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खेलवना

30 December 2023

1 देखल गइल 1

इस गीत में अधिकांश वात्सल्य प्रेम हो गाया जाता है। करुण रस के जो गोत मिले, वे उद्धत हैं। खेलवना से वास्तविक अर्थ है बच्चों के खेलते बाले गीत, पर अब इसका प्रयोग भी अलचारी को तरह अन्य भावों में भी होने लगा है।

( १ )

सोने के खरउआं आवेले कवन साहि, अम्मा के दुआर भइले ठाड़ मोरे ललना ।। चलहू अम्मा रे हमरी महलिया हमरी बहुआ बेहाल वाड़ी ललना ।। जाहु बहुआ रे अपनी महलिया दुलहिन के बोलिया त्रिआल बाड़े ललना ।।

अब ना जीअवों ललना कि अपना ना जीअवों ।। १ ।। सोने के खड़उओं आवेले कवन साहि, ठाड़ भइले भउजी के दुआर मोरे ललना ।।

चलहु मउजी ले हमरी महलिया हमरी घनिया बेहाल वाड़ी ललना ।।

अव ना जिअवों, ललना, कि अब ना जीअवों० ।।

जाहु वआ हो अपनी महलिया दूरहिन के झगरा इआदि वाड़ें ललना ।। कि अब ना जिअवों, ललना, कि अब ना जिअवों० ।। २ ।।

सोने के खड़ढला अइले कवन साहि, ठाढ़ भइले वहिनी दुआर मोरे ललना ।। चलहून वहिनी रे हमरी महलिया, हमरा घरे रनिया बेहाल बाड़ी ललना ।।

कि अब ना जीअवों, ललना, अव ना० ।। जाहु ना मइया रे अपनी मलिया, भउजी के खुदुका इआदि वाड़े ललना ।। इआदि वाड़े ललना कि अव ना० ॥३ ।।

सगरे नगरिया धूमि फिरि अइले ठाड़ भइले, धनि के दुआर मोरे ललना ।। सगरी नगरिया बनि घूमिफिरि अइली केहू ना बाड़े तोहार मोरे ललना ।। अवकी गरहवा ने ऊपर होइबों सामी सासु जी के चइला ले कपार फोरवों ।।

ललना ।। कपार फोरवों ललना० ।। ४ ।। जो गइली, ललना, जुड़ाई गइली ललना, अवको नोहकटिया से ऊपर ।। होइयों गोतिनी के झोंटा बइ लसार देवों ललना० ।। 

अबकी वरहिया से उपर होइवों ननदी के छुरी ले के सीना फरबों ललना

सीना फरवों ललना ०।।५।। बबुआ गैना खेलिहें ललना जुड़ा जइवों ललना कि जो जड़वों ललना कि जी जड़वों ललना० ।।६।।

'सोने के खड़ाऊँ पर अमुक शाह आये और अपनो माता के दरवाजे पर खड़े हुए। उन्होंने कहा- हे मां ! मेरे महल में चलो। मेरी स्त्री को प्रसव पोड़ा से बुरी दशा हो रही है। माता ने कहा- अरे पुत्र अपने महल में जाओ। मैं नहीं जाऊँगी। तुम्हारी बहू की कड़ी कड़ी बाते मुझे स्मरण हैं' ॥१॥

'सोने के खड़ाऊँ पर चढ़कर अमुक... महाशय अपनी भावज के दर- वाजे आकर खड़े हुए और कहा--अरो भावज, मेरे महल में चलो प्रसव, पोड़ा से मेरी पत्नी को दशा बुरो है। वह अव नहीं जोऊँपो अब नहीं जोऊंगो कह कर रो रही हैं। भावज ने कहा, हे देवर! तुम अपने महल वापिस जाओ। मुझे बहू का बोल स्मरण है। 'अब नहीं जोऊँगो, अब नहीं जोऊँगी, वह क्या कह रही है।'॥२॥

'सोने खड़ाऊँ पर अमुक शाह चढ़कर अपनो बहन के महल में गये और कहा- हे बहह्न, मेरे महल में चलो। मेरी रानी को दशा प्रसव पीड़ा से बहुत बुरी है। 'वह अब न जोऊँगी, अब न जोऊँगो' कह-कह कर रो रही है।'

'बहन ने कहा- 'हे भाई, तुम अपने महल में जाओ। मुझे भीजी की मार याद है। वह नहीं भूलेगो ।'।।३।।

