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तिसरका कुल्ला

10 November 2023

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एहर तीनतलिया मोड़ से हो के जो गुजरल होखव रउआ सभे त देखले होखब कि मोड़ के ठीक बाद, सड़क के दहिने, एकदिसाहें से सैकड़न बर्हम बाबा लोग बनल बा.... बहम बाबा के बारे में नइखीं जानत ? अरे नाहीं जी, ब्रह्म आ वहम में बहुते

फरक वा ब्रह्म त ऊ वलू हवन जे माया के साथ मिल के चराचर जगत बनवले । ऊ मूँस बनवले आ मूँस बनवला से संतोष ना भइल त बिलाई बनवले बिलाई मूँस देने झपटल त कुकुर बनवले कुकुर कटलस त चउदह गो सूई बनवले आ ओह सूई के घोंपवावे खाती पेट बनवले पेट में परे खाती अनाज बनवले आ अनाज देख के भूख बुझाइल त पूजा भोग के बिध-विधान बनवले केकरा से

सँपरो ई विध-विधान ? त बाधन बनवले । ना ना... बाभन-बराभन में कवनो खास फरक नइखे ओइसे एगो गया जिला बा जहाँ बराभन के बराभन कहल जाला आ बाभन कहल जाला भुइहार के । बाकी ई ओतना बड़ फरक नइके जतना बड़ फरक ब्रह्म आ बर्हम में होला । ब्रह्म अगोचर चीज हवे आ बहम अधगोचर अधगोचर एसे जे माटी के एगो सोगहग धोंधा के अधवे के बराबर ऊ लउकेले बर्हम बाबा लोग अपना हैसियत के मुताबिक माटी के भा सिरमिट के चउतरा प बइठल रहेले जा। बगल में एक जोड़ा खड़ाऊँ धइल रहेला ओही खड़ाऊँ प चढ़ के चटर चटर करत कवनो बर्हम रात बिरात अपना भगत के दर्शन देबेले दर्शन देने वाला काम ऊ लोग अक्सर तब करेला जब पूजा भोग में कवनो कमी रह जाला ऊ कमी पुरा दिआय त ऊ लोग खड़ाऊँ खोल के फेरू अपना ओही मूँड़ी में दुक जाला ना पुरवला प अपना भगते के मुँड़ी में दुकल रहेला आ कबो-कबो त खड़ाऊँ खोल के चलाइयो देला सपना में एह साँच के देख के, जगला प ऊ भगत भाई एह झूठ के देखेले कि खटिया के पटिया प पटका के उनुकर महमण्ड फूट गइल बा । 1

पूजा-भोग के कमी के करने कवनो बर्हम अतना जे भड़क जाले ओकर कारन बा। असल में ऊ लोग जात के बराभन होला। बराभने के बाबाजी आ बबेजी के संक्षेप में बाबा कहल जाला। बबेजी आपन हतेया हो गइला के बाद बर्हम बाबा बन जाले आ अपना हतेयार के कपार पर सवार हो के सपना देले कि हमार चउतरा बान्ह, हमरा के पूजा भोग दे। बाबाजी के पूजा भोग ना दिआय त ऊ बरम पिचास बन के सेंउसे खान्दान सोपह कर जाले, दे दिआय त बहम बाबा बनके मोका कुमोका अतना सहाय हो जाले कि उनुकर नाम ले के चाहीं तो दोसरको हतेया में हाथ लगा दीं बार ना टेढ़ होई राउर

जहाँ जनावर जी लोग पुजा के मराय आ मानुस जी लोग मरा के पुजाय- अइसन ममहाहानन संस्कृति वाला देश कौन-सा है ?' ऊ देश जौन-सा है, तौने- सा के तीनतलिया मोड़ के ठीक बाद के एकदिसाहे से बनल सैकड़न बर्हम बाबा लोग के ई खीसा है।

'साँच पूछो त ( हम नइखों देखले कि 'साँच पूछो त' कह के केहू धोरे बेर साँच के पूछल जाय देवे खातिर बिलमल होखे आ हमरा त साँच पूछो त ऊहो सरवा आजु ले नइखे भेंटाइल जवन ऊ वाला साँच पूछले होखे जवना के जवाब 'साँच पूछ त' से शुरू होला) त साँच पूछ त राम-रावण के लड़ाई असल में छत्री- बराभन के लड़ाई रहे। बसीठ आ रावण में सीधा सम्बन्ध रहे । ऊ त कहऽ जे विसामित्र जिउआ राम लछुमन के पहिलहीं सिखा दिहले रहे ना त बसीठ बबवा त भरत-सतरोहन के पटा के आ केकई के फुसिला के रामचरनराम के लेइए बीतल रहे...' "

"बाकी गोसाई जी त.....

