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राग कहँरुआ

27 December 2023

1 देखल गइल 1

जब हम रहली रे लरिका गदेलवा हाय रे सजनी, पिया मागे गवनवा कि रे सजनी ॥१॥ 

जब हम भइलीं रे अलप वएसवा, कि हाय रे सजनी पिया गइले परदेसवा कि रे सजनी 11२॥

बरह बरसि पर ट्राजा मोर अइले, कि हाय रे सजनी, बइठे दरवजवा कि रे सजनी ॥३॥

कोलियन अँकली, खिरिकिअन झंकली, कि हाय रे सजनी, पिया बहुते नदनवा कि रे सजनी ॥४॥

बाबा के चोरिये चोरिये हजमा पठवलीं, कि हायरे सजनी, अम्मा भेजे धेनु गइया कि रे सजनी ॥५॥

दिनवा पिअइत्रो रे दुधवा मरीचिया, कि हाय रे सजनी, रतिया तेल अबटनवा, कि रे सजनी ॥६॥

अवटि चोवटि छैला कइलों रे सेअनवा, कि हाय रे सजनी, मागे अलप जोवनवा कि रे सजनी ॥७॥

'जब मैं बहुत छोटी बालिका यो, तब हे सजनी, हमारे प्रीतम, गवना मांगने लगे। पर अब जब मैं बालिका से बाला हुई, तो हे सखी, पिया परदेश चले गये।' ॥१,२।।

'हाय, हे सजनी बारह वर्ष पर मेरे राजा विदेश से लौटे; किन्तु बाहर हो डेवढ़ी के दरवाजे पर बैठ रहे।' ॥३॥

'हाय, हे सखो, मैं ने जब गलो और खिड़की से झाँक कर उन्हें देखा, तं. हमारे पति बहुत नादान दिखाई पड़े। ॥४॥

'हे सखी, मैंने अपने श्वसुर से छिपा कर नाई को पत्र देकर मायके भेजा, तो अम्मा ने धेनु गाय भेज दी ।' ॥५॥

'हाय रे सखी, दिन में मैं उन्हें दूध और मिर्च पिलाने लगी और रात्रि में तेल का मालिश करने लगी। ॥६॥

'तेल लगा कर और खिला-पिला कर जब मैंने प्रियतम को पुष्ट किया, तब वे हमारे छोटे जोवन को मांगने लगे।' ।।७।। 

(२)

चइत मास धन भइले बदरा, पिया गइले परदेसवा, जोहवि बटिया ।।

जाऊ जाउ रे चिरइया उड़ि जाउ देसवा,

ओहि देसवा में जाके बजइहे बंसिया ॥१॥ ओहि देसवा में जाके बजइहे बसिया, तोर बंसिया सवद सुनि अइहें रसिया ॥२॥

उठु उठु रे ननदिया धराउ अपना भैया के बतिया, जाके निहारु छविया ॥३॥

मों अलबेली मोर सैयां रसिया, रस मागे बलमुआ आधे रतिया ॥४।।

'चैत मास आया और आकाश में बादल घने होने लगे। मेरे पति परदेश गये और मैं उनकी बाट जोहने लगी !'

'हे पपोहा, हे कोयल, तुम यहाँ से चली जाओ, उड़कर उसी देश में पहुँच जाओ, जहाँ हमारे पति हैं। और वहाँ जाकर तुम अपती सुरीली तान सुनाओ ।' ॥१॥

'तुम्हारी तान को सुनकर हमारे रसिक अवश्य चले आयेंगे ।'॥२॥

'हे ननद जी उठो, उठो। अपने घर में दीपक जलाओ। अपने भाई की शोभा देखो।' ॥३॥

'मैं अलबेली हूँ। हमारे बालम रसिक हैं। इस आधी रात को ही मुझसे रस मांगते हैं।'

वियोग का वर्णन मामिकता से निभाया गया है। अन्त में संयोग भी हो गया है।

( ३ )

मो मतवालिन होइ जइवों, चनन छेइ छेइ भठिआ बोझइवों, आरे धीरे धीरे अँचिया लगइवों ।।१।। मो मतवालिन ०।। 

सेर भर महुआ सवा सेर पानी, भारे धीरे धीरे महुआ चुअडवो ।। मो मतवालिन० ।। अपने मो पिअवी संया के पिअइवों । अरे बिछुरल प्रेम जगइबों ।। मो मतवालिन, होइ जाइवों ।