'फिर पति ने सारे नगर में घूम-फिरकर सबसे चलने के लिए कहा; पर सबने यही उत्तर दिया। तब लाचार हो अपनो स्त्री के दरवाजे आकर वह खड़ा हुआ और कहा- 'हे पत्नी, में सारे नगर में घूम-फिर आया; पर कोई तुम्हारा शुभेच्छु नहीं है।'

'कटुभाषी पत्नी ने इस पर सरोष होकर कहा-'अबको बार में इस ग्रह से निपट जाऊँ, तो सासजी का सिर चला से तोड़ दूंगी ।'॥४।।

'हे ललना, अब तो मैं जी गई (पुत्र उत्पन्न हो गया)। अब को नोह कटिया का रस्म समाप्त हुआ नहीं कि गोतिनो का बाल पकड़ कर खूब घसो- दूंगी। और बरही रस्म से छुटकारा पाकर ननद को छाती छुरो से चोर दूंगी। हे स्वामी, (मुझे इनकी फिक्र नहीं) मेर। बच्चा गेंदा खेलेगा, बस उसी को देखकर में तृप्त हो जाऊँगी। जुड़ा जाऊँगी। जी जाऊँगी।'

कर्कशा नारि का जीता-जागता नमूना है।

(२)

माई उठे-उठे कमरि से पीरा अवना जीवि हो ।। सासु के देहु न बोलाई भंडारवा सँऊपवि हो ।।१।।

माई उठे कमरि से पीरा, अब ना जीअवि हो ।। ननदी के देहु न बोलाई, रसोइओ सउंपवि हो ।। माई उठे कमरि से ० ॥२॥

माई गोतिनि के देहु न बोलाई बलकवा सऊंपवि हो ।। माई उठे कमरि से० ।।३।।

माई ! सइयाँ के देहु ना वोलाई सँनुखिया सउँपवि हो ।। माई उठे कमरि से० ॥४।।

माई घरि रात गइले पहर राति गइले जनमेले होरीला, हम

जीवि हो ॥५॥ सामु के देहु बोलाई भेंड़वा हमरे हटे, धरें हमरे सिरे हाथ भेंड़रवा हमरे हटें ॥६॥ ननदी के देहु बुलाइ रसोइया हमरे हटे। अब हम जीअबि हो० ॥७॥

गोनिनी के देह बोलाई बलकवा हमरे हटें। अव हम जिअवि

हो ॥९॥ 

सइयाँ के देहू वोलाई सनुखिया हमरे हटें । घरू हमरे सीरे हाथ अब हम जिअबि हो ।।१०।।

गर्भवती गृहिणी को प्रसव वेदना शुरू हुई और वह अपने जोवन से निराश हो कहने लगी-

'अरे अरे मेरो कमर में वेदना शुरू हुई। अब मैं नहीं जोऊगी। मेरी

सास को कोई बुला दो, मैं उन्हें भंडार सीपूंगो। मेरो कमर में पीड़ा शुरू

होने लगी। अब में नहीं जोऊँगो' ॥१॥

'अरे मेरो ननद को कोई बुला नहीं देता कि मैं उन्हें रसोई सौंप दूं ? मेरी कमर में पोड़ा आरम्भ हो गई। अब मैं नहीं बच्चूंगों ॥२॥

'अरे मेरी जेठानी को कोई बुला दे। मैं अपना बालक उन्हें सौपूंगो, मेरो कमर में प्रसव-वेदना रह-रहकर होने लगी। अब मैं नहीं जीऊँगो' ॥३॥

'अरे कोई मेरे संयाँ को बुला दे, मैं उन्हें अपना सन्दूक सौंप दूं। अरे मा, कमर में वेदना उठने लगी। अब में नहीं जीऊँगो' ॥४॥

'एक घड़ी रात बीत गई। पहर रात जाते बालक ने जन्म लिया। अब मैं जोड़ेंगी। सास को बुला दो, भंडार मेरा ही है। वह मेरे सिर पर हाथ रखें और आशीर्वाद दें। भण्डार मेरा ही है ॥४,६॥

'अरे मेरी ननदजी को बुला दो। रसोई मेरी है। अब मैं जी गई। अरे

जेठानी को बुला दो। बालक मेरा ही है। अब मैं जी गई। अरे स्वामो को

बुला दो। मैं कह दूं कि सन्दूक मेरा हो है, अब मैं जोऊँगी। वे हमारे मस्तक पर हाथ रखकर मुझे आशीर्वाद दें' ।।७,८,९,१०।।

इस गीत में सबसे प्यार की जानेवाली सुलक्षणा गृहिणी के प्रसव-वेदना का और पुत्रोत्पत्ति का वर्णन है। पूर्व की कर्कशा गभिणी से यह कितनी भिन्न है। 


