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मिट- गइल-मैदान वाला एगो गाँव

7 November 2023

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बरसात के दिन में गाँवे पहुँचे में भारी कवाहट रहे। दू-तीन गो नदी पड़त रही स जे बरसात में उफनि पड़त रही स, कझिया नदी जेकर पाट चौड़ा है, में त आँख के आगे पानिए पानी, अउर नदियन में धार बहुत तेज कि पाँव टिक ना पावे - झारखंड क्षेत्र के पहाड़ी नदियन के आपन रंग आ मिजाज है। रोड्डा तक त आदमी बस से पहुँच जाय बाकिर ओकरा आगे पथरगामा जाए खातिर बैलगाड़ी के इन्तजाम रहे, कम से कम दूगो बैलगाड़ी, एगो कझिया के ए पार एगो ओ पार, नदी के कसहूँ हेल लाँघ के, बच्चा सब त अक्सर हाँ बड़कन के कान्हा प बइठके, ओ पार पहुँचे आ बच्चा सब त चाहे जतना मगन होखे, बड़कन के मुँहे एकट्ठे एक्के गुहार निकले, ए सब से कब मुक्ति मिली भगवान कि भगवान नइखन त का सरकारी नइखे। हालाँकि ऊ दिन पीछे छूटि गइल बा, पुल सब बन गइल बाड़न खूब मजबूत भारवाही पुल, जेकरा ऊपर से अब बैलगाड़ी कम आ कोइला से लदल ट्रक जादे गुजरेली स, पुल के ऊपर से गुजरत पुरान दिन इयाद आवेला त लगेला कि ऊहे नीक दिन रहे, गाँवे पहुँचे के पहिले दूर शहर के कालिज के पढ़निहार हमसभनी के क्लेश कल्मष धुल जात रहे, मन निखर आवत रहे। सॉपिन नदी आ सुन्दर नदी के बीच पसरल- बसल बा ई गाँव- पथरगामा, विश्व के सबसे पुरान पर्वत शृंखला से मण्डलित एह इलकवे के क्षितिज हमरा मस्तिष्क-प्रदेश में फैलल बा, दिशा-ज्ञान देत, केहू जब कहेला भा हम जब कहेलीं 'पुरुष' भा दक्खिन त अपने जनपद के आकाश-दिशा मन आँखन के सोझा खुल खिल उठेले, जेकरा पिछवाई के रूप में हरमेस कवनो धुंधराइल पहाड़-आकृति होखेले, आज से करीब सत्तर करोड़ बरिस पहिले पृथ्वी के पहिल भूगर्भीय हलचल में जेकरा के पश्चिमी भू-विज्ञानी लोग चर्नियन हलचल कहेला-पृथ्वी से बहिराइल 'मैग्मा' के संपुंजित आकारे प्रकार झारखण्ड क्षेत्र के पहाड़ी हई स। अब इहाँ के जमीन में भूकम्प के अनेसा ना थरथराय, जमीन सख्त होके अविचल बन गइल बिया जेकरा के विद्वान लोग कहेला 'टेराफर्मा'- असहों मिजाज बनल बा इहाँ के आदिवासी आ अनादिवासी लोगन के अहथिर शांत आ धीरजधर हैं, त हम कहत रहीं कि एइजा अबहूँ आकाश के अध्यक्षता करेला कवनो पहाड़ी, कवनो बहुमंजिला बिल्डिंग ना, हालाँकि पक्का के दुमंजिला तिमंजिला मकान बन गइल बाड़े से अनेकानेक बौना, चौपट, समय-प्रवाह से घिस गइल ए पहाड़ियन के कन-कन में कतना स्मृति भरल बा ई बूढ़ पहाड़ सब जेकरा आगे सात करोड़ बरिस के उमिर वाला हिमालय बच्चा तरू भर है। बहरहाल, प्रकृति के अनुपम धरोहर संथाल

परगना छोटानागपुर के ए समय- सिद्ध पहाड़न पर ठेकेदारन के लोभदंत गड़ल

वा, जेने-तेने क्रशर के गुगुआहट गूँजत रहेला, खण्ड-खण्ड होके बोल्डर आ

चिप्स में बदलत जा रहल बा ई पहाड़ लोग, जिनकर पाँख अपना बज्र से इन्द्र

पहिलहों काट देते रहन, उनुकर अस्थि-मांस-मज्जा के लूट-खसोट मचल बा,

झारखण्ड के पहाड़ के अरण्य रोदन सुनेवाला केहू नइखे। पहाड़ के दुख-दर्द के

सुनवइया के होई, जबकि जनता के दुख-दर्द के पहाड़ नौकरशाहन के नइखे

लउकत, अर्जुन के चिरइया के आँखि लेखा उनुकर ध्यान बन्हल वा कमीशन से,

रिश्वत से नेता लोग मुँहदुब्बर बा आ जे मुँहज्जवर वा ओकरा मुँह में माल भरल

बा, बोले के कोशिश कहला प गोंगों निकलेला काल्हु के झारखण्ड अलग

राज्य बन जाय त का होई, ए इलाका के भाग्य बदली कि ओही कुछ लोगन के.

