखात लिखात अब फुरै 'प्रथा' हो गइल का दो कि जवन चीज उल्लूपना रहल ऊ अब ब्यौहार हो गइल बाय। 'लेख' आ अनालिसिस के इहै नतीजा है कि सोसिआलाजी आ इकनामिक्स कै किताबि धीरे-धीरे अँगना में कुलि हलि के बैठि जाली ऊपर हम 'ताकन' से ले के 'आँगन भवनवा' तक गनवलों। ई त रिस्तेदार हवें। एक नाँव अउरो गाँव में चलडला 'बज्राबिहार जे 'तुहार गाँव देखे खातिंन विडियो रिकार्डर ले के पहुँचे ते 'बज्राविहार'- मेहमान त ओहू के गाँव मनबै करडला लेकिन ते का वृझला गाँव के डाटा कलेक्शन (data collection) आ सैंपुल (sample) के अलावे, ई नाई कहल जाय सकत।

त 'हमार गाँव' हम कइसे बताई समुझाई? हिन्दी पर अंगरेजी कै कब्जा, भोजपुरी पर हिंदी के 'अनुवाद' करत करत, 'आँखन देखी' के 'कागद लेखी' में बदलत बदलत कुछ कै कुछ हो जाला। फिर 'वर्गचरित्र' अपने जगही पर है। कइसे हम मना क सकले कि हम जिमिदार, खनदान के नाई हुई जब पचास-पचास रुपया के दू ठो बांड हमरे घर में जिमिदारी उन्मूलन के मोआवजा में मिलल रहल?

हमरे गाँव में शहर अबहिन ढेर नाई हलल। चाहे इहे कहीं कि शहर त पइसा के राही हलला आ पइसा त अबहिन गाँव में ढेर आइल नाई। दिल्ली बंबई जे गइल तेहू ढेर नाई कमा पवलस। पंजाब जे मजूरी करे गइल तेहू गाँव में लउटि आइल । ग्रामीण डकखाना पर पोस्ट मास्टरी प्राइमरी स्कूल आ हाई स्कूल में मास्टरी, चीनी मील पर सीजनल नोकरी, प्राइवेट डाक्टर के इहाँ कंपाउंडरी, पुरोहिताई, 'सीमान्त कृषक' वाली खेती, एही कुलि में गाँव क कमाई आजो बाया, न केहू बड़ा नेता, न केहू बड़ा अफसर, न केहू बड़ा किसान, न वर्ण-संघर्ष' न 'वर्ग संघर्ष' कवने तरह से गाँव के बताईं कि आपके सामने गाँव चिन्हा जा?

मुहावरा में गाँव पकड़ात नाई बाय। हमरे गाँव पर न 'क्यों न इसे सबका मन चाहे ?" लागू होत बाय, न 'इठलाती आती ग्राम-: न युवती' के कहीं पता बाय त जब 'ग्राम्या' लिखाई नाई, 'चाक' बनी नाई न होरी महतो रहिहैं न पंडित दातादीन, त गाँव कइसे बनी ?

हमरे गाँव के हीरो गया कहार, कि अढ़ाई सौ के बराति अकेल निबुकावे वाला। हमरे गाँव के हीरो हमरे पद में भाई रामहरख सुकल कि केहू के छान्हि उठावे के होय त उनके जाँगर के बिना न होई पावै। ई सब अब बाटै नाई। आ गाँव के बिटिया बहिन में से हीरोइन जुटा के कहाँ से ले आई? 'प्लाट' कुछ बनतै नाई बाय 'स्टोरी' कौन केहू लिखै?

