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भँड़ेहरि

9 November 2023

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रामदत्त के मेहरारू गोरी रोज सवेरे नदी तीरे, जहाँ बान्ह बनावल गइल बा, जूठ बर्तन माँजे आ जाले जब एहर से जाये के मोका मिलेला ओकरा के जरूर देखी ला। अब ओखरा संगे संगे ओकरा बर्तनो के चीन्हि लेले बानी एगो पचकल तसला, एगी मटिही कराही, दूगो थरिया आ एगो कलछुलि, बस इहे।

आजु एगो नया बात सोचली ह ई गोरी भारत माता हवे एकर करिखाइल पचकल तसला भूदानी राजनीति नियर लागत बा ई असली सर्वोदय पात्र हवे एकर लोहा नियर लागे वाली कराही सुच्चा राजनीतिक कराही हवे। भीतर तेल के चिकनाई वा बहरा पेनी में करिया के तह बलि वा करिखा दूर- दूर ले पानी में भारत का दूगो घरिया में से एगो टोन के आ एगो पोतर के बा एगो में स्वार्थवादी खालन आ एगो में नांव के समाजवादी कलजुलि से विरोधी पार्टियन के छ नारा परोसाला आ ई भारत माता का करे ले ? सगरे विकास के भड़ेहरि बटोरि के झखेले। गाँव में रहतव कठिन बा

गाँव में एगो मुकदमाबाज सज्जन बाइन सुविधा खातिर उनकर नाँव कचहरी सिंह मानि लिहल जाव। एक दिन सिंह साहेब ब्रह्म मुहूर्त में खटिया छोड़लन, आपन दूनों हाथ देखि के भगवान के नाँव लिहलन। जल्दी-जल्दी निवृत्त होके एने ओने तकलन देखलन, कहीं केहू नइखे, लाइन क्लियर वा वस्ता बगल में दबवलन आ निहुरल निहुरल बान्ह का ओरि फलगरे बदलन। बाकी गोरी वर्तन मौजे आ गइलि रहे।

गोरी का तसला पर बालू खरखरात रहे उठि गईलि नजरि कचहरी सिंह के एना नाहीं काहे अइसन हो जाला कि जवना चौज के हम ना देखल चाहीं ला ओही पर आंख दरि जाले। जा, साइति बिगरलि

ओह पार सिंह साहेब से भेंट भइलि त मुँह में बरबरात रहलन-तनिको सहर नइखे बद गली महरानी भंड़ेहरि ले-ले बीच रहे लोग फजिरे- फजिरे साइति सगुन पर निकलेलन ट्रेन के इहे टाइम हवे, चाहे पूरब जाई चाहे पछिम एही घरी लोग घर से बहरियालन तवन रोज एकर ईहे धन्धा वा मन करत वा कि लवटि के कुल्हि वर्तन अँटहेरि के नदी में फेंक दीं। एक त करिखहा तसला दूसरे जुठ आ तीसरे खलिहा लडकल! हे परभू जी पता ना आजु का होनिहारी वा मोकदमा के काम ठहरल। ई समुरो विखड़वलसि लवटी ला त मजा चिखाई ला। देखवि कि काल्हि से कइसे ई नुमाइस लगावे इहाँ अनगुत्ते इठिहें! पता ना इनका वाप का सेवट में नदी वा कि इनकर दादा घाटि कोनले बाड़न कि ई बान्ह का पासे बइठे के पट्टा लिखवले बाड़ी!