जिनिकर भाग्य अइसहूँ बुझाता कि बरियार वा काल्हु के जे होखे, आज त

'ललमटिया' कलमटिया हो गइल बा जसीडीह टेसन ओर से ना जा के पीरपैंती

ओर से केहू पथरगामा जाय त ललमटिया पड़ी आँख में अंजन- अस लागि

जाई इहाँ के नामानुरूप भुँइरंग ओ ललमटिया में उत्तम श्रेणी के कोइला के

खदान निकलल, अब ऊ एशिया के सबसे बड़ कोइला खदानन में गिनाला, जेने

देखों तेने लाम गरदन आ ओकरो से लाम वाँहि वाला, जिराफन के हेठावत मशीन

सब एने से ओने घूमत आ महापेटू ट्रक सब लदल-फदल बाँड़ियात हैं, कोइला

के धूर से ललमटिया अब कलमटिया हो गइल। नीके भइल बाकिर ए महादृश्य

के विष्कंभक में कतना विष वा कोइला क्षेत्र के नौकरशाहन के आँखि बँचा के

कि उनहन के मिली भगत से उछाँड़ में अवैध उत्खनन चलत रहेला, तस्करी के

वाहन ह साइकिल, देखल जा सकेला दूनो ओर बोरन में कोइला के दुर्वह भार

लदले, साइकिल के पक्की सड़क के आखिरी छोर पर सधले, अपने बाँया अलंग

कच्ची प चलत, रीढ़ के पैतालीस डिग्री के कोण प निहुरवले, हैण्डिल पकड़ले,

फी थाना दू रुपया के दर से 'अंखमुँदाई' थमावत, करियर देह के करिखवइले

लोगन के साइकिल कतार देखते मन में निराला के पंक्ति गूँजे लागेला - 'मानव

इहाँ बैल घोड़ा ह' । दिन-भर रात भर आ फेरू दिन-भर चलत रह के लोग

पहुँचला उहाँ, जहाँ ई कांडला बेच के उनहन के चूल्हा सुनुग सके, उनहनो के

चुहानी के छान्दीप धुंआ के धुजा फहरा सके, भले एके बेर बस अतने बाकिर

अतने खातिर कतना. ओह! आ जो कवनो अधिकारी अरिचित परिचित होखे

भा भूले-भटके कवनो हँसमुख चेहरा वाला अधिकारी मिल जाय त तनी पूछीं कि

'ई सब का होता, लडकत वा कुछ त उसकदार जबाब मिली कि 'हमनी के त

जानि के आँखि फेर लेनी जा, ना त ई बेरोजगार नौजवान लोग चोरी-डकैती 

लूटमार करत नजर आइत, सही साँझे गाड़ी घोड़ा छेंकत, उत्पात करत 'आ ए जवाब के आगे नतमस्तक भइला के अलावा अवरु कुछ कहत करत ना बनो।

- ताम-झाम के साथ नौकरशाहन के गाँव में चहुँपाई हमरा इयाद वा कइसे भुलाई ऊ अमिट घाव, जे गाँव के देहिया में लागल जवना मैदान में गाँव के लड़का सब खेलत रहन स, गाँव के ऊ मैदान जवन बहुत बड़ नाहियो होके बचपन खातिर अपार रहे, ओकरे में उन्हनी के खूंटा खेमा गड़ल पता चलल कि ए मैदनवा में ब्लाक आफिस बनी बीडीओ-सीओ अइहें हमनी के हाई इस्कूल में पढ़त रहीं जा, अभी गइले रहीं जा, हाई इस्कूलवा के हमनी के एन०जी० हाई स्कूल' कहत रहीं जा काहे कि पूरा नाम 'नोपचन्द घासीराम हाई स्कूल' लेत लजात रहीं जा-इस्कूल के भवन बनावे से सशर्त दान सहायता क के एगो मारवाड़ी सेठ आपन पुरुखानाम के साइनबोर्ड इस्कूल के माथा प टाँग गइल रहन जेकर भदेश के सकारते पढ़वइयन के लिलार तमतमात रहे—ओ इस्कूल के आपन कवनो मैदान ना रहे, मिडिल इस्कूल के त बलुक एगो छोटक्का मैदान रहलो रहे जे अब वॉलीबॉल (हथकन्दुक) - लायक जँचत रहे, जनमैदनवे हमनी सब के फुटबॉल मैदान रहे, ओइजे ब्लाक आफिस उठल, हमनी के मैदान उठ गइल उजड़ल बचपन के पनाह मिलल गाँव के सीवान प परसल बँगाल में जहाँ कि एकरा पहिले हमनी के साल मे एक्के दिन बटुरत रहीं जा, होली के दिन-कि रात होलिका जरावे आ होरहा भूँजे; उहे डेंगाल हमनी के फुटबॉल के आपन केन्द्रबिन्दु मतिन धारण कइलस मन पेरला, इलाकाई प्रतियोगिता में कप भा शिल्ड के जगहा खस्सी रहत रहे, फाइनल मैच के दिन मैदान के हाशिया प एगो खूँटा से बन्हल खस्सी के मिमियाअट खेलवइयन के जोश बढ़ा देते रहे, कहाँ अवरू होई अइसन जीयत खेल, हम त मांसाहारी ना रहीं रहीं खाँटी शाकाहारी आता ऊपर निखुराह, बाकिर ओ खस्सी के पगही खोल के गाँवे ले आवे के सुख से बड़ कवनो अवरू सुख ना जनात रहे। हमनी के बचपन त खेलत-कूदत बीत गइल, बरिसन पहिलहीं गाँवे गइला पर देखलों कि अब लइकन खातिर खेले कूदे के कवनो जगहा ना बाँचल, विकास के नाम प गाँव ओ डँगाल तक पसर गइल, गाँव के बचवन खातिर मैदान अब टेलिविजन के चौकोर परदा-भर बँचल, तेन्दुलकर- कुम्बले के चौका- छक्का पर थपरी बजावत रहेला लोग उन्हन लोग के खेल आँख-भर के मैदान के मौत पर का रोई, गाँव के भितरी गाँव मरत जा रहल बा, देर नइखे कि कवनो कॉन्वेटनामधारीइस्कूल बोर्डधारी गुमटिया के बगल में एक भोर अचक्के कुकुरमुत्ता मतिन एगो ब्यूटी पार्लर फूट पड़ी, ईहे बचल बा - ब्यूटीपार्लर बीडियोपार्लर त कतने खुलल आ दल अबकी गाँवे गइली त जनली कि केतने बुजुर्ग आँख मूँद लेल लोग, उन्हनलोग के धुंधुआइल पनियर आँखि ना लडकल, मारवाड़ी बुजुर्ग त एक्को नाहीं; पता चलल कि मारवाड़ी लोग काम-धन्धा समेटि के गाँव छोड़ के अनते जा रहल बा, मकान दुकान बेचि के. जवन मकान नइखे विकाइल ओकरा भीतर अन्हरिया पख बन्द बा अमावस भरल बा ठसाठस जवन दरवाजा खिड़की के फाँफड़ से रिस निकस के गाँव के जगर-मगर आ चहल-पहल के संवरावत रहेला, झँवरावत रहेला त का ऊपर से हरियर- लहलह होइयो के गाँव भीतर से खंखड़ हो रहल बा ?

