रामदत्त के मेहरारू गोरी रोज सवेरे नदी तीरे, जहाँ बान्ह बनावल गइल बा, जूठ बर्तन माँजे आ जाले जब एहर से जाये के मोका मिलेला ओकरा के जरूर देखी ला। अब ओखरा संगे संगे ओकरा बर्तनो के चीन्हि लेले बानी एगो पचकल तसला, एगी मटिही कराही, दूगो थरिया आ एगो कलछुलि, बस इहे।
आजु एगो नया बात सोचली ह ई गोरी भारत माता हवे एकर करिखाइल पचकल तसला भूदानी राजनीति नियर लागत बा ई असली सर्वोदय पात्र हवे एकर लोहा नियर लागे वाली कराही सुच्चा राजनीतिक कराही हवे। भीतर तेल के चिकनाई वा बहरा पेनी में करिया के तह बलि वा करिखा दूर- दूर ले पानी में भारत का दूगो घरिया में से एगो टोन के आ एगो पोतर के बा एगो में स्वार्थवादी खालन आ एगो में नांव के समाजवादी कलजुलि से विरोधी पार्टियन के छ नारा परोसाला आ ई भारत माता का करे ले ? सगरे विकास के भड़ेहरि बटोरि के झखेले। गाँव में रहतव कठिन बा
गाँव में एगो मुकदमाबाज सज्जन बाइन सुविधा खातिर उनकर नाँव कचहरी सिंह मानि लिहल जाव। एक दिन सिंह साहेब ब्रह्म मुहूर्त में खटिया छोड़लन, आपन दूनों हाथ देखि के भगवान के नाँव लिहलन। जल्दी-जल्दी निवृत्त होके एने ओने तकलन देखलन, कहीं केहू नइखे, लाइन क्लियर वा वस्ता बगल में दबवलन आ निहुरल निहुरल बान्ह का ओरि फलगरे बदलन। बाकी गोरी वर्तन मौजे आ गइलि रहे।
गोरी का तसला पर बालू खरखरात रहे उठि गईलि नजरि कचहरी सिंह के एना नाहीं काहे अइसन हो जाला कि जवना चौज के हम ना देखल चाहीं ला ओही पर आंख दरि जाले। जा, साइति बिगरलि
ओह पार सिंह साहेब से भेंट भइलि त मुँह में बरबरात रहलन-तनिको सहर नइखे बद गली महरानी भंड़ेहरि ले-ले बीच रहे लोग फजिरे- फजिरे साइति सगुन पर निकलेलन ट्रेन के इहे टाइम हवे, चाहे पूरब जाई चाहे पछिम एही घरी लोग घर से बहरियालन तवन रोज एकर ईहे धन्धा वा मन करत वा कि लवटि के कुल्हि वर्तन अँटहेरि के नदी में फेंक दीं। एक त करिखहा तसला दूसरे जुठ आ तीसरे खलिहा लडकल! हे परभू जी पता ना आजु का होनिहारी वा मोकदमा के काम ठहरल। ई समुरो विखड़वलसि लवटी ला त मजा चिखाई ला। देखवि कि काल्हि से कइसे ई नुमाइस लगावे इहाँ अनगुत्ते इठिहें! पता ना इनका वाप का सेवट में नदी वा कि इनकर दादा घाटि कोनले बाड़न कि ई बान्ह का पासे बइठे के पट्टा लिखवले बाड़ी!
हम जानि गइलों अब दिन भर के खुराक मिलि गइलि अब बकवास नधइलि त नधडले रही। रामदत्त वो नीक ना कइली जिमदार जरि के खोता! बाकिर जरे लायक बा कवन चीज ? आप लोग कचहरी सिंह के देखले होइबि जा 'सीस पगा न झगा तन में वाली बाति चाहे पूरी तरह साँच नहियो होखे त 'धोती फटो दुपटी, अरु पाँय उपानह की नहि सामा' वाली बात त उनकरा पर हू- बहू उतरि जाले बाकिर एकर मतलब ई ना कि बाबू साहेब सुदामा जी हवन । ना, अगर कवनो पौराणिक पात्र से उनकर तुलना करहीं के होखे त आप लोग उनकरा के खुशी-खुशी नारद जी कहि सकी ला बाकिर एगो गड़बड़ वा नारद जी का बारे में कवनो पुराण में ई चर्चा ना ओवेले कि ऊ विष्णु भगवान का इजलासन में रुपया छोटत फिरेलन। एने हमार कचहरी सिंह बाड़न कि हाकिम, वकील, आ बाबू लोगन का टेबुल पर पइसा भा नोट के गड्डी खिसकावल करेलन । ई कचहरी क्षेत्र के असली तपसी हवन भूखि पिआसि जीति ले ले बाड़न। सगरे दिन बिना कोइला पानी के इंजन जूझत रही। ई सीत ताप के तनिको ना गँवेरेलनि कठिन जाड़ एगो सूती चद्दरि पर कटा जाई। दाढ़ी बढ़लि रही। देहि उकठलि रही। साँचो के मनई कादो धूहा नियर धाहत रही। आ अइसहीं बीति जाई एगो ना कई कई गो जनम जिनिगी के माने लड़ाई लड़ाई के माने लूट, कुछ मिली, जायज नजायज । अब आजु सबैरहीं खाली तसला लउकल खिसिआइल कवनो बेजाँय बा ?