हम जानि गइलों अब दिन भर के खुराक मिलि गइलि अब बकवास नधइलि त नधडले रही। रामदत्त वो नीक ना कइली जिमदार जरि के खोता! बाकिर जरे लायक बा कवन चीज ? आप लोग कचहरी सिंह के देखले होइबि जा 'सीस पगा न झगा तन में वाली बाति चाहे पूरी तरह साँच नहियो होखे त 'धोती फटो दुपटी, अरु पाँय उपानह की नहि सामा' वाली बात त उनकरा पर हू- बहू उतरि जाले बाकिर एकर मतलब ई ना कि बाबू साहेब सुदामा जी हवन । ना, अगर कवनो पौराणिक पात्र से उनकर तुलना करहीं के होखे त आप लोग उनकरा के खुशी-खुशी नारद जी कहि सकी ला बाकिर एगो गड़बड़ वा नारद जी का बारे में कवनो पुराण में ई चर्चा ना ओवेले कि ऊ विष्णु भगवान का इजलासन में रुपया छोटत फिरेलन। एने हमार कचहरी सिंह बाड़न कि हाकिम, वकील, आ बाबू लोगन का टेबुल पर पइसा भा नोट के गड्डी खिसकावल करेलन । ई कचहरी क्षेत्र के असली तपसी हवन भूखि पिआसि जीति ले ले बाड़न। सगरे दिन बिना कोइला पानी के इंजन जूझत रही। ई सीत ताप के तनिको ना गँवेरेलनि कठिन जाड़ एगो सूती चद्दरि पर कटा जाई। दाढ़ी बढ़लि रही। देहि उकठलि रही। साँचो के मनई कादो धूहा नियर धाहत रही। आ अइसहीं बीति जाई एगो ना कई कई गो जनम जिनिगी के माने लड़ाई लड़ाई के माने लूट, कुछ मिली, जायज नजायज । अब आजु सबैरहीं खाली तसला लउकल खिसिआइल कवनो बेजाँय बा ?

बाकी कसूर केकर बा ? भँड़ेहरि कहा जाउ ?

असल में बेचारा तसला के कवनो दोष ना ओह के माँजे वाली जवन गरीब गोरी बा ओही के कुल्हि कसूर बा ऊ गरीब बिआ त ओकरा कुरूप होखे के चाहीं, तसला नियर एने ओखर सुघराई बा कि जूठ अँड़ेहरि से कवनो मेल नइखे बइठत । रसगर डाढ़ि पर आवे जावे वाला के आँखि उठति नइखे कि तबले बर्तन के माँछी भिनिके लागति बाड़ी स। कहाँ ऊ रूप आ कहाँ करिखही कराही कचहरी सिंह खिसिआत का झूठ बाड़न ? का भइल जे चारू ओरि माटी से घेराइलि बनिहारिनि बिटिया का सुघराइयो में मटिए के सुघराई होले! अइसन माटी के भेली कि जेकर रवा-रवा गरीबी का घाम में छितिरा जाला । अथाह जिनिगी का पानी के परछँहियो ओके गला देले! हम जवन देखत बानी तवन अपना देखे वाला संस्कारन के देखत बानी नाहीं त उहाँ का बा देखे लायक ? सब कुछ दुदुकारल अनगराहित! गोरी ना ऊ घूर हवे गरीबी के घूर बहुत भारी माने पूरा समाज के घूर ओह घूर पर जो एगो उज्जर टटका धतूर जामि के खिलि गइल त का भइल ? का ऊ कमल बन हो गइल ? घूर जवले कचहरी सिंह आ महंथ जी जिअत बाड्न तबले घूरे बनल रही। साँचो, एक दिन महंथो जी उठलन त एक खाँची बातिन के फटकरुआ बहारन ओकरा ऊपर उझिलि दिहलन घूर राम का कुछु बोले के त बा ना, चुपचाप सहि लिहलन। अब किस्सा मुखतसर में स्वामी जी भा महंथ जी के सुनीं।

महंथ जी भगवान के भक्त हवन भक्ति का कानून में आइल बा कि सवेरे-सवेरे स्नान होखे के चाहीं स्नान का पाछे तिलक त्रिपुण्ड, आसन-ध्यान। इहे उनकर जिअका हवे। ऊ खूब बड़हर मकरा नियर रोज पूजा के जाला तानि के बइठि जालन आ ओह जाला से पूड़ी, मिठाई, दूध, चीनी, फल रुपया आ मान-सम्मान के कीड़ा फतिगा भगवान भेजत रहेलन । लोग कहेला कि महंथ जी के बाप कवनो गाँव के जिमदार रहलन। बड़ा दुलार हुंकार से उनकर पालन पोषण भइल जिमदारी टूटलि त नून तेल के कठिन परती तूरे के परल पिता का गुजरला का बाद एही कठिनाई से बबुआ जी स्वामी जी हो गइलीं अब एह ईश्वर भक्ति का सनातन जिमदारी के के तूरी ? तवन स्वामी जी भजन भाव में सबेरे का बेरा बूड़त-उतरात नहाये चललन त उनकरा ले पहिले पानी का छोपा गोरी हाजिर चुपचाप बासन पर हाथ चलत बा। अब का? साधू बिगड़ल " जे था से तेवन का इहे बखत हवे बर्तन माँजे के रे चंडालिनि! तमाम जल भरनही! राम राम हई देखों, तमाम खरकटाइल आ जरल भात के खिखोरी पानी का ऊपर पौरति था ना जाने कवना अनाज के भात हवे । अरे, ई त बजड़ा जनात बा। जे बा से तेवन अतना काहे के रोन्हि दिहली हवे रे ? तनिको सहूर नइखे कुल्हि जल करिखा से भरभट्ट कइलसि साक्षात कलयुग घाटि पर उतरि गइल बा ए रामजी, अब कहाँ नहाई धोई ? रोज-रोज एकर इहे धंधा वा रोज सोचत बानी कि तनी सेकराहे आई, तबले ईहे हाजिर अरे, देख रमदतवा वो, ई वेरा हवे अदिमी के नहाये धोवे के तनी देखि के चलु शिव हो, शिव हो तोरा से रोज कहत बानी पानी गन्दा मति करु ई भगवान पर चढ़ी। साधु-संत आ देवता पितर से डेराइल करु जे वा से..... । -