"गोसाई जी गोसाई जी... गोसाई जी का जानस जी... ई कुल्हि असल बात त संस्कारित में टॉकल वा होखे हूब त जा, जाके पढ़ ल, नाक बुड़ा के।" "गोसाई जी से जादे संस्कारित तेहीं पढ़ले बाड्स रे ?"

"तें बराभन हवस का रे?"

सिमरनपुर आ बगल के गाँव गंज भड़ेसर के बड़ी बड़भाग कि दूनो गाँव में से कवनो के केहू नाक बुड़ा के संस्कृत नइखे पढ़ल पढ़ल रहित त गंज भड़ेसर के बबुआन लोग के ई पता चल गइल रहित कि रामचन्द्र सिंह वल्द दशरथ सिंह के साधे बसीट पाँड़े का कइले रहन आ सिमरनपुर के बाबाजी लोग के ई कि एगो पांड़े वल्द पांड़े के एगो सिंह वल्द सिंह के साथे का करे के चाहीं ।

'संस्किरित है कृप जल' में नीके तरी नाक नाहिए बुड़ा पवला गुने बुला, बबुआन के कहाय वाला गाँव गंज भंडेसर आ बाबाजी के कहाय वाला गाँव सिमरनपुर के बीचे जजमान उपरोहित वाला जवन नाता रहे तवन कबो 'पण्डी जी परनाम त जियत रह जजमान' आ कबो 'जियत रह5 जजमान त पण्डी जी परनाम' के भाखा नीर में बहुत चलल चल आइल रहे। आ बहते चलल चल आइत, धीकल पंड्उआ के छोड़ा काशी जी से संस्कृत के तिसरका कुल्ला ना ले ले आइल रहित, त

1 जजमनिका चलावे खाती दुइए कुल्ला संस्कृत बहुत है एक कुल्ला शुभ सँपरावे खातिर - सतइसा बियाह, दुसरका कुल्ला छूत छँटियावे खातिर - सराध- पिण्डदान बाकिर धीकल पांड़े के छौंड़ा के धमधूसर नाम असहीं धोरे परल रहे। जब सँउसे क्लास के लड़का, इहाँ तक कि चनरा चमरो, हे लता हे लते हे लता: उचारे लागल रहन स धमधूसर अभी रामः रामौ रामा में अझुराइल रहन ललवा पण्डी जी के कहना कि पता ना एह पण्डुकवा के जीभ प सरसती जी के हंसवा कतना चोटार ठोर मरले बा कि कहे के रामः रामौ रामाः ' त कहा जालइस 'राम हरमवो ह रामा हो' ।

रंगरातो देवी मिडिल स्कूल, गंज भंड़ेसर के हेडमास्टरों से सीनियर मास्टर ललवा पण्डी जी ओह जनम के गऊ रहन आजु ले छड़ी ना उठवले रहन हाथ में उनुका खिसिआइला के पहचान खाली अतने रहे कि पांड़े लइका के पण्डुक कहे लागस, मिसिर के मुसरी, छत्री के छतरुआ, लाला के लल्लू आ असहीं जेकरा के जवन मन तवन केहू सपनो में ना सोच सकत रहे, खुद ललवो पण्डी जी ना, कि उनुकर हाथ उठी कबो कवनो लइका प, आ हँइसे !

जवन भइल तवना के बारे में सभे कहल कि संजोग खराब रहे एही से भइल। केहू - केहू धमधुसरा के दोष जरूर देल बाकी ई ना कहल केहू, भुलइलो, कि ललवा पण्डी जी के अइसन ना कइल चाहत रहे। ई जरूर कहल केहू केहू, ऊहो हेडमास्टर से, कि संस्कृत अइसन देवभाषा पढ़ावे के जिम्मा कवनो लाला के ना देल चाहत रहे। इसे ललवा पंडी जी आपन बदली करवावे खातिर दउड़-भाग करत रहन त केहू रोकल ना, आ रोकल त केहू धीकलो पांड़े के ना, जब ऊ एह काण्ड के दूसर दिन 'केने बा ललवा', 'केने बा ललवा' करत, पोरसा भ के लाठी उठवले स्कूल में हेलले ऊ त कह जे लइकन के मुँहे मय हाल जनला के बाद 'एही लायक रहे धमधुसरा सरवा' कहके, ऊ जइसे आइल रहन स्कूल में, तसहों लवट गइले ।

भइल रहे खाली अतने कि धमधुसरा 'लता' के रूप रट के सुना देले रहे ललवा पण्डी जी के ऊहो का करो। ओकर नाम आवते सब के सब लड़का हँसे लागत रहन स ई रोज के नियम रहे आ अब केहू ईहो ना सोचत रहे कि एह हँसला के कवनो असर परत होई धमधुसरा प बाकिर परत रहे तब्बे नू ! बाकिर एकर बदला ऊ ललवा पण्डी जी से काहे सधवलस ई ना कहल जा सके। ललवा पण्डी जी त ओकरा प हँसल ना रहन कबहूँ। उनुका बारे में त इहाँ तक मशहूर रहे कि ऊ हँस देस अगर जो त बेबादर के बरखा हो जाय! धमधुसरा लइकन के खोस ललवा पण्डी जी प उतरलस आ ललवो पण्डी जी लड़कने के खीस

धमधुसरा पर उतरलन। ओह दिन कुल्ह लड़का ललवा पण्डी जी देने मुँह क के उनके प हँसे लगलन स धमधुसरा के मुँहे लता के रूप सुनके- 

ललवा ललइनिया ललमुनिया

- ललवे ललइनिए ललमुनिए....

- हे ललवा हे ललड़निया हे ललमुनिया ललमुनिया ललवा पण्डीजी के लड़की के नाम रहे। 

ललवा पण्डीजी छकुनी उठवले आ शुरू कइले ठीक सवा बारह बजे उनुका मर-मैदान जाय के आदत रहे। गइले आ के सात माटी हाथ आ सात माटो लोटा माँ के आदत रहे। मँजले आ फेर छकुनी उठवले आ शुरू कइले ।

धमधूसर स्कूल से घरे ना लवटले मूरत तेली के ऊ साढ़े पाँच बजे बस स्टैण्ड प लउकल रहन मूरत के कहनाम कि हमरा त उनुकर लोढ़ा लेखा मुँह देखते बुझा गइल कि रूस-फूल के कहूँ भागल जात बाड़े।

"त रोकलस काहे ना रे?"

भला कह5, तेली हो के, जतरा प, ऊहो बाभन के जतरा प ओकरा सोझा परी ?" "

ठीक एगारह वरिस बाद जब धमधूसर पाँडे लवटले त पता चलल कि भाग के काशी जी पहुँच गइल रहन बाकिर ई ना अन्दाज लागल केहू के कि ई ओने से संस्कृत के तिसरको कुल्ला लेले आइल बाड़े। तबो ना जब ऊ आपन नाव धमधीश्वर पण्डित बतवले अन्दाज लागल तब, जब गंज भंड़ेसर के सुमेसर सिंह के बेटी के बरियात दरवाजे लागल आ बाबाजी लोग बेद हने के शुरू कइल। बेटहा के बाबाजी के चुपडला के बादो धर्माधीश्वर पण्डित के बेद हनल ना ओरियाइल त सुमेर सिंह छाती फुला के समधी देने देखले जवना के माने रहे कि तहार पण्डित पण्डित, हमार पण्डित 'पण्डात'।

वेटहा के बाबाजी लोग मेंसे एक जना थोरे देर ले मैदान सम्हारे के कोशिश कइले। 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव' से लेके 'नमन्ति फलिनो वृक्षा:' से होत हांत 'अहम् आवाम् वयम्' आ 'ति तः अन्ति' तक पहुँच गइले बाकी धर्माधीश्वर पण्डित के बंद के हरहरात गंगा में वह दहके एकोर हो गइले । मउर धइले धइले हजाम के हाथ दुखाय लागल, गरदन निहुरवले-

निहरवले दुलहा के हुलिया टाइट हो गइल, मेहरारू लोग 'आपन खोरिया बहार ए सुमेसर सिंह गावत गावत हरान हो के चुपा गइल, बैण्ड वालन के सीखल कुल्ह नयकी फिल्मी धुन सॉप हो गइल आ डाँड़ लचकावत नवछटियो घुमरिया घुमरिया के बइठ रहले, बाकिर धर्माधीश्वर पण्डित के ना सलोके ओरिआइल ना कण्ठे कटुआइल ना जीभे अँइठावल।

कवनो बातके एगो हद होला । ऊ हो गइल। ओकरा से कुछ अधिको हो गइल। पहिले बेटहा लोग कुनमुनाइल, फेर बेटिहो। पहले निहोरा अस भइल- " अब रहहूँ दीं महराज, अवहाँ अवरू मोका बा।" फेर ईंटला अस कहाइल- "ना चुपड़बऽ !" टोन कसाइल, बोलवाजी भइल - "ले लोहऽ बाबा, पाँच रुपया

