राधा अउर सतीश साथे पढ़त रहे लोग। ऊ दूनों के दोस्ती कब प्रेम
में बदल गइल ई दुनों के पता ना चलल। साँच भी ह प्रेम त आराधना ह जे
आराध्य से कब एक कर देला ई पता कहाँ चलेला। दूनों साथे जीये मुये के
कसम ले लेले रहे। आज के पीढ़ी के दुनों के जात पात अउर समाज के
बंधन के जानकारी भी ना रहे। सतीश नौकरी दिल्ली में ज्वाइन कइला के
बाद घरे लवटलन त माई से राधा अउर आपन शादी के प्रस्ताव रखलन।
माई के काट त खून ना। कवन कवन सपना पलले रही सतीश के बियाह के।
आखिर बड़ बेटा रहन। खानदान में सतीश के बाप के बाद कवनो लड़िका
के बियाह ना भइल रहे। सतीश के निर्णय सुन के सब परिवार के कठेया
मार देले रहे। सतीश साफ साफ कहलन कि राधा दूसरा जात के हई पर हम
बियाह उनके से करब अउर उहो सारा परिवार के सहमति से। अगर रउवा
लोग के ई प्रस्ताव स्वीकार ना होई त ई बियाह ना होई बाकिर हम दोसरा
जगह वियाह ना करव।
सतीश के परिवार पढ़ल लिखल रहे। कोई निर्णय जल्दबाजी में ना कइल चाहत रहे। उनकर पिताजी स्वतंत्र बिचार के हवन जे रूढ़िवादिता ओढ़ के ना चलल चाहलन। बाकिर समाज त सभके देखे के पड़ेला। ऊ सतीश के माई के समझावे के अथक प्रयास कइलन बाकिर ऊ टस से मस ना भइली।
बुझाय जइसे प्राण दे दिहे बाकी मनीहें ना। घर के वातावरण दिनों दिन बिगड़त जात रहे। सतीश आपन फैसला बदले के तैयार ना रहन।
गांव से सतीश के बाबा आइल रहन। ई बात उनका कान तर पहुंचल। ऊ सतीश के बोला के कहले ई का सुनतानी हो?
सतीश डेरात डेरात कहलन जवन सुनतानी उ सही ह बाबा हम राधा से बियाह रउरा लोग के सहमति से कइल चाहतानी।
अगर परिवार सहमति ना दी तब?
तब ना करब। बाकी कहीं अउर भी बियाह ना करब।
हमार बात मनब?
काहे ना।
सुन राथा से प्रेम करेल नू। करत रह। हम मना ना करब। बाकी प्रेम खातिर शादी जरूरी नइखे। कृष्ण भी राधा से प्रेम कइले रहन। अमर प्रेम बा आजो। हम सलाह देब उहे प्रेम तूहू राधा से कर। शादी समय पर अपना समाज में करीह। जात समाज के मर्यादा होला ओकरा के निबाहल पुत्र धर्म ह।
सतीश दबे जबान साफ कह देले बाबा एक त राउर अमर प्रेम के फिलोसोफी हमरा पाला ठीक से नइखे बईठत दोसरे हम कृष्ण हई ना। जहाँ तक जात पात का बात बा त ग्रेजुएशन में जाके जात-पाँत के कालेज में गोलबंदी देखनी जबकि राधा इंटर से साथे बाड़ी। आज समय रूढ़िवाद से निकले के आवता बंधे के ना।
सतीश के रूख देख के परिवार समझ गइल रहे कि ऊ मनीहे ना। बाकी अंतिम प्रयास जारी रहे। सतीश के माई अपना नइहर जाके नइहर परिवार से एह पर बिचार कइली। सतीश के नानी जे मरणासन्न रही सब कहानी सुन के कहली बियाह सतीश के करे के बा जीवन भर ओकरा शाखे के बा। ओकर पसंद सब परिवार के स्वीकार करे के चाहीं। अब जमाना ना रहल कि आपन पसंद बेटा पर थोप दिआय। जहाँ तक राधा के बात बा त सुन ल लोग कुँआर बेटी गंगा होले। ओकर कवनो जात ना होला। जवना घर में जाले उहे ओकर जात ह।
माई के ई बात सुनते सतीश के माई के आँख खुल गइल। घरे आवते सतीश के बियाह के सहमति दे देली। राधा के बाबूजी के बुला के बियाह के दिन तय कर देली। तय दिन के सतीश के बियाह बड़ा धूमधाम से सब हित नाता के उपस्थित में भइल अउर राधा सतीश के हो गइली।