स्वामी जी वरवरात बान्ह का ओरि बढ़लन ओह पार नहइहन नदी त छोटि वा बाकी पार होखे खातिर बाँस का खम्हन पर बाँस बिछा के बान्ह बनल या बाँस बेतरतीब बाड़न से आवे जाए में भरपूर सरकस करे के परत बा ई बान्ह नइखे छितिराइल इहे सबूत वा कि गाँव छितिरा गइल बा । इहे गाँव के तस्वीर भइल बा। गाँव का सुख-दुख का दूनों किनारा के जोड़े वाला समाज के बान्ह चहूँ आज केतना खड़खड़ा गइल वा! एकदम डगमग, डेरवना, उखड़ल, कवनो भरोसा ना। अब गोड़ फिसलल, अब गिरलों। गाँव का टूटलि जिनिगी के टुटहा बान्ह स्वामी जी चटाकी निकालि के हाथ में ले लिहलन शिव शिव करत निबुकि गइलन ठीक ओही घरी बसन्तू बाबू उहाँ चोहपलन स्वामी जी का ओरि देखि के अइसन मुँह बिजुकवलन जइसे सरल आम के गोपी घोटा गइलि ।

ई बाबू ओह बाबू के बेटवा हवन जेकर हर गोरी के आदिमी जोतेला । पाँच बरिस इन्टर में रिसर्च करत हो गइल। कालेज में प्रिपरेशन लीव हो गइल बा गंभीर पढ़ाई खातिर गाँव पर आइल बाड़न जोहत फिरत बाड़न कहाँ घूमे- फिरे लायक जगह बा। एक दिन ऊ घोषणा कइलन कि गाँव में बस इहे एगो 'ब्यूटीफूल प्लेस' बा इहाँ बान्ह से तनिक हटि के जवन दूनो किनारा पर टोटि आ बन तुलसी के झाड़ी बाड़ी स आ ऊ पानी में झुकलि बाड़ी स तवन अइसन शोभा करति वा कि सिनेमा झूठ सिनेमा वाला त अइसन स्थान के सूंघत फिरेलन स खबर दे दीं त बम्बई से दउरल चलि अइहें स आ का इहे एतना 'सीन' बा ?

बसन्तू बाबू चुनि-चुनि के खतिअवले बाड़न । सुबह का बेरा के शान्त पानी, बान्ह पर डगमगात गोड़ जात लोग, सूरज के उत्तरति किरिनि में नदी के नहान, किनारन के हरियाली, पौरत बत्तक, बुद्धि के उतराति बनमुरगी, ऊँच किनारा आ सपाट बहाव, कुल्हि बहुत-बहुत खूबसूरत! जवन कवनो बदसूरती एह बीच बा त ऊ ई गोरी सबेरहीं सबेरे सगरे जूठ बरतन पसारि के बइठि जाति बा। एकरा चाहीं कि घरही माँजि धो देई नदी का तीरे त बस नहाये खातिर आवे के चाहीं ई आइति, ठाढ़ होके देरी ले कुछु निहारित, पत्थर पर एड़ी रगरित, माटी से माथ मीजित भा एनो-ओने ताकि के ब्लाउज उतारित, फेरू पानी में दुकित, देरी ले मछरी नियर.... तब न अच्छा होइत |

