दिनेश अपना पलानी में खटिया पर परल कहरत सुखिया काका से कहले कब अइला हा? आँख लाग गइल रहे पता ना चलल हा।
बा? चलले आवत बानी। आके अभी बइठबे कइनी हा। कइसन तबियत
कइसन कहीं। तू त जानते बाड़। गरीबी आ बुढ़ापा दूनों अपना आप में रोग ह। ऊपर से दामा। अब जाने ले के मानी। बाकी सुरेशवा के माई के के देखे वाला बा। मना करत रहीं बाकी सुरेशवा सुरत चल गइल कमाये। बुचिया अपना घरे बिया। पर साल बियाह कइले रहीं। पाहुन अकेले बाड़े। ओकरा घर बार से सांसों लेवे के फुरसत नखइस कि सुखों दुख में आके संभाल देवे। एह से बूढ़ी खातिर त जीयही के पड़ी।
तोहरो के देख बड़ा तरस आवेला। आज ले केहू ना कह सके कि केकरो कुछ विगड़ले होख बाकिर ना जाने कवन जनम के पाप ह कहियो सुख के दूगो रोटी अउर चौन के सांस तोहरा ना मिलल। हमरा से दू तीन साल बड़ होखव। लइकाइएँ से देख तानी। भगवानों तोहरा खातिर सुतले बाड़े।
भगवान के नाम लेला ह त इयाद पड़ गइल काल रात के बात। सपना ना सांच ह। सुन ल तू हूं। काल रतिया बिछावन पर गइनी त खांसी उपट गइल। दू घोंट पानी बुढ़िया देलस तबो खांसी रूके के नामे ना लेत रहे। रूको कइसे दवाई के कहो भर पेट रोटियों पेट में ना गइल रहे। तनी मन देह शांत भइल त मने मन लड़ गइनी भगवान से। कहनी कवन जनम के पाप ह कि आफते में हमार संउसे जिनगी खा गइल। भर जिनगी देह ठेठइनी बाकिर सुबहित दू जून के रोटी ना भेंटाइल। जनमते माई के छिन लेल। अभी स्कूल के मुँह ना देखले रहीं कि बाबू के पुलिस उग्रवादी के नाम देके दिने में घर से निकाल के गोली मार देलस। माँग चोंग के, मजूरी करत पेट भरत गांव में रहत रहीं बाकिर उहो ना सोहाइल रउवा । भरत गंउवा बनिहार रहे के कहत रहन हम कहनी कि हम बँध के ना रहब जवन कहब समय रही तक देब। उहां के ई रास ना आइल साफ कह देले गांव छोड़ द ना त मुआ घालब। भाग के शहर गइनी बाकिर मथवा त उहवों साथे गइल रहे। अभी सालो ना लागल रहे कि मशीन से बाँवा हाथ कट गइल। लौट के गांवे चल अइनी। दुनों बेकत काट पीस के कसहूं जीयत रहीं जा। दू कट्ठा में मड़ई रहे उहो पर साल बुचिया के बियाह में बेचा गइल। पोखरा पर पलानी गिराके रहतानी जा। उहाँ ना देखल गइल त दामा थमा देनीं। कहल जाला दामा के राज रोग आ बाँटत चल तानी कमजोर अउर गरीबवन के। धन बानी रउवो प्रभु जी। अपना जाने एह जनम में कवनो गलती नइखे कइले। ह एक गलती जरूर भइल बा ऊ रउवो जानतानी। हमरा मेहनत मजूरी से फुरसत ना रहत रहे एह से रउरा पूजा अउर शंख घंटी खातिर समय ना निकाल पावत रहीं बाकिर मनवा में हरदम राखत रहीं। अब इहो सुन लीं आफते में जीवन बितल बा कतनों आफत देब त अब ना टूटब। राउर देल आफते जीये के सिखा देले बा। कुफुत आ आफत से जिनगी के भइल इयारी अब नसीहत देता गरीब के गरीबी में जीये के अउर दुख पीये के आदते आफत में जीयावेला। बाकिर अतना कहब बुरा मत मानब रउवो घरे न्याय नइखे।