जादे ले लीहऽ ! कुल्ह आजुए उगिल देव5 ?" अतना त ठोक रहे, बाकिर धर्माधीश्वर पण्डित पर जब तब्बो कवनो असर ना भइल आ दुलहा के भाई दस के नोट में एगो सिक्का गुलेट के उनुका बवाइल मुँह में ध देले, आ चहुँ ओर हाहाकारी हा हा हा हा मच गइल, त केहू केहू के खास क के बाबाजी लोग के, खास के के सिमरनपुर के बाबाजी लोग के तनी बाउर जरूर बुझाइल। बाकिर एक त एह काण्ड के चलते धर्माधीश्वर के चुपाते नस्ता शर्बत बँटाय लागल आ दोसरे जब धर्माधीश्वरवे सरवा कुछ राम रहीम ना बोलल त के बोलो !

आ जब सचहूँ बोले के बेरा आइल तब केहू रहले ना रहे। बाबाजी लोग त रहे, एगो ना तीन गो, बाकिर बेटा देने से, आ ऊ लोग रोकबो कइल भरसक आ रोके के त ढेर लोग रोकल, बाकिर सिमरनपुर के बाबाजी लोगके कहनाम कि जा हो, हमनी के ना रहनी जा माँड़ो में, ना त ओही घरी फरिआइए जाइत। असल में जवन भइल तवन अचके में भइल के जाने कवना दो विध-विधान के दौरान दुलहिन के नाम आ गइल। ललमुनिया ललमुनिया ?! एकसुरिये असलोक उचारत धर्माधीश्वर पंडित उठ के खड़ा हो गइले आ हाथ जोड़ के दुलहिन के सोझा बइठ गइले पहिले त लोग एकरो के बियाह के कवनो बनारसी बिध बूझल बाकिर धर्माधीश्वर पंडित जब बोलले ता खाँटी भोजपुरी में आ दूनो आँखे ढर5-ढर5 लोर ढारत-" हमरा के माफ क द ललमुनिया जी, अनजाने में भूल- गलती हो गइल हमरा से हम का जानौं कि ललमुनिया ललवा पण्डी जी के लड़की के नाम ह, हमरा के मारs, पीट5, हमार जान ले ल... "

ऊ गोड़ ध ले ले।

"ई अनेत! धर-धर मार-मार... बाबाजी ह त का, केकरो बेटी बहिन के बदनाम करी... देह धरी... ?"

हो-हल्ला के बीचे कबो-कबो सुमेसर सिंह के बाबू के बोली सुनाय 'अरे लाते से ना रे, लाते से ना, बराभन ह साला...... 

नीके तरी थुरा के धर्माधीश्वर पांडे एक बेर फेर धमधूसर पाँड़े हो के रह गइले । अपना थुराइल थोबर से ऊ बेर-बेर समझावे के कोशिश कइले कि गलती असल में हमरे रहे, कि जे ललवा पण्डीजी अइसन गऊ मास्टर के हाथे पिटा गइल ऊ केकरा हाथ ना पिटा जाई-बाकिर उनुकर बात केकरो ना बुझाइल- जबकि ऊ संस्कृत में ना भोजपुरिए में कहत रहन आपन बात ।

ई अनेत! दिन बदा गइल जगहा तय हो गइल। फलनवा दिने, फलनवा ठंडए गंज भंडेसर के बबुआन आ सिमरनपुर के बाबाजी लोग लाठी, भाला, फरसा - जइसे बनी तइसे फरिया ली।

जात से बड़ जजमानी ना होला, ना जात से बड होला उपोहिताँव ।

तेल पियावल गइल, पजावल गइल, किरिया धरावल गइल, जतरा जँचाइल, बूढ़ बच्चा छँटाइल, रोहा रोहट रोकाइल, मुरेठा बन्हाइल, फेंटा कसाइल आ ठीक समय प ठीक जगहा प जैकारी बोलत सिमरनपुर के मय बाबाजी लोग पहुँच गइल।

उहाँ बबुआन लोग पहिलहीं पहुँच गइल रहे। लाठी, भाला, फरसा सब सरजाम सहिते। बाकी ऊ कुल्ह अभी पार के धइल रहे। बाबाजी लोग अचरज से देखल कि बबुआन लोग में केहू गिलवा उठावत बा, केहू ईंटा धरावत बा, केहू करनी चलावत वा केहू साहुल सूत ले ले बा आ छोट-छोट चौखूँट सैकड़न चउतरा बनावल जा रहल बा ।

" "ई तइयारी ह। आखिर त ईहे करे के वा बहमे पूजे के बा। बाद में के जाने के बाँची के ना। जे बाँची ओकर हाथ-गोड़ बर्हमथान बनावे लायक रह जाई कि ना त रउरा सभे तले खड़नी-बीड़ी बनाई पीहीं तले ई कुल्ह हो जाता...

