'अलचारी' शब्द लाचारी का अपभ्रंश है। लाचारी का अर्थ विवशता, आजिजी है। उर्दू शायरी में आजिजो पर खूब गजलें कही गयी हैं और आज भी कही जाती हैं। वास्तव में पहले पहल भोजपुरी में अलचारी गीत का प्रयोग केवल आजिजो, विवशता के भावों के प्रदर्शन के लिए ही होता था; पर समय के दौरान में इस छन्द का प्रयोग अन्य भावों के लिए भी होने लगा।
(१)
चिठिया जे लिखी लिखी भेजेले संवरिया, मोर कन्हैयाजी घरे चलि आवसु ना। आरे सव केतु आवेला हथिया से घोड़वा, मोर कन्हैयाजी सेवारे' चढ़ि आवसु ना।
चिठिया जे लिखो लिखी भेजेले सँवरिया, कान्हा घाटे घाटे नैया लेइ आवहु जी। चिठिमा' जे लिखी लिखी भेजेले सँवरिया, कान्हा धीरे धीरे बँसिया बजावसु जी। आरे वॅसिया सवद सुनि उठे ले सँवरिया, सांवरि धीरे धीरे जेवना बनावसु जी। आरे जेवना जेवत कान्हा मने मुसकइले, आरे लपटि घरेले मोर वहिया जी ।।१।।
(२)
बारहि बार तोहि बरजों मोर सामी, से उतरी बनिजिया मति जइह मोरे सामी । उतरी वनिजिया के उतरी बंगालिन, से रखिहें करेजवा लगाइ मोर सामी । बारहि बार तोहि बरजो मोर सामी, से अनका सेजरिया मति जइह मोर सामी । अनका सेजरिया जब जइव तू हूँ सामी, से उत्तरि जइहें तोहरा मुखवा के पानी। हमरा सेजरिया जब अइव मोर सामी, से तू हूँ होइव रजवा हमहूँ पट रानी ।।१।।
अर्थ सरल है। 'उतरि जइहें मुखवा के पानी' चेहरे का सौन्दर्य नष्ट हो जायगा। वनिजिया बन प्रदेश । सेजरिया - शय्या।
( ३ )
वारहि वार तोहि बरजों मोर सामी, से अँझरी नैया जनि चढ़हि मोर सामी । अझरी नैया जब चहली, मोर सामी, से तर भइली नइया ऊपर भइले पानी ।।
जब तर मइलो नैया ऊपर मइले पानी, त मारि के डुबुकिया रउरा पार होइ जाई ।
मारि डुबुकिया रउरा पार होइ जांई, त केस रउरा झलके सेवारवा के नाई ।।
केस राउर झलके सेवारवा के नाई, त दाँत रउरा चमके बिजुलिया के नाई ।
दांत रउरा चमके विजुलिया के नाई, त बोल रउरा बोलीला मयनवा के नाई ।।
वोल रउरा वोलीला मयनवा के नाई, से चाल रउरा चलीलां फिरंगिया के नाई ।
'हे स्वामी, मैं बार-बार आपसे मना करती आई कि आप झंझरो नाव पर मत चढ़ना। पर आप नहीं माने। झंझरी नाव पर चढ़ हो गये। फल हुआ कि नाव नोचे डूब गई और पानीं ऊपर भर गया। हे स्वामी, जब नाव डूब गई और पानी भर गया, तब आप क्या देखते हैं। डुबकी मार तर कर पार हो जाइये। आप जब डुबकी मार तैरकर पार हो रहे थे, तब आपका केश सेवार के ऐसा झलक रहा था और जब केश सेवार सदृश दोख रहा था, तब दाँत की पंक्तियाँ बिजली को तरह चमक रही थीं। एक ओर दांत को पंक्तियाँ (मुख खुलने पर) बिजलो को तरह चमकतो थीं, तो दूसरो ओर आप मंना को तरह मीठी बोली बोल रहे थे। हे प्रियतम, आप मैना को तरह जहाँ मोठी बोली बोलते हों, वहाँ फिरंगियों (अंग्रेजों) की तरह चाल भो शान से
चलते हो।'
नौका डूब जाने पर तैराक स्त्री स्वयं तैरतो हुई और पति को साथ तैराती हुई और उत्साह देती हुई किनारे आई। उसो समय का यह गोत है। इसका रचनाकाल अंग्रेजों के आगमन के बाद का ज्ञात होता है।