गाँव के बहरी निकले के पहिले बीचली गली के अंत में फागू भगत के किराना के दुकान। दुकान आज के मिनी मॉल। चुड़ी, कपड़ा, पूजा सामग्री, पारचून से आटा चुड़ा मिल तक एक छत के नीचे। फागू भगत दुकान के बहरी चबूतरा पर तिरछी टोपी पहिरले विराजमान। मुँह एक घड़ी खातिर बंद ना। कबो कामगार पर झंझुआत, कबो ग्राहक से दुआ-सलाम, कबो राह चलत राहगीर, मरद, मेहरारू से चउल। सुबह से शाम ले इहे दिनचर्या।
फागू भगत के जन्म फगुआ के दिन भइल रहे। ऐही से माई बाबू नाम रखलन फगुनी। विद्यालय में नाम लिखाइल फगुनी साव। मेट्रिकुलेट फगुनी आगे चलके आपन नाम फागू भगत कर लेले। फगुआ अइसन रंगीन फागू के जीवनो रहे। रंगीन मिजाज फागू भगत गाँव के होरी, चइता, रामायण, कीर्तन में बढ़ चढ़ के हिस्से ना लेत रहन, आयोजन के खर्चा उठावत रहन। गाँव के फगुआ त फागू के बिना फगुआ लागते ना रहे। गोल में फागू के ना रहला पर लागत रहे जइसे गमी हो गइल होखे मोहल्ला में।
फागू भगत के कहानी लिखाय त एगो पोथा तइयार हो जाइ। अब शुरूआत भइल बा दू-चार गो होइए जाय। फागू के बियाह नया-नया भइल रहे। सुसुराल गाँव के नजदीके दू कोस पर धनपुरा रहे। अभी गवना ना भइल रहे। मेहरारू से भेंटो ना रहे। फगुआ में सार आ गइल लिआवे खातिर। कवनो तइयारी रहे ना। ससुरारी के होरी के ढ़ेर किस्सा सुनले रहन। मन में गुदगुदी आ दिमाग में फूलझरी छूटत रहे। घर से जब जाये के आदेश भइल त समस्या आइल कि पहिला बेर ससुरारी जाये के बा कवनो सवारी त चाहीं। गाड़ी छकड़ा के समय ना रहे। धनपुरा के बबन साव के दामाद साइकिल भा बैलगाड़ी से त जा ना सकत रहन, दूनों घर के इज्जत के सवाल रहे। विकल्प रहे घोड़ा भा हाथी। फागू के लइकाई के घटना इयाद पड़ गइल। उनका जीद कइला पर बाबू पोखरा पर चरत मोहना धोबी के खचड़ पर चढ़ा देले रहन। खचड़ दसो कदम ना गइल होई फागू के पाछा उलट देलस। भागे के क्रम में बरियार दुलत्ती देलस जे आज ले फागू भूलाइल नइखन। घोड़ा के नाम सुनते विदक गइलन। तय भइल पधेया जी के हाथी से जइहन। सवारी के व्यवस्था त भऽ गइल। अब समस्या एगो अटैची आ धराऊ कुर्ता के रहे। संउसे घर जोगाड़ में लाग गइल। राजिंदर चा किहां के सुबासो फुआ के अटैची आ बबन माहटर साहेब से कुर्ता त मिल गइल बाकिर माहटर साहेब के शर्त रहे कि कवनो हालत में कुर्ता में रंग ना लागे के चाहीं ना त कुर्ता के दाम देवे के पड़ी। मरता क्या न करता, कवनो उपाय ना देख फागू कहलन खाली अटैची में रखल रही पहिरब ना, इज्जत खातिर ले जा तानीं।
फागू हाथी से, संगे-संगे सार साइकिल से धनपुरा पहुंचलन सांझ के बेरा। हाथी लवट गइल पहुंचा के। कहाँ उठाई, कहाँ बइठाई में सभे लागल रहे। हाथ मुँह थोवला के बाद शरबत पानी भइल दुआर पर। सब कोई पाहुन-पाहुन के रट लगवले रहे। अइसन बूझात रहे कवनो आन देश के अजूबा आइल होखे। टोला महल्ला में शोर हो गइल शंतिया के पाहुन आइल बाड़न। फागूओ चिहाइल अपना के संयमित करे के प्रयास करत रहन कि घरे से बोलाहट आ गइल। एगो साली बोला के घरे ले गइल। सबसे परिचय करावत जात रहे जे भेंटात रहे सेकरा से बाकिर अबतक मेहरारू से ना भेंट भइल। घंटा दु घंटा बितल त फागू से ना अड़ाइल कहले माथा बथता हम तनी आराम करव। एगो घर में ले जा के आराम करे के कहल गइल। बाकिर ई का छत दिवार के अलावा कवनो जीव ना लउकल जेकरा खातिर माथ पीरात रहे। फागू मन मार मने मन सपना में खो गइलन। बार-बार घड़ी देखस, कवनो आहट आ पायल के आवाज पर जान में जान आवे बाकिर कबो सरहज त कबो साली। खाना खइला के बाद ना अड़ाइल त कहले छोट साली उर्मिला से उनका के भेजीं ना। सब समुझत कहली केकरा के। फेर हँसत कहली अइसे ना नेग चाहीं। वादा करा फागू से कहली तनी धीरज धरी अबे बुलावत बानीं। आधा घंटा बाद उर्मिला अपना साथे एगो औरत के घूंघट में छोड़त आँख मारत निकल गइली। फागू के मन में लडू फूटे लागल रहे। घूंघट वाली औरत एक गिलास दूध टेबुल पर रख एगो कोना में खाड़ हो गइल। फागू हाथ खींचत मनुहार करत पलंग पर लाके बइठा देलन। घूंघट हटावल चहलन त ना नुकुर सुनाय। आपन हाथ के अँगूठी उनका हथेली पर रखत कहलन अब त मान जा। त इठलात कहली अब हमहीं घूंघट उठाई। फागू बड़ा सहियार के घूंघट उठवलन त काट त खून ना, उनका सामने घूंघट में मुन्नवा नोकरवा बइठल रहे। चप्पल उठवले मारे चललन तबतक फुर्र...। माथ पकड़ले पलंग पर थड़ाम। उर्मिला आ के कहली माफ करब होली ह, अइसे त अंगूठी रावा दितीं ना। लीं, आपन अमानत संभालीं, हम चलनीं, दीदी के मुँह देखाई का देब रउवा सोंचीं।
भोरे दुआर पर बइठ्ठल फागू रात के बात में अझुराइल रहन कि नवही के दल आ गइल। कुछ बूझतन तली ले पनरोह में डूबा देलस। खींच तान में कुर्ता तार-तार। जान छोड़ा घरे भगलन। साली सरहज एक साथे टूट पड़ली सं। भागम भागी में फागू के गोड़ फिसल गइल। पांव में मोच आ गइल, धावा धाई दिनानाथ कँहार के बुलावल गइल मोच बइठवलन ना त होली बदरंग होखल चाहत रहे। नहा थो के पैजामा आ गंजी पहिर अँगना में बइठ गइलन। मेहरारू कहली कुर्ता पहिर लिहीं गाँव घर अब जुटी। एगो कोना में ले जा मेहरारू से कुर्ता के शर्त वाला बात बतवलन आ कहलन कि कवनो कुर्ता ऐहिजे से व्यवस्था कर द। सार ससुर के कुर्ता काम ना आइल त कवनो उपाय ना देख हार पांछ के माहटर वाला कुर्ता पहिर लेलन। सबका से निहोरा कइलन धूरखेली से तबियत गड़बड़ा गइल बा रंग मत लगाइब जा अबीरे हम होली खेलब। फागू खइला के बाद एक गिलास भांग मिश्रित ठंढई ले लेलन। भंग के तरंग चढ़ल त उर्मिला के छेड़ देलन। उर्मिला कहाँ चुप रहे वाली रही छोटकी भउजाई से मिल पाहुन के अइसन रंगली कि कुर्ता के कहो लंगोट तक भींग गइल। फागू बिदक के खाड़, छान पगहा तुड़ होली के सांझिये गाँव जाये पर अड़ल। कसहु ससुर जी समझवलन त फागू शांत त पड़लन बाकिर चेहरा के हवाई उड़ गइल। मेहरारू समझवली ई सब होला कुर्ता के कवनो उपाय होई, रउवा चिंता जन करी ना त पहिला होरी ह बदरंग हो जाई। बात होते रहे कि बड़की सरहज आके एक गिलास ठंढई दे गइली जे फागू गटक गइलन। भांग के नशा में कुर्ता के दुख भूला गइलन। दुआर पर पछेआरी टोल के गोल आ गइल। पाहुन के दुआर पर बोलाहट भइल। पाहुन के देखते गोल होरी कढ़ा देलस
पाहुन माथे पाग, पाहुन हाथे फाग हम आज खेलब होरी होरी होऽऽऽऽ।
एही बीच मदन बाबा आपन टोपी तिरछे फागू के पेन्हा के कहलन पाहुन एगो होरी रउवो गावे के होई। ना नुकुर करत फागू कढ़वलन
केकर कुर्ता, के खेले होरी ससुरा के होरी बरजोरी हो पहुना के सुझे ना रंग अबीर कुर्ता में अटकल प्राण हो भूललो ना आइब ससुराल, गाँव ही खेलब होरी हो।
ओह होली के बाद फागू आज ले होली में ससुराल ना गइले बाकिर तिरछी टोपी आ भंगिया होली में उनकर साथ ना छोड़लस।