बाकी कसूर केकर बा ? भँड़ेहरि कहा जाउ ?
असल में बेचारा तसला के कवनो दोष ना ओह के माँजे वाली जवन गरीब गोरी बा ओही के कुल्हि कसूर बा ऊ गरीब बिआ त ओकरा कुरूप होखे के चाहीं, तसला नियर एने ओखर सुघराई बा कि जूठ अँड़ेहरि से कवनो मेल नइखे बइठत । रसगर डाढ़ि पर आवे जावे वाला के आँखि उठति नइखे कि तबले बर्तन के माँछी भिनिके लागति बाड़ी स। कहाँ ऊ रूप आ कहाँ करिखही कराही कचहरी सिंह खिसिआत का झूठ बाड़न ? का भइल जे चारू ओरि माटी से घेराइलि बनिहारिनि बिटिया का सुघराइयो में मटिए के सुघराई होले! अइसन माटी के भेली कि जेकर रवा-रवा गरीबी का घाम में छितिरा जाला । अथाह जिनिगी का पानी के परछँहियो ओके गला देले! हम जवन देखत बानी तवन अपना देखे वाला संस्कारन के देखत बानी नाहीं त उहाँ का बा देखे लायक ? सब कुछ दुदुकारल अनगराहित! गोरी ना ऊ घूर हवे गरीबी के घूर बहुत भारी माने पूरा समाज के घूर ओह घूर पर जो एगो उज्जर टटका धतूर जामि के खिलि गइल त का भइल ? का ऊ कमल बन हो गइल ? घूर जवले कचहरी सिंह आ महंथ जी जिअत बाड्न तबले घूरे बनल रही। साँचो, एक दिन महंथो जी उठलन त एक खाँची बातिन के फटकरुआ बहारन ओकरा ऊपर उझिलि दिहलन घूर राम का कुछु बोले के त बा ना, चुपचाप सहि लिहलन। अब किस्सा मुखतसर में स्वामी जी भा महंथ जी के सुनीं।
महंथ जी भगवान के भक्त हवन भक्ति का कानून में आइल बा कि सवेरे-सवेरे स्नान होखे के चाहीं स्नान का पाछे तिलक त्रिपुण्ड, आसन-ध्यान। इहे उनकर जिअका हवे। ऊ खूब बड़हर मकरा नियर रोज पूजा के जाला तानि के बइठि जालन आ ओह जाला से पूड़ी, मिठाई, दूध, चीनी, फल रुपया आ मान-सम्मान के कीड़ा फतिगा भगवान भेजत रहेलन । लोग कहेला कि महंथ जी के बाप कवनो गाँव के जिमदार रहलन। बड़ा दुलार हुंकार से उनकर पालन पोषण भइल जिमदारी टूटलि त नून तेल के कठिन परती तूरे के परल पिता का गुजरला का बाद एही कठिनाई से बबुआ जी स्वामी जी हो गइलीं अब एह ईश्वर भक्ति का सनातन जिमदारी के के तूरी ? तवन स्वामी जी भजन भाव में सबेरे का बेरा बूड़त-उतरात नहाये चललन त उनकरा ले पहिले पानी का छोपा गोरी हाजिर चुपचाप बासन पर हाथ चलत बा। अब का? साधू बिगड़ल " जे था से तेवन का इहे बखत हवे बर्तन माँजे के रे चंडालिनि! तमाम जल भरनही! राम राम हई देखों, तमाम खरकटाइल आ जरल भात के खिखोरी पानी का ऊपर पौरति था ना जाने कवना अनाज के भात हवे । अरे, ई त बजड़ा जनात बा। जे बा से तेवन अतना काहे के रोन्हि दिहली हवे रे ? तनिको सहूर नइखे कुल्हि जल करिखा से भरभट्ट कइलसि साक्षात कलयुग घाटि पर उतरि गइल बा ए रामजी, अब कहाँ नहाई धोई ? रोज-रोज एकर इहे धंधा वा रोज सोचत बानी कि तनी सेकराहे आई, तबले ईहे हाजिर अरे, देख रमदतवा वो, ई वेरा हवे अदिमी के नहाये धोवे के तनी देखि के चलु शिव हो, शिव हो तोरा से रोज कहत बानी पानी गन्दा मति करु ई भगवान पर चढ़ी। साधु-संत आ देवता पितर से डेराइल करु जे वा से..... । -