गउआ के जरूर कवनो भितरिया रोग धइले बा नाहीं त हर बरिस, दशहरा भा दीवाली के मोका प, गाँव में होखेवाला नाटक के सिलसिला काहे बन्द हो जाइत 'हुण्ड' जी अभियो बाइन, बुढ़ा गइल बाड़न बाकिर कस बस त बाँचल बा-कविराज जी के छोट भाई हुण्ड जी, जे हीरो बने खातिर भागि के बम्बई गइले, बम्बई पलट हुण्ड जी, जे लवटि में 'हम्मीर हठ', 'वीर अभिमन्यु' आ 'जयद्रथ वध' जइसन इलाकाप्रिय नाटकन के सूत्रधार भइले हीरो भला उनुका अलावा के होइत, वीर अभिमन्यु भा जयद्रथ के रूप में जब ऊ स्टेज पर धड़ाम से गिर पड़स त तख्ता टूट जाय, उनुकर गिरलका के सीन खातिर लइका लोग हुलुक-हुलुक के देखत रहत रहे कि कब गिरिहें हुण्ड जी, कि कब ए इलाका के 'टेराफर्मा' में एगो लघु भूचाल आई। हुण्ड जी पारसी थियेटर के अतिनाटकीय शैली के बेल लगइले जेकरा में थोरे सहजता के समावेश हमार पीढ़ी करे के कोशिश कइलस - हालाँकि हुण्ड जी के रहते इ समझ ना रहे बाकिर बस ओतने, ऊहो वेल मुरझ गइल हुण्ड जी अभियो आपन घर के रहवासी कम आ गाँव के चौराहा के वशिन्दा जादे हवें चउरहवे उनुकर चौपाल है-दस चुक्कड़ के आ बीस बीड़ा पान चर के बड़ा बेमन से उहाँ के घरे लवटला- एक पहर रात भडला प अब त उनुका संगे बइठ के बीतल दिन के पगुरावहूँ वाला केहू ना बाँचल, ढेर रणबांकुड़ा लोग सोझ हो गइल हुण्ड जी के चौक-शरणागति देखि के निराला जो के 'ठूंठ' मथेला वाला कविता, जेकर पहिल पंक्ति ह 'ठूंठ ह ई आज' के आखिरी पंक्ति भितरा गूँजे लागेला, 'केवल वृद्ध विहग एक बइठल कुछ कर याद' अब त गाँव में होलियो के रंग फीक हो गइल। पहिले त होरी- गवनहारन के दल दू फाँक भइल जरूरे एकरा पीछे रजधानी पटना से चुअल- चहुँपल जातिवादी जहर होई उत्सव के धूमधाम त बढ़ गइल बाकिर ओकर भितरिया आनन्द बिला गइल। दशहरा के मेला, कोसभर दूर, बारकोप में लागत रहे अभियी लागला, पहाड़ी के पदतल में, जेकरा भीरी बरगद के ऊ विशाल पेड़ बा जेकरा नीचे दिनहूँ अन्हार सिमटल रहत रहे, जेकरा देने दीठ उठवते देहे डरलहर दउरि जात रहे, जोगनी थान नाम से जनात ऊ जगह त अब प्रचारित महातम वाला एगो मन्दिरलेखा खड़ा हो गइल बा, बरगद के नीचे के अन्हरिया मिटि गइल बा ओकरा थाल के जगह सिरमिट के चउतरा बा, एगो धर्मोद्योग चल रहल बा उहाँ, धरमडरू लोगन के भरोसे निडर मेलवा में जाय खातिर - खासकर नवमी के रात- - बैलगाड़ी जोड़ात रहे, माई दादी लोग आंकरे में बइटस, वचवन सब गैस भरल गुब्बारा मतिन आगे-आगे ललकत चलस, पूरा जवार जुटत रहे, छर्रा के दिन औरतन के अरपल दूध के गंध में नया कपड़ा के गंध घुल-मिल जाय, लवटत बखत बैलगाड़ी के लगे से मैलासहिते पूरा भुँइदृश्य चाँदनी में मिज़ाइल लडकत रहे। दशमी के दिन आदिवासी लोगन के भीड़ जुटत रहे-ठट्ठ-के-ठट्ठ- मादल बाजे आ ओलोग के मण्डलाकार नाच मन मोह लेवे। बाकिर अब गाँव के मेलो दुआरे प चाहीं- आवत-जात पनहिया टूटत त पछिला कुछ बरिस से सेयान लोग गाँवे में दशहरा के मेला जोड़े लागल, बाकिर इहाँ ओ आनन्द के परस कहाँ ।

