सुनैना बियाहे उतरली तऽ बियाह के घर भरल मिलल। कहीं तील धरे के जगह ना। हँसी ठिठोली के माहौल, काली पुजाई, चउठारी के रसम में दिन कइसे कट जात रहे पता ना चल पावत रहे। चार पांच दिन में सब हित नाता के जाते गांव के हवेली सून पड़ गइल। सोलह कमरा के दू महला घर में पति के अलावा सास ससुर अउर एगो ननद। ननद उनका से दू बरीस बड़ रहीं जेकर बियाह हो गइल रहे। नाम रहे प्रतिमा। नाम-रूप प्रतिमा के माफिक सुंदरो रहे। अपना परिवार के साथे पटना रहत रही। सुनैना के मन लगावे खातिर उनकर बाबूजी अउर भइया प्रतिमा के एक महिना खातिर रोक लेले रहे लोग। थोड़ही दिन में प्रतिमा सुनैना से अइसन घुल-मिल गइली कि ननद से सहेली बन गइली। सुनैना के लागबे ना कइल कि कवनो नया घर में आइल होखीं। दुनों एक दोसरा के नाम से बोलावत रहे लोग। सूते घड़ी छोड़ के चौबीसो घंटा एके साथ रहत रहे। खाना पीना तक साथे साथ। एक महिना बाद जब प्रतिमा जाये के तैयारी करे लगली तऽ सुनैना कह के दस दिन अउर रूके खातिर राजी कऽ लेली। आखिर सुनैना से बिछड़े के प्रतिमा के दिन आ गइल। जात खा प्रतिमा से गला मिलला के बाद अलग होत आपन गला के हार प्रतिमा के गला में पहिरावत सुनैना कहली कि ना मत कहब ई
हम बड़ ननद के ना आपन सहेली प्रतिमा के देत बानीं। रोअत विदा करत सुनैना बोलली तू त हमरा के आपन प्यार देके खरीद लिहलूं कबो जरूरत पड़े तऽ जान मांग के देखिह सुनैना पिछा ना हटिहें। कहत रोअत सुनैना भाग के अपना कमरा में चल गइली।
दिन, साल, महीना बीतत देरी ना लागे। समय के साथ सुनैना अउर प्रतिमा के संबंधों प्रगाढ़ होत गइल। छठ अउर राखी में प्रतिमा सुनैना के पास नइहर जरूर चल आवत रही। साल में एक दू बेर सुनैनो सवनपुरिया तीज ले के प्रतिमा से मिल आवत रही। एही बीच सुनैना अउर प्रतिमा एकगो बेटा के महतारी हो गइल रहीं लोग। दूनों परिवार के जिनगी हँसत खेलत कटत रहे। बाकिर समय आज ले केकरो एक नियर ना जाला । प्रतिमा के परिवारो के केकरो नजर लाग गइल। प्रतिमा के पाहुन रमेश जीजाजी एक दिन काम पर से लौटत रहन तऽ सामने से आवत ट्रक धक्का मारत निकल भागल। स्थानीय पुलिस धावा धायी अस्पताल ले जा के खबर देलस तऽ प्रतिमा के काट तऽ खून ना। धावल प्रतिमा अस्पताल पहुंचि के कवनो तरह सम्हाले के प्रयास कइली बाकिर स्थिति उनका बस के ना रहे। नइहर भाई भउजाई के खबर देली। सुनैना पति के साथ पहुंच गइली। रमेश के हालत बड़ा गंभीर रहें। सुनैना डॉक्टर के कहली जवन जरूरी होखे करीं खरचा खातिर हम तैयार बानीं, देरी मत करी आपन काम शुरू करीं। सुनैना अउर उनकर पति महेश दिन रात रमेश के सेवा में लागल रहल लोग। ब्रेन के आपरेशन रहे समय लागल जान बाच गइल बाकिर रमेश पैर से पंगु हो गइले।
परिवार में रमेशे कमाये वाला सदस्य रहन। उनका असहाय हो गइला से प्रतिमा पर दुख के पहाड़ टूट पड़ल। ईलाज के दौरान अउर बादो में साथ रह के प्रतिमा के आर्थिक स्थिति से सुनैना पूरी तरह अवगत हो गइल रही। प्रतिमो कुछ छुपावे के प्रयास ना कइली। प्रतिमा एक दिन सुनैना से कहली कि तोहरा से कुछ छुपल नइखे अउर तू लोग कबतक ढोवबू लोग, ई समस्या कवनो एक दिन के नइखे। हम सोचतानी कि अब बाबू के ओह महंगा स्कूल में पढ़ावल हमरा बस में नइखे ओकर नाम कवनो सरकारी स्कूल में लिखवा दीं।
सुनैना ना अइसन कबो मत सोचिहऽ। दुखे में परिवार काम आवेला। अइसनो में काम ना आई आदमी तऽ परिवार कवना काम के। कवनो समस्या आवेला तऽ समाधानों आवेला। धीरज धर। बाबू ओही स्कूल में पढ़ी। तोहार बेटा हऽ त हमारो एकलौता भगीना।
