पुरवड्या उड़ावे अँचरवा फगुनहटा अँगनइया उड़ेला गुलाल साथे रंग के फुहार फगुआ के गोल संगे ढोलक मृदंग गूंजे बुढ़वा बनल रंग रसिया नाचे अँगना दुआर।
भंग के तरंग में मलंग मउलत गोरी देखी ताना देत ननदी हंसले देखी सब सखी धम-थम धमकेला विहँसत मन मोरा सर से सरक जाला चूनरी हमार सखी।
होली के बहाने छेड़े अंग-अंग देवरा पियवा अनाड़ी ना बुझे ई सब अनुरा अंग-अंग टूटेला दुखाला पोर-पोर मोर पियवा सुतल देखी पिटी आपन कपरा।
फागुन के बयार, मनभावन ह इयार मन में गुदगुदी, दिल में भरे प्यार। आ रहल बा होली, रंग भरल त्योहार भूल के सब बोली, गले मिल तू यार।
होली के हुड़दंग, संग में भंग मलपुआ पकवान, खाके रंग अबीर गुलाल, एगो झाल के ताल बजे, नाचे अलगे तरंग मलंग। उमंग एके लागे सब रंग।
फगुआ के गोल ह, गजबे के बा शोर सराबोर। भउजी ननदी आज, रंग से गांव के शिवाला, रंगल वा सब ओर ससुरा में सरहज, नाचेली बन मोर।
घर घर वृन्दावन, हर नार राधा बन गली गली गमकता, जइसे मन मधुवन। देखी बसंत ऋतु, अगरा गइल उपवन होली के हुलास, आज धरती कण कण।
हम गँवार हई ई रउवे ना दुनिया कहेला मत भुलाई गँउवे से सारी दुनिया चलेला सांच-झूठ के फेरा में आज ले ना रहनी तवो हमार सपना के मुंगेरीलाल कहेला। 1।
भाव आ भाषा बराबर में साथ ना चलेला भाव जेकर नाँव ह भाषा पर चढ़ दउड़ेला अब भाव बचाई कि भाषा बुझात नइखे सांच ह भावे प्रधान ह ई सब लोग कहेला। 2।
किसान आ जवान देश में इहे दूगो महान मूअता दूनों आज तबो आपन भारत महान भुला गइल दूनों के त्याग ई देश आज अबो ना जगब त सूना हो जाई ई जहान। 3।
लागल बा खउरा गाँव शहरे ना दिमाग में अझुराइल बा सब केहू आपन पहचान में अर्थ के खेल ह बाबू सब केहू ना बूझी रिश्तो परेशान बा आज दुनिया जहान में।4।
मद के चूरे मदमातल बा हर इंसान आज लउके ना हित-नाता अउर परिवार आज करनी ना आपन देखे हँसता सब लोगवा कहाँ जाता दुनिया ई नइखे बूझात आज । 5। माई आ माई भाषा के करज ना उत्तरे दूनों के इज्जत कइल सभका से ना सपरे उहे त त्रूनो पहचान ह, ओह के माथे धरी ऊ दूनोन आँख लगवले बाड़े तोहरे आसरे ।6।
गिरजा, मस्जिद, मंदिर हमरा एके लेखा लागे सगरो बइठल उहे एके जे हमरो नीक लागे दुनिया के मेला झमेला ह अबो रेलिये भाग रहल विया गाछ वृक्ष त तू बूझ ना भागे। 7।
एके भाषा पंडित, मुल्ला, सूफी, संत सब बोले उहे एक जे सबके अंदर करेला सब तमाशा आपन आपन किरदार निभा रहल सब लोग जिनगी त तमाशा हऽ जे में भरल आशा निराशा ।8।
नया खेल ह बँटवारा के नया-नया ई रीत माई-बाबू के बखरा लागल ई कइसन ह प्रीत? खून खून के समझत नइखे समय के देवे दोष प्रीत बढ़ाव, प्रेम पढ़ाव इहे ह देश के रीत। 91
दिल दुखाय आन के मत कर अइसन काम बात जे दिल पर लगे आ करे नाम बदनाम नाम काम सब राम के मत ल अपने हाथ चार दिन के मेहमान तू राम में कर विश्राम। 10।
