1
गाँव-गाँव अब ना रहल हम का कहीं हर अंगना बाजार बनल हम का कहीं।
काका चाचा सब प्रवासी हो गइलन भाई-भउजाई सब अलगा हम का कहीं।
दुअरा पर चौपाल अब कहाँ बइठत मदर्दी अँगने में बइठल हम का कहीं।
गाय बैल दुअरा पर अब मिलत नइखे सोहराई हम कहाँ पूजीं हम का कहीं।
दोल्हा पाती, गूली डंडा गाँव से गायब कजरी झूला कहाँ गइल हम का कहीं।
अकीला फुआ, सुनरी काकी अब कहवाँ गीतो सोहर भूला गइल हम का कहीं।
दोन, रेहट, पक्का ईनार गइल कहँवाँ खरिहानो गइल उजड़ हम का कहीं।
दासे राउत, सोखा बाबा के के पूजीं? सब डीहवार हेरा गइलन हम का कहीं।
विदेशी ठाकुर, सोहन बारी अब नइखन अंग्या-बिजे भुला गइल हम का कहीं।
गाँव शहर से ना कतहीं अब कम बडूये डी जे बाजे दुअरा पर हम का कहीं। ढोलक झाल मृदंग के ताल गूंजत नइखे फगुआ विरहा भोर परल हम का कहीं।
कहत किशोर जिनगी बडूवे अब गाँवे में शहर के आपा-धापी के हम का कहीं। 2
साँच त साँच नूं ह, कबो ना लुकाला कारिख मुँह पर छपल, ई का कहना।
ना मनल बतिया हमार, बबुआ तू ऊफर पर ताड़ी, गांजा, शराब के लत, ई का कहाला।
खानदान के दीप हव, ई त सभे जानत रहे नाम खानदान के डूबवल, ई का कहाला।
भला घर के बहुरिया, पतुरिया झूठ भइल देख आँगन लजाला, ई का कहाला।
बाप-बेटा बइठके, जाम पे जाम चलेला बेटी कल्ब में नाचे, ई का कहाला।
फैशन के नाम पे, पेवन साटल चलन में बदन सब दिख रहल बा, ई का कहाला।
गाँव-गाँव ना रहल, देख शहर सरमाला बहुरिया भसुर संग नाचे, ई का कहाला।
चलन आज बा बफे के, पाँत खउरा गइल केहू चिन्हे ना समधी के, ई का कहाला।
किशोर अंगना में, संग किशोरी के थिरक्त किशोरी बहुपास में रउवा, ई का कहाला 3
बिगड़ल बा मिजाज सरकार के बुझात नइखे का बोलिहें भतार के।
घर उनके, दुआरो ना छोड़िहन सब गति करिहन मलिकार के।
चोन्हा उनकर श्रृंगार ह भाई धन उड़ावस जइसे ह इयार के।
नइहर के दुलरी, ससुरा के प्यारी हांडी ना ऊ छुअस ससुरार के।
गाँव छोड़ शहर में आ बसली नमूना बनली फैशन बाजार के।
मॉल मल्टीप्लेक्स के लागल चसका मौका ना छोड़स कवनो तकरार के।
लूगा बरतन करत बितत दिन किशोर का कहस ई करार के। 4
बोली गोली से कम ना, बूझीं एह बात के मीठे बोलिया अनमोल, बूझीं एह बात के।
माटी, माई से नेहिया तुड़लो से ना टूटे खून खिंचेला खून के, बूझीं एह बात के।
राजा रउवा बानीं, नजर जन फेरी हमसे मुकुट माथे हमरे से, बूझीं एह बात के।
कोरोना के नाम पर, लूटल ठीक ना देस के देश माई नूं ह जी, बूझीं एह बात के।
जुल्म कबले सहीं, रउवे बताई हमरा के इंकलाब जगावता हमके, बूझीं एह बात के।
आगि लागल बा आँगन में, अमन कब आई हमरा बूझात नइखे अब, बूझीं एह बात के।
गांवे ना शहरों में, हमार सपना मुरझा गइल किशोर के बिहान ना मिलल, बूझी एह बात के। 6
ग़ज़ल के रीत ना बुझाइल, गीत का गाई जिनगी का ह ना बुझाइल, गीत का गाई।
प्रेम देह ह, वासना ह, ईश्वर ह ना बुझाइल दबल बा जिंदगी बोझ तले, गीत का गाई।
बेटी ईश्वर के वरदान, माथ के भार ना ह दहेज दानव बन बइठल, गीत का गाई।
राह भूला गइल, जीवन मझधार में पढ़ल जब मंजिल ना मिलल, गीत का गाई।
