इस गीत में अधिकांश वात्सल्य प्रेम हो गाया जाता है। करुण रस के जो गोत मिले, वे उद्धत हैं। खेलवना से वास्तविक अर्थ है बच्चों के खेलते बाले गीत, पर अब इसका प्रयोग भी अलचारी को तरह अन्य भावों में भी होने लगा है।
( १ )
सोने के खरउआं आवेले कवन साहि, अम्मा के दुआर भइले ठाड़ मोरे ललना ।। चलहू अम्मा रे हमरी महलिया हमरी बहुआ बेहाल वाड़ी ललना ।। जाहु बहुआ रे अपनी महलिया दुलहिन के बोलिया त्रिआल बाड़े ललना ।।
अब ना जीअवों ललना कि अपना ना जीअवों ।। १ ।। सोने के खड़उओं आवेले कवन साहि, ठाड़ भइले भउजी के दुआर मोरे ललना ।।
चलहु मउजी ले हमरी महलिया हमरी घनिया बेहाल वाड़ी ललना ।।
अव ना जिअवों, ललना, कि अब ना जीअवों० ।।
जाहु वआ हो अपनी महलिया दूरहिन के झगरा इआदि वाड़ें ललना ।। कि अब ना जिअवों, ललना, कि अब ना जिअवों० ।। २ ।।
सोने के खड़ढला अइले कवन साहि, ठाढ़ भइले वहिनी दुआर मोरे ललना ।। चलहून वहिनी रे हमरी महलिया, हमरा घरे रनिया बेहाल बाड़ी ललना ।।
कि अब ना जीअवों, ललना, अव ना० ।। जाहु ना मइया रे अपनी मलिया, भउजी के खुदुका इआदि वाड़े ललना ।। इआदि वाड़े ललना कि अव ना० ॥३ ।।
सगरे नगरिया धूमि फिरि अइले ठाड़ भइले, धनि के दुआर मोरे ललना ।। सगरी नगरिया बनि घूमिफिरि अइली केहू ना बाड़े तोहार मोरे ललना ।। अवकी गरहवा ने ऊपर होइबों सामी सासु जी के चइला ले कपार फोरवों ।।
ललना ।। कपार फोरवों ललना० ।। ४ ।। जो गइली, ललना, जुड़ाई गइली ललना, अवको नोहकटिया से ऊपर ।। होइयों गोतिनी के झोंटा बइ लसार देवों ललना० ।।
अबकी वरहिया से उपर होइवों ननदी के छुरी ले के सीना फरबों ललना
सीना फरवों ललना ०।।५।। बबुआ गैना खेलिहें ललना जुड़ा जइवों ललना कि जो जड़वों ललना कि जी जड़वों ललना० ।।६।।
'सोने के खड़ाऊँ पर अमुक शाह आये और अपनो माता के दरवाजे पर खड़े हुए। उन्होंने कहा- हे मां ! मेरे महल में चलो। मेरी स्त्री को प्रसव पोड़ा से बुरी दशा हो रही है। माता ने कहा- अरे पुत्र अपने महल में जाओ। मैं नहीं जाऊँगी। तुम्हारी बहू की कड़ी कड़ी बाते मुझे स्मरण हैं' ॥१॥
'सोने के खड़ाऊँ पर चढ़कर अमुक... महाशय अपनी भावज के दर- वाजे आकर खड़े हुए और कहा--अरो भावज, मेरे महल में चलो प्रसव, पोड़ा से मेरी पत्नी को दशा बुरो है। वह अव नहीं जोऊँपो अब नहीं जोऊंगो कह कर रो रही हैं। भावज ने कहा, हे देवर! तुम अपने महल वापिस जाओ। मुझे बहू का बोल स्मरण है। 'अब नहीं जोऊँगो, अब नहीं जोऊँगी, वह क्या कह रही है।'॥२॥
'सोने खड़ाऊँ पर अमुक शाह चढ़कर अपनो बहन के महल में गये और कहा- हे बहह्न, मेरे महल में चलो। मेरी रानी को दशा प्रसव पीड़ा से बहुत बुरी है। 'वह अब न जोऊँगी, अब न जोऊँगो' कह-कह कर रो रही है।'
'बहन ने कहा- 'हे भाई, तुम अपने महल में जाओ। मुझे भीजी की मार याद है। वह नहीं भूलेगो ।'।।३।।