'एंटी हीरो' ? देखीं, हम कहली न कि मुहावरा में गाँव पकड़ात नाई बाया

हमरे गाँव में एक दूँ खरिहान रहल। ऊ खरिहान में एक दूँ डीह रहला डीह हमरे लोग छोट के माटी के चबूतरा के कहीं डीह के मनले रहे सब कि ऊ बरम बाबा कै अस्थान है। ओही खरिहाने में फिर मकान बनि गइल एक जने के डीह के अब पता नाई कि घर के बाउण्ड्री में बा कि तूरि के बराबर भइल। लोग कहे कि बा।

'डीह' कौन भाषा के शब्द ह? 'डीह' माने जवन गाँव उजरि गइल, केहू जहाँ रहे न 'डीह परि गइल' हमरे इहाँ ई बतावे के कहल जाला कि 'उजरि गइल'।

'डीह' फारसी क शब्द ह, 'दिह' फारसी जब भोजपुरी में आइल त 'डीह' बनि गइल । 'दिह' माने 'गाँव'। 'दिहकान' माने गाँव के मालिक, जिमिदार उर्दू में एकर माने 'किसान' होला आ ई प्रगतिशील साहित्य के हीरो है। इकबाल जी लिखले न बाटें- जिस खेत से दिहकों को मयस्सर नहीं रोटी उस खेत के हर खोश०-ए-गन्दुम को जला दो

माने कि जब खेत से खेतिहर किसान के रोटी न मिले त सज्जी गोहूँ के बाली फूँकि डार |

त अब देखों कि गोहूँ के बाली फूँकि के क्रान्ति करे वाला किसान त हमरे गाँव में बाटें नाई जबकि ई बाति सत्य है कि खेती से गुजारा चलल बहुत मुस्किल है। खरिहान फूँकब, खेते में आगि लगाइब, ई कुलि नीक काम नाई मानल जात अबहिनो। लेकिन बझान त अउरो बाय। ई जिमिदार, ई कुलक (Kulak) ई 'दिह कान' कब से किसान के रूप में हलि अइलें !

आ 'दिह' माने बड़हन, आबाद, 'समृद्ध' गाँव, ऊ कब से 'डीह' माने उजाड़ हो गइल ? गाँव का कइलस कि अपने बोली में 'गाँव' आ 'उजाड़' के फर्क मिटाई देहलस अब त ई नाई कह सकित हम कि ऊ डिहवा जवन बिलाई गइल मकानी में, ऊ हमार गाँव ह कि नाई।

हम कहीं 'दिह', आप बूझ 'डोह', हम कहीं 'डीह' आप बूझीं 'दिह', हम कहीं गाँव/ उजाड़ आप बूझीं उजाड़ गाँव ।

हम कहीं दिहकान= किसान, आप बूझीं दिहकान जिमिदार। हम कहीं दिहकान = जिमिदार, आप बूझीं दिहकान = किसान।

ए तरह से कइसे चली बताई? हम त कहतै रहि गइलों कि इकबाल जी अपने शेर में ई कहले हवें कि जवने खेत से मनमोताबिक वसूली न होय, जिमिदार के चाहीं कि वो खेते के एकएक बाली खड़े-खड़े फुंकवा दे। लेकिन मानल केहू? सब कहला कि ई सर्वहारा के शेर है ।

एह नाते अब हम 'हमार गाँव' के बारे में लिखल रोकि देत बार्टी हमार गाँव मनवर नदी के किनारे से तनी लमहीं बाय। अब मनवर ह सहायक कुआनो कै आ कुआनो ह सहायक राप्ती के आ राप्ती ह सहायक सरजू के आ सरजू ह सहायक गंगा कै, आ गंगा के चाहे समुद्र में मिलल मानों चाहे गंगा कावेरी प्राजेक्ट के नक्सा पर खींचल लाइन। हमार गाँव एही तरह से 'सहायक गाँव में सामिल ह। मनवर के मेला अउर मेलन से कवनो अलग मेला नाई है। न हमार गाँव कवनो अलग से गाँव है। जइसे पहिले माटी कै, अब पिलास्टिक के खेलौना कुलि मेला में मिलला, वइसे वोहू में हाँ, एकर नाँव 'मनोरमा' नदी जो आपके बताई त कुछ इतिहास पुराण भी सुनाय सकला । त का कर सुनि के ? जइसन इतिहास पुराण कुलि गाँव के तइसने हमरो गाँव कै। 