जिनगी बा सहारे तोर, तनी आँख त खोल नजर जब बा राउर बाउर, गीत का गाई।
बात कल्याण के होला, लूट मचल सगरो बाजार में बिक रहल बा सब, गीत का गाई।
पेट भूख से बिलखत, तारू सूखे चटाइल आफत नून रोटी पर, गीत का गाईं। 7
झूठ ह जे तू सुनल, सांच आंखि से देखल हऽ मत उलझ तू झूठ में, झूठ त बात लपेटल हऽ।
हम तू आज सभे, देखना, झूठ में भुलाइल बा झूठे के सब रिसता नूं ह, जगत सपना देखल हऽ।
का करब बोल के, के सुनी, चलन ना सुधरी विगाड़ल तोहरे नूं ह, ई हमार आँखि देखल हऽ।
बहू बेटियन के चलन, मत देखीं, देखीं अपनों घरही जाम छलकत बा, रोज के देखल हऽ।
बाजार आ बइटल, घर में, बाजारू रिसतो भइल खनक सिक्का के चहुंओर, सबके देखल हऽ।
माथ मत पिटीं, कुछ करी, अब चुप्पी ठीक नइखे गाँव आ किसान मुअता रोज, ई राउर देखल हSI
चलीं बचाई रिसता के डोरी, पतंग कटे से पहिले दूसर लूट ले जाला पतंग, किशोर के देखल हऽ। 8
पीत सरसों, हरियर गेहूं, आहट बसंत के आ गइल आमे मोजर, सेमर फूल, देखि धरती बउरा गइल।
पतझड़ भागल, कोंपल फुटल, जंगल गावे गीत रंग गुलाल भरल बगिया, देखि मन अगरा गइल।
मंद पवन मन आग लगावे, चहुंओर मंगल गीत कहीं फाग मृदंग संग बाजे, सुनी मन रंगा गइल।
बसंत उदास आज, बदलत आपन रूप देख उजड़त बाग बगीचा देखि, बसंतो खउरा गइल।
रोज ओला, रोज बारिश, मादक गंथ धोआ गइल राग-रंग अब ऊ ना रहल, मधुमास के खा गइल।
रूप लावण्य बसंत के, नइखे लउकत आज कहीं रोमांस के रोमांच ना रहल, सेज के आस सेरा गइल।
किशोर के कुटिया बिरान, बसंत राह भूला गइल सेज सजावे के खेयाल, मौसम देखि ओरा गइल। 9
रास ना आइल गाँव, ऊ हवाबाज हो गइल गाँव छोड़ देलस, बिदेसिया महान हो गइल।
बेटा इकलौता रहे, माई बाबू आँखि के तारा सपना खनदान के रहे, बाकिर हैवान हो गइल।
बरिस दू बरिस बीतल, ऊ घरे घुरके ना आइल राह देखत आँखि लोराइल, मन हैरान हो गइल।
रोज-रोज नया बहाना, मोबाइलो बंद हो गइल सुननी मेमीन कर लिहलस, बाप परेशान हो गइल।
माई सुनलस सादी के बात, खाटी धर लिहलस बड़ा ललसा रहे, ना पुरल, मौत अरमान हो गइल।
माई मू गइल, बाबू बीमार, बबुआ ना अइलन चारों धाम के शवख रहे, शवख हलकान हो गइल।
किशोर पिंगल ना पढ़ले, बखेड़ा दूर बा उनसे गीत माटी के गावेलन, भले ऊ पुरान हो गइल। 10
दिगर के बात छोड़ीं, आपने काटि खा रहल बिना मतलब के केहू, कहाँ बाँटि खा रहल।
कंस मामा दुआरी पर बइठल, अँगना मउसी चाचा चाय के तरसत, मामा जाँति खा रहल।
करेली राज ससुरा पर, गीत नइहर के गावेली कहेली का बा ससुरा में, करज जब आ रहल।
पति कुकुरो से बदतर बा, ससुर ह माथ के बोझा सास किनार अब धइली, घरे तब का रहल।
फूटानी मुफ्त के उनकर, जरावे धन ससुरा के मोबाइल हर घड़ी हथवा, सरम अब ना रहल।
मेम सुनी इतराली, सखा जब डोरी डालेला इज्जत बेच खा गइली, धरम जब ना रहल।
किशोर अंधा बनल बइठल, कान रहित बहिरा मउवत के भीख मांगेलन, इज्जत जब ना रहल। 11
बात बढ़ जाई तू जाने लऽ, बाते बतंगड़ बन जाला समय बदलेला इतरा जनि, समय काल बन जाला।
माघ के धाम हऽ, सुहावन बा, ठिठुरन भागि पराई पतझड़ चरम पर, अब भागी, आस बसंत बन जाला।