'अरे हे सखी प्रोतम आने वाले हैं' में मतवाली हो जाऊँगी। चन्दन कटाकर भट्ठी बोझाऊंगी और धीरे-धीरे उसमें आँच लगाऊँगी। हे सखी ! में मतवाली हो जाऊँगी।' ॥१॥

'एक सेर महुआ और सवा सेर उसमें पानी डालूंगी और धीरे-धीरे शराब निकालूंगी। हे सखी! प्रियतम आने वाले हैं। में मतवाली हो जाऊंगी।'

'उस शराब को में पीऊंगो और संया को भी पिलाऊँगी और तब बिछड़े हुए प्रेम को जगाऊँगी। हे सखी प्रियतम आनेवाले हैं। में मतवाली बनूंगी ।'

कितनी सुन्दर प्रियतम-मिलन की तैयारी है। विरह के सारे अभाव एक ही रात में पूरे करने को आकांक्षा है।

( ४ )

आरे बाजत आले ला ढोल के ढमाका,

से नाचते रे आवे ला ऊ बिसनी कहरवा नु हो ॥१॥ आरे अपना महलिया से रनिया निरेखे, से कतेक नाच ना उ जे नाचे ला कहरवा हो ॥२॥ आरे अपना अटरिया से रजावा निरेखे, कहरवा सँगवा ना रनिया उढ़रलि जाली हो ॥३॥ आरे एक कोस गइली दुसर कोस गइली, लागी रे गइले ना उ जे मधुरी पिअसिया हो ।।४।। गोड़ तोर लागी ला कहरा के छोकड़वा, पगरिया बेचि के ना मोहिके पनिया पिआव हो ।।५।। 

गोड़ तोर लागी ला कहरा के छोकड़वा, पगरिया बेचि के ना मोहि लडुआ खिआव हो ।।६।। गोड़ तोरा लागी ला रानी ठकुरनिया, गहनवा बेचि के ना मोहि के मधुआ पिआव हो ॥७॥. एक कोस गइली दूसर कोस गइली, सिखावे लगले ना कहारा अपनी अकलिया हो ।॥८॥ अरे, खोलहू हो राज-वेटी सोनवा त रूपवा, पहिर रे लेहु न रनिया कंसवा पितरवा हो ।।९।। आरे, खोलहू रे राज-बेटी लहरा पटोरवा, पहिर रे लेहु ना रनिया फटही लुगरिया हो ।।१०।। आरे, जहुँ हम जनितों कहरा मोर बुधि छरवे, बाबा के गउएँ तोहि के फॅसिया दिअइतों ।।११।।

'अरे ढोल और ढप बजता हुआ आ रहा है। और उसी के साथ नाचता हुआ वह सुन्दर और मोहक (बिसनी) कहार-पुत्र भी चला आ रहा है। (बिसनी शब्द का पर्यायवाची शब्द मुझे नहीं मिला। बिसनी का प्रयोग बहुत ही साफ सुथरा रहने वाला, पर साथ ही तुनुक मिजाज) भोजपुरी लोकोक्ति भी है 'का माघ के बीसनी बनल बाड़।' ।।१।।

'अपने महल से रानी उसे निहारती है और कहती है कि वह कहार कितना सुन्दर नाच रहा है।' ॥२॥

'साथ ही अपने कोठे से राजा ने देखा कि कहार के साथ रानी निकली चली जा रही है।' ॥३॥

'रानी एक कोस गई, दूसरे कोस गई तीसरे कोस में उसे मीठी प्यास लगो ।' ॥४॥

'वह खड़ी हो गई और कहार से कहा, 'हे कहार के छोकड़े, में तेरे पाँव पड़ती हूँ। अपनी पगड़ी बेंचकर तुम मुझे पानी पिलाओ। मुझे प्यासः लगी है।' ॥५॥ 

'हे कहार के लड़के, में तेरे पाँव पड़ती हूँ, अपनी पगड़ी बेचकर मुझे लड्डू खिलाओ ।' ।॥६॥

'इस पर कहाँर पुत्र ने कहा- हे रानी, में तुम्हारे पांवों पर गिरता हूँ, तुम अपने गहनों को बेचकर मुझे शराब पिलाओ ।' ।।७।।