"ई का ?"

"चुना वा ?"

"बा, बाकिर हमरा हाथ में गिलवा लागल बा ए बाबा, रउरे निकाल लीं पकिटिया से।"

'आ का जनला हा जा, कि वे बराभन के बर्हमथान के अस्थापना हो जाई ? पहिले संकलप पढ़े के परी, ओकर विध-विधान होला, दर दछिना होला, असही थोरे...."

"त करवाई संकलप... " "

हम कइसे करवाईं, हम थोरे तहार उपरोहित हई, तू तुरुप पाँड़े के बोलावs,

हम अपना जजमान किहें जा तानी....

" जाई. बाकिर खइनिया खिया के..."

दर दछिना के लेके धोरे खिच खिच जरूर भइल होते जात रहेला साँझ ले चउतरा बन गइल, सैकड़न बहम बाबा लोग के अस्थापना हो गइल भइल कि अब ? हई लाठी, भाला, फरसा इन्हनी के का कइल जाव ?

कइल का जाव, जेकर जवन मनौती होखे, मान के आपन हथियार गाड़ देव मनौती पूरा हो जाय त आ के उखाड़ ले जाव

O

O

तीनतलिया मोड़ के ठीक बाद, सड़क के दहिने एकदिसाह से बनल ए बहम बाबा लोग के बड़ी चलाना है रउरो कवनो मनौती होखे त घर से कवनो हथियार ले के आई आ इहाँ गाड़ दीं। अब त ख़ैर, इहाँ छोटे-छोटे लाठी भाला जइसन हथियार बेचइवो करेला, फूल लचिदाना के साथे चवनियो भाला मिलेला, अठनियो। अब कुछ भाव बढ़ल होई। हम एने ढेर दिन से ओहर गइली हा ना।

ऑइसे एह किस्सा के कुछ अवरू हिस्सा वा बाकिर ऊ बाद में- एकसुरिए त वेदो ना हने के त ई त किस्से है।

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लेख
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भोजपुरी के प्रमुख साहित्यकार डॉ. अरुणेश नीरन अपना सम्मोहक रचना से साहित्यिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ले बाड़न. अपना अंतर्दृष्टि वाला कहानी खातिर विख्यात ऊ अइसन कथन बुनत बाड़न जवन भोजपुरी भाषी क्षेत्रन के समृद्ध सांस्कृतिक टेपेस्ट्री से गुंजायमान बा. नीरन के साहित्यिक योगदान अक्सर सामाजिक गतिशीलता के बारीकियन में गहिराह उतरेला, जवन मानवीय संबंधन आ ग्रामीण जीवन के जटिलता के गहन समझ के दर्शावत बा। उनकर लेखन शैली भोजपुरी संस्कृति के सार के समेटले बा, पारंपरिक तत्वन के समकालीन विषय के साथे मिलावत बा। डॉ. अरुणेश नीरन के भोजपुरी भाषा आ धरोहर के संरक्षण आ संवर्धन खातिर समर्पण उनुका काम के निकाय में साफ लउकत बा. एगो साहित्यिक हस्ती के रूप में उहाँ के अतीत आ वर्तमान के बीच सेतु के रूप में खड़ा बानी, ई सुनिश्चित करत कि भोजपुरी साहित्य के अनूठा आवाज उहाँ के अंतर्दृष्टि वाला कलम के तहत पनपत आ विकसित होखत रहे।
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स्वस्ती श्री

4 November 2023
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भोजपुरी क्षेत्र की यह विशेषता है कि वह क्षेत्रीयता या संकीर्णता के दायरे में बँध कर कभी नहीं देखता, वह मनुष्य, समाज और देश को पहले देखता है। हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में भोजपुरी भाषी लोगों का अ

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कविता-खण्ड गोरखनाथ

4 November 2023
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अवधू जाप जप जपमाली चीन्हों जाप जप्यां फल होई। अजपा जाप जपीला गोरप, चीन्हत बिरला कोई ॥ टेक ॥ कँवल बदन काया करि कंचन, चेतनि करौ जपमाली। अनेक जनम नां पातिंग छूटै, जयंत गोरष चवाली ॥ १ ॥ एक अपोरी एकंकार जप