'फिर पति ने सारे नगर में घूम-फिरकर सबसे चलने के लिए कहा; पर सबने यही उत्तर दिया। तब लाचार हो अपनो स्त्री के दरवाजे आकर वह खड़ा हुआ और कहा- 'हे पत्नी, में सारे नगर में घूम-फिर आया; पर कोई तुम्हारा शुभेच्छु नहीं है।'
'कटुभाषी पत्नी ने इस पर सरोष होकर कहा-'अबको बार में इस ग्रह से निपट जाऊँ, तो सासजी का सिर चला से तोड़ दूंगी ।'॥४।।
'हे ललना, अब तो मैं जी गई (पुत्र उत्पन्न हो गया)। अब को नोह कटिया का रस्म समाप्त हुआ नहीं कि गोतिनो का बाल पकड़ कर खूब घसो- दूंगी। और बरही रस्म से छुटकारा पाकर ननद को छाती छुरो से चोर दूंगी। हे स्वामी, (मुझे इनकी फिक्र नहीं) मेर। बच्चा गेंदा खेलेगा, बस उसी को देखकर में तृप्त हो जाऊँगी। जुड़ा जाऊँगी। जी जाऊँगी।'
कर्कशा नारि का जीता-जागता नमूना है।
(२)
माई उठे-उठे कमरि से पीरा अवना जीवि हो ।। सासु के देहु न बोलाई भंडारवा सँऊपवि हो ।।१।।
माई उठे कमरि से पीरा, अब ना जीअवि हो ।। ननदी के देहु न बोलाई, रसोइओ सउंपवि हो ।। माई उठे कमरि से ० ॥२॥
माई गोतिनि के देहु न बोलाई बलकवा सऊंपवि हो ।। माई उठे कमरि से० ।।३।।
माई ! सइयाँ के देहु ना वोलाई सँनुखिया सउँपवि हो ।। माई उठे कमरि से० ॥४।।
माई घरि रात गइले पहर राति गइले जनमेले होरीला, हम
जीवि हो ॥५॥ सामु के देहु बोलाई भेंड़वा हमरे हटे, धरें हमरे सिरे हाथ भेंड़रवा हमरे हटें ॥६॥ ननदी के देहु बुलाइ रसोइया हमरे हटे। अब हम जीअबि हो० ॥७॥
गोनिनी के देह बोलाई बलकवा हमरे हटें। अव हम जिअवि
हो ॥९॥
सइयाँ के देहू वोलाई सनुखिया हमरे हटें । घरू हमरे सीरे हाथ अब हम जिअबि हो ।।१०।।
गर्भवती गृहिणी को प्रसव वेदना शुरू हुई और वह अपने जोवन से निराश हो कहने लगी-
'अरे अरे मेरो कमर में वेदना शुरू हुई। अब मैं नहीं जोऊगी। मेरी
सास को कोई बुला दो, मैं उन्हें भंडार सीपूंगो। मेरो कमर में पीड़ा शुरू
होने लगी। अब में नहीं जोऊँगो' ॥१॥
'अरे मेरो ननद को कोई बुला नहीं देता कि मैं उन्हें रसोई सौंप दूं ? मेरी कमर में पोड़ा आरम्भ हो गई। अब मैं नहीं बच्चूंगों ॥२॥
'अरे मेरी जेठानी को कोई बुला दे। मैं अपना बालक उन्हें सौपूंगो, मेरो कमर में प्रसव-वेदना रह-रहकर होने लगी। अब मैं नहीं जीऊँगो' ॥३॥
'अरे कोई मेरे संयाँ को बुला दे, मैं उन्हें अपना सन्दूक सौंप दूं। अरे मा, कमर में वेदना उठने लगी। अब में नहीं जीऊँगो' ॥४॥
'एक घड़ी रात बीत गई। पहर रात जाते बालक ने जन्म लिया। अब मैं जोड़ेंगी। सास को बुला दो, भंडार मेरा ही है। वह मेरे सिर पर हाथ रखें और आशीर्वाद दें। भण्डार मेरा ही है ॥४,६॥
'अरे मेरी ननदजी को बुला दो। रसोई मेरी है। अब मैं जी गई। अरे
जेठानी को बुला दो। बालक मेरा ही है। अब मैं जी गई। अरे स्वामो को
बुला दो। मैं कह दूं कि सन्दूक मेरा हो है, अब मैं जोऊँगी। वे हमारे मस्तक पर हाथ रखकर मुझे आशीर्वाद दें' ।।७,८,९,१०।।
इस गीत में सबसे प्यार की जानेवाली सुलक्षणा गृहिणी के प्रसव-वेदना का और पुत्रोत्पत्ति का वर्णन है। पूर्व की कर्कशा गभिणी से यह कितनी भिन्न है।