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दाँव-पेंच अब बहुत भइल शाम दंड अब छोड़ी, हम किसान के जात ह सीधा मुड़ी जन हमार मुरेड़ीं।
दिल्ली ढाका सुनत रहनी रउवा आज देखइनीं, रंग में भंग पड़ल फगुआ के होरी हम बिसरइनीं।
कवन कसुरिया हमसे डहनीं रउवे अब बतलाई, देब दवाई छोड़ब ना हम कतनो रावा सताइब।
बात बनावल अबहूं छोड़ी कहत बानीं करजोड़ी गठबंधन ऊ काम ना आई रह जाई हाथ में झोरी।
धर्म छोड़ के बेचल चहनीं हमरा उनका हाथे, माथे तिलक लगवलस जे ओहू के छोड़नी पाछे।
सीना चौड़ा हमरा बल पर दौड़ी हमरा काटे, कर्म भोग माथे रह जाला केहू ना ओकरा बाँटे। राउर करनी गला दचावे अब त बूझी बतिया, मुअब भले रूकव ना हम सुन सेठवन के नतिया।