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लेख
भोजपुरी लोक गीत में करुण रस
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"भोजपुरी लोक गीत में करुण रस" (The Sentiment of Compassion in Bhojpuri Folk Songs) एक रोचक और साहित्यपूर्ण विषय है जिसमें भोजपुरी भाषा और सांस्कृतिक विरासत के माध्यम से लोक साहित्य का अध्ययन किया जाता है। यह विशेष रूप से भोजपुरी क्षेत्र की जनता के बीच प्रिय लोक संगीत के माध्यम से भोजपुरी भाषा और सांस्कृतिक परंपराओं को समझने का एक नया दृष्टिकोण प्रदान करता है। भोजपुरी लोक गीत विशेषकर उत्तर भारतीय क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जो सामाजिक, सांस्कृतिक, और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से समृद्ध हैं। इन गीतों में अनेक भावनाएं और रस होते हैं, जिनमें से एक है "करुण रस" या दया भावना। करुण रस का अर्थ होता है करुणा या दया की भावना, जिसे गीतों के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है। भोजपुरी लोक गीतों में करुण रस का अभ्यास बड़े संख्या में किया जाता है, जिससे गायक और सुनने वाले व्यक्ति में गहरा भावनात्मक अनुभव होता है। इन गीतों में करुण रस का प्रमुख उदाहरण विभिन्न जीवन की कठिनाईयों, दुखों, और विषम परिस्थितियों के साथ जुड़े होते हैं। ये गीत अक्सर गाँव के जीवन, किसानों की कड़ी मेहनत, और ग्रामीण समाज की समस्याओं को छूने का प्रयास करते हैं। गीतकार और गायक इन गानों के माध्यम से अपनी भावनाओं को सुनने वालों के साथ साझा करते हैं और समृद्धि, सहानुभूति और मानवता की महत्वपूर्ण बातें सिखाते हैं। इस प्रकार, भोजपुरी लोक गीत में करुण रस का अध्ययन न केवल एक साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भी भोजपुरी सांस्कृतिक विरासत के प्रति लोगों की अद्भुत अभिवृद्धि को संवेदनशीलता से समृद्ध करता है।
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भोजपुरी लोक गीत

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राग सोहर

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राग सोहर

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ललिता चन्द्रावलि अइली, यमुमती राधे अइली हो। ललना, मिलि चली ओहि पार यमुन जल भरिलाई हो ।।१।। डॅड़वा में वांधेली कछोटवा हिआ चनन हारवा हो। ललना, पंवरि के पार उतरली तिवइया एक रोवइ हो ॥२॥ किआ तोके मारेली सस

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22 December 2023
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जतसार गीत जाँत पीसते समय गाया जाता है। दिन रात की गृहचर्य्या से फुरसत पाकर जब वोती रात या देव वेला (ब्राह्म मुहूर्त ) में स्त्रियाँ जाँत पर आटा पीसने बैठती हैं, तव वे अपनी मनोव्यथा मानो गाकर ही भुलाना

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23 December 2023
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( १७) पिआ पिआ कहि रटेला पपिहरा, जइसे रटेली बिरहिनिया ए हरीजी।।१।। स्याम स्याम कहि गोपी पुकारेली, स्याम गइले परदेसवा ए हरीजी ।।२।। बहुआ विरहिनी ओही पियवा के कारन, ऊहे जो छोड़ेलीभवनवा ए हरीजी।।३।। भवन

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जब हम रहली रे लरिका गदेलवा हाय रे सजनी, पिया मागे गवनवा कि रे सजनी ॥१॥  जब हम भइलीं रे अलप वएसवा, कि हाय रे सजनी पिया गइले परदेसवा कि रे सजनी 11२॥ बरह बरसि पर ट्राजा मोर अइले, कि हाय रे सजनी, बइठे द

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ऊधव प्रसंग ( १ ) धरनी जेहो धनि विरिहिनि हो, घरइ ना धीर । बिहवल विकल बिलखि चित हो, जे दुवर सरीर ॥१॥ धरनी धीरज ना रहिहें हो, विनु बनवारि । रोअत रकत के अँसुअन हो, पंथ निहारि ॥२॥ धरनी पिया परवत पर हो,

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बारहो मास में ऋतु-प्रभाव से जैसा-जैसा मनोभाव अनुभूत होता है, उसी को जब विरहिणी ने अपने प्रियतम के प्रेम में व्याकुल होकर जिस गीत में गाया है, उसी का नाम 'बारहमासा' है। इसमें एक समान ही मात्रा होती हों

