चन्दन रगड़ी सांवासित हो, गूँथी फूल के हार इंगुर माँगयाँ भरइतो हो, सुभ के आसाढ़ ॥ १ ॥ साँवन अति दुख पावन हो, दुःख सहलो नहि जाय। इहो दुख पर वोही कृबरी हो, जिन कन्त रखले लोभाय ॥ २ ॥
भादो रयनि भयावनि हो, गरजे मेह घहराय । बिजुलि चमके जियरा ललचे हो, केकरा सरन उठ जाय ॥ ३ ॥ कुआर कुसल नहि पाओं हो, ना केऊ आवे ना जाय। पतिया में लिख पठवों, दीन्हें कन्त के हाथ ॥ ४ ॥
कातिक पूरनमासी हो सभ सखि गंगा नहायें। गंगा नहाय लट झूरवें हो, राधा मन पछतायें ॥ ५ ॥ अगहन ठादि अँगनवा हो, पहिरो तसरा का चीर । इहो चौर भेजे मोर बलमुआ हो, जीए लाख बरीस ॥ ६ ॥
पूसहि पाला परि गैले हो, जाड़ा जोर बुझाय नव मन रुइया भरवलों हो, बिनु सँयाँ जाड़ न जाय ॥ ७ ॥ माघहि के सिव तेरस हो सिव वर होय तोहार । फिरिफिरि चितवों मंदिरवा हो बिन पिया भवन उदास ॥ ८ ॥
फागुत पूरनमासी हो, सभ सखि खेलत फाग राधा के हाथ पिचकारी हो, भर-भर मारेली गुलाल ॥ ९ ॥ चैत फूले बन टेसू हो, जब टुण्ड हहराय । फूलत बेला गुलबवा हो, पिया बिनु मोहि न सोहाय ॥ १० ॥ बैसाखहि बसवाँ कटइतों हो, रच के बँगला छवाय। ताहि में सोइतें बलमुआ हो, करितों अंचरवन बयार ॥ ११ ॥ जेठ तपे मिरडहवा हो, बहे हहाय । 'भरथरी' गावे 'बारहमासा' हो, पूजे मन के आस ॥ १२ ॥