बाकिर ओ आनन्द के अभिलास बेमानी वा जे लोहार, खलिसा ऊख के दिन में बरिस-भर परिवार खेपे लायक कमाई क लेत रहे लोग, जिन्हनी के बदले कोल्हवाड़ गमक उठत रहे, उन्हनी के दरवाजे कोल्हू जंग खा के धूर में बदलत जा रहल बाड़न स त ऊ का करिहें, जो नेत्र त्रासक वेल्डिंग के धन्धा ना शुरू करिहें त भा गुपचुप केहू केहू कट्टा पिस्तौल बनावे के ओइसही, ऊ घोड़ा बगटुट भाग गइले जा जे भगत कहाय वाला वणिक समुदाय के दुआरे बन्हात रहे लोग उन्हनिए प चढ़ के सुदूर देहातन में जात रहे भगत लोग, बीज खातिर धान देत रहे आ अगहन में, फसल कटला प घोड़ा पर खाली बोरा लदले फेनु जात रहे, लौटे बेरिया घोड़ा लदल-फदल होत रहे; अच्छा धन्धा रहे, ईहो आ चाँदी के गहना बन्धक राखे के भी, मन्द बलुक बन्द हो गइल। अब ऊ लोग के रोजगार जादेतर बाजार में सिमट गइल बा पथरगामा के बाजार में जे अगल-बगल के गाँव-देहात खातिर बड़का बाजार ह सौदा सुलुफ खातिर चीज-बस्त खातिर, नीमक तेल खातिर जहां लोग अवते रहेला, धुरिआइल तलुअन गाँव के मुख्य सड़क के दूनो ओर बनल पक्का अधपक्का मकानन में पथरगामा के 'बाजार' घोषित करे वाला दुकान बाड़े स, जादेतर किराना के आ कपड़ा के एकरा बादों हप्ता में दू दिन हाट लागेला, ओ दू दिन अगल-बगल के गाँव- गँवाड़ा से जादेतर लोग खरीदार बन के ना, बेचनिहार बन के आवेला, साग-सब्जी के टोकनी माथे उठवले, अनाज के बोरा लदले ई हाट में एगो जैविक गन्ध होला, बाजार में जेकर परस कहाँ! बाकिर तबो ई बाजार बीच के हाट ह, मउराइल मुरझाइल । आदिवासी हाट के बाते कुछ अउर ह कवनो छोटमोट पहाड़ के गोड़तारी, कुछेक गाँछ बिरिछ के छाँह तले जुड़े वाला आदिवासी हाट ! जेकर एगो किनारी पर भाँधी जरूर लागल होई - एगो, दूगो भा तीनगो भाँधी- हँसिया कचिया, खुरुपी- खंती, फाल- फावड़ा-कुदाल, आ तनी दूर हट के उंकड़ बइठल लोगन से घिरल भांधी। । आ आ हाट के दोसर किनारी पर मदाइन महकत एगो आनन्दक्षेत्र जरूर होई जहाँ लबालब भरल लवनी-पर-लबनी खलियात रहेला आ ओ हाट में होइहै बइठल जुलाहाजन, गमछी लुंगी चादर के ढेर सामने लगवले- उनुकर खान्दानी बुनकरी के उपज उपज शब्द उचरते हमरा मनआँखन के आगे खेतन के पसार अँक जाता,

