जनार्दन सिंह बाहर से आवते अभी दुआर पर पैर रखले रहन कि घरवे के बगल में उनके बाप दादा के बसावल काशी कहार के घरे बड़ा हल्ला गुल्ला अउर अफरा तफरी के माहौल बुझाइल। कुछ समझ ना आइल त हाथ मुँह धो के खरास मिटवला के बाद काशी के भतीजा महेश के बोलवले। आवते पुछले का बात बा रे? काशी किहा ई कइसन हल्ला?
गइले । महेश माथा पर हाथ धइले बोललन मालिक काशी काका त लूट
का भइल रे?
रउवा त जानते बानी उनकर पोती रधिया के बियाह गंगाबिगहा रमेसर किहाँ ठीक रहे। अगिला एतवार के तिलक जाये वाला रहे। जे गछाइल रहे छेका में दिया गइल रहे। बाकिर काल संझिया अपना गांवे के ललन, जे अगुवा रहन, से खबर करा देले कि लइका कहता कि हमरा हिरो होंडा बाइक चाही। अगर मिली त बियाह होई ना त ना। अतना कम समय में ई संभव कहाँ बा। ईज्जत अब ना बाचीं यही कारण काका घरे अफरा तफरी मचल बा। अब रउरे हाथ में इज्ज्त बा। गरीबो के इज्जत होला कसहूँ बचाई। हम बानी नू। चिंता मत कर लोग। काशी के समझा दा रचिया हमरो बेटी ह। कुछ उठा ना राखब। साँझी खा हम रमेसर घरे खुद जाइब।
साँझ होते जीप पर सवार होके गंगाबिगहा रमेसर के दरवाजा पर महेश जोरे पहुंचलन। गाड़ी रूकते रमेसर प्रणाम मालिक बोलत आगा आके पैर छुअत बोललन कवनो कसूर भइल का? रउवा हमरा दुआरे। हमरे के बोलवा लेतीं।
गलती त बहुत बड़ कइले बाड़। बाकी ई समय हम ओकर हिसाब करें नइखी आइल। हमार अउर काशी के संबंध तू जानेल फेर ई तू का कइला हा। तोहरो दूगो कुँआर बेटी बाड़ीस अगर तू दोसरा बेटिहा के इज्जत ना करब त तोहरा के करी। अगर तोहरा बेटा के बाइक चाहीं त काल बजार खुलते हम भेजवा देब बाकिर रचिया के बियाह तय तारीख के ही होई। एक बात कान खोल के सुनल रचिया खाली काशी के घरे के बेटी ना ह हमरो बेटी ह, सउसे गांव के बेटी ह। गांव के बेटी के इज्जत आपन इज्जत होला।
रमेसर के काट त खून ना। रमेसर मुड़ी गड़ले बोलले गलती भइल माफ कर दीं। रधिया हमरो बेटी ह हमरे घरे आई। ललन के बहकवला में आ गइल रहीं। अब पानी मँगावत बानी कुछ मुँह में डाल लीं।
ना ना रहे द बेटी के घरे के अन्न ना खाये के चाही। चलतानी बरात लेके गांवे अइब त भेंट होई।