'कृषि निवेश- अनुदान' - हजारी।

सकुल बंस अवतंस चिन्हारी ।।1।।

नाँव सारथक, जासु 'बगीसा' ।

'आठो पेड़वा' अठई हिस्सा 11211

'गाँव हमार' लेख पुरियावा ।

संट मगन, असंट कुटियावा ||3||

'टुकटिच्छार्ट' थरौलवी, लिखित काव्य यह सेस । तीनि देव रच्छा करें, बर्हमा, विस्तु, महेस 

टीका जे के सन् 2005 में गौरमिंट हजारी मनसब देहलस अर्थात् सूखा राहत के नाम पर हजार रुपया (से कुछ कम्मै, लेकिन ऊ कुलि छोड़ीं थमवलस आ एह प्रकार से जे भोजपुरी लोकगीत के परमोच्च प्रतिष्ठित पद पर पहुँचल (होस करों 'मेरे बने का दादा हजारी... आदि आदि आ हजारी प्रसाद द्विवेदी जइसन विदमान लोगन के नाँव), जेकर पहिचान ई ह कि ऊ सुकल बंस में जनमल ह (काहें से कि वह जोग्य करनी करतूत त कुछ ह नाहीं) आ एही के ऊ अपने काने में खोंसले घूमऽला (अवतंस = कर्णाभूषण, जइसन भोजपुरिया छैला अंतर भेंइ के काने में फाहा खोंसैले आ जइसन नवके लड़के वाकमैन कै इयरफोन काने में दुसैले, ई न समझों कि 'हियरिंग एड' जइसन ) 

जेकर 'बगीस' नाँव एह नाते सारथक है कि 'आठो पेड़वा' के नाँव से जौन बाग मालिकान थरौली गाँव के नक्सा में दर्ज ह आ जहाँ कब्बों जरूरै आठ पेड़ रहल होइहैं, ओ में ओकर दू आना हिस्सा ह||2||

ते ई 'हमार गाँव' लेख लिखि के पूरा कइलस जौने के पढ़ि के संट त मगन बाटें कि का बढ़ियाँ लेख है, आ असंट कुलि खिल्ली उड़ावत बाटै कि एही के लेख कहेलें? (असंट = अंट, काहे से कि सज्जी साहित्य 'अंट' आ 'संट' के द्वन्द्व समास में समसल बा। एह नाते चाहे ऊ 'संट' होला आ चाहे ऊ संट नाहीं अर्थात् 'अंट' होला; हैं, कबी कै अनुरोध है कि अँगरेजी पढ़ले के नाते ऊ कब्बो कल्बों 'त' के 'ट' कहि देला, त एहू पर कुछ ध्यान देहल जा ) 113 11

अइसन कवी, जेकर तखल्लुस 'टुकटिच्छार्ट' ह (अर्थात To cut it short, अंगरेज कुलि व्याकरण से अनभिज्ञ एके 'टु कट इट शार्ट पढ़िहैं आ सन्धि नाई करिहैं लेकिन कवी एके संस्कृत व्याकरण के अनुसार सन्धि लगा के बिलकुल सुद्ध क दिहलस) कै लिखल ई काव्य समाप्त भइल आ ओकर ई कहनाम ह कि बर्हमा जी, बिस्नू जी आ महेस जी ई सब जने से ऊ रच्छ माँगता । 