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भरथरी - बारहमासा

4 November 2023
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चन्दन रगड़ी सांवासित हो, गूँथी फूल के हार इंगुर माँगयाँ भरइतो हो, सुभ के आसाढ़ ॥ १ ॥ साँवन अति दुख पावन हो, दुःख सहलो नहि जाय। इहो दुख पर वोही कृबरी हो, जिन कन्त रखले लोभाय ॥ २ ॥ भादो रयनि भयावनि हो, ग

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कबीरदास

4 November 2023
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झीनी झीनी बीनी चदरिया | काहे के ताना काहे के भरनी, कौने तार से बीनी चदरिया | इंगला पिगला ताना भरनी, सुषमन तार से बीनी चदरिया | आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्त गुन तीनो चदरिया | साई को सियत मास दस लागे

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धरमदास

4 November 2023
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सूतल रहली मैं सखिया त विष कइ आगर हो । सत गुरु दिहलेंड जगाइ, पावों सुख सागर हो ॥ १ ॥ जब रहली जननि के अंदर प्रान सम्हारल हो । जबले तनवा में प्रान न तोहि बिसराइव हो ॥ २ ॥ एक बूँद से साहेब, मंदिल बनावल

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पलटू साहेब

4 November 2023
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कै दिन का तोरा जियना रे, नर चेतु गँवार ॥ काची माटि के घैला हो, फूटत नहि बेर । पानी बीच बतासा हो लागे गलत न देर ॥ धूआँ कौ धौरेहर बारू कै पवन लगै झरि जैहे हो, तून ऊपर सीत ॥ जस कागद के कलई हो, पाका फल डा

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लक्ष्मी सखी

4 November 2023
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चल सखी चल धोए मनवा के मइली ॥ कथी के रेहिया कथी के घइली । कबने घाट पर सउनन भइली ॥ चितकर रेहिया सुरत घड़ली । त्रिकुटी भइली ॥ ग्यान के सबद से काया धोअल गइली । सहजे कपड़ा सफेदा हो गइली ॥ कपड़ा पहिरि लछिमी

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बाबू रघुवीर नारायण बटोहिया

4 November 2023
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सुन्दर सुभूमि भैया भारत के देसवा से मोरे प्रान बसे हिम-खोह रे बटोहिया एक द्वार घेरे राम हिम कोतवलवा से तीन द्वार सिधु घहरावे रे बटोहिया जाहु जाहु भैया रे बटोही हिन्द देखि आउ जहवाँ कुहकि कोइलि बोले रे

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हीरा डोम

4 November 2023
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हमनी के राति दिन दुखवा भोगत वानों हमन के साहेब से मिनती सुनाइबि हमनों के दुख भगवनओ न देखता जे हमनीं के कबले कलेसवा उठाइब जा पदरी सहेब के कचहरी में जाइब बेधरम होके रंगरेज बानि जाइवि हाय राम! धरम न छोड

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महेन्दर मिसिर

4 November 2023
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एके गो मटिया के दुइगो खेलवना मोर सँवलिया रे, गढ़े वाला एके गो कोंहार कवनो खेलवना के रंग बाटे गोरे-गोरे मोर सँवलिया रे कवनो खेलवना लहरदार कवनो खेलवना के अटपट गढ़निया मोर सँवलिया रे, कवनो खेलवना जिउवामा

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मनोरंजन प्रसाद सिन्हा - मातृभाषा आ राष्ट्रभाषा

6 November 2023
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दोहा जय भारत जय भारती, जय हिन्दी, जय हिन्द । जय हमार भाषा बिमल, जय गुरू, जय गोविन्द ॥ चौपाई ई हमार ह आपन बोली सुनि केहू जनि करे ठठोली ॥ जे जे भाव हृदय के भावे ऊहे उतरि कलम पर आवे ॥ कबो संस्कृत, कबह

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कौना दुखे डोली में रोवति जाति कनियाँ

6 November 2023
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भारत स्वतन्त्र भैल साढ़े तीन प्लान गैल बहुत सुधार भैल जानि गैल दुनियाँ चोट के मिलल अधिकार मेहरारून का किन्तु कम भैल ना दहेज के चलनियाँ एहो रे दहेज खाती बेटिहा पेरात बाटे तेली मानों गारि-गारि पेर

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महुआबारी में बहार

6 November 2023
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असों आइल महुआबारी में बहार सजनी कोंचवा मातल भुँइया छूए महुआ रसे रसे चूए जबसे बहे भिनुसारे के बेयारि सजनी पहिले हरका पछुआ बहलि झारि गिरवलसि पतवा गहना बीखो छोरि के मुँड़ववलसि सगरे मथवा महुआ कुछू नाहीं