बान्ह पर चढ़ि के रोज नियर ओह दिन बसन्तू बाबू गोरी आ ओकरा बर्तनन के देखि के, निहारि निहारि के खूब नखड़ा कइलन फेरू जइसे हवा खात आइल रहलन ओइसहीं चलि गइलन ।

अब ऊ बाति बता दी जवना का सिलसिला में आजु सोचली है कि हमके ई गोरी भारत माता नियर लागाति बा। आजु अइसन भइल कि गोरी ठीक अपना जूनि पर नदी का किनारे आइलि ।

बान्ह से तनिक हटि के बइठि गइल बइठि के खाली हाथ धोवे लागलि । आजु एकहू जूठ बर्तन ना ले आइलि रहे। कचहरी सिंह अइलन। ओकरी ओरि ताकत मुसकी काटत चलि गइलन स्वामी जी अइलन एकदम अगरा गइलन । बसन्तू बाबू अइलन । फटाफट कैमरा ठीक करे लगलन बढ़िया पोज बा। फोटो के शीर्षक होई 'नदी तीर के अँड़ेहरि।'

बाकी अफसोस, केहू ई ना सोचल कि आखिर रोज-रोज धोआये खातिर आवे वाला बर्तन आजु काहे ना अइलन स

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भोजपुरी के प्रमुख साहित्यकार डॉ. अरुणेश नीरन अपना सम्मोहक रचना से साहित्यिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ले बाड़न. अपना अंतर्दृष्टि वाला कहानी खातिर विख्यात ऊ अइसन कथन बुनत बाड़न जवन भोजपुरी भाषी क्षेत्रन के समृद्ध सांस्कृतिक टेपेस्ट्री से गुंजायमान बा. नीरन के साहित्यिक योगदान अक्सर सामाजिक गतिशीलता के बारीकियन में गहिराह उतरेला, जवन मानवीय संबंधन आ ग्रामीण जीवन के जटिलता के गहन समझ के दर्शावत बा। उनकर लेखन शैली भोजपुरी संस्कृति के सार के समेटले बा, पारंपरिक तत्वन के समकालीन विषय के साथे मिलावत बा। डॉ. अरुणेश नीरन के भोजपुरी भाषा आ धरोहर के संरक्षण आ संवर्धन खातिर समर्पण उनुका काम के निकाय में साफ लउकत बा. एगो साहित्यिक हस्ती के रूप में उहाँ के अतीत आ वर्तमान के बीच सेतु के रूप में खड़ा बानी, ई सुनिश्चित करत कि भोजपुरी साहित्य के अनूठा आवाज उहाँ के अंतर्दृष्टि वाला कलम के तहत पनपत आ विकसित होखत रहे।
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स्वस्ती श्री

4 November 2023
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भोजपुरी क्षेत्र की यह विशेषता है कि वह क्षेत्रीयता या संकीर्णता के दायरे में बँध कर कभी नहीं देखता, वह मनुष्य, समाज और देश को पहले देखता है। हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में भोजपुरी भाषी लोगों का अ

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कविता-खण्ड गोरखनाथ

4 November 2023
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अवधू जाप जप जपमाली चीन्हों जाप जप्यां फल होई। अजपा जाप जपीला गोरप, चीन्हत बिरला कोई ॥ टेक ॥ कँवल बदन काया करि कंचन, चेतनि करौ जपमाली। अनेक जनम नां पातिंग छूटै, जयंत गोरष चवाली ॥ १ ॥ एक अपोरी एकंकार जप

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भरथरी - बारहमासा

4 November 2023
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चन्दन रगड़ी सांवासित हो, गूँथी फूल के हार इंगुर माँगयाँ भरइतो हो, सुभ के आसाढ़ ॥ १ ॥ साँवन अति दुख पावन हो, दुःख सहलो नहि जाय। इहो दुख पर वोही कृबरी हो, जिन कन्त रखले लोभाय ॥ २ ॥ भादो रयनि भयावनि हो, ग

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कबीरदास

4 November 2023
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झीनी झीनी बीनी चदरिया | काहे के ताना काहे के भरनी, कौने तार से बीनी चदरिया | इंगला पिगला ताना भरनी, सुषमन तार से बीनी चदरिया | आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्त गुन तीनो चदरिया | साई को सियत मास दस लागे