जल-भरल खेत से उठत रोपनी के गीतन के बिसरल गूँज जगे लागत बा। बाबा के साथ हम खेते जात रहीं, उनुकर पिठंइया चढ़ल भा अंगुरी पकड़ले। हम बाबा के साथ लागल रहत रहीं, माँ के दूध छुटला के बादे से दुआरे शाश्वत रूप से पसरल रहे वाला बाबा के बड़का तखत प उनके साथ सूतत रहीं बाबा हमरा के रामायण, महाभारत पंचतंत्र के कहानी सुनावत रहस, कहानी सुने के हमरा बाड़ा चाव रहे, वो कहानी सुनावत ना थाकस उनके सिचाई से कथा रसिक बनल हमरा हाथे खत्रीजी के चन्द्रकान्ता सन्तति लागल, ओकरा खण्ड सब के फेनुफेनु पढ़त सुरुज के अन्तिम रोशनी पकड़े खातिर हम फसल बीच लागल मचान पर चढ़ बइठत रहीं, तब बिजली ना आइल रहे लालटेन बरत देर होत रहे, ओकर खींचातानी मचल रहत रहे, पाठ्ये पुस्तक पढ़े खातिर लालटेन मिलत रहे, 'अलाय बलाय' पढ़े खातिर नाहीं। पढ़ाई के मुआमला में त हम जल्दिए बाबा के हाथ के बाहिर हो गइलीं बाबा अपने जतना कर्मठ किसान रहन ओतने पढ़ाँको। उनके करने घर में कितावन के बड़का अलमारी में चाँद, विशाल भारत, सुधा आ संसार साप्ताहिक नियन पुरान आ महत्वपूर्ण पत्रिकन के अंक रहे। ओही दिनन में घरे आके हमरा के ट्यूशन पढ़ावस जन्यती यादव- हमार जयन्ती मास्टर-बगैर एको पइसा लेले, असल में ऊ रिनचुकाई करत रहन, हमार बाबूजी जे आपन कितावन प अपना नाम के बाद सगर्व 'बीए' लिखत रहन जइसन कि ओघरी चलन रहे—उनुका के पढ़वले रहन जयन्वती मास्टर अपना नियन एक्के रहन डेंगाल प गाय चरावे ले जास त गाँछ तर बइठ के बहुत मीठ वँसुरी बजावस, दूनो बखत दण्ड- वइठक लगावत, कवितो लिखस, बाद में जब हमार कविता छपे लगली स त हमारा गाँवे चहुँपे के राह जोहस, हम अभी हाथो मुँह ना धो पाई कि आपन कविता - कापी लेले पहुँच जास पक्का आर्यसमाजी गाँव में साल में एक बेर आर्य समाज के जलसा होत रहे- तीन-चार दिन बेतरह मनसाइन रहत रहे; प्रचार खातिर जब बैलगाड़ी चले त जयन्ती मास्टर कूदि के माइक प बइठ जास आ हरमुनिया के माँधी सम्हारत शुरू हो जास, एकदम्मे पक्का राग, डूबि के गावस, आँख मूँद के गाँव के अन्तिम घर बीत गइला प आँख खोलस आ कहस, "भाइयो और बहनो...... भाइयो और बहनो के जगहा बीच सड़क गुड़मुड़िआइल दू चार गो कुक्कुर किकियात उठ5 सन बाद में योग के सनक सवार भइल त सुरुज से आँख मिलावे लगले, देर-देर ले; घर के लोगन खातिर