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'अलचारी' शब्द लाचारी का अपभ्रंश है। लाचारी का अर्थ विवशता, आजिजी है। उर्दू शायरी में आजिजो पर खूब गजलें कही गयी हैं और आज भी कही जाती हैं। वास्तव में पहले पहल भोजपुरी में अलचारी गीत का प्रयोग केवल आजि

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खेलवना

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इस गीत में अधिकांश वात्सल्य प्रेम हो गाया जाता है। करुण रस के जो गोत मिले, वे उद्धत हैं। खेलवना से वास्तविक अर्थ है बच्चों के खेलते बाले गीत, पर अब इसका प्रयोग भी अलचारी को तरह अन्य भावों में भी होने

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30 December 2023
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विवाह क गात

1 January 2024
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तर वहे गंगा ऊपर बहे जमुना रे, सुरसरि बहे बीच घार ए । ताहि पर बाबा रे हुमिआ जे करेले, चलि भइले बेटी के लगन जी ॥१॥ हथवा के लेले बावा लोटवा से डोरिया, कान्हावा धोती धई लेलनि रे । पूरब खोजले बावा पच्छिम ख

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विवाह क गात

1 January 2024
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तर वहे गंगा ऊपर बहे जमुना रे, सुरसरि बहे बीच घार ए । ताहि पर बाबा रे हुमिआ जे करेले, चलि भइले बेटी के लगन जी ॥१॥ हथवा के लेले बावा लोटवा से डोरिया, कान्हावा धोती धई लेलनि रे । पूरब खोजले बावा पच्छिम ख

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पूरबा गात

3 January 2024
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( १ ) मोरा राम दूनू भैया से बनवा गइलनि ना ।। दूनू भैया से बनवा गइलनि ना ।। भोरही के भूखल होइहन, चलत चलत पग दूखत होइन, सूखल होइ हैं ना दूनो रामजी के ओठवा ।। १ ।। मोरा दूनो भैया० 11 अवध नगरिया से ग

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कजरी

3 January 2024
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( १ ) आहो बावाँ नयन मोर फरके आजु घर बालम अइहें ना ।। आहो बााँ० ।। सोने के थरियवा में जेवना परोसलों जेवना जेइहें ना ॥ झाझर गेड़ वा गंगाजल पानी पनिया पीहें ना ॥ १ ॥ आहो बावाँ ।। पाँच पाँच पनवा के बिरवा

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रोपनी और निराई के गीत

3 January 2024
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अपने ओसरे रे कुमुमा झारे लम्बी केसिया रे ना । रामा तुरुक नजरिया पड़ि गइले रे ना ।। १ ।।  घाउ तुहुँ नयका रे घाउ पयका रे ना । आवउ रे ना ॥ २ ॥  रामा जैसिह क करि ले जो तुहूँ जैसिह राज पाट चाहउ रे ना । ज

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4 January 2024
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( १ ) धीरे बहु नदिया तें धीरे बहु, नदिया, मोरा पिया उतरन दे पार ।। धीरे वहु० ॥ १ ॥ काहे की तोरी वनलि नइया रे धनिया काहे की करूवारि ।। कहाँ तोरा नैया खेवइया, ये बनिया के धनी उतरइँ पार ।। धीरे बहु० ॥

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मार्ग चलते समय के गीत

4 January 2024
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( १ ) रघुवर संग जाइवि हम ना अवध रहइव । जी रघुवर रथ चढ़ि जइहें हम भुइयें चलि जाइबि । जो रघुवर हो बन फल खइहें, हम फोकली विनि खाइबि। जौं रघुवर के पात बिछइहें, हम भुइयाँ परि जाइबि। अर्थ सरल है। हम ना० ।।

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विविध गीत

4 January 2024
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(१) अमवा मोजरि गइले महुआ टपकि गइले, केकरा से पठवों सनेस ।। रे निरमोहिया छाड़ दे नोकरिया ।॥ १ ॥ मोरा पिछुअरवा भीखम भइया कयथवा, लिखि देहु एकहि चिठिया ।। रे निरमोहिया ।॥ २ ॥ केथिये में करवों कोरा रे क

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पूर्वी (नाथसरन कवि-कृत)

5 January 2024
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(८) चड़ली जवनियां हमरी बिरहा सतावेले से, नाहीं रे अइले ना अलगरजो रे बलमुआ से ।। नाहीं० ।। गोरे गोरे बहियां में हरी हरी चूरियाँ से, माटी कइले ना मोरा अलख जोबनवाँ से। मा० ।। नाहीं० ॥ झिनाँ के सारी मो

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