रजमतिया ठेठ देहाती औरत। ओकर मरद उमेश पासवान कतरास कोलियरी में मजदूर के काम करत रहे। जीद क के गांवे से मरद के साथे कतरास आ गइल। दूगो लइकन के साथे परिवार के गाड़ी कसहूँ चलत रहे। कोलियरी ओह घड़ी निजी मलकियत में रहे। बलिया के बबन सिंह कतरास कोलियरी के मालिक किहा चौकिदारी करत रहन बाकी मालिक के खास लठईत भी रहन। मजदूरन के संभाले के काम उनके जिम्मा रहे। एक दिन राता राती कोलियरी के राष्ट्रीयकरण हो गइल। कोलियरी के मालिक, मनेजर अउर लठईत एके साथे चीत हो गइल लोग।
राष्ट्रीयकरण के बाद कोलियरी में मजदूरन के दिन फिर गइल रहे। ऊ सब के शोषण त कम होईये गइल रहे समय पर मजूरी भी मिल जात रहे। बाकिर बवन सिंह जे बेकार हो गइल रहन कबतक चुप बइठीतन। मुँहे खुन लाग जाला त बाघ आदमखोर हो जाला। मुफ्तखोर जेकरा बइठल खाये के आदत लाग जाला ऊ कमाइल ना चाहे। बबन सिंह भी फेर से कोलियरी में घुसपैठ कड़ल चहलन बाकिर प्रशासन के सामने दाल ना गलल। दू चार गो केस भी माथे लदा गइल।
बवन सिंह के बुद्धि अब जबाब दे देले रहे। एही बीच उनकर एगो दूर के हित कतरास कोलियरी में टिकेदार के रूप में निबंधित करवा के काम दिलवा देलन। देखत देखत प्रशासन के मदद से बबन सिंह आपन बर्चस्व
बढ़ावत मजदूर नेता बन गइलन। समय के साथ उनकर तूती बोले लागल।
प्रशासनों कबो व्यक्तिगत लाभ में कबो कोलियरी हित में उनकर गलत सही
सब काम में साथ देवे लागल। मजदूर के मजूरी में कमिशन, कोलियरी में
ठिकेदारी, कोयला ट्रांसपोर्ट के काम से अकूत संपत्ति बना लेलन।
मजदूर तरस्त रहन स। बाकी बबन सिंह अउर उनकर लठइत के आगे केहूँ मुँह खोले के हिम्मत ना करत रहे। उमेश के सीना में विरोध के आग धधकत रहे बाकिर चुप रहन। एक दिन ना अड़ाइल साफ कह देले आज से हम मजदूरन के मजूरी से कवनो चंदा भा कवनो कमिशन ना कटाई। कोलियरी में ई बात आग जइसन फैल गइल। बबन सिंह भी खदान में पहुंच गइलन। पहिले समझवलन बाकी उमेश ना सुनलन त हाथ चला देलन। आगा पिछा ना सोचके उमेश बगल में रखल बेलचा सिंह जी पर चला देलन। बबन सिंह आव देखलन ना ताव रिवाल्वर निकाल के उमेश पर गोली चला देलन। उमेश जगहे पर ढेर हो गइले।
उमेश के लाश घरे पहुंचते रजमतिया बेहोश हो गइल। होश अइला पर भी अपना आप में ना रहे। बड़ लड़िका पड़ोसी के मदद से उमेश के अंतिम संस्कार कर घरे लवट माई के कसहूँ संभाले में लागल रहले। समय के साथ घाव भर जाला बाकी दाग ना जाला। रजमतिया के लइकन अभी सयान ना रहन स एह से अनुकंपा पर खुदे कोलियरी में योगदान कर लेलस। घरे रहे चाहे खदान में उमेश के मौत इयाद आवते ओकरा आँख में खून उतर जात रहे अउर बदला के आग सुनगे लागत रहे। औरत जात मन मार के रह जात रहे।
समय के साथ राथमतिया मजदूर नेता के रूप में कोलियरी में स्थापित हो गइल। मजदूर के दुख दरद ही अब ओकर जिनगी हो गइल। बबन सिंह के एकाधिपत्य में सेंथ मार देले रहे। ई बबन सिंह के कइसे बरदास्त होइत। ऊ ओकरा के रास्ता से हटावे के फरमान आपन आदमियन के दे देलन। ई बात राजमतीया के कान में भी पहुंच गइल। बबन सिंह के कोलियरी में मीटिंग करत रहन ओही घड़ी राजमतिया आपन साथियन के साथ सभा स्थल पर पहुंच के स्टेज पर चढ़ गइल। बबन सिंह कुछ समझते तबतक काली रूप में उनका पर टूट पड़ल। रजमतिया सिंह जी के जमीन पर गिरते सीना पर सवार हो गइल। हाथ के कटार गरदन पर रखत कहलस आदमी ना समय बरियार होला तोहार जिनगी हमरा हाथ में बा बाकिर तोहार गंदा खून से आपन हाथ ना रंगव। तोहार सजाय इहे बा कि आज से एह कोलियरी तरफ ना तकब। ई कहत उनका के लात मारत गाड़ी पर बइठ चल देलस।
अब रजमतिया ठान लेलस कि बबन सिंह के उनकर चाहरदीवारी तक सिमित रखे के बा। बबन सिंह कहाँ माने वाला रहन। चुनाव के घोषना होते सत्ताधारी दल से टिकट लेके चुनाव में कूद पड़लन। रजमतिया से ना रहल गइल। मजदूरन से सलाह करके उहो निर्दलीय चुनाव में सिंह जी के विरुद्ध उतर गइल। सिंह जी सत्ता अउर धन बल के साथे जातिवाद, संप्रदायिकता के सहारा ले के चुनाव जीते खातिर रात दिन एक कर देलन। प्रशासन भी उनके साथ रहे। रजमतिया के खाली मजदूर अउर गरीब के भरोसा रहे। चुनाव के दिन सिंह जी के आदमी बूथ कब्जा में पिछे ना रहलन। सिंह जी जीत के जलशा के तैयारी पहिले से ही कइले रहन बाकी ई का चुनाव में रजमतिया जीत गइल। बबन सिंह के ई बिसवास ना रहे। पहिले त उनका दिमाग में रजमतिया के भी उमेश जइसन सदा खातिर रास्ता से हटावे के बात दिमाग में आइल बाकिर रजमतिया के काली रूप ईयाद आवते उनकर रूह काँप गइल। आज बुढ़ापा में उ घर के चाहरदीवारी में जीवन व्यतीत करे खातिर अभिशप्त बाड़े। रजमतिया राज्य के कोयला अउर कल्याण मंत्री के रूप में काम करत कोलियरी के मजदूरन के सुख दुख के साथी बनल आजो ओही पुरान छोट घर में रह रहल बिआ जवना से उमेश के याद भी जुड़ल बा।