बेसम्हार हो गइले, आर्य समाज के प्रचारक बन के पंजाब गइले आ ओनिए खप

गइले, एगो पोस्टकार्ड आइल कोना-फाटल, उनुकुर लड़का धावल पंजाब पहुँचले,

बाकिर पखेरू त उड़ गइल रहे। बहरहाल, देर ना लागल आ हमार संगी हो गइले

अशोक चाचा-पट्टीदारी के चाचा वाकिर असलन दोस्त, अंगरेजी साहित्य के

विद्यार्थी, तीक्ष्णधी, पूरा चैम्बर्स डिक्शनरिए घोख गइल रहन, हमनी के प्रिय खेल

कि डिक्शनरी खोल के कतहूँ से कवनो शब्द पूछल जाय, पाँच में से चार आ

कबहूँ- कबहूँ त पाँचो के ठीक-ठीक अर्थ भाख दीहे ऊहे अशोक चाचा के संगे

सॉपिन आ सुन्दर नदी के किनारे-किनारे टहरत साहित्य-खास क के अंगरेजी

साहित्य के चर्चा चलत रहत रहे; हमरा मस्तिष्क के रचावट प बाबा के बाद

अशोके चाचा के विधायक प्रभाव पडल, एही से हम आगे के कॉलेजी पढ़ाई

अंगरेजी साहित्य से कइलीं। ऊ अशोक चाचा नोंह-भर प्रतिभा के उपयोग के के

आजकाल्ह नौ-दस किलोमीटर दूर के जिलाशहर गोड्डा के सफलतम वकील हवे,

हैं, नोंह-भर प्रतिभा के उपयोग के के, बाकी पंजा-भर याकि पाँचर-भर शेष

प्रतिभा के का भइल, ई ना उनुका पता वा ना केहू के अवरू केहू के एकर फिकिर

करे के जरूरते का बा! जे होखे, अशोक चाचा के संगे अंगरेजी में लिखल शुरू क

के हम जल्दिए हिन्दी में कविता लिखे लगलों, इयाद आवत बा कि ओही घरी

उचटंत चित्त् अशोक चाचा के कइसहूँ उनुका टेबुल प बइठवले रखे खातिर

अदालते-- परिसर में दिन बितावत हम एगो कविता लिखले रहीं 'गोड्डा कचहरी में

जवन तभिए कवनो साहित्यिक पत्रिका में छपल साँच पूछ त गाँव हमरा भीतर

उमड़त-घुमड़त रहेला, चाहे हम कतने दूर रहीं, हमार गाँव जेकरा आकाश के

गदबेर में बसेरन के लवटत कउआ-दल काक-कोकली से आकुल करत झाँपि

लेला, कउआ दल जिनिकर मजबूती से मुकाबला भूअर पाँख आ पीयर चोचवाला

मैना लोगन के समूह करेला, गउआ के सीवान प तड़बन्ना में ताड़कंठ में लागल

लबनी में चोंच डुबा के पखेरू लोग मता जाले, हमार गाँव जेकरा चौहद्दी प ठाढ़

हाथी के रंग के पहड़वन प हमार बचपन सवारी कइले बा । एही गाँव के हई

अंजोरिया, 'अँजोरिया' मधेला वाली आपन कविता के जब पिछला बेर गाँवे

सुनवल त माँ-मइया सहित्ते अँजोरियों के आँख अँसुअन के कटोरा बन गइल,

तब रोअल भुला चुकल हमरो आँख कसमसाय लागल ।

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लेख
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भोजपुरी के प्रमुख साहित्यकार डॉ. अरुणेश नीरन अपना सम्मोहक रचना से साहित्यिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ले बाड़न. अपना अंतर्दृष्टि वाला कहानी खातिर विख्यात ऊ अइसन कथन बुनत बाड़न जवन भोजपुरी भाषी क्षेत्रन के समृद्ध सांस्कृतिक टेपेस्ट्री से गुंजायमान बा. नीरन के साहित्यिक योगदान अक्सर सामाजिक गतिशीलता के बारीकियन में गहिराह उतरेला, जवन मानवीय संबंधन आ ग्रामीण जीवन के जटिलता के गहन समझ के दर्शावत बा। उनकर लेखन शैली भोजपुरी संस्कृति के सार के समेटले बा, पारंपरिक तत्वन के समकालीन विषय के साथे मिलावत बा। डॉ. अरुणेश नीरन के भोजपुरी भाषा आ धरोहर के संरक्षण आ संवर्धन खातिर समर्पण उनुका काम के निकाय में साफ लउकत बा. एगो साहित्यिक हस्ती के रूप में उहाँ के अतीत आ वर्तमान के बीच सेतु के रूप में खड़ा बानी, ई सुनिश्चित करत कि भोजपुरी साहित्य के अनूठा आवाज उहाँ के अंतर्दृष्टि वाला कलम के तहत पनपत आ विकसित होखत रहे।
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सूतल रहली मैं सखिया त विष कइ आगर हो । सत गुरु दिहलेंड जगाइ, पावों सुख सागर हो ॥ १ ॥ जब रहली जननि के अंदर प्रान सम्हारल हो । जबले तनवा में प्रान न तोहि बिसराइव हो ॥ २ ॥ एक बूँद से साहेब, मंदिल बनावल

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पलटू साहेब

4 November 2023
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कै दिन का तोरा जियना रे, नर चेतु गँवार ॥ काची माटि के घैला हो, फूटत नहि बेर । पानी बीच बतासा हो लागे गलत न देर ॥ धूआँ कौ धौरेहर बारू कै पवन लगै झरि जैहे हो, तून ऊपर सीत ॥ जस कागद के कलई हो, पाका फल डा

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लक्ष्मी सखी

4 November 2023
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चल सखी चल धोए मनवा के मइली ॥ कथी के रेहिया कथी के घइली । कबने घाट पर सउनन भइली ॥ चितकर रेहिया सुरत घड़ली । त्रिकुटी भइली ॥ ग्यान के सबद से काया धोअल गइली । सहजे कपड़ा सफेदा हो गइली ॥ कपड़ा पहिरि लछिमी

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बाबू रघुवीर नारायण बटोहिया

4 November 2023
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सुन्दर सुभूमि भैया भारत के देसवा से मोरे प्रान बसे हिम-खोह रे बटोहिया एक द्वार घेरे राम हिम कोतवलवा से तीन द्वार सिधु घहरावे रे बटोहिया जाहु जाहु भैया रे बटोही हिन्द देखि आउ जहवाँ कुहकि कोइलि बोले रे

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हीरा डोम

4 November 2023
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हमनी के राति दिन दुखवा भोगत वानों हमन के साहेब से मिनती सुनाइबि हमनों के दुख भगवनओ न देखता जे हमनीं के कबले कलेसवा उठाइब जा पदरी सहेब के कचहरी में जाइब बेधरम होके रंगरेज बानि जाइवि हाय राम! धरम न छोड

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महेन्दर मिसिर

4 November 2023
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एके गो मटिया के दुइगो खेलवना मोर सँवलिया रे, गढ़े वाला एके गो कोंहार कवनो खेलवना के रंग बाटे गोरे-गोरे मोर सँवलिया रे कवनो खेलवना लहरदार कवनो खेलवना के अटपट गढ़निया मोर सँवलिया रे, कवनो खेलवना जिउवामा

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मनोरंजन प्रसाद सिन्हा - मातृभाषा आ राष्ट्रभाषा

