राजनाथ ग्रेजुएशन कइला के बाद कम्पटीशन के तैयारी पटना रहके
करत रहन। पढ़े में शुरू से बढ़िया रहन। साल बितत बितत एक्साइज
इंस्पेक्टर के परीक्षा पास करके बम्बई पोर्ट पर योगदान दे देलन। नौकरी
लागते उनकर घर के स्थिति बड़ा तेजी से बदले लागल। दू जून के खरची
मोहाल रहे उहाँ सालभर के अंदरे खपरैल छानी के जगह छत पिटा गइल।
बाबूजी के सेवा में गांव पर गाड़ी रखा गइल। गांव वाला लोग देख के दंग
रहे। सोचत रहे कि राजनाथ कवनो बड़ पोस्ट पर चल गइल बाड़े जहाँ मोटा
वेतन भेंटाता। रघु काका आखिर एक दिन राजनाथ के बाबू से पूछ दिहलन
कि राजनाथ के वेतन त बढ़िया होई हो काट कूट के हाथ प कतना मिल
जाला? राजनाथ के बाबूजी कहले माहटर साहेब रउवो नोकरी करतानी नमक
के दारोगा पढ़ल बानी नू। रउवा से झूठ ना बोलब, दाई से पेट छिपला, बम्बई
में त वेतन से पेट भरल मुश्किल बा। बाकिर संयोग कहीं भा राजनथवा के
भाग पहिले पोस्टिंग बम्बई पोर्ट पर हो गइल जहाँ उपरी कमाई अंधाधुंध बा।
सब राउरे आशीर्वाद ह।