'एक कोस गई। दूसरा कोस गई। तीसरे में कहार के छोकड़े ने अपनी बुद्धि सिखलाना शुरू किया ।' ।।८।।

'कहा- हे राजपुत्री, अपने सोने चांदी के जेवर उतार दो और यह काँसा पीतल का गहना पहन लो' ।॥९॥

'हे रानी अपना कीमती लहँगा चादर खोल दो और यह फटी लुंगरी पहन लो।' ॥१०॥

'अब रानी को अपनी वास्तविक अवस्था का बोध हुआ, वह पश्चा- त्ताप करके कहने लगी- 'रे कहाँर यदि में यह जानती कि तुम बुद्धि हर रहे हो, तो में अपने स्वसुर के गांव में हो तुझे फांसी दिलवा देतो ।' ॥११॥

जो भोली-भाली औरत क्षणिक आकर्षण में आकर आततायियों के साथ निकल पड़ती हैं, उनके लिए यह गीत चेतावनी स्वरूप है और सम्भव है कि इससे कितनी भोली-भाली बधुएँ पतन से बच भी सकी हों।

( ५ )

मोरा पिछवरवा रे घनि रे बसवरिया कि ताहि चढ़िना कोइलर बोले विरही बोलिया। कि ताही० ॥१॥

अँगना बहारि के दुअरवा घुरवा लवलीं, घरीलवा लेके ना साँवरि पनिया के जाली हो। घरिलवा० ॥२॥ घइला भरीय भरि अररा चढ़वली,

कि केहू रे नाहीना घरोला अलगावे । से केहू रे० ॥३॥ घोड्या चहल अइले हंसराज देवरू, रचि एका ना देवरू घरिला अलगाव से रचिए कान० ॥४।॥ 

एक हाथे देवरु घइला अलगावें,

कि दूसरे हाथे ना घई अँवरा विलमावे। कि दूसरे हाथे० ।।५।। छोड़ छोड़ देवरा हमरो अँचरवा,

कि सुनि पइहें ना तोरे भइया हो जुलुमिया ॥ कि सुनि० ।।६।। सुनिहें त सुने देहु मोरि भउजड्या, कि भइया अगवा ना ए करवि लड़िकइयाँ ।। कि भैया० ॥७॥

'मेरे घर के पोछे बाँस को घनो कोठ है। उसी पर बैठकर प्रातःकाल हो से कोयल बिरह को जगाने वालो बोलो बोल रही है। इससे मुप्त विर- हिणो का मन चंचल हो उठता है।' ॥१॥

'सुन्दरो ने बोलो सुनते-सुनते ओर मन में प्रियतम की चिन्ता करते- करते, आँगन बहार डाला। उसका कूड़ा उठाकर दरवाजे के बाहर फेरु दिया। और तब घड़ा लेकर वह स्त्रो पानी भरने चलो।' ॥२॥

'घड़ा भर-भर कर बड़ी मिहह्नत से उसने तोर के अरार पर उन्हें चढ़ाया। पर अब वहाँ कोई ऐसा नहीं था, जो घड़ों को सिर पर चढ़ा दे। ॥३॥

'वह प्रतीक्षा करने लगी। इसो बोच घोड़े पर चढ़े हुए उसका हंतराज नामक देवर सामने आ गया। उसने उससे मिन्नत को कि हे देवर, घड़े को सिर पर उठा दो।' ॥४।।

'देवर घोड़े से उतर गया। उसने और दूसरे हाथ से भावज का अँचल लिया ।' ॥५॥ एक हाथ से तो घड़ा उठाया पकड़ कर उसको जाने से रोक

'भावज के दोनों हाय फंसे थे। उसने कहा- अरे देवर, आँचर छोड़ दो, आँचर छोड़ दो। फोई देख लेगा, तो तुम्हारे कठोर भाई से सुना देगा और तब विपत्ति आ जायेगो ! ' ॥६॥

'तुरंत उत्तर मिला- भाई सुनेंगे तो सुनने दो भावज। मैं उनके आगे बिलकुल लड़कपन साध लूंगा। वे बुरा मानेंगे तो कैसे ?' ॥७॥ 