धीरज तऽ धरहीं के बा सुनैना। कवनो दोसर उपाय कहाँ बा? तू तो जानत बाडू गहना गुरिया तक रमेश के इलाज में बेचा गइल। भगवान के शुक्रगुजार बानी सेनुर के लाज राख लेलन। अब तऽ दवा अउर घर खरची खातिर कुछ करहीं के नू होई। नइहर पर नव दिन रहल जा सकेला जिनगी भर ना नू। हमार स्वभावो तू जाने लूं।
ठीक बा। अब एह घड़ी अपना के संभाल। शहर में बाडू। ग्रेजुएट बाडू। सिलाई-कढ़ाई से चित्रकारी तक में निपुण। कवनों ना कवनो उपाय हो जाई। बाबूजी के तबियत ठीक नइखे। हमहूं काल गांवे जाइब लऽ हई रखल बीस हजार बा, कामे आई।
प्रतिमा ना ना करत रख लेली।
महिना दू महिना ना बीतल होई प्रतिमा घरे में सिलाई कढ़ाई प्रशिक्षण केंद्र खोल देली। थोड़ा समय लागल बाकिर प्रतिमा के मेहनत, लगन अउर व्यवहार से खूब बढ़िया चल गइल। अब ऊ दवा अउर खरची खातिर केकरो मोहताज ना रही। आज उनका आपन बाबा के कहलका ईयाद पड़ गइल। उहां के बाबूजी से कहत रहीं कि बेटा बेटी के पढ़ाव ना तऽ शहर में बसाव रोजी रोटी के तकलीफ ना होई।
प्रतिमा रमेश के छोड़ नइहर सुनैना पास ना जा पावत रही। एही से सुनैना महीना दू महीना पर चल जात रही प्रतिमा के पास। प्रतिमा के घर देख संतोष होत रहे सुनैना के अउर सोचत रही कि भगवान कुछ छिनलन तऽ दोसरा हाथ उठा के दे भी देलन। परीक्षा के घड़ी में तनी धीरज अउर धर्म के जरूरत होला।
सुनैना अभी प्रतिमा से भेंट करके गांव लौटल रही कि खबर आइल कि उनकर तबियत अधिका खराब हो गइल बा। महेश सुनैना से कहले खेती बाड़ी के दिन बा हम ना जा पाइब तूहीं चल जा सम्हाल लिह। सुनैना दुसरे दिन पटना पहुंच गइली। प्रतिमा के खराब हालत देख तुरंत अस्पताल ले गइली। दू दिन इलाज के बादो स्थिति में कवनो सुधार ना भइल तऽ पीएमसीएच में रेफर कर देलस। पीएमसीएच में जाँच रिपोर्ट आइल तऽ डॉक्टर बतवलस कि प्रतिमा के दूनो किडनी खराब बा जल्दी से जल्दी एगो किडनी बदले के होई, खरचा भी करीब तीन लाख आई। सुनते सुनैना के आँख के आगे अंधेरा छा गइल बाकिर मन बरियार कर मन के शांत कइली।
'प्रतिमा के इलाज करावे के होई, उनका के बचावे के होई, रमेश खातिर, बाबू खातिर' इहे सुनैना के दिमाग में गूंजत रहत रहे। अतं में कुछ सोच के डॉक्टर के कहली डॉक्टर साहेब तैयारी करीं हम पईसा जमा कर देब हमरो जाँच कर लीं अतना जल्दी किडनी कहाँ मिली? आपन खून जाँच खातिर देके पइसा के इंतजाम खातिर चल देली।
ऊ सोचली ई प्रतिमा के ना एगो परिवार के जान बचावे के बा एकरा खातिर हम कुछ उठा ना रखब। सब कुछ झाड़ देली तऽ दू लाख के इंतजाम हो पावल। कवनो उपाय ना देख गला के मंगलसूत्र अउर हाथ के चुड़ी बेच के एक लाख अउर व्यवस्था करके अस्पताल में जमा कर देली। संयोग से उनकर किडनी प्रतिमा से मैच कर गइल। ऊ डॉक्टर के आपन एगो किडनी खातिर सहमति दे देली। बाकिर ई बात ना महेश के ना प्रतिमा के बतवली। ऊ जानत रही केहू ई काम के सहमति ना दी।
निश्चित समय पर आपरेशन हो गइल। डॉक्टर बधाई देत सुनैना के बोलल कि आपरेशन सफल हो गइल अपनो पर ध्यान दिह। ऊ डॉक्टर साहब से निवेदन कइली ई बात प्रतिमा से मत बताइब। दस दिन बाद प्रतिमा के लेके घरे आ गइली।
महेश प्रतिमा के देखे अउर सुनैना के लेवे पटना अइलन तऽ दुनों के दवा अउर दिनचर्या देख के उनका मन में कुछ शक हो गइल। ऊ सुनैना के आपन कसम देत कहले सांच सांच बताव का बात हऽ। सुनैना कहली प्रतिमा के ना बताइब तब हम बोलब। महेश से आश्वासन मिलला पर ऊ सांच बात बता देली। महेश सुन के सन्न रह गइलन। खाली अतने कहले कि तू पत्नी रूप में देवी बाडू।
नारी तू नारायणी।