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राम जियावन दास 'बावला'

6 November 2023
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गाँव क बात गीत जनसरिया के होत भोरहरिया में, तेतरी मुरहिया के राग मन मोहइ । राम के रटनियाँ सुगनवा के पिजरा में, ओरिया में टैंगल अँगनवा में सोहइ । माँव-गाँव करैला बरुआ मड़इया में गइयवा होकारि के मड़इया

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सपना

6 November 2023
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सूतल रहली सपन एक देखली मनभावन हो सखिया फूटलि किरिनिया पुरुष असमनवा उजर घर आँगन हो सखिया अँखिया के नीरवा भइल खेत सोनवा त खेत भइलें आपन हो सखिया गोसयाँ के लठिया मुरड्या अस तूरली भगवलीं महाजन हो सखिया

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इमली के बीया

6 November 2023
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लइकाई के एक ठे बात मन परेला त एक ओर हँसी आवेला आ दूसरे और मन उदास हो जाला। अब त शायद ई बात कवनी सपना लेखा बुझाय कि गाँवन में जजमानी के अइसन पक्का व्यवस्था रहे कि एक जाति के दूसर जाति से सम्बंध ऊँच-नीच

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कोजागरी

6 November 2023
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भारत के साहित्य में, इतिहास भी पुराणन में, संस्कृति भा धर्म साधना में, कई गो बड़हन लोगन के जनम आ मरण कुआर के पुनवासी के दिन भइल बाटे। कुआर के पुनवासी- शरदपूर्णिमा के ज्योति आ अमृत के मिलल जुलल सरबत कह

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पकड़ी के पेड़

7 November 2023
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हमरे गाँव के पच्छिम ओर एक ठो पकड़ी के पेड़ बा। अब ऊ बुढ़ा गइल बा। ओकर कुछ डारि ठूंठ हो गइल बा, कुछ कटि गइल बा आ ओकर ऊपर के छाल सुखि के दरकि गइल बा। लेकिन आजु से चालीस बरिस पहिले ऊहो जवान रहल। बड़ा भ

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मिट- गइल-मैदान वाला एगो गाँव

7 November 2023
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बरसात के दिन में गाँवे पहुँचे में भारी कवाहट रहे। दू-तीन गो नदी पड़त रही स जे बरसात में उफनि पड़त रही स, कझिया नदी जेकर पाट चौड़ा है, में त आँख के आगे पानिए पानी, अउर नदियन में धार बहुत तेज कि पाँव टि

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हजारीप्रसाद द्विवेदी

7 November 2023
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अपने सभ हमरा के बहुत बड़ाई दिहली जे एह सम्मेलन के सभापति बनवलीं। एह कृपा खातिर हम बहुत आभारी बानी हमार मातृभाषा भोजपुरी जरूर वा बाकिर हम भोजपुरी के कवनो खास सेवा नइखों कइले हम त इहे समझली ह जे अपने सभ

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भगवतशरण उपाध्याय

7 November 2023
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अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, सीवान के अधिवेशन के संयोजक कार्य समिति के सदस्य, प्रतिनिधि अउर इहाँ पधारल सभे जन-गन के हाथ जोरि के परनाम करतानी रउआँ जवन अध्यक्ष के ई भारी पद हमरा के देके हमार जस

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आचार्य विश्वनाथ सिंह

8 November 2023
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महामहिम उपराष्ट्रपति जी, माननीय अतिथिगण, स्वागत समिति आ संचालन- समिति के अधिकारी लोग, प्रतिनिधिगण, आ भाई-बहिन सभे जब हमरा के बतावल गइल कि हम अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का एह दसवाँ अधिवेशन के

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नाटक-खण्ड महापंडित राहुल सांकृत्यायन

8 November 2023
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जोंक नोहर राउत मुखिया बुझावन महतो किसान : जिमदार के पटवारी सिरतन लाल  हे फिकिरिया मरलस जान साँझ विहान के खरची नइखे मेहरी मारै तान अन्न बिना मोर लड़का रोवै का करिहैं भगवान हे फिकिरिया मरलस जान करज

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गबरघिचोर

8 November 2023
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गलीज : गाँव के एगो परदेसी युवक गड़बड़ी : गाँव के एगो अवारा युवक घिचोर : गलीज बहू से पैदा गड़बड़ी के बेटा पंच : गाँव के मानिन्द आदमी  गलीज बहू : गलीज के पत्नी आ गबरघिचोर के मतारी जल्लाद, समाजी, दर्शक