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लेख
भोजपुरी लोक गीत में करुण रस
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"भोजपुरी लोक गीत में करुण रस" (The Sentiment of Compassion in Bhojpuri Folk Songs) एक रोचक और साहित्यपूर्ण विषय है जिसमें भोजपुरी भाषा और सांस्कृतिक विरासत के माध्यम से लोक साहित्य का अध्ययन किया जाता है। यह विशेष रूप से भोजपुरी क्षेत्र की जनता के बीच प्रिय लोक संगीत के माध्यम से भोजपुरी भाषा और सांस्कृतिक परंपराओं को समझने का एक नया दृष्टिकोण प्रदान करता है। भोजपुरी लोक गीत विशेषकर उत्तर भारतीय क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जो सामाजिक, सांस्कृतिक, और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से समृद्ध हैं। इन गीतों में अनेक भावनाएं और रस होते हैं, जिनमें से एक है "करुण रस" या दया भावना। करुण रस का अर्थ होता है करुणा या दया की भावना, जिसे गीतों के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है। भोजपुरी लोक गीतों में करुण रस का अभ्यास बड़े संख्या में किया जाता है, जिससे गायक और सुनने वाले व्यक्ति में गहरा भावनात्मक अनुभव होता है। इन गीतों में करुण रस का प्रमुख उदाहरण विभिन्न जीवन की कठिनाईयों, दुखों, और विषम परिस्थितियों के साथ जुड़े होते हैं। ये गीत अक्सर गाँव के जीवन, किसानों की कड़ी मेहनत, और ग्रामीण समाज की समस्याओं को छूने का प्रयास करते हैं। गीतकार और गायक इन गानों के माध्यम से अपनी भावनाओं को सुनने वालों के साथ साझा करते हैं और समृद्धि, सहानुभूति और मानवता की महत्वपूर्ण बातें सिखाते हैं। इस प्रकार, भोजपुरी लोक गीत में करुण रस का अध्ययन न केवल एक साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भी भोजपुरी सांस्कृतिक विरासत के प्रति लोगों की अद्भुत अभिवृद्धि को संवेदनशीलता से समृद्ध करता है।
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भोजपुरी भाषा का विस्तार

15 December 2023
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भोजपुरी भाषा के विस्तार और सीमा के सम्बन्ध में सर जी० ए० ग्रिअरसन ने बहुत वैज्ञानिक और सप्रमाण अन्वेषण किया है। अपनी 'लिगुइस्टिक सर्वे आफ इण्डिया' जिल्द ५, भाग २, पृष्ठ ४४, संस्करण १९०३ कले० में उन्हो

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भोजपुरी काव्य में वीर रस

16 December 2023
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भोजपुरी में वीर रस की कविता की बहुलता है। पहले के विख्यात काव्य आल्हा, लोरिक, कुंअरसिह और अन्य राज-घरानों के पँवारा आदि तो हैं ही; पर इनके साथ बाथ हर समय सदा नये-नये गीतों, काव्यों की रचना भी होती रही

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जगदेव का पवाँरा जो बुन्देलखण्ड

18 December 2023
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जगदेव का पवाँरा जो बुन्देलखण्ड में गाया जाता है, जिसका संकेत भूमिका के पृष्ठों में हो चुका है- कसामीर काह छोड़े भुमानी नगर कोट काह आई हो, माँ। कसामीर को पापी राजा सेवा हमारी न जानी हो, माँ। नगर कोट

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भोजपुरी लोक गीत

18 December 2023
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३०० वर्ष पहले के भोजपुरी गीत छपरा जिले में छपरा से तोसरा स्टेशन बनारस आने वाली लाइन पर माँझी है। यह माँझी गाँव बहुत प्राचीन स्थान है। यहाँ कभी माँझी (मल्लाह) फिर क्षत्रियों का बड़ा राज्य था। जिनके को

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राग सोहर

19 December 2023
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एक त मैं पान अइसन पातरि, फूल जइसन सूनरि रे, ए ललना, भुइयाँ लोटे ले लामी केसिया, त नइयाँ वझनियाँ के हो ॥ १॥ आँगन बहइत चेरिया, त अवरू लउड़िया नु रे, ए चेरिया ! आपन वलक मों के देतू, त जिअरा जुड़इती नु हो