6 November 2023
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दोहा जय भारत जय भारती, जय हिन्दी, जय हिन्द । जय हमार भाषा बिमल, जय गुरू, जय गोविन्द ॥ चौपाई ई हमार ह आपन बोली सुनि केहू जनि करे ठठोली ॥ जे जे भाव हृदय के भावे ऊहे उतरि कलम पर आवे ॥ कबो संस्कृत, कबह

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कौना दुखे डोली में रोवति जाति कनियाँ

6 November 2023
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भारत स्वतन्त्र भैल साढ़े तीन प्लान गैल बहुत सुधार भैल जानि गैल दुनियाँ चोट के मिलल अधिकार मेहरारून का किन्तु कम भैल ना दहेज के चलनियाँ एहो रे दहेज खाती बेटिहा पेरात बाटे तेली मानों गारि-गारि पेर

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महुआबारी में बहार

6 November 2023
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असों आइल महुआबारी में बहार सजनी कोंचवा मातल भुँइया छूए महुआ रसे रसे चूए जबसे बहे भिनुसारे के बेयारि सजनी पहिले हरका पछुआ बहलि झारि गिरवलसि पतवा गहना बीखो छोरि के मुँड़ववलसि सगरे मथवा महुआ कुछू नाहीं

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राम जियावन दास 'बावला'

6 November 2023
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गाँव क बात गीत जनसरिया के होत भोरहरिया में, तेतरी मुरहिया के राग मन मोहइ । राम के रटनियाँ सुगनवा के पिजरा में, ओरिया में टैंगल अँगनवा में सोहइ । माँव-गाँव करैला बरुआ मड़इया में गइयवा होकारि के मड़इया

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सपना

6 November 2023
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सूतल रहली सपन एक देखली मनभावन हो सखिया फूटलि किरिनिया पुरुष असमनवा उजर घर आँगन हो सखिया अँखिया के नीरवा भइल खेत सोनवा त खेत भइलें आपन हो सखिया गोसयाँ के लठिया मुरड्या अस तूरली भगवलीं महाजन हो सखिया

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इमली के बीया

6 November 2023
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लइकाई के एक ठे बात मन परेला त एक ओर हँसी आवेला आ दूसरे और मन उदास हो जाला। अब त शायद ई बात कवनी सपना लेखा बुझाय कि गाँवन में जजमानी के अइसन पक्का व्यवस्था रहे कि एक जाति के दूसर जाति से सम्बंध ऊँच-नीच

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कोजागरी

6 November 2023
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भारत के साहित्य में, इतिहास भी पुराणन में, संस्कृति भा धर्म साधना में, कई गो बड़हन लोगन के जनम आ मरण कुआर के पुनवासी के दिन भइल बाटे। कुआर के पुनवासी- शरदपूर्णिमा के ज्योति आ अमृत के मिलल जुलल सरबत कह

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पकड़ी के पेड़

7 November 2023
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हमरे गाँव के पच्छिम ओर एक ठो पकड़ी के पेड़ बा। अब ऊ बुढ़ा गइल बा। ओकर कुछ डारि ठूंठ हो गइल बा, कुछ कटि गइल बा आ ओकर ऊपर के छाल सुखि के दरकि गइल बा। लेकिन आजु से चालीस बरिस पहिले ऊहो जवान रहल। बड़ा भ

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मिट- गइल-मैदान वाला एगो गाँव

7 November 2023
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बरसात के दिन में गाँवे पहुँचे में भारी कवाहट रहे। दू-तीन गो नदी पड़त रही स जे बरसात में उफनि पड़त रही स, कझिया नदी जेकर पाट चौड़ा है, में त आँख के आगे पानिए पानी, अउर नदियन में धार बहुत तेज कि पाँव टि

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हजारीप्रसाद द्विवेदी

7 November 2023
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अपने सभ हमरा के बहुत बड़ाई दिहली जे एह सम्मेलन के सभापति बनवलीं। एह कृपा खातिर हम बहुत आभारी बानी हमार मातृभाषा भोजपुरी जरूर वा बाकिर हम भोजपुरी के कवनो खास सेवा नइखों कइले हम त इहे समझली ह जे अपने सभ

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भगवतशरण उपाध्याय

7 November 2023
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अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, सीवान के अधिवेशन के संयोजक कार्य समिति के सदस्य, प्रतिनिधि अउर इहाँ पधारल सभे जन-गन के हाथ जोरि के परनाम करतानी रउआँ जवन अध्यक्ष के ई भारी पद हमरा के देके हमार जस

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आचार्य विश्वनाथ सिंह

8 November 2023
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महामहिम उपराष्ट्रपति जी, माननीय अतिथिगण, स्वागत समिति आ संचालन- समिति के अधिकारी लोग, प्रतिनिधिगण, आ भाई-बहिन सभे जब हमरा के बतावल गइल कि हम अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का एह दसवाँ अधिवेशन के

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नाटक-खण्ड महापंडित राहुल सांकृत्यायन

8 November 2023
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जोंक नोहर राउत मुखिया बुझावन महतो किसान : जिमदार के पटवारी सिरतन लाल  हे फिकिरिया मरलस जान साँझ विहान के खरची नइखे मेहरी मारै तान अन्न बिना मोर लड़का रोवै का करिहैं भगवान हे फिकिरिया मरलस जान करज

