रोजी रोटी खातिर महेश गाँव छोड़ के चार बरिस पहिले सूरत चल गइल रहन। बाद में अपना विधवा माई के भी ओहिजे बोला लेले रहन। माई भी दू चार घर में चौका बरतन करत रही। महेश एगो सुता कारखाना में मजूरी करत रहन। केहू तरह से परिवार चलत रहे। लाकडाउन के चलते कारखाना त बंद भइये गइल रहे माई के काम भी छूट गइल। लूट लाये कूट खाये वाला महेश के घर चलावल मुश्किल हो गइल। अइसन समय में बहरा में कोई मदद करेवाला भी ना लउकत रहे। साथी सब के भी कम बेसी उहे हाल रहे। ओह बहरा में आगे नाथ ना पाछे पगहा महेश के त दिन में तारा दिखाई पड़े लागल। गाड़ी छकड़ा बंद रहला से गाँवे गइल भी संभव ना रहे। महेश के कोरोना से बेसी पेट के भूख व्याकुल करत रहे। बतिया भी साँच ह पेट के आग के आगे कुछुवो ना लउके। महेश सोचलन कटनी के दिन रहे गाँवे रहती त माई बेटा काट पीस के पेट के जोगाड़ कर लिहितीं भा भाई गोतिया से उधार पइंचा ले के काम चल जाइत। ई सोच माथे गठरी उठा गाँव खातिर कर्मभूमि के छोड़ चल देलन। समय खराब होला त आफत एक साथे चारों ओर से आवेला। अभी जतरा के दूसरा दिन भइल रहे की माई बिमार पड़ गइल। लाकडाउन में ना डाक्टर ना बगली में पइसा। माई के इलाज कइसे होइत। खैर हारमात के सरकारी अस्पताल में ले गइलन। पहिले त केहू हाथ इलाज खातिर ना लगावल बाकिर तरस खाके चारगो टेबलेट संतोष खातिर दे देलस। माई के तबियत संभाल ना भइल। ई देख महेश के कवनो अनहोनी के डर सतावे लागल। आखिर पंचवा दिन रस्ते में महेश के माई दम तोड़ देली। माई के लाश से लिपटल महेश जब होश में अइले त बहरा में लाश के अंतिम क्रिया के चिंता घेर लेलस। माई के मौत एगो साधु के मठिया पर भइल रहे जहाँ रात गुजरले रहन। मठिया के सहयोग से माई के अंतिम क्रिया कर आगे बढ़ चललन।
महेश अभी गाँव से दू सौ कि.मी. दूर रहन बाकिर गाँव आँखी के सोझा अइसे नाचत रहे जइसे गाँव पहुँच गइल होखस। धधाइल तनी डेगरगर बढ़ल जात रहन कि पाछे से आवत एगो ट्रक धका मारत निकल गइल। महेश रोड के किनारे खून से लथपथ बेहोस पड़ल रहन। कवनो सरकारी जीप के नजर पड़ल त उहाँ से उठाके सरकारी अस्पताल में भरती करा देलस। होश में आवत अर्धमूर्षित अवस्था में डाक्टर से पुछलन हम कबतक ठीक हो जाइब आ हमार गाँव सिकरहटा कतना दूर बा। डाक्टर कहले अभी ठीक होखे में समय लागी। ठीक होखला पर गाँवे चल जइह। डाक्टर जानत रहन महेश के हालत गंभीर बा बाकिर उनका के झूठा दिलासा देत रहन। जब जब होश आवे महेश गाँवे के बात करस। अस्पताल में तीसरा दिन महेश के स्थिति ज्यादा बिगड़ गइल अउर लाख कोशिश के बादो डाक्टर उनका के ना बचा पवलस। महेश के गाँव के सपना सपने रह गइल। दूर से माइक के आवाज आवत रहे।
मत जाहूं मत जाहूं मीता तू बिदेशवा हो बूझे नाही उहाँ कोई तोहरी दरदिया। छूट जाला घर बार अउर परिवरवा हो गाँव के इयाद तड़पावेला विदेशिया।