अजी सुनती हो कमलेशवा के माई। भोरे भोरे रउवा त कवनो काम नइखे हमरा नाक में काहे दम कइलेबानी। आरे मार बढ़नी कोरोना के रे एगो त ऊ आफत में जान डललही बा ऊपर से दिन भर रउवा आ कमलेशवा के टोपासी अलगे बा। अरे ई का सुनतानी कमलेशवा कहत रहे की काल माई मामा गाँवे जाई। लाकडाउन चलता अइसना में नइहर तोहरा कहाँ से सुझल हा। सुनी छोटका भइया के बियाह के छव बरिस हो गइल ओकरे बियाह में गइल रहीं। माई बाबू से मिल अइतीं। अइसन छुट्टी फेर कहाँ मिली दिन रात त घर गिरहस्ती के कुफुत जान मरले रहेला। रबी पताई के दिन लाकडाउन में नइहर गइल ठीक ना रही। जान बाची त ढ़ेर नइहर कमइबू। एह बंदी में दुनो बेकत के रहते त कमलेशवा चार बेरी चौक प चल जाता। काल एकरे चक्कर में सिपाही के डंटो भेटलहीस ह। हरदी गुर चलता। ना रहबू त के देखी। छुटा साढ़ लेखा घुमत रही। जइबू कइसे रोड़ प त निकलल मना बा। आरे रउवा देखत नइखी दिल्ली आ ढाका से लोग पैदले चल आवता। हमरा घोड़ा गाड़ी से रोड़ से नइखे जायेके। मिलकी मुँहे तिरीछे तीन कोस पड़ी रावा ना छोड़व त बलदेव ठाकुर संग चल जाइब। हम त कहब जीद मत कर दिन ठीक नइखे चलत। सुनलू ह ना अइसना में हितो नाता मुँह मोड़ लेता। हमार 'भाई भउजाई अइसन नइखी सन रउवो जानत बानी। देख हम अतने कहब हमार बरजल मान ना त प्रशासन के चक्कर में पड़ गइलू त नइहर के जगह कवनो एकांत में आइसोलेशन में चल जइबू। ई आइसोलेशन का होला जी। बहरा से आवे वाला के गाँव के सिवाने प रोक के स्कूल चाहे पंचायत भवन में चउदह दिन राखल जाला। केकरो से मिले ना दिही। डेरवाई जन जानतानी नू भउजाई सरपंच नू बिया। कोई काम ना आई मानजा अबहूँ ना त नइहर भूला जइबू। ई का कह तानी जी। त सुनल नारायणपुर तोहार नइहर ह। ओह गांव के लोग निर्णय लेले बा कि बहरा से आवे वाला लोगन के हाई स्कूल प आइसोलेशन में रखला के बादे गांव में जाये देल जाई। त का हम बहरा के हई। हम त ओह गांव के बेटी हई। कोरोना के कहर में ई सब केहू ना सुनी। ऐगो बात अउर सुन ल। का जी। एह कहर के तू गंभीरता से नइखू लेत। अब का भइल जी। काले देखनी कि जोगी ब के गोबर पाथे के त गती ब के चाउर फटके के घरे बोलवले रहू। आज समय बा घरे रहे के फेर ई सब तूल काहे बढ़ाव तारू। खात खानी देखनी कि ललन ब भउजी का दो देवे अइली त बड़ा सटके खुसूर फुसूर करत रहू। ई सब मत कर आपस में भी समाजिक दूरी बनावे के बा। हम तू ना मनबू त कमलेशवा के का मना कइल जाई। हम त आज से दुआरे प रहब। कमलेशवा के हाथे खाय पानी भेज दिह। बरो बजार के फेरा मे ढ़ेर नइखे रहे के। घर में जे अदउरी तिसौरी होखे ओकरे से काम चलावे के बा। हित नाता त आवे से रहले। समे अपना अपना घरे बंद बा। भला होखे ई मोबाईलवा के सभके, देश दुनिया के समाचार मिल जाता ना त के कहाँ कइसन बा, का हो रहल बा कुछ पते ना चलीत। देखत नइखू एक हपता से पाठक बाबा लउकत नइखन। ना त अबले दुआर कोड़ मरतन। जान प लोग के आफत आइल बा। कवनो ना कवनो बहाना से थारी, लोटा पिटता, घंटी शंख बजावला, दियरी जरावला से ई कोरोना टकसे के कहाँ नाम लेता। बोखार के त नामे मत ल। खोखी सर्दी देख के लोग भूत अइसन डरता। परिवार के लोगवा त छोड़ घर के गेट दिवार काटे दउरता। आ मार बढ़नी रे मुअना कोरोना के, जब घरहीं परान आफत में बा त फेर नइहर के का सोचीं। रउवा अपना साथे कमलेशवा प ध्यान देब। शितल मइया के किरपा बरसी कोरोना के कहर भागी।