धरती विहँस रहल, धानी चुनरी प पीयर गोटा देख सांस महकत बा किसान के, सांसे आस बन जाला।
किस्मत के धनी किसान ना होला, दुनिया जानेला राज योग हाथ में नइखे, मेहनत ईमान बन जाला।
लूट के नीति ओकरा ना भावे, ऊ राजनीति ना जाने बाकिर मरद ह बुझेला दरद, दरद पी शिव बन जाला।
शिकवा केकरा से करे, के सुनी, सभे तऽ बहिरा बा तिकवत ले आस के थरिया, आसे जहर बन जाला।
किशोर ना रहले खुद में, खुद बेईमान बन गइलन बेच के देस के इज्जत, बेईमान इमरान बन जाला। 12
ना आइल बसंत घरवा, जिनिगी ओरा गइल हमार हिस्सा के सुख, ना जाने के खा गइल।
घर के मारल बर तर गइनीं, आस के साथे बिपत साथ ना छोड़लस, बरवो कटा गइल।
जंगल राज के बासी हम, आन्हर बा राजा जहाँ देख लूट मचल बा, अंजोरिया लूटा गइल।
सुराज आज ले ना भेंटाइल, कवनो बात ना तिनों बनरन के बतिया, कहँया मूला गइल।
राज के बात राजे रहे द, भेद खोल का करब नंगा नाच हो रहल सगरो, इज्जत सभे खा गइल।
खेल उनकर देखत चल, अबहीं त शुरुआत बा पगड़ी आस से बँधले रहल, आस सब खउरा गइल।
किशोर गारी देत बाड़न, उनका के ना अपना के पेट पर लात मरल तूं, सब सपना मउरा गइल। 13
असरा के फूल ना उगल, भरोसा टूट गइल सपना पूरा ना भइल, देखते नीन टूट गइल।
तू चैन से सुत, नीन आँखि से भागल बा मीत अब ठाड़ माथे प, मीन खुद टूट गइल।
भूख के गठरी, माथे अब ढ़ोआत नइखे खिसे हाथ का छुटल, गाँव छूट गइल।
प्रवास रास ना आइल, दोहन ना रूकल सपना अंखुआइल ना, परिवार छूट गइल।
राजा बनके रउवा, मन के खूब पढ़नीं दिन में सपना देखनीं, चैन सब लूट गइल।
कवन हम पाप कइनीं, सभे हमरा के लुटल दोष केकरा दिहीं, जब किस्मत फूट गइल।
रात अब करवट लिही, मुकुट किशोर के माथे हम अंजोर खूब बॉटब, किरिन अब फूट गइल। 14
ऊ का रहन, हमार देखल ह5 खिदमतगार रहन, हमार देखल हऽ।
सेवा के फल मीठा होला, साँच ह कुर्सी केकरो ना ह, हमार देखल हऽ।
सत्ता के शीर्ष के, नशा अलगे ह झूठ के रोटी पकावे, हमार देखल हऽ।
देर मत उड़, नशा फाट जाई वोट बेचल-खरीदल, हमार देखल हऽ।
चाम, दाम के चलती राजनीति में सदा रहल बा, ई हमार देखल हऽ।
समय बदलल, ई आँखिन लउकत बा नेताजी आजो उहे, हमार देखल हऽ।
विभागीय बजट, सहकारी संपत्ति ह लूट में सभकर हिस्सा, हमार देखल हऽ।
बाभन करत बा, दलित विमर्श के बात चाय चमार के ना पिये, हमार देखल हऽ।
स्त्री-विमर्श बा, आज चहुंओर चर्चा में मेहरारू आजो बिलखत, हमार देखल हऽ।
भोर छुपल बा, बादल के आड़ में आजो किशोर अंजोर के छछनत, हमार देखल हऽ। 15
बात आज के ना पुरान हउवे राजनीति लंगन के कुरान हउवे।
चाणक्य, चंद्रगुप्त, अशोक कहुँवा राजनीति खरीद बिक्री के दुकान हउवे।
दिल्ली, पटना, मुंबई भा बंगलुरू कुर्सी के लड़ाई सगरो पुरान हउवे।
वंशवाद के परंपरा हर जगह पाइब नयाब ना ई परंपरा पुरान हउवे।
काशी-काबा के लड़ावल ठीक ना गीता कुरान मानवता के पुराण हउवे।
हिन्दू मुस्लिम के भीतर एके बइठल धरम कुछ अउर ना ऊत रमजान हउवे।
राजनीति छोड़ी परेम बाँटत चली अब किशोर के कहनाम ई पुरान हउवे।