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गबरघिचोर

8 November 2023
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गलीज : गाँव के एगो परदेसी युवक गड़बड़ी : गाँव के एगो अवारा युवक घिचोर : गलीज बहू से पैदा गड़बड़ी के बेटा पंच : गाँव के मानिन्द आदमी  गलीज बहू : गलीज के पत्नी आ गबरघिचोर के मतारी जल्लाद, समाजी, दर्शक

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किसान- भगवान

8 November 2023
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बाबू दलसिंगार राय बड़ा जुलुमी जमींदार रहलन। ओहू में अंगरेजी पढ़ल- लिखल आ वोकोली पास एगो त करइला अपने तीत दूसरे चढ़ल नीवि पर बाबू साहेब के आपन जिमिदारी जेठ वाली दुपहरिया का सुरुज नियर तपलि रहे। हरी- बंग

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मछरी

9 November 2023
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ताल के पानी में गोड़ लटका के कुंती ढेर देर से बइठल रहे गोड़ के अँगुरिन में पानी के लहर रेसम के डोरा लेखा अझुरा अझुरा जात रहे आ सुपुली में रह-रह के कनकनी उठत रहे, जे गुदगुदी बन के हाड़ में फैल जात रहे।

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भँड़ेहरि

9 November 2023
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रामदत्त के मेहरारू गोरी रोज सवेरे नदी तीरे, जहाँ बान्ह बनावल गइल बा, जूठ बर्तन माँजे आ जाले जब एहर से जाये के मोका मिलेला ओकरा के जरूर देखी ला। अब ओखरा संगे संगे ओकरा बर्तनो के चीन्हि लेले बानी एगो पच

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रजाई

9 November 2023
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आजु कंगाली के दुआरे पर गाँव के लोग फाटि परल वा एइसन तमासा कव्वी नाहीं भइल रहल है। बाति ई बा कि आजु कँगाली के सराध हउवे। बड़ मनई लोगन के घरे कवनो जगि परोजन में गाँव-जवार के लोग आवेला, नात- होत आवेलें,

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तिरिआ जनम जनि दीहऽ विधाता

9 November 2023
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दिदिआ क मरला आजु तीनि दिन हो गइल एह तोनिए दिन में सभ कुछ सहज हो गइल नइखे लागत जइसे घर के कवनो बेकति के मउअति भइल होखे। छोट वहिन दीपितो दिदिआ के जिम्मेदारी सँभारि लेलसि भइआ का चेहरा पर दुख के कवनो चिन्

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पोसुआ

9 November 2023
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दूबि से निकहन चउँरल जगत वाला एगो इनार रहे छोटक राय का दुआर पर। ओकरा पुरुष, थोरिके दूर पर एगो घन बँसवारि रहे। तनिके दक्खिन एगो नीबि के छोट फेंड़ रहे। ओहिजा ऊखि पेरे वाला कल रहे आ दू गो बड़-बड़ चूल्हि दू

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तिसरका कुल्ला

10 November 2023
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एहर तीनतलिया मोड़ से हो के जो गुजरल होखव रउआ सभे त देखले होखब कि मोड़ के ठीक बाद, सड़क के दहिने, एकदिसाहें से सैकड़न बर्हम बाबा लोग बनल बा.... बहम बाबा के बारे में नइखीं जानत ? अरे नाहीं जी, ब्रह्म आ

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यैन्कियन के देश से बहुरि के

10 November 2023
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बहुत साल पहिले एगो किताब पढ़ले रहलीं राहुल सांकृत्यायन जी के 'घुमक्कड़ शास्त्र' जवना में ऊ लिखले रहलन कि अगर हमार बस चलित त हम सबका घुमक्कड़ बना देतीं। 'अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा' से शुरू क के ऊ बतवले र

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गहमर : एगो बोधिवृक्ष

10 November 2023
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केहू केहू कहेला, गहमर एतना बड़हन गाँव एसिया में ना मिली। केह केहू एके खारिजो कइ देला आ कहला दै मदंवा, एसिया क ह ? एतना बड़ा गाँव वर्ल्ड में ना मिली, वर्ल्ड में बड़ गाँव में रहला के आनन्द ओइसही महसूस ह

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त्रेता के नाव

10 November 2023
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आदमी जिनिगी में बेवकूफी के केतने काम कइल करेला, बाकिर रेलगाड़ी में जतरा करत खानी अखवार कीनि के पढ़ल ओह कुल्ही बेवकूफिन के माथ हवे। ओइसे हम एके खूब नीके तरह जानत बानी, तबो मोका दरमोका हमरो से अइसन मू

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डोण्ट टाक मिडिले-मिडिले

10 November 2023
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आगे जवन हम बतावे जात हईं तवन भोजपुरियन बदे ना, हमरा मतिन विदेशियन बदे हौ त केहू कह सकत हौ कि भइया, जब ईहे हो त अंग्रेजी में बतावा, ई भोजपुरी काहे झारत हउअ ? जतावल चाहत हउअ का कि तोके भोजपुरी आवेला

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एगो किताब पढ़ल जाला

अन्य भाषा के बारे में बतावल गइल बा

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