अब कहाँ चलता? बाकी इयाद बा नू गांवे के छठ मेला होखे भा मस्जिद त के ईद मेला चाहे कचनथ के शिरात मेला हमनी के गुरही जिलेबी खातिर साथे जात रहीं जा। ललन पटना अपना डेरा पर रमेश, जे गांवही के लइकाई के इयार रहन, से पुरान दिन के इयाद करावत कहले कि आपन गांव सातो डिहरी हिन्दू मुस्लिम प्रेम के अनूठा उदाहरण रहे। रोजी रोटी खातिर नौकरी के चक्कर में गांव भले छूट गइल बाकिर प्राण आजो ओहिजे बसेला।
भोजपुर जिला के सोतो डिहरी नामी गांव ह। सात टोला के गांव। सब जात के लोग बसेला। हिन्दू बहुतायत में बाड़न बाकिर मुस्लिमो कम ना। गांव के पूरब बावन बिगहा के पोखरा जेकर पूरबारी पिड़ पर चइत अउर कार्तिक दूनो छठ में बरियार मेला लागेला। गांव के पूरबे भ गांव से एक किलोमीटर हटके मिलकी पर मस्जिद बा जहाँ ईद में मेला लागेला।
तोहरा मालूम ना होई, तू त बाबू जोरे बहरे रह के पढ़ल लिखल खाली परब त्योहार में त गांवे आवत रह। ललन चा के बाबूजी तुफानी बाबा गांव के जेठ रइयत रहन। गांवे ना जवारो में तूती बोलत रहे। गजब के साम्प्रदायिक सौहार्द रहे गांव में अब कहां दिखता। शहर के कहो गांवों से प्रेम भाईचारा भाग चलल बा। जहां घृणा बजारे बिकाता मुफ्त में उपर से दामों भेंटाता ओहिजा महंगा प्रेम के खरिदारे नइखन।
ललन चा बतावत रहन कि ताजीया के जुलूस मियां टोली से ना कहार टोली चौक से शुरू होता रहे। हिन्दू मुस्लिम के जुटान हो गइला पर तुफानी बाबा अउर टोला पर के मस्जिद मियां लाठी खेल के जुलूस आगा बढ़ावत रहन जा। छठ के घाट पर राती खा नाटक मुस्लिम लोग करते रहे। घाटे पर लागल मेला से सांझी का तीन किलो गुरही जिलेबी मंगा के मंदिर भीरी चउकी पर बइठ मस्जिद मियां अउर तुफानी बा देखते देखत चट कर जाते रहे लोग। ईद के मेला में मिलकी में तुफानी बाबा ना जाता रहन बाकी घरे के लड़िकन जरूर जाते रहन स। हमहू ललन चा जोरे जाता रहीं हर साल। ललन चा के हाथे दू किलो गुरही जिलेबी मस्जिद मियां तुफानी बाबा खातिर जरूर भेजते रहन। सांच पूछ त गांव में गुरही जिलेबी मिठाई से बढ़के प्रेम के प्रतीक रहे।
सुनला हा ना गांवे के समाचार?
ना। कवनो नया बात भइल हा का? कवना दुनिया में रहेल। छठे से गांव में चउवालिस लागल बा।
का भइल हा हो।
ललन चा के बेटा रमेश छठ के मेला में उधारी साह के दुकान पर गुरही जलेबी खात रहे बगल में मस्जिद मियां के नाती रहमानो खात रहे। गलती से रहमान के एगो जिलेबी के टुकड़ा छटक के रमेश के प्लेट में चल गइल। रमेश पट देनी उठ के रहमान के गाली दे देलन। रहमान कहलन माई बहिन जन कर जान के नइखी फेकले। जबाब देत देख रमेश आपा खो के लाठी चला देलन। आज के लड़िका रहमान से बर्दाश्त ना भइल उठा के पटक देलस। बरियार रहले रहे बड़ा मार मरलस। रमेश कसहूं जान बचा के भगले बाकिर लगले दस गो लड़िकन के लेके रहमान पर टूट पड़लन। देखते देखते गांव दू भाग में बँट के जूझ पढ़ल एक दोहरा से। देखते देखत लड़ाई साम्प्रदायिक दंगा के रूप ले लेलस। ऊ त भल कह मेला के चलते थाना ओहिजे रहे अउर फोर्स बुला लेलस त कसहूं मामला शांत पड़ल। प्रशासन के फोर्स मजिस्ट्रेट गांव में कैम्प कइले बा त गांव उपर से शांत बा बाकिर अंदरे अंदर सुलगता।
सांच कहल गइल बा समय के साथ परिवर्तन होला। जवन गुरही जिलेबी काल प्रेम भाईचारा बढ़ावा के प्रतीक रहे आज दुश्मनी के बीज रोप देलस। सांच पूछीं त दोष गुरही जिलेबी के नइखे लोग के मानसिकता के बा। जवन रोपब उहे नू काटब। दोष हमनीये के बा। हमनी के आज के पिढ़ी के दिमागे में नफरत, घृणा के बीज बचपने में भर दे तानी जा त प्रेम कहां उपज पाई। गांवे में ना हर घर में रमेश रहमान पैदा हो जइहन आवे वाला दिन में। गुरही जिलेबी का रसगुल्लो नीक ना लागे जब मन ना मिले।