समालोचक के आपत्ति लोक परम्परा में प्रचलित है कि सदा भवानी दाहिनी,

सम्मुख रहें गणेश । पाँच देव रच्छा करें ब्रह्मा, विष्णु, महेश ।।

ई कवी लोक से कुछ कम परिचित है।

लेखक के प्रत्युत्तर देखीं, भवानी त हई महतारी त उनके कोरा छोड़ि के का केहू कहीं जाई अ ऊ बाँएँ त होई नाई सकेली काहें कि बाएँ त ऊ शंकर जी के रहेली। अ गणेश जी त भाइए हवें कि कुशीनगर डिगरी कालेज में पढ़ावें ले त ऊ त साधे रहबे करिहैं। रच्छ माँगे के त एही बर्हमा बिस्नू, महेस से ह कि ई लोग पिंड छोड़त त सृष्टि- स्थिति संहार के एह चक्र से छुट्टी मिलत आ मोक्ष प्राप्त होइत ।

आ ई 'रक्षा करें बचावें' अर्थ खड़िबोलिहा कुलि करेल

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पर किस तरह मिलूँ कि बस मैं ही मिलूँ,  और दिल्ली न आए बीच में क्या है कोई उपाय !                                                -'गाँव आने पर जहाँ गंगा आ सरजू ई दूनो नदी के संगम बा, ओसे हमरे गाँव के

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का हो गइल गाँव के !

30 October 2023
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गाजीपुर जिला के पूर्वी सीमान्त के एगो गाँव ह सोनावानी ई तीन तरफ से नदी- नालन से आ बाढ़ बरसात के दिन में चारो ओर से पानी से घिरल बा। एह गाँव के सगरो देवी देवता दक्खिन ओर बाड़न नाथ बाबा आ काली माई आमने-स

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कब हरि मिलिहें हो राम !

31 October 2023
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गाँव के नाँव सुनते माई मन परि जाले आ माई के मन परते मन रोआइन पराइन हो जाला। गाँव के सपना माइए पर टिकल रहे। ओकरा मुअते नेह नाता मउरा गइल। ई. साँच बात बा, गाँव के माटी आ हवा पानी से बनल मन में गाँवे समा

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भागल जात बा गाँव

31 October 2023
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भारत के कवनो गाँव अइसन हमरो गाँव बा। तनिएसा फरक ई वा कि हिन्दी प्रदेश के गाँव है। आजकाल्ह पत्रकार लोग हिन्दी पट्टी कहत बाने एगो अउर फरक बा। हमार गाँव बिहार की पच्छिमी चौहद्दी आ नेपाल देश की दक्खिनी

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जेहि सुमिरत सिधि होय

31 October 2023
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साकिन जीवपुर, पोस्ट देउरिया, जिला गाजीपुर। देवल के बाबा कीनाराम के परजा हुई। गाँव में राज कॉलिन साहेब के जरूर रहे, उनकर नील गोदाम के त पता नाहीं चलल, लेकिन हउदा आजो टूटल फूटल हालत में मिल जाई बिना सिव

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थोरे में निबाह

31 October 2023
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छोटहन एगो गाँव 'महलिया' हमार गाँव उत्तर प्रदेश के देवरिया जिला के सलेमपुर तहसील में बसल ई गाँव । कवनो औरी गाँव की तरे, न एकर बहुत बड़हन इतिहास न कवनो खास खिंचाव । एहीलिए न एकर कबो खास चर्चा भइल, ना सर

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इयादि के धुनकी के तुक्क-ताँय

1 November 2023
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हमार गाँव दुइ ठो ह दोहरीघाट रेलवई के पीछे उँचवा पर एक ठे गाँव ह 'पतनई'- घाघरा के किनारे ओहीं जदू से बलिया ले नहर गइल है। जात क राही में नील के खेती क पुरान चीन्हा मिले। एक ठो नाला बा आ ओकरे बाद खेत रह

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पकड़ी के पेड़

1 November 2023
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हमारे गाँव के पच्छिम और एक ठो पकड़ी के पेड़ बा। अब ऊ बुढ़ा गइल बा । ओकर कुछ डारि ठूंठ हो गइल बा, कुछ कटि गइल बा आ ओकर ऊपर के छाल सूखि के दरकि गइल बा। लेकिन आजु से चालीस बरिस पहिले कहो जवान रहल। बड़ा भा