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धरमदास

4 November 2023
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सूतल रहली मैं सखिया त विष कइ आगर हो । सत गुरु दिहलेंड जगाइ, पावों सुख सागर हो ॥ १ ॥ जब रहली जननि के अंदर प्रान सम्हारल हो । जबले तनवा में प्रान न तोहि बिसराइव हो ॥ २ ॥ एक बूँद से साहेब, मंदिल बनावल

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पलटू साहेब

4 November 2023
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कै दिन का तोरा जियना रे, नर चेतु गँवार ॥ काची माटि के घैला हो, फूटत नहि बेर । पानी बीच बतासा हो लागे गलत न देर ॥ धूआँ कौ धौरेहर बारू कै पवन लगै झरि जैहे हो, तून ऊपर सीत ॥ जस कागद के कलई हो, पाका फल डा

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लक्ष्मी सखी

4 November 2023
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चल सखी चल धोए मनवा के मइली ॥ कथी के रेहिया कथी के घइली । कबने घाट पर सउनन भइली ॥ चितकर रेहिया सुरत घड़ली । त्रिकुटी भइली ॥ ग्यान के सबद से काया धोअल गइली । सहजे कपड़ा सफेदा हो गइली ॥ कपड़ा पहिरि लछिमी

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बाबू रघुवीर नारायण बटोहिया

4 November 2023
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सुन्दर सुभूमि भैया भारत के देसवा से मोरे प्रान बसे हिम-खोह रे बटोहिया एक द्वार घेरे राम हिम कोतवलवा से तीन द्वार सिधु घहरावे रे बटोहिया जाहु जाहु भैया रे बटोही हिन्द देखि आउ जहवाँ कुहकि कोइलि बोले रे

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हीरा डोम

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हमनी के राति दिन दुखवा भोगत वानों हमन के साहेब से मिनती सुनाइबि हमनों के दुख भगवनओ न देखता जे हमनीं के कबले कलेसवा उठाइब जा पदरी सहेब के कचहरी में जाइब बेधरम होके रंगरेज बानि जाइवि हाय राम! धरम न छोड

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महेन्दर मिसिर

4 November 2023
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एके गो मटिया के दुइगो खेलवना मोर सँवलिया रे, गढ़े वाला एके गो कोंहार कवनो खेलवना के रंग बाटे गोरे-गोरे मोर सँवलिया रे कवनो खेलवना लहरदार कवनो खेलवना के अटपट गढ़निया मोर सँवलिया रे, कवनो खेलवना जिउवामा

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मनोरंजन प्रसाद सिन्हा - मातृभाषा आ राष्ट्रभाषा

6 November 2023
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दोहा जय भारत जय भारती, जय हिन्दी, जय हिन्द । जय हमार भाषा बिमल, जय गुरू, जय गोविन्द ॥ चौपाई ई हमार ह आपन बोली सुनि केहू जनि करे ठठोली ॥ जे जे भाव हृदय के भावे ऊहे उतरि कलम पर आवे ॥ कबो संस्कृत, कबह

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कौना दुखे डोली में रोवति जाति कनियाँ

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भारत स्वतन्त्र भैल साढ़े तीन प्लान गैल बहुत सुधार भैल जानि गैल दुनियाँ चोट के मिलल अधिकार मेहरारून का किन्तु कम भैल ना दहेज के चलनियाँ एहो रे दहेज खाती बेटिहा पेरात बाटे तेली मानों गारि-गारि पेर

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महुआबारी में बहार

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असों आइल महुआबारी में बहार सजनी कोंचवा मातल भुँइया छूए महुआ रसे रसे चूए जबसे बहे भिनुसारे के बेयारि सजनी पहिले हरका पछुआ बहलि झारि गिरवलसि पतवा गहना बीखो छोरि के मुँड़ववलसि सगरे मथवा महुआ कुछू नाहीं

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राम जियावन दास 'बावला'

6 November 2023
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गाँव क बात गीत जनसरिया के होत भोरहरिया में, तेतरी मुरहिया के राग मन मोहइ । राम के रटनियाँ सुगनवा के पिजरा में, ओरिया में टैंगल अँगनवा में सोहइ । माँव-गाँव करैला बरुआ मड़इया में गइयवा होकारि के मड़इया