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राग सोहर

20 December 2023
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ललिता चन्द्रावलि अइली, यमुमती राधे अइली हो। ललना, मिलि चली ओहि पार यमुन जल भरिलाई हो ।।१।। डॅड़वा में वांधेली कछोटवा हिआ चनन हारवा हो। ललना, पंवरि के पार उतरली तिवइया एक रोवइ हो ॥२॥ किआ तोके मारेली सस

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करुण रस जतसार

22 December 2023
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जतसार गीत जाँत पीसते समय गाया जाता है। दिन रात की गृहचर्य्या से फुरसत पाकर जब वोती रात या देव वेला (ब्राह्म मुहूर्त ) में स्त्रियाँ जाँत पर आटा पीसने बैठती हैं, तव वे अपनी मनोव्यथा मानो गाकर ही भुलाना

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राग जंतसार

23 December 2023
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( १७) पिआ पिआ कहि रटेला पपिहरा, जइसे रटेली बिरहिनिया ए हरीजी।।१।। स्याम स्याम कहि गोपी पुकारेली, स्याम गइले परदेसवा ए हरीजी ।।२।। बहुआ विरहिनी ओही पियवा के कारन, ऊहे जो छोड़ेलीभवनवा ए हरीजी।।३।। भवन

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भूमर

24 December 2023
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झूमर शब्व भूमना से बना। जिस गीत के गाने से मस्ती सहज हो इतने आधिक्य में गायक के मन में आ जाय कि वह झूमने लगे तो उसो लय को झूमर कहते हैं। इसी से भूमरी नाम भी निकला। समूह में जब नर-नारी ऐसे हो झूमर लय क

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26 December 2023
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खाइ गइलें हों राति मोहन दहिया ।। खाइ गइलें ० ।। छोटे छोटे गोड़वा के छोटे खरउओं, कड़से के सिकहर पा गइले हो ।। राति मोहन दहिया खाई गइले हों ।।१।। कुछु खइलें कुछु भूइआ गिरवले, कुछु मुँहवा में लपेट लिहल

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राग कहँरुआ

27 December 2023
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जब हम रहली रे लरिका गदेलवा हाय रे सजनी, पिया मागे गवनवा कि रे सजनी ॥१॥  जब हम भइलीं रे अलप वएसवा, कि हाय रे सजनी पिया गइले परदेसवा कि रे सजनी 11२॥ बरह बरसि पर ट्राजा मोर अइले, कि हाय रे सजनी, बइठे द

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भजन

27 December 2023
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ऊधव प्रसंग ( १ ) धरनी जेहो धनि विरिहिनि हो, घरइ ना धीर । बिहवल विकल बिलखि चित हो, जे दुवर सरीर ॥१॥ धरनी धीरज ना रहिहें हो, विनु बनवारि । रोअत रकत के अँसुअन हो, पंथ निहारि ॥२॥ धरनी पिया परवत पर हो,

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भजन - २५

28 December 2023
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(परम पूज्या पितामही श्रीधर्म्मराज कुंअरिजी से प्राप्त) सिवजी जे चलीं लें उतरी वनिजिया गउरा मंदिरवा बइठाइ ।। बरहों बरसि पर अइलीं महादेव गउरा से माँगी ले बिचार ॥१॥ एही करिअवा गउरा हम नाहीं मानबि सूरुज व

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बारहमासा

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बारहो मास में ऋतु-प्रभाव से जैसा-जैसा मनोभाव अनुभूत होता है, उसी को जब विरहिणी ने अपने प्रियतम के प्रेम में व्याकुल होकर जिस गीत में गाया है, उसी का नाम 'बारहमासा' है। इसमें एक समान ही मात्रा होती हों

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अलचारी

30 December 2023
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'अलचारी' शब्द लाचारी का अपभ्रंश है। लाचारी का अर्थ विवशता, आजिजी है। उर्दू शायरी में आजिजो पर खूब गजलें कही गयी हैं और आज भी कही जाती हैं। वास्तव में पहले पहल भोजपुरी में अलचारी गीत का प्रयोग केवल आजि

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खेलवना

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इस गीत में अधिकांश वात्सल्य प्रेम हो गाया जाता है। करुण रस के जो गोत मिले, वे उद्धत हैं। खेलवना से वास्तविक अर्थ है बच्चों के खेलते बाले गीत, पर अब इसका प्रयोग भी अलचारी को तरह अन्य भावों में भी होने