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जइसन कुलि गाँव तइसन हमरो

1 November 2023
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ग्राम-थरौली तप्पा बड़गों पगार परगना-महुली पच्छिम तहसील सदर जिला- बस्ती। एक दूँ दूसरको नक्सा बाय ब्लाक-बनकटी आ अब त समग्र विकास खातिर 'चयनित' हो गइल गाँव । चकबंदी में बासठ के अव्वल रहल, अबहिन ओकर तनाजा

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मिट- गइल - मैदान वाला एगो गाँव

1 November 2023
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बरसात के दिन में गाँवे पहुँचे में भारी कवाहट रहे दू-तीन गो नदी पड़त रही स जे बरसात में उफनि पड़त रही स, कझिया नदी जेकर पाट चौड़ा है, में त आँख के आगे पानिए पानी, अउर नदियन में धार बहुत तेज कि पाँव टिक

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गहमेर : एगो बोढ़ी के पेड़

2 November 2023
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केहू -केहू कहेला, गहमर एतना बड़हन गाँव एशिया में ना मिली केहू -केहू एके खारिज कर देता आ कहेला दै मर्दवा, एशिया का है? एतना बड़ा गाँव वर्ल्ड में ना मिली, वर्ल्ड में बड़ गाँव में रहला क आनन्द ओइसहीं महस

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बनै बिगरै के बीच बदलत गाँव

2 November 2023
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शंभुपुर शुभ ग्राम है, ठेकमा निकट पवित्र ।  परम रम्य पावन कुटी, जाकर विमल चरित्र ।।  आजमगढ़ कहते जिला, लालगंज तहसील |  पोस्ट ऑफिस ठेकमा अहे, पूरब दिसि दो मील ।।  इहै हौ 'हमार गाँव', जवने क परिचय एह

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कवने गाँव हमार !

2 November 2023
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सभे लोगिन अइसन आज कई दिन से हमरा अपना गाँव के बारे में कुछु लिखे आ बतावे के मन करता । बाकी कवना गाँव के आपन कहीं, इहे नइखे बुझात। मन में बहुते विचार आवडता एह विचारन के उठते ओह पर पाला पड़ जाता। सोचऽता

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बाबा- फुलवारी

2 November 2023
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ई बाति 1971 के है रेडियो पर एगो गीति अक्सर बजल करे-'मैं गोरी गाँव की तेरे हाथ ना आऊँगी।' तनी सा फेर- -बदल कके एगो अउरी स्वर हमरी आगे पीछे घूमल करे- 'मैं गौरी गाँव की, तेरे हाथ ना आऊँगी।' बाति टटका दाम

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हींग के उधारी से नगदी के पाउच ले

3 November 2023
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बहुत बदलि गइल बा हमार गाँव। कइसे? त देख शहीद स्मारक, शराबखाना, दू ठे प्राइमरी स्कूल, एक ठे गर्ल्स स्कूल, एक ठे मिडिल स्कूल, एक ठे इंटर कालेज, डाकखाना आ सिंचाई विभाग के नहर त पहिलहीं से रहल है। एक ठे छ

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शहर में गाँव

3 November 2023
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देवारण्य देवपुरी। देवरिया। बुजुर्ग लोग बतावे कि देवरिया पहिले देवारण्य रहे। अइसन अरण्य, जेमें देवता लोग वास करें। सदानीरा यानी बड़ी गण्डक के ओह पार चम्पारण्य, एह पार देवारण्य उत्तर प्रदेश आ बिहार के

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जइसे रे घिव गागर प्रकाश उदय

3 November 2023
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जे गाँव के गँवार हम दू गाँव के, हम डबल गँवार।  कि दो ओहू से बढ़ के पढ़े के नाँव प गाँवे से चल के जवना शहर कहाय वाला आरा में अइलीं तवन गाँवो से बढ़ के एगो गाँव। अगले बगल के गाँवा गाँई के लोग- बाग से ब

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एगो किताब पढ़ल जाला

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