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सपना

6 November 2023
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सूतल रहली सपन एक देखली मनभावन हो सखिया फूटलि किरिनिया पुरुष असमनवा उजर घर आँगन हो सखिया अँखिया के नीरवा भइल खेत सोनवा त खेत भइलें आपन हो सखिया गोसयाँ के लठिया मुरड्या अस तूरली भगवलीं महाजन हो सखिया

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इमली के बीया

6 November 2023
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लइकाई के एक ठे बात मन परेला त एक ओर हँसी आवेला आ दूसरे और मन उदास हो जाला। अब त शायद ई बात कवनी सपना लेखा बुझाय कि गाँवन में जजमानी के अइसन पक्का व्यवस्था रहे कि एक जाति के दूसर जाति से सम्बंध ऊँच-नीच

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कोजागरी

6 November 2023
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भारत के साहित्य में, इतिहास भी पुराणन में, संस्कृति भा धर्म साधना में, कई गो बड़हन लोगन के जनम आ मरण कुआर के पुनवासी के दिन भइल बाटे। कुआर के पुनवासी- शरदपूर्णिमा के ज्योति आ अमृत के मिलल जुलल सरबत कह

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पकड़ी के पेड़

7 November 2023
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हमरे गाँव के पच्छिम ओर एक ठो पकड़ी के पेड़ बा। अब ऊ बुढ़ा गइल बा। ओकर कुछ डारि ठूंठ हो गइल बा, कुछ कटि गइल बा आ ओकर ऊपर के छाल सुखि के दरकि गइल बा। लेकिन आजु से चालीस बरिस पहिले ऊहो जवान रहल। बड़ा भ

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मिट- गइल-मैदान वाला एगो गाँव

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बरसात के दिन में गाँवे पहुँचे में भारी कवाहट रहे। दू-तीन गो नदी पड़त रही स जे बरसात में उफनि पड़त रही स, कझिया नदी जेकर पाट चौड़ा है, में त आँख के आगे पानिए पानी, अउर नदियन में धार बहुत तेज कि पाँव टि

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हजारीप्रसाद द्विवेदी

7 November 2023
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अपने सभ हमरा के बहुत बड़ाई दिहली जे एह सम्मेलन के सभापति बनवलीं। एह कृपा खातिर हम बहुत आभारी बानी हमार मातृभाषा भोजपुरी जरूर वा बाकिर हम भोजपुरी के कवनो खास सेवा नइखों कइले हम त इहे समझली ह जे अपने सभ

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भगवतशरण उपाध्याय

7 November 2023
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अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, सीवान के अधिवेशन के संयोजक कार्य समिति के सदस्य, प्रतिनिधि अउर इहाँ पधारल सभे जन-गन के हाथ जोरि के परनाम करतानी रउआँ जवन अध्यक्ष के ई भारी पद हमरा के देके हमार जस

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आचार्य विश्वनाथ सिंह

8 November 2023
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महामहिम उपराष्ट्रपति जी, माननीय अतिथिगण, स्वागत समिति आ संचालन- समिति के अधिकारी लोग, प्रतिनिधिगण, आ भाई-बहिन सभे जब हमरा के बतावल गइल कि हम अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का एह दसवाँ अधिवेशन के

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नाटक-खण्ड महापंडित राहुल सांकृत्यायन

8 November 2023
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जोंक नोहर राउत मुखिया बुझावन महतो किसान : जिमदार के पटवारी सिरतन लाल  हे फिकिरिया मरलस जान साँझ विहान के खरची नइखे मेहरी मारै तान अन्न बिना मोर लड़का रोवै का करिहैं भगवान हे फिकिरिया मरलस जान करज

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गबरघिचोर

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गलीज : गाँव के एगो परदेसी युवक गड़बड़ी : गाँव के एगो अवारा युवक घिचोर : गलीज बहू से पैदा गड़बड़ी के बेटा पंच : गाँव के मानिन्द आदमी  गलीज बहू : गलीज के पत्नी आ गबरघिचोर के मतारी जल्लाद, समाजी, दर्शक

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किसान- भगवान

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बाबू दलसिंगार राय बड़ा जुलुमी जमींदार रहलन। ओहू में अंगरेजी पढ़ल- लिखल आ वोकोली पास एगो त करइला अपने तीत दूसरे चढ़ल नीवि पर बाबू साहेब के आपन जिमिदारी जेठ वाली दुपहरिया का सुरुज नियर तपलि रहे। हरी- बंग