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देवी के गीत

30 December 2023
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नित्रिया के डाड़ि मइया लावेली हिंडोलवा कि झूलो झूली ना, मैया ! गावेली गितिया की झुली झूली ना ।। सानो बहिनी गावेली गितिया कि झूली० ॥१॥ झुलत-झुलत मइया के लगलो पिसिया कि चलि भइली ना मळहोरिया अवसवा कि चलि

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विवाह क गात

1 January 2024
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तर वहे गंगा ऊपर बहे जमुना रे, सुरसरि बहे बीच घार ए । ताहि पर बाबा रे हुमिआ जे करेले, चलि भइले बेटी के लगन जी ॥१॥ हथवा के लेले बावा लोटवा से डोरिया, कान्हावा धोती धई लेलनि रे । पूरब खोजले बावा पच्छिम ख

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विवाह क गात

1 January 2024
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तर वहे गंगा ऊपर बहे जमुना रे, सुरसरि बहे बीच घार ए । ताहि पर बाबा रे हुमिआ जे करेले, चलि भइले बेटी के लगन जी ॥१॥ हथवा के लेले बावा लोटवा से डोरिया, कान्हावा धोती धई लेलनि रे । पूरब खोजले बावा पच्छिम ख

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पूरबा गात

3 January 2024
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( १ ) मोरा राम दूनू भैया से बनवा गइलनि ना ।। दूनू भैया से बनवा गइलनि ना ।। भोरही के भूखल होइहन, चलत चलत पग दूखत होइन, सूखल होइ हैं ना दूनो रामजी के ओठवा ।। १ ।। मोरा दूनो भैया० 11 अवध नगरिया से ग

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कजरी

3 January 2024
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( १ ) आहो बावाँ नयन मोर फरके आजु घर बालम अइहें ना ।। आहो बााँ० ।। सोने के थरियवा में जेवना परोसलों जेवना जेइहें ना ॥ झाझर गेड़ वा गंगाजल पानी पनिया पीहें ना ॥ १ ॥ आहो बावाँ ।। पाँच पाँच पनवा के बिरवा

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रोपनी और निराई के गीत

3 January 2024
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अपने ओसरे रे कुमुमा झारे लम्बी केसिया रे ना । रामा तुरुक नजरिया पड़ि गइले रे ना ।। १ ।।  घाउ तुहुँ नयका रे घाउ पयका रे ना । आवउ रे ना ॥ २ ॥  रामा जैसिह क करि ले जो तुहूँ जैसिह राज पाट चाहउ रे ना । ज

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हिंडोले के गीत

4 January 2024
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( १ ) धीरे बहु नदिया तें धीरे बहु, नदिया, मोरा पिया उतरन दे पार ।। धीरे वहु० ॥ १ ॥ काहे की तोरी वनलि नइया रे धनिया काहे की करूवारि ।। कहाँ तोरा नैया खेवइया, ये बनिया के धनी उतरइँ पार ।। धीरे बहु० ॥

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मार्ग चलते समय के गीत

4 January 2024
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( १ ) रघुवर संग जाइवि हम ना अवध रहइव । जी रघुवर रथ चढ़ि जइहें हम भुइयें चलि जाइबि । जो रघुवर हो बन फल खइहें, हम फोकली विनि खाइबि। जौं रघुवर के पात बिछइहें, हम भुइयाँ परि जाइबि। अर्थ सरल है। हम ना० ।।

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विविध गीत

4 January 2024
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(१) अमवा मोजरि गइले महुआ टपकि गइले, केकरा से पठवों सनेस ।। रे निरमोहिया छाड़ दे नोकरिया ।॥ १ ॥ मोरा पिछुअरवा भीखम भइया कयथवा, लिखि देहु एकहि चिठिया ।। रे निरमोहिया ।॥ २ ॥ केथिये में करवों कोरा रे क

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पूर्वी (नाथसरन कवि-कृत)

5 January 2024
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(८) चड़ली जवनियां हमरी बिरहा सतावेले से, नाहीं रे अइले ना अलगरजो रे बलमुआ से ।। नाहीं० ।। गोरे गोरे बहियां में हरी हरी चूरियाँ से, माटी कइले ना मोरा अलख जोबनवाँ से। मा० ।। नाहीं० ॥ झिनाँ के सारी मो

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