स्वामी जी वरवरात बान्ह का ओरि बढ़लन ओह पार नहइहन नदी त छोटि वा बाकी पार होखे खातिर बाँस का खम्हन पर बाँस बिछा के बान्ह बनल या बाँस बेतरतीब बाड़न से आवे जाए में भरपूर सरकस करे के परत बा ई बान्ह नइखे छितिराइल इहे सबूत वा कि गाँव छितिरा गइल बा । इहे गाँव के तस्वीर भइल बा। गाँव का सुख-दुख का दूनों किनारा के जोड़े वाला समाज के बान्ह चहूँ आज केतना खड़खड़ा गइल वा! एकदम डगमग, डेरवना, उखड़ल, कवनो भरोसा ना। अब गोड़ फिसलल, अब गिरलों। गाँव का टूटलि जिनिगी के टुटहा बान्ह स्वामी जी चटाकी निकालि के हाथ में ले लिहलन शिव शिव करत निबुकि गइलन ठीक ओही घरी बसन्तू बाबू उहाँ चोहपलन स्वामी जी का ओरि देखि के अइसन मुँह बिजुकवलन जइसे सरल आम के गोपी घोटा गइलि ।
ई बाबू ओह बाबू के बेटवा हवन जेकर हर गोरी के आदिमी जोतेला । पाँच बरिस इन्टर में रिसर्च करत हो गइल। कालेज में प्रिपरेशन लीव हो गइल बा गंभीर पढ़ाई खातिर गाँव पर आइल बाड़न जोहत फिरत बाड़न कहाँ घूमे- फिरे लायक जगह बा। एक दिन ऊ घोषणा कइलन कि गाँव में बस इहे एगो 'ब्यूटीफूल प्लेस' बा इहाँ बान्ह से तनिक हटि के जवन दूनो किनारा पर टोटि आ बन तुलसी के झाड़ी बाड़ी स आ ऊ पानी में झुकलि बाड़ी स तवन अइसन शोभा करति वा कि सिनेमा झूठ सिनेमा वाला त अइसन स्थान के सूंघत फिरेलन स खबर दे दीं त बम्बई से दउरल चलि अइहें स आ का इहे एतना 'सीन' बा ?
बसन्तू बाबू चुनि-चुनि के खतिअवले बाड़न । सुबह का बेरा के शान्त पानी, बान्ह पर डगमगात गोड़ जात लोग, सूरज के उत्तरति किरिनि में नदी के नहान, किनारन के हरियाली, पौरत बत्तक, बुद्धि के उतराति बनमुरगी, ऊँच किनारा आ सपाट बहाव, कुल्हि बहुत-बहुत खूबसूरत! जवन कवनो बदसूरती एह बीच बा त ऊ ई गोरी सबेरहीं सबेरे सगरे जूठ बरतन पसारि के बइठि जाति बा। एकरा चाहीं कि घरही माँजि धो देई नदी का तीरे त बस नहाये खातिर आवे के चाहीं ई आइति, ठाढ़ होके देरी ले कुछु निहारित, पत्थर पर एड़ी रगरित, माटी से माथ मीजित भा एनो-ओने ताकि के ब्लाउज उतारित, फेरू पानी में दुकित, देरी ले मछरी नियर.... तब न अच्छा होइत |
बान्ह पर चढ़ि के रोज नियर ओह दिन बसन्तू बाबू गोरी आ ओकरा बर्तनन के देखि के, निहारि निहारि के खूब नखड़ा कइलन फेरू जइसे हवा खात आइल रहलन ओइसहीं चलि गइलन ।
अब ऊ बाति बता दी जवना का सिलसिला में आजु सोचली है कि हमके ई गोरी भारत माता नियर लागाति बा। आजु अइसन भइल कि गोरी ठीक अपना जूनि पर नदी का किनारे आइलि ।
बान्ह से तनिक हटि के बइठि गइल बइठि के खाली हाथ धोवे लागलि । आजु एकहू जूठ बर्तन ना ले आइलि रहे। कचहरी सिंह अइलन। ओकरी ओरि ताकत मुसकी काटत चलि गइलन स्वामी जी अइलन एकदम अगरा गइलन । बसन्तू बाबू अइलन । फटाफट कैमरा ठीक करे लगलन बढ़िया पोज बा। फोटो के शीर्षक होई 'नदी तीर के अँड़ेहरि।'
बाकी अफसोस, केहू ई ना सोचल कि आखिर रोज-रोज धोआये खातिर आवे वाला बर्तन आजु काहे ना अइलन स