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मछरी

9 November 2023
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ताल के पानी में गोड़ लटका के कुंती ढेर देर से बइठल रहे गोड़ के अँगुरिन में पानी के लहर रेसम के डोरा लेखा अझुरा अझुरा जात रहे आ सुपुली में रह-रह के कनकनी उठत रहे, जे गुदगुदी बन के हाड़ में फैल जात रहे।

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भँड़ेहरि

9 November 2023
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रामदत्त के मेहरारू गोरी रोज सवेरे नदी तीरे, जहाँ बान्ह बनावल गइल बा, जूठ बर्तन माँजे आ जाले जब एहर से जाये के मोका मिलेला ओकरा के जरूर देखी ला। अब ओखरा संगे संगे ओकरा बर्तनो के चीन्हि लेले बानी एगो पच

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रजाई

9 November 2023
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आजु कंगाली के दुआरे पर गाँव के लोग फाटि परल वा एइसन तमासा कव्वी नाहीं भइल रहल है। बाति ई बा कि आजु कँगाली के सराध हउवे। बड़ मनई लोगन के घरे कवनो जगि परोजन में गाँव-जवार के लोग आवेला, नात- होत आवेलें,

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तिरिआ जनम जनि दीहऽ विधाता

9 November 2023
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दिदिआ क मरला आजु तीनि दिन हो गइल एह तोनिए दिन में सभ कुछ सहज हो गइल नइखे लागत जइसे घर के कवनो बेकति के मउअति भइल होखे। छोट वहिन दीपितो दिदिआ के जिम्मेदारी सँभारि लेलसि भइआ का चेहरा पर दुख के कवनो चिन्

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पोसुआ

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दूबि से निकहन चउँरल जगत वाला एगो इनार रहे छोटक राय का दुआर पर। ओकरा पुरुष, थोरिके दूर पर एगो घन बँसवारि रहे। तनिके दक्खिन एगो नीबि के छोट फेंड़ रहे। ओहिजा ऊखि पेरे वाला कल रहे आ दू गो बड़-बड़ चूल्हि दू

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तिसरका कुल्ला

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एहर तीनतलिया मोड़ से हो के जो गुजरल होखव रउआ सभे त देखले होखब कि मोड़ के ठीक बाद, सड़क के दहिने, एकदिसाहें से सैकड़न बर्हम बाबा लोग बनल बा.... बहम बाबा के बारे में नइखीं जानत ? अरे नाहीं जी, ब्रह्म आ

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यैन्कियन के देश से बहुरि के

10 November 2023
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बहुत साल पहिले एगो किताब पढ़ले रहलीं राहुल सांकृत्यायन जी के 'घुमक्कड़ शास्त्र' जवना में ऊ लिखले रहलन कि अगर हमार बस चलित त हम सबका घुमक्कड़ बना देतीं। 'अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा' से शुरू क के ऊ बतवले र

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गहमर : एगो बोधिवृक्ष

10 November 2023
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केहू केहू कहेला, गहमर एतना बड़हन गाँव एसिया में ना मिली। केह केहू एके खारिजो कइ देला आ कहला दै मदंवा, एसिया क ह ? एतना बड़ा गाँव वर्ल्ड में ना मिली, वर्ल्ड में बड़ गाँव में रहला के आनन्द ओइसही महसूस ह

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त्रेता के नाव

10 November 2023
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आदमी जिनिगी में बेवकूफी के केतने काम कइल करेला, बाकिर रेलगाड़ी में जतरा करत खानी अखवार कीनि के पढ़ल ओह कुल्ही बेवकूफिन के माथ हवे। ओइसे हम एके खूब नीके तरह जानत बानी, तबो मोका दरमोका हमरो से अइसन मू

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डोण्ट टाक मिडिले-मिडिले

10 November 2023
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आगे जवन हम बतावे जात हईं तवन भोजपुरियन बदे ना, हमरा मतिन विदेशियन बदे हौ त केहू कह सकत हौ कि भइया, जब ईहे हो त अंग्रेजी में बतावा, ई भोजपुरी काहे झारत हउअ ? जतावल चाहत हउअ का कि तोके भोजपुरी आवेला

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एगो किताब पढ़ल जाला

अन्य भाषा के बारे में बतावल गइल बा

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