हर हाथन के काम मिले, मिले किसान के दाम गाँव बने खुशहाल जब, देश के आवे काम विकास के झंडा जब घर-घर में फहराई जयकारा राजा के होई, नाची सब आवाम। 11।
सोना जस गेहूं के बाल, देख किसान अगराय
लचकत चले डांड पे गोरी देख बलम मुस्काय नून-रोटी पियाज थाली में, हाथ में लोटा पानी अंचरा के हवा जय लागे, खेते स्वर्ग बुझाय। 121
मानव महादेव के रूप, सत्यं शिवं सुन्दरम पूज मानव पूज खुद के, कर तू नीक करम प्रेम के पूंजी बाँटऽ खुद से, बँटले ना ऊ ओराय सांचे प्रेम ईश्वर के रूप ह, उहे ह करम धरम।13।
गाँव छोड़ि गौहाटी गइल, करमवो गइल साथ बात साँच ह बहरा में, कोई ना देला हाथ पैर खींच गड़हा में घसोरे, मौका करे तलाश गंउवाँ आपन गैर ना कोई, माई बाबू के साथ। 141
आमे मोजर, महुआ कोइन, गेहूं के खरिहान नया फसल आइल जब, सब मनावे सतुआन राम जन्म उत्सव के दिनवाँ नवमी के पूजाई गाँवें जाई, देवी पूजीं, इहाँ ना कुछ बबुआन। 15।
भरच ब भऊजी चिट्टी पेठावस आब दुनों भाई बबुआ के अगुआ आवता, के उनसे बतियाई एगो बेटा बड़ा बा ललसा, लगन बा थोड़े दिन के करब बियाह, जलसा होई, भले एक बिगहा बिकाई। 161
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ना हम कविता जानिला ना हम गीत जानीला थोड़े-थोड़े प्रीत आ जग के रीत जानीला जिनगी का ह कहाँ बुझाइल आज ले हमरा बाकिर जतना सपरेला जिनगी के गीत गाईला। 17।
जिनगी फूल ह, काँट ह, अन्हरिया आ अंजोर ह सुख-दुख त लागले रहेला सांच पुछीं त गुलाब ह ई अब रउवा हाथे बा का चुनब का बिछब राह में जिनगी भाग रहल बा ई भगवान के सुंदर उपहार है। 181 ई मत समझिह जिनगी तोहार ह, कुछ हमरो ह नफरत के लासा में मत सट, प्रेमवे सबकुछ ह हजार के बाजार इहवे रह जाई, साथे ना जाला सत् चित् आनन्दे जिनगी ह, परमार्थे जिनगी है। 19।
अपना के छोड़ जिनगी में दूसर जन खोज, ना भेंटाई अगर भेंटाइयो गइल त साथे ना जाई, ई कब बुझाई? डोली आ कहार के खेल आ आवा जाही कबले चली? जिनगी के ना बुझब त चौरासी के चक्कर ऊ लगवाई। 201
जिनगी ओरात जाता अवहूं तू चेतऽ बेंवत बताव मत अपना जहंवा मन के देखऽ करे फरिया लिह भाई बूझ जा अबहूं ना त देहब दवाई। 201
हई भोजपुरिया अंग्रेजी ना बुझाला सोझे चले जानी हम टेढ़ का कहाला ज्यादा टरटरइब जुल्फी कबार लेब देख आपन रास्ता ना त करब पिटाई। 211
तोहरा शहरिया से सुघर बा गॅउवाँ काकी चाची ईया दादी कहेली बउवा नेहिया के नाता में जुड़ल बाबा के कोरवा के कइसे बा सभे भूलाई। 221
भइनी प्रवासी तबो मन बसे गँउवाँ कहँवा भूलाला छठी घाटी के मेलउवा गँउवाँ के याद पोरे पोर सिहरावेला फगुआ आ छठ हम कइसे भूलाई। 231
ना आपन गँउवें ह आपन तू कहियो ना आपन दिहनी जवानी तबो भइल मतलब के यार तू साँच ह दुखवा ई आपन हम केकरा ई बतिया सुनाई। 241