सुशीला के विदा करते रामनरेश घरे आ के चीताने धम से पड़ गइलन। माथा के लकीर साफ कहत रहे कि बेटी के हाथ पीयर करे अउर ओकरा के बड़का घर में भेजे के खुशी से अधिक गम दू बिगहा खेत बेचला के बादो डेढ़ लाख के माथ पर करजा के रहे। ई कहावत आज ले सुनत रहन रामनरेश कि 'बेटी के बियाह अउर माई बाप के श्राद्ध बाभन के बिना खेत बेचइले भा करजा के ना होखे' आज ऊ माथे बीतत देख बिसवास हो गइल।
सुशीला के माई अलगे बेटी विदा कर बदहोस रही। सांझ ले मन कड़ा कइली कि घर में हित नाता भरल पड़ल बाड़न हम अपना के ना संभालब तऽ के सबका के देखी। रामनरेश के समझावत कहली उठीं ई कवनो नया चीज नइखे भइल। समाज के रीत, आपन इज्जत बचावे खातिर कवनो उपाय ना रहे। रहल करजा के बात तऽ दइब देले बाड़े तऽ कवनो उपाय उहे करींहे। लोक लाज बचावे खातिर बहुत कुछ करे के पड़ेला।
हित नाता के विदा भइला अभी चारो दिन ना बीतल रहे कि रामनरेश के माई हार्ट अटैक से गुजर गइली। रामनरेश के काट तऽ खून ना। रामनरेश माई के क्रिया करम के व्यवस्था में लाग गइलन। अपना खानदान के इज्जत के मुताबिक बारह गांव के गोतिया के भोज भात के तैयारी में लाग गइलन। तीन विगहा बेच के जग पार कइल चहलन। समस्या रहे ना अतना जल्दी केहू खेत के खरीदार मिले ना पाँच लाख के करज देवड्या।
खानदान के इज्जत कइसे बांची? बेटी के बियाह में सुशीला के माई के गहना तक बंधक धरा गइल रहे। कवनो उपाय ना देख एक दुपहरिया रामनरेश लाला जी के दुआर पर पहुँच गइलन। लाला जी के अनुभवी आँख सब समझत पूछ देलस केने चलनी हां?
रउवे भीरी असरा लेके आइल बानी। रउवा से का छूपल बा। ना केहू खेत खरीदार ना करज देवइया।
हमार लोक लाज रउवा हाथ में बा। पगड़ी पैर पर रखत पाँच लाख के जुगाड़ कसहूं कर देवे के विनती करतानी।
ई का? रउवा जानतानी हमरो हाथ सकेत बा बाकिर रउवा खानदान खातिर तऽ कुछ ना कुछ करे के पड़ी। घर के इज्जत के बात बा। काल फजिरे आइब दस बिगहा रेहन के कागजात तैयार राखब। खानापूरति के के पइसा ले जाइब चाची के काम बड़ा धूमधाम से करीं कि बारहो गांव ईयाद रखे।
रामनरेश दस बिगहा रेहन धरके माई के काम बड़ा धूमधाम से कइलन। गया बनारस के पंडित, गोरखपुर के निर्गुण गायक, तीन बिगहा में लागल पटना के टेंट तंबू, बंगाल से मिठाई बनावेवाला, आरा के खानसामा के व्यवस्था के साथे आगंतुक के यथायोग्य विदाई के व्यवस्था भी रहे। खानदान के इज्जत के साथे साथ लोक लाज रामनरेश के बाच गइल रहे। चहुंओर रामनरेश बाबू के माई के श्राद्ध के चरचा होत रहे। सभे कहत रहे रामनरेशवा मरद हऽ मरद।