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किसान- भगवान

8 November 2023
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बाबू दलसिंगार राय बड़ा जुलुमी जमींदार रहलन। ओहू में अंगरेजी पढ़ल- लिखल आ वोकोली पास एगो त करइला अपने तीत दूसरे चढ़ल नीवि पर बाबू साहेब के आपन जिमिदारी जेठ वाली दुपहरिया का सुरुज नियर तपलि रहे। हरी- बंग

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मछरी

9 November 2023
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ताल के पानी में गोड़ लटका के कुंती ढेर देर से बइठल रहे गोड़ के अँगुरिन में पानी के लहर रेसम के डोरा लेखा अझुरा अझुरा जात रहे आ सुपुली में रह-रह के कनकनी उठत रहे, जे गुदगुदी बन के हाड़ में फैल जात रहे।

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भँड़ेहरि

9 November 2023
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रामदत्त के मेहरारू गोरी रोज सवेरे नदी तीरे, जहाँ बान्ह बनावल गइल बा, जूठ बर्तन माँजे आ जाले जब एहर से जाये के मोका मिलेला ओकरा के जरूर देखी ला। अब ओखरा संगे संगे ओकरा बर्तनो के चीन्हि लेले बानी एगो पच

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रजाई

9 November 2023
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आजु कंगाली के दुआरे पर गाँव के लोग फाटि परल वा एइसन तमासा कव्वी नाहीं भइल रहल है। बाति ई बा कि आजु कँगाली के सराध हउवे। बड़ मनई लोगन के घरे कवनो जगि परोजन में गाँव-जवार के लोग आवेला, नात- होत आवेलें,

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तिरिआ जनम जनि दीहऽ विधाता

9 November 2023
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दिदिआ क मरला आजु तीनि दिन हो गइल एह तोनिए दिन में सभ कुछ सहज हो गइल नइखे लागत जइसे घर के कवनो बेकति के मउअति भइल होखे। छोट वहिन दीपितो दिदिआ के जिम्मेदारी सँभारि लेलसि भइआ का चेहरा पर दुख के कवनो चिन्

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पोसुआ

9 November 2023
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दूबि से निकहन चउँरल जगत वाला एगो इनार रहे छोटक राय का दुआर पर। ओकरा पुरुष, थोरिके दूर पर एगो घन बँसवारि रहे। तनिके दक्खिन एगो नीबि के छोट फेंड़ रहे। ओहिजा ऊखि पेरे वाला कल रहे आ दू गो बड़-बड़ चूल्हि दू

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तिसरका कुल्ला

10 November 2023
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एहर तीनतलिया मोड़ से हो के जो गुजरल होखव रउआ सभे त देखले होखब कि मोड़ के ठीक बाद, सड़क के दहिने, एकदिसाहें से सैकड़न बर्हम बाबा लोग बनल बा.... बहम बाबा के बारे में नइखीं जानत ? अरे नाहीं जी, ब्रह्म आ

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यैन्कियन के देश से बहुरि के

10 November 2023
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बहुत साल पहिले एगो किताब पढ़ले रहलीं राहुल सांकृत्यायन जी के 'घुमक्कड़ शास्त्र' जवना में ऊ लिखले रहलन कि अगर हमार बस चलित त हम सबका घुमक्कड़ बना देतीं। 'अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा' से शुरू क के ऊ बतवले र

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गहमर : एगो बोधिवृक्ष

10 November 2023
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केहू केहू कहेला, गहमर एतना बड़हन गाँव एसिया में ना मिली। केह केहू एके खारिजो कइ देला आ कहला दै मदंवा, एसिया क ह ? एतना बड़ा गाँव वर्ल्ड में ना मिली, वर्ल्ड में बड़ गाँव में रहला के आनन्द ओइसही महसूस ह

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त्रेता के नाव

10 November 2023
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आदमी जिनिगी में बेवकूफी के केतने काम कइल करेला, बाकिर रेलगाड़ी में जतरा करत खानी अखवार कीनि के पढ़ल ओह कुल्ही बेवकूफिन के माथ हवे। ओइसे हम एके खूब नीके तरह जानत बानी, तबो मोका दरमोका हमरो से अइसन मू

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डोण्ट टाक मिडिले-मिडिले

10 November 2023
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आगे जवन हम बतावे जात हईं तवन भोजपुरियन बदे ना, हमरा मतिन विदेशियन बदे हौ त केहू कह सकत हौ कि भइया, जब ईहे हो त अंग्रेजी में बतावा, ई भोजपुरी काहे झारत हउअ ? जतावल चाहत हउअ का कि तोके भोजपुरी आवेला

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एगो किताब पढ़ल जाला

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